जलवायु परिवर्तन पर पेरिस समझौते के तहत भारत का लक्ष्य ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की तीव्रता को वर्ष 2005 के स्तर से वर्ष 2030 तक 33-35% तक कम करना है। मनीषा जैन ने ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ में प्रकाशित अपने पिछले लेख में दर्शाया था कि लक्ष्य की ओर अनुमानित प्रगति बाहरी और देश के डेटा स्रोतों में भिन्न होती है। इस लेख में,आगे के विश्लेषण के आधार पर वे तर्क देती हैं कि भारत के जलवायु लक्ष्यों को बढ़ाने के दायरे और इसकी शमन रणनीतियों की प्रभावशीलता से संबंधित सवालों का हल विभिन्न डेटासेट में अलग-अलग मिलता है।
हाल के कई अध्ययनों से पता चलता है कि भारत अपने पेरिस समझौते के लक्ष्यों (क्लाइमेट एक्शन ट्रैकर, 2021, डेन एलज़ेन एवं अन्य 2019) को पूरा करने की राह पर है। हालाँकि, उपलब्धियों से संबंधित अनिश्चितताओं के बारे में अब तक सीमित विश्लेषण ही उपलब्ध है (सुब्रमण्यम 2019)। भारत अपने लक्ष्यों को किस हद तक बढ़ा सकता है, और इसकी शमन रणनीतियों की प्रभावशीलता का आकलन करने के लिए, लक्ष्यों की दिशा में हुई प्रगति के बारे में अधिक जानकारी का होना महत्वपूर्ण है।
भारत के ऊर्जा संबंधी CO2 उत्सर्जन पर नज़र रखना
भारत का ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन तीव्रता लक्ष्य वर्ष 2005 के स्तर (जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (यूएनएफसीसीसी), 2009) के आधार पर वर्ष 2030 में अपनी जीएचजी उत्सर्जन तीव्रता1 को 33-35% तक कम करना है। इसलिए, भारत द्वारा वर्ष 2005 के बाद से हासिल की गई जीएचजी उत्सर्जन तीव्रता में कमी इस लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में भारत की प्रगति का एक संकेतक है। देश में रिपोर्ट किए गए आंकड़ों के अनुमानों के मुताबिक, भारत ने वर्ष 2005 की तुलना में वर्ष 2014 में जीएचजी उत्सर्जन तीव्रता में 21% की कमी2 हासिल की। ‘आइडियाज फॉर इंडिया’ पर इससे पहले के अपने ब्लॉग लेख में, मैंने उत्सर्जन की तीव्रता में कमी की तुलना बाहरी डेटा (तृतीय-पक्ष डेटा) के अनुमानों के साथ देश में रिपोर्ट किए गए डेटा से की। मैंने दर्शाया कि बाहरी डेटा स्रोतों से जीएचजी उत्सर्जन की तीव्रता में गिरावट देश के डेटा अनुमानों (जैन 2020) से कम है।
जैसा कि उपर्युक्त लेख में चर्चा की गई है, भारत के देश में रिपोर्ट किए गए डेटा के साथ दो मुख्य मुद्दे हैं। सबसे पहला, आधारभूत वर्ष, यानी वर्ष 2005 के आंकड़े रिपोर्ट नहीं किए गए हैं। दूसरा, गैसों और क्षेत्रों द्वारा उत्सर्जन का विस्तृत विवरण वर्ष 2005 को छोड़कर केवल कुछ वर्षों के लिए ही उपलब्ध है। विश्लेषक इन सीमाओं के चलते, भारत की डीकार्बोनाइजेशन प्रगति का अध्ययन करने के लिए बाहरी डेटा का उपयोग करते हैं। देश में रिपोर्ट किए गए डेटा और बाहरी डेटा स्रोतों के बीच,जीवाश्म ईंधन के दहन से कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) उत्सर्जन के अनुमानों में कुछ भिन्नतायें हैं। मैं इस लेख में, पिछले विश्लेषण के अंत में प्रस्तुत दो शेष प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करती हूं: भिन्नता के कारण क्या हैं,और इसके नीतिगत निहितार्थ क्या हैं?
