मानव विकास

कोविड-19 और मानसिक स्वास्थ्य: "इन्फोडेमिक" से लड़ाई, एक समय में एक फोन कॉल

  • Blog Post Date 08 अक्टूबर, 2021
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Achyuta Adhvaryu

University of California, San Diego

aadhvaryu@ucsd.edu

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Sadish D

Gorman Consulting

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Anant Nyshadham

University of Michigan

nyshadha@umich.edu

भारत में कोविड-19 के बारे में जानकारी संप्रेषित करने की नीतियों में मुख्य रूप से टेक्स्ट संदेश और फोन कॉल की शुरुआत में रिकॉर्ड किए गए वॉयस मैसेज शामिल हैं। कर्नाटक में गारमेंट श्रमिकों के किये गए एक दूरस्थ सर्वेक्षण के आधार पर यह लेख दर्शाता है कि महामारी से संबंधित जानकारी देने के लिए फोन कॉल का उपयोग टेक्स्ट संदेश और वॉयस रिकॉर्डिंग के जरिये ज्ञान प्रदान करने जितना ही प्रभावी है- और साथ ही यह मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव भी डालता है।

गलत सूचना का प्रसार विशेष रूप से युद्धों, प्राकृतिक आपदाओं और सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी आपात स्थितियों जैसे संकट के समय में बहुत हानिकारक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोविड-19 महामारी के शुरुआती चरणों में इसे पहचाना और इस तथाकथित "इन्फोडेमिक" से निपटने के लिए कदम उठाए। चूँकि फर्जी खबरें तेजी से फैलती हैं (पेनीकूक 2018) और इन्हें पहचानना अधिक कठिन होता है (बद्रीनाथन 2020), गलत सूचना के फैलने का प्रभाव महामारी की शुरुआत में उसका सामना करने के लिए सबसे कठिन समस्याओं में से एक था।

वर्ष 2020 की शुरुआत में महामारी के शुरू होते ही, भारत ने कोविड-19 से संबंधित  सार्वजनिक सूचना के प्रसार के लिए हेल्पलाइन स्थापित करने से लेकर मशहूर हस्तियों के जरिये जागरूकता वीडियो जारी करने तक कई तरह के तरीकों की खोज की है। इनमें सरकार की कोविड-19 वेबसाइट पर सूचीबद्ध, एक ट्विटर पेज, एक व्हाट्सएप चैट बॉट और एक टेलीग्राम चैनल- जैसे बहुत सारे इंटरनेट आधारित चैनल हैं। रिकॉर्ड किए गए ध्वनि संदेशों का उपयोग जो स्वचालित रूप से फोन कॉल की शुरुआत में चलाया जाता था, सरकार का सबसे प्रमुख और शायद सबसे लंबे समय तक चलने वाला सूचना अभियान था जो इंटरनेट तक पहुंच से वंचित लोगों तक भी पहुँच सका था। हालांकि यह किसी अन्य अभियान की तुलना में अधिक से अधिक भारतीयों तक पहुंचा हो सकता है, लेकिन इसके लाभ किस प्रकार से मिले यह स्पष्ट नहीं हैं।

उपभोक्ता संघों ने इस बारे में सरकार से शिकायत की, और बॉलीवुड सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की आवाज वाले ऐसे ही एक अभियान के खिलाफ एक जनहित याचिका भी दायर की गई। इसे एक बाधा के रूप में देखा जाने लगा– यानि प्रति दिन 3 करोड़ मानव-घंटे की बर्बादी। इस अभियान की विषय-वस्तु कई महीनों तक बरक़रार रही और लोगों के पास इससे छुटकारा पाने का कोई विकल्प भी नहीं था, जिसके चलते आपातकालीन सेवाओं तक पहुँचने में देरी हुई। इसलिए, हालांकि यह लोगों को सूचित करने और उन्हें आश्वस्त करने के लिए एक साधन के रूप में तैयार किया गया था, हो सकता है कि यह कुछ हद तक अप्रभावी रहा हो, बजाय इसके कि यह संकट का कारण बने

