नीति निर्धारण में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए अच्छे डेटा का होना महत्वपूर्ण होता है। इस लेख में, संतोष और कपूर ने विकासात्मक चुनौतियों से सम्बंधित डेटा एकत्रित करने, उसे साझा करने और उसका उपयोग करने के साथ-साथ, राजस्थान के अनुभव पर आधारित एक अंतर्दृष्टि पर चर्चा की है। वे राजस्थान व अन्य राज्यों में डेटासेटों की अंतर-संचालनीयता (इंटरऑपरेबिलिटी) में सुधार लाने, तथा डेटा के लिए संस्थागत और कानूनी ढाँचे के लिए सिफारिशें करते हैं ताकि इसका उपयोग सरकार के भीतर व बाहर के हितधारकों द्वारा प्रभावी ढंग से किया जा सके।
पिछले दो दशकों में, भारत में कल्याणकारी शासन में आँकड़ों के संग्रह और उसके उपयोग में तेज़ी से वृद्धि देखी गई है। मैनुअल रिकॉर्ड के डिजिटलीकरण की कवायद के रूप में शुरू हुआ यह काम जल्द ही नीतिगत कार्रवाइयों की एक श्रृंखला में बदल गया, जो अब डेटा के आधार पर दिन-प्रतिदिन के शासन सम्बन्धी निर्णय लेने के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार है। डेटा का उपयोग तीन प्रकार के शासन सम्बन्धी निर्णयों के लिए किया जा सकता है- (i) रणनीतिक निर्णय जिसमें विकासात्मक परिणाम का दीर्घकालिक दृष्टिकोण निर्धारित किया जाता है, (ii) पूर्व-निर्धारित समय अवधि में दीर्घकालिक दृष्टिकोण को लागू करने के लिए सामरिक निर्णय और (iii) परिचालन सम्बन्धी निर्णय जो लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में दिन-प्रतिदिन की गतिविधियों को अभिव्यक्त करते हैं।
डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क
निर्णय लेने की प्रक्रियाओं के प्रति व्यवस्थित दृष्टिकोण तय करते समय डेटा गवर्नेंस फ्रेमवर्क उपयोगी साबित होते हैं। इनमें डेटा को परिभाषित करना, उपयोग की अनुमतियाँ और नियम निर्धारित करना, सरकार के विभागों और स्तरों में डेटा के आदान-प्रदान को सुविधाजनक बनाना और विभिन्न तरीकों से डेटा के भंडारण और उसके उपयोग को प्रोत्साहित करना शामिल है। ये फ्रेमवर्क सरकार के स्थानीय सन्दर्भ पर आधारित होने चाहिए और सरकार के भीतर व बाहर डेटा-उपयोगकर्ताओं की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए डिज़ाइन किए जाने चाहिए। जिन नागरिकों से सरकार डेटा एकत्र करना चाहती है, उनकी गोपनीयता बनाए रखने के लिए सूचित सहमति ली जानी चाहिए और डेटा को सार्वजनिक करने से पहले उसे अनाम किया जाना चाहिए। सभी हितधारकों की पहुँच सुनिश्चित करने के लिए खुले डेटा के सिद्धांतों को भी अपनाया जाना चाहिए।
वर्ष 2022 के अंत में, सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) की ‘जवाबदेही पहल’ (अकॉउंटेबिलिटी इनिशिएटिव) ने राजस्थान में मुख्यमंत्री की आर्थिक परिवर्तन सलाहकार परिषद के लिए एक अध्ययन किया, ताकि नीति निर्धारण में साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने के लिए राज्य के डेटा अनुभव को समझा जा सके। इस अध्ययन का उद्देश्य शिक्षा, स्वास्थ्य और ग्रामीण विकास जैसे सरकारी विभागों के अधिकारियों के डेटा से जुड़ने के अनुभवों को उजागर करना था। डेटा के जीवन चक्र में डेटा गवर्नेंस के चार पहलुओं को समझने के लिए एक रूपरेखा विकसित की गई थी, जिसमें डेटा उत्पन्न होने से लेकर उसे प्रयोग योग्य बनाने, उसका उपयोग करने और अंततः नीतिगत सुधारों में उसकी भूमिका तक शामिल था। यह समझने के लिए कि राजस्थान कल्याणकारी शासन के लिए आँकड़ों का संग्रहण और उपयोग किस प्रकार करता है, प्रमुख व्यक्तियों के साथ संरचित साक्षात्कार, फोकस समूह चर्चाएं और केस अध्ययन आयोजित किए गए।
