भारत में मोबाइल नेटवर्क की बेहतर कनेक्टिविटी के बावजूद, महिलाओं की प्रौद्योगिकी तक पहुंच और उनके द्वारा इसके उपयोग के संबंध में लैंगिक पूर्वाग्रह अभी तक बने हुए हैं। इस लेख में, एक अध्ययन से प्राप्त प्रारंभिक निष्कर्षों पर चर्चा की गई है जिसने यह दर्शाया है कि छत्तीसगढ़ में संचार क्रांति योजना के तहत मुफ्त में फोन का वितरण किये जाने के बाद शुरुआती अवधि में इसका प्रयोग फोन का पर्यवेक्षित या अपर्यवेक्षित उपयोग उचित मानने वाली महिलाओं में काफी बढ़ गया है, और यह पहुँच लैंगिक मानदंडों के उदारीकरण को दर्शाता है।
भारत में मोबाइल फोन की उपलब्धता और नेटवर्क कनेक्टिविटी के विस्तार के बावजूद, बरसों से चले आ रहे लैंगिक मानदंड लड़कियों और महिलाओं द्वारा मोबाइल प्रौद्योगिकी तक पहुंच और इसके उपयोग को प्रभावित कर रहे हैं। इस डिजिटल विभाजन को दूर करने के प्रयास के रूप में, वर्ष 2018 में छत्तीसगढ़ की राज्य सरकार ने संचार क्रांति योजना (एसकेवाई) नामक एक कार्यक्रम के तहत राज्य भर में लाखों महिलाओं को मुफ्त में स्मार्टफोन प्रदान करने की अनूठी पहल की। इससे हमें1 यह अध्ययन करने का एक अनूठा अवसर मिला कि महिलाओं2 को सीधे फोन उपलब्ध कराये जाने से फोन के उपयोग को नियंत्रित करने वाले मानदंड किस प्रकार से बदलते हैं।
हालिया शोध में, हमारी टीम ने संचार क्रान्ति योजना (एसकेवाई) के अंतर्गत पात्र3 1,696 विवाहित महिलाओं में से यादृच्छिक रूप से आधी महिलाओं का सर्वेक्षण फोन वितरण की तारीख के ठीक पहले और आधी महिलाओं का सर्वेक्षण इसके बाद किया, जिससे कार्यक्रम द्वारा लैंगिक मानदंड निर्धारण के बदलते तरीकों को समझा जा सके। हमारे विश्लेषण की मुख्य धारणा यह है कि एसकेवाई के तहत फोन प्राप्ति के कुछ समय बाद ही वितरण-पूर्व और वितरण के बाद के सर्वेक्षणों4 में भिन्नता पाई गयी। यह सर्वेक्षण अगस्त और नवंबर 2018 के दौरान किया गया- फोन वितरण-पूर्व गांवों में औसतन वितरण के 17 दिन पहले महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया, जबकि फोन वितरण-पश्चात गांवों में प्रथम वितरण के 18 दिन बाद महिलाओं का सर्वेक्षण किया गया।
हालाँकि, हम जानते थे कि यह संभावना है कि हमारे उत्तरदाताओं के पतियों का दृष्टिकोण भी फोन के उपयोग के सन्दर्भ में मायने रखता है (और फोन के वितरण के कारण बदल भी सकता है), हमने इस अध्ययन में इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि महिलाओं ने स्वयं इस कार्यक्रम का अनुभव कैसे किया, चूंकि हम विशेष रूप से हैं महिलाओं के स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) में शामिल होने के कारण लैंगिक मानदंडों में बदलाव को समझने पर केन्द्रित रहे हैं। हम अपने मुख्य निष्कर्ष नीचे प्रस्तुत करते हैं।
भारत में फोन के उपयोग से संबंधित लैंगिक मानदंड