कोई जानकारी यदि अत्यधिक जोखिम की तरफ ले जाती है, तो यह नकारात्मक दृष्टिकोण (केर्विन 2018) को प्रोत्साहित करती है और इसलिए, सामान्य रूप से मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित किसी भी सूचना अभियान के नकारात्मक प्रभावों पर विचार करने और उन्हें कम करने की आवश्यकता है। होम्स एवं अन्य (2020) उन स्वास्थ्य संदेश के बारे में तत्काल शोध का सुझाव देते हैं जो संकट पर अंकुश लगा सकते हैं।

कारखाने के प्रवासी श्रमिकों को COVID-19 से संबंधित गलत सूचना के बारे में हमारे अध्ययन में (सादीश एवं अन्य 2021), हम जांच करते हैं कि क्या कोविड-19 से संबंधित सूचना के वितरण के तरीके का उन लोगों के मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ता है जो इसे प्राप्त करते हैं। हम यह भी पता लगाते हैं कि मानसिक स्वास्थ्य पर कम से कम नकारात्मक प्रभाव डालने वाला कौन सा तरीका सबसे प्रभावी है जिसके जरिये जानकारी प्राप्त करने वालों को सूचित किया जा सकता है। 

हमारा अध्ययन 

काम के माहौल में एक बड़ी संख्या में दूसरे श्रमिकों साथ निकटता और सभी के द्वारा मिलकर मशीनरी और सामानों की हैंडलिंग किये जाने के कारण विनिर्माण उद्योगों में कार्यरत श्रमिकों को वायरस के तेजी से और बड़े पैमाने पर फैलने का विशेष रूप से खतरा था। लेकिन अक्सर, इस समूह में प्रवासी और कम आय वाले श्रमिक होते हैं, जिनकी पहुंच स्थिर इंटरनेट या सूचना के विश्वसनीय स्रोतों तक नहीं होती है, और साथ ही डिजिटल कौशल में उनका ज्ञान कम पाया गया। जाहिर है, इस वर्ग के बीच बिना किसी परेशानी के रोग-संबंधी जानकारी को प्रभावी रूप से संचारित करने का रास्ता खोजना सर्वोपरि था।

प्रवासी श्रमिकों के बीच फैलनेवाली गलत सूचना की समस्या को बेहतर ढंग से समझने के लिए, हमने जून 2020 की शुरुआत में एक कपड़ा निर्माण कंपनी के श्रमिकों के साथ गुणात्मक फोन साक्षात्कार आयोजित किए, जहां 40% से अधिक कार्यबल भारत में आंतरिक प्रवासी हैं। हमने भारत1 में कोविड-19 की महामारी के शुरुआती चरणों में जून और अगस्त 2020 के बीच अध्ययन किया। हमने देखा कि बीमारी के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कई स्रोतों तक पहुंच होने के बावजूद, कोविड -19 को नियंत्रित रखने और इसके फैलने से बचने से संबंधित दिशानिर्देशों के बारे में उन्हें बहुत कम जानकारी थी।

जानकारी के निम्न स्तर के कारणों को समझने का प्रयास करते हुए हम कुछ कारकों पर विचार करते हैं। यह संभव है कि सूचना के बार-बार थोपे जाने के परिणामस्वरूप हमारे नमूने में तृप्ति का स्तर आ गया हो, जिसके चलते वे जानकारी को याद रखने में असमर्थ थे। एक अन्य कारण अनिश्चितता के चलते उनके मानसिक स्वास्थ्य का स्तर कम होना भी हो सकता है। मन की चिंता संज्ञानात्मक कार्यों से जुड़ी है। मोरन (2016) के मेटा-विश्लेषण से पता चलता है कि चिंता लगातार रूप से खराब कामकाजी स्मृति से जुड़ी है। जिस हद तक मानसिक चिंता संज्ञानात्मक कार्यों में बाधा डालती है, वह खराब निर्णय का कारण भी बन सकती है। ज़ी एवं अन्य (2020) ने जाना कि कार्य में कम याददाश्त वाले व्यक्तियों द्वारा  कोविड-19 महामारी के दौरान शारीरिक दूरी के उपायों का पालन करने की संभावना कम थी।

