शोध कहता है कि आर्थिक संकट की स्थिति में किसी फर्म के लिए राजनीतिक संबंध मायने रखते हैं। इस लेख में, भारत में फर्मों के राजनीतिक कनेक्शन के बारे में एक अद्वितीय डेटा सेट के माध्यम से पाया गया कि दुर्लभ संसाधनों की प्राप्ति के लिए फर्में अपने इन कनेक्शनों का लाभ उठा सकती हैं। इस प्रकार से 'कनेक्टेड' फर्में, ‘गैर-कनेक्टेड’ फर्मों की तुलना में अल्पावधि ऋण प्राप्त करने और नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के समय में बकाया भुगतान में देरी करने में सक्षम थीं, और इनकी आय, बिक्री और व्यय में भी बढ़ोतरी परिलक्षित हुई है।
व्यवसाय चलाने में राजनीतिक संबंधों की भूमिका सर्वज्ञात है। राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्में दुनिया भर के सभी देशों में व्यवसायरत हैं, जिनमें कम भ्रष्टाचार वाले मजबूत संस्थान भी शामिल हैं। हालाँकि, व्यापार और सरकार के बीच यह गठजोड़ हमेशा सक्रिय नीतिगत हित और बहस का विषय रहा है।
कई शोध1 में यह जाँच की गई है कि क्या राजनीतिक संबंध मायने रखते हैं (और यह दिखाया भी है कि वे मायने रखते हैं), जबकि हम अपेक्षाकृत कम जानते हैं कि वे किसी फर्म के लिए कैसे मायने रखते हैं, विशेष रूप से व्यापक आर्थिक संकट के समय में, जब आर्थिक विकास कम होता है और संसाधन दुर्लभ होते हैं। सैद्धांतिक रूप से, राजनीतिक संबंध फर्मों को संकट के दौरान नौकरशाही पर अपना प्रभाव डालने और दुर्लभ संसाधनों को अपनी ओर मोड़ने में मददगार साबित हो सकते हैं। दूसरी ओर, राजनीतिक व्यवस्था फर्मों से संसाधनों को निकालने के लिए इन कनेक्शनों का लाभ उठा सकती है, क्योंकि आर्थिक मंदी के दौरान रिश्वतखोरी (भ्रष्टाचार) अधिक तीव्र हो जाती है। इसके अतिरिक्त, एक दूसरा प्रश्न जिस पर और भी कम ध्यान दिया गया है (मुख्य रूप से डेटा की कमी के कारण) -वह प्रणाली, जिसके माध्यम से राजनीतिक कनेक्शन फर्म के प्रदर्शन को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, क्या राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्में संसाधनों का उपयोग कर सकती हैं और क्या संकट के दौरान अपने उधार और देनदारियों के पोर्टफोलियो को व्यवस्थित रूप से बदल सकती हैं? वे इन संसाधनों का उपयोग कैसे करती हैं? क्या इससे संकट के बाद फर्म के प्रदर्शन और विकास में अंतर-परिवर्तन होता है? हाल के एक अध्ययन (शेन एवं अन्य 2022) में, हम भारत में वर्ष 2016 में हुई नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के संदर्भ में इन सवालों के जवाब ढूंढते हैं।
राजनीतिक संबंधों और फर्म के परिणामों को मापना
