मुद्रा तथा वित्त

भारत में निजी ऋण बाज़ार का उद्भव

  • Blog Post Date 22 मई, 2024
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Pratik Datta

Shardul Amarchand Mangaldas & Co

pratik.datta@amsshardul.com

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Rajeswari Sengupta

Indira Gandhi Institute of Development Research

rajeswari@igidr.ac.in

भारत में पिछले कुछ वर्षों में अपेक्षाकृत उच्च डिफ़ॉल्ट जोखिम वाली छोटी और मध्यम आकार की फर्मों को वित्तपोषण करने वाले निजी ऋण बाज़ार में वृद्धि देखी गई है। इस लेख में दत्ता और सेनगुप्ता उभरते वाणिज्यिक ऋण परिदृश्य के सन्दर्भ में वैकल्पिक निवेश कोष के उभरने की चर्चा करते हैं। इन फंडों के चलते कुछ नियामक चुनौतियों और इस तरह का क्रेडिट बाज़ार बैंकिंग प्रणाली के सामने आने वाले कुछ दबावों को कैसे दूर कर सकता है, वे इस सब पर चर्चा करते हैं।

विश्व भर में, ग़ैर-वित्तीय कम्पनियाँ आम तौर पर बाहरी वित्तपोषण के लिए बैंकों या बॉन्ड बाज़ारों से मिलने वाली ऋण पूंजी, या सार्वजनिक और निजी बाज़ारों से इक्विटी पूंजी पर निर्भर करती हैं। यह विशेष रूप से बड़ी, स्थापित कम्पनियों के सन्दर्भ में है। पिछले कुछ वर्षों में यह परिदृश्य एक नए 'निजी ऋण बाज़ार' के उभरने का गवाह बन रहा है। निजी ऋण का मतलब है ऋण-जैसे उपकरणों का उपयोग करके ऊँचे रिटर्न और अतरल यानी नॉन इललिक्विड निवेश में ग़ैर-बैंक ऋण का वित्तपोषण। यह मुख्य रूप से अपेक्षाकृत उच्च डिफ़ॉल्ट जोखिम वाली उन छोटी और मध्यम आकार की फर्मों को दिया जाता है जो वित्तपोषण के पारम्परिक स्रोतों से ऋण प्राप्त नहीं कर सकते। इस ऋण का कोई आसान व्यापार-योग्य बाज़ार या सार्वजनिक रूप से उद्धृत मूल्य नहीं है और यह ग़ैर-बैंक ऋणदाताओं द्वारा दिया जाता है। दुनिया के बाकी हिस्सों की तरह भारत में भी निजी ऋण मध्य-बाज़ार फर्मों को दिया जाता है जो पूंजी के पारम्परिक स्रोतों (ईवाई, 2021) से वंचित हैं।

कई आयामों पर निजी ऋण फंड निजी इक्विटी फंडों के सामान हैं क्योंकि उनमें एक जैसा निवेशक आधार है और इनसे अपेक्षाकृत उच्च रिटर्न की उम्मीदें होती हैं (ब्लॉक एवं अन्य 2023)। विश्व स्तर पर, यह बाज़ार वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद से प्रमुख हो गया है क्योंकि बैंक पूंजी आवश्यकता के सख्त मानदंडों को अपनाने लगे, जिससे वे छोटे या जोखिम वाले उधारकर्ताओं को ऋण देने के दायरे से बाहर हो गए। तब से यह प्रवृत्ति विकसित और उभरती, दोनों अर्थव्यवस्थाओं में गति पकड़ रही है। यद्यपि ऋण का यह रूप हमेशा ग़ैर-बैंकिंग वित्तीय कम्पनियों (एनबीएफसी) और म्यूचुअल फंड (एमएफ) के माध्यम से अस्तित्व में रहा है, निजी ऋण के क्षेत्र में काम करने वाले वैकल्पिक निवेश फंड (एआईएफ) भारतीय क्रेडिट परिदृश्य में अपेक्षाकृत एक नई घटना है।

