सामाजिक पहचान

गतिशीलता के माध्यम से लैंगिक असमानता से लड़ना : दिल्ली की ‘पिंक टिकट’ योजना का आकलन

  • Blog Post Date 11 मार्च, 2025
  • फ़ील्ड् नोट
  • Print Page
Author Image

Nishant .

Independent researcher

nishants.workmail@gmail.com

Author Image

Archana Singh

Pennsylvania State University

aqs7632@psu.edu

आवागमन में व्याप्त लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए, दिल्ली सरकार ने वर्ष 2019 में महिलाओं के लिए किराया-मुक्त बस यात्रा योजना की शुरुआत की। शहर में महिला यात्रियों के एक सर्वेक्षण के आधार पर, निशांत और अर्चना ने इस योजना के सकारात्मक प्रभावों, जैसे कि स्वतंत्र रूप से यात्रा करने के आत्मविश्वास में वृद्धि, मुफ्त यात्रा से होने वाली बचत का अन्य उद्देश्यों के लिए उपयोग पर प्रकाश डाला है। साथ ही, वे व्यापक अर्थों में बस परिवहन को और अधिक महिला-अनुकूल बनाने की आवश्यकता पर बल देते हैं।

यह अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस 2025 के उपलक्ष्य में हिन्दी में प्रस्तुत श्रृंखला का दूसरा लेख है। 

किसी भी सार्वजनिक परिवहन प्रणाली को वास्तव में तभी विश्वसनीय कहा जा सकता है जब महिलाएँ बिना किसी हिचकिचाहट या डर के उस पर भरोसा कर सकें (हैमिल्टन और जेनकिंस 2000)। जब महिलाएं सार्वजनिक परिवहन का उपयोग करने में सक्षम होती हैं, तो इससे सामाजिक असमानताओं को कम करने, लैंगिक न्याय को बढ़ावा देने तथा महिलाओं को आत्मविश्वास के साथ और बिना किसी डर के शहर में घूमने में सशक्त बनाने में मदद मिलती है (लौकाइटौ-साइडरिस 2016, यूटेंग 2012)। अध्ययनों से संकेत मिलता है कि शहरी भारत में महिलाओं की गतिशीलता दर 47% (गोयल 2023) जितनी कम होने का अनुमान है और शहरी भारत में केवल 48% महिलाओं को घर से अकेले बाहर निकलने की अनुमति है (अंतर्राष्ट्रीय जनसंख्या विज्ञान संस्थान, आईआईपीएस और आईसीएफ, 2021)।

इस सम्बन्ध में, दिल्ली में अक्टूबर 2019 में शुरू की गई महिलाओं के लिए किराया-मुक्त बस यात्रा योजना, शहरी आवागमन के मामले में लैंगिक समानता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस योजना का उद्देश्य दिल्ली परिवहन निगम (डीटीसी) और क्लस्टर बसों में महिलाओं को बिना किराए के यात्रा करने में सक्षम बनाकर, उनकी स्वतंत्रता और शहर तक पहुँच को बढ़ाना था। दिल्ली सरकार के अनुमान के अनुसार, फरवरी 2024 तक 153 करोड़ से अधिक ‘पिंक टिकटों’ का लाभ उठाया जा चुका है और बसों में महिलाओं की सवारियों की संख्या वर्ष 2020-21 के 25% से बढ़कर वर्ष 2022-23 में 33% हो गई थी। दिल्ली सरकार ने कार्यक्रम को जारी रखने के लिए अपने वर्ष 2024-25 के बजट में 340 करोड़ रुपये आवंटित किए।

कर्नाटक और तेलंगाना में ‘शून्य टिकट’ योजनाओं में लगाए गए निवास प्रतिबंधों के विपरीत, दिल्ली की योजना में दूरी की कोई सीमा और पात्रता प्रतिबंध नहीं लगाए गए, जिससे इसमें समावेशिता को अधिक बढ़ावा मिलता है। चूँकि इस योजना के लागू हुए पांच वर्ष पूरे हो गए हैं, अब इसमें प्रणालीगत लैंगिक असमानताओं, जैसे कि कार्य और शिक्षा के अवसरों तक पहुँच तथा सार्वजनिक स्थानों पर पितृसत्तात्मक संस्कृति पर इसके व्यापक प्रभाव के बारे में प्रश्न उठने लगे हैं। हमने महिलाओं के घर से बाहर निकलने को बढ़ावा देने में इस योजना की भूमिका और दिल्ली को अधिक न्यायसंगत, समावेशी शहरी स्थान बनाने में इसके योगदान का अध्ययन किया।

