पिछले साल घोषित की गई नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम पहले मौजूदा राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (रएसबीवाई) को अपने अंदर शामिल करती है, जिसने सबसे गरीब 30 करोड़ भारतीयों को अल्पकालिक अस्पताल के दौरे के लिए स्वास्थ्य बीमा प्रदान किया था। कर्नाटक में आरएसबीवाई पर अपने बड़े पैमाने पर किये गए अध्ययन के आधार पर, मलानी और कीनन ने नए कार्यक्रम के लिए कुछ महत्वपूर्ण सबक दिए हैं।
भारत में हाल ही में स्वास्थ्य देखरेख के क्षेत्र में सेवा देने के लिए एक साहसिक प्रयोग शुरू किया गया है। यह अगर सफल होता है, तो भारत के 50 करोड़ गरीब और लगभग गरीब लोगों को इलाज और दवाएं उपलब्ध् होने लगेंगी। इसे 32 करोड़ आबादी वाले देश अमेरिका द्वारा 2010 में शुरू किए गए अफोर्डेबल केयर एक्ट (एसीए) के साथ मिलाकर देखा जा सकता है जिसका लक्ष्य लगभग 5 करोड़ लोगों को स्वास्थ्य देखरेख उपलब्ध् कराना था। अनेक सफलताओं के बावजूद एसीए को, खास कर आरंभिक वर्षों में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा और उसके अनेक मुद्दे वर्षों तक अनसुलझे रहे।
भारत में कार्यक्रम के विशाल पैमाने के कारण इसकी अनेक चुनौतियां काफी बड़ी दिखती हैं। इनमें ये भी शामिल हैं कि योजना के लाभ लोगों को कैसे बताए जाएं और नामांकन के लिए लोगों को कैसे प्रोत्साहित किया जाए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर मोदीकेयर के नाम से ‘नेशनल हेल्थ प्रोटेक्शन स्कीम’ (एनएचपीएस) की सफलता बहुत कुछ इस पर निर्भर करती है कि लोग इस सेवा में शामिल होंगे या नहीं, लोग इसका उपयोग करेंगे या नहीं, और अस्पताल इसमें भागीदार होंगे या नहीं।
चुनौती बहुत बड़ी है लेकिन अजेय नहीं है। निस्संदेह, हमारे पास उन विधियों को सुझाने के लिए साक्ष्य मौजूद हैं जो नामांकन को प्रोत्साहित करेंगे और मोदीकेयर का सफल संचालन सुनिश्चित करने में मददगार होंगे। हम उस शोध् दल के हिस्से हैं जिसने हाल में कर्नाटक राज्य में स्वास्थ्य बीमा का बड़े पैमाने पर अध्ययन पूरा किया है, जहां हमें उन्हीं मुद्दों का सामना करना पड़ा जो मोदीकेयर के सामने आएंगे। परिणाम आशाजनक हैं।
हमारे अध्ययन का मुख्य तरीका रैंडमाइज्ड कंट्रोल ट्रायल था जिसमें कनार्टक की 6.4 करोड़ आबादी में से लगभग 50,000 लोगों के स्वास्थ्य और वित्तीय सुरक्षा पर भारत के एक पूर्व सरकार द्वारा संचालित कार्यक्रम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना (आरएसबीवाय), के प्रभाव की जांच की गई थी। हमलोगों ने राज्य के अस्पतालों का भी अध्ययन किया था। इन प्रयासों से हमें मोदीकेयर के लिए महत्वपूर्ण सबक मिले और अर्थशास्त्र के अनेक मुद्दों की तरह वे भी मांग और आपूर्ति पर आकर टिक गए।
कार्यक्रम को जनता के बीच ले जाएं
सबसे पहले मांग पक्ष: मोदीकेयर की पात्रता का मानदंड और व्याप्ति कितनी भी अधिक क्यों नहीं हो, जब तक पात्र परिवार नामांकन नहीं करवाते इसका प्रभाव सीमित ही रहेगा। इसकी पूर्ववर्ती आरएसबीवाय निम्न स्वीकृति दरों से पीड़ित थी। हालांकि इसमें नामांकन का खर्च सिर्फ 30 रु. (0.47 डॉलर) था लेकिन 54 प्रतिशत पात्र परिवारों ने ही इसमें भाग लिया।
इसके विपरीत, हमारे अध्ययन में जब मुफ्त बीमा की पेशकश की गई, तो परिवारों की नामांकन दर 79 प्रतिशत पहुंच गई। जब हमनें बीमा को बिना सब्सिडी दिए लागत मूल्य पर बेचा, तब भी हमारी नामांकन दरें सरकारी स्तरों से अधिक थीं। हमने इसे घर-घर जाकर लोगों को नामांकन में मदद करने के जरिए हासिल किया।
अगर देखरेख हासिल करने के लिए परिवार कार्यक्रम का उपयोग नहीं करते हैं, तो मोदीकेयर का भी प्रभाव कुंद हो जाएगा। जैसे, आरएसबीवाय के जरिए उपयोग मात्रा 1 प्रतिशत अंक बढ़कर 2.8 प्रतिशत घरों तक पहुंचा। कुछ राज्यों में अस्पताल जाने की दर 1 प्रतिशत से भी कम थी। क्यों? हमने पाया कि अनेक परिवारों ने कार्ड का उपयोग करने की कोशिश की लेकिन वे असफल रहे। वहीं, कई दूसरे परिवार अपना कार्ड भूल गए और उसका उपयोग नहीं कर पाए। सबसे परेशानी की बात है कि लगभग आधी बार अस्पताल या बीमा कंपनी ने बीमा को प्रोसेस नहीं किया या कवरेज को खारिज कर दिया।
