क्या राजनीति में महिलाओं के लिए कोटा लंबे समय में संस्थागत परिवर्तन को प्रेरित कर सकता है? यह लेख इस बात की जाँच करता है कि क्या भारतीय स्थानीय सरकार में महिलाओं के लिए सकारात्मक विभेद का प्रभाव राज्य और राष्ट्रीय कार्यालयों पर भी हुआ है। यह पता चलता है कि 1991 के बाद से संसदीय चुनावों में महिला उम्मीदवारी में लगभग आधी वृद्धि के लिए स्थानीय सरकार में आरक्षण जिम्मेदार है। हालांकि, उच्च कार्यालयों में महिला प्रतिनिधित्व अब भी कम है।
शिक्षा, व्यवसाय, और राजनीति में ऐतिहासिक तौर पर कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों की आर्थिक और सामाजिक भागीदारी में सुधार करने के लिए कोटा अधिकाधिक सामान्य उपकरण बन गए हैं। भारत में दुनिया की एक सबसे विस्तृत और दीर्घस्थायी कोटा व्यवस्था मौजूद है जिसने महिलाओं और नृजातीय अल्पसंख्यकों के राजनीतिक सशक्तीकरण के अल्पकालिक और दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में जानने-सीखने के लिए उर्वर जमीन उपलब्ध कराई है। ये नीतियां अभी तक अनेक अध्ययनों का फोकस रही हैं जिनसे इन मामलों में हमारी समझ में सुधार हुआ है — सार्वजनिक वस्तुओं के प्रावधान पर अधिक विविधतापूर्ण राजनीतिक प्रतिनिधित्व के लाभ (चट्टोपाध्याय और डूफ्लो 2004), अपराध और सरकार में विश्वास (अय्यर एवं अन्य 2012), तथा महिला नेताओं के प्रति दृष्टिकोण (बीमन एवं अन्य 2009), या सामान्यतः लड़कियों के प्रति दृष्टिकोण (कलसी 2017)।
अक्सर कोटा के पक्ष में यह तर्क अप्रत्यक्ष होता है कि इससे लक्षित समूहों का इस तरह से प्रतिनिधित्व बढ़ेगा कि वह संस्थागत परिवर्तन के जरिए इस नीति को अनुपयोगी बना देगा। ऐसा संस्थागत परिवर्तन संभव है या नहीं, इस पर अनेक संदर्भों में लंबे समय से तर्क-वितर्क चल रहा है जिनमें कोटा या सकारात्मक विभेद की नीतियों को प्रस्तावित और पक्षपोषित किया गया है (जेंसेनियस 2016)। और यह एक खुला सवाल है कि क्या कोटा का उन क्षेत्रें में व्यापक प्रभाव हो सकता है जिनमें उनका सीधा उपयोग नहीं किया गया है (भवनानी 2009)। हाल के शोध में मैंने पूछा है: भारत में स्थानीय निर्वाचित निकायों में महिलाओं के लिए कोटा से ऊंचे पदों के लिए उम्मीदवारी और प्रतिनिधित्व के मामले में कैसे फर्क पड़ा है? मैंने अनुभवजन्य जांच की है कि ऐसी कोटा व्यवस्था से सरकार में ऊंचे स्तर पर भागीदारी और प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है या नहीं, और अगर बढ़ता है, तो किन चैनलों से (ओ’कॉनेल 2016)।
संदर्भ और प्रविधि
भारत में सर्वप्रथम सरकार में महिलाओं के लिए देशव्यापी कोटा भारतीय संविधान में 73वें और 74वें संशोधनों के जरिए 1993 में शुरू किया गया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि इन संशोधनों में शासन के हर स्तर पर एक-तिहाई सीटों को महिलाओं द्वारा भरने का प्रावधान किया गया था। अकेली सीट वाले नेतृत्वकारी पदों पर आरक्षण हर चुनाव चक्र में पूरे क्षेत्रों में रैंडम आधार पर नियत करना तय किया गया था जिससे कुल मिलाकर एक-तिहाई कोटा पूरा किया जा सके। नेतृत्व को रोटेट करने के इस तरीके का उपयोग अय्यर एवं अन्य (2012) और बीमन एवं अन्य (2012) तथा अन्य लोगों द्वारा पूर्व के अध्ययनों में महिला नेताओं के प्रभावों का मूल्यांकन करने में किया गया है। कई चुनावी चक्रों के बाद नेतृत्व की स्थिति में एक महिला के संपर्क में आने वाले वर्षों की संख्या में क्षेत्रों के बीच काफी भिन्नता है। मैंने 2004 से 2007 तक के राज्य विधान सभा चुनावों और 2009 के संसदीय चुनावों के लिए उम्मीदवारी पर स्थानीय महिला नेताओं के संचित एक्सपोजर के प्रभावों की पहचान के लिए जिला समिति अध्यक्ष पद के लिए रोटेटिंग असाइनमेंट क्रियाविधि का उपयोग किया है। वर्ष 2000 के दशक के अंत तक कुछ जिलों ने अध्यक्ष पद चुनाव के लिए तीन चक्रों में आरक्षण देखा जबकि अन्य जिलों ने पहला आरक्षण चक्र ही देखा या बिलकुल भी आरक्षण नहीं देखा। इस अंतर का उपयोग ऊंचे पदों पर उम्मीदवारी पर और प्रतिनिधित्व में स्थानीय महिला राजनीतिक नेतृत्व के प्रभावों को चिन्हित करने के लिए किया गया।
