कृषि

भारत में सिंचाई और स्थानीय आर्थिक विकास के स्थान आधारित पैटर्न

  • Blog Post Date 21 अप्रैल, 2023
  • लेख
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David Blakeslee

New York University, Abu Dhabi

dsb12@nyu.edu

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Aaditya Dar

Indian School of Business

aadityadar@gmail.com

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Ram Fishman

Tel Aviv University

ramf@post.tau.ac.il

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Samreen Malik

New York University, Abu Dhabi

sm4429@nyu.edu

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Heitor Pellegrina

New York University, Abu Dhabi

hp41@nyu.edu

भारत की सिंचाई परियोजनाओं का उद्देश्य कृषि की उत्पादकता और ग्रामीण विकास को बढ़ावा देना है। इस लेख में ब्लेकस्ली एवं अन्य द्वारा स्थानीय आर्थिक गतिविधियों की संरचना में सिंचाई उपलब्ध होने के दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन किया गया है। वे पाते हैं  कि कृषि उत्पादकता, जनसंख्या घनत्व और आर्थिक विकास के अन्य सूचकों में वृद्धि होने के कारण सिंचाई उपलब्ध होने का ग्रामीण क्षेत्रों में सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। लेकिन सिंचित शहरी क्षेत्रों पर इसका उल्टा प्रभाव पड़ता है जहां गैर-कृषि आर्थिक गतिविधियों में गिरावट दिखती है।

सतही जल का सिंचाई के लिए उपयोग लंबे समय से उन सबसे प्रमुख रूपों में से एक रहा है जिनके माध्यम से सरकारों ने व्यापक ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने के लिए प्राकृतिक संसाधनों का दोहन करने और कृषि की उत्पादकता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है। कृषि उत्पादन और गरीबी पर सिंचाई के बुनियादी ढांचों के प्रभावों का विश्लेषण (डुफ्लो और पांडे (2007) के प्राथमिक कार्य से शुरू करके) कई अध्ययनों में किया गया है। तथापि यह स्पष्ट नहीं हो सका है कि लंबे समय में ऐसी रणनीति से गैर-कृषि स्थानीय विकास, कंपनियों के निर्माण तथा कृषि से गैर-कृषि गतिविधियों की दिशा में श्रमिकों के पुनः आबंटन को बढ़ावा मिलता है या इसके विपरीत, इससे प्राकृतिक संसाधनों और कृषि में विशेषज्ञता पर स्थानीय निर्भरता अधिक गहरी और स्थायी हो जाती है।

हमने भारत की स्थानीय आर्थिक गतिविधियों की संरचना पर सिंचाई में सुधार के दीर्घकालिक प्रभावों का अध्ययन (ब्लैकस्ली और अन्य 2022) किया है और पाया है कि इनसे देश के हर पांच गांवों और कस्बों में से दो प्रभावित हुए हैं। हमने गाँव और कस्बे के स्तर पर उच्च-रिज़ॉल्यूशन वाला डेटासेट बनाने के लिए सिंचाई की बुनियादी व्यवस्था से लाभान्वित होने वाले स्थानों के बारे में कई प्रशासनिक स्रोतों से प्राप्त भू-संदर्भित जानकारी को एकीकृत किया है। इसमें जनसांख्यिकीय और आर्थिक जनगणना के आँकड़ों, MODIS संवर्धित वनस्पति सूचकांक1 से प्राप्त शुष्क मौसम की फसलों के उपग्रह आधारित अवलोकनों, (भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन के सौजन्य से) रिमोट सेंसिंग से प्राप्त भूमि उपयोग और भूमि आच्छादन वर्गीकरण के सूचकों, और राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन (एनओएए)  के राष्ट्रीय भूभौतिकीय डेटा केंद्र के प्रतिरक्षा मौसम विज्ञान कार्यक्रम के रात्रिकालीन प्रकाशों के डेटा शामिल हैं।

हमारा अध्ययन

इन सिंचाई परियोजनाओं के कारक प्रभावों की जानकारी प्राप्त करने के लिए हमलोगों ने समान भौगोलिक विशेषताओं वाली ऐसी बसाहटों की तुलना की है जो आसपास में लेकिन परियोजना की सीमाओं के विपरीत दिशा में स्थित हों। हमलोगों ने सीमा के 10 किलोमीटर के भीतर आने वाले गांवों और कस्बों पर विचार किया है (इस बफर क्षेत्र के 2 से 30 किलोमीटर तक के लिए हमारे परिणाम ठोस हैं)। हमारा दृष्टिकोण किसी स्थान आधारित अनिरंतरता वाली डिजाइन की भावना के समान है – इसकी मुख्य धारणा यह है कि हमने जिन आर्थिक परिणामों का अध्ययन किया है उनको प्रभावित कर सकने वाली भौगोलिक विशेषताओं और आर्थिक विकास के प्रारंभिक स्तर जैसे जटिल कारकों की सीमा पर निरंतरता रही है।

