स्थानीय राजनीति में महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु आरक्षण ने हालांकि एक मार्ग प्रशस्त किया है, लेकिन इसने उन बुनियादी समस्याओं का समाधान नहीं किया जो महिलाओं को राजनीति में पूर्ण रूप से शामिल होने से रोकती हैं। पूर्वोत्तर राज्य मेघालय में किये गए एक अध्ययन के आधार पर, यह लेख दर्शाता है कि संपत्ति पर नियंत्रण महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और संपत्ति का पुनर्वितरण करने वाली आर्थिक नीतियों के बारे में उनकी वास्तविक प्राथमिकताओं का एक महत्वपूर्ण कारक है।
राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है: विश्व की संसदीय सीटों में केवल 26% पर महिलाएं प्रतिनिधित्व कर रही हैं और केवल 22.6% महिलाएं मंत्री हैं, वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 2021 जेंडर गैप रिपोर्ट का अनुमान है कि राजनीतिक लैंगिक समानता हासिल करने में 145 साल और लगेंगे। दुनिया के अधिकांश देशों की तरह, भारत ने भी महिलाओं की राजनीति में सहभागिता और उनके प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के लिए संघर्ष किया है। स्थानीय स्तर पर महिलाओं के प्रतिनिधित्व हेतु रखे गए कोटा ने अच्छी प्रगति की है (ब्रुल 2020ए), लेकिन इन टॉप-डाउन तथा आंशिक समाधान ने उन बुनियादी समस्याओं को हल नहीं किया है जो महिलाओं को राजनीति में पूर्ण रूप से शामिल होने से रोकती हैं (ब्रुल 2020बी)।
महिलाओं के राजनीतिक प्रतिनिधित्व की कमी के साथ साथ उनकी राजनीतिक सहभागिता की कम दरों का मतलब है कि पुरुषों की तुलना में महिलाओं की नीतिगत प्राथमिकताएं स्पष्ट रूप से अलग होती हैं, जिस पर विचार नहीं किया गया है। जैसा कि क्लेटन और ज़ेटरबर्ग (2018) दर्शाते हैं, महिलाओं की कल्याणकारी नीतियों के बारे में अलग-अलग प्राथमिकताएँ हैं, जैसे कि गरीबों को बुनियादी आवश्यकताओं की सब्सिडी दी जाना। यह भारत के लिए भी सच है। चित्र 1 भारत और दुनिया भर में महिलाओं और पुरुषों की राजनीतिक सहभागिता और नीतिगत प्राथमिकताओं में अंतर को दर्शाता है। भारत में, पुरुषों की तुलना में महिलाओं के यह मानने की संभावना लगभग 30 प्रतिशत अधिक है कि सरकार को गरीबों का कल्याण करना चाहिए, और यही संभावना कराधान, असमानताओं को दूर करने के लिए पुनर्वितरण उपायों और स्वास्थ्य देखभाल पर सार्वजनिक खर्च में वृद्धि का समर्थन करने के लिए 15-27 प्रतिशत अधिक है। वही, भारत में महिलाओं की तुलना में पुरुषों के राजनीतिक बैठकों में भाग लेने की संभावना लगभग 60 प्रतिशत अधिक है – जिनमें नागरिकों की प्राथमिकताओं को सुना जाता है - और उनके मतदान करने की संभावना भी अधिक है। यद्यपि यह 'राजनीतिक अर्थव्यवस्था लैंगिक अंतर' डेटा में स्पष्ट झलकता है, यह स्पष्ट नहीं होता कि महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और नीति प्रतिनिधित्व को कैसे बढ़ाया जाये।
चित्र 1. दुनिया भर और भारत में राजनीतिक अर्थव्यवस्था लैंगिक अंतर
आकृति में आए अंग्रेजी वाक्यांशों का हिंदी अनुवाद:-
Differences in Average Responses between Men and Women: पुरुषों और महिलाओं की औसत प्रतिक्रिया में अंतर