इस लेख में हम अपने अध्ययन के परिणामों पर उदाहरणों के माध्यम से विचार करते हैं कि कैसे राजस्थान ने बेहतर डेटा के माध्यम से विकासात्मक चुनौतियों को हल करने का प्रयास किया है। हमारे अवलोकन राज्य स्तर से लेकर जमीनी स्तर तक, अन्य राज्य सरकारों को अपने डेटा सिस्टम को मज़बूत करने के लिए, साथ ही विभिन्न क्षेत्रों में डेटा गवर्नेंस में शामिल चिकित्सकों और शोधकर्ताओं को भी एक अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं।
डेटा संग्रह विधियों और उसके उपयोग में नवाचारों के मामले में राजस्थान राज्य अग्रणी रहा है। राज्य ने कल्याणकारी शासन के लिए कई पोर्टल, प्लेटफ़ॉर्म और प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) विकसित किए हैं। इनमें से कुछ पोर्टल विशेष रूप से नागरिकों के लिए सूचना प्राप्त करने या शिकायतें साझा करने के लिए डिज़ाइन किए गए हैं। जैसे कि जन सूचना पोर्टल1, जबकि अन्य पोर्टलों का उपयोग प्रबंधन के लिए आंतरिक रूप से किया जाता है। हमने यहाँ उन तीन विभागों से प्राप्त प्रमुख सीखों का वर्णन किया है जिनका हमने अध्ययन किया।
शिक्षा के बारे में रियल टाइम डेटा
शासन में डेटा का राजस्थान का अनुभव हर क्षेत्र में अलग-अलग है। प्रत्येक क्षेत्र में बड़े पैमाने पर पहल अलग-अलग विभागों द्वारा की जाती है। उदाहरण के लिए, शिक्षा विभाग (डीओई) यह सुनिश्चित करता है कि स्कूली शिक्षा से सम्बंधित डेटा एकत्र और संग्रह कर के उसका उपयोग किया जाए। विभाग के भीतर, उसकी विभिन्न इकाइयाँ डेटा के उन उपसमूहों से जुड़ती हैं जो सीधे उनके काम से सम्बंधित होते हैं।
शिक्षा विभाग का अनुभव उल्लेखनीय है क्योंकि यह वास्तविक समय में शिक्षा के बारे में डेटा एकत्र करने वाले देश के पहले संस्थानों में से एक था। यह विभाग ‘एकीकृत शाला दर्पण पोर्टल’ के माध्यम से, नियमित रूप से, 100 से अधिक डेटा बिन्दु एकत्र करता है, जिसमें छात्र उपस्थिति से लेकर स्कूल के बुनियादी ढाँचे तक के बिन्दु शामिल हैं। पोर्टल राज्य सरकार द्वारा चलाई जाने वाली अल्पकालिक योजनाओं जैसे छात्रवृत्ति या सैनिटरी नैपकिन वितरण के बारे में भी जानकारी एकत्र करता है। डेटा को एक डैशबोर्ड के माध्यम से विभिन्न अधिकारियों के लिए कार्रवाई योग्य बनाया जाता है, जहाँ इसे विभिन्न प्रारूपों में डाउनलोड किया जा सकता है और ग्राफ़ के रूप में देखा जा सकता है।
इस पुरस्कार विजेता प्लेटफ़ॉर्म2 को राज्य स्तर पर एक टीम द्वारा चलाया जाता है जिसे राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र (एनआईसी) से तकनीकी सहायता मिलती है। कौन से संकेतक एकत्र किए जाएं, इसका निर्णय राज्य की प्राथमिकताओं के आधार पर राज्य स्तर के अधिकारीयों द्वारा किया जाता है। एकत्रित डेटा से पता चलता है कि शिक्षा की प्रगति को समझने के लिए क्या महत्वपूर्ण माना जाता है और शिक्षा के परिणामों को बेहतर बनाने के लिए निर्णय लेने में क्या सहायक हो सकता है। इसलिए, डेटा राज्य के लिए उच्च मूल्य का बना हुआ है।
डेटासेट की अंतर-संचालनीयता (इंटरऑपरेबिलिटी)
शिक्षा विभाग (डीओई) ने ज़रूरतों के आधार पर शिक्षा के आँकड़ों को प्राथमिकता देने और डैशबोर्ड के माध्यम से इसे हितधारकों के लिए सुलभ बनाने का मार्ग प्रशस्त किया है, जबकि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग (डीओएचएफडब्ल्यू) सरकारी विभागों के विभिन्न डेटासेटों को एक साथ लाने में सफल रहा है। एक उदाहरण जो सामने आता है वह है, ई-विस्तृत दुर्घटना रिपोर्ट पोर्टल (ई-डीएआर)। जब कोई सड़क दुर्घटना होती है, तो सम्बंधित अधिकारी पोर्टल पर डेटा दर्ज करते हैं। ऐसी जानकारी एकत्रित करके दुर्घटना-प्रवण स्थानों की पहचान करने में मदद की जाती है और यह पता लगाने के लिए जाँच को प्रोत्साहित किया जाता है कि कौन सी चीजें उस स्थान को जोखिम भरा बनाती हैं। इसके अलावा, यह विभाग को इन स्थानों की निकटता में ट्रॉमा सेंटर, एम्बुलेंस जैसी चिकित्सा सुविधाओं की आवश्यकता को समझने में सक्षम बनाता है। डीओएचएफडब्ल्यू के अलावा, पोर्टल का उपयोग पुलिस और लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) जैसे हितधारकों द्वारा विभिन्न तरीकों से किया जाता है। उदाहरण के लिए, पीडब्ल्यूडी उक्त डेटा का उपयोग बेहतर संकेत लगाने या सड़क सुरक्षा में सुधार करने के लिए करता है।
हमने अपने अध्ययन में, डेटासेटों के अन्य पहलुओं की भी पहचान की है जो एक दूसरे से सम्बंधित हैं। इनमें गर्भावस्था, बाल ट्रैकिंग और स्वास्थ्य सेवा प्रबंधन प्रणाली (पीसीटीएस) से छह वर्ष से कम उम्र के बच्चों के डेटा को ‘एकीकृत शाला दर्पण पोर्टल’ के तहत एकत्र किए गए डेटा से जोड़ना शामिल है, जिससे स्कूल न जाने वाले बच्चों को लक्षित किया जा सके और जन्म से ही बच्चों के लिए शिक्षा, पोषण और स्वास्थ्य सेवाओं का प्रावधान सुनिश्चित किया जा सके। इसी प्रकार, प्रत्यक्ष लाभान्तरण के आँकड़ों को पीसीटीएस पर लाभार्थियों के आँकड़ों से जोड़ने से यह सुनिश्चित हो सकता है कि सभी गर्भवती या स्तनपान कराने वाली माताओं की उन योजनाओं तक पहुँच हो सके जिनके वे पात्र हैं, जैसे कि प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना और जननी सुरक्षा योजना3।
इसके अलावा, स्वास्थ्य और शिक्षा से सम्बंधित डेटा को राजस्थान सरकार की एक पहल- जन आधार के माध्यम से जोड़ा जा सकता है, जो विभिन्न योजनाओं के लाभों को निवासियों के लिए अधिक सुलभ, पारदर्शी और आसान बनाना चाहती है (आकृति-1)। अंतर-संचालन में सुधार से नागरिकों, यानी सार्वजनिक सेवाओं के उपयोगकर्ताओं और डॉक्टरों, नर्सों और शिक्षकों जैसे सेवा प्रदाताओं दोनों को लाभ होगा।
आकृति-1. इलेक्ट्रॉनिक स्वास्थ्य रिकॉर्ड के माध्यम से एकीकरण
स्रोत : अकॉउंटेबिलिटी इनिशिएटिव (2023)।
टिप्पणियां : (i) आरबीएसके (राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम) का उद्देश्य जन्म से 18 वर्ष तक के बच्चों के लिए चार 'डी' को कवर करने के लिए प्रारंभिक पहचान और हस्तक्षेप करना है- जन्म के समय दोष, कमी, रोग, विकलांगता सहित विकास में देरी। (ii) आईएफए का अर्थ है स्कूलों में आयरन और फोलिक एसिड की गोली का वितरण। (iii) आईएएसयूजे (आई एम शक्ति उड़ान योजना) 11-45 वर्ष की आयु की गरीबी रेखा से नीचे की महिलाओं को मुफ्त सैनिटरी नैपकिन प्रदान करती है। (iv) निक्षय, या राजस्थान निक्षय संबल योजना, जिसके तहत तपेदिक के रोगियों को राज्य का समर्थन मिलता है। (v) चिरंजीवी, या मुख्यमंत्री चिरंजीवी योजना एक सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रम है।
पहुँच की आवश्यकता को समझना
ग्रामीण विकास और पंचायती राज विभाग द्वारा एकत्र किए गए डेटा का मामला इस बात पर प्रकाश डालता है कि डेटा के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए डैशबोर्ड को सुलभ बनाना क्यों महत्वपूर्ण है। यह विभाग वर्तमान में, केन्द्र और राज्य सरकार दोनों द्वारा डिज़ाइन किए गए आठ से अधिक प्लेटफ़ॉर्म पर डेटा एकत्र करता है। इनमें विशिष्ट योजनाओं के लिए पोर्टल, प्रशिक्षण कार्यक्रमों को अपलोड करने और उन पर नज़र रखने वाले पोर्टल, तथा ग्रामीण स्थानीय सरकारों के लिए बैठकों की योजना बनाने वाले पोर्टल शामिल हैं। इनमें से बहुत कम प्लेटफॉर्म एकीकृत किए गए हैं और इनमें से किसी में भी अधिकारियों को डेटा को ग्राफ में प्रदर्शित करने की अनुमति नहीं है, जिससे विश्लेषणात्मक निर्णय लेने में सहायता नहीं मिल पाती।
पोर्टल में केवल उपयोगकर्ताओं को एक्सेल या पीडीएफ फाइलों के रूप में चुनिंदा डेटासेट डाउनलोड करने की अनुमति है। अधिकारियों ने बताया कि यदि प्लेटफ़ॉर्म पर पूर्वानुमान विश्लेषणों का प्रावधान कर दिया जाए तो इससे उन्हें बहुत लाभ होगा। इसमें लक्ष्य-निर्धारण में डेटा इनपुट और कार्यान्वयन की प्रगति को ट्रैक करना आदि शामिल हो सकते हैं। एकीकरण के बाद प्लेटफ़ॉर्म की पहुँच बढ़ाने से साक्ष्य-आधारित निर्णय लेने में डेटा का उपयोग कैसे किया जाता है, इसमें सुधार हो सकता है। उपरोक्त सूचीबद्ध प्लेटफार्मों में से कोई भी वर्तमान में डेटा को सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं कराता है। खुले डेटा के सिद्धांतों को अपनाने और अनाम डेटा को विभिन्न प्रारूपों में उपलब्ध कराने से नागरिक समाज संगठनों और शिक्षाविदों, शोधकर्ताओं जैसे विभिन्न हितधारकों द्वारा उपयोग को और अधिक बढ़ावा मिल सकता है।
डेटा गवर्नेंस के लिए अंतर्दृष्टि
उपरोक्त उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि डेटा की मात्रा और गति में वृद्धि हुई है तथा विभागों के पास सामान्य उपयोग के लिए डेटा उत्पन्न करने और उसे साझा करने के लिए अलग-अलग क्षेत्रों से आगे बढ़ने के तरीके मौजूद हैं। हालांकि, डेटा का विश्लेषण या उपयोग शायद ही कभी उन लोगों द्वारा किया जाता है जो इसे इनपुट करते हैं ; उपयोग काफी हद तक राज्य कार्यालयों के अभिजात वर्ग तक ही सीमित है और अन्य सभी स्तरों पर पहुँच सीमित है। चूंकि अन्य राज्य अपनी डेटा नीतियों और एमआईएस को डिज़ाइन करना जारी रखते हैं, हमारा मानना है कि इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए निम्नलिखित विशेषताओं पर विचार करना महत्वपूर्ण है:
राज्य डेटा प्रबंधन निकाय का गठन : जैसा कि हमने राजस्थान में देखा, डेटा सिस्टम विभागों में भिन्न होते हैं और उनका उपयोग आमतौर पर उस विभाग के भीतर मौजूद क्षमता द्वारा निर्धारित किया जाता है। इसके अलावा, हालांकि एक ही विभाग के भीतर डेटा प्रणालियों की अंतर-संचालनीयता (इंटरऑपरेबिलिटी) के कुछ सफल प्रयास हुए हैं, फिर भी विभागों के बीच डेटासेटों की अंतःक्रिया और एकीकरण सीमित बना हुआ है। एक डेटा प्रबंधन निकाय गठित करने की आवश्यकता है जो विभिन्न विभागों में डेटा से सम्बंधित मामलों पर विशेष रूप से काम कर सके। सरकार से बाहर के विशेषज्ञों के परामर्श से, यह निकाय डेटा गवर्नेंस ढाँचे को विकसित करने में मदद कर सकता है जिसमें मानकों, नियमों और विनियमों को परिभाषित किया जाता है। यह निकाय विभागीय साइलो को समाप्त करने तथा उत्पादन से लेकर उपयोग तक डेटा साझा करने के मार्गों की पहचान करने में भी मदद कर सकता है। यह निकाय निजी क्षेत्र से संपर्क कर लुप्त सूचना तक पहुँच सकती है, या नवीन, समस्या-समाधानकारी कल्याणकारी पहलों के विकास में सहयोग कर सकता है। इस उद्देश्य के लिए गठित राज्य स्तर पर एक निकाय अन्य संस्थानों से सीख सकता है जिन्होंने प्रभावी रूप से ऐसा ही किया है।
प्रशासन के सभी स्तरों द्वारा डेटा के उपयोग को बढ़ावा देना : जैसा कि हमने राजस्थान के सन्दर्भ में देखा है, जबकि सरकार के भीतर डेटा का उपयोग किया जा रहा है, यह अभिजात वर्ग के पदाधिकारियों तक ही सीमित है। अन्य स्तर, विशेष रूप से नागरिकों के सबसे करीबी लोग, केवल डेटा निर्माण या सत्यापन का समर्थन करते हैं। उदाहरण के लिए, स्कूल के बुनियादी ढाँचे पर डेटा स्कूलों से एकत्र किया गया था, लेकिन इसका उपयोग क्लस्टर/ब्लॉक स्तर पर भी विकेन्द्रीकृत निर्णय लेने में नहीं किया गया। बजाय इसके, राज्य स्तर पर एकत्रीकरण के आधार पर निर्णय लिए गए। डेटा तक पहुँच के साथ, स्कूल स्वयं के लिए विकल्प चुन सकते हैं, जैसे कि विशिष्ट आयु समूहों के लिए बुनियादी ढाँचे या सुधारात्मक शिक्षण कार्यक्रमों के प्रबंधन के लिए सर्वोत्तम अभ्यास, जो उसी जिले या ब्लॉक के अन्य स्कूलों के आँकड़ों से प्राप्त सीख पर आधारित हो। आवश्यकताओं के आधार पर सरकार के विभिन्न स्तरों पर डेटा का उपयोग अलग-अलग होगा, तथा प्रणालियों की पहुँच बढ़ाने के लिए निरंतर प्रयास किए जाने चाहिए।
प्रभावी कानूनी ढाँचे : भारत में, सार्वजनिक अभिलेख अधिनियम, 1993, सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2006 और राष्ट्रीय डेटा साझाकरण और पहुँच नीति, 2012 जैसे अधिनियम मुख्य रूप से गोपनीयता, सार्वजनिक अभिलेख रखरखाव और सरकारी डेटा के वर्गीकरण से सम्बंधित शासन संरचनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसके अलावा, के.एस. पुट्टस्वामी बनाम भारत संघ (2018) जैसे ऐतिहासिक निर्णयों ने उन प्रमुख कारकों की पहचान की है, जिन्हें व्यक्तियों पर निजी डेटा एकत्र करने के लिए उचित ठहराया जाना चाहिए। हालांकि, इन्हें लागू करने के लिए हमारे कानूनों में बदलाव की आवश्यकता है। इनके पूरक के रूप में, विभिन्न राज्यों ने अपनी स्वयं की डेटा नीतियाँ भी तैयार की हैं, लेकिन ये अभी भी लागू नहीं हो पाई हैं।
तीन प्रकार के कानून यह सुनिश्चित करने में उपयोगी साबित हो सकते हैं कि निर्णय लेने में डेटा का उपयोग करने के पीछे एक प्रभावी कानूनी ढाँचा हो, विशेष रूप से जब किसी व्यक्ति की गोपनीयता से सम्बंधित डेटा का उपयोग किया जाता है। इन कानूनों को केन्द्र या राज्य स्तर पर क्रियान्वित किया जा सकता है, जो कि मौजूदा कानूनों में संशोधन की आवश्यकता पर निर्भर करेगा। पहला प्रकार यह सुनिश्चित करना है कि नागरिक अधिकार सुरक्षित रहें। यहाँ, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि एकत्र किए गए डेटा को एन्क्रिप्ट किया गया है और सुरक्षित प्लेटफ़ॉर्म पर संग्रहीत किया गया है। डेटा लीक के मामले में लागू दंड का स्पष्ट विवरण होना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करने का प्रयास होना चाहिए कि हम कानून तोड़ने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह की पहचान कर सकें। दूसरे प्रकार का कानून खुले डेटा से सम्बंधित है जिसमें अनाम डेटा को सार्वजनिक करने की अनुमति है। ऐसा करके, सरकार डेटा को किसी भी इच्छुक पक्ष के उपयोग के लिए खोल देती है, जो डेटा से अंतर्दृष्टि प्रदान करके और/या अपने विकास कार्यों में इसका उपयोग करके आम भलाई में सहयोग कर सकता है। यह यह भी सुनिश्चित करता है कि सरकार पारदर्शिता के उच्च मानकों के लिए प्रतिबद्ध है। तीसरे प्रकार का कानून साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण में डेटा के उपयोग के लिए प्रावधानों और विनियमों से सम्बंधित है। ऐसे कानून में यह विस्तार से बताया जाना चाहिए कि शासन में तथा साक्ष्य-आधारित नीतियों के निर्माण में डेटा का उपयोग किस प्रकार किया जा सकता है।4
