शासन

बिहार में स्वयं-सहायता समूहों के माध्यम से जोखिम साझा करने की सुविधा

  • Blog Post Date 21 सितंबर, 2023
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Anjini Kochar

International Initiative for Impact Evaluation (3ie)

anjinikochar@gmail.com

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Aprajit Mahajan

University of California, Berkeley

aprajit@berkeley.edu

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Vaishnavi Surendra

University of California, Berkeley

v.surendra@berkeley.edu

यह देखते हुए कि बिहार में स्वयं सहायता समूह (एसएचजी) कार्यक्रम से महिलाओं की कम ब्याज़-दर वाले ऋण तक पहुँच में सुधार हुआ है, इस लेख में उपभोग वृद्धि के गाँव-स्तरीय भिन्नता में अंतर की जांच करके इस बात का मूल्याँकन किया गया है कि क्या इससे जोखिम-साझाकरण में सुधार हुआ है। यह पाया गया कि जोखिम-साझाकरण में सुधार केवल उन ब्लॉकों में हुआ है, जहाँ एसएचजी पहले से ही बड़ी संख्या में मौजूद थे। इससे 'समुदाय कैडर' के रूप में इस कार्यक्रम की प्रशासनिक क्षमता का महत्व सामने आता है, जिसमें मौजूदा एसएचजी के सदस्यों की सक्रिय भूमिका है और वे नए समूहों के गठन के लिए ज़िम्मेदार भी हैं।

जोखिम-साझाकरण पर समूह बचत और उधार कार्यक्रम के प्रभाव को सैद्धांतिक और नीतिगत, दोनों दृष्टिकोणों से समझना एक महत्वपूर्ण विषय है। हमने अपने हालिया शोध (एटेनासिओ एवं अन्य 2023) में, बचत और उधार कार्यक्रमों यानी, परिवारों की जोखिम के प्रति संवेदनशीलता को कम करने में उनकी भूमिका के अक्सर नज़रअंदाज़ किए गए महत्त्व की पहचान की है। इस को शामिल करने से कार्यक्रम के लागत-लाभ अनुपात में महत्वपूर्ण बदलाव हो सकता है। नीतिगत दृष्टिकोण से, इस अध्ययन की सेटिंग से हमें ग्रामीण समुदायों में जोखिम-साझाकरण के स्वरूप को समझने और इसकी मौजूदा खामियों, जो पूर्ण जोखिम-साझाकरण को रोकती हैं, की पहचान करने में मदद मिलती है। अधिकांश अध्ययनों में क्षेत्र की सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं जैसे 'मांग' पक्ष के निर्धारकों की भूमिका पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जबकि हमारा शोध इस बात पर ज़ोर देता है कि नीति इन समूहों की गुणवत्ता, और साथ ही उनके बीमा मूल्य को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।

कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर क्रियान्वित करना

हम भारत के राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के एक भाग के रूप में, बिहार में स्थापित महिला स्वयं-सहायता समूह (एसएचजी) कार्यक्रम, ‘जीविका’, के प्रभाव का अध्ययन करते हैं। एक जीविका एसएचजी में 10 से 15 महिलाएं होती हैं जो एक गाँव के एक ही आवासीय भाग में रहती हैं। समूह का मुख्य कार्य प्रत्येक सदस्य से उसकी बचत राशि इकठ्ठा करना और उसका उपयोग अंतर-समूह ऋण के लिए करना है। इन आंतरिक निधियों को बाद में सरकारी अनुदान और बैंक उधार के माध्यम से बढ़ाया जाता है। एसएचजी ऋण पर प्रति माह लगाई जाने वाली 2% की ब्याज़ दर दूसरे अनौपचारिक उधार देने वालों द्वारा ली जाने वाली ब्याज़ दर से काफी कम है। कितना ऋण दिया जाए और किसे दिया जाए, यह निर्णय समूह के सदस्य लेते हैं। यह कार्यक्रम बड़े पैमाने पर संचालित होता है, जिसमें सभी गरीब महिलाओं के कवरेज को लक्षित किया जाता है। इस कार्यक्रम के लिए विभिन्न राज्यों में लक्षित परिवारों की परिभाषा अलग-अलग होती है। बिहार में, विशेष रूप से एक व्यापक परिभाषा अपनाई गई है जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 2021 तक 1 करोड़ 20 लाख परिवारों को शामिल किया गया है (2011 की जनगणना में ग्रामीण परिवारों की संख्या का 68%)।