भारतीय ऋण बाज़ार में पिछले दशक में एक बहुत बड़ा बदलाव आया है, जिसके कारण निजी ऋण क्षेत्र में नए अवसर खुल रहे हैं। बैंकिंग क्षेत्र में बैलेंस शीट तनाव की लम्बी अवधि, जो लगभग वर्ष 2013 से 2019 तक ग़ैर-निष्पादित परिसम्पत्तियों (एनपीए) के उच्च स्तर के रूप में प्रकट हुई और सितंबर 2018 में आईएल एंड एफएस (इंफ्रास्ट्रक्चर लीज़िंग एंड फाइनेंशियल सर्विसेज़) के डिफ़ॉल्ट के कारण एनबीएफसी क्षेत्र में संकट उत्पन्न हुआ, जिसके चलते कॉर्पोरेट वित्त के पारम्परिक संस्थागत स्रोत खुदरा ऋण की दिशा में मुड़ गए। अन्य कारकों के अलावा, इस वित्तपोषण शून्यता की वजह से निजी ऋण क्षेत्र में काम करने वाले एआईएफ को एक अवसर मिल गया। दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी) 2016 का अधिनियमन यकीनन, एक महत्वपूर्ण कारक था जिसने भारत में एआईएफ-संचालित निजी ऋण बाज़ार के विकास का समर्थन किया। वास्तव में, वर्ष 2016 के बाद से इसे कॉर्पोरेट दिवालियापन कानून सुधारों की सबसे प्रेरणादायक सफलता की कहानियों में से एक माना जा सकता है। इस लेख में हम भारत में निजी ऋण बाज़ार के विकास का विश्लेषण करते हैं, इस बाज़ार को विकसित करने के फायदों पर चर्चा करते हैं और इसके सामने आने वाली कुछ चुनौतियों पर प्रकाश डालते हैं।

वाणिज्यिक ऋण परिदृश्य में परिवर्तन

समकालीन भारतीय ऋण परिदृश्य में सबसे महत्वपूर्ण रुझानों में से एक, वाणिज्यिक (ग़ैर-सरकारी) ऋण की वृद्धि में गिरावट है। 2011-2015 में कुल वाणिज्यिक ऋण वृद्धि 16.4% थी, जो 2015-2020 में घटकर 10.1% हो गई। आकृति-1 में वर्ष 2011 से 2022 की अवधि में पारम्परिक ऋण स्रोतों के हिस्से के विकास को दर्शाया गया है। पारम्परिक रूप से, बैंक भारत में वाणिज्यिक ऋण के सबसे बड़े प्रदाता रहे हैं। पिछले दशक के दौरान कुल वाणिज्यिक ऋण में उनकी हिस्सेदारी, वर्ष 2011 में 73% के शिखर पर थी, जो गिरकर वर्ष 2022 में 64% हो गई। बैंक ऋण में आई इस कमी के अन्तर को कॉर्पोरेट बॉन्ड के जारीकरण और एनबीएफसी ने भर दिया।

आकृति-1. कुल ऋण में विभिन्न ऋण स्रोतों का हिस्सा, 2011-2022 

स्रोत : सेनगुप्ता और वर्धन (2023)

टिप्पणी : i) y-अक्ष पर दिए गए आँकड़े उधार दी गई कुल राशि को दर्शाते हैं, जबकि स्टैक पर अंकित आँकड़े कुल ऋण में हिस्सेदारी को दर्शाते हैं। ii) दर्शाए गए वर्ष, उस वर्ष के मार्च माह में समाप्त होने वाले वित्तीय वर्ष हैं। iii) कुल ऋण का तात्पर्य कुल वाणिज्यिक या ग़ैर-सरकारी ऋण से है ; एनबीएफसी द्वारा दिया जाने वाला ऋण बैंकों और बॉन्ड बाज़ार से प्राप्त ऋण का शुद्ध योग है।

