भारत में होने वाला वायु प्रदूषण मनुष्य के स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है, इस तथ्य को अब व्यापक रूप से माना जा रहा है। लेकिन बहुत कम ऐसे साक्ष्य प्रचलित हैं, जो यह दर्शाते हैं कि वायु प्रदूषण विभिन्न प्रकार के कार्यों को करने की क्षमता में कमी और निर्णय लेने की क्षमता में कमी जैसे तरीकों के माध्यम से उन लोगों के दैनिक कामकाज को हानि पहुँचाता है, जिनको चिकित्सा या निदान योग्य कोई बीमारी नहीं है। एग्विलर-गोमेज़ एवं अन्य विभिन्न उद्योगों में प्रदूषण के 'गैर-स्वास्थ्य प्रभावों’ और परिवेशीय प्रदूषण पर लोगों की प्रतिक्रिया के तरीकों पर यह शोध प्रस्तुत करते हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वैश्विक वायु गुणवत्ता दिशानिर्देशों के अपने 2021 के संशोधन में यह पाया कि "वायु प्रदूषण से उत्पन्न बीमारियों का बोझ महत्वपूर्ण आर्थिक बोझ भी डालता है" (डब्ल्यूएचओ, 2021)। भारत के सन्दर्भ में यह निश्चित रूप से सच है, जहाँ पीएम 2.5 सूक्ष्म-कण प्रदूषण के मामले में दुनिया के 50 सबसे प्रदूषित शहरों में से 39 शहर स्थित हैं, और जहाँ अनुमानित 18% मौतें वायु प्रदूषण के कारण होती हैं (पांडे एवं अन्य 2021)। इस क्षेत्र में बढ़ता हुआ शोध-कार्य बताता है कि वायु प्रदूषण के सम्पर्क में आने से शारीरिक और संज्ञानात्मक कार्य-निष्पादन, दोनों पर महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ सकता है। हालाँकि इन प्रतिकूल प्रभावों का बीमारियों के रूप में निदान नहीं किया जा सकता, लेकिन इनका आर्थिक उत्पादन और खुशहाली पर प्रभाव पड़ता है, जिससे भारतीय लोगों को कई व्यापक लेकिन पता लगाने में मुश्किल, नुकसान हो सकते हैं।
इनमें से कुछ 'गैर-स्वास्थ्य प्रभाव’ प्रदुषण से सम्पर्क के समय होते हैं और इनके चलते कार्य-निष्पादन में अल्पकालिक कमी, जैसे कि विशेष रूप से प्रदूषित दिनों में कार्य-कुशलता में कमी दिखने लगती है। अन्य प्रभाव लम्बे समय में हुई शारीरिक क्षति की ओर इशारा करते हैं, जो चिकित्सा निदान के स्तर से कम होते हैं, लेकिन फिर भी इनका व्यक्ति के व्यवहार पर प्रभाव पड़ता है। नीति-निर्माण के दृष्टिकोण से देखा जाए तो इन परिणामों से यह पता चलता है कि वायु प्रदूषण में थोड़ी-सी भी कमी आने पर उसके अर्थव्यवस्था-व्यापी प्रभाव हो सकते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि प्रदूषण से सम्भावित रूप से प्रभावित होने वाले लोगों की संख्या चिकित्सा के हिसाब से बीमार लोगों की संख्या से कहीं अधिक है, और यह क्षति जिस स्तर पर शुरू होती है वह बीमारियों के लक्षण विकसित होने की सीमा से कम होती है।
वायु प्रदूषण के दीर्घकालिक और अल्पकालिक प्रभाव