कार्यक्रम को बड़े पैमाने पर लागू करने के लिए ब्लॉक स्तर पर बड़ी प्रशासनिक क्षमता की आवश्यकता होती है। अन्य बड़े पैमाने के कार्यक्रमों की तरह, एनआरएलएम में भी इसका समाधान राज्य के ब्लॉकों और गाँवों में चरणबद्ध तरीके से इसके दायरे को बढ़ाते हुए किया जाता है। इस प्रकार ‘जीविका’ योजना वर्ष 2006 में चरण-1 के ब्लॉकों में शुरू हुई और वर्ष 2012 में चरण-2 के ब्लॉकों में विस्तारित हो गई। प्रत्येक चरण में इस कार्यक्रम का कार्यान्वयन ब्लॉकों में पड़ने वाले ग्राम-पंचायतों1 में भी क्रमबद्ध किया गया है।

इसके अतिरिक्त, एनआरएलएम ने प्रशासनिक क्षमता के विकास को सुनिश्चित करने के लिए एक अभिनव पहल कीइस पहल के अंतर्गत विशेष रूप से वर्तमान एसएचजी सदस्यों के एक 'समुदाय कैडर' की नियुक्ति की गई, उन्हें बड़े पैमाने पर प्रशिक्षित किया गया और नए एसएचजी बनाने और उनके प्रदर्शन की निगरानी की ज़िम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। महिलाओं की आवाजाही संबंधी बाधाओं को ध्यान में रखते हुए, समुदाय कैडर के सदस्यों को मुख्य रूप से एक ब्लॉक के भीतर ही तैनात किया गया।

ब्लॉक-स्तरीय संगठन और विविधताएँ

हमारा विश्लेषण हॉफमैन एवं अन्य (2021) द्वारा कार्यक्रम के पूर्व क्लस्टरों के यादृच्छिक यानी रैंडमाइज़्ड मूल्याँकन पर आधारित है, जिसमें सात जिलों के 16 ब्लॉकों से ली गई पंचायतों को यादृच्छिक ढंग से ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ नमूनों में बाँटा गया था। ‘उपचारित’ या ट्रीटेड पंचायतों में, बेसलाइन सर्वेक्षण पूरा होने के बाद, जीविका कार्यक्रम वर्ष 2011 के अंत में शुरू किया गया था, जबकि  ‘नियंत्रण’ या कंट्रोल पंचायतों में इसका कार्यान्वयन वर्ष 2014 के अंत में एक ‘एंडलाइन सर्वेक्षण’ के बाद हुआ। हम पारिवारिक सर्वेक्षणों को नमूना एसएचजी के वर्ष 2019 के व्यापक अनुवर्ती सर्वेक्षण और सरकार की प्रबंधन सूचना प्रणाली (एमआईएस) संबंधी डेटा के साथ जोड़ते हैं जो एसएचजी के गठन और सदस्यता जैसी जानकारी उपलब्ध कराता है।

‘जीविका’ कार्यक्रम के पहले मूल्याँकन में पाया गया कि इस कार्यक्रम से कम ब्याज़-दर वाले ऋण तक पारिवारिक पहुँच में सुधार हुआ है और इसके परिणामस्वरूप अनौपचारिक बाजार ब्याज़ दरों में काफी कमी आई है (हॉफमैन एवं अन्य 2021)। इसके बावजूद, उपभोग और अन्य घरेलू परिणामों पर इसका प्रभाव कम था। इसका स्पष्टीकरण यह है कि विभिन्न ब्लॉकों में सामाजिक और कृषि संबंधी आर्थिक स्थितियों में काफी अंतर है। इन अंतरों के कारण कार्यक्रम का प्रभाव विभिन्न ब्लॉकों में काफी भिन्न हो सकता है, और अनुमानित औसत प्रभाव इस भिन्नता के कारण छिप जाता है।

