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आम भूमि रजिस्ट्री की महत्त्वपूर्ण आवश्यकता

  • Blog Post Date 27 नवंबर, 2023
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Pooja Chandran

Foundation for Ecological Security

pooja@fes.org.in

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Subrata Singh

Foundation for Ecological Security

subrat@fes.org.in

भारत की आम भूमि के बारे में विस्तृत आँकड़ों की व्यापक कमी भूमि संरक्षण, संसाधन उपयोग और भूमि अधिकार को प्रभावित करती है। चंद्रन और सिंह ने सूचना विषमता को कम करने और पारदर्शिता बढ़ाने के लिए इस लेख में एक राष्ट्रीय आम भूमि रजिस्ट्री की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है। वे कुछ राज्य सरकारों द्वारा डिजिटल मैपिंग और स्थानीय समुदायों के साथ जुड़ाव के माध्यम से किए हाल के प्रगति कार्यों को दर्शाते हैं। उनका दावा है कि भूमि रजिस्ट्री की सफलता केन्द्र सरकार के मार्गदर्शन के साथ-साथ, राज्य-स्तरीय नियमों के विभाजन पर काबू पाने में छिपी हुई है।

अपने विविध परिदृश्यों और समुदायों के लिए प्रसिद्ध भारत का लगभग एक चौथाई क्षेत्र साम्प्रदायिक या सामान्य भूमि के रूप में है। इनमें चरागाह, गाँव के सार्वजनिक क्षेत्र और सामुदायिक वन जैसे कई क्षेत्र शामिल हैं, जिनका उपयोग और प्रबंधन स्थानीय समुदायों द्वारा सामूहिक रूप से किया जाता है। उनकी यह सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण भूमिका ग्रामीण आजीविका, जैव विविधता और पारिस्थितिक संतुलन को बनाए रखने में महत्वपूर्ण योगदान देती है।

भूमि प्रशासन पर वर्तमान चर्चा के केन्द्र में खुले डेटा का गहरा प्रभाव है (सोरेनसेन 2018)। इसके बावजूद उल्लेखनीय है कि वर्ष 1998 में भारत की आम भूमि के अंतिम दस्तावेज़ी मूल्याँकन के बाद से पच्चीस वर्ष बीत चुके हैं। व्यापक डेटा और ज्ञान की इस कमी ने कमज़ोर नीतियों, संघर्षों और अपर्याप्त सार्वजनिक निगरानी को जन्म दिया है। अपारदर्शिता ने ऐसी भूमि के विनियोग, अस्थिर संसाधन उपयोग और संरक्षण के अवसर चूकने का मार्ग भी प्रशस्त किया है। उनकी सुरक्षा के लिए कार्रवाई की न्यायिक मांग के बावजूद (उदाहरण के लिए, जगपाल सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य और अन्य का मामला देखें), सामान्य भूमि संसाधन वर्तमान में तेज़ी से और खतरनाक गिरावट के दौर से गुजर रहे हैं (पांडेय 2019)।

निर्णय-क्षमता को सही आकार देने के लिए डेटा-केन्द्रित रणनीतियों को अपनाना स्वाभाविक रूप से अगला तार्किक कदम बनकर उभरता है। चूंकि आम भूमि का शासन प्रशासनिक सीमाओं से परे है और इसमें अलग-अलग हितों वाले कई हितधारक शामिल होते हैं, इसलिए भूमि प्रबंधन की प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए डेटा, उपकरण और प्रक्रियाओं को सह-निर्मित करने की दिशा में गतिशील सहयोग की आवश्यकता होती है। महत्वपूर्ण पहले कदम के रूप में, एक व्यापक रजिस्ट्री इन भूमियों के शासन के लिए एक एकीकृत और समग्र ढांचा स्थापित करने में मदद कर सकती है।

जिसे आप माप नहीं सकते, उसका प्रबंधन भी नहीं कर सकते

आम भूमि रजिस्ट्री केवल भूमि के सार्वजनिक रिकॉर्ड के रूप में नहीं होती बल्कि यह भौगोलिक डेटा, राजनीतिक सीमाओं और कानूनी भू-कर पंजी को शामिल करते हुए साझा संसाधनों के भण्डार के रूप में काम आती है। यूनाइटेड किंगडम इसका एक प्रमुख उदाहरण रहा है और युगांडा, पेरू और तंज़ानिया जैसे देशों में भी ऐसी रजिस्ट्रियों के विविध रूप मौजूद हैं। हालाँकि भारतीय राज्यों ने अतीत में 'भूमि बैंकों' के लिए सार्वजनिक भूमि पंजीयन प्रणालियों को विकसित किया है, लेकिन इन प्रयासों का मुख्य उद्देश्य उन्हें शहरी विस्तार, बुनियादी ढाँचे, उद्योगों और हाल ही में, प्रतिपूरक वनीकरण यानी कम्पेन्सेटरी एफॉरेस्टेशन जैसे अधिक उत्पादक उपयोगों की ओर ले जाना है।

इसके विपरीत, आम भूमि रजिस्ट्री के ज़रिए संसाधन प्रबंधन की सूचना देने, निर्णय लेने की सुविधा प्रदान करने और प्रथागत अधिकारों की रक्षा करने का प्रयास होता है। इस प्रयोजन के लिए इसमें ऐतिहासिक और प्रथागत उपयोग, सटीक भूमि सीमाओं, भूमि उपयोग और अलगाव पर प्रतिबंध, साझा पहुँच और संसाधन अधिकारों के दस्तावेज़ीकरण के साथ-साथ, स्वामित्व और प्रबंधन संस्थाओं के विवरण के आधार पर भूमि श्रेणियों के बारे में जानकारी शामिल हो सकती है।

उन्नत भौगोलिक सूचना प्रणाली (जीआईएस) के साथ डिजिटल मानचित्रों को एकीकृत करने से ज़मीनी स्थिति की अधिक सटीक समझ प्राप्त हो सकती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण दिल्ली का ‘ई-धरती जियोपोर्टल’ है, जो इस सम्बन्ध में सम्भावनाओं को प्रदर्शित करते हुए, नक्शे और लीज़ योजनाओं जैसे पुराने चित्रों आदि को जीआईएस-सक्षम प्रणाली में जोड़ता है। राष्ट्रीय, राज्य, जिला, ब्लॉक और गाँव स्तर पर उपलब्ध एक एकीकृत जीआईएस-सक्षम भूमि पोर्टल की अवधारणा भी वर्ष 2013 की मसौदा राष्ट्रीय भूमि सुधार नीति द्वारा निर्धारित दृष्टिकोण के अनुरूप है।

भूमि डेटा को जनता के लिए सार्वजनिक करने का यह कार्य सामाजिक जवाबदेही को मज़बूत कर सकता है और इसके प्रशासन में निरंतर सुधार की सुविधा प्रदान कर सकता है। प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और हितधारकों को दूर से ‘डेटा तक पहुँच और उसे सत्यापित’ करने में सक्षम बनाने से पारदर्शिता में सुधार हो सकता है। इससे सूचना विषमता कम होती है और धोखाधड़ी की घटनाएं कम हो सकती हैं। भारत में भूमि सम्बन्धी लगभग तीन-चौथाई संघर्ष आम भूमि के सन्दर्भ में होते हैं, जो अक्सर अधिकारों की अपर्याप्त मान्यता के कारण ज़मीनी विरोध के रूप में सामने आते हैं (अधिकार और संसाधन पहल और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, 2016, वाही 2019)। एक खुली, डिजिटल आम भूमि रजिस्ट्री में अस्पष्टताओं को कम करके और पारदर्शिता को बढ़ावा देकर संघर्ष समाधान को नया रूप देने की क्षमता होती है। जीआईएस अनुप्रयोग ऐतिहासिक विश्लेषणों के माध्यम से अतिक्रमण को और भी रोक सकते हैं, जैसा कि तमिलनाडु में जल निकायों के साथ किया जा रहा है। यह सार्वजनिक भूमि संरक्षण सेल (चंद्रन और सिंह 2022) जैसे विवाद समाधान प्राधिकरणों के लिए विशेष रूप से मूल्यवान साबित हो सकता है।

आम भूमि रजिस्ट्री को एक निश्चित सन्दर्भ बिंदु के रूप में स्थापित करने के लिए आम भूमि- जहाँ नदियाँ अपना रास्ता बदलती हैं, चराई मौसमी रूप से होती है और शासन के नियम लगातार विकसित होते हैं आदि गतिशील प्रकृति की समझ की आवश्यकता होती है। राज्य सरकारें, जिन्हें अपनी भूमि-सम्बन्धी नीतियाँ तैयार करने की संवैधानिक शक्ति प्रदत्त है, इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए सबसे अच्छी स्थिति में होती हैं। फिर भी प्रत्येक राज्य के भीतर नियमों, प्रथाओं और यहाँ तक कि भूमि वर्गीकरण की मौजूदा विविधता को देखते हुए, केन्द्र प्रायोजित ‘डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड्स आधुनिकीकरण कार्यक्रम’ के तहत किए गए प्रयासों के समान, आधारभूत मानकों या मार्गदर्शक ढांचे को स्थापित करने के लिए केन्द्र सरकार की भागीदारी महत्वपूर्ण हो जाती है।

डेटा और ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करना

पिछले कुछ वर्षों में राज्य विभागों ने अपने संचालन के प्राथमिक क्षेत्रों को मज़बूती देने के लिए डेटा सिस्टम विकसित करने और कागज़ी रिकॉर्ड को डिजिटल बनाने में प्रगति की है। फिर भी, सरकारी इकाइयों में अच्छी तरह से समन्वित जानकारी की कमी एक चुनौती बनी हुई है। एक मामला आंध्र प्रदेश में देखा गया है, जहाँ कई गाँवों ने हाल ही में अपने जिला अधिकारियों से उनकी आम भूमि को निषेधात्मक आदेश पुस्तिका (पीओबी)1 में शामिल करने का अनुरोध किया है। ऐसा करने से यह सुनिश्चित हो जाता है कि ये ज़मीनें, जिन्हें अन्यथा 'बंजर भूमि' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, साम्प्रदायिक उपयोग के लिए आरक्षित हैं और वैकल्पिक उद्देश्यों के लिए उपयोग में न लाए जाने के सन्दर्भ में सुरक्षित हैं।

यद्यपि कई गाँवों में अनुरोधों के बाद पीओबी में भूमि दर्ज की गई, लेकिन संसाधनों के प्रबंधन के लिए समुदायों के अधिकारों का आमतौर पर दस्तावेज़ीकरण नहीं किया गया। ऐसा पंचायती राज व्यवस्था के तहत भू-राजस्व विभागों और स्थानीय शासी निकायों के बीच के पारम्परिक अलगाव के कारण हुआ है। मुख्य रूप से दस्तावेज़ीकरण और भूमि रिकॉर्ड से सम्बंधित पूर्व की स्थिति के चलते, कभी-कभी आम भूमि का सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक महत्व नज़रअंदा हो सकता है। दूसरी ओर, बाद की स्थिति में, स्थानीय समुदायों के साथ जुड़े होने के बावजूद, पंचायत सर्कल से परे भूमि की औपचारिक मान्यता और सुरक्षा के लिए आवश्यक कानूनी तंत्र का अभाव है। यह परिदृश्य अस्पष्ट भूमि सीमाओं, अतिक्रमणों और प्रतिस्पर्धी दावों के कारण और भी गम्भीर हो गया है।

फिर भी महत्वपूर्ण यह है कि, आंध्र प्रदेश के चिंतामकुलपल्ले गाँव में पंचायत को जब आधिकारिक तौर पर कठिन संघर्ष वाली आम भूमि के उनके संरक्षण को स्वीकार करते हुए राजस्व विभाग से एक लम्बे समय से प्रतीक्षित पत्र मिला, तो कुछ आशा जग गई। एक निश्चित कदम के रूप में, पंचायत ने तुरंत भूमि को अपने पंचायत संपत्ति रजिस्टर में दर्ज किया और दूसरों के अनुसरण के लिए एक आधार बनाया। कार्यकाल सुरक्षित करने के लिए स्पष्ट रूप से स्थापित प्रक्रियाओं के बिना भी, समुदाय के अधिकार और रीति-रिवाज कानूनी महत्व रख सकते हैं।