जीवाश्म ईंधन के दहन से CO2 का उत्सर्जन होना जलवायु परिवर्तन संकट का मुख्य कारक है। इसलिए,किसी अर्थव्यवस्था की डीकार्बोनाइजिंग प्रगति को समझने हेतु ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन पर नज़र रखना आवश्यक है। इसके अलावा, उस अर्थव्यवस्था में संरचनात्मक परिवर्तनों के प्रभावों और उत्सर्जन को बढ़ाने में प्रौद्योगिकीय प्रगति के बीच अंतर करने के लिए एक क्षेत्र-स्तरीय विश्लेषण किया जाना महत्वपूर्ण है। क्षेत्र-स्तरीय उत्सर्जन डेटा के स्रोत सीमित हैं- सबसे अधिक उपयोग किया जाने वाला स्रोत अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) (कार्स्टनसेन 2020, जैन 2020) है। कुछ अध्ययन राष्ट्रीय जीएचजी सूची के लिए जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (आईपीसीसी) दिशानिर्देशों का पालन करते हुए, राष्ट्रीय ऊर्जा आंकड़ों का उपयोग करके क्षेत्र-स्तरीय डेटा का अनुमान लगाते हैं (दास एवं अन्य 2020)। आईईए से डेटा और राष्ट्रीय ऊर्जा सांख्यिकी3 से अनुमानित डेटा वार्षिक आवृत्ति पर उपलब्ध हैं।
देश में रिपोर्ट किया गया डेटा बनाम बाहरी डेटा
मैं आईईए डेटा से भारत के CO2 उत्सर्जन का डेटा लेती हूं और उसकी तुलना देश के डेटा में रिपोर्ट किए गए अनुमानों के साथ करती हूं (जैन 2021)। यह जीएचजी उत्सर्जन सात श्रेणियों में रिपोर्ट किया गया है- बिजली उत्पादन उद्योग, ठोस ईंधन के शोधन और निर्माण हेतु उद्योग, विनिर्माण और निर्माण, परिवहन, वाणिज्यिक, कृषि और मत्स्य पालन, और आवासीय। तालिका 1 से पता चलता है कि दो डेटासेट के बीच अंतर के कई स्रोत हैं। वर्ष 2010 और 2014 में विनिर्माण और निर्माण से उत्सर्जन के अनुमानों में एक महत्वपूर्ण भिन्नता है। आईईए डेटा में विनिर्माण और निर्माण से उत्सर्जन वर्ष 2010 में 39% अधिक और 2014 में 44% अधिक है। इसके अलावा, कृषि और वाणिज्यिक क्षेत्रों में देश में रिपोर्ट किए गए डेटा में अनिरंतरता (मूल्यों में अचानक परिवर्तन) है। बिजली उत्पादन,परिवहन और आवासीय क्षेत्रों से उत्सर्जन सभी वर्षों के संदर्भ में दो डेटासेट में समान है।
तालिका 1. भारत का क्षेत्र-स्तरीय ऊर्जा संबंधी CO2 उत्सर्जन (मिलियन टन में)
डेटा स्रोत |
देश का डेटा |
आईईए |
||||||
वर्ष |
2000 |
2007 |
2010 |
2014 |
2000 |
2007 |
2010 |
2014 |
ऊर्जा |
||||||||
विद्युत् उत्पादन |
522 |
716 |
816 |
1078 |
459 |
656 |
790 |
1081 |
अन्य ऊर्जा उद्योग |
19 |
69 |
60 |
57 |
32 |
45 |
31 |
37 |
विनिर्माण और निर्माण |
228 |
258 |
299 |
350 |
188 |
290 |
415 |
506 |
यातायात |
96 |
139 |
184 |
246 |
95 |
143 |
193 |
236 |
अन्य |
||||||||
व्यावसायिक |
3 |
2 |
4 |
25 |
10 |
13 |
16 |
21 |
आवासीय |
55 |
69 |
75 |
86 |
63 |
71 |
76 |
82 |
कृषि और मत्स्य पालन |
28 |
33 |
3 |
2 |
25 |
25 |
