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व्यापार, आंतरिक प्रवास और मानवीय पूंजी: भारत में आईटी में तेजी का फायदा किसे हुआ

  • Blog Post Date 05 अप्रैल, 2022
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भारतीय अर्थव्यवस्था में 1993-2004 के दौरान व्यापार में विस्तार हुआ और आईटी में तेजी आई। कुछ चुनिंदा बड़े शहरों में केंद्रित उच्च कौशल-गहन क्षेत्र में हुए शानदार विकास ने देश भर में असमानता को कैसे प्रभावित किया? यह लेख दर्शाता है कि नौकरियों और शिक्षा तक अच्छी पहुंच वाले जिलों में पैदा हुए व्यक्तियों को आईटी निर्यात में प्रत्येक प्रतिशत की वृद्धि के लिए 0.51% का लाभ मिला, जबकि दूरस्थ जिलों में यही लाभ 0.05% रहा।

क्षेत्रीय असमानता को व्यापार किस प्रकार से प्रभावित करता है, इसमें व्यापक रुचि है। यह प्रश्न भारत के संदर्भ में विशेष रूप से महत्वपूर्ण रहा है, जहां 1993-2004 के दौरान व्यापार से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) अनुपात और प्रति-व्यक्ति आय में क्रमशः 90% और 60% से अधिक की वृद्धि हुई, जबकि 'गरीब' की श्रेणी में आनेवाले व्यक्तियों की संख्या में केवल 2%1 की कमी आई। व्यापार में विस्तार की यह अवधि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र में तेजी के साथ थी, भारत के जीडीपी में आईटी का योगदान 1993 में लगभग शून्य था जो वर्ष 2004 में बढ़कर 3.6% हो गया। उच्च कौशल-गहन क्षेत्र में आई यह तेजी किस प्रकार से भारत-भर के जिलों में आर्थिक असमानता और कल्याण को प्रभावित करती है?

हाल के एक अध्ययन (घोष 2021) में, मैं भारत में क्षेत्रीय असमानता पर आईटी में तेजी के प्रभाव की जांच करती हूं। बैंगलोर, हैदराबाद और मुंबई जैसे कुछ बड़े शहरों में आईटी रोजगार में वृद्धि काफी शानदार रही है और यह भारत को वैश्विक सुर्खियों में ले आई है, इस संदर्भ में यह मूल्यांकन करना चुनौतीपूर्ण है कि इस नौकरी की वृद्धि ने देश के अन्य हिस्सों के लोगों, जैसे- उच्च शिक्षा के लिए दुर्लभ स्थानीय पहुंच वाले किसी दूरस्थ जिले के व्यक्ति को कैसे प्रभावित किया। इस प्रश्न का उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि स्थानीय स्तर पर उच्च शिक्षा प्राप्त करना, या शिक्षा या नौकरी के लिए बाहर जाना कितना आसान है।

आईटी में तेजी का क्षेत्रीय असमानता पर प्रभाव

मैं, लंबी अवधि में यानी वर्ष 2005 और 2011 के बीच आईटी रोजगार और इंजीनियरिंग में नामांकन पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए एक इवेंट स्टडी डिज़ाइन का उपयोग करके, वर्ष 1998-2002 के दौरान Y2K जैसे बड़े पैमाने पर बाहरी मांग के झटके से प्रेरित आईटी के विस्तार का उपयोग करती हूं। मेरे द्वारा इस समय-सीमा को चुने जाने के पीछे तथ्य यह है कि इंजीनियरिंग की डिग्री को पूरा करने में कम से कम चार साल लगते हैं और इस प्रकार से कौशल अधिग्रहण से संबंधित श्रम बाजार पर कोई प्रभाव 2004-2005 के बाद ही होगा।

मैं भारत की जनगणना, आर्थिक जनगणना, नैसकॉम (नेशनल एसोसिएशन ऑफ सॉफ्टवेयर एंड सर्विस कंपनीज), और एनएसएसओ (नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस) से 1992-20132 की समयावधि के दौरान के कई वर्षों के विस्तृत स्थानिक और प्रवास डेटा को समेकित करती हूं।

