कोविड-19 महामारी और इससे संबंधित लॉकडाउन का अर्थव्यवस्था पर बहुत ही बुरा प्रभाव पड़ा जिसके कारण सबसे कमजोर वर्गों को आजीविका, कमाई का नुकसान हुआ और उन्हें खाद्य असुरक्षा भी झेलनी पड़ी। यद्यपि इस महामारी का लोगों के आर्थिक कल्याण पर पड़ा प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ प्रभाव उतना ही प्रतिकूल है लेकिन वह साफ दिखता नहीं है।
अगले दो सप्ताह में आयोजित की जा रही ई-संगोष्ठी में, विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञ दो विशेष रूप से कमजोर जनसांख्यिकीय समूहों-महिलाओं और बच्चों पर महामारी के पड़े मानसिक स्वास्थ्य प्रभावों पर विचार करेंगे।
24 मार्च 2020 को कोविड-19 महामारी के चलते राष्ट्रीय लॉकडाउन को शुरू हुए लगभग डेढ़ साल हो चुके हैं। कड़े लॉकडाउन और उसके बाद आर्थिक गतिविधियों में व्यवधान का अर्थव्यवस्था पर विनाशकारी प्रभाव पड़ा, जिसमें कमजोर वर्गों को आजीविका, कमाई का नुकसान हुआ और उन्हें खाद्य असुरक्षा का भी सामना करना पड़ा (ड्रेज और सोमांची 2021)। उसके बाद हमने महामारी की भयावह दूसरी लहर का सामना किया जिसमें कई लोगों ने अपने प्रियजनों को खो दिया, और अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह से पटरी पर आने के लिए अभी तक संघर्षरत है।
यद्यपि इस महामारी का लोगों के आर्थिक कल्याण पर पड़ा प्रभाव अधिक स्पष्ट रूप से दिखता है, उनके मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ प्रभाव उतना ही प्रतिकूल है लेकिन वह साफ दिखता नहीं है। हाल के शोध से पता चलता है कि लोगों में उच्च स्तर का मानसिक तनाव और चिंता पिछले एक या दो साल से बनी हुई है (अफरीदी एवं अन्य 2020ए, 2020बी, 2021ए)। इसके अलावा, स्पष्ट है कि आजीविका और कमाई का नुकसान मानसिक स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव को बढाता है। अधिक प्रासंगिक रूप से, लोगों के आवागमन पर लगे प्रतिबंधों के चलते उनके बीच की सामाजिक दूरी कुछ जनसांख्यिकीय समूहों- जैसे कि महिलाओं को दूसरों की तुलना में अलग तरह से प्रभावित कर सकती है (अफरीदी एवं अन्य 2021बी)।
इस ई-संगोष्ठी में, हमारा उद्देश्य आने वाले सप्ताह में I4I लेखों की एक श्रृंखला के माध्यम से, दो विशेष रूप से कमजोर जनसांख्यिकीय समूहों– महिलाओं और बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़े इस महामारी के प्रभावों को उज़ागर करना है।
हम इसकी शुरुआत महिलाओं की मानसिक भलाई और महिलाओं के मानसिक तनाव को कम करने के उद्देश्य से अभिनव हस्तक्षेपों- एक ग्रामीण बांग्लादेश (व्लासोपोलोस एवं अन्य 2021) और दूसरा कर्नाटक, भारत में कारखाने के प्रवासी श्रमिकों के साथ (अध्वर्यु एवं अन्य 2021) पर ध्यान केंद्रित करते हुए करते हैं।
फिर हम बच्चों और युवाओं पर महामारी के प्रभाव की तरफ जाते हैं,विशेष रूप से स्कूल बंद होने और साथियों की बातचीत के परिणामस्वरूप नुकसान के संदर्भ में। बच्चे अपने दैनिक जीवन में इस अभूतपूर्व व्यवधान का कैसे सामना कर रहे हैं? अभ्यासकर्ता (स्माइल फाउंडेशन) लघु और संभावित दीर्घकालिक प्रभावों और सूचना अभियानों तथा परामर्श के माध्यम से युवा पीढ़ी को समर्थन में माता-पिता और समुदाय की भूमिका पर विचार-विमर्श करते हैं। हम इस ई-संगोष्ठी के अंत में, स्कूल बंद रहने के परिणामस्वरूप शिक्षण की संभावित कमी के चलते शैक्षिक परिणामों में असमानता के बढ़ने पर और स्कूलों के फिर से खुलने के बाद इस अंतर को दूर करने के लिए क्या किया जा सकता है- इस पर विचार-विमर्श करेंगे (वाधवा 2021)।
इस ई-संगोष्ठी के माध्यम से, मानसिक स्वास्थ्य संकट पर रोशनी डालते हुए, हम महामारी के इस अव्यक्त लेकिन समान रूप से (यदि अधिक नहीं) कमजोर करने वाले प्रभाव के बारे में ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं।
क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक समाचार पत्र की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।
लेखक परिचय: फरजाना आफरीदी भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली की अर्थशास्त्र और योजना इकाई में प्रोफेसर हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.