26 |
31 |
कुल |
952 |
1,286 |
1,442 |
1,845 |
872 |
1,243 |
1,547 |
1,994 |
डेटा स्रोतों में ऊर्जा और उत्सर्जन अनुमानों में अंतर को अतीत में उजागर किया गया है (मैकनिक 2011),तथापि इस पर सीमित विमर्श किया गया है कि ये नीति से संबंधित प्रासंगिक संकेतकों को कैसे प्रभावित करते हैं।
जीएचजी उत्सर्जन का आकलन करते समय, बिजली उत्पादन से होने वाले उत्सर्जन को एक श्रेणी में रखा जाना आम प्रक्रिया है। तथापि, विभिन्न अंतिम उपयोगकर्ता क्षेत्र (उदाहरण के लिए, कृषि, उद्योग) बिजली की खपत करते हैं,अतः बिजली उत्पादन से उत्सर्जन को अंतिम उपयोगकर्ता उपभोक्ता श्रेणियों में पुनर्आबंटित किया जाना चाहिए। मैं बिजली की बिक्री के हिस्से का प्रभाव के रूप में उपयोग करके ऐसा करती हूं। मैं फिर तीन उत्पादन क्षेत्रों में उत्सर्जन तीव्रता की गणना करती हूं: कृषि और संबद्ध, उद्योग और वाणिज्यिक और सेवाएं।
चित्र 1 वर्ष 2000-2014 की अवधि के दो डेटा स्रोतों से गणना की गई CO2 उत्सर्जन तीव्रता को इंगित करता है। वर्ष 2007 को छोड़कर सभी वर्षों में दोनों स्रोतों के अनुमान काफी भिन्न हैं। आईईए के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 से 2014 तक भारत की CO2 उत्सर्जन तीव्रता में 7% की वृद्धि हुई है। चूंकि देश में रिपोर्ट किए गए स्रोतों से वर्ष 2005 का डेटा उपलब्ध नहीं हैं, इसलिए मैंने तुलना के लिए वर्ष 2007 के डेटा का उपयोग किया है। देश में रिपोर्ट किए गए आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2007 और 2014 के बीच भारत की CO2 उत्सर्जन तीव्रता में 6% की गिरावट आई है। इसके विपरीत,आईईए डेटा इसी अवधि के दौरान इसी मूल्य में 5% की वृद्धि दर्शाता है। आईईए के आंकड़ों के अनुसार, वर्ष 2005 और 2014 के बीच और वर्ष 2007 और 2014 के बीच सभी क्षेत्रों में उत्सर्जन की तीव्रता में वृद्धि हुई है। तथापि, वर्ष 2007-2014 के दौरान देश में रिपोर्ट किए गए डेटा में उद्योग और कृषि और संबद्ध क्षेत्रों की उत्सर्जन तीव्रता में गिरावट नजर आती है।
चित्र 1. अर्थव्यवस्था की ऊर्जा से संबंधित CO2 उत्सर्जन तीव्रता और आर्थिक गतिविधि के अनुसार तीव्रता
स्रोत: (i) देश में रिपोर्ट किया गया डेटा भारत के दूसरे राष्ट्रीय संचार और, यूएनएफसीसीसी (एमओईएफसीसी 2012, एमओईएफसीसी 2015, एमओईएफसीसी 2018) को प्रस्तुत की गई पहली और दूसरी द्विवार्षिक रिपोर्ट से लिया गया है। (ii) आईईए डेटा आईईए डेटा और सांख्यिकी (आईईए, 2019) से लिया गया है। (iii) वर्ष 2011-12 की स्थिर कीमतों पर जीडीपी और जीवीए डेटा भारत सरकार (सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (एमओएसपीआई), 2019) द्वारा प्रकाशित राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी की पिछली श्रृंखला से लिया गया है।
उत्सर्जन की तीव्रता में परिवर्तन की जांच