इन समस्याओं को सुधारा जासकता है। सरकार को सूचना और शिक्षा सम्बन्धी अभियानों पर अधिक प्रयास करना चाहिए। मोदीकेयर के तहत आधार और अस्पताल आधारित बायोमेट्रिक आइडी के उपयोग जैसे जिन ढांचागत परिवर्तनों की योजना बनाई गई है, उनसे लाभार्थियों के लिए कागज आधारित काम और परेशानियों में कमी आनी चाहिए। इसके अलावा, मोदीकेयर को सुनिश्चित करना होगा कि अस्पताल में भुगतान प्रणाली काम कर रही हो और रोगियों को वापस नहीं भेजा जाए।
घोड़े से आगे घोडा-गाड़ी मत रखें
सप्लाई पक्ष पर विचार करें तो स्वास्थ्य बीमा सुलभ स्वास्थ्य देखरेख सुविधाओं के बिना बेकार है। मोदीकेयर के लिए यह एक गंभीर अवरोध् है। भारत के लगभग आधे बच्चे गांवों मे बिना इन सेवाओं के रहते हैं। मोदकेयर के तहत निकट भविष्य में इस समस्या का समाधान नहीं किया जा सकता है। हालांकि समय के साथ व्याप्त रोगियों की संख्या बढ़ाकर बीमा कार्यक्रम में प्राइवेट सेक्टर को अधिक स्वास्थ्य केंद्र बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है।
समस्या तब जटिल हो जाती है जब हम पाते हैं कि कर्नाटक में आरएसबीवाय में 33 प्रतिशत अस्पतालों की भागीदारी थी लेकिन उनमें से 55 प्रतिशत ने वास्तव में आरएसबीवाय के लाभार्थियों का कोई इलाज नहीं किया था। इसका एक मुख्य कारण यह है कि आरएसबीवाय के तहत अस्पतालों को देखरेख के लिए बाजार दर से कम भुगतान किया जाता है। इससे निपटने के लिए मोदीकेयर के तहत इलाज के लिए अधिक भुगतान किया जाना चाहिए, और विभिन्न स्थानों पर जमीन और श्रम की लागत के आधार पर कीमत बढ़ानी चाहिए।
मांग और पूर्ति सम्बन्धी ये मुद्दे मोदीकेयर के सफल संचालन के लिए मुख्य चीजें हैं, लेकिन ठोस
वित्तीयन और सशक्त डेटा सम्बन्धी अधिसंरचना भी जरूरी है। किसी भी वित्तपोषण योजना को डेटा सम्बन्धी सशक्त ढांचे का समर्थन होना चाहिए जिसके बिना दावों की छानबीन और भुगतान नहीं किया जा सकता है। और ऐसा नहीं होने पर योजना अंततः असफल हो जाती है। डेटा सम्बन्धी ढांचा दुरुस्त करने के लिए भारत को अपने सूचना प्रौद्योगिकी कौशल का लाभ उठाना चाहिए।
महत्व्पूर्ण हित्त
इस स्तर के कार्यक्रम के लिए आरंभ मायने रखता है। मोदीकेयर का प्रति व्यक्ति 5 लाख रु. वार्षिक अस्पताल व्यय का आच्छादन भारत सरकार के पूर्ववर्ती स्वास्थ्य कार्यक्रम (राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना) से 15 गुना अधिक और और किसी भी राज्य के कार्यक्रम से दोगुना-तिगुना है। बीमा का प्रति परिवार प्रति वर्ष प्रीमियम 1100-1200 रु. (18 डॉलर) अनुमानित है, और पूरे कार्यक्रम की लागत 12,000 करोड़ रु. (1.87 अरब डॉलर) हो सकती है। कुशल डिजाइन और प्रबंधन इन महत्वपूर्ण संसाधनों के बुद्धिमतापूर्ण उपयोग की कुंजी है।
लेकिन रकम से भी अधिक चीजें जोखिम में हैं। इलाज पर खर्च के कारण भारत की लगभग 7 प्रतिशत आबादी हर साल गरीबी में चली जाती है। इसीलिए मोदीकेयर के जरिए गरीबों के लिए अनिवार्य सुरक्षा उपलब्ध् कराने के लिए तैयारी है। स्पष्ट है कि काफी कुछ दांव पर लगा है। मोदीकेयर के सही क्रियान्वयन के लिए भारत सरकार आरएसबीवाय से सबक ले सकती है। इस पर करोड़ों भारतीयों का स्वास्थ्य निर्भर करता है।
लेखक परिचय: सिंथिया कीनन नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी स्थित इंस्टीट्यूट फॉर पॉलिसी रिसर्च में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर और फैकल्टी फेलो हैं। अनूप मलानी शिकागो यूनिवर्सिटी में कानून और चिकित्सा के प्रोफसेर हैं।
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