सामाजिक पहचान

भारत में स्कूली पाठ्य पुस्तकों में व्याप्त लैंगिक पूर्वाग्रह का विश्लेषण

  • Blog Post Date 05 सितंबर, 2024
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Lee Crawfurd

Center for Global Development

lcrawfurd@cgdev.org

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Theodore Mitchell

Center for Global Development

tmitchell@cgdev.org

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Radhika Nagesh

Center for Global Development

rnagesh@cgdev.org

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Christelle Saintis-Miller

Center for Global Development

csaintismiller@cgdev.org

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Rory Todd

Center for Global Development

rtodd@cgdev.org

शिक्षक का पुस्तकों, पाठ्यक्रमों, शिक्षण प्रणालियों, नई पीढ़ियों, नवाचार और समाज से अंतरंग सम्बन्ध है। शिक्षक दिवस, 5 सितम्बर को प्रस्तुत इस शोध आलेख में शिक्षकों की नहीं अपितु पाठ्य पुस्तकों के एक संवेदनशील और अति वांछनीय पहलू की चर्चा है। यदि हम चाहते हैं कि शिक्षा से लैंगिक समानता स्थापित करने में मदद मिले, तो पहला बुनियादी कदम यह सुनिश्चित करना है कि हम बच्चों को लैंगिक भेदभाव वाली पाठ्य पुस्तकें न दें। इस लेख में भारत की स्कूली पाठ्य पुस्तकों में व्याप्त लैंगिक पूर्वाग्रह का विश्लेषण किया गया है और यह खोज की गई है कि क्या यह अलग-अलग राज्यों में अलग-अलग है। इसके अलावा यह भी जाँच की गई है कि क्या पुस्तकों में लिंग-आधारित प्रतिनिधित्व तथा समाज में महिलाओं व लड़कियों के प्रति प्रचलित दृष्टिकोण के बीच कोई सम्बन्ध है।

विश्व आर्थिक मंच के लैंगिक-अंतर सूचकांक, जेंडर गैप इंडेक्स, में भारत दुनिया के सबसे खराब देशों में से एक है, जो वर्तमान, वर्ष 2024, में 129वें स्थान पर है। हमारे पिछले शोध (क्रॉफर्ड, सेंटिस-मिलर और टॉड 2024) से पता चला है कि दक्षिण एशिया और विशेष रूप से भारत, अंग्रेज़ी-भाषी देशों की स्कूली किताबों में महिलाओं व लड़कियों के प्रति रूढ़िवादिता और कम प्रतिनिधित्व के मामले में सबसे खराब क्षेत्र है। आकृति-1 में, पाठ्य पुस्तकों में लिंग सम्बन्धी शब्दों और उपलब्धि, रूप-रंग, घर और काम से संबंधित शब्दों के बीच सम्बन्ध को दर्शाया गया है (उदाहरणों में माताओं को खाना पकाने से जोड़ने और डॉक्टरों को पुरुष मानने सम्बन्धी जाँच ​​शामिल हैं)। दक्षिण एशिया की पुस्तकों में यूके, यूएस, ऑस्ट्रेलिया और उप-सहारा अफ्रीका की पुस्तकों की तुलना में, उपलब्धियों और कार्य से संबंधित भाषा के मामले में सबसे पक्के पुरुष पूर्वाग्रह, तथा दिखावट से संबंधित भाषा के मामले में सबसे पक्के महिला पूर्वाग्रह मौजूद हैं।

आकृति-1. अंग्रेज़ी-भाषा की स्कूली किताबों में लैंगिक रूढ़ियाँ

स्रोत : यह आँकड़े क्रॉफर्ड, सेंटिस-मिलर और टॉड (2024) के क्रॉस-कंट्री विश्लेषण से लिए गए हैं

