राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) का उद्देश्य ग्रामीण परिवारों की आय में वृद्धि करना और उनके कल्याण में सुधार लाना है। इस लेख में, भारत में नौ राज्यों के सर्वेक्षण डेटा का उपयोग करते हुए, एनआरएलएम कार्यक्रम के भीतर स्वयं-सहायता समूहों में व्याप्त जाति-आधारित मतभेदों के अस्तित्व का विश्लेषण किया गया है। यह पाया गया कि वंचित समूहों के सदस्यों की भी समान रूप से पदाधिकारी के रूप में चुने जाने की संभावना है। नेतृत्ववाले पदों में वंचित समूहों के प्रतिनिधित्व से वंचित समूह के सदस्यों के बीच भागीदारी, लाभों तक पहुंच और अन्य संबंधित परिणामों में वृद्धि होती है।
वर्ष 2011 में लागू किया गया राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) भारत का प्रमुख ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम है। एनआरएलएम का उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में गरीब परिवारों को आजीविका सहायता प्रदान करना है ताकि वे अपने परिवार की आय में वृद्धि कर सकें और उनके कल्याण में सुधार हो सके। एनआरएलएम में स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) हैं, जिसमें आस-पड़ोस में रहने वाली 10-15 महिलाएं शामिल होती हैं। विगत के आजीविका कार्यक्रम के विपरीत, एनआरएलएम संस्थानों और क्षमताओं के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है। एक शीर्ष 'छत्र' संस्थान (जिसे राज्य स्तर पर राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (एसआरएलएम) के रूप में जाना जाता है) से शुरू होने वाली एक संघीय संरचना निचले स्तर पर संस्थानों के पदानुक्रम की देखरेख करती है। इस संरचना के निचले स्तर पर एसएचजी या 'गरीबों के संस्थान' हैं, जो उन्हें सामूहिक आवाज देने और उनकी मोल-तोल की शक्ति को बढ़ाने के लिए स्थापित किए गए हैं। इन सामूहिक संस्थानों का प्रबंधन निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा किया जाता है, जिसमें एक अध्यक्ष, उपाध्यक्ष और कोषाध्यक्ष शामिल हैं- जिन्हें सामूहिक रूप से पदाधिकारियों1 के रूप में संदर्भित किया जाता है। इन पदाधिकारियों का चयन एसएचजी सदस्यों द्वारा एक निश्चित कार्यकाल के लिए किया जाता है (जैसा कि समूह द्वारा तय किया जाता है)।
एनआरएलएम की सापेक्ष सफलता में योगदान देने वाले कारक
ऐतिहासिक रूप से, समुदाय-आधारित विकास कार्यक्रम अभिजात वर्ग के प्रति उन्मुख रहे हैं, जहां कार्यक्रम से लाभ या तो समुदाय के नेताओं द्वारा या समुदाय में शामिल अधिक शक्तिशाली परिवारों द्वारा कब्जा कर लिया जाता है (मंसूरी और राव 2012)। अभिजात वर्ग के कब्जे के परिणामस्वरूप विकास या आजीविका कार्यक्रमों के लक्षित लाभार्थी लाभ प्राप्त करने से वंचित रह जाते हैं। विगत के आजीविका कार्यक्रमों में सामाजिक बहिष्कार और अभिजात्य वर्ग का कब्जा अच्छी तरह से प्रलेखित हुआ है (सिंह एवं अन्य 2017)। एसजीएसवाई (2009) के तहत ऋण-संबंधी मुद्दों पर राधाकृष्ण समिति गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम-स्वर्णजयंती ग्राम स्वरोजगार योजना (एसजीएसवाई) में वितरण तंत्र की कमियों में से एक के रूप में अधिकांश राज्यों (विशेष रूप से बिहार और उत्तर प्रदेश) के गांवों में अभिजात वर्ग के प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा समूहों पर कब्जा करने के बारे में प्रकाश डालती है।
लागू किये जाने के बाद से ही, एनआरएलएम ने समावेशी और सहभागी सामुदायिक संस्थान बनाने के उद्देश्य से कई सामाजिक समावेशन रणनीतियों को लागू किया है। इस मिशन में कमजोर समूहों - विशेष रूप से अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी), और अन्य अल्पसंख्यक समूहों के सदस्यों को प्राथमिकता से लक्षित करना और शामिल करना अनिवार्य है। इसके अलावा, कार्यक्रम के अंतर्गत यह भी आवश्यक है कि कमजोर परिवारों के सदस्यों द्वारा एसएचजी के भीतर नेतृत्व की भूमिकाओं में या पदाधिकारियों के पदों पर पर्याप्त प्रतिनिधित्व किया जाए; इस निर्देश का उद्देश्य कमजोर परिवारों का निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित कराना है, और यह भी सुनिश्चित करना है कि समूह के अपेक्षाकृत अधिक संपन्न सदस्यों को एसएचजी से अनुपातहीन रूप से लाभ नहीं मिलते हैं।