किसी की यह भी सोच हो सकती है कि परियोजना क्षेत्र के ठीक अंदर के स्थान सिंचाई व्यवस्था के आने से पहले व्यवस्थित रूप से ठीक बाहर के स्थानों से भिन्न हो सकते हैं। हमने इस परिकल्पना का परीक्षण जनगणना दौर (1991) के आंकड़ों का उपयोग करके किया है जो सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जनगणना के सबसे प्रारंभिक आंकड़े हैं। इन प्लेसबो रिग्रेशन के परिणाम दर्शाते हैं कि सीमा के दोनों ओर के स्थान नहर निर्माण के पहले समृद्धि और विकास के अनेक आर्थिक सूचकों के लिहाज से एक-समान थे। दूसरे शब्दों में, हमारे अध्ययन के नमूने में कमांड क्षेत्र की सीमाओं में सिंचाई की उपलब्धता ही बाहरी कारक के रूप में मौजूद है।

हमलोगों ने तीन प्रकार की इकाइयों – गाँव, छोटे शहर और विविध स्थानों वाले क्षेत्र – के लिए अलग-अलग विश्लेषण किया है। यह विकल्प उस तथ्य द्वारा निर्देशित है जो दर्शाता है कि सिंचाई का प्रभाव उस क्षेत्र के प्रकार पर स्पष्ट रूप से निर्भर करता है जिन पर कृषि की उत्पादकता का सकारात्मक और स्थायी आघात होता है :

(i) गांवों (वे ग्रामीण स्थान जहाँ मुख्य रूप से कृषि की जाती है) में लंबे समय में आबादी असिंचित गांवों की अपेक्षा बढ़ जाती है। इसलिए कि स्थानीय स्तर पर मजदूरी बढ़ जाने से श्रमिकों का बाहर के स्थानों पर जाना कम हो जाता है।

(ii) छोटे शहरों (विशेष रूप से विनिर्माण वाले शहरी स्थानों) में उसी आघात से विनिर्माण क्षेत्र में उत्पादकता वृद्धि कम हो जाती है जिससे लंबे समय में अप्रभावित शहरों की अपेक्षा आबादी और वास्तविक मजदूरी घट जाती है।

(iii) मॉडल में अनुमान लगाया गया है कि विविध स्थानों (अर्थात छोटे शहरों और गांवों, दोनों) वाले क्षेत्रों में बड़े पैमाने के गैर-कृषि उत्पादन पर समग्रता में स्थानीय प्रभाव नकारात्मक होंगे। लेकिन जनसंख्या पर शुद्ध प्रभाव इस बात पर निर्भर करेगा कि शहरी स्थान से जितने श्रमिक कार्यमुक्त होते हैं उसकी तुलना में अधिक श्रमिकों को गाँवों में काम मिलता है या नहीं।

ग्रामीण और शहरी स्थानों पर सिंचाई के प्रभावों की अलग-अलग जांच करने के लिए सैद्धांतिक प्रेरणा के अतिरिक्त, हमलोगों ने अनुभव के आधार पर पुष्टि की है कि शहर और गांव एक-दूसरे से उल्लेखनीय रूप से भिन्न हैं। गाँवों की तुलना में छोटे शहर क्षेत्रफल में बड़े हैं, अधिक घनी आबादी वाले हैं, और वहां की अर्थव्यवस्थाएँ गैर-कृषि उत्पादन और व्यापार की ओर उन्मुख हैं। हमलोगों ने यह भी दर्शाया है कि हमारे अध्ययन के नमूने के ‘ट्रीटमेंट’ और ‘कंट्रॉल’ वाले क्षेत्रों के शहरों में शहर निर्माण पर सिंचाई का कोई अलग तरह का प्रभाव नहीं पड़ता है। शहरों के अंतर्जात निर्माण के बारे में कोई सबूत तो नहीं है लेकिन यह दर्शाने के लिए हमलोगों ने अतिरिक्त जांच की है कि हमारे मुख्य परिणाम इस निष्कर्ष के किसी भी संभावित उल्लंघन का मुकाबला करने के लिहाज से ठोस हैं।

