सामाजिक पहचान

मम्मी-जी को मनाना : भारत में परिवार नियोजन के लिए सास की स्वीकृति

  • Blog Post Date 11 अप्रैल, 2025
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Catalina Herrera-Almanza

University of Illinois at Urbana-Champaign

cataher@illinois.edu

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Mahesh Karra

Boston University

mvkarra@bu.edu

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Rocío Valdebenito

University of Illinois at Urbana-Champaign

riv2@illinois.edu

भारत में हर साल 11 अप्रैल को, जो कस्तूरबा गाँधी की जयन्ती होती है, राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के रूप में मनाया जाता है। इसे मानाने का उद्देश्य गर्भावस्था, प्रसव और प्रसवोत्तर चरणों में माताओं के लिए उचित स्वास्थ्य सेवा और कल्याण के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। इसी सन्दर्भ में प्रस्तुत दो आलेखों की इस श्रृंखला के पहले लेख में यह चर्चा की है कि महिलाओं की परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच पर सास का क्या प्रभाव पड़ता है। पारम्परिक रूप में सास औसतन महिलाओं और उनके पतियों की तुलना में अधिक बच्चों और बेटों को प्राथमिकता देती हैं। लेख में उत्तर प्रदेश में महिलाओं को सब्सिडी वाले परिवार नियोजन तक पहुँच प्रदान करने वाले एक हस्तक्षेप के प्रभावों का वर्णन है। इस हस्तक्षेप से महिलाओं और उनकी सास के बीच परिवार नियोजन के बारे में बातचीत में वृद्धि हुई, जिसके परिणामस्वरूप सासों द्वारा परिवार नियोजन के प्रति स्वीकृति में वृद्धि हुई, और उल्लेखनीय रूप से बहुओं के क्लिनिक में जाने की संख्या में भी वृद्धि हुई है।

विशेष रूप से दक्षिण एशियाई परिवारों की सासें, अन्य महिलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल सकती हैं। ऐसी परिस्थितियों में जहाँ महिलाएँ विवाह के बाद अपने पति के (अक्सर विस्तारित या संयुक्त) परिवारों में चली आती हैं, वहाँ महिला की सास- जो संभवतः परिवार की मुखिया होती है, अपनी बहु के आवागमन, परिवार के बाहर सेवाओं और संसाधनों तक पहुँच और समग्र कल्याण को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। वास्तव में, ग्रामीण भारत में बड़े परिवारों में सास और उनकी बहुओं के बीच के संबंध हमेशा संतुलित नहीं होते हैं, क्योंकि युवा बहुओं में आमतौर पर इस पारिवारिक ढांचे में अपनी पसंद पर जोर देने और पसंद के काम करने की शक्ति का अभाव होता है। यह तर्क दिया जा सकता है कि किसी महिला पर उसकी सास का, विशेष रूप से एक तयशुदा विवाह के शुरुआती वर्षों के दौरान, उसके पति से भी अधिक प्रभाव हो सकता है।

हमने अपने एक शोधपत्र (अनुकृति एवं अन्य 2022) में, प्रजनन क्षमता और परिवार नियोजन के सन्दर्भ में सास और उनकी बहुओं के बीच संबंधों का अध्ययन किया है। ख़ासतौर पर, हमारे नमूने में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के 28 गाँवों की 18-30 वर्ष की आयु की 671 विवाहित महिलाएं शामिल हैं। हमने वर्ष 2018 में एक बेसलाइन सर्वेक्षण किया, जिसमें पता चला कि महिलाओं को अकेले स्वास्थ्य सुविधाओं में जाने की स्वतंत्रता नहीं है और उनके खुद के पास स्वास्थ्य सेवा के बारे में निर्णय लेने में सीमित अधिकार हैं। परिवार नियोजन के लिए उनकी ज़रूरतें पूरी नहीं हुई- जैसा कि इस तथ्य से पता चलता है कि यद्यपि हमारे नमूने में शामिल लगभग आधी महिलाएं दूसरा बच्चा नहीं चाहती थीं, केवल पाँचवाँ हिस्सा ही आधुनिक गर्भनिरोधक का उपयोग कर रही थीं और केवल एक तिहाई ही परिवार नियोजन सेवाओं के लिए कभी क्लिनिक गई थीं।

