सामाजिक पहचान

महामारी के वक्त में पक्षपात: कोविड संबंधी अफवाहें और कारखानों में श्रमिक आपूर्ति

  • Blog Post Date 05 जून, 2020
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Arkadev Ghosh

University of British Columbia

arkadev.ghosh@alumni.ubc.ca

मार्च महीने के मध्‍य में, एक इस्लामी संस्‍था तब्लीगी जमात द्वारा दिल्‍ली में आयोजित एक कार्यक्रम के बाद से कोविड मामलों की संख्‍या में भरी संख्‍या में एकाएक वृद्धि हुई, और भारत में इस बीमारी के मुसलमानों द्वारा फैलाने जैसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें फैलने शुरू हो गयी। एक कारखाने के 500 श्रमिकों के फोन सर्वेक्षण के आधार पर, इस नोट में अर्कदेव ने दिखलाया है कि इस तरह की अफवाह फैलने से उन हिंदू श्रमिकों की श्रम-क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिनके साथ मुस्लिम श्रमिक भी काम करते हैं।

 

वर्ष 2020 की शुरुआत में, जब दुनिया भर के देश नोवेल कोरोनोवायरस के बारे में चिंतित थे, तब भारत में विवादास्पद नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) के संबंध में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन चल रहे थे। इसके परिणामस्वरूप फरवरी के अंत में नई दिल्ली में हिंदू-मुस्लिम दंगे हो गए। इस बीच, जैसे-जैसे भारत में कोविड के मामले बढ़ने लगे, विशेषज्ञों ने बताया कि इस महामारी के खिलाफ भारत की लड़ाई में कई चुनौतियां शामिल होंगी और दुनिया के कुछ सबसे घनी आबादी वाले क्षेत्रों में से एक होने के साथ-साथ 130 करोड़ वाली आबादी की अर्थव्यवस्था के पहले से ही मंदी की ओर बढ़ने के कारण भारत की आर्थिक मोर्चे पर लड़ाई वायरस के प्रसार को रोकने की लड़ाई के समान ही कठिन होगी। हालांकि, देश को सार्वजनिक हित में एकजुट करने के बजाय, हम में से कुछ लोगों ने यह अनुमान पहले हीं लगा लिया होगा की इस महामारी को सांप्रदायिक रूप दे दिया जाएगा।

मार्च महीने के मध्‍य में दिल्‍ली में आयोजित अपने एक कार्यक्रम के बाद इस्‍लामी संस्‍था तब्लीगी जमात कोरोना संक्रमण के सबसे बड़े हॉटस्‍पॉट के रूप में उभर कर सामने आई क्‍योंकि इस इस कार्यक्रम में शामिल हुए लोगों द्वारा संभवतः देश भर में कई अन्य लोगों को संक्रमित कर दिया गया। इसके बाद से इस बीमारी के मुसलमानों द्वारा फैलाने जैसी दुर्भावनापूर्ण अफवाहें फैलने शुरू हो गयी। इसके कारण मुस्लिम विक्रेताओं और फेरीवालों के खिलाफ भेदभाव होना शुरू हो गया, और देखते-देखते देश के कई हिस्सों में उन पर हमले भी किए जाने लगे। इस नोट में, मैंने यह दिखलाया है कि इस तरह की इस तरह की अफवाह फैलने से उन हिंदू श्रमिकों में श्रम-क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है जिनके साथ मुस्लिम श्रमिक काम करते हैं। जब भारत लॉकडाउन से बाहर निकलेगा तो इस स्थिति के आर्थिक परिणाम भी हो सकते हैं।