अध्ययन

हमने दिल्ली में महिलाओं द्वारा बस का उपयोग, किराया-मुक्त बस योजना के प्रभाव और संबंधित चुनौतियों की जाँच करने के लिए गुणात्मक और मात्रात्मक डेटा को मिलाकर मिश्रित-पद्धति दृष्टिकोण का उपयोग किया। शोधकर्ताओं ने विविध सामाजिक-आर्थिक, जाति और धार्मिक पृष्ठभूमि वाली महिलाओं के साथ 20 अर्ध-संरचित साक्षात्कार किए, जिसमें प्रश्नावली-आधारित सर्वेक्षण शामिल था। इन साक्षात्कारों में गुणात्मक विश्लेषण के लिए विषयों की पहचान की गई और सर्वेक्षण डिज़ाइन की जानकारी दी गई। यह सर्वेक्षण 50 ऐसे बस स्टॉपों पर किया गया जहाँ यात्रियों का आवागमन बहुत अधिक रहता है। सर्वेक्षण में विविध उत्तरदाताओं को लक्षित किया गया और विविध पृष्ठभूमि की 510 महिलाओं से प्रतिक्रियाएं प्राप्त की गईं। सर्वेक्षण प्रश्नावली में बस उपयोग के लाभ, चुनौतियों एवं सुधार के लिए सुझावों के बारे में चर्चा की गई और समावेशिता व सुगमता पर भी ध्यान दिया गया।

पिंक टिकटों का प्रभाव

सर्वेक्षण से पता चला कि दिल्ली में 45% महिलाएं कभी भी बस का उपयोग नहीं करती हैं, जबकि 35% नियमित उपयोगकर्ता हैं, जो सप्ताह में कम से कम 3-5 दिन बस से यात्रा करती हैं। युवा महिलाएं बस से अधिक बार यात्रा करती हैं, लेकिन वृद्ध महिलाएं अधिक नियमित रूप से बसों का उपयोग करती हैं। निम्न आय वाले परिवारों में 75% महिलाएं बस परिवहन की नियमित उपयोगकर्ता हैं, और 50,000-1,00,000 रुपए मासिक आय वाले परिवारों में दैनिक उपयोग सबसे अधिक (57%) है। किराया-मुक्त योजना से वर्तमान यात्रियों में से 23% यात्रियों द्वारा बस का उपयोग बढ़ गया है, जबकि पूर्व में बस का उपयोग न करने वाले 15% यात्री अब अधिक बार बस का उपयोग करने लगे हैं।

इस योजना से महिलाओं की स्वतंत्रता में वृद्धि हुई है और दो तिहाई महिलाओं ने कहा है कि अकेले यात्रा करने में उनका आत्मविश्वास में बढ़ा है। एक गृहिणी ने बताया, “मैं अकेले यात्रा करने में आश्वस्त नहीं थी, लेकिन अब मैंने सीख लिया है।“ इसी प्रकार से, एक फैक्ट्री कर्मचारी ने कहा, “हम किसी भी बस में चढ़ सकते हैं, अपने रूट को आसान बना सकते हैं और अतिरिक्त खर्चे की चिंता किए बिना चढ़-उतर सकते हैं।" तीन में से दो महिलाओं ने बताया कि इस योजना से उन्हें दिल्ली में घूमने में अधिक स्वतंत्र बनने में मदद मिली है, जिससे गतिशीलता बढ़ाने में इस योजना के महत्व पर प्रकाश पड़ता है। फिर भी, केवल 16% महिलाओं को लगता है कि वे हमेशा अकेले यात्रा कर सकती हैं।

