उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

'प्लेटफ़ॉर्म’ अर्थव्यवस्था का अध्ययन करने के लिए श्रम बाज़ार के आँकड़े एकत्रित करना

  • Blog Post Date 31 अक्टूबर, 2023
  • लेख
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Neha Arya

Indian Institute of Technology Delhi

huz208211@hss.iitd.ac.in

हालाँकि भारत डिजिटल श्रम बाज़ार प्लेटफार्मों के मामले में एक अग्रणी देश के रूप में उभरा है, लेकिन गिग (अस्थाई और अल्पावधि के काम व सेवाएं) अर्थव्यवस्था के बारे में कम डेटा उपलब्ध है। नेहा आर्य सीपीएचएस में प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के बारे में डेटा एकत्र करने के लिए सीएमआईई द्वारा किए गए प्रयासों की व्याख्या करती हैं और इस डेटासेट का उपयोग भारत के गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की जनसांख्यिकीय संरचना को स्पष्ट करने के लिए करती हैं। उनका मानना है कि इस गतिशील श्रम बाज़ार में श्रमिकों के लिए सुरक्षा सुनिश्चित करने और काम की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए उच्च गुणवत्ता वाले डेटा को बनाए रखना आवश्यक है।

तेज़ी से हो रहा प्रौद्योगिकीय विकास भारत की रोज़गार सृजन चुनौती में नए आयाम जोड़ रहा है जिससे काम की गुणवत्ता और नियोक्ता-कर्मचारी संबंधों के स्वरूप के बारे में सवाल उठ रहे हैं। हाल के वर्षों में, कोविड-19 महामारी ने दूरस्थ यानी रिमोट और हाइब्रिड जैसी विभिन्न कार्य व्यवस्थाओं के प्रसार के लिए एक ठोस आधार प्रदान किया है। वर्ष 2020-21 के आर्थिक सर्वेक्षण में कहा गया है कि भारत फ्लेक्सी-स्टाफिंग या गिग (अस्थाई और अल्पावधि के काम व सेवाएं) तथा प्लेटफॉर्म श्रमिकों के लिए एक अग्रणी देश के रूप में उभरा है। इसके साथ ही, भारत वैश्विक स्तर पर ऑनलाइन श्रम का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता बनकर भी उभरा है (आईएलओ, 2021)। महामारी के बाद की अवधि में, दबी हुई उपभोक्ता मांग का एक बड़ा हिस्सा ऑनलाइन माध्यम से पूरा किया गया था। इसका मतलब था कि गिग तथा प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों, विशेष रूप से डिलीवरी, लॉजिस्टिक्स और व्यक्तिगत सेवाओं के बेड़े में वृद्धि हुई।

परिणामस्वरूप, अब श्रम बाज़ार पर ऐसे काम के प्रभाव के बारे में विभिन्न चर्चाएं और बहसें हो रही हैं। फेयरवर्क इंडिया रिपोर्ट (2022) में पाया गया कि प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था में काम की स्थितियों की जांच करने वाले मापदंडों पर बारह में से पांच प्लेटफार्मों को शून्य अंक प्राप्त हुए। इसके अलावा, गिग तथा प्लेटफॉर्म (अन्य के बीच) श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करने के उद्देश्य से की गई सामाजिक सुरक्षा संहिता (सीओएसएस) 2020 की शुरूआत और हाल ही में राजस्थान प्लेटफॉर्म आधारित गिग वर्कर्स (पंजीकरण और कल्याण) विधेयक को पारित किया जाना, इन नई कार्य व्यवस्थाओं पर बढ़ते ध्यान को दर्शाता है। इसलिए, मैं इस लेख में शहरी भारत में बढ़ते प्लेटफ़ॉर्म कार्य की घटना पर चर्चा करती हूँ और ऐसे कार्यों में लगे श्रमिकों की विशेषताओं का पता लगाती हूँ। गिग तथा प्लेटफ़ॉर्म अर्थव्यवस्था की संरचना का ज्ञान, लक्षित नीतिगत कार्रवाई और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों की ज़रूरतों को प्राथमिकता देने के लिए आवश्यक हो सकता है।