अप्रैल में, मैंने भारत में एक कारखाने में 500 श्रमिकों के साथ एक फोन पर सर्वेक्षण किया - मैं पिछले एक साल से इस प्लांट में एक परियोजना पर काम कर रहा हूँ जिसमें मैं यह अध्‍ययन कर रहा हूँ कि कार्यस्थल पर अंतर-समूह (धार्मिक) संपर्क टीमवर्क और उत्पादकता को कैसे प्रभावित करता है। 24 मार्च को लॉकडाउन लागू होने के कारण यह कारखाना बंद कर दिया गया था, फिर अप्रैल के मध्य में यहाँ फिर से काम चालू हुआ। इस अवधि के दौरान, मैंने प्लांट के श्रमिकों का साक्षात्कार लिया और उनसे पूछा कि यदि कारखाने में होने वाले उत्पादन को आवश्यक सेवा मान कर सरकार इस कारखाने को शुरू करने की अनुमति देती है तो क्‍या वे कारखाने में काम करने के लिए तुरंत तैयार हैं। इस संबंध में कारखाने ने स्‍थानीय प्राधिकारियों से आवश्‍यक अनुमति की व्‍यवस्‍था की है ताकि श्रमिक काम पर आ सकें।

आकृति 1. काम पर आने को इच्छुक श्रमिकों का अनुपात (धर्म के अनुसार)

नोट: त्रुटि पट्टियाँ 95% विश्वास अंतराल को दर्शाती हैं।1

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Hindu Workers हिंदू श्रमिक

Muslim Workers मुस्लिम श्रमिक

Willing to attend work काम पर आने के इच्‍छुक

आकृति 1 इस प्रश्न के प्रति श्रमिकों की प्रतिक्रिया के सारांश आँकड़े प्रस्तुत करती है। कुल मिलाकर, लगभग 67% श्रमिकों ने कहा कि वे काम पर वापस आने के लिए तैयार हैं। हालांकि, हिंदू और मुस्लिम श्रमिकों की प्रतिक्रियाओं के बीच काफी विरोधाभास है। चौरासी प्रतिशत मुस्लिम श्रमिक कहते हैं कि वे काम पर लौटने के लिए तैयार हैं जबकि ऐसा कहने वाले हिंदू श्रमिकों की संख्‍या केवल 61% है।

श्रमिकों ने काम पर फिर से न लौटने के आम कारणों में यह बताया है कि सामाजिक भर्त्‍सना के कारण वे अपने घरों और बस्तियों से निकलने में असमर्थ हैं (यदि वे एक कंटेनमेंट ज़ोन में हैं, जोकि केवल कुछ ही श्रमिकों पर लागू है, और इससे डेटा पैटर्न को नहीं समझा जा सकता)। हिंदू श्रमिकों ने काम पर न लौटने के कारणों में एक अतिरिक्त कारण यह भी बताया है कि वे मुस्लिमों के कोरोनवायरस से संक्रमित होने (और उसे फैलाने) के बारे में चिंतित हैं।

इसका और व्यवस्थित रूप से अध्ययन करने के लिए, मैंने कारखाने में हिंदू श्रमिकों को दो समूहों में विभाजित किया:

  1. वे श्रमिक, जो केवल हिंदू श्रमिकों वाली टीमों में हैं
  2. वे श्रमिक, जो ऐसी टीमों में हैं जिनमें हिंदू और मुस्लिम धर्मों के श्रमिक हैं।

नीचे दी गई आकृति 2 में मैंने हिंदू श्रमिकों के इन दो समूहों से उनकी काम पर जाने की इच्‍छा के बारे में साक्षात्कार लिए गए दैनिक प्रतिक्रियाओं को अलग-अलग चिन्हित किया है।

आकृति 2. काम पर जाने के लिए इच्‍छुक (टीम प्रकार के अनुसार हिंदू श्रमिक)

नोट: श्रमिकों की आयु, कार्यकाल, कार्य का क्षेत्र, और फर्म के साथ अनुबंधित रोजगार (स्थायी या संविदात्मक) के प्रकार को ध्‍यान में रखा गया है।

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Hindus in all Hindu teams पूर्णत: हिंदुओं वाली टीम में हिंदू

Hindus in mixed teams with Muslims मुस्लिमों के साथ मिली-जुली टीम में हिंदू

Prob (Willing to Attend Work) संभावना (काम पर जाने को इच्छुक)

