सामाजिक पहचान

अप्रयुक्त मार्ग: राजनीतिक शक्ति की राह में लैंगिक अंतर

  • Blog Post Date 20 जून, 2019
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Lakshmi Iyer

University of Notre Dame

liyer@nd.edu

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Anandi Mani

Blavatnik School of Government

anandi.mani@bsg.ox.ac.uk

महिलाओं की अधिक राजनीतिक भागीदारी की दिशा में रिसर्च और नीतिगत प्रयास मुख्यतः महिलाओं के मतदान संबंधी व्यवहार और निर्वाचित जन प्रतिनिधियों के बतौर उनके प्रतिनिधित्व पर केंद्रित रहे हैं। हालांकि अनेक अन्य तरीके भी हैं जिनके जरिए निवासी राजनीतिक और नागरिक प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। उत्तर प्रदेश में किए गए एक मूल सर्वे का उपयोग करके इस लेख में अनेक प्रकार की चुनावी और गैर-चुनावी भागीदारी में मौजूद लैंगिक अंतर पर व्यवस्थित प्रमाण उपलब्ध कराए गए हैं।

 

दुनिया की आबादी में आधा हिस्सा महिलाओं का है लेकिन दुनिया के संसदों में उनकी सदस्यता एक-चौथाई से भी कम है। वर्ष 2015 में भारत की राष्ट्रीय विधायिका में 12 प्रतिशत महिलाएं थीं। वहीं, अमेरिकी कांग्रेस में उनका 19 प्रतिशत और यूके के हाउस ऑफ कॉमन्स में 29 प्रतिशत हिस्सा था। महिलाओं का यह कम राजनीतिक प्रतिनिधित्व और उनकी प्राथमिकताओं का खराब वास्तविक प्रतिनिधित्व साथ-साथ चलते हैं जो पूरी दुनिया में स्वास्थ्य, शिक्षा, और आर्थिक अवसरों में मौजूद लैंगिक अंतर से स्पष्ट है। राजनीतिक अवसरों सहित इन चारो घटकों के संयुक्त सूचकांक का उपयोग करके ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट में पाया गया है कि समग्र अंतर की स्थिति पिछले साल से वस्तुतः खराब ही हुई है, और अनुमान है कि परिवर्तन की वर्तमान दर जारी रहने पर समग्र अंतर को पाटने में सौ साल लगेंगे (वर्ल्ड इकनॉमिक फोरम, 2017)। 

सकारात्मक स्थिति यह है कि अनेक सघन अनुसंधानों के प्रमाण दर्शाते हैं कि महिलाओं का अधिक राजनीतिक प्रतिनिधित्व होने पर राजनीतिक पसंदें महिलाओं की जरूरतों और चिंताओं के साथ अधिक संगतिपूर्ण होती हैं (चट्टोपाध्याय और डफलो 2004, अय्यर, मणि, मिश्रा और टोपोलोवा 2012, रेहावी 2012)। महिलाओं के लिए राजनीतिक अवसरों के लाभ वस्तुतः ऐसे लाभ प्रदान करते हैं जो महिलाओं से आगे जाते हैं, जैसे कि बच्चों पर निवेश में सुधार और भ्रष्टाचार में कमी (भालोत्रा और क्लॉट्स-फिगुएरास 2014, ब्रोल्लो और त्रोइआनो 2016, क्लॉट्स-फिगुएरास 2012, डॉलर, फिशमैन और गैट्टी 2001, मिलर 2008, स्वामी, अज़फर, नैक, और ली 2001)।

