सरकारी स्कूलों की खराब स्थिति और निजी स्कूलों की स्पष्ट दक्षता को देखते हुए, भारतीय माता-पिता द्वारा अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजना तेज़ी से बढ़ रहा है। यह आलेख 2005-2012 के दौरान 7-18 वर्ष की आयु के बच्चों के निजी स्कूल में नामांकन की जांच करता है और यहपाता है कि महिलाओं काएक व्यवस्थित और व्यापक नुकसान हुआ है।
यद्यपि भारतीय संविधान पुरुषों और महिलाओं के लिए समान अधिकारों की गारंटी देता है, परंतु जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव व्यापक रूप से जारी है। वर्ष 2014 तक, लैंगिक असमानता सूचकांक (जीआईआई) के मामले में भारत 188 देशों में 130वें स्थान पर है, तथा दक्षिण एशिया में केवल अफगानिस्तान ही उससे पीछे है। मातृ मृत्यु दर (एमएमआर) प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 190 है; संसद में लगभग केवल 12% सीटों पर महिलाएं काबिज हैं (महिलाओं का आरक्षण बिल भारतीय संसद में वर्ष 2014 से लंबित है); 25 वर्ष या उससे अधिक आयु की केवल 27% महिलाओं के पास कम से कम कुछ माध्यमिक शिक्षा है (पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 57% है); और 15 वर्ष या उससे अधिक आयु की महिलाओं की श्रम-बल भागीदारी दर 27% है (पुरुषों के लिए यह आंकड़ा 80% है)।
कुल आबादी का लगभग 50% हिस्सा रखने वाली महिलाओं के समावेशीकरण, सशक्तिकरण और योगदान के बिनाहम तीव्रता से आर्थिक विकास प्राप्त करने, या जलवायु परिवर्तन, प्रौद्योगिकी अपनाने, खाद्य सुरक्षा एवं संघर्ष जैसी वैश्विक चुनौतियों से प्रभावी ढंग से निपटने की उम्मीद नहीं कर सकते हैं। सभी सरकारों ने लगातार नीतियां बना कर महिलाओं की स्थिति को सुधारने करने का प्रयास किया है, इनमें से सबसे महत्वपूर्ण कदम हैं — ग्राम सभाओं में महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के लिए 73वां संविधान संशोधन तथा महिलाओं के मूल अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन।
शिक्षा महिलाओं को सशक्त बना सकती है, 'सभी के लिए शिक्षा' के लक्ष्य को प्राप्त करने के औचित्य को ध्यान में रखते हुएसतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) के इस अनिवार्य घटकको वर्ष 2030 तक प्राप्त किया जाना है। जबकि स्कूली शिक्षा में लड़कियों के साथ भेदभाव पर एक बड़ा साहित्य उपलब्ध है (उदाहरण के लिए देखें: महिलाओं के खिलाफ भेदभाव के उन्मूलन पर समिति (सीईडीएडबल्यू), (2012)) और इसका निवारण करने के तरीके (मेलर एवं लिशिग 2016), परंतु विशेष रूप से निजी स्कूली शिक्षा के लिए लड़कियों की पहुंच के बारे में हमें अभी भी ज्यादा कुछ ज्ञात नहीं है। यह हाल के वर्षों में भारत में (और वास्तव में दुनिया भर में) निजी स्कूली शिक्षा के तेजी से विकास को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण है, जिसमें शैक्षिक असमानता को आगे बढ़ाने की क्षमता है। जबकि प्रोबडेटा के एक हिस्से के रूप में 1996 में सर्वेक्षण किए गए लगभग 16% गांवों में निजी स्कूलों तक पहुंच थी, 2003 में यह आंकड़ा लगभग 28% हो गया (मुरलीधरन एवं क्रीमर 2006)। भारतीय मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) डेटाके अनुसार 2005 और 2012 में 7-18 वर्ष के क्रमश 24% और 31% बच्चे निजी स्कूलों में गए।
