हालांकि असमानता संबंधी हाल के शोध से पता चलता है कि उच्च जातियां भौतिक कल्याण की दृष्टी से बहुत आगे हैं, पूरे भारत में जातिगत असमानता में व्यापक भिन्नता है। जातिगत असमानता के तीन रूपों - परिणाम (आय), अवसर (साक्षरता), और स्थिति (अंतर-जातीय विवाह, अस्पृश्यता और अपराध) को मापने पर इस लेख में पाया गया है कि राज्य की रैंकिंग माने जाने वाले संकेतक पर निर्भर करती है। हालांकि, उत्तर-दक्षिण में एक स्पष्ट विभाजन दिखता है।
आम कहावत कि, "भारत में लोग वोट नहीं डालते, वे अपनी जाति को वोट देते हैं", पूरी तरह से गलत नहीं है। जाति की प्रबलता सभी स्तरों पर राजनीति को निर्धारित करती है (चंद्र 2004)। अम्बेडकर, लोहिया और पेरियार जैसे राजनीतिक विचारक जिन्हें अधिकांश समकालीन निचली जाति की पार्टियां पसंद करती हैं, का भी मानना था कि वर्ग से अधिक जाति भारतीय समाज का आधार थी। असमानता पर किया गया हालिया शोध उनके इस दावे का समर्थन करता है - उच्च जातियों में भूमि स्वामित्व, उपभोग व्यय और आय का उच्चतम स्तर है, इसके बाद अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), और अनुसूचित जाति (एससी) (दुबे और देसाई 2011, भारती 2019) हैं। लेकिन साथ ही, सभी राज्य समान रूप से असमान नहीं हैं। दक्षिण भारत में सामाजिक आंदोलनों के लंबे इतिहास को समय के साथ सामाजिक पदानुक्रम को कम करने का श्रेय दिया गया है (आहूजा 2019)। कुछ विद्वानों ने यह भी तर्क दिया है कि हिमालयीन राज्यों में रहनेवाले पहाड़ी समुदाय के लोग अपने कठोर भूभाग में जीवित रहने के लिए एक-दुसरे पर अधिक आश्रित होते हैं, नतीजतन वे अधिक समानाधिकारवादी लगते हैं (दास एवं अन्य, 2015)। लेकिन भारतीय राज्यों की जातिगत असमानता के मामले में तुलना कैसे की जाये? और हमें सबसे पहले असमानता को कैसे मापना चाहिए?
जातिगत असमानता को मापना
मैं अपनी बात राजनीतिक सिद्धांत से शुरू करती हूं। समानता की अवधारणा तीन तरीकों से की गई है: (i) परिणामों की समानता, (ii) अवसर की समानता, और (iii) सामाजिक स्थिति में समानता। समानता की सबसे बुनियादी समझ व्यक्ति की भौतिक स्थिति पर आधारित है। आम तौर पर आय और धन के जरिये जीवन की गुणवत्ता अच्छी बनाई जा सकती है। परिणामों की समानता की व्याख्या समूहों में इन परिणामों में अंतर के रूप में की जा सकती है। अवसर की समानता कुछ हद तक समान अवसर प्रदान करने में राज्य और समाज की भूमिका को दर्शाती है। हर व्यक्ति धनी परिवार में पैदा नहीं हो सकता है, लेकिन विशेष रूप से शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा जैसी कुछ सार्वजनिक सेवाएं सभी के लिए सुलभ होनी चाहिए। विकास के क्षेत्र में अवसर की समानता के सिद्धांतों ने संयुक्त राष्ट्र द्वारा मानव विकास सूचकांक (एचडीआई) के निर्माण को प्रेरित किया है। एचडीआई तीन कारकों - आय, स्वास्थ्य और शिक्षा के संदर्भ में व्यक्ति के कल्याण को मापता है। स्थिति की समानता समूहों में 'सम्मान', मान-सम्मान या प्रतिष्ठा के वितरण से संबंधित है। भौतिक अभाव या सार्वजनिक सेवाओं तक पहुंच की कमी, जो पहली दो अवधारणाओं में है, के बजाय स्थिति की असमानता भेदभाव और अपमान के माध्यम से प्रकट होती है (देशपांडे 2019)। भारत में जाति व्यवस्था की विरासत को देखते हुए स्थिति विशेष रूप से प्रासंगिक है। यह आश्चर्य की बात नहीं कि निचली जाति की लामबंदी ने अपना ध्यान जाति पदानुक्रम (जेन्सियस 2017) के अपमान से लड़ने पर केंद्रित किया है।
एक नए शोध में, मैं सार्वजनिक रूप से उपलब्ध डेटासेट (चक्रवर्ती 2021) पर भरोसा करते हुए, एससी और अन्य समूहों के बीच के अंतर को मापकर इन अवधारणाओं को संचालित करती हूं। मैं भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) के आय के आंकड़ों के माध्यम से परिणामों में असमानता को मापती हूं। "बीच-समूह असमानता (बीजीआई)" का माप जाति और आय के बीच के संबंध से मेल खाता है। अवसर में असमानता को मापने के लिए, मैं जनगणना के आंकड़ों के आधार पर सामान्य आबादी और अनुसूचित जाति के बीच की साक्षरता दर में अंतर की जांच करती हूं। स्थिति असमानता की अवधारणा को क्रियान्वित करना अधिक कठिन है। आदर्श रूप से, सामाजिक पदानुक्रम की ताकत की गणना करने में स्थिति का माप सक्षम होना चाहिए जो समूहों की आर्थिक और राजनीतिक शक्ति से अलग है। सगोत्र विवाह1 और अलगाव के मानदंडों के माध्यम से जाति को बनाए रखा जाता है। हाल ही में, यानि 2011 में अंतर-जातीय विवाह की दर 6% से कम थी (चौधुरी एवं अन्य 2018)। हालांकि संविधान ने अस्पृश्यता को अपराध घोषित कर दिया है, फिर भी देश भर में कुछ रूपों में अस्पृश्यता का प्रचलन जारी है (थोरात और जोशी 2020)। अधिक चरम मामलों में, जाति पदानुक्रम हिंसा के माध्यम से लागू किया जाता है। जाति-आधारित स्थिति असमानता को मैं तीन तरीकों से मापती हूं: अंतर्जातीय विवाह की प्रधानता, अस्पृश्यता की प्रथा और जाति-आधारित हिंसा2। पहले के दो माप आईएचडीएस के डेटा पर आधारित हैं। जाति-आधारित हिंसा को मापने के लिए मैं राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के एससी के खिलाफ गंभीर अपराधों के डेटा का उपयोग करती हूं।
जातिगत असमानता के आधार पर राज्यों की रैंकिंग
तो जाति-आधारित असमानता के मामले में भारतीय राज्य कैसे रैंक करते हैं? इसका उत्तर कुछ हद तक इस बात पर निर्भर करता है कि हम क्या माप रहे हैं। हैरानी की बात है कि असमानता के पांच माप एक दूसरे के साथ अत्यधिक सह-संबद्धित नहीं हैं (तालिका 1)। स्थिति की असमानता के माप कुछ समान पैटर्न प्रस्तुत करते हैं, लेकिन कुल मिलाकर, भौतिक कल्याण और सामाजिक संबंधों के मापों के बीच एक स्पष्ट अंतर है। हरियाणा और पंजाब में आय, साक्षरता और अंतरजातीय विवाह में असमानता के उच्चतम स्तर हैं, लेकिन इन राज्यों का अस्पृश्यता और जाति-आधारित हिंसा की प्रथा के सन्दर्भ में रैंक निम्न है। इसी प्रकार से, हिमाचल प्रदेश में जाति आधारित हिंसा कम है, लेकिन पहाड़ी समुदायों के बारे में हमारी समझ के विपरीत, उनके यहाँ आय-आधारित असमानता और अस्पृश्यता का उच्चतम स्तर है। गुजरात और आंध्र प्रदेश विपरीत पैटर्न का प्रतिनिधित्व करते हैं- इन राज्यों में आय और साक्षरता में असमानता अपेक्षाकृत कम होने के बावजूद वहां की अनुसूचित जाति बहिष्करण और हिंसा का अनुभव करती है। ऐसा क्यों हो सकता है?
तालिका 1. सह-संबंध मैट्रिक्स: जातिगत असमानता की माप
आय |
साक्षरता |
अंतर्जातीय विवाह |
अस्पृश्यता |
हत्या |
|
आय |
1.00 |
||||
साक्षरता |
-0.22 |
1.00 |
|||
अंतर्जातीय विवाह |
-0.10 |
-0.29 |
1.00 |
||
अस्पृश्यता |
0.18 |
-0.26 |
0.72 |
1.00 |
|
हत्या |
-0.13 |
-0.22 |
0.56 |
0.49 |
1.00 |
सैमुअल हंटिंगटन का एक प्रसिद्ध तर्क है कि संघर्ष अक्सर सामाजिक परिवर्तन (हंटिंगटन 1968) के साथ होता है। हाल के एक अध्ययन में पाया गया है कि अनुसूचित जाति के खिलाफ हिंसक अपराध उन जिलों में सबसे अधिक है जहां अनुसूचित जाति और उच्च जातियों के बीच जीवन स्तर में अंतर सबसे ज्यादा कम हुआ है (शर्मा 2015)। इसलिए अनुसूचित जाति के खिलाफ हिंसा निचली जाति के सशक्तिकरण के खिलाफ एक प्रतिक्रिया को दर्शा सकती है। विडम्बना यह है कि, जाति-आधारित हिंसा दो चरम संदर्भों में से एक में कम हो सकती है- जब सामाजिक संबंध अपेक्षाकृत समानाधिकारवादी होते हैं, जैसा कि दक्षिण भारत में परिलक्षित होता है, या जब सामाजिक व्यवस्था इतनी असमान होती है कि निचली जातियां पदानुक्रम में अपनी स्थिति पर सवाल उठाने में असमर्थ होती हैं, जैसा कि संभवतः कुछ उत्तर भारतीय राज्यों में परिलक्षित होता है। अपराध के आंकड़े पूर्वाग्रह की रिपोर्टिंग से भी प्रभावित होने की संभावना है। हत्या जैसे गंभीर अपराधों के अपवाद के साथ, अनुसूचित जाति के पीड़ित अपराधों की रिपोर्ट करने में संकोच कर सकते हैं, या स्थानीय अभिजात वर्ग के दबाव के कारण पुलिस उनकी रिपोर्ट दर्ज करा लेने में अनिच्छुक हो सकती है। केरल में अनुसूचित जाति की हत्याओं की दर कम है, लेकिन यह अनुसूचित जाति के बलात्कारों के उच्चतम स्तरों में से एक है। बलात्कार के आंकड़े वास्तव में लिंग-संबंधी अपराधों में कम रिपोर्टिंग पूर्वाग्रह को दर्शा सकते हैं। अतः जातिगत असमानता को इंगित करने के बजाय, ये संख्याएं वास्तव में अपेक्षाकृत समान लिंग और जाति संबंधों को दर्शाती हैं और इसके विपरीत, एक उत्तरदायी राज्य- राजस्थान में एससी के प्रति अत्यधिक हिंसा की रिपोर्ट की जाती है, लेकिन यह राज्य अन्य राज्यों की तुलना में इन अपराधों के लिए बहुत कम लोगों को गिरफ्तार करता है। यह राज्य जाति-आधारित असमानता के अधिकांश मापों में भी शीर्ष पर है।
चित्र 1. जातिगत असमानता के विभिन्न रूपों पर राज्यों की रैंकिंग
चित्र 1 में आये अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अनुवाद :-
Income= आय Literacy= साक्षरता Inter-state marriage= अंतर्राज्यीय विवाह Untouchability= अस्पृश्यता crime= अपराध arrests=गिरफ्तारियां
असमानता के रूपों में विपरीत पैटर्न के होते हुए भी, राज्य रैंकिंग में उत्तर-दक्षिण विभाजन सबसे अलग है (चित्र 2)। जब सामाजिक संबंधों की बात आती है तो दक्षिणी राज्य वास्तव में अधिक समान होते हैं। उत्तरी राज्यों राजस्थान, उत्तर प्रदेश और बिहार में अधिकांश मापों पर अत्यधिक असमानता है। इसके विपरीत, असम और केरल राज्य अधिकांश राज्यों की तुलना में बेहतर प्रदर्शन करते हैं। विकास में केरल के असाधारण प्रदर्शन और समानाधिकारवादी सामाजिक संरचना को व्यापक रूप से प्रलेखित किया गया है (ड्रेज़ और सेन 2013)। दुर्भाग्य से, असम में जाति की राजनीति ने कम ध्यान आकर्षित किया है, तथापि ये निष्कर्ष मौजूदा शोध के अनुरूप हैं। यह एकमात्र ऐसा राज्य है जहां अनुसूचित जाति के स्वामित्व वाली फर्मों में कार्यरत गैर-कृषि श्रमिकों की हिस्सेदारी उनकी जनसंख्या हिस्सेदारी से अधिक है (अय्यर एवं अन्य 2013)। आम तौर पर महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश और पश्चिम बंगाल राज्यं जातिगत असमानता के कई मापों में निम्न स्थान पर हैं।
