भारत के प्रमुख मातृ स्वास्थ्य हस्तक्षेप, जननी सुरक्षा योजना के माध्यम से संस्थानों में प्रसव करवाने का विकल्प चुनने वाली महिलाओं को सशर्त नकद हस्तांतरण उपलब्ध कराया गया है। इस अध्ययन में चटर्जी और पोद्दार ने बच्चों के शैक्षिक परिणामों पर इस कार्यक्रम के बड़े सकारात्मक स्पिलओवर (लाभ) को दर्शाया है। उन्होंने पाया कि ये स्पिलओवर मानव पूंजी में निवेश में वृद्धि और कार्यक्रम के महिला लाभार्थियों की प्रजनन वरीयताओं में बदलाव के माध्यम से घर में पहले से पैदा हुए बड़े बच्चों को मिलते हैं।
भारत सरकार ने मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करने के लक्ष्य के साथ अप्रैल 2005 में अपना प्रमुख सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम – जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) शुरू किया। जेएसवाई के तहत, भारत में गरीब परिवारों की गर्भवती महिलाएं संस्थानों में प्रसव करवाने का विकल्प चुनने पर सशर्त नकद हस्तांतरण प्राप्त करने की पात्र होंगी। भारत में मान्यता प्राप्त सामाजिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा कार्यकर्ताओं) के व्यापक नेटवर्क का उपयोग सरकार और लाभार्थियों के बीच मध्यस्थ के रूप में इस अपेक्षा के साथ किया गया कि आशा कार्यकर्ता गर्भवती महिलाओं के लिए सुविधाकर्ता और परामर्शदाता के रूप में कार्य करेंगी और उन्हें नियमित स्वास्थ्य जांच और निगरानी के साथ-साथ संस्थानों में प्रसव करवाने का विकल्प चुनने के लिए प्रेरित करेंगी।
वर्ष 2008-09 और 2009-10 में जेएसवाई हेतु सरकार का वार्षिक खर्च लगभग 20 करोड़ डॉलर था और जेएसवाई दुनिया के सबसे बड़े नकद हस्तांतरण कार्यक्रमों में से एक था, जिसके तहत वर्ष 2012-13 तक हर साल लगभग 77 लाख लाभार्थियों को इसका लाभ मिला (लिम एवं अन्य 2010; सिडनी एवं अन्य 2012; एनजी एवं अन्य 2014)। इसकी उच्च लागत को देखते हुए, इस बड़े पैमाने के हस्तक्षेप की प्रभावकारिता को समझने हेतु कार्यक्रम के लाभों को ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है। इस संबंध में अध्ययनों ने औपचारिक सुविधाओं में मातृ स्वास्थ्य देखभाल प्राप्त करने के साथ-साथ संस्थानों में प्रसव और नवजात परिणामों की घटनाओं पर कार्यक्रम के सकारात्मक प्रभावों का अनुमान लगाया है (लिम एवं अन्य 2010, पॉवेल-जैक्सन एवं अन्य 2015, रहमान और पल्लीकडावथ 2018)। हालांकि, जोशी और शिवराम (2014) दर्शाते हैं कि यदि कोई केवल लक्षित आबादी पर ध्यान केंद्रित करता तो जेएसवाई के प्रभाव वास्तव में सीमित थे। नंदी और लक्ष्मीनारायण (2015) जेएसवाई के कुछ अनपेक्षित परिणामों की ओर इशारा करते हैं और जेएसवाई की प्रतिक्रिया के रूप में उच्च प्रजनन दर को दर्शाते हैं। जावड़ेकर और सक्सेना (2019) दर्शाते हैं कि जेएसवाई के परिणामस्वरूप भारत में स्त्री संतान के जन्म की घटनाओं में भी वृद्धि हुई है।