मुख्य शोध परिणाम

हमने सबसे पहले इस बात को दर्ज किया है कि सिंचाई का ग्रामीण गांवों में कृषि उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जिससे वहां उन मौसमों में भी फसल उत्पादन का विस्तार किया जा सका जिनमें यह पहले लाभप्रद नहीं था। हमने यह भी दर्शाया है कि इन क्षेत्रों में जनसंख्या घनत्व और आर्थिक विकास के सूचकों (संपत्ति और रात्रिकालीन प्रकाश) में वृद्धि हुई है। अनुमानित प्रभावों के परिमाण - गाँव के जनसंख्या घनत्व में 6.1%, प्रकाश के घनत्व में 6.5%, और निर्मित क्षेत्र में 3.5% की वृद्धि हुई है जो उपलब्ध साहित्य में दर्ज प्रभावों के अनुरूप हैं (समीक्षा के लिए डिल्लन और फिशमैन (2019) देखें)।

लेकिन सिंचित छोटे शहरों की तुलना वैसे ही पड़ोसी असिंचित छोटे शहरों से करने पर, हमें गाँवों में देखे गए प्रभावों के विपरीत प्रभाव दिखे। हमने पाया कि सिंचित छोटे शहरों के जनसंख्या घनत्व में 30.8%, प्रकाश के घनत्व में 26.1% और निर्मित क्षेत्र में 26.8% की कमी आई है। और महत्वपूर्ण बात यह है कि छोटे शहरों में विनिर्माण गतिविधियों के पैमाने और बड़ी फर्मों की उपस्थिति में भी काफी कमी दिखी और श्रमिक भी गैर-कृषि रोजगार से दूसरे क्षेत्र में चले गए।

छोटे शहरों और गांवों के प्रभावों में इस विषमता से यह सवाल उठता है कि कृषि उत्पादकता के आघातों का स्थानीय स्तर पर समग्रता में क्या प्रभाव पड़ता है। हमारा मॉडल दर्शाता है कि कुल जनसंख्या पर प्रभाव इस पर निर्भर करेगा कि छोटे शहरों और गांवों का क्या अनुपात है और श्रमिकों की गतिशीलता में किस हद तक अवरोध आया है। हमनें अनुभव के आधार पर परिणामों को दो तरीकों से समूहित करके इसका अनुमान लगाया है। एक तो हमने किसी शहर और उसके आसपास के 10 किलोमीटर के भीतरी इलाकों को भौगोलिक सेल के रूप में परिभाषित किया है; और दूसरा, हमने कमांड क्षेत्र की सीमा के दोनों ओर के 10 वर्ग किलोमीटर सेल का उपयोग किया है। हमने पाया कि कुल मिलाकर कमांड क्षेत्र में जनसंख्या घनत्व, फर्म में रोजगार, और विनिर्माण में रोजगार बढ़ता है, लेकिन बड़ी फर्मों में रोजगार में कोई बदलाव नहीं होता है। लेकिन अगर कोई शहर मौजूद हो, तो इन सभी परिणामों में काफी गिरावट नजर आई है जो दर्शाता है कि छोटे शहरों में होने वाले नुकसानों की भरपाई आसपास के गांवों को हुए लाभों से नहीं होती है।

इस बात पर जोर देना बहुत जरूरी है कि हमारे अनुमान चाहे गांव के स्तर पर हों या छोटे शहर अथवा सेल के स्तर पर, उनमें सिंचाई से हुई कृषि उत्पादकता में वृद्धि में स्थानीय आर्थिक प्रभावों को शामिल किया गया है। सिंचाई के व्यापक प्रसार का समग्र ढांचागत रूपांतरण में संभावित तेजी या मंदी सहित सामान्यतः देशव्यापी संतुलनकारी प्रभाव भी पड़ा है लेकिन हमारे दृष्टिकोण के उपयोग से ये कारणात्मक अनुमान नहीं बन जाते हैं। हमने स्थानीय प्रभावों का जो अनुमान लगाया है वे इसी पृष्ठभूमि में हैं और इसके अतिरिक्त हैं।

निष्कर्ष

सारांश रूप में, हमने पाया है कि सिंचाई के विस्तार से होने वाले स्थानीय कृषि उत्पादकता संबंधी लाभों से ग्रामीण किसानों को काफी लाभ हो सकते हैं, लेकिन वे अपेक्षाकृत अधिक शहरीकृत क्षेत्रों में स्थानीय गैर-कृषि आर्थिक गतिविधि को संभवतः बाधित भी कर सकते हैं। यह फोस्टर और रोजेंज़वीग (2004) के निष्कर्षों के अनुरूप है। हमने इस बात के साक्ष्य प्रस्तुत किए हैं कि कृषि उत्पादकता के इन आघातों से कृषि की स्थान आधारित व्यवस्था बदली है जिसके समग्र कल्याण के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ संभावित हैं।

(अनुवाद: राज भल्लभ)

टिप्पणी :

  1. MODIS संवर्धित वनस्पति सूचकांक (EVI) बंजर क्षेत्रों को इंगित करते हुए EVI के निम्न मानों के साथ पौधों की वृद्धि के घनत्व को दर्शाता है।

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