उपरोक्त प्रश्नों की गहन जांच करने पर दो प्रमुख चुनौतियां सामने आती हैं: पहली- फर्मों के राजनीतिक संबंधों को मापना, और दूसरी, यह समझने के लिए कि, ये संबंध कैसे मायने रखते हैं, फर्मों के बारे में विस्तृत डेटा प्राप्त करना। हमारे अध्ययन का महत्वपूर्ण विषय भारत में फर्मों के राजनीतिक संबंधों के बारे में व्यापक डेटाबेस को इकट्ठा करना है। हमारे डेटा में विभिन्न समृद्ध डेटा स्रोतों से प्राप्त राजनेताओं, नौकरशाहों की विस्तृत सूची और फर्मों के निदेशक मंडल के सदस्यों के विवरण शामिल हैं। हम पचास लाख से अधिक समाचार लेखों (2011-2016 के बीच भारत के सात प्रमुख मीडिया आउटलेट्स से प्रतिदिन लिए गए2) में प्रयुक्त संदर्भों के जरिये निदेशकों (फर्मों के) और राजनेताओं या नौकरशाहों के बीच के कार्य संबंधों पर जानकारी प्राप्त करने के लिए मशीन लर्निंग विधियों का उपयोग करते हैं।
कुल मिलाकर, हम किसी फर्म को राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्म के रूप में तब परिभाषित करते हैं जब उसके एक या अधिक निदेशक- हैं, या थे - (i) या तो राजनेता या नौकरशाह; (ii) किसी राजनेता या नौकरशाह के परिजन या करीबी रिश्तेदार; (iii) मीडिया में रिपोर्ट के अनुसार काम की बातचीत के माध्यम से जुड़े। फेसियो (2006) की भावना के अनुरूप, अलग-अलग डेटा स्रोतों से इन नेटवर्कों को स्थापित करने हेतु अर्थशास्त्र साहित्य में आमतौर पर इस्तेमाल किए जाने वाले अन्य उपायों की तुलना में (जैसे सामाजिक, लैंगिक या क्षेत्रीय पहचान के जरिये निकटता) मशीन लर्निंग तकनीकों के संयोजन से राजनीतिक संबंधों को मापने की सटीकता पर हमारी पद्धति में सुधार होता है, जिन्हें अन्यथा मापना मुश्किल है।
फर्म के परिणामों के बारे में डेटा भारतीय अर्थव्यवस्था की निगरानी के लिए सीएमआईई के प्रोवेस डेटा से प्राप्त किया गया है। प्रोवेस 40,000 से अधिक फर्मों का एक डेटाबेस है जिसमें नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) और बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) पर कारोबार करने वाली सभी फर्में और हजारों गैर-सूचीबद्ध सार्वजनिक और निजी लिमिटेड कंपनियां शामिल हैं। हम 2012-2019 के फर्मों के पैनल का उपयोग करते हैं। अन्य फर्म डेटासेट (उदाहरण के लिए, जैसे- उद्योगों का वार्षिक सर्वेक्षण) की तुलना में प्रोवेस के दो प्रमुख लाभ हैं। सबसे पहला, प्रोवेस में किसी फर्म के निदेशक मंडल के बारे में विवरण एकत्रित किया जाता है, जिसके जरिये हम ऊपर वर्णित उनके राजनीतिक संबंधों माप सकते हैं। दूसरा, यह न केवल समग्र जानकारी (जैसे आउटपुट, बिक्री, व्यय, आदि) पर बहुत विस्तृत डेटा प्रदान करता है, बल्कि लंबी और अल्पकालिक परिसंपत्तियों, देनदारियों और फर्मों के उधार पोर्टफोलियो पर भी बारीक जानकारी प्रदान करता है।
राजनीतिक संबंध कैसे मायने रखते हैं?