किसी एक दिन में अधिक वायु प्रदूषण का जोखिम वस्त्र उत्पादन (अध्वर्यु एवं अन्य 2019), कृषि (ग्राफ ज़िविन और नीडेल 2012), खाद्य प्रसंस्करण (चांग एवं अन्य 2016), कॉल सेंटर से जुड़े कार्यों (चांग एवं अन्य 2019) और अदालती प्रणाली (काह्न और ली 2020) जैसे विविध प्रकार के कामों में जुटे लोगों की उत्पादकता को कम करता प्रतीत होता है। इन अल्पकालिक प्रभावों को लम्बे समय तक सम्पर्क के कारण होने वाली नई या पुरानी स्वास्थ्य समस्याओं, या तीव्र लक्षणों के कारण काम से छुट्टी लेने जैसी बातों से श्रमिकों की उत्पादकता पर पडने वाले असर के रूप में नहीं समझाया जा सकता है। बल्कि, उन्हें कार्यबल पर 'गैर-स्वास्थ्य' उत्पादकता प्रभावों के रूप में समझा जा सकता है जो लम्बे समय तक सम्पर्क में रहने के नतीजे में होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के प्रभावों से अलग हैं। कार्य-स्थल पर मौजूद श्रमिकों पर इसके प्रभाव के अलावा, वायु प्रदूषण आंशिक रूप से स्वास्थ्य सम्बंधी तंत्रों के माध्यम से (हना और ओलिवा 2015, आरागॉन एवं अन्य 2017, होलब एवं अन्य 2021) और आंशिक रूप से कम प्रदूषित क्षेत्रों की ओर (खन्ना एवं अन्य 2021) ऊँची लागत वाले स्थानांतरण के माध्यम से श्रम आपूर्ति को भी कम करता हुआ दिखता है। वायु प्रदूषण के अल्पकालिक उत्पादकता प्रभाव उन उद्योगों या स्थानों के उपसमूह तक सीमित नहीं लगते हैं जिनका अब तक स्वतंत्र रूप से अध्ययन किया गया है। क्षेत्रीय स्तर पर या राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक फर्म डेटा के साथ किए गए अनुमान भी समग्र उत्पादन (फू एवं अन्य 2018, डेशेज़लेप्रेट्रे एवं अन्य 2019) पर सार्थक प्रभाव दर्शाते हैं, जो कुल उत्पादकता और श्रम आपूर्ति प्रभावों को दर्शाते हैं। उत्पादकता पर वायु प्रदूषण का प्रभाव उन सेटिंग्स में भी पाया गया है जहाँ प्रदूषण भारत में वर्तमान की तुलना में काफी कम गम्भीर है। यह इस बात को दर्शाता है कि उत्पादकता में ऐसी गिरावट किसी भी समय भारतीय कार्यबल के एक महत्वपूर्ण हिस्से पर भी अपना प्रभाव डाल सकती है।
वायु प्रदूषण इतने व्यापक श्रेणी के उद्योगों में श्रमिकों की उत्पादकता को कम कैसे कर देता है? फेफड़ों और परिसंचरण तंत्र पर वायु प्रदूषण के हानिकारक प्रभाव कृषि और विनिर्माण क्षेत्र के श्रमिकों पर पडने वाले इस बुरे प्रभाव को दर्शा सकते हैं। लेकिन सफेदपोश कामों में जुटे लोग, इसके बजाय अनुभूति और निर्णय लेने की क्षमता पर वायु प्रदूषण के प्रभाव से पीड़ित हो सकते हैं। कई अध्ययनों में इस बात के प्रमाण मिले हैं कि वायु प्रदूषण विभिन्न शैक्षणिक और संज्ञानात्मक यानी कॉग्निटिव परीक्षणों में स्कोर को कम कर देता है (एबेंस्टीन एवं अन्य 2016, जॉन्ग एवं अन्य 2018, रोथ 2021)। ये सूक्ष्म संज्ञानात्मक कठिनाइयाँ इस बात की ओर इशारा कर सकती हैं कि वायु प्रदूषण निवेशकों में व्यवहार सम्बंधी पूर्वाग्रहों को क्यों बढ़ाता है (मेयर और पैगेल 2017, हुआंग एवं अन्य 2020, डोंग एवं अन्य 2021), जबकि आवेग नियंत्रण पर वायु प्रदूषण का अनुमानित प्रभाव यह दर्शा सकता है कि उच्च प्रदूषण से कुछ ख़ास प्रकार के अपराध की दरों में वृद्धि क्यों होती है (बॉन्डी एवं अन्य 