यह देखा जा सकता है कि धार्मिक रूप से सजातीय टीमों में हिंदू श्रमिकों की तुलना में, मुसलमानों के साथ वाली टीमों में काम पर लौटने को इच्‍छुक हिंदू श्रमिकों की संख्‍या काफी कम है। मेरा अनुमान है कि यह अंतर लगभग 11.5 प्रतिशत है।2 सामान्य रूप से हिंदुओं (मुसलमानों के सापेक्ष) में काम करने की कम इच्छा को विभिन्न कारकों द्वारा समझाया जा सकता है, जिसमें बीमारी के बारे में ज्ञान में अंतर, संपर्क का खतरा महसूस करना, कारखाने में खाने और धुलाई के क्षेत्रों को मुस्लिम श्रमिकों के साथ साझा करने की चिंता, आदि शामिल हैं। हालाँकि, इस बात की भी संभावना है कि मिश्रित टीमों में मुस्लिम सहकर्मियों से अधिक निकटता की आशंका के कारण दोनों प्रकार की टीमों में हिंदुओं की प्रतिक्रियाओं में अंतर हो।

अगला महत्वपूर्ण विचारणीय मुद्दा यह है कि क्या हिंदू श्रमिकों के बीच इन बदली हुई धारणाओं के कारण वास्तव में उस फर्म में जनशक्ति में कमी आई है, जिसके कारण उत्पादन में कमी हो जाती है। ऐसा करने के लिए, मैंने आकृति 3 में, श्रमिकों को धर्म के आधार पर विभाजित करते हुए, अप्रैल के महीने में कारखाने में श्रमिकों की उपस्थिति संबंधी आंकड़े प्रस्‍तुत किए हैं। ऐसा करने से पहले मैंने तीन बातों पर महत्‍वपूर्ण रूप से ध्यान दिया है:

  1. वर्तमान में कारखाना कम क्षमता पर काम कर रह हैं, और इसलिए इस समय आवश्यक श्रमिकों की संख्या सामान्य परिस्थितियों की तुलना में कम होगी। जो उत्‍पादन रेखा प्रचालित है (कई रेखाएं हैं) उसके आधार पर काम करने के लिए केवल एक निश्चित संख्‍या में श्रमिकों की आवश्यकता है।
  2. इस विश्लेषण में, मैंने ऐसे प्रत्‍येक श्रमिक को शामिल किया है जिन्हें काम करने के लिए संपर्क किया गया था, चाहे वे काम पर उपस्थित हुए हों या नहीं। इसलिए जिन श्रमिकों से संपर्क किया गया था और वे कभी भी उपस्थित नहीं हुए तो उनकी उपस्थिति का मान 0 होगा।
  3. प्रबंधन द्वारा यह घोषित किया गया था कि मार्च और अप्रैल के महीनों में श्रमिकों को उनके पूरे वेतन का भुगतान किया जाएगा, भले ही वे काम पर आए हों या नहीं (हालांकि जो श्रमिक काम पर आते हैं उन्‍हें अतिरिक्‍त प्रोत्साहन दिया जाएगा)। इसलिए वेतन का भुगतान न होने की चिंता द्वारा इस अवधि में उपस्थिति का निर्धारण किए जाने की संभावना नहीं है।

आकृति 3. वास्तविक उपस्थिति के औसत दिन (श्रमिक के धर्म के अनुसार)

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Hindu Workers हिंदू श्रमिक

Muslim Workers मुस्लिम श्रमिक

Average Days of Actual Attendance वास्‍तविक उपस्थिति के औसत दिन

Error bars denote 95% confidence intervals त्रुटि पट्टियाँ 95% विश्वास अंतराल को दर्शाती हैं।

आकृति 3 में हिंदू और मुस्लिम श्रमिकों की औसत उपस्थिति (अप्रैल के अंत तक, अधिकतम 12 दिनों में से) को अलग-अलग दिखाया गया है। जिन हिंदू श्रमिकों से संपर्क किया गया, उनमें से औसतन आधे से ज्यादा अपने मुस्लिम समकक्षों के बराबर दिन काम करते हैं। यह व्यवहार आकृति 1 में सारांशित सर्वेक्षण प्रतिक्रिया के अनुरूप है।