हमारे अध्ययन में भाग लेने वाले 914 प्रवासी श्रमिक कर्नाटक के बेंगलुरु में एक बड़े गारमेंट कारखाने में काम कर रहे थे, या पहले काम कर चुके थे।

प्रारंभिक छानबीन की प्रक्रिया के दौरान हमने पाया कि लोगों के पास बड़े पैमाने पर गलत जानकारियां थीं और कोविड-19 कैसे फैलता है, इसके लक्षण, सावधानियां आदि के बारे में रुचि रखने वाले लोगों को उनकी स्थानीय भाषा में जानकारी का कोई विश्वसनीय स्रोत उपलब्ध नहीं था। अन्य बातों के अलावा, बहुत से लोग (30% से अधिक प्रतिभागी) इस बात से अनजान थे कि खांसी होना कोविड-19 का लक्षण था, या उनका मानना ​​था कि हल्दी (35%) या गोमूत्र (13%) का सेवन करने से इसे रोका जा सकता है।

मानसिक स्वास्थ्य और सूचना के स्तर को बेसलाइन और एंडलाइन पर मापा गया। हमने प्रसारित हुई कुछ सबसे प्रचलित गलत सूचनाओं की पहचान की और सूचना के आधारभूत स्तरों को मापा। मानसिक स्वास्थ्य संकेतक के लिए, अध्ययन में रोगी स्वास्थ्य प्रश्नावली -4 (पीएचक्यू-4) का उपयोग किया गया, जिसमें अवसाद पर दो प्रश्न (पीएचक्यू 2) और चिंता पर दो प्रश्न (जीएडी 2; सामान्यीकृत चिंता विकार) शामिल थे।

हस्तक्षेप

प्रतिभागियों को यादृच्छिक रूप से तीन समूहों में बांटा गया था, जिन्होंने तीन तरीकों- टेक्स्ट संदेश, रिकॉर्ड किए गए ध्वनि संदेश, या फोन कॉल2 में से एक के माध्यम से अपनी क्षेत्रीय भाषा में कोविड-19 के बारे में चिकित्सकीय रूप से अनुमोदित जानकारी प्राप्त की। प्रसारित जानकारी सभी मोड में एक-समान थी, जिसमें महामारी के सामान्य लक्षणों, उपलब्ध टीकों या दवाओं की कमी,विभिन्न देशों में लॉकडाउन के बारे में जानकारी और महामारी के सन्दर्भ में सबसे कमजोर समूहों के बारे में जानकारी शामिल थी। हमने यह सुनिश्चित किया कि जिस व्यक्ति ने रिकॉर्डेड वॉयस मैसेज बनाया था, फोन कॉल उसी व्यक्ति द्वारा किए जाए और यह कि सूचना भी उसी गति और दिन के समय पर पहुंचाई जाए। यह गति या उच्चारण में अंतर के चलते उपचार के तरीकों में धारणात्मक अंतर की वजह से होने वाले प्रभावों को कम करने के लिए महत्वपूर्ण था।

अध्ययन में प्रतिभागी रोलिंग आधार पर शामिल थे और इस प्रकार, हमने राउंड-वाइज रैंडमाइजेशन3 की एक प्रणाली का उपयोग किया। आधारभूत सर्वेक्षण के एक दिन बाद जानकारी दी गई थी, और जानकारी देने के 18 दिन बाद अंतिम सर्वेक्षण किया गया था।

सूचना वितरण के विभिन्न तरीकों के साथ जुड़ाव का स्तर

हम यह देखने में असमर्थ थे कि पाठ संदेश पढ़े गए थे या नहीं, लेकिन हमने पाया कि जिन प्रतिभागियों को फोन कॉल प्राप्त हुए, वे रिकॉर्ड किए गए ऑडियो संदेश प्राप्त करने वालों की तुलना में अधिक व्यस्त थे। सबसे पहले, फोन कॉल प्राप्त करने वाले दो-तिहाई प्रतिभागियों को, जिनको पहले से रिकॉर्ड किए गए ऑडियो संदेशों सौंपे गए थे उनके 40% विपरीत संपूर्ण संदेश दिया गया। जिन लोगों को फोन कॉल प्राप्त हुए वे भी फोन पर बाद वाले की तुलना में अधिक समय तक रहे। आगे, हालांकि दोनों मोड में संदेश को दोहराया जाने का विकल्प था, जिनको फोन कॉल को प्राप्त हुए उनके द्वारा इस विकल्प को चुनने की संभावना 12 प्रतिशत अंक अधिक थी।