हमने अपना फील्डवर्क शुरू करने से पहले, भारत में महिलाओं के सामने आने वाले मानक परिवेश को समझने के लिए प्राथमिक और माध्यमिक सामग्रियों पर गहन शोध किया। हमारे प्रयास की परिणति 2018 की एक रिपोर्ट 'ए टफ कॉल: अंडरस्टैंडिंग बैरियर्स टू एंड इम्पैक्ट्स ऑफ वीमेन्स मोबाइल फोन एडोप्शन इन इंडिया' (बारबोनी एवं अन्य 2018) में हुई। हमने पाया कि फोन के उपयोग से जुड़े मानदंड शादी के मानदंडों से गहरे रूप में जुड़े हुए हैं। उदाहरण के लिए, अविवाहित महिलाओं से यह अपेक्षा की जाती है कि वे एक उपयुक्त पति की तलाश हेतु तैयार रहें; मोबाइल फोन का उपयोग इस शुद्धता को बनाए रखने के लिए एक संभावित खतरा माना जाता है। गुणात्मक साक्षात्कारों में हमने लगातार सुना है कि लोग यह सवाल पूछते हैं कि लड़की फोन का इस्तेमाल किस लिए कर रही थी और क्या उसकी ये गतिविधियां 'उचित' थीं। विवाहित महिलाओं के संदर्भ में, यह एक ठोस अपेक्षा रहती है कि पत्नियां केवल घरेलू और शिशु देखभाल गतिविधियों का ही निर्वहन करेंगी, अतः इसमें निहित अर्थ यह था कि महिलाओं को मोबाइल फोन का कोई उपयोग नहीं होगा, क्योंकि उन्हें अपने दैनिक कर्तव्यों5 को पूरा करने के लिए इसकी आवश्यकता नहीं है। लोगों के मन में फोन के उपयोग और उसके उद्देश्य की धारणा के बारे में बारीकी से समझने के लिए, हमने विवाहित महिलाओं और अविवाहित महिलाओं द्वारा अलग-अलग फोन के उपयोग के औचित्य के बारे में उन्हें अपने स्वयं के विचार व्यक्त करने के लिए कहा। हमने यह भी निर्दिष्ट किया कि क्या फोन का उपयोग पर्यवेक्षित या अपर्यवेक्षित था, अर्थात, हमने कुल चार काल्पनिक स्थितियों को कवर किया, जिसमें पर्यवेक्षण के साथ फोन का उपयोग करने वाली विवाहित महिलाएं, पर्यवेक्षण के बिना फोन का उपयोग करने वाली विवाहित महिलाएं, पर्यवेक्षण के साथ फोन का उपयोग करने वाली अविवाहित महिलाएं और पर्यवेक्षण के बिना फोन का उपयोग करने वाली अविवाहित महिलाएं शामिल थीं। इन चारों स्थितियों में से प्रत्येक के लिए, यह विश्वास कि अमुक कम रूढ़िवादी अथवा कम बाध्यकारी माना गया है।
सभी मानदंडों में छूट दी गई- लेकिन अपर्यवेक्षित उपयोग विवादास्पद बना हुआ है
चित्र-1 से पता चलता है कि फोन वितरण के बाद की अवधि में चार परिदृश्यों में से प्रत्येक को उपयुक्त मानने वाली महिलाओं की संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि फोन वितरण ने मानदंडों के उदारीकरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हल्के नीले रंग की पट्टी की ऊंचाई उन उत्तरदाताओं का हिस्सा दर्शाती है जिन्होंने स्मार्टफोन के वितरण से पूर्व रिपोर्ट किया था; गहरा नीला बार वितरण के पश्चात हिस्सेदारी के प्रतिशत में वृद्धि को दर्शाता है। अविवाहित महिलाओं द्वारा पर्यवेक्षित फोन के उपयोग के मानदंड सबसे अधिक शिथिल थे, जबकि अन्य तीन परिदृश्यों में उदारीकरण कम और लगभग समान था। हालाँकि, हम यह भी देखते हैं कि वैवाहिक स्थिति जो भी हो, अपर्यवेक्षित उपयोग की तुलना में पर्यवेक्षित उपयोग को अधिक उपयुक्त माना जाता है। इससे पता चलता है कि महिलाओं को बिना किसी प्रतिबंध के फोन का उपयोग करने के लिए प्रतिरोध का सामना करना पड़ सकता है। निश्चित तौर पर, ये अनुमान हमें मानक परिवेश में समग्र परिवर्तन के बारे में ही बताते हैं, और इस प्रकार उन मानदंडों में असमानताओं को छिपाते हैं जिनका सामना गरीब या कमजोर महिलाओं को करना पड़ सकता है। हमने उत्तरदाताओं के बारे में प्रमुख जन-सांख्यिकीय विशेषताओं का उपयोग करते हुए, इन परिवर्तनों में विविधता की खोज करते हुए अपना कार्य आगे बढ़ाया।
