भारत में वायु प्रदूषण और इसके कारण स्वास्थ्य पर होने वाले अत्यंत रूप से चौकाने वाले दुष्प्रभावों में कमी लाने के लिए खाना पकाने और अन्य घरेलू कार्यों के लिए लकड़ी और अन्य ठोस इंधनों का उपयोग रोकना बहुत जरूरी है। वर्ष 2016 में सरकार ने उज्ज्वला योजना की घोषणा की थी जिसमें गरीब परिवारों को एलपीजी कनेक्शन लेते वक्त होने वाले शुरुआती खर्च को पूरा करने में मदद की जाती है। इस पोस्ट में सागर और त्रिपाठी ने, यह सुनिश्चित करने के लिए कि गरीब परिवार एलपीजी का उपयोग करना जारी रखें, उज्ज्वला 2.0 की रचना करने के लिए सुझाव दिए हैं।
खाना पकाने और अन्य घरेलू कार्यों के लिए लकड़ी और अन्य ठोस इंधनों का उपयोग रोकना वह अकेला सबसे जरूरी कदम है जिसे हमें भारत में वायु प्रदूषण और इससे स्वास्थ्य पर होने वाले भारी दुष्प्रभावों में कमी लाने के लिए उठाने की जरूरत है। खुद परिवारों पर तो इसके दुष्प्रभाव होते ही हैं, यह देश में घर के बाहर सूक्ष्म कणों से होने वाले प्रदूषण में 25-30% के लिए भी जिम्मेवार है। इसके कारण स्वास्थ्य संबंधी भारी कीमत चुकानी पड़ती है जैसे परिवारों के इस से सीधा संपर्क में आने के कारण लगभग सालाना 4,80,000 लोगों की समय से पहले मौत हो जाती है, और कुछ 2,70,000 लोग घर के बाहर ‘अप्रत्यक्ष’ रूप से संपर्क में आने के कारण मरते हैं। इसका अहम कारण लकड़ी, गोबर, और फसलों के अवशेष को ईंधन के रूप में प्रयोग करके खाना पकाने को माना जा सकता है। अतः चूल्हों में ठोस इंधनों के उपयोग में प्रभावी ढंग से कमी लाने के किसी भी सरकारी प्रयास को प्रदूषण नियंत्रण और लोक स्वास्थ्य संबंधी महत्वपूर्ण पहल माना जा सकता है।
मई 2016 में शुरू की गई प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना (अब से उज्ज्वला) गरीबों को खाना बनाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा उपलब्ध कराने की दुनिया की सबसे बड़ी योजना है। इस योजना के तहत सामाजिक-आर्थिक एवं जाति जनगणना (एसईसीसी) की सूची में शामिल हर उपयुक्त परिवार को किसी तेल विपणन कंपनी से एलपीजी (तरल पेट्रॉलियम गैस) का कनेक्शन लेने के लिए 1,600 रु. की वित्तीय सहायता उपलब्ध कराई गयी थी। 5 करोड़ परिवारों को यह योजना प्राप्त कराने के लिए आरंभ में बजट में 80 अरब रु. का प्रावधान किया गया था। इस शुरुआती लक्ष्य प्राप्ति के बाद सरकार ने 2020 तक हासिल करने के लिए लक्ष्य को संशोधित करके 8 करोड़ कर दिया है।
हालांकि सरकार गरीबों को एलपीजी कनेक्शन उपलब्ध कराने के अपने महत्वाकांक्षी प्रयास में सफल रही है, लेकिन एलपीजी सिलिंडरों के लगातार उपयोग का खर्च वहन कर पाने की लाभार्थियों की अक्षमता चिंता की बात बनी हुई है।
गरीब परिवारों द्वारा एलपीजी प्राप्त कर पाने में तीन मुख्य बाधाएं हैं: एलपीजी वितरण नेटवर्कों द्वारा कराई जाने वाली उपलब्धता, महंगा शुरुआती खर्च और सिलिंडर भरवाने का ऊंचा भुगतान कर पाने की क्षमता, और एलपीजी के उपयोग के प्रभाव के बारे में जागरूकता। उज्ज्वला योजना मुख्य रूप से उपलब्धता बढ़ाने और आंशिक रूप से शुरुआती खर्च कम कराने में मदद करती है ताकि इसके तहत नया कनेक्शन लेना किफायती और सुविधाजनक हो सके। हालांकि उपलब्धता एलपीजी के नियमित उपयोग की दिशा में महज पहला कदम है – यह उपयोग को बढ़ावा देने के लिए आवश्यक तो है लेकिन पर्याप्त नहीं। गरीब परिवारों द्वारा एलपीजी का लगातार उपयोग सुनिश्चित करने के लिए अतिरिक्त हस्तक्षेप की जरूरत है – जैसे उज्ज्वला 2.0।
खर्च कर पाने की क्षमता का मुद्दा गरीब समुदायों के लिए खास तौर पर महत्वपूर्ण है क्योंकि उन्हें मुफ्त इंधन (लकड़ी, गोबर, फसलों के अपशिष्ट) आसानी से उपलब्ध होते हैं और जब एलपीजी की कीमत उनके बजट के ऊपर जाएगी तब वे दुबारा उसका ही उपयोग करने लगेंगे। लेकिन इस मुद्दे के समाधान के लिए सरकार को गरीबों की जेब के अनुकूल खर्च पर एलपीजी उपलब्ध कराने और अपनी बजट संबंधी बाधाओं के बीच संतुलन बनाने की जरूरत पड़ेगी। यह दूसरी बात खास तौर पर चिंताजनक है क्योंकि देश की ज़रूरत के एलपीजी का 50 प्रतिशत से भी अधिक हिस्से की पूर्ति आयात के जरिए होती है। इसलिए कोई ऐसा समाधान ढूंढना होगा जिससे सरकार पर वित्तीय बोझ बढ़ाए बिना गरीबों को उनकी क्रय क्षमता की सीमा में एलपीजी उपलब्ध कराया जा सके।