हालांकि इसमें कोई संदेह नहीं है कि श्रमिकों की अनुपस्थिति जनशक्ति की कमी का कारण बनती है और इसलिए यह उत्पादन को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर रही है, और चूंकि कई कारक एक साथ बदल रहे हैं, इसलिए इस समय इस नुकसान की मात्रा को निर्धारित करना मुश्किल है। फर्म ने सामाजिक दूरी की नीतियों को अपनाया है जिससे उत्पादन के नकारात्मक रूप से प्रभावित होने की संभावना है क्योंकि अनुपस्थिति के कारण श्रमिकों की टीम में बदलाव होते रहते हैं। फिर भी, आकृति 4 में, मैंने जनशक्ति की कमी की मात्रा का अनुमान लगाने के लिए आवश्यक, जनशक्ति बनाम दैनिक उपलब्ध जनशक्ति को प्रस्तुत किया है।

आकृति 4. आवश्यक बनाम उपलब्ध जनशक्ति

आकृति में आए अंग्रेजी वाक्‍यों/शब्‍दों का हिंदी अर्थ

Manpower required आवश्‍यक जनशक्ति

Manpower available उपलब्‍ध जनशक्ति

आकृति 4 यह दर्शाता है कि लॉकडाउन के दौरान कारखाने को फिर से खोले जाने के दौरान शुरू में जनशक्ति में बड़े पैमाने पर (लाल पट्टियों की तुलना में नीली पट्टियाँ) कमी देखी गई। अगले कुछ दिनों में यह कमी दूर होती गई, लेकिन इस दौरान जनशक्ति की आवश्‍यकता में भी कमी आई क्‍योंकि या तो संभवतया लॉकडाउन के कारण उत्‍पाद की मांग कम थी या कारखाने ने अपने श्रमिकों की उपस्थिति में कमी को ध्‍यान में रख कर अपनी आवश्‍यकता को भी संशोधित कर दिया। हालांकि, जैसे-जैसे उत्पादन का विस्तार होगा, यह कम उपस्थिति एक अधिक गंभीर समस्या बन सकती है।

यह समझने के लिए कि क्या हिंदू श्रमिकों का व्‍यवहार तर्कसंगत हैं, हमें जनसांख्यिकीय समूहों के आधार पर कोरोनोवायरस संक्रमणों के आंकड़ों का विश्लेषण करना होगा कि क्या वास्तव में उनकी तुलना में मुस्लिम आबादी अपेक्षाकृत अधिक संक्रमित हैं। जहां तक मुझे ज्ञात है, इस तरह के आंकड़े अभी तक उपलब्ध नहीं हैं। हालांकि, संभवतया यह कहा जा सकता है कि दुर्भावनापूर्ण अफवाह फैलने से भेदभाव में वृद्धि हुई है, जिसके प्रभाव निजी क्षेत्र में महसूस किए जाने लगे हैं और आने वाले दिनों में जब भारत लॉकडाउन से बाहर निकलेगा तो भारतीय फर्मों पर इसका भारी प्रभाव पड़ सकता है। यह संभव है कि जब फर्में उपस्थिति के आधार पर वेतन का भुगतान करने लगेंगी तो अधिक श्रमिक काम पर लौटना शुरू कर देंगे, लेकिन कार्यस्‍थल पर भेदभाव बढ़ने से उत्पादकता पर नकारात्मक प्रभाव अवश्‍य पड़ सकता है। सरकार को इन अफवाहों से लड़ने के लिए सक्रिय कदम उठाने की आवश्यकता है क्‍योंकि अर्थव्यवस्था इस अतिरिक्त लागत के बिना पहले से ही काफी संकट की स्थिति में है।

नोट्स:

  1. 95% विश्वास अंतराल अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने की एक सांख्यिकीय तकनीक है। विशेष रूप से, इसका अर्थ है कि यदि आप आपने प्रयोग को नए प्रतिदर्शों/नमूनों के आधार पर बार-बार दोहराते हैं, तो इस बात की 95% संभावना है कि यह अनुमान इस सीमा के भीतर होगा।
  2. टीम प्रकार के रूप में काम में भाग लेने की इच्छा के (सभी सर्वेक्षण के दिनों में) ‘पूलित प्रतिगमन’ के आधार पर। अनुमान सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण 1% के स्तर पर है।

लेखक परिचय: अर्कदेव घोष कैनडा स्थित यूनिवरसिटि ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया में अर्थशास्त्र में डॉक्टरेट कर रहे हैं।

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