आकृति-1. किराया-मुक्त बसों के प्रभाव का महिलाओं द्वारा आत्म-मूल्यांकन


निःशुल्क बस यात्रा से होने वाली बचत से उनके जीवन स्तर में भी सुधार हुआ है। दिल्ली की 23 वर्षीय नागरिक सुरक्षा स्वयंसेवक लता जैसी युवा महिलाएँ व्यक्तिगत ज़रूरतों या आपात स्थितियों के लिए पैसे बचाती हैं : “मैं प्रतिदिन 30 रुपये और सप्ताह में लगभग 150 रुपये बचाती हूँ। इससे मुझे झुमके, स्नैक्स खरीदने या बड़ी चीज़ों के लिए भी पैसे बचाने में मदद मिलती है।” माताएँ अपनी बचत को बच्चों की ज़रूरतों के हिसाब से भी खर्च करती हैं। जैसा कि, साझा किया गया- फैक्ट्री में काम करने वाली और तीन बच्चों की माँ नम्रता ने योजना के ठोस लाभों पर ज़ोर देते हुए कहा, “मैं अपनी यात्रा पर होने वाली बचत का इस्तेमाल अपने बच्चों के लिए जूस या स्नैक्स खरीदने में करती हूँ, जिससे उनके लिए बस यात्रा सुखद हो जाती है।”

आकृति-2. किराया-मुक्त बस यात्रा से होने वाली बचत का उपयोग


हमने पाया कि किराया-मुक्त बस योजना से हमारे अध्ययन नमूने में शामिल 75% महिलाओं पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाला, क्योंकि इससे मासिक परिवहन व्यय में कमी आई, जिससे विशेष रूप से निम्न आय वाले परिवारों के लिए यात्रा अधिक किफायती हो गई। इस नीति के कारण महिलाओं का वित्तीय बोझ कम होता है और वे अधिक बार यात्रा कर पाती हैं। सर्वेक्षण में शामिल आधी से अधिक महिलाएँ इन बचतों का उपयोग अपनी पारिवारिक ज़रूरतों या आपातकालीन निधियों के लिए करती हैं, जबकि 15% महिलाओं ने स्वास्थ्य और शिक्षा पर खर्च बढ़ाने की बात कही। तीन में से एक महिला अपनी यात्रा पर हुई बचत का उपयोग निजी वस्तुओं- जैसे कि किताबें या सौंदर्य प्रसाधन की खरीद पर करती है, जिन्हें वह पहले नहीं खरीद पाती थी।

इस योजना से खासकर मध्यम आयु वर्ग की और वृद्ध महिलाओं के लिए शारीरिक तनाव भी कम हो जाता है, जिन्हें पहले किफायती परिवहन के अभाव में लंबी दूरी तक पैदल चलना पड़ता था। हाल ही में हुए एक वैश्विक अध्ययन के अनुसार, दिल्ली में महिलाओं द्वारा यात्रा का सबसे आम तरीका पैदल चलना है- यह अनुमान है कि 66% महिलाएँ यात्रा के लिए पैदल चलती हैं, जबकि 40% पुरुष पैदल यात्रा करते हैं (गोयल एवं अन्य 2022)। नि:शुल्क बस सेवा से महिलाओं को अधिक सुविधा और गतिशीलता प्राप्त हुई है। जैसा कि नम्रता ने कहा, "अब मैं लागत की चिंता किए बिना किसी भी बस में चढ़ सकती हूँ, भले ही मैं गलत बस में भी चढ़ जाऊँ।" इस स्वतंत्रता से महिलाओं का आत्मविश्वास बढ़ा है और उनकी गतिशीलता की गुणवत्ता में सुधार हुआ है।

किराए से कहीं अधिक

किराया-मुक्त बस पास के वादे के बावजूद, दिल्ली में कई महिलाएं सार्वजनिक बसों से यात्रा करने से कतराती हैं, क्योंकि वे ऐसी व्यवस्था से निराश हैं जो उनका साथ नहीं देती। 56% उत्तरदाताओं का मानना है कि तेज़, कम भीड़-भाड़ वाली और अधिक विश्वसनीय यात्रा प्रदान करने वाले मेट्रो और ऑटो-रिक्शा जैसे वैकल्पिक साधन अधिक सुविधाजनक हैं। भीड़भाड़ और लंबा प्रतीक्षा समय महत्वपूर्ण बाधाएँ बनी हुई हैं। किराया-मुक्त बसें, जिनका उद्देश्य महिलाओं को स्वच्छंद रूप घुमने की आज़ादी दिलाना है, अनेक महिलाओं के लिए असुविधा का कारण बनी हुई हैं। यहाँ तक कि शरीर भी साथ नहीं देता है- मोशन सिकनेस, चक्कर आना, शहर में घूमने की थकान आदि।