Women more likely to agree/ Men more likely to agree : महिलाओं के सहमत होने की अधिक संभावना / पुरुषों के सहमत होने की संभावना अधिक
Political participation: राजनीति में सहभागिता (मुझे/मैंने/मेरी)
Interest in politics: राजनीति में रूचि है
Understanding of politics: राजनीति की समझ है
Talked about elections: चुनावों के बारे में चर्चा की
Attended election meetings: चुनाव सभाओं में भाग लिया
Worked in campaigns: अभियानों में कार्य किया
Say in the government: सरकार में मान्यता
Economic Policy Preferences: आर्थिक नीति के सम्बन्ध में प्राथमिकताएं (सरकार)
Tax rich, subsidize poor: अमीरों को कर लगाएं, गरीबों को सब्सिडी दें
Reduce income gaps: आय के अंतर को कम करें
Provide jobs for all: सभी को नौकरी दें
Create more jobs: अधिक नौकरियों का सृजन करें
Provide for everyone: सभी को प्रदान करें
Spend on health: स्वास्थ्य पर व्यय करें
Spend on old age pension: बुजुर्गों की पेंशन पर व्यय करें
Spend on unemployment: बेरोजगारी पर व्यय करें
Family Decisions: पारिवारिक निर्णय (महिलाएं नहीं करें)
Contribute to family income: परिवार की आय में अंशदान
Earn more than men: पुरुषों की आय से अधिक आय
स्रोत: इंटरनेशनल सोशल सर्वे प्रोग्राम के सरकार की भूमिका (2006) और परिवार एवं बदलती लैंगिक भूमिका (2012) सर्वे; विश्व मूल्य सर्वेक्षण चरण - 6 (2010-2014); और भारतीय राष्ट्रीय चुनाव अध्ययन सर्वेक्षण (1985)।
संपत्ति पर नियंत्रण
एक नए अध्ययन (ब्रुल और गायकवाड़ 2021) में, हम प्रयोगात्मक और गहन साक्ष्य प्रदान करते हैं कि संपत्ति पर नियंत्रण महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और धन का पुनर्वितरण करने वाली आर्थिक नीतियों के बारे में उनकी वास्तविक प्राथमिकताओं का एक महत्वपूर्ण कारक है। हमें लगता हैं कि इस प्रक्रिया में सांस्कृतिक मानदंड एक प्रमुख भूमिका निभाते हैं। विशेष रूप से, हम सांस्कृतिक मान्यताओ के एक प्रभावशाली सेट - वंश मानदंड पर ध्यान केंद्रित करते हैं, जो यह निर्धारित करता है कि परिवार में स्त्री-पुरुष में से किसका स्वामित्व है, और परिवार की संपत्ति के बारे में कौन निर्णय लेता है ।
वंश मानदंड महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और वरीयताओं को कैसे प्रभावित करते हैं, इस पर अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिए, हमने पूर्वोत्तर भारत के मेघालय में आदिवासी समुदायों के पड़ोसी समूहों पर ध्यान केंद्रित किया। एक समूह - गारो, खासी और जयंतिया जनजातियाँ - मातृवंशीय हैं, जो माताओं से बेटियों को धन हस्तांतरित करती है। दूसरा पितृवंशीय है, जो विरासत पिता से पुत्रों को मिलती है। चूंकि ये समाज साथ-साथ रहते हैं, कई अन्य व्यापक संस्थागत कारक जो महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं, इन समूहों में सुसंगत हैं। विशेष रूप से, मातृवंशीय और पितृवंशीय दोनों समुदायों को व्यापक पितृसत्तात्मक परिवेश का सामना करना पड़ता है, जिसमें पुरुष सार्वजनिक डोमेन में अधिकार के पदों पर होते हैं। इन समुदायों के बीच मुख्य अंतर उनके वंश मानदंड हैं, जिसने हमें इस बात पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर दिया कि धन का स्वामित्व और उसका नियंत्रण महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और कल्याणकारी नीतियों के बारे में प्राथमिकताओं को कैसे प्रभावित करता है।