सिंथेटिक डिफरेंस-इन-डिफरेंस रणनीति (एसडीआईडी)3 का उपयोग करके की गई हमारी कार्यनीति नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से पहले के और बाद के विभिन्न फर्म परिणामों (जैसे- बिक्री और व्यय) की तुलना राजनीतिक रूप से जुड़ी और गैर-जुड़ी फर्मों के बीच करने पर निर्भर करती है। हम पहले यह जांच करते हैं कि क्या राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्में व्यवस्थित रूप से अपनी देनदारियों, उधार और परिसंपत्ति पोर्टफोलियो को बदलने में सक्षम थीं। हम पाते हैं कि राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्में (गैर-जुड़ी फर्मों की तुलना में) सक्षम थीं:-
i) नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के बाद अपनी अल्पकालिक देनदारियों (यानी, एक वर्ष के भीतर भुगतान की जाने वाली देनदारियां) को बढाने में। विशेष रूप से, वे अपने लेनदारों और आपूर्तिकर्ताओं को भुगतान में देरी करने में और साथ ही संभावित रूप से अल्पकालिक ब्याज और ऋण भुगतान में देरी कर सकती थीं।
ii) लंबी अवधि के उधारों में कटौती करने (जिन्हें एक वर्ष के भीतर चुकाने की उम्मीद नहीं है), और इसके बजाय अपने ऋण पोर्टफोलियो की संरचना को अधिक तत्काल अल्पकालिक ऋण में अंतरित करने में। इसके अलावा, इस बात के संकेतात्मक प्रमाण मिलते हैं कि इन फर्मों के असुरक्षित बैंक ऋण (अर्थात, बिना किसी जमानती या सुरक्षा के दिए गए ऋण) प्राप्त करने की अधिक संभावना थी।
iii) नोटबंदी (विमुद्रीकरण) के बाद धारित अपनी कुल संपत्ति में वृद्धि में। यह वृद्धि इन फर्मों के लघु और दीर्घकालिक निवेशों के साथ-साथ अमूर्त संपत्ति (जैसे कंप्यूटर सॉफ्टवेयर, पेटेंट, विपणन अधिकार, आदि) प्राप्त करने हेतु किये गए निवेश के रूप में वर्णित है।
क्या राजनीतिक संबंध रखने वाली कंपनियां बेहतर करती हैं?
फर्मों के पोर्टफोलियो में होनेवाले ये परिवर्तन फर्म के कुल परिणामों को कैसे प्रभावित करते हैं? हमने पाया कि नोटबंदी के बाद राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्मों ने गैर-जुड़ी फर्मों की तुलना में आय, व्यय और बिक्री में 8-11% बढ़ोतरी दर्ज की है। इसके अलावा, जैसा कि चित्र-1 में दर्शाया गया है, यह प्रभाव संकट के बाद तीन वर्षों तक बना रहा। अंत में, हम फर्म की उत्पादकता में 3-5% की वृद्धि पाते हैं (कुल कारक उत्पादकता अनुपात (टीएफपीआर) द्वारा मापे जाने पर), जिसका कारण हम फर्म की उत्पादन दक्षता में लाभ के विपरीत फर्म द्वारा लगाए गए मूल्य मार्कअप में बदलाव को मानते हैं।
चित्र 1. गैर-जुड़ी फर्मों की तुलना में राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्मों की आय (बाएं पैनल), बिक्री (केंद्र पैनल) और व्यय (दाएं पैनल) पर नोटबंदी (विमुद्रीकरण) का विभेदक प्रभाव
टिप्पणियाँ: i) उपरोक्त ग्राफ बिक्री, आय और व्यय के लिए राजनीतिक रूप से जुड़ी और गैर-जुड़ी फर्मों के बीच सापेक्ष अंतर का अनुमान लगाने वाले प्रतिगमन गुणांक को दर्शाते हैं। ii) नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से पहले के वर्ष- 2015 - पर अंकित लाल क्षैतिज रेखा आधार वर्ष को इंगित करती है।
टिप्पणियाँ: i) उपरोक्त ग्राफ बिक्री, आय और व्यय के लिए राजनीतिक रूप से जुड़ी और गैर-जुड़ी फर्मों के बीच सापेक्ष अंतर का अनुमान लगाने वाले प्रतिगमन गुणांक को दर्शाते हैं। ii) नोटबंदी (विमुद्रीकरण) से पहले के वर्ष- 2015 - पर अंकित लाल क्षैतिज रेखा आधार वर्ष को इंगित करती है।
निष्कर्षों की चर्चा