प्रजनन संबंधी प्राथमिकताओं में गड़बड़ी के निहितार्थ

महिलाओं और उनकी सास के बीच बच्चों और बेटों की आदर्श संख्या के मामले में काफी अंतर है। हमारे नमूने में शामिल अधिकांश महिलाएं (78%) अपनी सास के साथ रहती हैं, लेकिन उनमें से आधी ने बताया कि उन्होंने कभी भी उनके साथ परिवार नियोजन के बारे में चर्चा नहीं की। इसके अलावा, 42% महिलाओं का मानना ​​है कि उनकी सास परिवार नियोजन को मंज़ूरी नहीं देती हैं और 72% का मानना ​​है कि उनकी सास चाहती हैं कि वे जितने बच्चे चाहती हैं, उससे ज़्यादा बच्चे पैदा करें। एक औसत सास चाहती है कि उसकी बहू को एक और बच्चा हो और बहू की इच्छा से 1.4 ज़्यादा बेटे हों (आकृति-1)।

आकृति-1. परिवारों में प्रजनन संबंधी प्राथमिकताओं में असंतुलन

स्रोत : अनुकृति एवं अन्य 2022

टिप्पणी : यह आँकड़ा महिलाओं, उनके पतियों और उनकी सास के लिए बच्चों और बेटों की आधारभूत औसत आदर्श संख्या को दर्शाता है, जैसा कि नमूने में शामिल महिलाओं द्वारा बताया गया है।

इसकी तुलना में, एक महिला और उसके पति के बीच प्रजनन संबंधी प्राथमिकताओं में मतभेद बहुत कम है। लगभग 89% महिलाओं ने बताया कि उनके पति परिवार नियोजन को मंज़ूरी देते हैं। लगभग 89% महिलाओं ने बताया कि उनके पति परिवार नियोजन को मंज़ूरी देते हैं। एक औसत पति चाहता है कि उसकी पत्नी के 0.07 अतिरिक्त बच्चे हों और उसकी पत्नी जितने बेटे चाहती है, उससे 0.49 ज़्यादा बेटे हों।

बहू और सास के बीच प्रजनन संबंधी प्राथमिकताओं में गड़बड़ी का बहू पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जब बहू की सास की तुलना में परिवार के भीतर बातचीत की शक्ति कम होती है, तो गर्भनिरोधक तक उनकी पहुँच और उसके उपयोग को लेकर उनकी प्राथमिकताओं को परिवार के निर्णय लेने में कम महत्व मिल सकता है। इसके अलावा, यदि डर हो कि बाहरी प्रभाव के कारण बहू के प्रजनन परिणाम और परिवार नियोजन का उपयोग सास की प्राथमिकताओं से अलग हो रहा है तो सासें अपनी बहू की परिवार के बाहर सामाजिक संबंधों तक पहुँच को कम कर सकती हैं (अनुकृति एवं अन्य 2020)।

संभावित समाधान के रूप में सब्सिडी-युक्त परिवार नियोजन

महिलाओं को सब्सिडी वाली परिवार नियोजन सेवाओं के लिए वाउचर देने से उनकी सास के साथ परिवार नियोजन के बारे में संवाद में सुधार हो सकता है। अपने अध्ययन में, हमने यादृच्छिक रूप से चयनित महिलाओं के एक उपसमूह को जौनपुर के एक स्थानीय क्लिनिक में सब्सिडी वाली परिवार नियोजन सेवाओं तक पहुँच की पेशकश की, जबकि शेष महिलाओं को एक ‘नियंत्रण’ समूह में रखा गया, जिन्हें वाउचर नहीं मिला। वाउचर प्राप्तकर्ताओं द्वारा अपनी सास के साथ परिवार नियोजन के बारे में चर्चा शुरू करने की संभावना ‘नियंत्रण’ समूह की महिलाओं की तुलना में 45% अधिक थी।

वाउचर प्राप्तकर्ताओं ने अपनी सास की परिवार नियोजन के प्रति स्वीकृति में भी वृद्धि का अनुभव किया। ‘उपचार’ समूह की महिलाओं ने बताया कि ‘नियंत्रण’ समूह की तुलना में उनकी सास द्वारा परिवार नियोजन के प्रति स्वीकृति के बारे में उनकी धारणा में 11% की वृद्धि हुई। इसकी तुलना में, पत्नी द्वारा अनुभव की गई परिवार नियोजन के प्रति पति की स्वीकृति पर वाउचर का कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इस प्रभाव का एक संभावित कारण यह है कि वाउचरों से ‘उपचारित’ महिलाओं को अपनी सास के साथ परिवार नियोजन पर अधिक आसानी से चर्चा करने का अवसर मिला। साथ ही, हमारे हस्तक्षेप से ‘उपचारित’ महिलाओं द्वारा परिवार नियोजन सेवाओं के लिए क्लिनिक जाने की संभावना में 77% की वृद्धि हुई है, जो यह दर्शाता है कि उनकी सास की स्वीकृति में सुधार परिवार नियोजन तक पहुँच बढ़ाने में वाउचर की सफलता के लिए संभावित रूप से एक प्रासंगिक तंत्र है।