महत्वपूर्ण बात यह है कि कार्यक्रम के पिछले अनुभव के संदर्भ में अध्ययन ब्लॉक भिन्न थे। कुछ ब्लॉक हमारे अध्ययन की शुरुआत से काफी पहले चरण-1 वाले सेट में थे, जिसका कार्यान्वयन वर्ष 2006 में शुरू हुआ था, जबकि बाकियों को कार्यक्रम के चरण-2 में शामिल किया गया था, जिसका कार्यान्वयन वर्ष 2012 में हमारे अध्ययन2 के साथ ही शुरू हुआ था। हालाँकि अध्ययन का नमूना उन पंचायतों से लिया गया था जिनमें कार्यान्वयन तब तक शुरू नहीं हुआ था, चरण-1 और चरण-2 के ब्लॉकों को शामिल करने से अध्ययन की शुरुआत में मौजूदा एसएचजी की संख्या में महत्वपूर्ण ब्लॉक-स्तरीय भिन्नता हुई। उदाहरण के लिए, वर्ष 2010 में चरण-1 के ब्लॉकों में प्रति 1,00,000 जनसंख्या पर 186 एसएचजी थे,  जबकि चरण-2 के ब्लॉकों में यह अनुपात प्रति 1,00,000 लोगों पर केवल 0.26 एसएचजी था।

ब्लॉक-स्तरीय सामुदायिक कैडर पर कार्यक्रम के प्रशासन की निर्भरता का मतलब था कि मौजूदा एसएचजी की संख्या में अंतर प्रशासनिक क्षमता में उल्लेखनीय अंतर दिखा रहा है। इससे एसएचजी की गुणवत्ता में, यहाँ तक कि एक ही समय में गठित एसएचजी की गुणवत्ता में भी, समान भिन्नता का पता चलता है। एसएचजी की गुणवत्ता में यह अंतर, बदले में जोखिम साझा करने की इसकी क्षमता को प्रभावित करता है। यह बिन्दु साहित्य में उठाया गया है जो समूह की जोखिम-साझाकरण और अनुबंधों को लागू करने की क्षमता के आपसी संबंध की पड़ताल करता है (लिगॉन एवं अन्य 2002, एलबैरन और एटेनासिओ 2003, अब्राहम और लैक्ज़ो 2018)। अच्छी तरह से काम करने वाले एसएचजी अधिक संसाधन जमा करते हैं और इस प्रकार से भविष्य में इंट्रा-ग्रुप ऋण देने के लिए अधिक वित्तीय संसाधनों का वादा करते हैं। यह अपेक्षित बढ़ा हुआ भविष्य मूल्य, सदस्यों को अपने वर्तमान अनुबंधात्मक दायित्वों का अनुपालन करने के लिए प्रोत्साहन देता है। इस के परिणामस्वरूप ऋण संबंधी गतिविधियाँ अधिक होती हैं और इसलिए वर्तमान अवधि में जोखिम-साझाकरण होता है।

शोध पद्धति

जोखिम-साझाकरण के अधिकांश अध्ययन इस निहितार्थ की जांच करते हैं कि सही जोखिम-साझाकरण होने पर, समूहों की कुल आय में परिवर्तन ‘नियंत्रित’ किए जाने पर व्यक्तिगत उपभोग आय-परिवर्तन के अज्ञात झटकों से अप्रभावित रहना चाहिए। हालाँकि, कई अन्य अध्ययनों की तरह हमारे अध्ययन में भी, आय-परिवर्तन के अज्ञात झटकों के बारे में विश्वसनीय डेटा उपलब्ध नहीं है। इसलिए हम एटेनासिओ और स्जैक्ली (2004) द्वारा प्रस्तावित जोखिम-साझाकरण का एक वैकल्पिक परीक्षण करते हैं, जो बदले में डीटन और पैक्ससन (1994) और एलबैरन और एटेनासिओ (2003) के काम पर आधारित है। इसमें विशेष रूप से, यह पूर्वानुमान दिया गया है कि मान्यताओं के एक सेट के तहत, सही जोखिम-साझाकरण व्यवस्था समूह के भीतर उपभोग वृद्धि में कोई भिन्नता नहीं दर्शाती है। इसी के अनुसार, क्या ‘उपचारित’ गाँवों में दो सर्वेक्षण अवधियों, 2011 और 2014 के बीच, उपभोग वृद्धि का ग्राम-स्तरीय अंतर कम है, इसकी जांच करके हम जोखिम-साझाकरण का परीक्षण करते हैं।