गिग तथा प्लेटफ़ॉर्म कार्य की सीमा का अनुमान लगाना

कोई भी डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म सॉफ़्टवेयर या मोबाइल एप्लिकेशन का उपयोग करके सेवा प्रदाताओं और सेवा अनुरोधकर्ताओं के बीच की बीच की कड़ी का काम करता है (स्टुवर्ट और स्टैनफोर्ड 2017)। वैश्विक स्तर पर प्लेटफार्मों की संख्या तेज़ी से बढ़ी है, यह संख्या वर्ष 2010 में 142 थी, जो वर्ष 2020 में बढ़कर 777 हो गई है (ILO, 2021)। हालाँकि, गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों पर आधिकारिक राष्ट्रीय स्तर के डेटा की कमी के कारण, भारत में गिग और प्लेटफ़ॉर्म कार्यबल की विशालता का अनुमानित आँकड़ा विभिन्न संगठनों के अनुसार अलग-अलग है। वर्ष 2022 में, अप्रत्यक्ष दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए, नीति आयोग की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया कि वित्त वर्ष 2019-20 में भारत में लगभग 68 लाख गिग श्रमिक थे, जिसमें कार्यबल का 1.3% शामिल था। अगले वर्ष इसके बढ़कर कार्यबल का 1.5% होने की उम्मीद थी। इसमें अधिकांश श्रमिक खुदरा व्यापार और बिक्री क्षेत्र के थे और इसके बाद परिवहन और विनिर्माण क्षेत्रों का क्रम था।

हालाँकि, यह रिपोर्ट गिग श्रमिकों की कुछ विशेषताओं (जैसे शहरी स्थान, आयु, शिक्षा, मोबाइल फोन का स्वामित्व आदि) का उपयोग करके और फिर व्यवसायों और उद्योगों, जिनमें यह ज्ञात था कि गिग काम की मांग है (व्यवसायों के राष्ट्रीय वर्गीकरण, 2004 का उपयोग करके), को देखकर इन अनुमानों पर पहुँची है। इसके बाद इसमें कुल कार्यबल का अनुमान लगाने के लिए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण (2011-12) के रोज़गार और बेरोज़गारी सर्वेक्षण और आवधिक श्रम-बल सर्वेक्षण (2019-20 तक) डेटासेट का उपयोग क्या गया है। और फिर गिग श्रमिकों के समान विशेषताओं वाले श्रमिकों की पहचान की जाती है। इसलिए, ये अनुमान भारत के गिग कार्यबल के आकार के सबसे करीब हैं। गिग अर्थव्यवस्था की रोज़गार क्षमता की जांच करते हुए, बोस्टन कंसल्टिंग ग्रुप (2021) की एक रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि लम्बे समय में, गिग अर्थव्यवस्था में भारत के गैर-कृषि कार्यबल का लगभग 30% शामिल हो सकता है। इसके अलावा, यह दर्शाता है कि निर्माण, विनिर्माण, परिवहन, लोजिस्टिक्स और व्यक्तिगत सेवाओं जैसे क्षेत्रों में गिग नौकरियाँ मौजूद होने की सबसे अधिक संभावना है।

सर्वेक्षण डेटा में गिग श्रमिकों का पता लगाना

हमने गिग अर्थव्यवस्था के बारे में प्रासंगिक डेटा की उपलब्धता की कमी को दूर करने के लिए, सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) से संपर्क किया और उनके आवधिक उपभोक्ता पिरामिड घरेलू सर्वेक्षण (सीपीएचएस) में भारत के प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के बारे में डेटा एकत्र करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। इसके नतीजे में उन्होंने, प्लेटफ़ॉर्म-आधारित श्रमिकों का पता लगाने के लिए "डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म-आधारित स्व-रोज़गार" और "डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म-आधारित वेतनभोगी अस्थायी" कोड पेश किए। इस सर्वेक्षण के तीन दौर का डेटा अब उपलब्ध है।