प्रत्यक्ष परिणामों और अनपेक्षित परिणामों पर इस मिश्रित साक्ष्य के बावजूद, जेएसवाई के स्पिलओवर प्रभावों के बारे में बहुत कम जानकारी उपलब्ध है। यह प्रासंगिक है क्योंकि जेएसवाई अनिवार्य रूप से एक सशर्त नकद हस्तांतरण (सीसीटी) कार्यक्रम था जिसने आम तौर पर व्यक्तियों के लिए उपलब्ध विकल्पों का विस्तार कर के पारिवारिक बजट की कमी को प्रभावित किया हो। हमारे हाल के अध्ययन (चटर्जी और पोद्दार 2021) में हम दर्शाते हैं कि यह विस्तारित विकल्प सेट संभावित रूप से परिवार में अन्य बच्चों पर महिलाओं द्वारा मानव पूंजी में अधिक निवेश करने में सक्षम बनाता है। परिणामस्वरूप, इन बच्चों के संदर्भ में सीखने के बेहतर परिणाम मिलते हैं, जैसा कि पढ़ने, लिखने और गणित में उच्च परीक्षण स्कोर द्वारा मापा जाता है। परिणामतः हम बच्चों की शिक्षा पर जेएसवाई के बहुत बड़े स्पिलओवर (लाभ) प्रभावों का नया साक्ष्य दर्शाते हैं जो कार्यक्रम से सीधे प्रभावित नहीं हैं, और यह दर्शाता है कि सीसीटी के सकारात्मक और अनपेक्षित परिणाम न केवल इंट्रा-पारिवारिक, बल्कि अंतर-पीढ़ीगत परिणामों पर भी हैं।
पद्धति
हम अपना विश्लेषण करने हेतु वर्ष 2011-12 के भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस)-II के आंकड़ों का उपयोग करते हैं। हमारी रुचि के प्राथमिक परिणाम बच्चों के मानकीकृत परीक्षण स्कोर हैं। आईएचडीएस-II में 8-11 वर्ष की आयु के बच्चों के पढ़ने, लिखने और गणित की परीक्षा के अंकों को रिपोर्ट किया गया है। हम जेएसवाई हस्तक्षेप के कारण-प्रभावों को समझने के लिए, कार्यक्रम के कार्यान्वयन की संस्थागत विशेषताओं का उपयोग करते हुए एक अर्ध-प्रायोगिक डिजाइन का उपयोग करते हैं। जेएसवाई को उन राज्यों को ग्रेडेड सहायता के रूप में लागू किया गया था, जिनकी पहचान संस्थानों में प्रसव की प्रचलित औसत दरों के आधार पर की गई थी। तदनुसार, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, राजस्थान आदि जैसे राज्यों को “कम प्रदर्शन करने वाले राज्यों” (एलपीएस) के रूप में वर्गीकृत किया गया था और अन्य राज्यों को "उच्च प्रदर्शन वाले राज्यों" (एचपीएस) के रूप में। इसके अतिरिक्त, एलपीएस में सभी गर्भवती महिलाएं लाभ प्राप्त करने के लिए पात्र थीं, जबकि केवल समाज के पारंपरिक रूप से वंचित वर्गों (जैसे अनुसूचित जाति (एससी) और अनुसूचित जनजाति (एसटी)) की महिलाएं एचपीएस में पात्र थीं। तालिका 1 में इन संस्थागत मानदंडों के आधार पर जेएसवाई पात्रता का सार प्रस्तुत किया गया है।
तालिका 1. निम्न और उच्च प्रदर्शन वाले राज्यों में श्रेणी के अनुसार जेएसवाई की पात्रता का मैट्रिक्स
श्रेणी के आधार पर पात्रता |
कम प्रदर्शन करने वाले राज्य (एलपीएस) |
उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्य (एचपीएस) |
एससी और एसटी |
पात्र |
पात्र |
अन्य सभी परिवार |
पात्र |
नहीं |
पात्रता मानदंडों के आधार पर जेएसवाई के लाभ में इस भिन्नता का उपयोग करते हुए हम एक क्रॉस-सेक्शनल1 डिफरेंस-इन-डिफरेंस रणनीति2 को अपनाते हैं, जिसमें हम इन औसत अंतरों के साथ सहसंबद्ध सहचरों के नियंत्रण पर आधारित विभिन्न क्रॉस-सेक्शनल समूहों के औसत परिणामों की तुलना करते हैं। मूलतः हम निम्नलिखित अंत पाते हैं:
i) एलपीएस और एचपीएस परिवारों में बच्चों के औसत परीक्षण स्कोर में अंतर (डी1)
ii) अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति और अन्य परिवारों के बच्चों के औसत परीक्षा अंकों में अंतर (डी 2)
जेएसवाई का कारण प्रभाव परिवार के आकार, आयु, परिवार की संरचना, परिवार की शिक्षा के स्तर, परिवार के मुखिया की आय आदि जैसे अन्य देखे गए सहचरों को नियंत्रित करने के बाद डी1 और डी2 के बीच का अंतर है।
इस अर्थमितीय पहचान के पीछे यह धारणा है कि अगर कार्यक्रम नहीं होता तो यह अंतर (डी 1 - डी 2; या डी 1 माइनस डी 2) शून्य से सांख्यिकीय रूप से भिन्न नहीं होता। चूंकि यह एक प्रतितथ्यात्मक धारणा है, अतः इसे जांचना ठीक नहीं है। तथापि, हम जेएसवाई के कार्यान्वयन से पहले वर्ष 2004-05 में किए गए सर्वेक्षण, आईएचडीएस-I के पहले दौर का उपयोग करते हैं और फिर से विश्लेषण करते हैं। हम दर्शाते हैं कि हमारे सभी मुख्य परीक्षण स्कोर परिणामों के संदर्भ में इस पूर्व-कार्यक्रम डेटा का उपयोग, सांख्यिकीय रूप से महत्वहीन है। इससे हमारे विश्लेषण को बल मिलता है कि आईएचडीएस-II के उपयोग से अनुमानित किसी भी महत्वपूर्ण अंतर को जेएसवाई हस्तक्षेप हेतु जिम्मेदार माना जा सकता है।
जाँच के परिणाम
हम पाते हैं कि जेएसवाई के कारण, पठन परीक्षण अंकों में लगभग 0.2 मानक विचलन, गणित के अंकों में 0.13 मानक विचलन और लेखन अंकों में 0.19 मानक विचलन3 की वृद्धि हुई है। दिलचस्प बात यह है कि हम यह भी पाते हैं कि ये प्रभाव लड़कियों के संदर्भ में महत्वपूर्ण और बड़े हैं, लेकिन लड़कों के संदर्भ में बहुत हतोत्साहित करते हैं।
जिन संभावित चैनलों के माध्यम से जेएसवाई के खाते में प्राप्त हस्तांतरण भुगतान परिवार में बच्चों के लिए सीखने के लाभ में तब्दील हो जाता है, उनका पता लगाने के लिए हम दो संभावित तंत्रों का अध्ययन करते हैं। सबसे पहला, अल्पावधि में, सीसीटी के चलते पारिवारिक बजट की बाध्यताएं प्रभावित होनी चाहिए और इससे परिवार के व्यय की संरचना में परिवर्तन हो सकता है। इस परिकल्पना के अनुरूप, हम उस सकारात्मक प्रभाव का अनुमान लगाते हैं जो जेएसवाई के कारण पहले से ही परिवार में मौजूद बच्चों (जेएसवाई द्वारा प्रेरित संस्थानगत प्रसव से नवजात शिशु नहीं) के लिए मानव पूंजी में निवेश पर हुआ था। महिलाएं अपने परिवार के बड़े बच्चों पर निजी ट्यूशन और अन्य खर्चों पर अधिक खर्च करने लगती हैं, जिससे उनकी पढ़ाई पर प्रभाव पड़ता है।