किसी क्षेत्र का ऊर्जा-CO2 उत्सर्जन उस क्षेत्र की आर्थिक गतिविधि में परिवर्तन और आर्थिक गतिविधि से उत्सर्जन की तीव्रता से प्रेरित होता है। किसी अर्थव्यवस्था की उत्सर्जन तीव्रता संरचनात्मक और तकनीकी कारकों के कारण बदल सकती है। संरचनात्मक कारकों में सेवा क्षेत्र की हिस्सेदारी में वृद्धि, या कम ऊर्जा-गहन उद्योगों की ओर बदलाव,या उपयोग किए जाने वाले ईंधन के मिश्रण में बदलाव शामिल हो सकते हैं। प्रौद्योगिकी कारक मुख्य रूप से ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों को अपनाने से हैं। जलवायु परिवर्तन शमन के लिए नीतिगत हस्तक्षेपों का उद्देश्य प्रौद्योगिकी कारकों के माध्यम से उत्सर्जन की तीव्रता को कम करना है। उत्सर्जन में बदलाव के लिए प्रौद्योगिकी कारकों के योगदान का अनुमान लगाना, उत्सर्जन को कम करने के लिए सरकारी नीतियां उपयोगी हैं या नहीं यह पता लगाने का एक तरीका है। सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव के प्रभाव का अनुमान क्षेत्र-स्तरीय उत्सर्जन डेटा का उपयोग करके लगाया जा सकता है। एक क्षेत्र के भीतर कम/अधिक ऊर्जा-गहन उद्योगों की ओर बदलाव जैसे संरचनात्मक परिवर्तनों के प्रभाव को केवल उप-क्षेत्र स्तर के डेटा का उपयोग करके अलग किया जा सकता है। उप-क्षेत्र स्तर के आंकड़ों के अभाव में, प्रौद्योगिकी और क्षेत्र-स्तरीय संरचनात्मक परिवर्तनों के संयुक्त प्रभावों का अनुमान लगाया जा सकता है।
आमतौर पर तकनीकी कारकों के प्रभाव को सूचकांक अपघटन विश्लेषण तकनीक (एंज 2015)4 का उपयोग करके अलग किया जाता है। गतिविधि प्रभाव, संरचना प्रभाव और क्षेत्र-तीव्रता प्रभाव का पता क्रमशः सकल मूल्य वर्धित (जीवीए), जीवीए क्षेत्रों की हिस्सेदारी और CO2 उत्सर्जन में क्षेत्रों की तीव्रता का उपयोग करके लगाया गया है। इस तकनीक का उपयोग करते हुए,मैं वर्ष 2007 और 2014 के बीच उत्सर्जन में बदलाव के कारकों को पृथक करती हूं। जीवीए में क्षेत्रीय हिस्सेदारी का उपयोग करते हुए, मैं सेवा क्षेत्र की ओर बदलाव के प्रभाव को अलग करती हूं। क्षेत्र-तीव्रता प्रभाव के रूप में संदर्भित शेष प्रभाव,ऊर्जा-कुशल प्रौद्योगिकियों और क्षेत्र के भीतर संरचनात्मक परिवर्तनों को अपनाने के कारण हैं जो आर्थिक उत्पादन को प्रभावित किए बिना ऊर्जा खपत को प्रभावित करते हैं।
चित्र 2 में पृथ:करण विश्लेषण के परिणाम दिखाए गए हैं। जैसा कि अपेक्षित था,'गतिविधि प्रभाव' जो आर्थिक गतिविधियों में वृद्धि से निर्धारित होता है, दोनों डेटासेट के अनुसार सभी क्षेत्रों में सकारात्मक है। वर्ष 2007-2014 के दौरान सेवा क्षेत्र की ओर एक बदलाव के कारण, संरचनात्मक प्रभाव ने कृषि और उद्योग दोनों में, दोनों डेटासेट में उत्सर्जन को कम कर दिया है। आईईए के आंकड़ों के अनुसार, कृषि और उद्योग के क्षेत्र-गहन प्रभाव ने उत्सर्जन को बढ़ाया