भारतीय पाठ्य पुस्तकों में लैंगिक भेदभाव दशकों से एक आवर्ती राजनीतिक मुद्दा रहा है। हिन्दी और अंग्रेज़ी पाठ्य पुस्तकों (कालिया 1979) के विश्लेषण से लिंगभेदी दृष्टिकोणों को व्यापक रूप से बढ़ावा मिलने का पता चला, जिसकी राष्ट्रीय पाठ्य पुस्तकों के निर्माण के लिए जिम्मेदार सरकारी एजेंसी- एनसीईआरटी (राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद) ने सनसनीखेज सामग्री के रूप में निंदा की है। वर्ष 2017 में एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों के एक अन्य अध्ययन में भी इसी तरह की लैंगिक भेदभावपूर्ण सामग्री पाई गई थी, जिसके बाद भारतीय शिक्षा मंत्री को "उचित कार्रवाई" का आह्वान करना पड़ा था। वर्ष 2020 और 2022 के बीच प्रकाशित एनसीईआरटी पुस्तकों के हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि इस लक्ष्य की ओर प्रगति सीमित रही है। हम पाते हैं कि एनसीईआरटी पुस्तकों में केवल 34% लिंगभेदी शब्द (जैसे ‘ही’ और ‘शी’) स्त्रीलिंग हैं और 66% पुलिंग हैं।

क्या पुस्तकों में व्याप्त लिंगभेदी पूर्वाग्रह राज्यों के बोर्डों में अलग-अलग है?

भारत में सार्वजनिक शिक्षा काफी हद तक राज्यों में विकेंद्रीकृत है, लेकिन कई राज्य अपने राज्य बोर्ड की पुस्तकों के लिए राष्ट्रीय एनसीईआरटी पाठ्यक्रम का हुबहू अनुसरण करते हैं। वर्ष 2021 में, 28 में से 23 राज्य बोर्ड कुछ या सभी कक्षाओं के लिए एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों का उपयोग कर रहे थे। अन्य राज्य संबद्ध स्कूलों के लिए अपने राज्य बोर्ड की पुस्तकों का उपयोग करते हैं। राज्य बोर्ड की पुस्तकें प्रायः एनसीईआरटी पाठ्यक्रम पर आधारित होती हैं तथा उनमें प्रासंगिक राज्य-विशिष्ट विषय-वस्तु भी शामिल होती है। उच्च शिक्षा के लिए अधिकांश प्रतिस्पर्धी राष्ट्रीय स्तर की प्रवेश परीक्षाएँ एनसीईआरटी पाठ्यक्रम (विशेष रूप से विज्ञान विषयों में) पर निर्भर करती हैं, इसलिए राज्य उच्च स्तर तक उस पाठ्यक्रम के साथ तालमेल बिठाने की कोशिश करते हैं।

हमने 10 राज्य बोर्डों- आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मिज़ोरम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना की सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अंग्रेज़ी-भाषा की पाठ्य पुस्तकों की जाँच की, जिनकी हम एनसीईआरटी पुस्तकों से तुलना कर सकते हैं (अधिक विवरण के लिए तालिका-1 देखें)। औसतन, इन राज्य बोर्ड की पुस्तकों में महिलाओं व लड़कियों का उल्लेख राष्ट्रीय एनसीईआरटी पुस्तकों की तुलना में कम है। एक राज्य विशेष रूप से उच्च महिला प्रतिनिधित्व के लिए उल्लेखनीय है, वह है गुजरात। दक्षिण के राज्यों का प्रदर्शन हिन्दी पट्टी के राज्यों से भी खराब है, बावजूद इसके कि वहाँ महिलाओं की साक्षरता दर और कार्यबल में भागीदारी अधिक है (आकृति-2)।

तालिका-1. कक्षा के अनुसार पाठ्य पुस्तक डेटा

 

श्रेणी

1

2

3

4

5

6

7

8

9

10

11

12

कुल

 

आंध्र प्रदेश

2

0

3

3

3

3

4

5

5

6

0

0

34

 

छत्तीसगढ़

1

1

1

1

1

1

1

1

1

1

0

0

10

 

गुजरात

2

2

3

1

2

1

2

3

2

3

5

9

35

 

कर्नाटक

2

2

2

2

1

4

4

4

4

4

14

12

55

 

केरल

3

3

4

5

5

5

5

0

7

7

0

0

44

 

महाराष्ट्र

2

2

2

3

2

5

5

3

4

5

13

10

56

 

मिज़ोरम

2

1

3

3

3

5

4

0

0

0

0

0

21

 

पंजाब

0

2

3

3

3

4

9

5

6

7

7

9

58

 