निष्कर्ष

पारिवारिक संरचना और सह-निवास पैटर्न (परिवार में साथ-साथ रहना) महिलाओं के आर्थिक निर्णय लेने के प्रमुख निर्धारक हैं। परिवार की इन विशेषताओं की अनदेखी करने से ऐसी नीतियाँ और कार्यक्रम बन सकते हैं जो अप्रभावी होंगे तथा प्राप्तकर्ताओं के लिए संभावित रूप से हानिकारक भी होंगे। ऐसी नीतियों की प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए, जो ऐसे संदर्भों में महिलाओं की भलाई में सुधार लाने का प्रयास करती हैं जहाँ पितृस्थानीय, विस्तारित परिवार आम हैं, परिवार में सास की केन्द्रीय भूमिका को ध्यान में रखा जाना चाहिए। सासें द्वारपाल के रूप में काम कर सकती हैं और अपनी बहुओं को परिवार नियोजन जैसी आवश्यक सेवाओं तक पहुँचने से रोक सकती हैं, जिसका महिलाओं के स्वास्थ्य और कल्याण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

भविष्य की नीतियों में प्रजनन संबंधी प्राथमिकताओं के इस संभावित असंतुलन, तथा सास और बहू के बीच सूचना और बातचीत की शक्ति की विषमता को उसी तरह संबोधित किया जाना चाहिए, जिस तरह परिवार नियोजन हस्तक्षेपों में पतियों और पत्नियों के बीच के अंतर-पारिवारिक आवंटन के मुद्दों को चुनौती देने का लक्ष्य रखा गया है (उदाहरण के लिए, पतियों के स्कूलों और भावी पतियों के क्लबों के माध्यम से)।

बेसलाइन पर लगभग 86% महिलाओं ने बताया कि अगर कोई दोस्त या रिश्तेदार स्वेच्छा से उनके साथ चले तो उनके परिवार नियोजन सेवाओं के लिए स्वास्थ्य केन्द्र में जाने की अधिक संभावना है। क्या पारिवारिक ढांचों द्वारा सीमित एजेंसी में सुधार के लिए महिलाओं के संगी-साथियों का लाभ उठाया जा सकता है? श्रृंखला के दूसरे लेख में इस विषय पर और अधिक गौर किया गया है।

 अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें। राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस के सन्दर्भ में प्रस्तुत श्रृंखला का दूसरा लेख यहाँ पढ़ा जा सकता है। 

लेखक परिचय : एस. अनुकृति विश्व बैंक के विकास अनुसंधान समूह में वरिष्ठ अर्थशास्त्री हैं और श्रम अर्थशास्त्र संस्थान (आईजेडए) में शोध फेलो हैं। वह एक अनुप्रयुक्त सूक्ष्म अर्थशास्त्री हैं, जिनकी रुचि विकास अर्थशास्त्र, लिंग और परिवार के अर्थशास्त्र और राजनीतिक अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों में है। उन्होंने कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एमए और सेंट स्टीफन कॉलेज, दिल्ली से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) की डिग्री प्राप्त की है। कैटालिना हेरेरा-अलमान्ज़ा इलिनोआ विश्वविद्यालय, अर्बाना-शैंपेन में कृषि और उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। इससे पहले, वह नॉर्थईस्टर्न विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र और अंतरराष्ट्रीय मामलों की सहायक प्रोफेसर रह चुकी हैं। उनकी शोध रुचियाँ विकास अर्थशास्त्र और लिंग हैं, जिसमें जनसंख्या, स्वास्थ्य और शिक्षा के मुद्दों पर प्राथमिक ध्यान केंद्रित किया गया है। महेश कर्रा बोस्टन विश्वविद्यालय में फ्रेडरिक एस. पारडी स्कूल ऑफ ग्लोबल स्टडीज में वैश्विक विकास नीति के सहायक प्रोफेसर हैं और वैश्विक विकास नीति केंद्र में मानव पूंजी पहल के एसोसिएट निदेशक हैं। उनकी शैक्षणिक और शोध रुचियां मोटे तौर पर विकास अर्थशास्त्र, स्वास्थ्य अर्थशास्त्र, मात्रात्मक विधियों और अनुप्रयुक्त जनसांख्यिकी में हैं। रोसियो वाल्डेबेनिटो भी इलिनोआ विश्वविद्यालय, अर्बाना-शैंपेन में अनुप्रयुक्त अर्थशास्त्र में पीएचडी उम्मीदवार हैं। उनकी शोध रुचियां शिक्षा, लिंग, विकास अर्थशास्त्र और क्षेत्रीय अर्थशास्त्र की अर्थशास्त्र हैं।वह कृषि और उपभोक्ता अर्थशास्त्र विभाग में एक शिक्षण और अनुसंधान सहायक भी हैं।

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