महिलाएँ इनमें सिर्फ़ सुधार नहीं चाहतीं, वे सुविधाओं में बदलाव चाहती हैं। वे ऐसी बसों की कल्पना करती हैं जिनमें महिला कंडक्टर हों जो यात्रियों के संघर्ष को समझती हों, ऐसी सीटें जो चंचल बच्चों को गोद में लिए माताओं को आराम प्रदान करती हों और ऐसे वाहन जो दूर के वादे की तरह नहीं बल्कि भरोसेमंद वाहन की तरह हों। वे अच्छे और भरोसेमंद उजाले वाले बस स्टॉप की कल्पना करती हैं, अधिकार में नहीं बल्कि देखभाल में प्रशिक्षित मार्शल और ऐसे आश्रयों का सपना देखती हैं जो न सिर्फ़ बारिश को रोकें बल्कि सार्वजनिक स्थानों पर सुरक्षित रहने के उनके अधिकार की रक्षा करें। वे एक ऐसे भविष्य की कल्पना करती हैं, जिसमें इलेक्ट्रिक बसें पर्यावरण दक्षता के साथ चलेंगी, वे न केवल यात्रियों को ले जाएंगी, बल्कि एक साफ़-सुथरी, स्नेह भरी दुनिया की आस भी जगाएंगी।

लेकिन ये सपने नाज़ुक हैं और हित बड़े हैं। जो शहर अपनी महिलाओं की गतिशीलता को नज़रअंदाज़ करता है, वह उनकी मानवता को भी नज़रअंदाज़ करता है। सार्वजनिक बसों को केवल भारी वाहन नहीं बनना चाहिए बल्कि उन्हें गरिमा के वाहक, समावेश की घोषणा और न्याय के साधन बनाना चाहिए। बस में चढ़ने का मतलब सुरक्षा या आराम को छोड़ना नहीं होना चाहिए, इसका अर्थ उस शहर में अपना स्थान पुनः प्राप्त करना होना चाहिए। अगर दिल्ली वाकई आगे बढ़ना चाहती है तो उसे सबसे पहले अपनी महिलाओं को आगे बढ़ने देना होगा। तभी ये बसें न सिर्फ़ आज़ादी का वादा बन सकती हैं, बल्कि उसका जीता-जागता सबूत भी बन सकती हैं।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : निशांत एक शोधकर्ता और कार्यकर्ता हैं जो लगभग एक दशक से शहरी गतिशीलता पर काम कर रहे हैं। उन्होंने आईआईटी कानपुर से सिविल इंजीनियरिंग में एमटेक और आईआईटी दिल्ली से पीएचडी किया है, जहाँ उन्होंने शहरी गतिशीलता में न्याय के लिए एक महत्वपूर्ण यथार्थवादी और संबंधपरक दृष्टिकोण विकसित किया। वह वर्तमान में पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ़ोरम का समन्वय करते हैं और पहले उन्होंने पीपुल्स रिसोर्स सेंटर, दिल्ली की स्थापना की थी। अर्चना सिंह पेंसिल्वेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी के भूगोल विभाग में पीएचडी कर रही हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से भूगोल में एमफिल किया है। उनका वर्तमान शोध लखनऊ, भारत में युवा महिलाओं के अवकाश अनुभवों की स्थानिकता को समझने पर केंद्रित है। वह पब्लिक ट्रांसपोर्ट फ़ोरम की सदस्य हैं और पहले आईआईटी दिल्ली, एनसीईआरटी और पीपुल्स रिसोर्स सेंटर, दिल्ली में काम कर चुकी हैं।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें। 

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें