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आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता श्रम बाज़ारों को प्रभावित करती है

  • Blog Post Date 21 जनवरी, 2025
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राष्ट्रपति ट्रम्प के फिर से चुने जाने से एच-1बी वीज़ा सम्बन्धी नीतियों पर बहस फिर से शुरू हो गई है, यह एक अस्थाई उच्च कौशल कार्य वीज़ा है जिसमें 70% वीज़ा भारतीयों के पास हैं। इस लेख में, वर्ष 2016 में ट्रम्प की पहली बार हुई जीत के दौरान भारत से प्राप्त नौकरियों के आँकड़ों का विश्लेषण करते हुए पाया गया है कि अमेरिकी आप्रवासन नीतियों के बारे में अनिश्चितता बढ़ने के कारण तथा वीज़ा कोटा एवं प्रक्रियाओं में कोई बदलाव नहीं होने के कारण, कई फर्मों ने नौकरियाँ अमेरिका से भारत स्थानांतरित कर दीं।

पिछले दशक में, आप्रवासन विरोधी बयानबाज़ी में वृद्धि के परिणामस्वरूप संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जर्मनी जैसे उन्नत देशों में प्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता बहुत बढ़ गई है। आप्रवासी श्रमिकों से संबंधित बहस पारंपरिक रूप से कम कुशल श्रम पर केंद्रित रही है। लेकिन, राष्ट्रपति ट्रम्प के पिछले चुनाव और उनके पहले कार्यकाल के कुछ महीनों पहले, आप्रवासन नीति की अनिश्चितता ने कुशल श्रमिकों को भी अपने घेरे में ले लिया था।

यूएस एच-1बी वीज़ा कार्यक्रम कम से कम यूएस-समतुल्य स्नातक की डिग्री वाले पेशेवरों के लिए उपलब्ध एक अस्थाई उच्च-कौशल कार्य वीज़ा है, जो ट्रम्प के पहले राष्ट्रपति अभियान के दौरान विशेष रूप से एक विवादास्पद मुद्दा बन गया था। जून 2016 में अपनी पहली प्राथमिक रिपब्लिकन जीत के दौरान और उसके बाद, ट्रम्प ने “एच-1बी वीज़ा दुरुपयोग” को रोकने के लिए अपनी प्रतिबद्धता पर ज़ोर देते हुए बार-बार तर्क दिया था कि विदेशी कर्मचारी कम वेतन पर वही काम कर रहे हैं और अमेरिकी कर्मचारियों को विस्थापित कर रहे हैं। जबकि वास्तविक वीज़ा कोटा और प्रक्रियात्मक तंत्र वर्ष 2016 के मध्य से मार्च 2017 तक अपरिवर्तित रहे, इस अवधि में आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता में अभूतपूर्व वृद्धि देखी गई (आकृति-1) जो अपने पिछले स्तर से तीन गुना तक बढ़ गई और यह किसी भी पिछले चुनाव वर्ष की तुलना में एक अभूतपूर्व वृद्धि थी।

आकृति-1. आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता

टिप्पणी : (i) यह आँकड़ा अमेरिका के तिमाही आर्थिक नीति अनिश्चितता (ईपीयू) सूचकांक (बेकर, ब्लूम और डेविस 2016) को दर्शाता है। नीली बिंदीदार रेखाएं विभिन्न अवधियों के औसत (औसत) को दर्शाती हैं जो जनवरी 2014 से मार्च 2016 की पूर्व अवधि में 145 और अप्रैल 2016 से जून 2017 की अवधि के दौरान 478 रहा। सूचकांक के निर्माण के बारे में आगे की कार्यप्रणाली सम्बन्धी जानकारी के लिए ईपीयू की वेबसाइट देखें। (ii) ऊर्ध्वाधर रेखा जून 2016 में रिपब्लिकन प्राइमरी में ट्रम्प की हुई जीत से मेल खाती है।