शासन में निर्णयों में डेटा का उपयोग करने के लाभ डेटा एकत्र करने, संग्रहीत करने और प्रबंधित करने की लागतों से अधिक हैं। चूंकि सरकारें शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे सामाजिक कल्याण क्षेत्रों में डेटा के दायरे का विस्तार कर रही हैं, इसलिए यह महत्वपूर्ण है कि वे एक कदम पीछे हटें और स्पष्ट दृष्टिकोण परिभाषित करें कि वे क्या हासिल करना चाहते हैं। यह दृष्टि और इसे प्राप्त करने की कार्य योजना उन कानूनों के अनुरूप होनी चाहिए जो डेटा के उत्पादन और उपयोग को विनियमित करते हैं। सरकारों को अन्य अनुभवों से सीखना जारी रखना चाहिए, जो यह बताएंगे कि वे डेटा गवर्नेंस में सुधारों की योजना कैसे बनाते हैं और उन्हें कैसे लागू करते हैं।
टिप्पणियाँ :
- राजस्थान में 117 विभागों में 341 योजनाओं की जानकारी प्राप्त करने के लिए नागरिक जन सूचना पोर्टल का उपयोग कर सकते हैं। नागरिक शिकायतें भी दर्ज कर सकते हैं, जिन्हें वे समाधान होने तक ट्रैक कर सकते हैं। यह पोर्टल सभी विभागों में एकीकृत है तथा सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 के अनुरूप है।
- शाला दर्पण पोर्टल को कई राष्ट्रीय और राज्य स्तरीय पुरस्कार मिले हैं, जिनमें कंप्यूटर सोसाइटी ऑफ इंडिया स्पेशल इंटरेस्ट ग्रुप (सीएसआई एसआईजी) ई-गवर्नेंस अवार्ड 2019, राज्य ई-गवर्नेंस अवार्ड 2018 और एसकेओसीएच ऑर्डर-ऑफ-मेरिट सर्टिफिकेट 2018 शामिल हैं।
- प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना 19 वर्ष या उससे अधिक आयु की गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं के लिए एक सशर्त नकद हस्तांतरण योजना है। जननी सुरक्षा योजना राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत एक सुरक्षित मातृत्व हस्तक्षेप है, जो प्रसव और प्रसव के बाद की देखभाल के साथ नकद सहायता को एकीकृत करता है। इसे गरीब गर्भवती महिलाओं में मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने के उद्देश्य से लागू किया गया है।
- अमेरिका ऐसे पहले देशों में से एक बन गया है जिसने साक्ष्य-आधारित नीति निर्माण अधिनियम, 2018 के माध्यम से इस तरह के अधिनियम को लागू किया है, जिसे साक्ष्य अधिनियम के रूप में भी जाना जाता है। यह अधिनियम डेटा प्रणालियों, संरचनाओं और प्रक्रियाओं की महत्वपूर्ण विशेषताओं के साथ, विभागों के बीच समन्वय के माध्यम से नीति निर्माण में साक्ष्य के कुशल उपयोग का मार्ग प्रशस्त करता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहाँ देखें।
लेखक परिचय : अवनी कपूर एक शोधकर्ता व विकास विशेषज्ञा हैं जो लगभग दो दशकों से सार्वजनिक वित्त विशेषज्ञ के तौर पर कार्यरत हैं। वह सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) में एक वरिष्ठ विज़िटिंग फेलो हैं और फाउंडेशन फॉर रिस्पॉन्सिव गवर्नेंस (रेसगव) की संस्थापक निदेशिका हैं। सिद्धार्थ संतोष भी सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च में एक वरिष्ठ शोध सलाहकार और रेसगव में एक वरिष्ठ शोध सहयोगी हैं।
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