सामाजिक पहचान

क्या सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में वंचित समूहों के लिए आरक्षण (कोटा) उनके कल्याण को बढ़ावा दे सकता है?

  • Blog Post Date 21 सितंबर, 2021
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सकारात्मक कार्रवाई संबंधी नीतियां विवादास्पद रही हैं क्योंकि कई लोगों का यह तर्क है कि इनके लाभ इन नीतियों से बाहर रखे गए लोगों के बदले में मिलते हैं और ये लाभ वंचित समूहों में से अभिजात वर्ग को असमान रूप में अर्जित होते हैं। राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि डेटा का विश्लेषण करते हुए, यह लेख दिखाता है कि अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए रोजगार कोटा में 1 प्रतिशत की वृद्धि से ग्रामीण इलाकों के एससी पुरुषों की वेतनभोगी नौकरी प्राप्त करने की संभावना 0.6 प्रतिशत बढ़ जाती है और इसका उनके कल्याण पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ता है।

स्वतंत्रता के बाद, भारतीय संविधान में अनुसूचित जातियों (एससी) और अनुसूचित जनजातियों (एसटी) की उच्च शिक्षा, राजनीति और सार्वजनिक रोजगार में आनुपातिक प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने के लिए आरक्षित कोटा के रूप में उन्हें सुरक्षा उपाय प्रदान किए गए हैं। तथापि, वंचित समूहों के लिए सकारात्मक कार्रवाई संबंधी नीतियां विवादास्पद बनी हुई हैं, क्योंकि कई लोगों का तर्क है कि ये समानता और दक्षता के बीच एक प्रकार का समझौता है, अर्थात, ये नीतियां वंचित समूहों के लिए उन समूहों के बदले में सहायक होती हैं जिन्हें ऐसी नीतियों से बाहर रखा गया है। इसके अलावा, ऐसी नीतियों के उद्देश्यों को का महत्व कम हो जाता है यदि वे वंचित समूहों के भीतर अभिजात वर्ग को असमान रूप से लाभान्वित करती हैं।

क्या कोटा (आरक्षण) वास्तव में इसके लाभार्थियों के लिए सहायक है?

हालांकि सैद्धांतिक रूप से यह स्पष्ट नहीं है कि कोटा (आरक्षण) इसके लाभार्थियों की सहायता करने में सफल होना चाहिए। रोजगार कोटा पर विचार करते हैं: सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में कोटा भरे जाने पर लाभार्थियों पर इसका सीधा सकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। साथ ही, इसके अप्रत्यक्ष सकारात्मक प्रभाव उन लोगों पर हो सकते हैं जो आरक्षित नौकरियां नहीं पाते - जो आरक्षित सीटों के लिए पात्र हैं वे इन नौकरियों की पात्रता-आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अधिक समय तक स्कूली शिक्षा प्राप्त कर सकते हैं, और यह उन्हें निजी क्षेत्र के श्रम बाजार में अधिक प्रतिस्पर्धी बना सकता है (खन्ना 2014)। हालांकि, इसके विपरीत भी हो सकता है: यदि कोटा सार्वजनिक क्षेत्र के श्रम बाजार में प्रतिस्पर्धा के स्तर को कम करता है, तो लाभार्थी अपनी शैक्षिक प्राप्ति (पात्रता-आवश्यकताओं से परे) को कम कर सकते हैं। यह अल्पसंख्यक समूहों के श्रम पूल की गुणवत्ता और उनके रोजगार के स्तर दोनों को कम कर सकता है। अंत में, यदि आरक्षित नौकरियों के लिए आवेदन करने के इच्छुक वंचित समूहों के व्यक्तियों का एक बड़ा हिस्सा पात्रता की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूरा नहीं करता है, तो ये सीटें खाली रह सकती हैं।

हमारा अध्ययन: डेटा और तरीके

सार्वजनिक क्षेत्र के रोजगार में कोटा (आरक्षण) भारत में राज्य-विशिष्ट हैं, और ये हाल ही की सारणीबद्ध जनगणना के अनुसार अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या के हिस्से के समान हैं। यह नीतिगत नियम राज्य के भीतर एक 'बहिर्जात', रोजगार कोटा1 में क्रॉस-टाइम भिन्नता उत्पन्न करता है। इसके अलावा, नौकरशाही आवश्यकताओं के परिणामस्वरूप एक ओर वर्तमान और जनगणना आबादी के बीच तो दूसरी ओर कोटा अंतराल हो  जाता है।

1983-84 और 1999-2000 के बीच राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (एनएसएस) के चार दौर के डेटा का उपयोग करते हुए, मैं रोजगार कोटा में राज्य के भीतर भिन्नता का का उपयोग करते हुए निम्नलिखित का अनुमान लगाता हूँ: (i) क्या अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के लिए नौकरी कोटा एक वेतनभोगी नौकरी2 हासिल करने हेतु उनकी संभावना को बढ़ाता है, (ii) क्या ये लाभ अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के शिक्षित अभिजात वर्ग द्वारा असमान रूप से प्राप्त किए जाते हैं, और (iii) क्या उनके रोजगार पर प्रभाव के परिणामस्वरूप अनुसूचित जाति /अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए मापी गई मासिक प्रति व्यक्ति आय के अनुसार उनके कल्याण में लाभ हुआ है (प्रकाश 2020)।

आरक्षण (कोटा), नौकरी और कल्याण

हमारे मुख्य निष्कर्ष बताते हैं कि रोजगार कोटे से केवल एससी को फायदा हुआ है, एसटी को नहीं। विशेष रूप से, मैंने पाया है कि अनुसूचित जाति के लिए रोजगार कोटे में 1 प्रतिशत की वृद्धि से ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जाति के पुरुषों की वेतनभोगी नौकरी प्राप्त करने की संभावना 0.6 प्रतिशत बढ़ जाती है। इसके अलावा, जब राज्य की विशेषताओं के आधार पर अनुमान लगाया जाता है, तो मुझे आर्थिक रूप से कम विकसित बीमारू (बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, ओडिशा और उत्तर प्रदेश) राज्यों के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में रहने वाले महिलाओं के साथ-साथ पुरुषों के लिए रोजगार कोटा का प्रभाव अधिक स्पष्ट दिखता है। इसके विपरीत, अनुसूचित जनजातियों संबंधी नीति के प्रभाव के परिणाम स्पष्ट नहीं हैं।

महत्वपूर्ण बात यह है कि मैंने ऐसा नहीं पाया कि आरक्षण नीति के लाभों को शैक्षिक अभिजात वर्ग द्वारा अपने पक्ष में कर लिया गया है, जो कि लोकप्रिय धारणा के विपरीत है। वास्तव में,एससी कोटे ने उन सबसे कम शिक्षित एससी श्रमिकों को लाभान्वित किया है जिनकी शिक्षा माध्यमिक विद्यालय स्तर से भी कम हुई है। इस समूह के सन्दर्भ में, रोजगार कोटे में 1 प्रतिशत की वृद्धि से उनके वेतनभोगी नौकरी हासिल करने की संभावना 0.7 प्रतिशत अंक बढ़ गई है।

रोजगार के परिणामों के अनुरूप, मैंने पाया कि विशेष रूप से माध्यमिक स्कूल से कम शिक्षा प्राप्त करने वाले और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अनुसूचित जाति के लोगों के लिए उनके कल्याण के एक उपाय के रूप में देखा जाए तो मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय पर रोजगार कोटा का सकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। रोजगार कोटा ग्रामीण क्षेत्रों में उच्च शिक्षित अनुसूचित जाति के लोगों में केवल सबसे गरीब परिवारों3 के संदर्भ में उपभोग में वृद्धि करता है, जो अभिजात वर्ग द्वारा अपने पक्ष में कर लेने की धारणा को और दूर करता है।