बहुत सारे शोध-कार्य ऐसे हैं जिनमें राजनीतिक संबंधों के महत्व को दर्ज किया गया है, जबकि हमारा विश्लेषण उन चैनलों पर प्रकाश डालता है जिनके माध्यम से वे आर्थिक मंदी के दौरान निर्णयों को बदलने में केंद्रीय भूमिका निभाते हैं। भारत के नोटबंदी (विमुद्रीकरण) प्रकरण के संदर्भ में, हम पाते हैं कि राजनीतिक रूप से जुड़ी फर्में अल्पकालिक ऋण प्राप्त करने में सक्षम थीं, विशेष रूप से उन बैंकों से जो पहले से ही नकदी और ऋण की पर्याप्त कमी से जूझ रहे थे। इसके अलावा, वे अल्पकालिक ब्याज और ऋण भुगतान में देरी के साथ अपने आपूर्तिकर्ताओं, विक्रेताओं और लेनदारों के भुगतान में देरी करने में सक्षम थीं, जो बड़े पैमाने पर आपूर्ति श्रृंखला व्यवधानों और देरी से परिलक्षित होता है और इसे विभिन्न टिप्पणीकारों, विशेषज्ञों और नीति निर्माताओं द्वारा नोट किया गया है। कुल मिलाकर, इन फर्मों ने आय, व्यय और बिक्री बढ़ोतरी दर्ज की है, जो लंबे समय तक लगातार बनी रही।
निष्कर्ष
यह देखते हुए कि दुनिया ने एक दशक की अवधि में महामंदी- 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट और हाल ही के कोविड-19 महामारी संकट के बाद से दो सबसे खराब आर्थिक मंदी का अनुभव किया है, संकट के दौरान राजनीतिक संबंधों की भूमिका को समझना आज विशेष रूप से प्रासंगिक है। हमारे विश्लेषण से पता चलता है कि संकट के दौरान फर्में अपने राजनीतिक संबंधों का लाभ दुर्लभ संसाधनों तक पहुंचने के लिए उठा सकती हैं। हालांकि, फर्में अपने इन राजनीतिक संबंधों का उपयोग अनुरोध, प्रतिष्ठा, धमकियां या भविष्य के पारस्परिक आदान-प्रदान के माध्यम से विभिन्न हितधारकों के साथ कैसे करती हैं, यह हमारे इस अध्ययन के दायरे में नहीं है, लेकिन भविष्य के शोध के लिए यह एक बहुत ही आशाजनक अवसर है।
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टिप्पणियाँ:
- उदाहरण के लिए, फिसमैन (2001), सैपिएन्ज़ा (2004), ख्वाजा और मियां (2005), हेइजेट एवं अन्य (2021), फेसियो एवं अन्य (2006), और एसेमोग्लू एवं अन्य (2016) देखें।
- वेब क्रॉलर (या क्रॉलर) एक इंटरनेट बॉट है जिसके जरिये वर्ल्ड वाइड वेब को व्यवस्थित रूप से ब्राउज़ किया जाता है, और यह एक बड़ी मात्रा में डेटा प्राप्त करने हेतु उपयोग की जाने वाली तकनीक है। इस प्रक्रिया का स्वचालन एक वेबसाइट से डेटा प्राप्त करने और मशीन लर्निंग के अनुप्रयोगों के लिए डेटा विकसित करने में सहायक होता है।
- सिंथेटिक डिफरेंस-इन-डिफरेंस (एसडीआईडी) कार्यप्रणाली (अर्खनजेलेस्की एवं अन्य 2021) के जरिये अंतर-अंतर और सिंथेटिक नियंत्रण विधियों से अंतर्दृष्टि को जोड़ा जाता है। अतः इससे योगात्मक इकाई और समय-विशिष्ट अंतरों के माध्यम से चयन कर सकते हैं, लेकिन उपचारित और नियंत्रण इकाइयों के बीच पूर्व-प्रवृत्तियों से मेल खाने के लिए इकाइयों को पुनर्भारित किया जा सकता है, और इस प्रकार से तुलनीय प्रति-तथ्य प्राप्त होता है।
लेखक परिचय: यूटोंग चेन वर्जीनिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र में पीएचडी उम्मीदवार हैं। गौरव चिपलूनकर वर्जीनिया विश्वविद्यालय के डार्डन स्कूल ऑफ बिजनेस में वैश्विक अर्थव्यवस्था और बाजार समूह में सहायक प्रोफेसर हैं। शीतल सेखरी वर्जीनिया विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। अनिर्बान सेन आईआईटी दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर हैं| आदित्येश्वर सेठ आईआईटी दिल्ली में कंप्यूटर साइंस एंड इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं|
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