एनआरएलएम (कोचर एवं अन्य 2020) का हालिया प्रभाव मूल्यांकन इस बात का पुख्ता सबूत देता है कि लक्षित परिवारों पर उनकी आय और बचत बढ़ाने के मामले में कार्यक्रम का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ा है।
अध्ययन
हाल के एक अध्ययन (जैन एवं अन्य 2022) में, हम एनआरएलएम के तहत गठित मिश्रित जाति एसएचजी में जाति-आधारित मतभेदों की जाँच करते हैं। जाति भारत में एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था है, जहाँ व्यक्ति जन्म से विभिन्न जाति समूहों में विभाजित होते हैं। श्रम बाजार में जाति-आधारित मतभेद और भेदभाव (सिंह और पटनायक 2020, थोरात एवं अन्य 2021); शिक्षा जैसी सार्वजनिक सेवाएं (बेलवाल और पॉल 2020) और पीने का पानी (दत्त एवं अन्य 2017), औपचारिक ऋण तक पहुंच (राज और शशिधरन 2018, पटेल एवं अन्य 2020) के बारे में साक्ष्य अच्छी तरह से प्रलेखित और प्रमाणित हैं।
हम सदस्यों के एसएचजी में पदाधिकारी बनने की संभावना पर सदस्यों की सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं के प्रभाव का अध्ययन करते हैं; विशेष रूप से, हम सदस्यों की जातिगत पहचान के साथ इसके संबंध में रुचि रखते हैं। इसके अलावा, हम एसएचजी में उनकी भागीदारी और उनके द्वारा एसएचजी2 से प्राप्त लाभों पर सदस्यों की जातिगत पहचान के प्रभाव का विश्लेषण करते हैं।
हम एक मिश्रित समूह ‘एसएचजी’ को निश्चित करते हैं जिसमें निम्नलिखित दो प्रकार के परिवारों में से प्रत्येक से कम से कम एक सदस्य होता है: i) अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अन्य अल्पसंख्यक समूहों सहित), और ii) सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी)। हमारी अनुभवजन्य रणनीति निश्चित प्रभावों के आकलन पर आधारित है - हम एक ही स्वयं-सहायता समूह3 में सदस्यों की तुलना करने हेतु एसएचजी-स्तर के निश्चित प्रभावों का उपयोग करते हैं।
इस अध्ययन के लिए हमारे द्वारा उपयोग किया जाने वाला डेटा वर्ष 2019-2020 में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के प्रभाव मूल्यांकन के लिए एकत्र किया गया था (कोचर एवं अन्य 2020 देखें)। इस अध्ययन में भारत में नौ राज्यों4 के ग्रामीण क्षेत्रों से परिवारों, गांवों, स्वयं- सहायता समूहों, ग्राम संगठनों और क्लस्टर-स्तरीय संघों के बारे में विस्तृत डेटा एकत्र किया गया। टीम ने कुल 5,672 एसएचजी का सर्वेक्षण किया और एसएचजी के विभिन्न पहलुओं पर विस्तृत डेटा एकत्र किया, जिसमें- i) इसके गठन का विवरण, ii) जाति, शिक्षा और पारिवारिक विवरण पर सदस्य-वार विवरण, iii) उनके कामकाज के पहलू- पदाधिकारियों, बचत, ऋण, प्रशिक्षण, वित्तीय स्वास्थ्य, पंचसूत्रों का पालन5 के बारे में जानकारी और iv) सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुँच हेतु सदस्यों को प्रदान की जाने वाली सहायता शामिल है। हमने जो विश्लेषणात्मक नमूना चुना, उसमें कुल 17,849 घटक सदस्यों-सहित 1,569 कार्यात्मक और मिश्रित जाति के एसएचजी शामिल हैं।
परिणाम
विभिन्न सदस्य-स्तरीय विशेषताओं को नियंत्रित करते हुए, हम विभिन्न जाति समूहों के सदस्यों के बीच पदाधिकारी के पद पर रहने की संभावना में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं पाते हैं। इसका तात्पर्य यह है कि, यदि बाकी सब कुछ समान है तो, मिश्रित जाति एसएचजी में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों द्वारा उसी एसएचजी के अन्य सदस्यों की तुलना में पदाधिकारी का पद धारण करने की समान संभावना है। हालांकि, हम पाते हैं कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों को एसएचजी का प्रमुख या अध्यक्ष बनने में नुकसान उठाना पड़ता है। हालांकि ये अंतर मात्रा में छोटे हैं, वे पृष्ठभूमि विशेषताओं को नियंत्रित करने के बाद भी सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण हैं।