2020, हेरनस्टेड एवं अन्य 2021, बर्कहार्ट एवं अन्य 2021)। अब तक उल्लिखित वायु प्रदूषण के प्रभाव वायु गुणवत्ता में अल्पकालिक उतार-चढ़ाव के कारण पाए गए हैं। खासकर जब गर्भावस्था या शिशु अवस्था के दौरान वायु प्रदूषण मौजूद हो तो, बार-बार उसके सम्पर्क में आने से संचित क्षति के माध्यम से लम्बी अवधि में लोगों की क्षमताएं भी कम हो सकती हैं। इस तरह के प्रभावों में, बच्चों के रूप में शैक्षणिक प्रदर्शन (सैंडर्स 2012, भारद्वाज एवं अन्य 2017), कॉलेज में उपस्थिति पर (वूरहेइस 2017, कोलमर और वूरहेइस 2020) नकारात्मक प्रभाव और वयस्कों के रूप में रोज़गार और कमाई पर नकारात्मक प्रभाव शामिल हैं (इसेन एवं अन्य 2017)। विकासशील देशों में प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों पर और अधिक शोध की ज़रूरत है, लेकिन मौजूदा अध्ययनों से पता चला है कि वायु प्रदूषण का बाल स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है। उदाहरण के लिए, यह भारत में बच्चों के बौनेपन की बड़ी समस्या में योगदान देता है (बलिएटी एवं अन्य 2022)। महत्वपूर्ण रूप से, संयुक्त राज्य अमेरिका में पाए जाने वाले कम जोखिम स्तरों पर भी प्रदूषण के दीर्घकालिक प्रभावों का पता लगाया जा सकता है। इससे यह पता चलता है कि यहाँ तक कि कई भारतीय जिनका जोखिम स्तर निदान-योग्य बौनेपन का कारण बनने के लिए पर्याप्त नहीं रहा हो, हो सकता है कि फिर भी उन्हें अपनी क्षमताओं में छोटी लेकिन दीर्घकालिक कमी का सामना करना पड़ा हो।
वायु प्रदूषण के वास्तविक प्रभाव का वर्णन
सह-सम्बंध से कारण का पता लगाना वायु प्रदूषण के स्वास्थ्य और गैर-स्वास्थ्यप्रभावों पर शोध का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। शोधकर्ताओं को इस संभावना को भी ध्यान में रखना चाहिए कि उच्च स्तर के प्रदूषण के सम्पर्क में आने वाले लोगों में अन्य अंतर्निहित कारक भी होते हैं जो उनकी उत्पादकता को प्रभावित करते हैं, लेकिन उनको समझना मुश्किल होता है। उदाहरण के लिए, उच्च स्तर के प्रदूषण के सम्पर्क में आने वाले व्यक्ति नौकरी की कम संभावनाओं वाले स्थान के निवासी हो सकते हैं। उपरोक्त कई अध्ययनों में अर्ध-प्रयोगात्मक या क्वासि-एक्सपेरिमेंटल अनुसंधान डिज़ाइनों का उपयोग किया गया है, जिनमें हवा के पैटर्न में बदलाव, अचानक लगने वाली जंगलों की आग, पर्यावरण नीति में बदलाव, या फिर प्रदूषण उत्सर्जित करने वाले कारखानों के बंद होने जैसे स्रोतों से पैदा होने वाले कारकों से असंबंधित प्रदूषण में भिन्नता को गहराई से समझने का प्रयास किया गया है।
फिर भी, विश्वसनीय रूप से पहचाने जाने पर भी, प्रदूषण के अनुमानित प्रभावों की सोच-समझकर व्याख्या करने की आवश्यकता है। परिहार (उच्च प्रदूषण वाले दिनों में घर के अंदर रहना, एयर फिल्टर खरीदना) और सुधार (स्कूल में परीक्षा में असफल होने के बाद अधिक घंटे पढ़ाई में व्यतीत करना) जैसे व्यवहारों से परिणामों पर अंतिम प्रभाव को कम किया जा सकता है। ये व्यवहार प्रदूषण के प्रत्यक्ष नुकसान को कम कर सकते हैं, लेकिन वे समय, धन या उपयोगिता में वास्तविक लागत का कारण बनते हैं जो सामान्य अनुमानों द्वारा पकड़ में नहीं आते हैं।1