है, जिससे कुल परिवर्तन में सकारात्मक क्षेत्र-तीव्रता प्रभाव पड़ा है। दूसरी ओर, देश के आंकड़ों के अनुसार, कृषि में क्षेत्र-गहन प्रभाव नगण्य है, लेकिन यह उद्योग में नकारात्मक है, जिससे उत्सर्जन में समग्र परिवर्तन में गिरावट आती है। उत्सर्जन में समग्र परिवर्तन में वृद्धि का तात्पर्य है कि उत्सर्जन को कम करने की रणनीतियों ने ठीक से काम नहीं किया है; अन्यथा उत्सर्जन में समग्र परिवर्तन में गिरावट नजर आती।
चित्र 2. भारत के ऊर्जा- CO2 उत्सर्जन में परिवर्तन के कारक, वर्ष 2007-2014
अलग-अलग डेटा, अलग-अलग हल
वर्ष 2007 और 2014 के बीच दो डेटासेट के परिणाम भारत की शमन रणनीतियों के प्रभाव पर दो अलग-अलग आख्यान देते हैं। आईईए डेटा के विश्लेषण से संकेत मिलता है कि उत्सर्जन को कम करने हेतु भारत के ऊर्जा दक्षता कार्यक्रम के प्रभावों को कृषि और औद्योगिक उत्पादन की ऊर्जा तीव्रता में वृद्धि के जरिये नकारा गया है। दूसरी ओर, देश में रिपोर्ट किए गए डेटा के परिणाम उत्सर्जन को कम करने में ऊर्जा दक्षता कार्यक्रमों की संभावित भूमिका को दर्शाते हैं। इससे पता चलता है कि भारत के जलवायु लक्ष्यों को बढ़ाने के दायरे और इसकी शमन रणनीतियों की प्रभावशीलता से संबंधित सवालों का हल विभिन्न डेटासेट में अलग-अलग मिलता है। भारत की जलवायु नीति में इन कारकों के महत्व को देखते हुए, देश में रिपोर्ट किए गए उत्सर्जन के अनुमानों में डेटा अंतराल का समाधान करना महत्वपूर्ण है।
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टिप्पणियाँ:
- किसी अर्थव्यवस्था की ऊर्जा-CO2 उत्सर्जन तीव्रता जीवाश्म ईंधन के दहन से CO2 उत्सर्जन और स्थिर कीमतों पर देश के सकल घरेलू उत्पाद का अनुपात है। क्षेत्र-स्तरीय उत्सर्जन तीव्रता, स्थिर कीमतों पर क्षेत्र-स्तरीय CO2 उत्सर्जन और क्षेत्रीय जीवीए (सकल मूल्य वर्धित) का अनुपात है।
- देश में रिपोर्ट किया गया डेटा केंद्र सरकार द्वारा सूचीबद्ध विशेषज्ञों द्वारा तैयार किए गए जीएचजी की सूची है। भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय संचार हर चार साल में यूएनएफसीसीसी को प्रस्तुत किया जाता है, और हर दो साल में द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है।
- क्षेत्र-स्तरीय CO2 उत्सर्जन डेटा भारत की देशीय रिपोर्ट से पांच साल- 1994, 2000, 2007, 2010 और 2014 (पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) के लिए उपलब्ध हैं।
- यह ऊर्जा की खपत जैसे समुच्चय को इसके अंतर्निहित चालकों में पृथक करने हेतु उपयोग की जाने वाली तकनीक है, उदाहरण के लिए-आर्थिक गतिविधि में वृद्धि या ऊर्जा खपत की तीव्रता में परिवर्तन।
लेखक परिचय: मनीषा इंदिरा गांधी विकास अनुसंधान संस्थान (IGIDR),मुंबई में एक सहायक प्रोफेसर हैं।
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