बैंक ऋण में गिरावट के पीछे के मुख्य कारणों में से एक, जुड़वाँ या ट्विन बैलेंस शीट (टीबीएस) संकट था, जो अपर्याप्त पूंजी वाले बैंकों की बैलेंस शीट पर बढ़ते एनपीए और निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र में वित्तीय रूप से तनावग्रस्त कम्पनियों में ऋण के उच्च स्तर के रूप में प्रकट हुआ (भारत सरकार 2017, सेनगुप्ता और वर्धन 2019)। टीबीएस संकट से निपटने के लिए, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने वित्त वर्ष 2015-16 में सम्पत्ति गुणवत्ता समीक्षा (एसेट क्वालिटी रिव्यु- एक्यूआर) कार्यक्रम जारी किया, जिसने बैंकों को अपनी बैलेंस शीट पर एनपीए को दर्शाने के लिए मजबूर किया। आरबीआई और सरकार द्वारा उठाए गए इन कदमों से बैंकिंग प्रणाली में जोखिम से बचने की प्रवृत्ति पैदा हो गई (सेनगुप्ता और वर्धन 2023)। इससे कुल बैंक ऋण में औद्योगिक ऋण की हिस्सेदारी में भी गिरावट आ गई। बैंकों ने निजी कॉर्पोरेट क्षेत्र को ऋण देने से अपना हाथ खींच लिया और इसके बजाय अपना ध्यान खुदरा क्षेत्र को ऋण देने पर केन्द्रित करना शुरू कर दिया। उपभोक्ता ऋण, कुल बैंक ऋण के हिस्से के रूप में वर्ष 2011 के 19% से उल्लेखनीय रूप से बढ़कर वर्ष 2020 में 30% हो गया, जिससे इस अवधि के दौरान भारतीय बैंकिंग में 'ऋण के उपभोक्ताकरण' की प्रवृत्ति पैदा हुई (सेनगुप्ता और वर्धन 2021)।

2011-2015 और 2015-2020 के बीच, एनबीएफसी से ऋण की वृद्धि दर 5% से तेज़ी से बढ़कर लगभग 45% हो गई। हालांकि, सितंबर 2018 में आईएल एंड एफएस के डिफॉल्ट से एनबीएफसी सेक्टर को बड़ा झटका लगा, जिसने एनबीएफसी के दो सबसे बड़े फंडिंग स्रोतों- बैंकिंग प्रणाली के साथ-साथ ऋण बाज़ारों, को झटका दिया। इसके बाद डीएचएफएल (दीवान हाउसिंग एंड फाइनेंस लिमिटेड) और इंडियाबुल्स हाउसिंग फाइनेंस के साथ-साथ यस बैंक जैसे वित्तीय क्षेत्र में समस्याओं के कारण अन्य अपेक्षाकृत कम प्रभाव वाले झटके लगे। इन घटनाओं ने बैंकों की जोखिम उठाने की क्षमता को और खराब कर दिया और ऋण बाज़ारों में भी जोखिम से बचने की प्रवृत्ति पैदा हो गई (सेनगुप्ता और वर्धन 2023)।

वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत तक, बैंक ऋण वृद्धि एक दशक के सब से निचले स्तर, बमुश्किल 6% पर पहुँच गई। जैसे-जैसे महामारी कम होती गई और भारतीय अर्थव्यवस्था झटके से उबरने लगी, बैंकिंग क्षेत्र के स्वास्थ्य में भी काफी सुधार हुआ। सरकार द्वारा पुनर्पूंजीकरण की लगातार लहरों ने सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को अपने अधिकांश बुरे ऋणों को माफ करने के लिए पर्याप्त संसाधन दिए। हालांकि, बैंक ऋण वृद्धि की बहाली मुख्य रूप से असुरक्षित उपभोक्ता ऋण, गृह ऋण और कुछ हद तक एमएसएमई ऋण में वृद्धि से प्रेरित है। उद्योग के लिए बैंक ऋण की वृद्धि दर वित्त वर्ष 2021-22 में 10% के करीब थी, जो गिरकर वित्त वर्ष 2022-23 में 4.9% हो गई (भारतीय रिज़र्व बैंक, 2023)।