यह जीत किसी स्थानीय जीत से कहीं अधिक प्रतिध्वनित होती है- यह भारत की विविध भूमि सूचना प्रबंधन प्रथाओं को समग्र रूप से सुसंगत बनाने की आवश्यकता को प्रतिध्वनित करती है। डेटा एकाधिकार (डेटा साइलो) को तोड़ने और विभिन्न ज्ञान प्रणालियों को एकीकृत करने के लिए एक सामंजस्यपूर्ण रणनीति की आवश्यकता है। इससे समुदायों को सुविज्ञ निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए, जो उनकी आने वाली पीढ़ियों के लिए आम भूमि की स्थिरता की रक्षा करेगा।

सत्य के एकल स्रोत के रूप में आम भूमि की रजिस्ट्री

सामुदायिक प्रबंधन को मान्यता देना इस पहल के मूल में है। प्राथमिक हितधारकों के रूप में, समुदायों को वह आधार बनाना चाहिए जिस पर रजिस्ट्री का निर्माण किया जाता है, जिससे उनकी सक्रिय भागीदारी और स्वामित्व इसकी सफलता के लिए महत्वपूर्ण हो। यह प्रक्रिया पंचायत परिसंपत्ति रजिस्टर, लोगों की जैव-विविधता रजिस्टर और स्थानीय प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन के साथ सौंपी गई समितियों द्वारा बनाए गए अन्य रिकॉर्ड जैसे मौजूदा दस्तावेज़ों के सामंजस्य के साथ शुरू होती है। उदाहरण के लिए, असम में ग्राम-स्तरीय समितियों को भूमि संसाधनों के संरक्षक के रूप में नामित किया गया है। ये समितियाँ संसाधन सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए, गाँव के 'भूमि बैंक' और 'ज्ञान बैंक' की तैयारी की निगरानी करती हैं और उसे अद्यतन करती हैं।

सरकार के विभिन्न स्तरों पर समान ज़िम्मेदारियाँ निभाई जाती हैं। कर्नाटक में ऐसा देखा गया है, जहाँ तालुक पंचायत को प्रासंगिक सामाजिक-आर्थिक जानकारी के डेटाबेस और प्राकृतिक संसाधनों के मानचित्र को समेकित करना, बनाए रखना और अद्यतन करना होता है। राजस्थान राज्य ने इस ज़िम्मेदारी को एक बहुस्तरीय संरचना के साथ आगे बढाया है जिसमें पंचायत, ब्लॉक और जिला स्तर पर चारागाह विकास समिति (चारागाह-भूमि विकास समितियां) अपने अधिकार क्षेत्र के भीतर चरागाह भूमि के लिए रिकॉर्ड और विकास योजनाएं तैयार करती हैं। राज्य स्तर पर, बंजर भूमि और चारागाह भूमि विकास बोर्ड को डेटाबेस बनाने और बनाए रखने का अधिकार है।

रजिस्ट्री की सफलता के केन्द्र में ‘सच्चाई का एकल स्रोत’ होने का सिद्धांत है, जिसमें सटीक, व्यापक और अद्यतित जानकारी होती है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो कानूनी, तकनीकी, प्रशासनिक और सामुदायिक सहभागिता आयामों तक फैला हो। इसमें निर्णय लेने के विभिन्न समस्तरीय और सीधे (वर्टिकल) तरीकों के बीच तालमेल की भी आवश्यकता है। राज्यों में अंतर-विभागीय स्तर पर पहले से ही प्रगति हो रही है। उदाहरण के लिए असम ने एकीकृत भूमि रिकॉर्ड प्रबंधन प्रणाली शुरू की है, जिसका उद्देश्य संपत्ति के पंजीकरण, भूमि रिकॉर्ड को अद्यतन करने, राजस्व के संग्रह और अचल संपत्ति के हस्तांतरण अनुमोदन के लिए विभिन्न राजस्व विभागों के बीच अंतर-सम्बन्ध में सुधार लाना  है। रजिस्ट्री की सटीकता और व्यापकता सुनिश्चित करने के लिए अंतर-विभागीय सहयोग को बढ़ाना भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इस पहल के लिए भूमि राजस्व, पंचायती राज और ग्रामीण विकास, वन, कृषि, सूचना प्रौद्योगिकी और शहरी विकास विभागों जैसे प्रमुख संगठनों की भागीदारी की आवश्यकता होगी।