अकादमिक कार्य राजनीतिक अर्थव्यवस्था में लैंगिक अंतर की दो अभियानों से विवेचना करता है: संस्कृति और संसाधन। सांस्कृतिक स्पष्टीकरण सामाजिक रूप से स्वीकृत उस भूमिका पर केंद्रित होते हैं जिसमें महिलाएं समाज द्वारा उनके लिए तय परिवेश में जीती हैं, और इससे किसी भी प्रकार के विचलन को हतोत्साहित किया जाता है (फ़्रांशेट, पिस्कोपो और थॉमस 2015)। संसाधन स्पष्टीकरण का यह तर्क है कि राजनीतिक रूप से सक्रिय होना महंगा है और पुरुष घरेलू संपत्ति को नियंत्रित करते हैं, अतः पुरुषों के राजनीतिक रूप से सक्रिय होने की संभावना अधिक है (इवर्सन और सोस्किस 2001, वर्बा एवं अन्य 1997)। कई हस्तक्षेपों ने महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने के उद्देश्य से महिलाओं के आर्थिक अवसरों को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया है, लेकिन महिलाओं को सूक्ष्म वित्त, कमाई पर नियंत्रण और नौकरी के अवसर प्रदान करने वाले कार्यक्रमों के परिणाम अब तक मिश्रित रहे हैं (फील्ड एवं अन्य 2021, 2010, प्रिलमैन 2021)। इस परिणाम का एक कारण यह है कि सांस्कृतिक और आर्थिक कारकों को अलग करने से एक महत्वपूर्ण बिंदु छूट जाता है – वह यह कि महिला राजनीतिक सशक्तिकरण में सार्थक परिवर्तन लाने के लिए दोनों कारकों की साथ में आवश्यकता होती है।
अतः हम अनुमान लगाते हैं कि ये दोनों व्याख्याएं - संस्कृति और संसाधन – एक दुसरे से बारीकी से जुड़ी हुई हैं। जिस तरह से समुदाय पीढ़ी दर पीढ़ी संपत्ति हस्तांतरित करते हैं और यह तय करते हैं कि स्त्री या पुरुष में से कौन इसे नियंत्रित करेगा, यह सांस्कृतिक रूप से निर्धारित होता है और उन संसाधनों को प्रभावित करता है जिन तक महिलाओं और पुरुषों की पहुंच होती है। हम अनुमान लगाते हैं कि वंश के मानदंडों से तीन क्षेत्र प्रभावित होते हैं: महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता, कल्याणकारी नीतियों के बारे में प्राथमिकताएं, और उन प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए राजनीतिक कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति। अपने अध्ययन के लिए, हमने 2014-2015 में एक प्रत्यक्ष सर्वेक्षण किया, जिसमें हमने व्यापक गुणात्मक शोध के साथ-साथ कई प्रयोग किए। हमारी टीम ने मतदान-आयु वाले 3,410 नागरिकों के एक प्रतिनिधि नमूने का साक्षात्कार लिया, जो कम से कम 10 वर्षों से मेघालय की राजधानी शिलांग में रह रहे थे।
वंश मानदंड
सबसे पहले, हम जांच करते हैं कि क्या महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता उन जनजातियों के बीच भिन्न होती है जहां महिलाओं का धन पर नियंत्रण होता है और जहां नहीं होता है। हमने अपने सर्वेक्षण के उत्तरदाताओं से उनकी मतदान की आदतों सहित राजनीतिक सहभागिता के प्रमुख पहलुओं के बारे में पूछा, क्या वे प्रतिनिधियों पर "शिलांग में लोगों के लिए सही काम करने" के लिए भरोसा करते हैं, और क्या उन्हें लगता है कि वे स्थानीय निर्वाचित विधायकों को जवाबदेह ठहरा सकते हैं।