चित्र 1. स्मार्टफोन के वितरण के पश्चात फोन मानदंडों में लैंगिक आधार पर उदारीकरण
(ग्राफ- पर्यवेक्षित उपयोग, अपर्यवेक्षित उपयोग; वितरण-पूर्व, वितरण के बाद)
टिप्पणियाँ: (i) उपरोक्त ग्राफ 1,694 विवाहित महिलाओं की प्रतिक्रियाओं पर आधारित है। "पता नहीं" और "मना करने वाली" प्रतिक्रियाओं को शामिल नहीं गया है। (ii) पी-मान(वैल्यू) एक संभावित परिणाम को बताता है, जो शून्य परिकल्पना को सत्य मानते हुए कम से कम मान के प्रेक्षित परिणाम को व्यक्त कर सकता है। उल्लिखित महत्वपूर्ण स्तर से कम के पी-मान को सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण माना जाएगा |
कम प्रतिबंध वाले लोगों के लिए अपर्यवेक्षित उपयोग के मानदंडों को शिथिल किया गया
हमारे द्वारा पूर्व में किए गए विश्लेषण की एक और महत्वपूर्ण खोज यह थी कि शिक्षा प्राप्त और शहरी उच्च वर्गीय महिलाओं की सामाजिक स्थिति से जुड़े कई मानक जनसांख्यिकी में भी फोन के उपयोग को लेकर अंतर बना रहा। इस प्रकार, हम जानते थे कि स्मार्टफोन के वितरण के विषम प्रभाव को बेहतर ढंग से समझने के लिए महिलाओं की विशेषताओं को समझना आवश्यक होगा। हमारे साथ बात करने वाली महिलाओं के अपने स्मार्टफ़ोन के साथ जुड़ाव को प्रभावित करने वाली बाधाओं पर प्रभाव डालने वाले तत्वों को जानने के लिए हमने उन मानदंडों पर ध्यान केंद्रित किया जो विवाहित महिलाओं को नियंत्रित करते हैं।
चित्र 2 विवाहित महिलाओं द्वारा अपर्यवेक्षित उपयोग (डैश बार) और पर्यवेक्षित उपयोग (सॉलिड बार) संबंधी मानदंडों में परिवर्तन को दिखाता है। यह चित्र प्रत्येक मानदंडों-शिक्षा (साक्षर बनाम निरक्षर महिलाएं), आयु (युवा बनाम वृद्ध)6, आय (अमीर बनाम गरीब घरों में रहने वाली महिलाएं)7, और एसएचजी सदस्यता (महिलाएं जो एसएचजी की सदस्य हैं बनाम वे जो नहीं हैं) पर एसकेवाई कार्यक्रम के विषम, अल्पकालिक प्रभाव को दर्शाता है।यदि उपरोक्त वर्णित विशेषताओं में से किसी के द्वारा वितरण के बाद के मानदंडों में काफी भिन्न विषम प्रभाव हो, इस कारण बेंचमार्क निर्धारण के लिए शून्य के पास एक लम्बवत रेखा को शामिल किया गया है।
विवाहित महिलाओं (सॉलिड बार) द्वारा फोन के पर्यवेक्षित उपयोग के इन विषम प्रभावों में से कोई भी सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण नहीं है। हालांकि, अधिक साक्षर महिलाएं और धनी घरों की महिलाओं में अपर्यवेक्षित उपयोग (डैश्ड बार) के मानदंडों को सकारात्मक रूप से अपडेट करने की अधिक संभावना होती है। दूसरे शब्दों में, जो महिलाएं कम आर्थिक बाधाओं का सामना करती हैं (अर्थात, वे अधिक शिक्षित हैं और धनी परिवारों से आती हैं) अपने कम शिक्षित, गरीब समकक्षों की तुलना में अधिक हद तक उदारीकरण प्राप्त करती हैं।
