प्राथमिक विद्यालयों में नामांकन में प्रगति होने के बावजूद, ग्रामीण भारत में 50% से अधिक विद्यार्थी मूल साक्षरता हासिल करने में असफल रहते हैं, जबकि 5वीं कक्षा के अंत तक 44% विद्यार्थियों में अंकगणित कौशल का अभाव होता है। ग्रामीण उत्तर प्रदेश में किए गए एक यादृच्छिक प्रयोग के आधार पर, इस लेख में पाया गया है कि माता-पिता और शिक्षकों के बीच सहयोगात्मक तथा भागीदारीपूर्ण दृष्टिकोण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी से स्कूलों में जवाबदेही बढ़ती है, और बच्चों की बुनियादी शिक्षा में उल्लेखनीय सुधार होता है।
सार्वजानिक या सरकारी स्कूल मुख्य रूप से सरकारों के प्रति जवाबदेह होते हैं जो शैक्षिक मानकों को स्थापित कर उनकी निगरानी करते हैं, जबकि जिन बच्चों और परिवारों को वे शिक्षा देते हैं, वे इस प्रक्रिया में एक सीमित भूमिका निभाते हैं। यह प्रक्रिया तब अच्छी तरह से काम करती है जब सरकारी दिशा-निर्देशों को पूरा करने का मतलब यह होता है कि लोगों की ज़रूरतें भी पूरी हो रही हैं। वास्तविकता में ज़रूरी नहीं कि यह धारणा सही हो। उदाहरण के लिए, हर कक्षा-5 के छात्र को कक्षा-6 में पदोन्नत किया जाएगा, भले ही ग्रामीण भारत में वर्तमान में, उनमें से आधे से अधिक कक्षा-2 के स्तर का पाठ नहीं पढ़ सकते हैं और उनमें से लगभग 44% दो अंकों के घटाव के प्रश्नों को हल करने में असमर्थ हैं (एएसईआर रिपोर्ट 2024 के अनुसार)। इसका एक संभावित स्पष्टीकरण यह है कि स्कूल प्रशासन आमतौर पर छात्रों के नामांकन, स्कूल में उनकी उपस्थिति और कई दैनिक कार्यों (धन और प्रबंधन सहित) के लिए ज़िम्मेदार होता है, लेकिन सीखने के परिणामों के लिए सीधे तौर पर जवाबदेह नहीं होता है (प्रिचेट 2015)।
स्कूल की गतिविधियों में समुदाय की प्रत्यक्ष भागीदारी को इस चुनौती को कम करने के लिए एक संभावित दृष्टिकोण के रूप में पेश किया गया है (विश्व विकास रिपोर्ट 2004) और इसका महत्व विशेष रूप से सार्वजनिक रूप से प्रदान की जाने वाली शिक्षा में बढ़ रहा है (मंसूरी और राव 2013)। स्कूलों में अभिभावकों की भागीदारी शिक्षण प्रक्रिया को सुगम बनाने के लिए आवश्यक है, जबकि सामुदायिक सहभागिता से स्कूल स्टाफ की जवाबदेही में सुधार हो सकता है।
हम अपने हालिया अध्ययन (कुमार एवं अन्य 2024) में, निम्नलिखित प्रश्नों का पता लगाते हैं- (i) क्या बच्चों की शिक्षा में समुदाय की भागीदारी से सीखने पर प्रभाव पड़ सकता, खासकर उन लोगों के लिए जो सबसे पीछे हैं और (ii) क्या यह समुदायों के साथ अपेक्षा और जवाबदेही के मज़बूत और अधिक प्रत्यक्ष संबंधों को बढ़ावा देता है?