एआईएफ का विकास

जैसा कि ऊपर वर्णित है, क्रेडिट परिदृश्य में इस व्यापक रुझान ने खासकर पिछले पाँच से छह वर्षों में भारत में एआईएफ के उद्भव के लिए अनुकूल माहौल तैयार किया है। इन क्रेडिट एआईएफ (जिसे सेबी नामांकन के तहत एआईएफ श्रेणी-2 कहा जाता है) के माध्यम से अब बड़ी मात्रा में पूंजी बॉन्डों में निवेश की जा रही है। यह निजी ऋण बाज़ार के उद्भव का संकेत है।

पिछले कुछ वर्षों में एआईएफ, क्रेडिट परिदृश्य में सबसे तेज़ी से बढ़ते क्षेत्रों में से एक रहा है। जैसा कि आकृति-2 में दर्शाया गया है, वित्त वर्ष 2018-19 के बाद से एआईएफ ने प्रतिबद्धताओं, जुटाई गई धनराशि और किए गए निवेश के मामले में महत्वपूर्ण वृद्धि की है। श्रेणी-2 एआईएफ, जिसमें संकट ग्रस्त सम्पत्तियों के लिए फंड शामिल हैं, एआईएफ द्वारा जुटाए गए कुल फंड का 73% हिस्सा था (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, 2023)।

आकृति-2. भारत में बढ़ता एआईएफ पारिस्थितिकी तंत्र

Source: Securities and Exchange Board of India

स्रोत : भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड

एआईएफ द्वारा विभिन्न उपकरणों जैसे कि असूचीबद्ध इक्विटी शेयर/इक्विटी लिंक्ड साधन (दस्तावेज़)/सीमित देयता भागीदारी ब्याज़, सूचीबद्ध इक्विटी, ऋण/प्रतिभूतीकृत ऋण उपकरण, अन्य एआईएफ की इकाइयों, लिक्विड फंड, एसएमई एक्सचेंज पर सूचीबद्ध/सूचीबद्ध होने वाली प्रतिभूतियों आदि में धनराशि लगाई जाती है। ऋण और प्रतिभूतिकृत ऋण साधनों (दस्तावेज़) को वर्ष 2020 से 2023 के बीच एआईएफ से निवेश की दूसरी सबसे बड़ी राशि प्राप्त हुई, जो ग़ैर-सूचीबद्ध इक्विटी शेयरों और इक्विटी लिंक्ड उपकरणों के बाद दूसरे स्थान पर है।

क्रेडिट एआईएफ की सटीक 'प्रबंधन के तहत सम्पत्ति' का ब्योरा सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं है, तथापि उनका अनुमान लगभग 10 से 15 खरब रुपयों का है। कुल ऋण का एक छोटा प्रतिशत होने के बावजूद, वे बॉन्ड के जारीकर्ता आधार को व्यापक बनाने में बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। यकीनन, एआईएफ उन एनबीएफसी की तुलना में थोक ऋण के लिए एक बेहतर मॉडल प्रदान करते हैं जिनकी अंतर्निहित कमजोरियाँ उनकी बैलेंस शीट पर परिसम्पत्ति देयता के आपसी मेल न होने से उत्पन्न होती हैं। एआईएफ की बढ़ती उपस्थिति और पैठ के परिणामस्वरूप, बाज़ारों के माध्यम से बेहतर जोखिम वितरण और पूंजी आवंटन हो सकता है।

निजी ऋण बाज़ार से उत्पन्न होने वाली चुनौतियाँ

हालांकि ये फंड कम रेटिंग वाली प्रतिभूतियों के लिए बॉन्ड बाज़ार को विकसित करने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, फिर भी उनके सामने एक अलग तरह की नियामक चुनौती है। भारत में क्रेडिट एआईएफ वर्तमान में आकार में काफी छोटे हैं और इसलिए उन पर अभी तक पर्याप्त नियामक ध्यान नहीं गया है, हालांकि हाल के दिनों में इसमें बदलाव होता दिख रहा है। वर्तमान में, क्रेडिट एआईएफ को निजी इक्विटी फंड के साथ एआईएफ श्रेणी-2 में शामिल किया जाता है और उनके कॉर्पस फंड को अलग से रिपोर्ट नहीं किया जाता है। वर्ष 2012 में जब से भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने एआईएफ को विनियमित करना शुरू किया है, तब से सेबी (एआईएफ) विनियम 2012 में 24 संशोधन हो चुके हैं। इनमें से, 75% संशोधन वर्ष 2020 के बाद से किए गए हैं। इन संशोधनों ने प्रशासन में सुधार और एआईएफ की पारदर्शिता के साथ-साथ निवेशक सुरक्षा पर ध्यान केन्द्रित किया है। आगे बढ़ते हुए, नियामकों को इन फंडों के विकास को प्रोत्साहित करना होगा ताकि बॉन्ड बाज़ार और भी विकसित हो सके।

