उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

भारत के औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि

  • Blog Post Date 01 मई, 2025
  • लेख
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Suresh Chand Aggarwal

Institute of Human Development

sureshchag@yahoo.com

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Bishwanath Goldar

Institute of Economic Growth

b_goldar77@yahoo.com

पहली मई को दुनिया भर में श्रमिकों के हितों के लिए समर्पित दिवस के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसी परिपेक्ष में प्रस्तुत है यह लेख हाल के वर्षों में, भारत में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में औसत वार्षिक वृद्धि दर कुल रोज़गार से अधिक हो गई है। इस लेख में गोलदार और अग्रवाल दर्शाते हैं कि इस प्रवृत्ति के साथ-साथ औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि हुई है, जो कुल मिलाकर महिलाओं के स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में हुई वृद्धि के कारण है। वे अपने निष्कर्षों में महिलाओं के स्वामित्व वाली इकाइयों की उत्पादकता बढ़ाने के उपायों की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।

वर्ष 1993-94 और 2019-20 के बीच, भारत के विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में वार्षिक वृद्धि दर लगभग 2.2% थी (तुलनात्मक रूप से, कुल नौकरियों की वृद्धि दर लगभग 1.4% प्रति वर्ष थी)।1 वर्ष 2020-21 से 2023-24 तक, विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में औसत वार्षिक वृद्धि दर लगभग 5.5% (गोलदार और अग्रवाल 2024) रही, जो कुल रोज़गार वृद्धि दर 4.3% से अधिक थी।

हाल के वर्षों में विभिन्न राज्यों में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में वृद्धि दर में काफी अंतर रहा है (आकृति-1)। कुछ राज्यों में लगभग 10% प्रति वर्ष या उससे अधिक की वृद्धि दर दर्ज की गई (राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश और बिहार), जबकि कुछ अन्य राज्यों ने विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में नगण्य वृद्धि या यहाँ तक कि गिरावट दर्ज की है (उदाहरण के लिए, तमिलनाडु)। विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार वृद्धि के अंतर-राज्य पैटर्न का ग्रामीण महिला कार्यबल भागीदारी दर (आरएफडब्ल्यूपीआर) में वृद्धि के साथ एक सकारात्मक सहसम्बन्ध दिखता है (आकृति-2)।2 ऐसा इसलिए अपेक्षित है क्योंकि वर्ष 2017-18 और 2023-24 के बीच आरएफडब्ल्यूपीआर में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र की महिला श्रमिकों की संख्या में लगभग 8 करोड़ की वृद्धि हुई है। इनमें से 9% महिलाएं विनिर्माण क्षेत्र में कार्यरत हैं (गोलदार और अग्रवाल 2024)।

आकृति-1. विनिर्माण क्षेत्र में रोज़गार वृद्धि की दर, वर्ष 2018-19 से वर्ष 2023-24 (प्रति वर्ष%)

स्रोत : लेखकों द्वारा पीएलएफएस डेटा के आधार पर की गई गणना।

आकृति-2. विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में आरएफडब्ल्यूपीआर और वृद्धि दर में परिवर्तन

स्रोत : लेखकों द्वारा पीएलएफएस डेटा के आधार पर की गई गणना। 

औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि

वर्ष 1999-2000 और 2011-12 के बीच, वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी 22% थी। वर्ष 2017-18 और 2023-24 के बीच, वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी 74% थी, जिसमें ग्रामीण महिलाओं की हिस्सेदारी 46 प्रतिशत थी। हाल के समय में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में वृद्धि में देखा गया यह पैटर्न भारत में औद्योगिक श्रम के नारीकरण की अभिव्यक्ति है।

वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी विभिन्न राज्यों में अलग-अलग थी (आकृति-3)। गुजरात, महाराष्ट्र और राजस्थान में वर्ष 2018-19 और वर्ष 2023-24 के बीच कुल विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में लगभग 45% की वृद्धि हुई। इन राज्यों में वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी अपेक्षाकृत कम थी (औसतन लगभग 36%)। दूसरी ओर, वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी बिहार में लगभग 90% और असम में 85% थी। कई राज्यों में विनिर्माण क्षेत्र में महिला रोज़गार में वृद्धि कुल रोज़गार से अधिक रही क्योंकि विनिर्माण क्षेत्र में पुरुष श्रमिकों की संख्या में गिरावट आई। उदाहरण के लिए, केरल में वर्ष 2018-19 और 2023-24 के बीच विनिर्माण क्षेत्र में कुल रोज़गार की संख्या में 30,000 की वृद्धि हुई, जबकि महिला रोज़गार की संख्या में 65,000 की वृद्धि हुई। ऐसा पैटर्न कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भी पाया गया। ज़ाहिर है, भारत में औद्योगिक श्रम का नारीकरण भौगोलिक रूप से खंडित है।

आकृति-3. विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में कुल वृद्धि और राज्यवार वृद्धिशील विनिर्माण रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी

टिप्पणी : केवल उन राज्यों पर विचार किया गया है जिनमें वर्ष 2018-19 और 2023-24 के बीच विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार की संख्या में 500,000 या उससे अधिक की वृद्धि हुई है।

स्रोत : लेखकों द्वारा पीएलएफएस डेटा के आधार पर की गई गणना।

गहन विश्लेषण से पता चलता है कि जिन राज्यों में संगठित या औपचारिक विनिर्माण का हिस्सा अपेक्षाकृत अधिक है (उदाहरण के लिए, हरियाणा) उनमें औद्योगिक श्रम में महिलाओं की हिस्सेदारी में कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं हुई (आकृति-4)। दूसरी ओर, जिन राज्यों में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में औपचारिक क्षेत्र का हिस्सा कम है (जैसे असम, झारखंड, पश्चिम बंगाल और बिहार) वहाँ औद्योगिक श्रम में महिलाओं की हिस्सेदारी में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। वर्ष 2022-23 में विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में औपचारिक क्षेत्र की हिस्सेदारी तथा वर्ष 2018-19 और 2023-24 के दौरान वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी के बीच के नकारात्मक सहसम्बन्ध मुख्य रूप से इस तथ्य के कारण है कि हाल के वर्षों में औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी में वृद्धि विनिर्माण के अनौपचारिक क्षेत्र में हुई है, लेकिन औपचारिक क्षेत्र में नहीं। दस या उससे अधिक श्रमिकों  वाले विनिर्माण उद्यमों में पुरुष श्रमिकों की सापेक्ष हिस्सेदारी वर्ष 2018-19 और 2023-24 के बीच 37.5% से बढ़कर 47% हो गई (आकृति-5), जबकि महिला श्रमिकों के सन्दर्भ में यह हिस्सेदारी लगभग 20% पर बनी हुई है (इसके अलावा, उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई), जिसमें संगठित विनिर्माण को शामिल किया जाता है, यह दर्शाता है कि सीधे तौर पर नियोजित कुल श्रमिकों में महिलाओं की हिस्सेदारी नहीं बढ़ी है)।

आकृति-4. औपचारिक क्षेत्र का आकार और राज्यवार वृद्धिशील विनिर्माण क्षेत्र के रोज़गार में महिलाओं की हिस्सेदारी

स्रोत : लेखकों द्वारा पीएलएफएस डेटा के आधार पर की गई गणना।

आकृति-5. 10 से अधिक श्रमिकों वाले विनिर्माण उद्यमों में काम करने वाले श्रमिकों का लिंग (स्त्री-पुरुष) के आधार पर अनुपात

स्रोत : लेखकों द्वारा पीएलएफएस डेटा के आधार पर की गई गणना।

महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों में वृद्धि

भारत में औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने से संबंधित आयाम विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में वृद्धि है, जिनकी मालिक महिलाएँ हैं। असंगठित क्षेत्र उद्यमों के वर्ष 2022-23 के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसयूएसई) के आँकड़ों के अनुसार, उस वर्ष लगभग 55% स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों का स्वामित्व महिलाओं के पास था, जो वर्ष 2015-16 (राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण 73वाँ दौर) से  लगभग 45% से अधिक था। चूँकि महिला-स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों में महिलाओं का कार्य-बल पुरुष-स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक होता है, इसलिए इससे विनिर्माण में महिला रोज़गार को बढ़ावा मिलता है।

अखिल भारतीय स्तर पर, वर्ष 2015-16 और 2022-22 के बीच महिला-स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में लगभग 10 प्रतिशत अंकों की वृद्धि हुई। हालांकि, यह वृद्धि प्रत्येक राज्य में अलग-अलग थी और कुछ राज्यों, जैसे कि बिहार में तो यह बहुत अधिक थी (आकृति-6)।3 जिन राज्यों में महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में पर्याप्त वृद्धि हुई है, उनमें बिहार, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश और असम शामिल हैं। यह महिला रोज़गार हिस्सेदारी में वृद्धि के साथ अत्यधिक सहसंबद्ध है। इसके अलावा, आकृति-6 का पैटर्न कुछ हद तक आकृति-1 में दिखने वाले पैटर्न से मेल खाता है। निश्चित रूप से, महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों की संख्या में वृद्धि और महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में वृद्धि, भारत में औद्योगिक कार्यबल में महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ने के पीछे का एक प्रमुख कारक है।

आकृति-6. महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात और अनौपचारिक विनिर्माण रोज़गार में राज्यवार महिला हिस्सेदारी में वृद्धि (वर्ष 2015-16 से 2022-23 तक)

स्रोत : एएसयूएसई, 2022-23 और एनएसएस 73वें राउंड के आधार पर लेखकों द्वारा की गई गणना।

चिंता और संभावित उपचारात्मक कार्रवाई

महिला स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों के अनुपात में वृद्धि से विनिर्माण में महिला श्रमिकों के रोज़गार में वृद्धि हुई है, जो कि एक स्वागत-योग्य विकास है। इससे एक चिंता का विषय भी जुड़ा हुआ है। एक सामान्य महिला-स्वामित्व वाली अनौपचारिक विनिर्माण इकाई का आकार पुरुष-स्वामित्व वाली इकाई के आकार से लगभग आधा होता है और प्रति श्रमिक सकल मूल्य वर्धन (जीवीए) लगभग एक-तिहाई होता है। इसका तात्पर्य यह है कि महिला-स्वामित्व वाली इकाइयों के अनुपात में वृद्धि से उत्पादकता में कमी की संभावना है।

हम एएसयूएसई 2022-23 (गोलदार और अग्रवाल 2025) से प्राप्त इकाई-स्तरीय डेटा के आधार पर महिला-स्वामित्व वाली अनौपचारिक क्षेत्र के विनिर्माण उद्यमों में श्रम उत्पादकता के निर्धारकों का एक अर्थमितीय विश्लेषण करते हैं। प्राप्त परिणामों से पता चलता है कि उद्यम का आकार उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डालता है, जो महिला-स्वामित्व वाले उद्यमों के आकार को बढ़ाने की आवश्यकता की ओर इशारा करता है। इसमें वित्तीय सहायता प्राप्त करना एक बड़ी बाधा हो सकती है। गुप्ता एवं अन्य (2024) महिला उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए व्यवसाय विकास सेवाओं की आवश्यकता को रेखांकित करते हैं और सिफारिश करते हैं कि प्राथमिकता-क्षेत्र ऋण में, सूक्ष्म उद्यम श्रेणी के एक अन्य उप-खंड को महिलाओं के स्वामित्व वाले विकास-उन्मुख उद्यमों पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए ताकि वाणिज्यिक बैंकों को इस खंड को ऋण देने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।

हम यह भी पाते हैं कि उद्यमियों और श्रमिकों की शिक्षा का स्तर महिला-स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों की उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव डालता है और यदि उद्यम इंटरनेट का उपयोग करता है और जिस राज्य में उद्यम स्थित है, वहाँ की वयस्क आबादी में पर्याप्त आईसीटी (सूचना और संचार प्रौद्योगिकी) क्षमता है, तो उद्यम में उत्पादकता अधिक होगी। कपूर (2024) ने नोट किया है कि महिला उद्यमियों के सामने वित्त, कौशल, नेटवर्क और बाज़ार तक पहुँच में आने वाली चुनौतियों का समाधान करने के लिए भारत द्वारा की गई डिजिटल प्रगति का लाभ उठाने की महत्वपूर्ण गुंजाइश है, जिससे महिला उद्यमिता की क्षमता को बढ़ावा मिलेगा। इस प्रकार, महिला-स्वामित्व वाले विनिर्माण उद्यमों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए, डिजिटल बुनियादी ढांचे में निवेश और ग्रामीण क्षेत्रों में वयस्क महिलाओं के बीच डिजिटल साक्षरता बढ़ाने और मोबाइल फोन तक पहुँच बढ़ाने के लिए नीतियों की आवश्यकता है। साथ ही, उद्यमियों और कामकाजी उम्र की ग्रामीण महिला आबादी की सामान्य शिक्षा और तकनीकी प्रशिक्षण के स्तर को बढ़ाने की भी आवश्यकता है।

भारतीय महिलाओं द्वारा श्रम बल में भागीदारी और उद्यमिता में सामना की जाने वाली बाधाओं के अपने विश्लेषण के आधार पर, चिपलूनकर और गोल्डबर्ग (2024) निष्कर्ष निकालते हैं कि केवल महिला श्रम बल में भागीदारी बढ़ाने पर केन्द्रित नीतियों से महिला मज़दूरी और महिला उद्यमियों के मुनाफे पर अनपेक्षित प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। इसलिए, ऐसी नीतियाँ महिला उद्यमिता का समर्थन करने वाले उपायों के साथ लागू की जानी चाहिए, जिसके परिणामस्वरूप महिलाओं को अधिक लाभ होगा। वे यह भी दर्शाते हैं कि नई महिला उद्यमियों के प्रवेश को प्रोत्साहित करने के बजाय मौजूदा महिला-स्वामित्व वाले उद्यमों का समर्थन करने को लक्षित हस्तक्षेप महिला उद्यमिता का समर्थन करने के की दिशा में अधिक प्रभावी होंगे।

इस लेख में व्यक्त किए गए विचार पूरी तरह से लेखकों के अपने हैं, और रूरी नहीं कि वे उनके संगठनों या आई4आई संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

टिप्पणियाँ :

  1. कुल रोज़गार में वृद्धि दर भारत केएलईएमएस डेटा पर आधारित है जिसमें रोज़गार अनुमान लगाने के लिए पीएलएफएस (आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण) डेटा का उपयोग किया गया है। विनिर्माण क्षेत्र की रोज़गार वृद्धि दर की गणना गोलदार (2024) और वर्ष 2019-20 से 2023-24 के पीएलएफएस डेटा पर आधारित है।
  2. यह रिवर्स (शहरी से ग्रामीण) माइग्रेशन (अग्रवाल और गोलदार 2024) से भी जुड़ा हुआ है।
  3. अन्य राज्यों की तुलना में बिहार के प्रदर्शन पर चर्चा के लिए अग्रवाल और गोलदार (2024) देखें। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : सुरेश चंद अग्रवाल 2017 में दिल्ली विश्वविद्यालय, साउथ कैंपस के अनुप्रयुक्त सामाजिक विज्ञान और मानविकी संकाय के डीन और वित्त एवं व्यवसाय अर्थशास्त्र विभाग (जिसे पहले व्यवसाय अर्थशास्त्र के नाम से जाना जाता था) के प्रमुख के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। वर्तमान में वे दिल्ली के मानव विकास संस्थान में विज़िटिंग प्रोफेसर हैं। उन्होंने कई पीएचडी और एमफिल छात्रों का मार्गदर्शन किया है और उनकी चार पुस्तकें तथा कई प्रतिष्ठित राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में साठ से अधिक शोधपत्र प्रकाशित हो चुके हैं। बिश्वनाथ गोलदार आर्थिक विकास संस्थान (आईईजी), दिल्ली के अर्थशास्त्र के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं। वर्तमान में वे आर्थिक विकास संस्थान में नॉन रेज़िडेंट वरिष्ठ फेलो हैं। वे राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग के सदस्य रह चुके हैं और भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय की कई समितियों से जुड़े रहे हैं। वर्तमान में वे राष्ट्रीय लेखा सांख्यिकी पर सलाहकार समिति के अध्यक्ष और राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण की संचालन समिति के सदस्य हैं।

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