अभी तक महिलाओं की अधिक राजनीतिक भागीदारी की दिशा में हुए रिसर्च और नीतिगत प्रयास, दोनो ही मुख्यतः दो परिणामों पर केंद्रित रहे हैं: महिलाओं का मतदान संबंधी व्यवहार, और निवार्चित जन प्रतिनिधियों के बतौर उनका प्रतिनिधित्व। हालांकि जो नागरिक चाहते हैं कि उनकी आवाज नीति निर्माण में भी सुनी जाय वे जन प्रतिनिधियों से संवाद करने, प्रतिवादों या जुलूसों में भाग लेने, लिखित याचिकाओं या धनराशि जुटाने में हिस्सा बंटाने, सार्वजनिक बैठकों में शामिल होने या सार्वजनिक मंचों पर अपनी बातें रखने जैसे कई दूसरे तराकों से भी राजनीतिक और नागरिक प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं। जैसे अमेरिका में 1960 के दशक में हुए नागरिक अधिकार के संघर्ष में मांटगोमरी बस बहिष्कार की सफलता के लिए ऍन रॉबिनसन और जॉर्जिया गिलमोर जैसी महिलाओं द्वारा धनराशि जुटाने के प्रयास बहुत महत्वपूर्ण थे (मैकराइ 2018)। मोरक्को में महिला अधिकार के कार्यकर्ताओं ने इस्लामी पारिवारिक कानून के पूरे परिवर्तन और 2011 में नए संविधान के आरंभ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी जो ‘‘महिलाओं और पुरुषों के बीच बराबरी की गारंटी करता है, महिलाओं के साथ किसी भी रूप में होने वाले भेदभाव का निषेध करता है, और सरकार के लिए महिला अधिकारों को उनकी संपूर्णता में बढ़ावा देना आवश्यक बनाता है’’ (पिटमैन और नासिरी 2010, यूएन वीमन, 2015)। नागरिकों की राजनीतिक और नागरिक संलग्नता के ये कम दिखने वाले स्वरूप भी लोगों की राय और चुनाव परिणामों को आकार दे सकते हैं। इस संबंध में हाल का उदाहरण जनवरी 2017 में यूएस वीमन्स मार्च और ऑनलाइन मीटू (#MeToo) आंदोलन का है और लगता है कि इनसे अधिक महिलाएं जन प्रतिनिधि बनने के लिहाज से चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित हुई हैं और 2018 के मध्यावधि चुनाव में अमेरिकी कांग्रेस में लैंगिक संतुलन में बदलाव आया है।

अनेक प्रकार की राजनीतिक और नागरिक गतिविधियों में महिलाओं और पुरुषों की भागीदारी का व्यवस्थित प्रमाण उपलब्ध कराने के लिए हमने भारत के सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के 11 जिलों के 256 गांवों में 2,573 महिलाओं और पुरुषों का सर्वे किया (अय्यर और मणि 2018)। हमने दो मुख्य श्रेणियों - चुनावी और गैर-चुनावी भागीदारी - में राजनीति से संबंधित व्यापक गतिविधियों पर जानकारी इकट्ठा की। पहली श्रेणी में मतदान और उम्मीदवारी (प्रशासनिक डेटासेट से उपलब्ध आम परिणाम), और राजनीतिक अभियानों में संलग्नता, पार्टी की सदस्यता, तथा अभियान के लिए योगदानों के संबंध में विस्तृत प्रश्न शामिल थे। दूसरी श्रेणी में ग्राम परिषद की बैठकों में उपस्थिति और भागीदारी, गांव, प्रखंड या जिला स्तर पर जन प्रतिनिधियों से बातचीत तथा सार्वजनिक याचिकाओं में संलग्नता आदि गतिविधियां शामिल थीं।

हमें चार मुख्य शोध परिणाम प्राप्त हुए। सर्वप्रथम, सबसे अधिक लैंगिक अंतराल चुनावी भागीदारी के बजाय गैर-चुनावी राजनीतिक भागीदारी के मामले में हैं। खास कर चुनावी भागीदारी में महिलाएं पुरुषों से 0.57 स्टैंडर्ड डेविएशन1 पीछे हैं जबकि गैर-चुनावी भागीदारी में 0.89 स्टैंडर्ड डेविएशन पीछे हैं। गैर-चुनावी भागीदारी के पैमानों के बीच हमने स्थानीय स्तर पर सर्वाधिक फासले दर्ज किए जो इस प्रकार हैं : पिछले 12 महीनों में जहां 44 प्रतिशत पुरुषों ने ग्राम बैठकों में भाग लिया था और 73 प्रतिशत पुरुषों ने ग्राम परिषद के सदस्य (प्रधान) से मिलने की कोशिश की थी, वहीं महिलाओं के मामले में संबंधित आंकड़े क्रमशः 17 प्रतिशत और 43 प्रतिशत ही थे। चुनावी राजनीतिक भागीदारी के पैमानों के बीच मतदान करने के मामले में हमें कोई फासला नहीं दिखा, लेकिन किसी राजनीतिक दल की सदस्य होने के मामले में महिलाएं पुरुषों से 7.1 प्रतिशत अंक पीछे और उम्मीदवार होने की संभावना के मामले में 2.6 प्रतिशत अंक पीछे हैं। सबसे अधिक फासला बीते दिनों किसी उम्मीदवार का भाषण सुने जाने के मामले में है : 61 प्रतिशत पुरुषों ने ऐसा किया है जबकि 23 प्रतिशत महिलाओं ने ही ऐसा किया है। उल्लेखनीय है कि ये महिलाओं की अपेक्षाकृत कम साक्षरता और संपत्ति, तथा उनके सामाजिक (जातिगत और धार्मिक) पृष्ठभूमियों को कंट्रोल करने के बाद भी लैंगिक अंतर बरकरार हैं। 