पदाधिकारी के रूप में पद ग्रहण करने की संभावना में अंतर के अलावा, हम विभिन्न जाति समूहों के सदस्यों की सहभागिता और उन्हें प्राप्त लाभों में जाति-आधारित अंतरों की भी जांच करते हैं। हम कुछ महत्वपूर्ण अंतर पाते हैं, विशेष रूप से बचाए गए धन की राशि और एसएचजी से प्राप्त ऋण के मामले में, लेकिन ये अंतर उनकी मात्रा के संदर्भ में छोटे हैं। हमें इस बात के भी प्रमाण मिलते हैं कि पदाधिकारी के रूप में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के प्रतिनिधित्व से समूह में अन्य अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों की भागीदारी और और उनके लाभ में सुधार होता है। औसतन, उन समूहों में जहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य भी पदाधिकारी के पदों पर रहते हैं वहां अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्य अधिक बैठकों में भाग लेते हैं, अधिक बचत करते हैं, और उन एसएचजी की तुलना में बड़ी ऋण राशि प्राप्त करते हैं जहां पदाधिकारी के रूप में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का कोई सदस्य नहीं होता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, ऐसा लगता है कि एसएचजी में प्रमुख पदों पर वंचित समूहों का पर्याप्त प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने में एनआरएलएम कार्यक्रम सफल रहा है। यह कार्यक्रम के कार्यान्वयन और एसएचजी में वंचित सदस्यों के सशक्तिकरण- दोनों के लिए महत्वपूर्ण है। कार्यक्रम के दृष्टिकोण से, यह सुनिश्चित करने के लिए कि कार्यक्रम समावेशी बना रहे और समूह के सभी सदस्यों की जरूरतों और आवश्यकताओं के प्रति एसएचजी उत्तरदायी हों, निर्णय लेने वाले निकाय में वंचित समूहों के पर्याप्त प्रतिनिधित्व की आवश्यकता है। सशक्तिकरण के संबंध में, ये पदाधिकारी रोल मॉडल के रूप में उभर सकते हैं और समूह के अन्य सदस्यों- खासकर उन लोगों को - जो पदाधिकारी के समान विशेषताओं वाले हैं, सशक्त बना सकते हैं। इसके अलावा, वे सदस्यों और अन्य स्थानीय स्तर की संस्थाओं- जैसे कि ग्राम पंचायत और बैंकों के बीच एक कड़ी के रूप में भी काम कर सकते हैं, और इस प्रकार सदस्यों को पंचायत सदस्यों के सामने अपनी चिंताओं को व्यक्त करने या सामाजिक सुरक्षा योजनाओं तक पहुंच प्राप्त करने में मदद करते हैं; यदि पदाधिकारी और सदस्यों ने अपनी जाति-पहचान को साझा किया है तो इसकी संभावना अधिक है।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
टिप्पणियाँ
- स्वयं-सहायता समूह का अध्यक्ष वह लीडर होता है जिसके नेतृत्व में समूह कार्य करता है। वह समूह का मार्गदर्शन करता है, समूह की बैठकों और गतिविधियों में सभी सदस्यों की भागीदारी सुनिश्चित करता है, और समूह के सदस्यों को स्वयं-सहायता समूह के कामकाज से संबंधित विभिन्न कार्यों की जिम्मेदारियां सौंपता है। एसएचजी का उपाध्यक्ष (या सचिव) रोज-मर्रा के मामलों और प्रशासनिक मामलों के प्रबंधन के लिए जिम्मेदार होता है। कोषाध्यक्ष स्वयं- सहायता समूह के वित्तीय मामलों के लिए जिम्मेदार है। इन तीन पदाधिकारियों के अलावा, स्वयं-सहायता समूह के लिए प्रत्येक बैठक में होने वाले खातों और रिकॉर्ड की पुस्तकों को बनाए रखने हेतु एक बुक-कीपर की भी नियुक्ति/चयन किया जाता है।
- हम बचत के बारे में जानकारी और पिछले 12 महीनों में सदस्यों द्वारा भाग ली गई बैठकों की संख्या का उपयोग करके स्वयं-सहायता समूह की भागीदारी को मापते हैं। ऋण तक पहुंच और उद्यम स्थापित करने या घर पर शौचालय बनाने हेतु एसएचजी सहायता के संदर्भ में लाभ को अंकित किया गया है।
- निश्चित प्रभाव समय-अपरिवर्तनीय अप्रतिबंधित व्यक्तिगत विशेषताओं को नियंत्रित करते हैं। हम इस अध्ययन में, सदस्य की पृष्ठभूमि विशेषताओं (सदस्य की शिक्षा, आयु, वैवाहिक स्थिति, आय उत्पन्न करने वाली गतिविधियों में संलग्नता, धर्म और पति की विशेषताओं - सहित) को नियंत्रित करते हैं।
- बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, राजस्थान, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल सहित।
लेखक परिचय: चंदन जैन 3ie के दिल्ली कार्यालय में एक मूल्यांकन विशेषज्ञ हैं । कृष्णा केजरीवाल राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के प्रभाव मूल्यांकन सहित 3ie के आजीविका कार्यक्रमों के लिए अनुसंधान सहायता प्रदान करती हैं। ऋत्विक सरकार 3ie में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं। पूजा सेनगुप्ता 3ie में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.