स्कूली शिक्षा में लैंगिक भेदभाव को कम करने के प्रयास के साथ-साथ हमारा ज्ञान निजी स्कूली शिक्षा में लिंग आधारित भेदभाव की प्रकृति और सीमा को अच्छी तरह समझे बिना अधूरा रहेगा। हाल के शोध में, हमने सामान्य रूप से निजी स्कूल में नामांकन की प्रकृति और निजी स्कूल में 7 से 18 वर्ष के बच्चों (मैत्र एवं अन्य 2016) के नामांकन में महिलाओं को हुए नुकसान की जांच की है।पूरे भारत में सरकारी स्कूलों की बिगड़ती स्थिति को देखते हुए, नीति-निर्माताओं द्वारा भारत में बुनियादी शिक्षा देने के लिए निजी क्षेत्र का दायरा तलाशने (टोले एवं डिक्सन 2003, टूलेटी 200) के लिए किए जा रहे प्रयास बढ़ रहे हैं। बढ़ते हुए बाजार अभिमुखीकरण ने निजी स्कूलों और शिक्षकों को बच्चों और माता-पिता के प्रति अधिक जवाबदेह बनाया है। मुरलीधरन (2014) का तर्क है कि निजी स्कूल लगभग एक-तिहाई लागत पर समान स्तर का आउटपुट देने में सक्षम हैं।
हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि निजी स्कूलों में यह वृद्धि स्कूली शिक्षा में लैंगिक अंतर को किस प्रकार प्रभावित करेगी। निजी स्कूली शिक्षा में शुल्क का भुगतान शामिल है, लेकिन यह अतिरिक्त प्रतिलाभ भी देती है। यदि निजी स्कूली शिक्षा (लागत का शुद्ध) का प्रतिलाभ महिलाओं के लिए कम है तो लिंग आधारित अंतर बना रह सकता है। तथापि, यह संभव है कि जो माता-पिता अपने बच्चों को निजी स्कूलों में भेजने का विकल्प चुनते हैं, वे मानव पूंजी निवेश के मामले में लड़कों और लड़कियों के साथ समान नजरिया रखने के साथ अधिक नि:स्वार्थ प्रकार का व्यवहार कर सकते हैं। इसके अलावा, निजी स्कूली शिक्षा के लाभ और लागत लड़कों और लड़कियों के लिए अलग-अलग रूप से बदल सकते हैं क्योंकि जब बच्चे प्राथमिक स्कूलों से माध्यमिक स्कूलों में जाते हैं तो स्कूल आते-जाते समय किशोरियों का यौन उत्पीड़न एक आम बात हो जाती है।
विश्लेषण
हम न केवल एक निश्चित समय में निजी स्कूल में नामांकन में लिंग-आधारित अंतर की सीमा का पता लगाने के लिए, बल्कि भारत में तेजी से सुधार और सतत आर्थिक वृद्धि के दौरान इसके विकास का पता लगाने के लिए भी आईएचडीएस डेटा के दो दौरों (2005 और 2012 में एकत्रित) का उपयोग करते हैं। हम एक बच्चे के लिंग, जन्म क्रम और आयु वर्ग के फलन के रूप में निजी स्कूल नामांकन का अनुमान लगाते हैं। भारत में बेटे के लिए अत्यधिक प्राथमिकता दिए जाने को देखते हुए, बच्चे का लिंग संभावित रूप से ‘अंतर्जात’ है, जिसका अर्थ है कि माता-पिता की समान अलक्षित विशेषताएं बच्चे के लिंग तथा घर में लड़कों एवं लड़कियों को शिक्षा के अवसरों के प्रावधान को प्रभावित कर सकते हैं। ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत में, बेटों के लिए अत्यधिक प्राथमिकता देने वाले माता-पिता तब तक संतान पैदा करना जारी रखते हैं जब तक वांछित संख्या में उन्हें बेटों की प्राप्ति न हो जाए (किशोर, 1993)। लिंग-चयनात्मक (झा एवं अन्य, 2011) गर्भपात की सुविधा (उदाहरण के लिए, स्कैनिंग तकनीक) की उपलब्धता (1980 के दशक से) ने इस स्थिति को और खराब कर दिया है। हमने एक ही घर के भीतर एक ही माता-पिता से पैदा हुए 7-18 वर्ष के बच्चों के बीच निजी स्कूल पसंद की भिन्नता का उपयोग करके इस संभावित पक्षपात का पता लगाने का प्रयास किया है। आकृति 1, डेटा की दोनों तरंगों के लिए, किसी भी नामांकन की शर्त पर, उम्र तथा लिंग के अनुसार औसत निजी स्कूल नामांकन को प्रस्तुत करती है। 