फिर भी, इस डेटासेट की कुछ सीमाएँ हैं जिनका ध्यान इसका उपयोग करते समय रखा जाना चाहिए। सबसे पहली सीमा, उक्त नमूने में कर्नाटक के शहरी प्लेटफ़ॉर्म-आधारित श्रमिकों की व्याप्ति बहुत अधिक है (लगभग 42.6%, जब ऐसे श्रमिकों की पहली बार पहचान हुई थी)। हालाँकि, यह डेटासेट जनसांख्यिकीय संकेतकों के अनुसार प्रतिनिधि नमूना था- इसमें लिंग, आयु समूह, शिक्षा, धर्म और जाति के आधार पर प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों का विभाजन मोटे तौर पर देश भर के प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के समान था। हालाँकि, डेटा संग्रह के बाद के दौर में गिग कार्य की रिपोर्टिंग में कुछ सुधार देखा गया, फिर भी यह संभावना है कि जांचकर्ताओं के नए कोड से अपरिचित होने के कारण मापन संबंधी कुछ समस्याएं बनी रही होंगी।

सीपीएचएस के स्वरूप और प्लेटफ़ॉर्म कार्य की समझ से जुड़ी आवश्यकताओं में भिन्नता के कारण एक और सीमा उत्पन्न होती है। डिजिटल श्रम में लगे गिग कर्मचारी अक्सर ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से 'अस्थायी कार्य' करते हैं। उदाहरण के लिए, ‘प्लेटफ़ॉर्म’ के तहत काम करने वाला एक टैक्सी ड्राइवर ऑनलाइन के ज़रिए कम मांग, या प्लेटफ़ॉर्म के एल्गोरिदम द्वारा कम कार्य आवंटन की स्थिति में ‘ऑफ़लाइन’ सवारी भी ले सकता है। लेकिन, जब तक अधिकांश काम मिलना ऑनलाइन प्लेटफ़ॉर्म के माध्यम से सुरक्षित नहीं हो जाता, तब तक सबंधित वर्कर को उस डेटासेट में प्लेटफ़ॉर्म-आधारित वर्कर के रूप में नहीं गिना जाएगा। इसके चलते संभवतः भारत में शहरी प्लेटफ़ॉर्म कार्यबल को कम करके आंका जाता है।

मुख्य परिणाम

इन सीमाओं को ध्यान में रखते हुए, मैं मौजूदा स्वरूप में डेटासेट का उपयोग करके हमारे कुछ प्रमुख निष्कर्षों पर चर्चा करती हूँ। चूँकि ‘प्लेटफ़ॉर्म’ कार्य मुख्य रूप से एक शहरी घटना है, अतः यह विश्लेषण शहरी क्षेत्रों तक ही सीमित है (आईडब्ल्यू वेज, 2020, नीति आयोग, 2022)।

तालिका-1. रोज़गार की श्रेणी के अनुसार शहरी श्रमिकों का हिस्सा 

रोज़गार की श्रेणी

मई-अगस्त 2022

सितंबर-दिसंबर 2022

जनवरी-अप्रैल 2023

प्लेटफ़ॉर्म वर्कर

2.6%

1.9%

2.4%

दैनिक मजदूरी/आकस्मिक श्रम

18.7%

18.1%

18.1%

स्वनियोजित

37.6%

38.7%

38.7%

वेतनभोगी-स्थाई

25.9%

25.9%

25.2%

वेतनभोगी-अस्थाई

15.2%

15.4%

15.6%

कुल शहरी श्रमिक

100%

100%

100%

 

तालिका-1 में प्रस्तुत सीपीएचएस डेटा से पता चलता है कि शहरी कार्यबल में स्व-रोज़गार वाले व्यक्तियों की हिस्सेदारी सबसे अधिक है, इसके बाद नियमित वेतनभोगी श्रमिकों का हिस्सा है। एक संक्षिप्त जांच के रूप में, हम इसकी तुलना वर्ष 2021-22 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (पीएलएफएस) के नवीनतम उपलब्ध दौर से श्रमिकों की श्रेणी के अनुसार रोज़गार हिस्सेदारी के साथ करते हैं, जो यह दर्शाता कि कुल शहरी श्रमिकों में से 39.5% स्व-रोज़गार वाले थे, 47.1% नियमित वेतनभोगी थे (सीपीएचएस द्वारा दर्शाए गए ~41% की तुलना में), और 13.4% आकस्मिक मज़दूर थे। दोनों की संदर्भ अवधि और रोज़गार वर्गीकरण समान नहीं हैं, लेकिन रोज़गार श्रेणी के अनुसार श्रमिकों का विभाजन मोटे तौर पर समान प्रतीत होता है।

वर्तमान में, प्लेटफ़ॉर्म-आधारित वर्कर शहरी कार्यबल का केवल एक छोटा-सा हिस्सा बनते नज़र आते हैं। व्यापक उद्योग भिन्नताओं को देखते हुए, अधिकांश ‘प्लेटफ़ॉर्म’ वर्कर व्यापार और सेवा उद्योग (77%) में केंद्रित हैं, इसके बाद यात्रा और पर्यटन (12%) का नम्बर है। यह नीति आयोग की रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुरूप है।

जनसांख्यिकीय विशेषताओं के संदर्भ में, प्लेटफ़ॉर्म-आधारित श्रमिकों में भारी संख्या में (96%) पुरुष हैं। यहाँ तक कि यूके और यूएस जैसे उन्नत देशों में भी, प्लेटफ़ॉर्म-आधारित काम में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों की तुलना में कम है (फैरेल और ग्रेग 2016, बलराम एवं अन्य 2017)। भारत में  झुकाव तुलनात्मक रूप से बहुत अधिक प्रतीत होता है, जिससे यह पता चलता है कि प्लेटफ़ॉर्म-आधारित काम से मिलने वाला लचीलापन पर्याप्त संख्या में महिलाओं को आकर्षित करने के लिए काफी नहीं है। ऐसा भारत में पारम्परिक रूप से महिलाओं की कम श्रम-बल भागीदारी दर, या लैंगिक डिजिटल विभाजन, या दोनों के कारण भी हो सकता है। महिला ‘प्लेटफ़ॉर्म’ वर्करों में से अधिकांश महिलाएं छोटे व्यवसायों, सिलाई और ड्रेस-बनाने की सेवाओं, नर्सिंग और अन्य स्वास्थ्य सेवाओं या सौंदर्य सेवाओं में लगी हुई थीं। दूसरी ओर पुरुष अधिकतर छोटे निजी व्यवसाय चलाने या परिवहन में लगे हुए हैं।

80% से अधिक ‘प्लेटफ़ॉर्म’ वर्कर विवाहित हिंदू हैं और अपने स्वयं के प्रतिष्ठान या वाहन सहित काम करते हैं। इसके अलावा, लगभग 75% ने स्कूली शिक्षा पूरी कर ली थी, जबकि कुछ (~12%) के पास स्नातक की डिग्री भी थी (आकृति-1 देखें)।

15 वर्ष से अधिक आयु के शिक्षित व्यक्तियों (पीएलएफएस 2021-22 के अनुसार 9.5%) में शहरी बेरोज़गारी की उच्च दर का होना, इस बात का संभावित स्पष्टीकरण हो सकता है कि उन्नत डिग्री वाले श्रमिक कुछ कम-कौशल प्रकार के प्लेटफ़ॉर्म-आधारित कार्यों को करना क्यों चुनते हैं। हालाँकि, इसे समझने के लिए व्यक्तियों की प्लेटफ़ॉर्म-आधारित कार्य में संलग्न होने के पीछे की प्रेरणा को समझना आवश्यक है।

आकृति-1. शिक्षा के स्तर के आधार पर रोज़गार श्रेणियों में श्रमिकों का विभाजन

स्रोत: पीएलएफएस 2021-22

समापन निष्कर्ष

सीएमआईई का सीपीएचएस डेटा भारत के ‘प्लेटफ़ॉर्म’ श्रमिकों का पता लगाकर डेटा में महत्वपूर्ण कमी को पूरा कर सकता है। हालाँकि, डेटा के असरदार होने के लिए कुछ शर्तों को सुनिश्चित करना आवश्यक है। सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण यह है कि डेटा गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए फ़ील्ड जांचकर्ताओं के साथ-साथ उत्तरदाताओं द्वारा 'प्लेटफ़ॉर्म कार्य' क्या है, इसकी गहन समझ होना एक पूर्व-आवश्यकता है। सीओएसएस द्वारा प्रदान की गई साधारण और अस्पष्ट परिभाषा को देखते हुए यह एक महत्वपूर्ण आवश्यकता है, जहाँ प्लेटफ़ॉर्म कार्य का संदर्भ "पारम्परिक नियोक्ता-कर्मचारी संबंध के दायरों से बाहर" किसी भी कार्य-व्यवस्था से है। यह भिन्न-भिन्न सर्वेक्षण दौरों में देखे गए ‘प्लेटफ़ॉर्म’ कार्य के अन्दर और बाहर हो रहे कई बदलावों को नियंत्रित कर सकता है, क्योंकि इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि उत्तरदाता किस रोज़गार श्रेणी से जुड़ा हुआ है। अमेरिका के अमेरिकन ट्रेंड्स पैनल और कनाडा के इंटरनेट उपयोग सर्वेक्षण जैसे सर्वेक्षणों ने गिग अर्थव्यवस्था के बारे में आवधिक डेटा उपलब्ध कराते हुए,  लोगों को गिग या ‘प्लेटफ़ॉर्म’ कार्य करने के पैमाने, दायरे और कारणों को समझने में सक्षम बनाया है। इससे गिग और प्लेटफ़ॉर्म श्रमिकों के कामकाजी जीवन को बेहतर बनाने के विभिन्न विकास उपायों को लागू किया जा सका है। 

भारत में, गिग और ‘प्लेटफ़ॉर्म’ श्रमिकों के लिए राजस्थान के नये कानून के ज़रिए राज्य में इन श्रमिकों का डेटाबेस बनाया जा सकता है, जबकि राष्ट्रीय ई-श्रम पोर्टल से देश स्तर पर ऐसा किया जा सकता है। हम आशा कर सकते हैं कि भारत में ‘डिजिटल इंडिया’ सपने के नेतृत्व में श्रम आंकड़े भी गतिशील श्रम बाज़ार की वास्तविकताओं को प्रतिबिंबित करने में सक्षम हैं। इससे विशेष रूप से, देश में बढ़ती गिग और प्लेटफॉर्म अर्थव्यवस्था के लिए प्रभावी नीतिगत उपायों को डिज़ाइन करने में काफी मदद मिलेगी।

लेखिका बहुमूल्य सुझावों और टिप्पणियों के लिए प्रोफेसर रीतिका खेड़ा को और महेश व्यास (सीएमआईई) को सीएमआईई डेटासेट से संबंधित उनके सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद देती हैं।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : नेहा आर्य वर्तमान में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली के मानविकी और सामाजिक विज्ञान विभाग में एक पीएचडी स्कॉलर हैं। उनकी शोध रुचियाँ श्रम बाज़ार पर प्रौद्योगिकी के प्रभाव पर केन्द्रित हैं।

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