दूसरे, हमने पाया कि महिलाएं पुरुषों से राजनीतिक भागीदारी को प्रभावित कर सकने में सक्षम अनेक व्यक्तिगत गुणों के मामले में भी पीछे हैं। महिलाओं को राजनीतिक संस्थाओं और चुनावी नियमों के बारे में काफी कम जानकारी थी: उनसे राजनीतिक संस्थाओं के बारे में प्रश्नों के सही उत्तर मिलने की संभावना 5 से 10 प्रतिशत अंक कम थी। यह बात खास तौर पर गौरतलब है कि महिलाओं के लिए एक-तिहाई कोटा होने के बावजूद यह पूछने पर कि महिलाएं पंचायत की सदस्य बन सकती हैं या नहीं, 27 प्रतिशत महिलाओं ने गलत उत्तर दिया (अर्थात् “नहीं”)। इसके अलावा, महिलाएं अपने स्वमूल्यांकित नेतृत्व कौशलों के बारे में भी पुरुषों से पिछड़ गईं। महत्वपूर्ण घरेलू फैसलों में उनकी बहुत सुनी नहीं जाती है (जैसे एक-तिहाई महिलाओं ने ही घर की मरम्मत संबंधी फैसलों में ऊंचे स्तर की शक्ति होने की सूचना दी), और उन्हें कहीं आने-जाने के मामले में काफी प्रतिबंधों का सामना करना पड़ता है (जैसे 46 प्रतिशत महिलाओं ने बताया कि अपनी मित्र के घर जैसी पास की जगहों पर जाने के लिए उन्हें अनुमति लेने की जरूरत पड़ती है)। 

तीसरे, ‘सप्लाई-साइड’ के इन कारकों का चुनावी भागीदारी में लैंगिक अंतर के मामले में 34 प्रतिशत और गैर-चुनावी भागीदारी में लैंगिक अंतर में 30 प्रतिशत ही योगदान है। सप्लाई-साइड के कारक वे हैं जो संभवतः एक महिला के अपने दम पर बदलने की क्षमता के भीतर हो सकते हैं (जैसे राजनीतिक संस्थाओं और चुनावी नियमों की जानकारी, अपनी नेतृत्व क्षमताओं के बारे में उनकी अपनी धारणा, और राजनीतिक तथा व्यक्तिगत क्षेत्र में बदलाव लाने की अपनी क्षमता का बोध)। घर के फैसलों में महिला की बात के महत्व की कमी और उनके आने-जाने पर प्रतिबंध का चुनावी भागीदारी में लैंगिक अंतर में 35 प्रतिशत और गैर-चुनावी भागीदारी में लैंगिक अंतर में 12 प्रतिशत अतिरिक्त योगदान है। इसके बाद भी चुनावी भागीदारी में 31 प्रतिशत और गैर-चुनावी भागीदारी में 58 प्रतिशत लैंगिक अंतर अस्पष्ट रह जाता है।

और चौथे, हमने पाया कि महिला प्रधानों की उपस्थिति के कारण गैर-चुनावी भागीदारी में मौजूद लैंगिक अंतर घटा है लेकिन कुछ हद तक ही। जैसे, महिला प्रधान वाले गांवों में महिलाओं द्वारा प्रधान के साथ मिलने का प्रयास करने की संभावना 6 प्रतिशत अंक अधिक थी जबकि इस मामले में समग्र लैंगिक अंतर 30 प्रतिशत अंकों का था। महिला प्रधानों की उपस्थिति से महिलाओं की चुनावी भागीदारी के पैमानों पर कोई खास असर नहीं पड़ा।

हमारे शोध परिणामों के निहितार्थ लैंगिक अंतर को पाटने के लिए लक्षित नीतियां तैयार करने के संबंध में हैं। हमें जो परिणाम मिले वे संकेत देते हैं कि लैंगिक अंतरों में कमी लाने के मामले में महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी के सप्लाई-साइड कारकों में सुधार के लिहाज से तैयार की गई नीतियों का अच्छा-खासा असर हो सकता है। हालांकि, ऐसी नीतियां लैंगिक अंतर पूरी तरह समाप्त कर नहीं कर पाएंगी। महिलाओं के लिए कोटा लागू कर देने से भी राजनीतिक भागीदारी में मौजूद इन लैंगिक अंतरों की समाप्ति की संभावना नहीं है।

लेखक परिचय: लक्ष्मी अय्यर नॉत्रे डाम विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रॉफेसर हैं। आनंदी मणि ब्लावत्निक स्कूल ऑफ़ गवर्नमेंट में व्यवहार अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति की प्रॉफेसर हैं। 

नोट्स:

  1. स्टैंडर्ड डेविएशन एक माप है जिसका उपयोग मानों के सेट के औसत से उसमें होने वाले अंतर या छिटकाव को मापने के लिए किया जाता है। 
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