नीतिगत निहितार्थ और भावी अनुसंधान विषय 

भारत में, कोटा के रूप में सकारात्मक कार्रवाई अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति समुदायों और अन्य आबादी में मौजूद कई सामाजिक आर्थिक संकेतकों के बीच के अंतर को कम करने का प्राथमिक साधन रहा है। मैंने पाया कि अनुसूचित जाति के रोजगार कोटा ने अनुसूचित जाति के रोजगार की संभावनाओं और कल्याण में सुधार किया है, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में पुरुषों के लिए जहां विशेष रूप से कम शैक्षिक आवश्यकताओं वाली लिपिक और नौकरशाही स्वरूप की सार्वजनिक क्षेत्र की अधिक नौकरियां हैं। यह, अभिजात वर्ग द्वारा अपने पक्ष में कर लेने के सबूतों में कमी के साथ यह दर्शाता है कि आरक्षण की नीति इरादे के अनुसार काम कर रही है।

हालाँकि, कई अन्य नीति-प्रासंगिक प्रश्नों पर विचार करने की आवश्यकता है। जॉब मैचिंग और उत्पादकता की गुणवत्ता पर रोजगार कोटा के प्रभाव को समझना महत्वपूर्ण है। उदाहरण के लिए, शोध से पता चलता है कि कैलिफ़ोर्निया में सार्वजनिक कॉलेजों में प्रवेश प्रक्रिया में नस्लीय प्राथमिकताओं के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने से स्नातक दरों में कुछ सुधार हुआ है, क्योंकि प्रतिबंध से अल्पसंख्यक छात्रों की अधिक प्रभावी तरीके से छंटाई हुई (आर्किडियाकोनो एवं अन्य 2014)। हालांकि ऐसे अन्य संदर्भ हैं जहां गलत तरीके से मिलान का कोई प्रमाण नहीं है। उदाहरण के लिए, भारतीय रेलवे के बारे में शोध से पता चलता है कि आरक्षित नौकरियों का उत्पादकता पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा (देशपांडे और वीसकोफ 2015)।

आगे विचार करते हैं, तो इस संबंध में एक महत्वपूर्ण प्रश्न वंचित समूहों और शेष आबादी के बीच परिणामों के अंतर को सार्थक रूप से पाटने के लिए कोटा की दीर्घकालिक प्रभावकारिता है, ताकि इन समुदायों को भविष्य में इस तरह के लाभों की आवश्यकता नहीं होगी। यद्यपि मुझे इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि नीति अपने इच्छित लाभार्थियों तक पहुँच रही है, यदि यह प्रक्रिया अधिक गतिशील होगी और विकसित सामाजिक आर्थिक वास्तविकताओं के अनुरूप होगी तो इसकी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने की अधिक संभावना है। इसके अलावा, यदि इस कोटा (आरक्षण) को प्रशिक्षण कार्यक्रमों के साथ पूरक किया जाता है, तो लक्षित आबादी और आरक्षित नौकरियों के लिए पात्रता मानदंड के बीच मौजूद किसी भी कौशल अंतर को भी अल्पावधि में कम किया जा सकता है। लंबे समय में, वे कोटा नीति को कम प्रासंगिक बना सकते हैं।

यह लेख निखिलेश प्रकाश की सहायता से लिखा गया है।

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टिप्पणियाँ:

  1. ध्यान दें कि भिन्नता अल्पसंख्यक आबादी के हिस्से में सभी तरह के उतार-चढ़ाव पर आधारित नहीं है, क्योंकि यह रोजगार कोटा के साथ-साथ चैनलों के माध्यम से अल्पसंख्यक परिणामों को प्रभावित कर सकता है। बदले में, कोटा और रोजगार के बीच एक कारण प्रभाव स्थापित करने की अनुभव-जन्य नीति को इस तथ्य का लाभ मिलता है कि कोटा की स्थापना (जो हर 10 साल में होती है) और किसी भी वर्ष में जनसंख्या हिस्सेदारी (जो हर साल बदलती है) के बीच एक समय अंतर है। 
  2. एनएसएस डेटा में विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों को मापने की व्यवस्था नहीं है, और इसलिए वेतनभोगी नौकरियों के बारे में डेटा का उपयोग किया गया है।
  3. जो मासिक प्रति व्यक्ति उपभोग व्यय के 10वें पर्सेंटाइल के भीतर हैं।

लेखक परिचय: निशीथ प्रकाश अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं और युनिवर्सिटी ओफ कनेक्टिकट में अर्थशास्त्र विभाग और मानवाधिकार संस्थान में संयुक्त पद पर हैं।

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