अध्ययन डिज़ाइन
यह अध्ययन उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के 400 गाँवों में किया गया। इन गाँवों को यादृच्छिक रूप से दो ‘उपचार’ शाखाओं (हस्तक्षेप के अधीन) और एक ‘नियंत्रण’ समूह (बिना हस्तक्षेप के) में बांटा गया था। एक ‘उपचार’ शाखा के 100 गाँवों में ‘पीएएचएएल’ (शाब्दिक अर्थ : ‘पहल करें’) नामक एक हस्तक्षेप किया गया, जिसमें निम्नलिखित समुदाय-स्तरीय गतिविधियाँ शामिल थीं- (i) समुदाय में बच्चों के सीखने के स्तर के बारे में जानकारी प्रदान करने के लिए गाँव के रिपोर्ट कार्ड विकसित करना (ii) नियमित स्कूल के घंटों के बाहर छात्रों के लिए स्वयंसेवकों के नेतृत्व वाली कक्षाएँ और (iii) छात्रों के पठन एवं अध्ययन समूह बनाना, जिसमें माता-पिता, भाई-बहनों को शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया गया।
दूसरे ‘उपचार’ शाखा के 200 गाँवों में एक हस्तक्षेप किया गया, जिसे हम ‘पहल+’ कहते हैं, जिसमें अध्ययन दल ने कुछ अतिरिक्त तत्वों के साथ पहल की सभी गतिविधियाँ संचालित कीं। इन अतिरिक्त गतिविधियों में अभिभावक-शिक्षक बैठकों के अवसर, अभिभावकों को अपने बच्चों के होमवर्क में शामिल होने के लिए समर्थन, स्कूलों में शिक्षण-अधिगम सामग्री उपलब्ध करना और शिक्षकों को मूल पहल कार्यक्रम के माध्यम से स्थापित समुदाय-स्तरीय गतिविधियों की व्यापक श्रेणी में भाग लेने में सक्षम बनाने के तंत्र शामिल थे। ये गतिविधियाँ गैर-सरकारी संगठन ‘प्रथम’ द्वारा भारत के अन्य हिस्सों में वर्ष 2005 से किए गए इसी तरह के हस्तक्षेपों पर आधारित हैं।
अध्ययन में शामिल गाँवों में स्थित 850 सरकारी स्कूलों में कक्षा 2-4 के छात्रों के बीच पढ़ने और अंकगणित कौशल का आकलन किया गया। जो कक्षा-2 स्तर पर पाठ नहीं पढ़ सकते थे (अध्ययन में कम उपलब्धि वाले छात्रों को लक्ष्य किया गया था) उनमें से, हमने सर्वेक्षण नमूने1 के लिए 24,000 छात्रों को यादृच्छिक रूप से चुना।
मुख्य परिणाम
आधारभूत स्तर पर, सभी चयनित छात्रों में से मुश्किल से एक चौथाई छात्र ही विभिन्न अक्षरों से अधिक पढ़ पाते थे और उनकी संख्यात्मक दक्षता का स्तर भी उतना ही कम था। हमने समुदायों और स्कूलों के बीच कमज़ोर सम्बन्ध भी देखे– हालांकि सर्वेक्षण में शामिल शिक्षकों में से आधे से अधिक ने माता-पिता के साथ मासिक बैठकें आयोजित करने की बात कही, केवल एक तिहाई माता-पिता ने पिछले शैक्षणिक वर्ष में स्कूल का दौरा करने की बात कही और 71% माता-पिता अपने बच्चे के स्कूल के एक भी शिक्षक का नाम नहीं बता पाए। शिक्षक और माता-पिता दोनों आमतौर पर एक-दूसरे से बच्चों की शिक्षा में अधिक शामिल होने की अपेक्षा करते हैं। ऐसा लग रहा था कि माता-पिता और शिक्षकों ने स्थिति के लिए एक-दूसरे को दोषी ठहराया- 90% से अधिक माता-पिता ने शुरू में कहा कि शिक्षकों से मिलना समय की बर्बादी है, जबकि 43% शिक्षकों ने कहा कि माता-पिता बच्चों की पढ़ाई में सहयोग देने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं।