तमिलनाडु

3

3

4

4

4

4

4

4

4

4

13

13

64

 

तेलंगाना

1

2

3

3

3

3

3

3

4

4

0

0

29

 

एनसीईआरटी

2

1

3

2

0

5

4

6

7

6

12

12

60

 

कुल

21

21

34

34

32

46

52

42

53

57

75

77

466

 

नोट : यह तालिका प्रत्येक राज्य की प्रत्येक कक्षा में शामिल पाठ्य पुस्तकों की संख्या को दर्शाती है। पाठ्य पुस्तक डेटा एनसीईआरटी पुस्तकों से, राज्य बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों से है। एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों को अरुणाचल प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, सिक्किम और उत्तराखंड में राज्य बोर्डों द्वारा चुना गया है। विषयों में एसटीईएम, सामाजिक विज्ञान, मानविकी तथा व्यावहारिक और अनुप्रयुक्त विज्ञान शामिल हैं।

आकृति-2. भारतीय राज्यों की स्कूली पुस्तकों में लैंगिक आधार पर प्रतिनिधित्व

स्रोत : डेटा राज्य की पाठ्य पुस्तकों के सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट (सीजीडी) द्वारा किए गए नए विश्लेषण से लिया गया है, जो क्रॉफर्ड, सेंटिस-मिलर और टॉड (2024) में पहले इस्तेमाल की गई कार्यप्रणाली पर आधारित है। 10 राज्यों (आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कर्नाटक, केरल, महाराष्ट्र, मिज़ोरम, पंजाब, तमिलनाडु और तेलंगाना) का डेटा राज्य बोर्ड की पाठ्य पुस्तकों से हैं। नौ राज्यों (अरुणाचल प्रदेश, बिहार, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, झारखंड, मध्य प्रदेश, राजस्थान, सिक्किम और उत्तराखंड) का डेटा एनसीईआरटी की पाठ्य पुस्तकों से हैं।

जब हम पुस्तकों में लैंगिक आधार पर प्रतिनिधित्व की तुलना लिंग मानदंडों के स्वतंत्र उपायों से करते हैं, तो हमें आश्चर्यजनक रूप से बहुत कम सह-सम्बन्ध दिखाई देता है। हम वर्ष 2022 के प्यू सर्वे का उपयोग करते हैं जिसमें प्रगतिशील दृष्टिकोणों का सूचकांक बनाने के लिए लिंग-आधारित मानदंडों के बारे में सात प्रश्न पूछे गए हैं। मिज़ोरम में प्रगतिशील लिंग दृष्टिकोण पर उच्चतम स्कोर है, लेकिन स्कूली किताबों में महिला प्रतिनिधित्व केवल 22% है। इसके विपरीत, गुजरात में, जहाँ पुस्तकों में स्पष्ट रूप से सबसे अधिक महिला प्रतिनिधित्व है, प्रगतिशील दृष्टिकोण पर सबसे कम स्कोर है (आकृति-3)। हालाँकि पाठ्य पुस्तकों में लिंगभेद के स्तर का यह एक अपरिष्कृत माप है, लेकिन ये आँकड़े कम से कम यह तो इंगित करते हैं कि प्रचलित लैंगिक दृष्टिकोण अनिवार्य रूप से शिक्षण सामग्री में महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ाने और सुधारने की दिशा में बाधा नहीं हैं।

आकृति-3. भारतीय राज्यों में स्कूली पुस्तकों में लैंगिक आधार पर प्रतिनिधित्व

स्रोत : दृष्टिकोण सूचकांक के लिए डेटा वर्ष 2022 के प्यू सर्वेक्षण "भारतीय परिवार और समाज में लिंग-आधारित भूमिकाओं को किस तरह से देखते हैं" से लिया गया है। लेखक भौगोलिक पहचानकर्ताओं के साथ माइक्रो डेटा साझा करने के लिए प्यू के आभारी हैं, जिससे इस सूचकांक का निर्माण सम्भव हुआ। यह सूचकांक सात सर्वेक्षण प्रश्नों का मुख्य घटक है, लिंग-आधारित भूमिकाओं और (i) नौकरी के अधिकार, (ii) आय, (iii) खर्च, (iv) विरासत, (v) बच्चों की परवरिश, (vi) वैवाहिक सम्बन्ध और (vii) राजनीतिक नेताओं से संबंधित। पाठ्य पुस्तकों में महिला शब्दों की हिस्सेदारी पर डेटा लेखकों द्वारा पाठ्य पुस्तकों के विश्लेषण से लिया गया है।