पितृवंशीय समुदायों में, हम राजनीतिक सहभागिता में 'पारंपरिक' अंतर के प्रमाण पाते हैं। उदाहरण के लिए, महिलाओं की तुलना में पुरुषों के 11 प्रतिशत अधिक मतदान करने की संभावना है। हालांकि, मातृवंशीय जनजातियों में, सच इसके विपरीत है। वहां पुरुषों की तुलना में महिलाओं के मतदान करने की संभावना 9 प्रतिशत अधिक है। लैंगिक अंतर में यह उलटफेर चौंकाने वाला है। मातृवंशीय और पितृवंशीय जनजातियों में, महिलाओं द्वारा औपचारिक राजनीतिक सहभागिता में एक जैसी निराशा के बावजूद, मातृवंशीय समुदायों में महिलाएं पुरुषों की तुलना में राजनीतिक रूप से अधिक सक्रिय हैं।
ये परिणाम राजनीतिक सहभागिता में वैश्विक रूप में लैंगिक अंतर की पुष्टि करते हैं -और मौलिक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं कि जब वंश मानदंड भिन्न होते हैं तो लैंगिक व्यवहार भी बदल जाता है - लेकिन हम कल्याणकारी व्यवस्था के बारे में महिलाओं की प्राथमिकताओं पर वंश मानदंडों के प्रभाव पर भी सूचना हासिल करना चाहते हैं।
महिलाओं की नीति सम्बन्धी प्राथमिकताएं
यह जांचने के लिए कि क्या वंश के मानदंड इन प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं, हमने एक प्रयोग किया जिसमें हमने अलग किया कि क्या संपत्ति के पुनर्वितरण की नीति सर्वेक्षण उत्तरदाता को व्यक्तिगत लागत से प्रभावित करती है या नहीं। विचार यह है कि, यदि कोई उत्तरदाता अपने घर में संपत्ति को नियंत्रित करता है, तो वह संसाधनों के पुनर्वितरण के लिए उच्च कराधान जैसे नीतियों की स्पष्ट लागतों के प्रति अधिक संवेदनशील होगा। हमने उम्मीद की कि नीतियों के लिए अगर व्यक्तियों द्वारा नियंत्रित संपत्ति को छोड़ने की आवश्यकता होगी तो उन व्यक्तियों द्वारा कल्याणकारी नीतियों का समर्थन करने की संभावना कम ही होगी।
हम पाते हैं कि पितृवंशीय जनजातियों के पुरुष हमारे द्वारा लागू की जाने वाली नीतिगत लागत के प्रति संवेदनशील होते हैं, लेकिन महिलाएं नहीं। जब हम व्यक्तिगत लागत के बारे में स्पष्ट बताते हैं तो कल्याण नीति के समर्थन में पुरुषों की 3 प्रतिशत कम संभावना है जबकि महिलाओं का समर्थन नहीं बदलता है। कल्याणकारी नीतियों के समर्थन में स्त्री-पुरुषों के बीच यह अंतर पिछले शोध (इंगलेहार्ट और नॉरिस 2000, इवर्सन और रोसेनब्लुथ 2006, खान 2017) के अनुरूप है। हालाँकि, जो आश्चर्यजनक था, वह हमने मातृवंशीय जनजातियों में पाया। इन समुदायों में एक लागत की शुरुआत करते हुए महिलाओं और पुरुषों दोनों ने नीति का समर्थन 4 प्रतिशत अंक कम किया। यानी मातृवंशीय जनजातियों में महिलाओं और पुरुषों की प्राथमिकताएं परिवर्तित हो गईं।
ये परिणाम बताते हैं कि वंश मानदंड राजनीतिक सहभागिता और कल्याणकारी नीतियों के बारे में प्राथमिकताओं को प्रभावित करते हैं। लेकिन, क्या ये मानदंड लोगो को अपनी विशिष्ट नीतिगत प्राथमिकताओं पर कार्य करने की इच्छा को भी प्रभावित करते हैं? इसके लिए हमने राजनीतिक कार्य के साथ प्राथमिकताओं को जोड़ने हेतु एक व्यवहारिक प्रयोग किया जिसमें हमने प्रतिभागियों को पुनर्वितरण नीतियों के बारे में उनकी प्राथमिकताओं को बताते हुए एक पोस्टकार्ड पर लिखने और भेजने के लिए कहा।