चित्र 2. जातिगत असमानता के रूपों पर राज्यों का मानचित्रण
चित्र 2 में आये अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अनुवाद :-
BGI= बीच-समूह असमानता (बीजीआई) Literacy= साक्षरता
Untouchability= अस्पृश्यता Inter-state marriage=अंतर्राज्यीय विवाह violence= हिंसा
विचार-विमर्श
मेरे निष्कर्ष इस डेटा के उपलब्ध स्रोतों की विश्वसनीयता और उसकी व्याख्या के बारे में महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाते हैं। साक्षरता और अपराध के आंकड़े आधिकारिक आंकड़ों पर आधारित हैं। अनुदैर्ध्य डेटा के कुछ स्रोतों में से एक के रूप में, हम समय के साथ असमानता को ट्रैक कर पाते हैं। लेकिन जैसा कि पहले चर्चा की गई थी, अपराध के आंकड़ों पर आधारित परिणाम रिपोर्टिंग पूर्वाग्रह को दर्शा सकते हैं। आय और धन, साक्षरता, अंतर्जातीय विवाह की घटनाएँ जैसे परिणामों पर आधारित मापों की आमतौर पर पूर्वाग्रह की रिपोर्टिंग से प्रभावित होने की संभावना कम होती है। जबकि जनगणना से प्राप्त साक्षरता के आंकड़े विश्वसनीय हैं, भारत में स्कूल नामांकन और साक्षरता दर में वृद्धि के साथ ही समग्र जनसंख्या और अनुसूचित जाति के बीच की साक्षरता दर में अंतर समय के साथ-साथ कम सार्थक हो जाएगा। शैक्षिक उपलब्धि के वर्षों के आंकड़े आने वाले वर्षों में बेहतर माप प्रस्तुत करेंगे। सबसे महत्वपूर्ण बात कि पहचान आधारित भेदभाव जाति की एक परिभाषित विशेषता है, वर्तमान में केवल दो राष्ट्रीय स्तर के प्रातिनिधिक सर्वेक्षणों- आईएचडीएस और ग्रामीण आर्थिक और जनसांख्यिकी सर्वेक्षण (आरईडीएस) ने जाति-आधारित बहिष्करण पर डेटा एकत्र किया है। आय असमानता, अंतरजातीय विवाह और अस्पृश्यता पर यहां प्रस्तुत माप आईएचडीएस सर्वेक्षण के एक दौर पर आधारित हैं। अन्य स्रोतों से प्राप्त निष्कर्ष इन परिणामों की पुष्टि करने और समय के साथ परिवर्तनों का पता लगाने के लिए उपयोगी होंगे। जैसा कि हाल ही में कई प्रसिद्ध बुद्धिजीवियों ने तर्क दिया है, जाति-आधारित जनगणना से हम सामाजिक समूहों में संसाधनों और सामाजिक अवसर कैसे वितरित किए जाते हैं इसे बेहतर ढंग से समझ सकेंगे और इसलिए अधिक प्रभावी सार्वजनिक नीतियां तैयार करने में हमें मदद मिल सकती है। लेकिन जो स्पष्ट है वह यह है कि विशेष रूप से अधिक शहरीकरण और गैर-कृषि क्षेत्रों में वृद्धि सहित जाति-आधारित असमानता की जटिलता को समझने के लिए हमें बहिष्करण के भौतिक और गैर-भौतिक दोनों स्रोतों की जांच करने की आवश्यकता है।
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टिप्पणियाँ:
- अंतर्विवाह का तात्पर्य अपनी ही जाति में विवाह करने की प्रथा से है।
- मैं आईएचडीएस सर्वेक्षण में निम्नलिखित प्रश्न का उपयोग करती हूं जो केवल एससी उत्तरदाताओं से पूछा गया था: "आपके घर में कुछ सदस्यों ने पिछले 5 वर्षों में छुआछूत का अनुभव किया है?"।
लेखक परिचय: पौलोमी चक्रवर्ती क्वीन्स यूनिवर्सिटी में राजनीतिक अध्ययन विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं और हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में वेदरहेड सेंटर फॉर इंटरनेशनल अफेयर्स में पोस्टडॉक्टरल फेलो हैं।
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