मुद्रा तथा वित्त

बजट 2022-23: पूंजीगत लाभ कर, और परिसंपत्ति-मूल्य

  • Blog Post Date 22 फ़रवरी, 2022
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परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता को सुनिश्चित कराने की आवश्यकता होते हुए भी, वर्ष 2022-23 के बजट में इक्विटी निवेश पर पूंजीगत लाभ कर में कोई परिवर्तन नहीं किया गया है। इस लेख के ज़रिये, गुरबचन सिंह संपत्ति-मूल्य स्थिरता बनाए रखने में एक नीति के रूप में कर की कल्पना की जांच करते हैं, कैसे पूंजीगत लाभ कर इस संदर्भ में बाधाएं पैदा करता है, और कर कानूनों में राजस्व-तटस्थ परिवर्तन कैसे किया जा सकता है।

वर्ष 2022-23 के बजट में इक्विटी निवेश पर पूंजीगत लाभ कर को एक अर्थ में एक मामूली परिवर्तन1 (भारत सरकार, 2022) को छोड़कर अपरिवर्तित2 रखा गया है। वहीं दूसरी ओर, एनएसई (नेशनल स्टॉक एक्सचेंज) निफ्टी 50 पिछले कुछ समय से ऊंचे स्तर पर बना हुआ है। 1 फरवरी 2022 के अनुसार कीमत अर्जन अनुपात 23.12 है और बही अनुपात 4.43 है। परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता की आवश्यकता पर शायद ही अधिक बल दिया जा सकता है। क्या इस संदर्भ में बजट में कुछ किया जा सकता था?

जबकि अर्थशास्त्र साहित्य में एक नीति के रूप में कर की कल्पना आम है, इसका उपयोग आम तौर पर विभिन्न उपयोगों में दुर्लभ संसाधनों के आवंटन में दक्षता के संदर्भ में किया जाता है। संपत्ति-मूल्य स्थिरता (एटकिंसन और स्टिग्लिट्ज़ 2015, ग्रुबर 2019, स्लेमरोड और बकीजा 2017) को बनाए रखने में एक नीति के रूप में कर की कल्पना बहुत कम परिचित है अतः इस लेख में मेरा ध्यान इस पर होगा। अधिक विशेष रूप से, हम देखेंगे कि पूंजीगत लाभ कर परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता के रास्ते में कैसे आ सकता है, और कर कानूनों में राजस्व-तटस्थ तरीके से कैसे बदलाव किया जा सकता है। हालांकि चिंता लंबी और छोटी अवधि के पूंजीगत लाभ कर- दोनों के बारे में है, यहाँ मैं लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर पर चर्चा करूंगा। सरलता के लिए, मैं अब इसे पूंजीगत लाभ कर के रूप में संदर्भित करूंगा।

वर्तमान पूंजीगत लाभ कर

वर्तमान पूंजीगत लाभ कर केवल वास्तविक प्राप्त लाभ पर लागू होता है न कि केवल प्रोद्‍भूत लाभ पर। इसलिए यह कर न्यायसंगत नहीं है। दूसरी ओर, यह कर न केवल किसी  परिसंपत्ति को वित्त उपभोग (या उपहार/दान) के लिए बेचे जाने-संबंधी मामलों के लिए, बल्कि बिक्री से प्राप्त आय का उपयोग किसी अन्य संपत्ति को खरीदने-संबंधी मामलों के लिए भी लागू किया जाता है। यह ध्यान देने लायक है कि बाद के मामले में, हमारी संपत्ति के पोर्टफोलियो में केवल बदलाव होता है। हालांकि कुछ अपवाद हैं, फिर भी हमारे यहाँ पूंजीगत लाभ कर है। इस सन्दर्भ में एक महत्वपूर्ण मामला इस प्रकार है। यदि निवेश म्यूचुअल फंड जैसे किसी वित्तीय मध्यस्थ के माध्यम से होता है, और संपत्ति के पोर्टफोलियो में परिवर्तन ऐसे मध्यस्थ द्वारा अंतिम निवेशकों की ओर से किया जाता है जो किसी दी गई योजना में निवेशित रहते हैं, तो पूंजीगत लाभ कर लागू नहीं होता है। इस प्रकार, मुख्य मुद्दा इन अपवादों में नहीं है।