2005-2012 की अवधि में लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए निजी स्कूल नामांकन दर में एक व्यवस्थित वृद्धि देखी गई: लड़कों के लिए निजी स्कूल नामांकन दर 27% से 36% और लड़कियों के लिए यह दर 23% से 29% तक बढ़ गई। तथापि, निजी स्कूल नामांकन में लिंग-आधारित अंतर 4.1% अंक (या 2005 में लड़कियों के लिए औसत निजी स्कूल नामांकन दर का 17.6%) से बढ़कर 6.7% अंक (या 2012 में लड़कियों के लिए औसत निजी स्कूल नामांकन दर का 23.3%) हो गया है। आयु समूहों में लैंगिक पक्षपात के पैटर्न में बदलाव है। 7-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए, लड़कों और लड़कियों के बीच निजी स्कूल में नामांकन का औसत अंतर 2005 में लगभग 5% अंक था और 2012 में यह बढ़कर 7.7% हो गया। 15-18 वर्ष की आयु के बच्चों का 2005 में निजी स्कूल नामांकन में कोई लैंगिक अंतर नहीं था, पर 2012 में यह अंतर बढ़कर 3.7 प्रतिशत अंक हो गया। 2012 में 15-18 वर्ष के बच्चों के लिए लिंग-आधारित अंतर सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण है, यह 7 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए काफी कम है, जो समझ सकते हैं। 15-18 वर्ष के बच्चों में महिलाओें के नुकसान को समझाने वाले संभावित कारक निम्नलिखित हैं:
(i) लड़के परिवार की कमाई में सहयोग देने के लिए स्कूलों से बाहर निकल जाते हैं; (ii) सड़क पर या स्कूल परिसर में लड़कों के अवांछनीय ध्यान से बचाने के लिए लड़कियों का निजी स्कूल में नामांकन बढ़ता है।
आकृति 1. उम्र, लिंग और सर्वेक्षण के वर्ष के अनुसार निजी स्कूल में नामांकन
आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:
Proportion in private school - निजी स्कूल में अनुपात; Boys – लड़के; Girls – लड़कियां
आकृति 2. सर्वेक्षण के दो दौर में विभिन्न उप-प्रतिदर्शों के लिए महिला को हुए नुकसान को प्रस्तुत करता है: आयु, व्यय चतुर्थक, जाति/धर्म, माता-पिता की शिक्षा, निवास का सेक्टर और निवास का क्षेत्र। जबकि, विभिन्न उप-नमूनों में काफी भिन्नता है (उदाहरण के लिए, लड़कियों के खिलाफ लैंगिक पक्षपात की सीमा उत्तर और उत्तर-पश्चिम में, अमीर घरों में और हिंदू घरों में अधिक है), लड़कियों के खिलाफ अहित सामान्य हैं। यह सुझाव देने के लिए कोई साक्ष्य नहीं है कि 2005-2012 की अवधि के दौरान देश में हुई आर्थिक वृद्धि और आय में वृद्धि के परिणामस्वरूप अधिक लैंगिक समानता आई है।
2005 में महिलाओं का औसत नुकसान लगभग 4% अंक था और यह 2012 में लगभग 6% अंक हो गया। वास्तव में, 2005 और 2012 दोनों वर्षों में समान परिवारों के देखे गए प्रतिदर्श से यह अनुमान लगता है कि इस अवधि में महिला नुकसान में कोई कमी नहीं आई है। हालांकि हम अलग-अलग, घरेलू और सामुदायिक विशेषताओं वाले उप-प्रतिदर्शों में महिला अहित की सीमा में कुछ भिन्नता पाते हैं, लेकिन महिला नुकसान न केवल बना रहता है, बल्कि अधिकांश मामलों में यह स्थिति और खराब हो जाती है। इस प्रकार, इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता है कि निजी स्कूली शिक्षा में महिला नुकसान वास्तविक है और होते जा रहा है। समय-समय पर उप-प्रतिदर्शों में इस प्रभाव के आकार में भिन्नता, प्राथमिकताओं की गैर-परोपकारी प्रकृति को उजागर करती है: जैसे-जैसे लड़के और लड़कियां बचपन से किशोरावस्था की ओर बढ़ते हैं तो माता-पिता आर्थिक और अन्य सामाजिक-सांस्कृतिक विचारों (जिनमें से कुछ सामाजिक मूल्यों से गहराई से जुड़े हुए हैं) को संतुलित करते हैं।
आकृति 2. निजी स्कूली शिक्षा में महिलाओं को हो रहा नुकसान (वर्ष 2005 एवं 2012)