रजिस्ट्री अपने आप में भूमि सम्बन्धी सभी चुनौतियों का रामबाण इलाज नहीं है, यह एक व्यापक रणनीति के अंतर्गत मौजूद होना चाहिए। उदाहरण के लिए, सीमाओं के दस्तावेज़ीकरण और सामंजस्य की प्रक्रिया से समुदायों के भीतर और उनके बीच के संघर्षों का पता लगाया जा सकता है। यह रजिस्ट्री विकास के अभिन्न पहलुओं के रूप में सीमा वार्ता, संघर्ष समाधान प्रक्रियाओं और हितधारकों के बीच विश्वास को बढ़ावा देने की आवश्यकता पर ज़ोर देता है। डिजिटल भूमि हड़पने को लेकर चिंताएं भी सामने आई हैं, जिससे साम्प्रदायिक संपत्ति और सामूहिक प्रबंधन (जीआरएआईएन या ग्रेन, 2022) के लिए एक अधिक मज़बूत कानूनी व्यवस्था की आवश्यकता प्रतीत हुई है। नियमित भूमि ऑडिट और भू-स्थानिक विश्लेषण, जैसे उचित जांच और संतुलित निगरानी कार्यों से दुरुपयोग की सम्भावना को भी विफल किया जा सकता है। राष्ट्रीय क्षमता निर्माण फ्रेमवर्क के तहत उल्लिखित रजिस्टरों और रिकॉर्डों को बनाए रखने के लिए पंचायतों की क्षमता का निर्माण करते समय स्थानीय स्तर पर डिजिटल बुनियादी ढांचे को मज़बूत किया जाना जारी रखना भी महत्वपूर्ण है।

इन चेतावनियों को समझते हुए, साक्ष्य-आधारित योजना और निरंतर संसाधन प्रशासन की आवश्यकता भी निर्विवाद बनी हुई है। रजिस्ट्री में मूलभूत डेटा स्रोत के रूप में विकसित होने की क्षमता है जिसका उपयोग सभी क्षेत्रों में किया जा सकता है। यह विभिन्न स्तरों पर निर्णय लेने वालों को विश्वसनीय डेटा पर अपनी पसन्द को आधार बनाने के लिए सशक्त बना सकता है, जिससे अधिक प्रभावी, लक्षित नीतियों के विकास में मदद मिलेगी। इस तरीके से, रजिस्ट्री केवल डेटा भण्डार होने की अपनी भूमिका से आगे निकल सकती है और परम्पराओं और प्रौद्योगिकी के धागों को एक साथ जटिल रूप से बुन सकती है, जिसके परिणामस्वरूप प्रगति का एक एकीकृत ताना-बाना तैयार हो सकता है।

टिप्पणी :

  1. आंध्र प्रदेश निर्दिष्ट भूमि (हस्तांतरण का निषेध) अधिनियम 1977 इस प्रक्रिया का विवरण देता है कि बंजर भूमि और पोरामबोक भूमि (जो सरकारी रिकॉर्ड में दर्ज नहीं है), सहित विभिन्न श्रेणियों की भूमि को राजस्व विभाग द्वारा कैसे सौंपा जा सकता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : पूजा चंद्रन एक पर्यावरण वकील और फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी की एक कानूनी शोधकर्ता हैं। सुब्रत सिंह फाउंडेशन फॉर इकोलॉजिकल सिक्योरिटी के कार्यकारी कार्यकारी निदेशक हैं। भूमि और जल सामान्य, प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन, सामुदायिक प्रशासन, बहु-केन्द्रित शासन और सार्वजनिक नीति से संबंधित मुद्दों पर काम करने का उनका 27 वर्षों से अधिक का अनुभव है।

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