ज्ञान के स्तर का विश्लेषण करने के लिए, हमने 15 द्विआधारी (बाइनरी) और त्रिगुट चर (टर्नरी वेरिएबल्स)4 का उपयोग करके एक 'सामान्यीकृत विश्वास सूचकांक' बनाया। हमने दो प्रतिगमन विनिर्देश चलाए। पहले विनिर्देश में, हमने गैर-फ़ोन कॉल मोड के विरुद्ध ज्ञान के स्तर और मानसिक स्वास्थ्य पर इन-पर्सन फोन कॉल के प्रभाव का परीक्षण किया। दूसरे विनिर्देश में, हमने फोन कॉल के प्रभावों को मॉडरेट करने के लिए उनकी शॉर्ट-टर्म मेमोरी, संख्यात्मकता और स्मार्टफोन के स्वामित्व का परीक्षण किया ताकि यह अनुमान लगाया जा सके कि इन चरों द्वारा कितना प्रभाव समझाया गया था।

यद्यपि फोन कॉल ज्ञान के स्तर में सुधार के लिए केवल न्यूनतम रूप से बेहतर थे, मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों के मामले में मोड स्पष्ट रूप में कामयाब होकर उभरा क्योंकि पीएचक्यू-4 स्कोर 16% कम था, जो यह दर्शाता है कि फोन कॉल प्राप्त करने के लिए शामिल किए गए लोगों में अवसाद और चिंता का स्तर कम रहा। चिंता के स्तर पर प्रभाव बड़ा पाया गया, क्योंकि फोन कॉल्स ने मध्यम से गंभीर चिंता को 28% तक कम कर दिया।

हालांकि, स्मार्टफोन के बिना प्रतिभागियों के ज्ञान स्तर पर फोन कॉल का बड़ा प्रभाव पाया गया। एंडलाइन पर उनके ज्ञान के स्तर में एक मानक विचलन5 के 18% की वृद्धि हुई।

विचार-विमर्श 

उभरते प्रमाण संकेत देते हैं कि कोविड-19 महामारी (सलारी एवं अन्य 2020) के दौरान तनाव, चिंता और अवसाद बढ़ता रहा है। इसलिए, सार्वजनिक सूचना अभियानों को डिजाइन करते समय, इसकी प्रभावशीलता के साथ-साथ जोखिम संचार के मानसिक स्वास्थ्य परिणामों पर विचार करना भी महत्वपूर्ण है। यह भारत जैसे देशों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक है, जहां एक बड़ी संख्या में प्रवासी श्रमिक और साथ ही साथ आकस्मिक श्रमिक भी हैं।

जिन लोगों की इंटरनेट तक पहुंच नहीं है उनके लिए लक्षित टेक्स्ट संदेश और पूर्व-रिकॉर्ड किए गए ऑडियो संदेशों का कोविड-19 सूचना अभियानों में बोलबाला रहा है। हालांकि, शोध ने इस बात को सिद्ध किया है कि संदेशों को तैयार करने के तरीके और उन्हें भेजे जाने के दिन के समय के बावजूद, टेक्स्ट संदेश हस्तक्षेप का व्यक्तियों के व्यवहार परिवर्तन पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है (बाहेती एवं अन्य 2021)।