साथ ही, इस बाज़ार से उत्पन्न होने वाले जोखिमों को प्रशासन, रिपोर्टिंग, प्रकटीकरण इत्यादि मानदंडों के माध्यम से बेहतर ढंग से समझने, उन पर निगरानी रखने और प्रबंधित करने की आवश्यकता भी होगी। यह प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। उदाहरण के लिए, एआईएफ के माध्यम से ऋणों को लगातार बढ़ाने (यानी, मौजूदा ऋणों पर डिफ़ॉल्ट से बचने के लिए नए ऋण जारी करना) को रोकने के लिए, आरबीआई ने हाल ही में अपनी विनियमित संस्थाओं (जैसे बैंक और एनबीएफसी) को उधारकर्ताओं को उनके प्रत्यक्ष ऋण को एआईएफ (भारतीय रिज़र्व बैंक 2023) की इकाइयों में निवेश के माध्यम से अप्रत्यक्ष जोखिम के साथ अप्रत्यक्ष रूप से प्रतिस्थापित करने हेतु प्रतिबंधित कर दिया है। समानांतर में, सेबी ने एक परामर्श पत्र जारी कर विनियम प्रस्तावित किए हैं जिनका उद्देश्य एआईएफ को मौजूदा वित्तीय क्षेत्र के नियमों जैसे कि विदेशी मुद्रा विनियमों और आरंभिक सार्वजनिक पेशकशों में योग्य संस्थागत खरीदारों के लिए कोटा से संबंधित विनियमों को दरकिनार करने से रोकना है (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड, 2024)। इसलिए हमारा मानना है कि निजी ऋण बाज़ार निकट भविष्य में उन्नत विनियमों का अनुभव करेगा।

यह जानना भी महत्वपूर्ण है कि, औद्योगिक ऋण से बैंकिंग क्षेत्र का हट जाना और उच्च रेटिंग वाली कम्पनियों की ओर कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार के झुकाव के अलावा, एक अन्य कारक जिसने भारत में एआईएफ-संचालित निजी ऋण बाज़ार के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो सकती है, वह था वर्ष 2016 में आईबीसी का अधिनियमन। बैंकों और एनबीएफसी के विपरीत, एआईएफ उधारदाताओं को कानूनी रूप से वित्तीय सम्पत्तियों का प्रतिभूतिकरण और पुनर्निर्माण तथा सुरक्षा हित अधिनियम (एसएआरएफएईएसआई अधिनियम) 20021 के प्रवर्तन के तहत प्रवर्तन अधिकारों का उपयोग करने की अनुमति नहीं है। एआईएफ भी आरबीआई के आउट-ऑफ-कोर्ट पुनर्गठन तंत्र2 का उपयोग नहीं कर सकता है। प्राथमिक वैधानिक दस्तावेज़ जो कम्पनियों में ऋण या ऋण निवेश में एआईएफ के हितों की प्रभावी ढंग से सुरक्षा करता है, वह आईबीसी है। परिणामस्वरूप, एआईएफ-संचालित निजी ऋण बाज़ारों को बेहतर कामकाजी कॉर्पोरेट दिवाला कानून व्यवस्था से काफी फायदा होगा।