मुझे इस बात के प्रमाण मिलते हैं कि भारतीय आईटी उद्योग हेतु कुशल श्रम के एक प्रमुख स्रोत आईटी रोजगार और इंजीनियरिंग नामांकन ने Y2K जैसे वैश्विक झटके से प्रेरित होकर 1990 के दशक के अंत में भारतीय आईटी निर्यात में वृद्धि दर्शाई है। आईटी की यह प्रतिक्रिया क्षेत्र के ऐतिहासिक सॉफ्टवेयर निर्यात और नौकरियों तथा उच्च शिक्षा की स्थानीय उपलब्धता के आधार पर सभी क्षेत्रों में विषम थी।

इन शैलीगत तथ्यों के अनुरूप, मैं एक मात्रात्मक स्थानिक संतुलन मॉडल को विकसित करती हूं जिससे व्यक्ति दो चरणों में शिक्षा और कार्य-निर्णय ले सकते हैं। पहले चरण में, वे तय करते हैं कि क्या और कहाँ अध्ययन करना है, जिससे उन्हें उच्च शिक्षा और नौकरी के अवसरों तक पहुंच मिल सकती है। उच्च शिक्षा तथा नौकरी के अवसरों तक पहुंच- दोनों अपने स्वयं के और आस-पास के जिलों में शिक्षा और नौकरियों की उपलब्धता से निर्धारित होती है, जो उनके अपने जिलों से इन आस-पास के जिलों की दूरी के विपरीत निर्धारित होती है। दूसरे चरण में, व्यक्ति काम के क्षेत्र और स्थान का चयन करते हैं। इस मॉडल में, भारतीय आईटी में तेजी जैसे सेक्टर-विशिष्ट व्यापार झटके, दो कारकों के आधार पर व्यवसायों के सापेक्ष रिटर्न को बदलते हैं: (i) उस क्षेत्र में स्थान का तुलनात्मक लाभ, उदाहरण के लिए, ये जिले ऐतिहासिक रूप से कितनी अच्छी तरह से विदेशी फर्मों से जुड़े हुए हैं, और (ii) अन्य स्थानों के साथ उस स्थान की कनेक्टिविटी। व्यवसायों के सापेक्ष प्रतिफल में परिवर्तन विभिन्न कौशल प्रकारों में निवेश करने के लिए व्यक्ति के प्रोत्साहन को प्रभावित करते हैं। स्थानीय स्तर पर उच्च शिक्षा की उपलब्धता तथा कॉलेजों में जाने हेतु जिलों में प्रवासन की लागत से कौशल निवेश बाधित होता है। इस प्रकार, ऐसे जिले कितने कुशल श्रमिकों तक पहुंच सकते हैं और इसके परिणामस्वरूप, वे आईटी उत्पादन का कितना विस्तार कर सकते हैं, उनमें अंतर हो सकता है। काम और शिक्षा के लिए बाहर जाने हेतु भिन्न-भिन्न लागत-सहित नौकरियों और शिक्षा के लिए स्थानीय स्तर पर पहुंच में अंतर के कारण आईटी में तेजी से मिलने वाले कल्याणकारी लाभ में क्षेत्रीय असमानताएं उत्पन्न होती हैं।

मुझे लगता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त करने की क्षमता आईटी में तेजी से लाभ प्राप्त करने की कुंजी है। सैद्धांतिक मॉडल से प्राप्त कल्याण का माप प्रत्याशित है, अर्थात यह व्यक्तियों द्वारा कोई निर्णय लेने से पहले शिक्षा और नौकरियों तक पहुंच के अपेक्षित माप पर निर्भर करता है। आईटी निर्यात में प्रत्येक प्रतिशत की वृद्धि पर, कल्याण में औसतन 0.16% की वृद्धि हुई। यह औसत जिलों में पर्याप्त भिन्नता को छिपाता है, और नौकरियों और शिक्षा तक अच्छी पहुंच वाले जिलों में पैदा हुए व्यक्तियों ने आईटी निर्यात में प्रत्येक प्रतिशत वृद्धि के लिए 0.51% कल्याण लाभ का अनुभव किया, जबकि दूरस्थ जिलों के उनके समकक्षों ने 0.05% के रूप में कम लाभ का अनुभव किया।

उच्च शिक्षा कितनी सुलभ है यह समझने के लिए, न केवल भारतीय जिलों में उच्च शिक्षा की उपलब्धता को देखना आवश्यक है, बल्कि शिक्षा के लिए बाहर निकलना कितना महंगा है यह देखना भी आवश्यक है।

शिक्षा और काम के लिए बाहर जाना कितना महंगा है, और यह ज़रूरी क्यों है?

हालाँकि व्यापार और निर्यात में तेजी से कल्याणकारी लाभ पर श्रम बाजार में संघर्ष के प्रभावों का विश्लेषण करने वाला पर्याप्त साहित्य उपलब्ध है, लेकिन इस बात का कोई सबूत नहीं है कि शिक्षा बाजार3 में संघर्ष से निर्यात में तेजी कैसे प्रभावित होती है। इस प्रश्न के समाधान के लिए, हमें सबसे पहले यह समझने की आवश्यकता है कि शिक्षा प्राप्त करने और काम के लिए बाहर निकलने से जुड़े ये संघर्ष कितने बड़े हैं। भारत में एक जिले से दूसरे जिले में प्रवासन पर 2001 की जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि शिक्षा के लिए बाहर जाने वाले लोगों का अनुपात काम के लिए बाहर जाने वाले लोगों के अनुपात से बहुत कम था। चित्र 1, 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करते हुए, गंतव्य जिले में क्रमशः श्रमिकों और कॉलेज स्नातकों की कुल संख्या में से काम और शिक्षा के लिए पलायन करने वाले लोगों के प्रतिशत को दर्शाता है। औसतन, एक जिले में स्नातक आबादी के 2% से कम दूसरे जिले से आते हैं, जबकि कामकाजी आबादी के संदर्भ में यह संख्या 26% है।

चित्र 1. कार्य बनाम शिक्षा के लिए प्रवासन

प्रवासन के कारणों के अनुसार अलग-अलग किया गया एक जिले से दूसरे जिले के प्रवासन प्रवाह पर ये डेटा, प्रवासन के कारणों के आधार पर प्रवासन लागतों की पहचान करने में हमारी सहायता करता है। मुझे लगता है कि सांस्कृतिक अंतर, घरेलू नेटवर्क में क्षति, और परिवहन लागत जैसे विभिन्न कारकों के कारण प्रवासियों को एक ही राज्य के भीतर जिलों में काम के लिए प्रवासन करने पर अपनी खोई हुई उपयोगिता वापस प्राप्त करने हेतु लगभग 88% अधिक मुआवजा उठाना पड़ता है। लोग यदि शिक्षा के लिए चले जाते हैं तो यह लागत लगभग 90% होती है।

जब हम दूसरे राज्य में प्रवासन पर विचार करते हैं तो तस्वीर और अधिक जटिल हो जाती है। दो अलग-अलग राज्यों के दो पड़ोसी जिलों के बीच काम करने के लिए राज्य की सीमाओं को पार करने की लागत पड़ोसी जिलों के एक ही राज्य में होने की तुलना में लगभग दोगुनी थी। यह प्रभाव तब और भी बड़ा होता है जब प्रवासन का कारण शिक्षा4 था। राज्य में छात्रों के लिए कोटा जैसी कई राज्य-स्तरीय नीतियां शिक्षा हेतु अंतरराज्यीय गतिशीलता में बाधाएं पैदा करती हैं, लेकिन काम के लिए नहीं।

मेरे अनुमान के अनुसार शिक्षा के लिए यह प्रवासन लागत कितनी महत्वपूर्ण है? इसे मापने के लिए, मैंने अपने तरीके से लोगों को उनके गृह जिलों के स्कूलों में जाने के लिए प्रतिबंधित कर दिया। इससे क्षेत्रीय असमानता में 47% की वृद्धि हुई। नमूने में सबसे खराब और सबसे अच्छे जिले के कल्याण लाभ के बीच के अंतर में 56% की वृद्धि हुई।