यह प्रयोग हमारी परिकल्पना की पुष्टि करता है। पितृवंशीय जनजातियों में हम एक परंपरागत लैंगिक अंतर देखते हैं, जहाँ पुरुषों द्वारा उन कल्याणकारी नीतियों से विरोध व्यक्त करने की संभावना 12 प्रतिशत अधिक है जिनके लिए व्यक्तिगत लागत है। हालांकि, महिलाओं ने नीतियों की व्यक्तिगत लागत पर कोई महत्वपूर्ण प्रतिक्रिया नहीं दी। मातृवंशीय जनजातियों में ये परिणाम विपरीत हो गए; महिलाओं की स्पष्ट लागत के साथ कल्याणकारी नीतियों के विरोध में पोस्टकार्ड भेजने की संभावना 14 प्रतिशत अधिक थी, जबकि पुरुषों ने अपने व्यवहार में कोई महत्वपूर्ण बदलाव नहीं किया।
हालांकि, इनमें से किसी भी प्रयोग ने यह स्पष्ट नहीं दर्शाया कि क्यों संपत्ति पर नियंत्रण ने पुनर्वितरण कल्याणकारी नीतियों के बारे में महिलाओं की प्राथमिकताओं को बदल दिया। अपने निष्कर्षों का तरीका समझने हेतु अपने सर्वेक्षण में हमने दो प्रयोगात्मक प्रश्न शामिल किए।
सबसे पहले, हमने एक ऐसा परिदृश्य प्रस्तुत किया जहां पुरुषों के बजाय महिलाएं एकमात्र आय-अर्जक थीं, और उत्तरदाताओं से पूछा कि क्या उनका मानना है कि पति को (अभी भी) खर्च के फैसले में अंतिम राय देनी चाहिए। हम पाते हैं कि मातृवंशीय जनजातियों में, दोनों पुरुष और स्त्री में, पति को उचित अंतिम निर्णयकर्ता के रूप में देखने की संभावना कम होती है। लेकिन पितृवंशीय समूहों में, केवल महिलाओं को लगता है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया घर के आय अर्जित करने वाले के अनुसार बदलनी चाहिए।
दूसरा, हम यह पता लगाते हैं कि दो में से एक समान रूप से अच्छी तरह से वित्त पोषित चैनलों के माध्यम से व्यक्तियों को राज्य संसाधन वितरित करने के बारे में– जिसमें एक सरकारी कार्यक्रम के माध्यम से या तो घर के सभी सदस्यों के नाम से सीधे घर के मुखिया को पैसा दिया जाता या प्रत्येक व्यक्तिगत सदस्य को – और वह भी एक ऐसे परिदृश्य में जिसमें राज्य के माध्यम से प्रत्येक व्यक्ति को कम पैसा दिया जाता था, जो कि घर के मुखिया को वितरित किया जाता था; क्या उत्तरदाताओं ने अपनी नीति प्राथमिकताओं को बदला। हम पाते हैं कि मातृवंशीय समूहों में, महिलाओं और पुरुषों दोनों के लिए घर के मुखिया को सीधे नकद हस्तांतरण दिया जाना पसंद करने की संभावना अधिक थी, जब यह सबसे लाभप्रद चैनल था। पितृवंशीय संस्कृतियों में, जब यह आर्थिक रूप से इष्टतम है केवल पुरुष ही प्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण पसंद करते हैं । महिलाएं इसके बजाय व्यक्तियों को राज्य वितरण पसंद करती हैं, भले ही इससे पूरे परिवार के लिए कम पैसा मिलता हो।
निष्कर्ष