चित्र 2. शिक्षा और संपन्नता के स्तर पर, विवाहित महिलाओं द्वारा फोन के उपयोग के मानदंडों का उदारीकरण
(साक्षरता, उम्र, धन, एसएचजी सदस्यता/ पर्यवेक्षित , अपर्यवेक्षित)
टिप्पणियाँ: (i) इसमें 1,694 विवाहित महिलाओं की प्रतिक्रियाएं शामिल हैं। इसमें "पता नहीं" और "मना करने वाली" प्रतिक्रियाओं को शामिल नहीं किया गया है। (ii) एक विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। 95% विश्वास अंतराल का अर्थ है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो 95% समय परिकलित विश्वास अंतराल में सही प्रभावी होगा। (iii) गुणांक और 95% विश्वास अंतराल जन-सांख्यिकीय और वितरण के बाद की अवधि के अंतःक्रियात्मक संबंध का प्रतिनिधित्व करते हैं। (iv) पुष्ट मानक त्रुटियों को ग्राम स्तर पर समूहीकृत किया गया है। (v) धन को पिछले 30 दिनों में प्रति व्यक्ति घरेलू आय के रूप में मापा गया है।
भविष्य की दिशा
हमारे शुरुआती अन्वेषण से यह स्पष्ट है कि कुल मिलाकर एसकेवाई के तहत स्मार्टफोन की प्राप्ति ने कम से कम बहुत ही कम समय के लिए ही सही, महिलाओं के लिए मानदंडों को उदार बनाया है। जैसा कि हम आगे देखते हैं, असमान आदर्श बदलावों का पता लगाना महत्वपूर्ण होगा, क्योंकि जो महिलाएं पहले से ही तुलनात्मक रूप से बदतर स्थिति में हैं, उन्हें व्यवस्थित रूप से अधिक रूढ़िवादी लैंगिक मानदंडों का सामना करना पड़ सकता है। यह कोविड-19 के समय में विशेष रूप से सच हो जाता है, जिसने मौजूदा विभाजन को और बढ़ा दिया होगा। हम इन निष्कर्षों को हमारे उत्तरदाताओं के पतियों के अनुभवों के साथ विश्लेषण कर और पुख्ता करना चाहते हैं, ताकि वितरण के साथ उनके अनुभव में अंतर को समझा जा सके। हमें एसएचजी सदस्यता पर सावधानीपूर्वक ध्यान देने के लिए प्रारंभिक साक्ष्य भी मिलता है। हालांकि हमारे अनुमान महत्वपूर्ण नहीं है, हम एसएचजी सदस्यता और पर्यवेक्षित उपयोग की बढ़ती स्वीकृति के बीच सकारात्मक सहसंबंध देखते हैं कि एसएचजी कनेक्शन वाली महिलाएं समय के साथ फोन के उपयोग में बड़ी प्रगति कर सकती हैं। महिलाओं के विशिष्ट कमजोर समूहों के लिए रुझान कैसे बदल रहा है, इस पर नज़र रखने के अलावा इसके मध्यम और दीर्घकालिक प्रभाव क्या होंगे, और एसकेवाई फोन के प्रभाव को अधिकतम करने के लिए क्या अतिरिक्त समर्थन की आवश्यकता हो सकती है, इस बारे में सवाल अभी भी बने हुए हैं। इन सवालों के जवाब देने के लिए, हम 'यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण' के परिणामों का उपयोग करेंगे जो पिछले तीन वर्षों से चल रहे हैं। इस प्रयोग के तहत, हमने रायपुर जिले के 180 गांवों में 10,000 से अधिक महिलाओं को फोन प्रशिक्षण प्रदान किया। इसके अलावा, दो वर्षों से अधिक समय से, इन महिलाओं के एक समूह को मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य, पोषण, और सरकारी सेवाओं के बारे में पूर्व-रिकॉर्डेड संदेश प्राप्त हो रहे हैं, साथ ही वे लाइव "पुल कॉल्स" में भाग ले रही हैं, जहां वे अपनी भलाई के बारे में जानकारी और अनुभव प्राप्त करती हैं। अंततः, यह प्रयोग हमें फोन के उपयोग में प्रशिक्षण की भूमिका और फोन के महिला-केंद्रित उपयोग आधारित सूचना सेवा प्रदाता की भूमिका- दोनों का पता लगाने में सहायक होगा। यह मोबाइल फोन द्वारा मानदंडों में बदलाव और उसमें सुधार के लिए उपयोगी हो सकता है। चूंकि इस वर्ष ये गतिविधियां समाप्त हो रही हैं, हम इस बारे में जान सकेंगे कि मोबाइल प्रौद्योगिकी के साथ महिलाओं के जुड़ाव को गहराई से समझने, इसके डिजाइन और इसमें समग्र हस्तक्षेप करने की दिशा में लाभकारी हो।
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टिप्पणियाँ:
- टीम में ड्यूक विश्वविद्यालय, हार्वर्ड विश्वविद्यालय, दक्षिणी कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, वारविक विश्वविद्यालय और येल विश्वविद्यालय के शोधकर्ता शामिल थे।
- यह परियोजना छत्तीसगढ़ राज्य में स्वयं सहायता समूहों पर एक बड़ी परियोजना का हिस्सा है जिसमें छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन (सीजीएसआरएलएम) के सहयोग से अर्थव्यवस्था में महिलाओं और लड़कियों को आगे बढ़ाने के उद्देश्य (IWWAGE) से अनुदान द्वारा वित्त पोषित है। यह क्रेयविश्वविद्यालय में LEAD की एक पहल है।
- इस कार्यक्रम का उद्देश्य 2011 की भारतीय जनगणना के अनुसार 1,000 या उससे अधिक आबादी वाले सभी गांवों में घर की महिला मुखिया (सामाजिक आर्थिक और जाति जनगणना (एसईसीसी) के अनुसार) को स्मार्टफोन वितरित करना है। कम से कम एक पात्र गाँव वाली स्थानीय सरकारी इकाइयों (ग्राम पंचायतों) में स्थित छोटे गाँव भी इसके पात्र पाए गए।
- नमूनों के बीच साक्षरता और सामाजिक आर्थिक स्थिति में संतुलन जैसे सह-संयोजकों (बुनियादी जन-सांख्यिकी) की जांच करके इसकी पुष्टि की गई।
- ये निष्कर्ष कोविड -19 महामारी से पहले के हैं, जो फोन और लैंगिक मानदंडों को प्रभावित कर सकते हैं।
- हमने उम्र को इस रूप में व्यक्त किया है कि महिलाएं 30 वर्ष से कम उम्र की या अधिक उम्र की हैं।
- प्रति व्यक्ति घरेलू आय को मापांक में विभाजित किया गया था। एक मापांक डेटासेट को पांच बराबर भागों में विभाजित करता है, जैसे कि, यदि उपभोग के मूल्यों को आरोही क्रम में सूचीबद्ध किया जाता है, तो निचला मापांक धन के संदर्भ में नीचे के 20% मूल्यों को संदर्भित करेगा। धनी परिवारों में शीर्ष तीन मापांक शामिल हैं।
लेखक परिचय: जॉर्जिया बारबोनी वार्विक बिजनेस स्कूल, यूनिवर्सिटी ऑफ वार्विक में सहायक प्रोफेसर हैं। नतालिया रिगोल हार्वर्ड बिजनेस स्कूल में सहायक प्रोफेसर हैं। सिमोन शानेर यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफ़िर्निया में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर हैं। नतालिया थेज यूनिवर्सिटी ऑफ सदर्न कैलिफ़िर्निया में आर्थिक और सामाजिक अनुसंधान केंद्र में एक शोध प्रबंधक हैं।
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