मुझे लगता है कि व्यापार के कारण होने वाली क्षेत्रीय असमानता को कम करने में, नौकरियों के लिए प्रवासन लागत में कमी की तुलना में शिक्षा के लिए प्रवासन लागत में कमी किया जाना अधिक महत्वपूर्ण है। इस खोज के पीछे अंतर्ज्ञान यह है कि कोई व्यक्ति शिक्षा के लिए ऐसे कॉलेज में जा सकता है जो आईटी नौकरियों के करीब है, जिससे यह संभावना कम है कि उन्हें अपने जीवन में नौकरी के लिए बाद में फिर से स्थानांतरित होने की आवश्यकता होगी। हालांकि, अगर शिक्षा के लिए बाहर जाने में उच्च बाधा किसी व्यक्ति को पहले स्थान में शिक्षा प्राप्त करने से रोकती हो तो काम के लिए कम गतिशीलता लागत बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती है।

नीति क्रियान्वयन

कॉलेजों में छात्रों के लिए राज्य में कोटा कम करने से शिक्षा के लिए बाहर जाने की लागत को कम करके शिक्षा के लिए प्रवासन की लागत को कम किया जा सकता है। मेरा अनुमान है कि शिक्षा के लिए बाहर जाने की सभी सीमा लागतों को समाप्त करने से कल्याण लाभ में क्षेत्रीय असमानता आधे से अधिक कम हो जाती है। शिक्षा के लिए अंतरराज्यीय बाधाओं को कम करने से राज्य के बाहर के छात्रों के लिए शिक्षा तक पहुंच में काफी वृद्धि हो सकती है। यह दूरस्थ क्षेत्रों के लोगों के लिए शिक्षा तक पहुंच प्राप्त करने और अधिक उच्च-कुशल नौकरियों वाले क्षेत्रों में प्रवास करने के अवसर को बढ़ा सकता है। यद्यपि यह नीति नौकरियों के वितरण में असमानता को कम नहीं करती है, यह अधिक लोगों को शिक्षा तक पहुंचने में सक्षम बनाकर कल्याण के वितरण में असमानता को कम करती है, और इसलिए संभावित रूप से कुशल नौकरियों तक पहुंच बनाती है। इस प्रकार से, इन निष्कर्षों से पता चलता है कि भले ही व्यापार के कारण विस्थापित श्रमिकों के लिए श्रम बाजार नीतियों पर और नौकरियों के वितरण में भौगोलिक असमानता पर बहुत जोर दिया गया हो, शिक्षा बाजार से संबंधित नीतियां कम से कम व्यापार से संबंधित कुछ क्षेत्रीय असमानता का हल करने में प्रभावी हो सकती हैं।

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टिप्पणियाँ:

  1. गरीब को यहां गरीबी के प्रमुख अनुपात के रूप में परिभाषित किया गया है जो एक दिन में US$5.50 (2011 क्रय शक्ति समता) है।
  2. मैं इस विश्लेषण में भारत की 2001 और 2011 की जनगणना, 1998, 2005, और 2013 की आर्थिक जनगणना, 1992, 1995, 1998, 1999, 2002, और 2003 नैसकॉम सर्वेक्षणों और 1993,1999,2004,2005,2007,2009, और 2012 के एनएसएसओ सर्वेक्षण पर विचार करती हूं।
  3. उदाहरण के लिए ब्रायन और मोर्टन (2019) और फैन (2019) देखें, जो क्रमशः इंडोनेशिया और चीन के लिए समग्र प्रवासन लागत ('कारण' से अलग नहीं) का अनुमान लगाते हैं।
  4. यह निष्कर्ष कोन, लियू, मट्टू, ओजडेन और शर्मा (2018) के निष्कर्षों के अनुरूप है। मैं इसके अतिरिक्त, प्रवासन के कारणों से गतिशीलता लागतों को मापती हूं।

लेखक परिचय: देवकी घोष व्यापार और एकीकरण इकाई, विकास अर्थशास्त्र अनुसंधान समूह (DECRG), विश्व बैंक में एक अर्थशास्त्री हैं।

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