चरण-1 और चरण-2 के ब्लॉकों में ‘उपचार’ के प्रभावों को अलग-अलग करने से उनकी प्रशासनिक क्षमता में अंतर के साथ-साथ, आर्थिक स्थितियों में अंतर्निहित अंतर भी सामने आता है- चरण-2 (देर से शुरुआत वाले) ब्लॉक बिहार के कोसी क्षेत्र में स्थित हैं, जहाँ काफी अधिक गरीबी है। प्रशासनिक क्षमता के प्रभाव को आर्थिक स्थितियों से अलग रखने के लिए, अतिरिक्त प्रतिगमन यानी रिग्रेशन की विशिष्टताएं ‘उपचार’ के प्रभाव को अध्ययन की शुरुआत में पहले से मौजूद एसएचजी की संख्या और क्षेत्र (कोसी बनाम गैर-कोसी) के आधार पर भिन्न करने में हमारी मदद करती हैं।

जाँच के परिणाम

हम केवल चरण-1 (शुरुआत वाले) ब्लॉकों में जोखिम-साझाकरण पर कार्यक्रम का उल्लेखनीय प्रभाव पाते हैं। दोनों चरणों में कार्यक्रम की शुरुआत एक ही समय में होने के बावजूद, चरण-1 के ‘उपचारित’ गाँवों में चरण-2 के ब्लॉकों की तुलना में उपभोग वृद्धि में काफी कम भिन्नता पाई जाती है। आश्चर्यजनक रूप से हम पाते हैं कि यह अंतर पूरी तरह से उस ब्लॉक, जिसमें पंचायत स्थित है, में पहले से मौजूद एसएचजी की संख्या में अंतर से स्पष्ट होता है, न कि सामाजिक और कृषि संबंधी आर्थिक स्थितियों में अंतर्निहित अंतर से।

हम एसएचजी के वर्ष 2019 सर्वेक्षण के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, दर्शाते हैं कि चरण-1 और चरण-2 के ब्लॉक एसएचजी की सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं, जैसे आकार और सदस्यों की शिक्षा और जाति संरचना, के मामले में समान हैं। इस समानता के बावजूद, पंचसूत्र स्कोर3 द्वारा मापे जाने पर उनकी गुणवत्ता में काफी भिन्नता पाई गई। पंचसूत्र स्कोर एसएचजी कार्य प्रणाली का एक सूचकांक है जो उनको कार्य-निष्पादन के अपेक्षित मानदंडों के अनुसार ग्रेड करने के लिए पांच क्षेत्रों- बचत, उधार, समूह बैठकों में भागीदारी, ऋण पर डिफ़ॉल्ट, और बही खातों का रखरखाव- का उपयोग करता है। हमारे अध्ययन के संदर्भ में, ऋण गतिविधियों में अंतर विशेष रूप से महत्वपूर्ण हैं।

ऊपर वर्णित सैद्धांतिक साहित्य के आधार पर, हम इस साहित्य में ज़ोर दिए गए गुणवत्ता के माप का उपयोग करके जोखिम-साझाकरण के बारे में एसएचजी गुणवत्ता के प्रभाव की स्पष्ट रूप से जांच करते हैं, जो कि (भविष्य में) एसएचजी संसाधनों की अपेक्षित मात्रा है। हम एमआईएस डेटा का उपयोग करते हुए, वर्ष 2015 में (अध्ययन अवधि के अंत में) सभी ग्राम-स्तरीय एसएचजी की अपेक्षित बचत की गणना, उस समय गाँव में प्रत्येक एसएचजी की अपेक्षित बचत के योग के रूप में करते हैं। यह माप किसी गाँव में एसएचजी की संख्या और उनके गठन के वर्ष को दर्शाता है और इसलिए, एक गाँव के भीतर कार्यक्रम की वृद्धि की गति को दर्शाता है। अंततः यह ब्लॉक के भीतर कार्यक्रम की पहले से मौजूद प्रशासनिक क्षमता को दर्शाता है। हम दर्शाते हैं कि एसएचजी गुणवत्ता का यह माप, वास्तव में ब्लॉक में पहले से मौजूद एसएचजी की संख्या के साथ बढ़ता है और यह चरण-1 के ‘उपचारित’ गाँवों में खपत वृद्धि के अंतर में कमी का कारण बनता है।