दूसरा, दीर्घकालिक प्रभाव के रूप में, हम यह पता लगाते हैं कि क्या जेएसवाई महिलाओं की प्रजनन प्राथमिकताओं को भी प्रभावित करता है। हम इसके लिए सबूत पाते हैं, जैसा कि बच्चों की प्रतिवेदित संख्या में कमी से प्रलेखित है, जिसे कोई महिला अपनाना चाहेगी। दिलचस्प बात यह है कि यह प्रभाव लड़कियों के संदर्भ में उनकी पसंद को प्रभावित नहीं करता है, लेकिन उन लड़कों की पसंदीदा संख्या में कमी के माध्यम से संचालित होता है जिन्हें महिलाएं जन्म देना चाहती हैं। ये प्रभाव इस विचार के अनुरूपव है कि सीसीटी ने सौदेबाजी की शक्ति और महिलाओं के सशक्तिकरण में वृद्धि की हो सकती है। संभावित रूप से बेटे के लिए वरीयता के प्रति पूर्वाग्रह के बिना प्रजनन वरीयताओं में बदलाव को दर्शाते हैं। हम इन निष्कर्षों को क्लासिक मात्रा-गुणवत्ता ट्रेड-ऑफ़ के माध्यम से मानव पूंजी में बढ़े हुए निवेश के साथ युक्तिसंगत बनाते हैं - ऐसा प्रतीत होता है कि महिलाएं अब कम, लेकिन उच्च गुणवत्ता वाले बच्चे (यानी अधिक शिक्षित) पसंद करती हैं।
निष्कर्ष
अपेक्षाकृत उच्च कार्यान्वयन लागत के कारण सीसीटी कार्यक्रमों की वित्तीय बाधाओं के बावजूद, हम दर्शाते हैं कि इन कार्यक्रमों के लाभों को अक्सर कम करके आंका जाता है क्योंकि अन्य क्षेत्रों में स्पिलओवर का कोई हिसाब नहीं है। इस मामले में जेएसवाई का उद्देश्य संस्थानों में प्रसवों की अधिक से अधिक घटनाओं के माध्यम से मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य को प्रभावित करना था, जिसे वह वर्तमान साहित्य के अनुसार प्राप्त करने में सफल रहा है। हम दर्शाते हैं कि मानव पूंजी में किए गए उत्पादक निवेश के माध्यम से, अतिरिक्त रूप से, इन परिवारों में बड़े बच्चों के संदर्भ में सीखने में वृद्धि हुई है।
हम मातृ स्वास्थ्य सीसीटी के अनुभवजन्य साक्ष्य उपलब्ध कराते हैं जिसका घर में पहले से मौजूद बड़े बच्चों के शिक्षा परिणामों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, जो इस तरह के कार्यक्रमों के मजबूत अंतर-पारिवारिक और अंतर-पीढ़ीगत लाभों को दर्शाता है। भारत 50% से कम नामांकित बच्चों के साथ शिक्षण के संकट का सामना कर रहा है जो बुनियादी संज्ञानात्मक कार्यों को करने में सक्षम हैं (एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट, 2019)। इन समस्याओं के मद्देनजर, मातृ स्वास्थ्य कार्यक्रम के इतने बड़े सकारात्मक और अनपेक्षित परिणाम सीसीटी पर खर्च को तर्कसंगत बना सकते हैं।
टिप्पणी:
- एक क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन एक प्रकार का शोध डिज़ाइन है जिसमें आप एक ही समय में कई अलग-अलग व्यक्तियों से डेटा एकत्र करते हैं।
- अंतर-में-अंतर पद्धति एक दृष्टिकोण है जो एक कार्यक्रम (उपचार समूह) में नामांकित आबादी और एक आबादी जो नहीं है (नियंत्रण समूह) के बीच समय के साथ परिणामों में बदलाव की तुलना करती है।
- मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के माध्य मान से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
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लेखक परिचय:
सोमदीप चटर्जी आईआईएम कलकत्ता में अर्थशास्त्र के असोसिएट प्रोफेसर हैं। प्रशांत पोद्दार आईआईएम अमृतसर में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।
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