महिलाओं के प्रतिनिधित्व में सुधार के प्रयास

पाठ्य पुस्तकों में लड़कियों और महिलाओं का प्रतिनिधित्व स्कूलों में लैंगिक समानता बढ़ाने के लिए चल रहे सफल प्रयासों का एक स्वाभाविक पूरक है। पाठ्य पुस्तकों में लिंग-आधारित प्रतिनिधित्व समाज में अधिक समतावादी लैंगिक दृष्टिकोण को आकार देने और व्यापक सांस्कृतिक बदलाव में योगदान देने का एक शक्तिशाली साधन है। पाठ्य पुस्तकें प्रगतिशील लैंगिक भूमिकाओं को सामान्य बनाकर विविध रोल मॉडल और रूढ़ियों के विकल्प प्रदान कर सकती हैं। वे छात्रों के बीच लैंगिक समानता की नींव रखने का भी काम कर सकते हैं, जिससे महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक लाभ प्राप्त होंगे। पाठ्यक्रमों में संशोधन करके न केवल महिलाओं का अधिक उल्लेख किया जा सकता है, बल्कि प्रतिगामी रूढ़ियों को चुनौती देने की दिशा में भी काम किया जा सकता है। इससे कार्यबल में समानता को बढ़ावा मिलेगा, ग़ैर-पारंपरिक भूमिकाओं में महिलाओं का अधिक प्रतिनिधित्व होगा और महिला नेतृत्व में वृद्धि होगी, जिससे आर्थिक विकास में तेज़ी आएगी।

भारत का दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला और देश की वित्तीय राजधानी मुंबई जहाँ बसी है ऐसा राज्य, महाराष्ट्र, वर्तमान में अपने स्कूल पाठ्यक्रम में संशोधन ला रहा है। आलोचकों ने वर्तमान उपयोग वाली पाठ्य पुस्तकों में विभिन्न सामाजिक-आर्थिक समूहों के प्रतिनिधित्व की कमी की ओर इशारा किया है। हमारा विश्लेषण दर्शाता है कि लैंगिक प्रतिनिधित्व भी एक स्पष्ट मुद्दा है जिसमें महाराष्ट्र राज्य बोर्ड की पुस्तकों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व भारत के सभी राज्यों में तीसरा सबसे कम है।

दूसरी ओर, केरल राज्य जो आंशिक रूप से राज्य में घरेलू दुर्व्यवहार से होने वाली मौतों की एक श्रृंखला के जवाब में अपनी पुस्तकों से लैंगिक रूढ़िवादिता को हटाने के लिए स्पष्ट प्रयास कर रहा है। ऐसा करना दृष्टिकोण को आकार देने में पाठ्य पुस्तकों की भूमिका में सरकार के विश्वास को दर्शाता है। केरल ने हाल ही में अपनी पुस्तकों को अपडेट किया है ; पैनल का दावा है कि लिंग संवेदनशीलता को ध्यान में रखा गया है। हमारे मापदंड पर सबसे खराब प्रदर्शन वाले राज्य, केरल, के लिए हम आशा करते हैं कि यह दावा सच हो। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : ली क्रॉफर्ड सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट (सीजीडी) में वरिष्ठ शोध फेलो हैं। उनका शोध निम्न और मध्यम आय वाले देशों में शिक्षा नीति पर केंद्रित है। थिओडोर मिशेल सेंटर फॉर ग्लोबल डेवलपमेंट की वैश्विक शिक्षा दल में एक शोध सहायक हैं। राधिका नागेश भी सीजीडी की वैश्विक शिक्षा दल में वरिष्ठ नीति विश्लेषक हैं। क्रिस्टेल सेंटिस-मिलर भी इसी दल की वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक हैं और रोरी सेंटर दल के शोध सहयोगी हैं।

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