साथ में, इन प्रयोगों से पता चलता है कि मातृवंशीय महिलाओं और पुरुषों की प्राथमिकताओं में समानता का कारण यह है कि इन समुदायों में महिलाएं और पुरुष संयुक्त रूप से घरेलू खर्च के बारे में निर्णय लेते हैं। मातृवंशीय समूहों में, महिलाओं के पास आर्थिक शक्ति होती है, लेकिन पुरुष फिर भी सामाजिक और राजनीतिक ताकत रखते हैं। यह स्त्री-पुरुष दोनों को घरेलू वित्त के बारे में सहयोग करने के लिए प्रेरित करता है। हालाँकि, पितृवंशीय जनजातियों में पुरुष सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक ताकत रखते हैं। उनके पास अपने घरों में महिलाओं के साथ वित्त पर बातचीत करने के कारण नही हैं। इस प्रकार से, महिलाएं नीतिगत लागतों के प्रति कम संवेदनशील होती हैं और वे सरकार की कल्याणकारी नीतियों को प्राथमिकता देती हैं ताकि उन्हें वित्तीय पहुंच की गारंटी मिल सके जिसे वे सामाजिक मानदंड के चलते अन्यथा प्राप्त नहीं कर सकती हैं। जबकि पुरुष इन कल्याणकारी नीतियों का कम समर्थन करते हैं, खासकर तब, जब इसके लिए उनको अपने नियंत्रण वाली संपत्ति को छोड़ना पड़ता हो ।
इन सभी सबूतों के साथ, यह स्पष्ट है कि महिलाओं की राजनीतिक सहभागिता और नीतिगत प्राथमिकताओं पर संपत्ति के स्वामित्व और नियंत्रण के मानदंडों का महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। जब महिलाएं संपत्ति का स्वामित्व और नियंत्रण करती हैं, तो वे अपने परिवारों और राजनीति में अधिक सशक्त होती हैं, और अपनी नीतिगत प्राथमिकताओं को आगे बढ़ाने के लिए उनके राजनीतिक रूप से कार्य करने की अधिक संभावना होती है। संपत्ति पर नियंत्रण या उसका अभाव, यह भी बताता है कि कल्याणकारी नीतियों के बारे में महिलाओं की प्राथमिकताएँ पुरुषों से भिन्न क्यों हैं।
इन सबका तात्पर्य यह है कि यदि महिलाओं को संपत्ति को नियंत्रित करने से रोकने वाले सामाजिक मानदंड बने रहते हैं तो महिलाओं के आर्थिक अवसरों को बढ़ाने वाली नीतियों से उनके राजनीतिक प्रतिनिधित्व में बदलाव नहीं होगा। आर्थिक अवसर निर्माण करने की तुलना में मानदंड बदलना अधिक कठिन है, लेकिन हम आगे आशाजनक हस्तक्षेप के बारे में सोचते हैं। उदाहरण के लिए, बांग्लादेश में, नैला कबीर (2017)1 ने पाया कि जहां माइक्रोक्रेडिट कार्यक्रम स्पष्ट रूप से महिलाओं के संपत्ति पर नियंत्रण के बारे में सामाजिक मानदंडों को बदलने का लक्ष्य रखते हैं, वे महिलाओं के राजनीतिक व्यवहार को बदल देते हैं। बांग्लादेश रूरल एडवांसमेंट कमेटी (बीआरएसी) के लंबे समय से सदस्यों को ध्यान में रखते हुए, कबीर और मार्टिन (2005) यह पाते हैं इन महिलाओं की सरकारी कार्यक्रमों तक पहुंच बढ़ी, अपने चुने हुए स्थानीय नेताओं के बारे में उन्हें अधिक जानकारी हुई, और उनके द्वारा रिश्वत देने की संभावना कम और नए सदस्यों की तुलना में राष्ट्रीय और स्थानीय चुनाव में मतदान करने की अधिक संभावना बनी।
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टिप्पणी :
- कबीर और मार्टिन (2005) और हाशमी, शूलर और रिले (1996) द्वारा यह कार्य आगे बढाया गया ।
लेखक परिचय: रेचेल ब्रुल बोस्टन यूनिवर्सिटी में फ्रेडरिक एस. पारडी स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज में वैश्विक विकास नीति की सहायक प्रोफेसर हैं। निखर गायकवाड़ कोलम्बिया यूनिवर्सिटी के राजनीति विज्ञान विभाग में सहायक प्रोफेसर और वैश्विक विचार समिति हैं सदस्य हैं।
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