टिप्पणी : ‘x' का अर्थ है कि संदर्भित उप-प्रतिदर्श के लिए लड़कों की तुलना में लड़कियां बहुत खराब नहीं हैं।
आकृति में प्रयुक्त अंग्रेज़ी शब्दों का अर्थ:
Non-eldest – सबसे छोटे; Q1/Q2/Q3/Q4 – पहला/दूसरा/तीसरा/चौथा क्वार्टर
High caste – उच्च जाती; SC/ST/OBC – एससी/एसटी/ओबीसी; Muslim – मुस्लिम; Christian – ईसाई; Other religion – अन्य धर्म
North – उत्तर; East – पूर्व; West – पश्चिम; South – दक्षिण
Father – पिता; Mother – माता; School high – अधिक शिक्षित; School low – कम शिक्षित
Rural - ग्रामीण; Urban – शहरी
नीतिगत परामर्श
लड़कियों के खिलाफ लैंगिक पक्षपात के मुद्दे को कोई किस प्रकार देखता है? परिवारों की प्राथमिकताओं की जड़ें अत्यधिक मजबूत होती हैं और कम अवधि में इन्हें बदलना मुश्किल होता है। हमें कई नीतिगत विकल्पों पर ध्यान देने की आवश्यकता है: लड़कियों के लिए सभी स्तरों पर स्कूली भागीदारी को प्रोत्साहित करना (उदाहरण के लिए, बांग्लादेश की तरह); लड़कियों की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए स्कूली पाठ्यक्रम को अनुकूल बनाना (उदाहरण के लिए, महिला शिक्षकों की भर्ती); लड़कियों के लिए घरेलू काम-काज के समयानुरूप स्कूल की समायावधि को समायोजित करना; स्थानीय रूप से स्कूलों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना तथा/या यदि कोई स्थानीय स्कूल उपलब्ध नहीं है तो स्कूल जाने-आने के लिए परिवहन साधन उपलब्ध कराना, विशेषकर माध्यमिक स्तर पर; और लड़कियों के लिए नौकरी के अवसरों की जानकारी उपलब्ध कराने का प्रावधान करना। ये कदम लड़कियों की स्कूली शिक्षा को प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकते हैं। लड़कियों को निजी स्कूलों में दाखिला दिलाने के लिए सकारात्मक कार्रवाई की नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करना भी जांच का एक विकल्प हो सकता है, और माता-पिता को अपनी बेटियों को निजी स्कूलों में भेजने के लिए प्रोत्साहित करने से (जैसे, वंचित पृष्ठभूमि की लड़कियों के लिए सार्वजनिक-वित्त पोषित सीट आरक्षण के माध्यम से और/या मेधावी लड़कियों के लिए छात्रवृत्ति) इस लैंगिक अंतर को कम करने में सहायता मिलेगी। शिक्षा के अधिकार (आरटीई) अधिनियम के खंड 12 की आवश्यकता है कि निजी स्कूल गरीब परिवारों से आने वाले छात्रों के लिए अपनी सीटों में से 25% आरक्षित करे। इन 25% बच्चे सरकार द्वारा वित्त पोषित किए जाएंगे। हमारे विश्लेषण में लड़कियों पर केंद्रित इस सकारात्मक कार्रवाई का विस्तार करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है।
लेखक परिचय:
पुष्कर मैत्रा, जो ऑस्ट्रेलिया स्थित मोनाश विश्वविद्यालय में प्रोफेसर है, के प्राथमिक अनुसंधान क्षेत्र विकास अर्थशास्त्र, जनसंख्या अर्थशास्त्र, प्रायोगिक अर्थशास्त्र और अप्लाइड इकोनोमेट्रिक्स हैं। प्रोफेसर सर्मिष्ठा पाल सर्रे विश्वविद्यालय में वित्तीय अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं और एक अप्लाइड अर्थशास्त्री हैं जो अर्थशास्त्र एवं वित्त से संबंधित मुद्दों पर काम करती हैं। अनुराग शर्मा स्वास्थ्य अर्थशास्त्र में सीनियर लेक्चरर हैं और स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ एंड कम्युनिटी मेडिसिन, न्यू साउथ वेल्स विश्वविद्यालय में सार्वजनिक स्वास्थ्य कार्यक्रमों के सह-निदेशक हैं।
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