एच-1बी आव्रजन नीति के सम्बन्ध में यह अनिश्चितता मेज़बान और भेजने वाले दोनों देशों में विदेशी श्रमिकों की मांग को प्रभावित कर सकती है। आर्थिक सिद्धांत दर्शाता है कि बढ़ी हुई अनिश्चितता फर्मों को निवेश निर्णयों में देरी करने के लिए प्रेरित करती है (बर्नानके 1983, दीक्षित और पिंडिक 1994)। इस देरी से कम्पनियों को संसाधन देने से पहले भविष्य में नीतिगत परिवर्तनों के बारे में अधिक स्पष्टता के लिए प्रतीक्षा करने का अवसर मिलता है। एच-1बी भर्ती के विशिष्ट संदर्भ में, बढ़ती नीति अनिश्चितता यूएस-आधारित पदों के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभाओं पर विचार करने वाली कंपनियों में बड़ी हिचकिचाहट पैदा कर सकती है। एच-1बी वीज़ा प्राप्त करने की लागत के कारण नियुक्ति एक महत्वपूर्ण निर्णय बन जाता है- जटिल वीज़ा आवेदन प्रक्रिया के लिए कानूनी शुल्क, प्रशासनिक समय और संभावित स्थानांतरण व्यय सहित काफी संसाधनों की आवश्यकता होती है, जिससे प्रतीक्षा करने का विकल्प मूल्य बढ़ जाता है। जब विनियामक परिदृश्य अस्थिर दिखाई देता है तब कंपनियाँ वैकल्पिक प्रतिभा अधिग्रहण रणनीतियों का सहारा भी ले सकती हैं। उदाहरण के लिए, भेजने वाले देश की कंपनियाँ ऐसे श्रमिकों की भर्ती बढ़ा सकती हैं, जिन्हें एच-1बी वीज़ा में अनिश्चितता न होने पर अमेरिका (मेज़बान देश) में काम पर रखा गया होता। हम अपने हालिया अध्ययन (चौरे, महाजन और तोमर 2024) में, वर्ष 2014 से 2017 तक कुशल श्रमिकों के लिए भारत के अग्रणी नौकरी मंच से डेटा का उपयोग करके इस प्रश्न की जांच करते हैं। एच-1बी कार्यक्रम विशेष रूप से भारतीय श्रमिकों के लिए प्रासंगिक है, जो इस वीज़ा का चौंका देने वाला 70% हिस्सा हैं।

अमेरिकी आप्रवासन नीति सम्बन्धी अनिश्चितता का प्रभाव

हम एच-1बी आप्रवासन नीति के सम्बन्ध में बढ़ती अनिश्चितता के कारण अमेरिका और भारत, दोनों ही देशों में, फ़र्मों द्वारा भारत-आधारित कर्मचारियों की मांग पर पड़ने वाले प्रभाव को देखते हैं। हम पाते हैं कि राष्ट्रपति ट्रम्प की पहली प्राथमिक जीत के तुरंत बाद प्लेटफॉर्म पर अमेरिका-स्थित पदों के लिए नौकरी पोस्टिंग में 15% की गिरावट आई (आकृति-2)।

आकृति 2. अमेरिका-स्थित नौकरियों के लिए पोस्टिंग पर प्रभाव

टिप्पणी : (i) यह आँकड़ा फर्म-स्तरीय स्थिर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए अमेरिका-स्थित पदों के लिए पोस्टिंग में तिमाही प्रवृत्ति को दर्शाने वाले गुणांकों को दर्शाता है। (ii) ऊर्ध्वाधर रेखा जून 2016 में रिपब्लिकन प्राइमरी में ट्रम्प की जीत से मेल खाती है।

यह गिरावट दो कारणों से हो सकती है- अमेरिका में स्थानीय श्रमिकों की बढ़ती भर्ती या उन कम्पनियों द्वारा भारत-आधारित पदों के लिए बढ़ती भर्ती, जो अन्यथा इन श्रमिकों को अमेरिका में ही नियुक्त करतीं। हमने इसका परीक्षण करने के लिए, सबसे पहले जून 2016 से पहले प्लेटफॉर्म पर अमेरिका स्थित उनकी कुल रिक्तियों के हिस्से का उपयोग करके फर्म की एच-1बी निर्भरता का एक माप तैयार किया। यह इस बात को दर्शाता है कि अनिश्चितता से फर्म किस हद तक प्रभावित हुई हैं। इस माप का उपयोग करते हुए, हम पाते हैं कि अनिश्चितता के कारण एच-1बी पर अधिक निर्भरता वाली फर्मों ने भारत-आधारित नियुक्तियों में वृद्धि की (आकृति-3)। हमारे अनुभवजन्य परिणाम दर्शाते हैं कि किसी फर्म की एच-1बी वीज़ा निर्भरता में हर 10 प्रतिशत अंकों की वृद्धि के लिए, भारत-आधारित नौकरी पोस्टिंग में 11% की वृद्धि हुई। विशेष रूप से, अनिश्चितता में एक मानक विचलन1 की वृद्धि ने अमेरिका-आधारित रिक्तियों के 10-प्रतिशत अंकों के उच्च अनुपात वाली फर्मों के लिए भारत-आधारित पोस्टिंग में 5.3% की वृद्धि की। इन परिणामों को संदर्भगत बनाने के लिए, हम एक औसत फर्म पर विचार करते हैं जिसमें 20.9 अमेरिकी रिक्तियाँ हों।

आकृति-3. भारत-आधारित नौकरियों के लिए पोस्टिंग पर प्रभाव

टिप्पणियाँ : (i) यह आँकड़ा तिमाही गुणांकों को दर्शाता है जो झटके से प्रभावित फर्मों (जून 2016 से पहले सभी फर्म रिक्तियों में अमेरिका स्थित रिक्तियों का हिस्सा) के आधार पर भारत-आधारित पदों के लिए पोस्टिंग पर प्रभाव को दर्शाता है। (ii) ऊर्ध्वाधर रेखा जून 2016 में रिपब्लिकन प्राइमरी में ट्रम्प की जीत से मेल खाती है।

भारत में श्रमिकों की बढ़ती मांग की वजह क्या है?

यह पता लगाने के लिए कि क्या फर्म नए पद सृजित कर रही हैं या मौजूदा पदों को स्थानांतरित कर रही हैं, हमने जॉब पोस्टिंग और फर्मों की बैलेंस शीट डेटा, दोनों का, विश्लेषण किया। हमने पाया कि ‘ऑफशोरिंग’ के लिए अधिक उपयुक्त व्यवसायों ने भारत-आधारित जॉब पोस्टिंग में बड़ी वृद्धि दिखाई। कई साक्ष्य इस बात का समर्थन करते हैं कि यह बाज़ार विस्तार के बजाय ऑफशोरिंग को दर्शाता है- पहला यह कि सेवा निर्यात में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, इन फर्मों के लिए एच-1बी निर्भरता में प्रत्येक 10 प्रतिशत अंकों की वृद्धि के लिए 4% की वृद्धि हुई। दूसरा, इस बढ़ी हुई अनिश्चितता की अवधि के दौरान अन्य देशों में जॉब पोस्टिंग अपरिवर्तित रही। तीसरा, भारत में घरेलू बिक्री में कोई परिवर्तन नहीं हुआ, जिससे पता चलता है कि ये कम्पनियाँ भेजने वाले देश में सेवाएं देने के लिए परिचालन का विस्तार नहीं कर रही थीं। यह पैटर्न विशेष रूप से भारतीय मुख्यालय वाली कम्पनियों में स्पष्ट था, जिनमें समान एच-1बी-सम्बन्धी दबावों का सामना करने पर, भारत स्थित पदों को बढ़ाने के लिए अपने अमेरिकी मुख्यालय वाली समकक्ष कम्पनियों की तुलना में, दोगुनी संभावना थी। कुल मिलाकर, इन निष्कर्षों से पता चलता है कि कम्पनियों ने एच-1बी वीज़ा अनिश्चितता के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए, पूरी तरह से नई भूमिकाएं सृजित करने के बजाय, अपने पदों को भारत में स्थानांतरित कर दिया।