प्रचलित पूंजीगत लाभ कर के बारे में क्या मुद्दे हैं? दो परिसंपत्ति वर्गों- ए और बी पर विचार करें; ऋण और इक्विटी के बारे में सोचें, या भारत के अलावा उभरती बाजार अर्थव्यवस्थाओं में शेयरों में निवेश करें बनाम भारत में शेयरों में निवेश करें। मान लीजिए कि यह महसूस किया जाता है कि संपत्ति ए की कीमत कम हो गई है या संपत्ति बी अधिक कीमत वाली हो गई है। यह एक स्पष्ट अंतरपणन का अवसर प्रतीत हो सकता है- यह संपत्ति बी को बेचने और संपत्ति ए को खरीदने का संदर्भ देता है। तथापि, यदि हम लेन-देन की लागत निकाल देते हैं, जो कि इन दिनों वैसे भी नगन्य हैं, फिर भी व्यवहार में कठिनाइयां हैं। जब निर्णय लेने की बात आती है, तो संपत्ति के सही मूल्य के बारे में निश्चित नहीं होने का मुद्दा हो सकता है, ऐसी स्थिति में निवेशक कुछ भी नहीं करने का विकल्प चुन सकते हैं। इसके अलावा, अंतरपणन की व्यावहारिक सीमाएं हैं। इसके दो कारण हैं।

सबसे पहला, वित्तीय बाजार स्पष्ट रूप से कार्यक्षम नहीं हैं (बारबेरिस और थेलर 2003)। बाजार में अतार्किकता को देखते हुए, संपत्ति ए और भी कम कीमत वाली हो सकती है और/या संपत्ति बी सुधार होने से पहले और अधिक कीमत वाली हो सकती है। विवेकशील  व्यापारी को जोखिम का सामना करना पड़ता है कि इस बीच गलत मूल्य-निर्धारण खराब हो सकता है। यदि उनके पास सीमित पूंजी है और एक छोटा निवेश परिधि है, तो वे निवेश में एक सीमित पोजीशन बना लेंगे जो एक स्पष्ट अंतरपणन अवसर के रूप में दिखाई देगी। साथ ही, यह देखते हुए कि व्यापारी सीमित पोजीशन बना लेते हैं, गलत मूल्य-निर्धारण कुछ समय के लिए बना रह सकता है (श्लीफ़र 2000)।

दूसरा, मौजूदा संपत्ति की बिक्री पर पूंजीगत लाभ कर लग सकता है। इसलिए, यह एक सार्थक अंतरपणन अवसर केवल उस सीमा तक होगा यदि स्पष्ट अंतरपणन अवसर में शामिल मूल्य अंतर के कारण हुआ लाभ संपत्ति बी का अंतरण संपत्ति ए में करने में लागू कर के भुगतान से अधिक हो।

यह सब कैसे मायने रखता है? जैसा कि हम जानते हैं, स्टॉक की कीमतें अन्य परिसंपत्तियों की तुलना में काफी बदलती रहती हैं। वास्तव में, वे कई बार बहुत उच्च स्तर तक जा सकते हैं। यहां एक ध्यान देनेलायक प्रश्न उठता है: स्टॉक की कीमतें अधिक होने पर निवेशक उसे बेचते क्यों नहीं, या पर्याप्त रूप से नहीं बेचते हैं? ऊपर चर्चा किया गया पहला कारण मुख्य रूप से व्यापारियों, सट्टेबाजों और अल्पकालिक निवेशकों पर लागू होता है, और दूसरा कारण लंबी अवधि के निवेशकों पर लागू होता है। पहला कारण व्यवहार वित्त साहित्य (श्लीफर 2000) में आम माना गया है। दूसरा कारण बहुत कम आम है। अतः मैं यहाँ अपना ध्यान दूसरे कारण पर केंद्रित करूंगा।