निष्कर्ष
भारत में लोग परिवेशीय प्रदूषण पर कैसे प्रतिक्रिया करते हैं, और उन्हें उचित प्रतिक्रिया के लिए कैसे मदद की जा सकती है, यह समझना आगे के शोध के लिए इस महत्वपूर्ण क्षेत्र को दर्शाता है कि भारत में प्रदूषण उत्सर्जन को कम करने के कौन से साधन प्रभावी होंगे (ग्रीनस्टोन और हना 2012, हना एवं अन्य 2016, जैक एवं अन्य 2022)। ये प्रतिक्रियाएँ सन्दर्भ के अनुसार व्यापक रूप से भिन्न हो सकती हैं। जैसे कि मुंबई की गगनचुंबी इमारतों के लोग फिल्टर के माध्यम से हवा लेने में सक्षम हो सकते हैं, लेकिन पराली जलाने वाले कृषि श्रमिकों या भारत के कई छोटे अनौपचारिक व्यवसायों में काम करने वाले श्रमिकों को खुद को बचाने और अनुकूलन की लागत वहन करने में कठिनाई हो सकती है। प्रदूषण से बचने के व्यवहार को अपनाने की क्षमता में सम्भावित अंतर के परिणामस्वरूप, वायु प्रदूषण का उत्पादकता पर बहुत असमान प्रभाव पड़ सकता है, जो सम्भावित रूप से मौजूदा आय की असमानता को और बढ़ा सकता है।
वायु प्रदूषण के गैर-स्वास्थ्य प्रभावों को बेहतर ढंग से समझने के लिए अभी और शोध की आवश्यकता है। इसके संज्ञानात्मक प्रभावों की सटीक प्रकृति, या विशेष सेटिंग्स में परिहार और सुधार की व्यापकता और लागत पर अभी तक कोई सहमति नहीं बनी है (बारविक एवं अन्य 2020, खन्ना एवं अन्य 2021)। इस बारे में अधिक साक्ष्य से पता चलता है कि हालांकि कई भारतीय वायु प्रदूषण के कारण होने वाली बीमारियों से पीड़ित हैं, लेकिन बड़ी संख्या में लोग वायु प्रदूषण से नकारात्मक रूप से प्रभावित हो सकते हैं, भले ही उन्होंने इसके प्रभावों को कभी भी मूर्त रूप में नहीं देखा हो।
टिप्पणी:
- वास्तव में, ऐसी वस्तुओं और सेवाओं की मांग कम कल्याण के परिणामस्वरूप बाजार उत्पादन में वृद्धि करती है। इसलिए, इन सेटिंग्स में कल्याण के लिए प्रॉक्सी के रूप में उत्पादन या उपभोग पर ध्यान केन्द्रित न करना महत्वपूर्ण हो जाता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : सैंड्रा एग्विलर-गोमेज़ यूनिवर्सिडैड डी लॉस एंडीज़ में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो में विजिटिंग स्कॉलर हैं। होल्ट ड्वायर कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय सैन डिएगो में स्नातक छात्र हैं। जोशुआ ग्राफ ज़िविन भी यूसी सैन डिएगो में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं, जहाँ वह स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रैटेजी और अर्थशास्त्र विभाग में संकाय पदों पर कार्यरत हैं। मैथ्यू नीडेल कोलंबिया विश्वविद्यालय में स्वास्थ्य नीति और प्रबंधन विभाग में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं।
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