परिणाम
स्थानीय शासन में कोटा व्यवस्था से बाद में राज्य और राष्ट्रीय विधानमंडल, दोनो के चुनावों में महिलाओं की उम्मीदवारी बढ़ जाती है। कोटा के एक अतिरिक्त चुनाव चक्र (पांच साल) से राज्य विधान सभा चुनावों में महिला उम्मीदवारों की संख्या में 0.075 उम्मीदवारों की वृद्धि हो जाती है। संसद के मामले में उम्मीदवारी और भी अधिक बढ़ती है और हर आरक्षित चक्र में औसतन 0.25 महिला उम्मीदवारों की वृद्धि हो जाती है। इसका अर्थ हुआ कि हर चार निर्वाचन क्षेत्रों में एक अतिरिक्त महिला उम्मीदवार दिखाई देगी, जिनने एक अतिरिक्त स्थानीय आरक्षित कार्यकाल देखा है। गौरतलब है कि हर जिले में औसतन 9 से 10 विधान सभा क्षेत्र हैं और दो चुनाव चक्र के एक्सपोजर के बाद राज्य के विधान सभा की उम्मीदवारी के लिए हर जिले में महिला कैंडिडेट्स की संख्या एक से दो के बीच बढ़ जाएगी। राज्य विधान सभा के स्तर पर यह प्रभाव और भी मजबूत होता है जो बताता है कि पूर्व में आरक्षित क्षेत्रों के राजनेताओं के लिए राज्य विधान सभा तार्किक मध्यवर्ती कैरियर के कदम के बतौर दिखती है। इस प्रभाव की तीव्रता उन जिला अध्यक्षों की संख्या को भी प्रतिबिंबित करती है जो ऊंचे पद के लिए उपलब्ध हो सकेंगी: दो चक्रों में अध्यक्ष के कोटा के जरिए एक से दो नए राजनेता उभर जाते हैं। स्थानीय शासन में कोटा होने से ऊंचे पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है या नहीं, इस पर मिलेजुले परिणाम सामने आते हैं। कोटा के जरिए उभरने वाली नई महिला उम्मीदवार जो चुनाव लड़ती हैं, उनमें जीतती नहीं हैं और उनमें से अधिकांश स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ती हैं जिन्हें संसाधनों और स्थानीय राजनीतिक दलों से समर्थन की कमी रहती है। नई महिला प्रत्याशियों मोटे तौर पर वोटों का लगभग आनुपातिक हिस्सा जीतती हैं, और मतदाता उपस्तिथि में बदलाव आने के सीमित साक्ष्य ही उपलब्ध हैं।
एक सवाल यह बच जाता है कि क्या उम्मीदवारी बढ़ना स्थानीय शासन में राजनेता बनने का परिणाम है जो ऊंचे पद के लिए चुनाव लड़ती हैं, या उन क्षेत्रों में लड़ने के लिए संभावित उम्मीदवारों की प्रतिक्रिया है जहां महिला नेतृत्वकारियों को सक्षम देखा जाना अधिक संभावित है। मैंने पाया कि उम्मीदवारी के मामले में लगभग आधा प्रभाव सप्लाई चैनल (अर्थात ‘ऊपरी चुनाव लड़ना’) का परिणाम है और आधा प्रभाव लंबे एक्सपोजर वाले चुनाव क्षेत्रों में दोबारा उम्मीदवार बनने का परिणाम है। यह बताता है कि ऊंचे पदों के लिए महिला उम्मीदवारी बढ़ाने में सप्लाई और डिमांड, दोनो चैनल काम करते हैं।
निष्कर्ष
स्थानीय सरकार में महिलाओं के लिए कोटा की नीति से राज्य और राष्ट्रीय स्तर के राजनीतिक पदों के लिए उम्मीदवारी तो बढ़ती है लेकिन प्रतिनिधित्व नहीं। यह बताता है कि कोटा का राजनीतिक गत्यात्मकता पर दीर्घकालिक प्रभाव होता है और जिस स्तर की सरकार में कोटा प्रणाली लागू थी उसके बाहर भी प्रभाव होता है। अनुमानित परिमाण सूचित करते हैं कि कोटा नीति के प्रभावी होने के बाद राज्य विधान सभा और संसदीय चुनावों के लिए महिलाओं की उम्मीदवारी में वृद्धि के लिए अधिकांशतः यह नीति ही जिम्मेवार है, हालांकि उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व नीचे ही रहता है और नीति से उसमें बदलाव आता नहीं दिखता है। कुल मिलाकर यह देखना अभी बाकी है कि स्थानीय सरकार में कोटा से सरकार के उच्च पदों पर महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ सकता है या नहीं।
लेखक परिचय: स्टीफन डी. ऑ’कॉनेल मेसाचुसेट्स इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेक्नोलॉजी (ऍमआईटी) के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट में पोस्टडॉक्टोरल फैलो हैं।
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