निष्कर्ष और नीति निहितार्थ

जहाँ तक हमारी जानकारी है, हमारा यह अध्ययन इस इस संबंध को दर्ज करने वाला पहला अध्ययन है कि अच्छी तरह से काम करने वाले एसएचजी जोखिम साझा करने की सुविधा प्रदान करते हैं, यहाँ अच्छी तरह से काम करने पर ज़ोर दिया गया है। हमने पाया कि जोखिम-साझाकरण में सुधार केवल उन ब्लॉकों में हुआ है, जहाँ बड़ी संख्या में एसएचजी पहले से मौजूद थे। इस कार्यक्रम की एक अनूठी विशेषता जो प्रशासनिक क्षमता को पहले से मौजूद एसएचजी की संख्या से जोड़ती है, इस परिणाम को एक आधार प्रदान करती है। हम दर्शाते हैं कि एसएचजी की संख्या में अंतर प्रारंभिक-जोखिम चरण-1 ब्लॉकों में जोखिम लेने पर ‘उपचार’ के अधिक प्रभाव के कारण है। हम अपने परिणामों का विस्तार करते हुए पाते हैं कि यह अंतर ग्राम एसएचजी द्वारा वित्तीय संसाधनों की वृद्धि में भिन्नता का कारण भी है, और भविष्य में अधिक संसाधन प्राप्त होने की उम्मीद से जोखिम साझाकरण में सुविधा होती है।

हमारे शोध में नीति के लिए पक्के निहितार्थ मौजूद हैं। विशेष रूप से, यह किसी भी कार्यक्रम की सफलता के लिए प्रशासनिक क्षमता के महत्व पर ज़ोर देता है और दर्शाता है कि क्षमता में भिन्नता कार्यक्रम की प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित करती है। एनआरएलएम में, कार्यक्रम के शुरुआती चरणों में गठित एसएचजी, उसी ब्लॉक में अगले चरणों वाली पंचायतों में विस्तार के लिए कर्मी उपलब्ध कराते हैं। हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि चरण-1 के ब्लॉकों में देर से प्रवेश करने वाली पंचायतों को इस नीति से काफी लाभ हुआ, जबकि चरण-2 के ब्लॉकों में एसएचजी का खराब प्रदर्शन इस तरह के लाभ के न मिलने को  दर्शाता है।

टिप्पणियाँ:

  1. ग्राम पंचायतें 2-4 गाँवों के वो समूह हैं जो प्रत्येक राज्य के स्थानीय सरकारी संस्थान के विकेंद्रीकृत पदानुक्रम में सबसे निचले पायदान पर हैं।
  2. ‘जीविका’ कार्यक्रम के चरण-1 के ब्लॉकों में, कार्यक्रम कुछ पंचायतों में शुरू हो गया था, लेकिन ‘अनुपचारित’ पंचायतों के नमूने में नहीं। फिर इस अध्ययन के प्रयोजनों के लिए, विश्व बैंक की टीम ने इन ब्लॉकों में कवर न की गई पंचायतों तक पहुँच निर्धारित करने के लिए ‘जीविका’ के साथ काम किया। शेष पंचायतों को यादृच्छिक रूप से ‘उपचार’ और ‘नियंत्रण’ समूह में शामिल किया गया था। फलस्वरूप, जीविका का संचालन इन ‘उपचारित’ पंचायतों में ही होने लगा।
  3. एसएचजी के पंचसूत्र स्कोर का उपयोग उनकी गुणवत्ता को मापने के लिए कार्यक्रम के भीतर आंतरिक रूप से किया जाता है। वर्ष 2019 के सर्वेक्षण ने कार्यक्रम द्वारा उपयोग किए गए समान परिणाम चर और परिभाषा का उपयोग करके प्रत्येक एसएचजी के लिए स्वतंत्र रूप से इस स्कोर का निर्माण किया।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : ओराज़ियो एटेनासिओ येल विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के काउल्स प्रोफेसर हैं। अंजिनी कोचर इंटरनेशनल इनिशिएटिव फॉर इम्पैक्ट इवैल्यूएशन (3आईई) में सीनियर रिसर्च फेलो हैं। अपराजित महाजन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में कृषि और संसाधन अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। वैष्णवी सुरेंद्र कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, बर्कले में पोस्टडॉक्टरल विद्वान हैं।

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