अमेरिका जैसे देश में भी वारेन बफे जैसे बड़े और प्रतिष्ठित दीर्घकालिक निवेशकों के लिए, जो उच्च कीमतों के बावजूद निवेशित रहना चुन सकते हैं, पूंजीगत लाभ कर एक महत्वपूर्ण विचार है; यह मुख्य रूप से लाभांश (और अन्य नकदी प्रवाह) से प्राप्त अन्य पैसा है जो ऐसे निवेशकों के लिए शेयर बाजार में नए अवसर मिलने तक नकदी के रूप में रखा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि कीमतें अधिक होने पर भी लंबी अवधि के निवेशक अपने स्टॉक को पर्याप्त रूप से नहीं बेचते हैं। इसलिए, कीमतों में उतार-चढ़ाव या उनके वास्तविक मूल्यों से विचलन कुछ हद तक स्थायी हो सकता है। इसके लिए क्या रास्ता है? इससे पहले कि हम आगे बढ़ें, प्रासंगिक शब्दावली को प्रस्तुत करना महत्वपूर्ण है।

शब्दावली

‘पूंजीगत लाभ कर’ शब्द थोड़ा भ्रमित करनेवाला है क्योंकि ऐसा कर वास्तव में न केवल पूंजी में वृद्धि पर लागू होता है बल्कि सोने, भूमि, कला के कार्यों आदि की कीमत में इजाफा के माध्यम से सामान्य रूप से धन में वृद्धि पर भी लागू होता है। अतः इसे पूंजीगत लाभ कर के बजाय 'संपत्ति लाभ कर' के रूप में संदर्भित करना अधिक उपयुक्त होगा। 'संपत्ति लाभ कर'  संपत्ति कर से अलग होता है। संपत्ति कर संपत्ति के स्टॉक पर लागू होता है जबकि 'संपत्ति लाभ कर' संपत्ति में लाभ के प्रवाह पर लागू होता है।

वर्तमान में, जैसा कि हमने पहले उल्लेख किया है, प्रोद्‍भूत और वास्तव में प्राप्त पूंजीगत लाभ के बीच अंतर है। हम इसे प्रोद्‍भूत संपत्ति लाभ और वास्तविक संपत्ति लाभ कह सकते हैं। इसके अलावा, हमारी दो अतिरिक्त अवधारणाएं हो सकती हैं, जो भुनाया गया एवं  पुनर्निवेश नहीं किया गया संपत्ति लाभ, तथा भुनाया गया एवं पुनर्निवेशित संपत्ति लाभ हैं। ये दो प्रकार के वास्तविक पूंजी (संपत्ति) लाभ हैं।

'भुनाया गया' शब्द के उपयोग की अभिप्रेरणा से यह स्पष्ट नहीं होता है कि यदि किसी संपत्ति को लाभ पर बेचा गया हो, लेकिन उससे प्राप्त आय का उपयोग उपभोग के लिए नहीं किया गया हो, तो वास्तविक लाभ के लेबल का उपयोग करना उचित होगा या नहीं। यह सही है कि लाभ को भुना लिया गया है, पर किन स्थितियों में उन्हें भुनाया गया लाभ3 कहा जा सकता है। अब हम यहां प्रस्तावित कर कानूनों पर चर्चा कर सकते हैं।

प्रस्तावित कर कानून

कर कानूनों में कुछ व्यावहारिक विचार हो सकते हैं। यह मानने के कारण हैं कि संपत्ति लाभ कर के संदर्भ में लंबी अवधि के दृष्टिकोण से ये महत्वपूर्ण नहीं हैं। मैं निम्नलिखित के अनुसार, कर कानूनों के व्यावहारिक विचारों से अपना सार प्रस्तुत करता हूँ।