ऐसा प्रतीत होता है कि नीति-निर्माताओं ने एआईएफ और कॉर्पोरेट दिवालियापन व्यवस्था के बीच अच्छे संबंधों को पहचाना है। परम्परागत रूप से, एसेट रिकंस्ट्रक्शन कम्पनियाँ (एआरसी) ही एकमात्र ऐसी कम्पनियाँ थीं जिन्हें बैंकों, एनबीएफसी और अन्य वित्तीय संस्थानों जैसे ऋणदाताओं से तनावग्रस्त कॉर्पोरेट ऋण खरीदने की अनुमति थी। जनवरी 2022 में, सेबी ने एआईएफ की एक विशेष उप-श्रेणी बनाई, जिसका नाम है स्पेशल सिचुएशन फंड (एसएसएफ), जो आरबीआई (ऋण एक्सपोजर का हस्तांतरण) दिशानिर्देश 2021 के विनियमन-58 के सन्दर्भ में, तनावग्रस्त ऋण सहित विशेष स्थिति वाली सम्पत्तियाँ खरीद सकता है। इन नियमों को निकट भविष्य में ठीक किए जाने की सम्भावना है, एसएसएफ में आईबीसी का उपयोग करके ऋणदाताओं के लिए वसूली दर में सुधार लाए जाने की क्षमता है, जिससे भारत में एक चुस्त व जीवन्त तनावग्रस्त सम्पत्ति बाज़ार का निर्माण सम्भव हो सकेगा (दत्ता 2022)।

निष्कर्ष

यद्यपि यह भारतीय निजी ऋण बाज़ार में एक अपेक्षाकृत नई घटना है, एआईएफ मध्य-बाज़ार, कम रेटिंग वाली कम्पनियों के लिए धैर्यपूर्ण और लचीली ऋण पूंजी के विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में उभर रहे हैं। यदि यह निजी ऋण बाज़ार फलता-फूलता है, तो यह अतिभारित बैंकिंग प्रणाली के दबाव से कुछ राहत दिला सकता है और वाणिज्यिक बैंकों को पूंजी के बेहतर आवंटन के लिए प्रोत्साहित कर सकता है, जो शायद खुदरा क्षेत्र के लिए अधिक लक्षित हैं। अंततः यह भारत में एक ऐसे क्रेडिट परिदृश्य के उद्भव का कारण बन सकता है जिसमें बड़ी, उच्च रेटिंग वाली कम्पनियाँ कॉर्पोरेट बॉन्ड बाज़ार के माध्यम से सीधे ऋण पूंजी तक पहुँच पाती हैं, मध्यम और छोटे आकार की अधिकांश कम रेटिंग वाली कम्पनियाँ एआईएफ के माध्यम से ऋण पूंजी तक पहुँच पाती हैं और बैंकिंग प्रणाली मुख्य रूप से खुदरा क्षेत्र को सेवाएं प्रदान करती है।

लेख में व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखकों के अपने हैं और जरूरी नहीं कि वे I4I संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।

टिप्पणियाँ :

  1. एसएआरएफएईएसआई (SARFAESI) अधिनियम 2002 की धारा 2(1)(m) में परिभाषित ‘वित्तीय संस्थान’ उस कानून के तहत प्रवर्तन अधिकारों का उपयोग कर सकते हैं।
  2. एआईएफ इस परिभाषा में शामिल नहीं हैं। एआईएफ इस परिपत्र (भारतीय रिज़र्व बैंक 2019) के तहत ‘ऋणदाता’ की परिभाषा में शामिल नहीं हैं। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया देखें।

लेखक परिचय : प्रतीक दत्ता शार्दुल अमरचंद मंगलदास एंड कंपनी में एसोसिएट डायरेक्टर (रिसर्च) हैं, जो कि एक प्रमुख भारतीय विधि फर्म है। इससे पहले उन्होंने भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक मौजूदा न्यायाधीश के लॉ क्लर्क के रूप में और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी में एक फेलो के रूप में काम किया है। राजेश्वरी सेनगुप्ता मुम्बई में स्थित इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ डेवलपमेंट रिसर्च में अर्थशास्त्र की एसोसिएट प्रोफेसर हैं। अतीत में उन्होंने इंस्टीट्यूट फॉर फाइनेंशियल मैनेजमेंट एंड रिसर्च, भारतीय रिज़र्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक में शोध पदों पर काम किया है।

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