सभी एलपीजी उपभोक्ताओं के लिए सब्सिडी का प्रावधान होने से सब्सिडी की दर कम हो जाती है क्योंकि सब्सिडी के लिए उपलब्ध कुल रकम लाभार्थियों की बड़ी संख्या के बीच बंट जाती है। सब्सिडी की घटी दरें प्रतिगामी भी हैं: एलपीजी गरीबों के लिए खरीदने की सीमा से बाहर बनी रहती है जबकि लाभ अपेक्षाकृत संपन्न लोगों को मिल जाते हैं।
हमारा प्रस्ताव है कि उज्ज्वला 2.0 में परिवारों के लिए एलपीजी की दो-स्तरीय, अलग-अलग कीमत होनी चाहिए - मान्य गरीब परिवारों के लिए सब्सिडी वाली कीमत, और अन्य उपभोक्ताओं के लिए बिना सब्सिडी वाली कीमत। अपना उद्देश्य हासिल करने के लिए मान्य गरीब परिवारों के लिए सब्सिडी दर उनकी इच्छा और भुगतान कर सकने की क्षमता पर आधारित होनी चाहिए। राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण (एनएसएस) के आंकड़ों पर किए हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि अगर परिवारों के लिए इंधन का खर्च उनके कुल मासिक खर्च के 4 प्रतिशत के अंदर हो, तो वे खाना पकाने के मुख्य इंधन के रूप में एलपीजी का हीं उपयोग करने के लिए इच्छुक होंगे। सबिसडी का आकलन ऐसी कीमत सुनिश्चित करने के लिहाज से की जा सकती है जिस से परिवारों के लिए यह शर्त पूरी हो जाय। सब्सिडी वाली एलपीजी की मात्रा प्रति वर्ष 126 किलो या नौ सिलिंडरों तक सीमित की जा सकती है। सब्सिडी का वितरण नियमबद्ध नकद अंतरण (वर्तमान ‘पहल’ योजना) के जरिए जारी रखा जा सकता है, जिससे अनिच्छित लाभार्थियों को सब्सिडी मिलने की संभावनाएँ कम से कम हो।
एलपीजी सब्सिडी को वित्तीय बोझ के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि इस प्रावधान का परिणाम गरीब परिवारों, खास कर महिलाओं और बच्चों के लिए स्वास्थ्य संबंधी बेहतर परिणाम के रूप में होता है। एलपीजी की उपलब्धता से खाना पकाने में समय की बचत होने के कारण परिवार की आर्थिक उत्पादकता में भी सुधार होता है। घरेलू वायु प्रदूषण द्वारा होने वाले रोगों में कमी होने से स्वास्थ्य व्यवस्था पर सरकारी खर्च भी घटता है। गरीबों द्वारा खाना पकाने के लिए एलपीजी का नियमित उपयोग सुनिश्चित करने के लिए सब्सिडी के इस प्रावधान को सरकार द्वारा सामाजिक निवेश के रूप में देखा जाना चाहिए।
लेकिन ऊपर वर्णित तीसरी बाधा – जागरूकता – अभी भी शेष रह जाती है। सरकार ने भूतकाल में संपन्न लोगों से एलपीजी सब्सिडी अपनी इच्छा से त्याग देने का अनुरोध करते हुए और गरीब परिवारों द्वारा स्वच्छ इंधन का उपयोग करने के लाभों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए ‘गिव इट अप’ अभियान शुरू किया था। इस योजना को भारी सफलता मिली थी क्योंकि लगभग 1 करोड़ से भी अधिक उपभोक्ताओं ने अपनी एलपीजी सब्सिडी का हक त्यागा था। उज्ज्वला 2.0 के तहत सब्सिडी को सिर्फ गरीबों तक सीमित करने की जरूरत, एलपीजी का उपयोग करके बने खाने के स्वाद के बारे में भ्रम दूर करने, और सुरक्षित उपयोग तथा संरक्षण के बारे में आम जनता का संवेदीकरण करने के लिए सरकार को प्रखर शैक्षिक अभियान चलाना चाहिए।
उज्ज्वला 2.0 के इस दृष्टिकोण में ऐसी क्षमता है कि वह उज्ज्वला कार्यक्रम की अद्भुत सफलता को दूसरे स्तर तक ले जा सकती है और खाना पकाने के लिए स्वच्छ ऊर्जा अपनाने से लाभान्वित होने में गरीबों की मदद कर सकती है।
उज्ज्वला 2.0 के लिए लेखकों के प्रस्ताव के विस्तृत संस्करण को यहां पाया जा सकता है, जिसे कॉलेबरेटिव क्लीन एयर पॉलिसी सेंटर, नई दिल्ली द्वारा संक्षिप्त नीतिगत आलेख के रूप में प्रकाशित किया गया है।
लेखक परिचय: डॉ. अंबुज सागर नीति अध्ययन के विपुला और महेश चतुर्वेदी प्रोफेसर, और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) दिल्ली में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी के संस्थापक प्रमुख हैं। आलोक त्रिपाठी पेट्रोलियम संरक्षण अनुसंधान संघ के कार्यकारी निदेशक हैं।
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