मेरा प्रस्ताव है कि संपत्ति लाभ कर केवल उन संपत्ति लाभ पर लागू किया जाए जिनका पुनर्निवेश नहीं किया गया है। मेरा तर्क सरल है। अन्य सभी मामलों में- जहां संपत्ति लाभ का पुनर्निवेश किया जाता है- वे केवल संपत्ति के पोर्टफोलियो में बदलाव के मामले हैं। यदि संपत्ति के पोर्टफोलियो में बदलाव के मामले में संपत्ति लाभ कर शून्य है, तो एक संपत्ति से दूसरी संपत्ति में स्थानांतरित करना आसान होता है। यह अंतरपणन (व्यापक रूप से परिभाषित) में सहायक होता है और इसके परिणामस्वरूप, परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता (सिंह, आगामी) को बनाए रखने में मदद करता है।

यह सच है कि उपरोक्त प्रस्तावित योजना संपत्ति लाभ कर से एकत्रित किये जाने वाले कर राजस्व में कमी को इंगित करती है। इस संदर्भ में, मेरा प्रस्ताव है कि भारत में संपत्ति कर को वापस लागू किया जाए। एकत्र किया गया संपत्ति कर, संपत्ति लाभ कर राजस्व में होने वाले के नुकसान की भरपाई इस प्रकार से कर सकता है कि प्रस्तावित योजना राजस्व- तटस्थ है।

हालांकि, यह तर्क दिया जा सकता है कि प्रस्तावित योजना निवेश और व्यापार को आसान बना सकती है, यह परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता के लिए बदतर हो सकती है क्योंकि निवेश और व्यापार विवेकहीन हो सकता है। वास्तव में, कम कर ऐसी विवेकहीन गतिविधि को प्रेरित कर सकते हैं। तथापि, गलत मूल्य-निर्धारण और अस्थिरता के बीच के अंतर को याद रखना महत्वपूर्ण है जो अतार्किकता या कर कानूनों के कारण बना रह सकता है। इसमें पूर्व (गलत मूल्य-निर्धारण) को कानूनी, नियामक और संस्थागत ढांचे में बदलाव के माध्यम से निपटाया जा सकता है जिसके तहत वित्तीय बाजार कार्य करते हैं (सिंह, आगामी)। अतः, हमें यहां गलत मूल्य-निर्धारण और अस्थिरता के बारे में चिंता करने की आवश्यकता है जो कर कानूनों के कारण बनी रहती है। इस संदर्भ में, ऊपर चर्चा किए गए नीतिगत सुझावों को संक्षेप में निम्नानुसार बताया जा सकता है:

  • ‘कर’ केवल भुनाए गए संपत्ति लाभ पर नहीं, बल्कि सभी प्रकार के प्रोद्‍भूत लाभ-सहित सभी संपत्ति लाभ पर लगाया जाता है।
  • सभी प्रकार के संपत्ति लाभ कर-योग्य हैं चाहे वे प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से किसी म्यूचुअल फंड जैसे वित्तीय मध्यस्थ के माध्यम से प्राप्त किए गए हों।
  • ‘कर’ सभी प्रकार के संपत्ति लाभ पर केवल एक बार लगता है।
  • यदि संपत्ति पर प्राप्त लाभ का पुनर्निवेश नहीं किया जाता है, तो उस पर संपत्ति लाभ कर के तहत कर लगता है।
  • यदि संपत्ति लाभ का पुनर्निवेश किया जाता है, तो उस लाभ को संपत्ति में शामिल किया जाता है, और इस स्थिति में संपत्ति कर लागू होता है।