भारत ने कोविड-19 पर अपने सबसे बड़े सूचना अभियानों के एक साधन के रूप में लंबे समय तक रिकॉर्ड किए गए वॉयस संदेशों का उपयोग किया। जबकि भारत में राज्य सरकारों और विभिन्न सरकारी निकायों ने महामारी के चरम के दौरान अस्पताल में भर्ती और ऑक्सीजन की आपूर्ति के समन्वय के लिए आपातकालीन हेल्पलाइन संचालित की, फोन कॉल का सक्रिय रूप से उपयोग गैर-आपातकालीन स्थितियों में सूचना अभियानों के लिए नहीं किया था। हमारे अध्ययन से पता चलता है कि लाइव फोन कॉल, जिनकी लागत टेक्स्ट मैसेज (औसतन यूएस $0.25) से कम होती है, विशेष रूप से स्केल6 पर वितरित किए जाने पर, कम से कम रिकॉर्ड किए गए संदेशों के समान और वो भी मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर परिणामों सहित प्रभावी ढंग से जानकारी को प्रसारित कर सकते हैं। ये परिणाम प्रवासियों और अन्य कम आय वाले श्रमिकों के लिए सामान्यीकरण योग्य हैं।

कोविड-19 महामारी के अप्रत्याशित स्वरूप और इसके परिणामी लॉकडाउन को देखते हुए, ये परिणाम प्रशिक्षित स्वयंसेवकों के जरिये फोन कॉल की मदद से अधिक प्रभावी और कम परेशान करने वाले बड़े पैमाने पर सार्वजनिक सूचना अभियान तैयार करने में उपयोगी हो सकते हैं, और इसे सामान्य रूप से संकट प्रबंधन की नीतियों में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण नीतिगत समाधान माना जाना चाहिए। 

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टिप्पणियाँ:

  1. श्रमिकों की औसत आयु 24 वर्ष थी और वे ओडिशा के प्रवासी थे, और उनमें से आधे से अधिक (57%) महिलाएं थीं।
  2. कोई शुद्ध 'नियंत्रण समूह' नहीं था क्योंकि इसमें महत्वपूर्ण जानकारी को छुपाना शामिल होगा और यह अनैतिक होगा। कार्यस्थल और छात्रावासों में सामाजिक दूरी के सख्त मानदंडों का पालन होने के कारण समूह के साथ बातचीत की संभावना नहीं के बराबर थी, और हमने सूचना तक पहुंच में वृद्धि की गणना उन लोगों के सन्दर्भ में की जिनके पास स्मार्टफोन सुविधा थी।
  3. हमने उपचार हेतु प्रतिभागियों को एक ही बार यादृच्छिक रूप में छोटे समूहों (या राउंड) में शामिल किया, और प्रति दिन एक राउंड रखा। इससे हमें आधारभूत सर्वेक्षण और सूचना वितरण के बीच समय-अंतराल को न्यूनतम और सुसंगत रखने हेतु सुविधा मिली।
  4. द्विआधारी चर (बाइनरी वेरिएबल्स) वे चर हैं जो दो मान लेते हैं और त्रिगुट चर (टर्नरी वेरिएबल्स) वे चर हैं जो तीन मान लेते हैं।
  5. मानक विचलन एक माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
  6. लाइव कॉल करने हेतु स्वयंसेवकों को भर्ती करने और वस्तुतः प्रशिक्षित करने के लिए बड़े विकेन्द्रीकृत ऑनलाइन बुनियादी ढांचे की स्थापना करके इसे प्रभावी ढंग से बढ़ाया जा सकता है। अन्य सरकारी कार्यक्रमों और स्थानीय निकायों के नेटवर्क के मौजूदा बुनियादी ढांचे का उपयोग करने से इसकी निश्चित लागत को कम करने में मदद मिल सकती है।

लेखक परिचय: अच्युत अध्वर्यु यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन में व्यावसायिक अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति के सहायक प्रोफेसर हैं। वरुण चाटी गुड बिजनेस लैब में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं | सदीश डी दक्षिण एशिया में फील्ड अनुसंधान में आठ साल के अनुभव के साथ गोर्मन कंसल्टिंग में शामिल हुए। सास्वती मिश्रा गुड बिजनेस लैब में सीनियर रिसर्च एसोसिएट हैं | अनंत न्याशधाम यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन  में सहायक प्रोफेसर हैं। निरुपमा वी गुड बिजनेस लैब में अनुसंधान संचार और विचार नेतृत्व पर काम कर रही एक विकास संचार पेशेवर हैं |

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