नीतिगत निहितार्थ

हमारा शोध आप्रवासन और ऑफशोरिंग गतिशीलता की समझ को आगे बढ़ाता है। घरेलू रोज़गार को बढ़ावा देने के बजाय, अमेरिका में बढ़ी अनिश्चितता ने भेजने वाले देश में नौकरी के स्थानांतरण को बढ़ावा दिया। महत्वपूर्ण रूप से, नीति सम्बन्धी अनिश्चितता ने वास्तविक नीतिगत परिवर्तन होने से पहले ही नियुक्ति निर्णयों को काफी हद तक प्रभावित किया। ट्रम्प की प्राथमिक जीत के बाद अनिश्चितता ने वीज़ा कोटा में कोई बदलाव न होने के बावजूद, मेज़बान और भेजने वाले दोनों देशों में, फर्मों के नियुक्ति पैटर्न को प्रभावित किया। यह दर्शाता है कि किस प्रकार कम्पनियाँ संभावित नीतिगत बदलावों, विशेष रूप से आप्रवासन जैसे विवादास्पद मुद्दों के प्रति पहले से ही समायोजन कर लेती हैं। अनिश्चितता के प्रभाव की भयावहता उल्लेखनीय है- जो 2017 के ट्रम्प प्रशासन के नीतिगत परिवर्तनों की तुलना में लगभग दो-तिहाई है। यह परस्पर जुड़े वैश्विक श्रम बाज़ारों में न्यूनतम व्यवधान सुनिश्चित करने के लिए नीति सम्बन्धी अनिश्चितता को सक्रिय रूप से हल करने के महत्व को उजागर करता है। ये निष्कर्ष नए सिरे से महत्वपूर्ण हो गए हैं क्योंकि राष्ट्रपति ट्रम्प फिर से पदभार संभाल चुके हैं और एच-1बी वीज़ा नीतियों पर गहन बहस फिर से जारी है। कुल मिलाकर, हमारे निष्कर्षों से पता चलता है कि घरेलू श्रमिकों को लाभ पहुंचाने के उद्देश्य से किए गए संरक्षणवादी उपायों के विपरीत परिणाम निकल सकते हैं, क्योंकि कंपनियाँ इसके जवाब में नौकरियों को विदेशों में स्थानांतरित कर सकती हैं।

इस लेख का एक संस्करण पहले वोक्सडेव पर प्रकाशित हुआ था।

टिप्पणी:

  1. मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के माध्य (औसत) मूल्य से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : रीतम चौरे जॉन्स हॉपकिन्स एसएआईएस में अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की है। उनकी रूचि विकासशील देशों में फर्मों और श्रम बाजारों पर ध्यान केंद्रित करने के साथ विकास अर्थशास्त्र के क्षेत्र के शोध में हैं। कनिका महाजन अशोक विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। वह पहले दिल्ली के अंबेडकर विश्वविद्यालय में स्कूल ऑफ लिबरल स्टडीज़ में अर्थशास्त्र की सहायक प्रोफेसर थीं। उन्होंने भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली की अर्थशास्त्र और योजना इकाई से मात्रात्मक अर्थशास्त्र में पीएचडी प्राप्त की है। शेखर तोमर इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस में अर्थशास्त्र और सार्वजनिक नीति क्षेत्र में सहायक प्रोफेसर हैं। उनका शोध मैक्रोइकॉनॉमिक्स, व्यापार और वित्त के अन्तर्सम्बन्ध पर है, और वे मैक्रो सवालों के जवाब देने के लिए माइक्रो-डेटा का व्यापक रूप से उपयोग करते हैं। आईएसबी से पहले, उन्होंने टूलूज़ स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पीएचडी पूरी करने के बाद 2017-2019 के दौरान भारतीय रिजर्व बैंक में एक शोध अर्थशास्त्री के रूप में काम किया है।

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