भारत में वर्तमान में, शेयरों की बिक्री पर दीर्घकालिक संपत्ति लाभ कर की दर 10% है। अब जबकि सभी संपत्ति लाभ पर कर लगाने की मांग की गई है, प्रस्तावित कर कानूनों के तहत कर की दर कम हो सकती है। यह प्रचलित नीति व्यवस्था के मामले के विपरीत है जिसमें केवल कुछ संपत्ति लाभ पर कर लगाया जाता है; इसके तहत निवेशक को अर्जित लेकिन भुनाए नहीं गए संपत्ति लाभ पर बिल्कुल भी कर नहीं लगता है। इसके अलावा, और महत्वपूर्ण रूप से, प्रचलित कर कानूनों के तहत संपत्ति लाभ का कराधान अंतरपणन, और परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता के रास्ते में आ सकता है। प्रस्तावित नीति व्यवस्था के तहत ऐसा  नहीं है, जिसमें संपत्ति कर लाभ पर एक या दूसरे तरीके से कर लगाया जाता है ताकि एक संपत्ति पोर्टफोलियो को बनाए रखने या संपत्ति पोर्टफोलियो को बदलने का निर्णय कर- संबंधी मुद्दों की चिंता किए बिना किया जा सके।

समापन टिप्पणी

विनिधान दक्षता में एक नीति के रूप में ‘कर’ काफी जानी-पहचानी अवधारणा है। परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता में एक नीति के रूप में ‘कर’ बहुत कम परिचित है। यह महत्वपूर्ण है कि सरकार (और समीक्षक) वार्षिक बजट पर चर्चा करते समय न केवल तात्कालिक चिंताओं पर बल्कि राजकोषीय नीति में दीर्घकालिक मुद्दों पर भी विचार करें। इस तरह के दृष्टिकोण से ही वास्तविक प्रगति आ सकती है।

इस लेख में, मेरा सुझाव है कि संपत्ति कर को वापस लागू किया जाए। यह तथाकथित पूंजीगत लाभ कर और परिसंपत्ति-मूल्य स्थिरता के संदर्भ में है। हालांकि, भारत में संपत्ति कर पर अपने अधिकार में पुनर्विचार किया जा सकता है (संपत्ति कर का उपयोग पूंजीवादी देशों में भी किया जाता है)। लेकिन वह एक अलग कहानी है। जबकि मैं एक साधारण संपत्ति कर पर विचार करता हूं, इसमें ‘प्रगतिशील संपत्ति कर; को शामिल करने हेतु भी तर्क दिए जा सकते हैं, और इसमें कम से कम, संपत्ति की एक सीमा हो और इस सीमा के आगे संपत्ति कर लागू हो।

अंत में, भारत जैसे देश में, संपत्ति के पोर्टफोलियो में बदलाव के रास्ते में आने वाले कर कानूनों का मुद्दा संपत्ति-मूल्य स्थिरता से परे है। यह विकास अर्थशास्त्र के लिए भी मायने रखता है। भारत में वास्तविक संपत्तियों का बाजार बहुत बड़ा है और अक्सर यह महसूस किया गया है कि वित्तीय संपत्तियों की ओर तेजी से बदलाव की जरूरत है। लेकिन यह बदलाव अभी भी धीमा है। एक कारण कर कानून (और वास्तविक संपत्ति में संबंधित काले धन के मुद्दे) हैं। इस संदर्भ में भी कर कानूनों में बदलाव की जरूरत है। यह इस लेख में निर्धारित सामान्य सिद्धांत के आधार पर हो सकता है।

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टिप्पणियाँ:

  1. भविष्य में सरकार सभी इक्विटी निवेशों पर दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर पर 15% अधिभार लगाएगी, जिससे भारत में गैर-सूचीबद्ध कंपनियों को लाभ होने की उम्मीद है।
  2. एक लाख रुपये और उससे अधिक की राशि के एक वर्ष से अधिक अवधि के लिए किए गए इक्विटी निवेश पर मिलनेवाले मुनाफे पर सरकार 10% दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ कर वसूलती है। शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स पर 15% टैक्स लगता है। यह लेख शॉर्ट और लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन के बीच के अंतर को दर्शाता है।
  3. अंत में, जहां तक संपत्ति कर का संबंध है, मैं शब्दावली में किसी परिवर्तन का सुझाव नहीं दे रहा हूं।

लेखक परिचय: गुरबचन सिंह एक स्वतंत्र अर्थशास्त्री और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (आईएसआई), दिल्ली केंद्र में विज़िटिंग प्रोफेसर हैं।

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