हमने अंतिम पंक्ति में कई महत्वपूर्ण सुधार देखे। दोनों हस्तक्षेपों ने छात्रों के पढ़ने (0.07 से 0.09 मानक विचलन, एसडी2) और गणित कौशल (0.08 से 0.09 एसडी) पर सकारात्मक प्रभाव दर्शाया। ‘पहल+’ (समुदाय-विद्यालय) हस्तक्षेप में ‘पहल’ (केवल समुदाय) हस्तक्षेप की तुलना में अधिक प्रभाव प्रदर्शित हुआ, जो समुदाय-विद्यालय सम्बन्ध को बढ़ावा देने के अतिरिक्त शिक्षण लाभों को दर्शाता है। हमने पाया कि ‘पहल+’ का यह बढ़ा हुआ प्रभाव संभवतः माता-पिता को अपने बच्चे के विद्यालय का दौरा करने के लिए आमंत्रित किए जाने की संभावना में वृद्धि से प्रेरित है (नियंत्रण और पहल समूहों की तुलना में) और हम पाते हैं कि ‘पहल+’ समूह के माता-पिता जो विद्यालय गए थे, उनके अपने बच्चे के सीखने के बारे में शिक्षकों से बातचीत करने की अधिक संभावना थी, जो इस समूह के बच्चों के बीच शैक्षणिक प्रदर्शन में वृद्धि को परिभाषित कर सकता है।
हम कम प्रारंभिक कौशल स्तर वाले छात्रों में बड़े प्रभाव देखते हैं, जिससे सीखने के परिणामों में असमानताएं कम हो जाती हैं। यद्यपि हम लिंग और जाति समूह के आधार पर सीमित विविधताएं देखते हैं, फिर भी एक उल्लेखनीय परिणाम यह है कि जिन बच्चों के माता-पिता उनकी शिक्षा में अधिक सक्रिय रूप से शामिल थे, उन्हें ‘पहल+’ समूह में अधिक लाभ हुआ (आकृति-1)।
आकृति-1. ‘नियंत्रण’ और ‘उपचार’ समूहों में उन बच्चों के सन्दर्भ में, उनके माता-पिता के स्कूल का दौरा करने या नहीं करने की स्थिति में अनुमानित साक्षरता और संख्यात्मकता स्कोर

नोट : T1 ‘पहल’ (केवल समुदाय) हस्तक्षेप को दर्शाता है, और T2 ‘पहल+’ (समुदाय-विद्यालय) हस्तक्षेप को दर्शाता है।

तंत्र के सन्दर्भ में, हमारे परिणाम दो प्राथमिक कारकों की ओर इशारा करते हैं- (i) बच्चों की शिक्षा के सम्बन्ध में माता-पिता और शिक्षकों के बीच बढ़ी हुई सहभागिता और (ii) स्कूल के घंटों के बाहर सीखने से संबंधित गतिविधियों में वृद्धि। हमने विभिन्न तंत्रों के योगदान की जाँच की और पाया कि प्रत्यक्ष शिक्षण इनपुट (जैसे कि ‘समूहों में अध्ययन करने वाले बच्चे’) का बच्चों के सीखने पर दोनों हस्तक्षेपों के देखे गए प्रभाव की मध्यस्थता में बड़ा योगदान है। इसके अलावा, बच्चों की स्कूल उपस्थिति, घर पर पढ़ाई और बच्चों की शिक्षा के सम्बन्ध में माता-पिता-शिक्षक की सहभागिता बच्चों की शिक्षा पर समुदाय-स्कूल हस्तक्षेप के कुल देखे गए प्रभाव में महत्वपूर्ण रूप से योगदान देती है।
निष्कर्ष
हमने स्कूल की जवाबदेही बढ़ाने के लिए दो अलग-अलग मार्गों की प्रभावकारिता का मूल्यांकन किया- एक पूरी तरह से समुदाय पर केन्द्रित था और दूसरा स्कूलों और समुदाय के बीच की साझेदारी को बढ़ावा देने पर केन्द्रित था, जिसमें दोनों संस्थाएँ बच्चों की शिक्षा की ज़िम्मेदारी साझा करती हैं। हमारा अध्ययन इस बारे में अंतर्दृष्टि प्रस्तुत करता है कि समुदाय द्वारा संचालित जवाबदेही शिक्षा की गुणवत्ता को कैसे बढ़ा सकती है। पहला, यह साक्ष्य प्रस्तुत करता है कि सहयोगात्मक एवं सहभागितापूर्ण दृष्टिकोण के माध्यम से सामुदायिक भागीदारी से बच्चों की आधारभूत शिक्षा में महत्वपूर्ण सुधार होता है।
दूसरा, यह इस बात पर प्रकाश डालता है कि समुदाय के सदस्यों और स्कूल कर्मियों के बीच बेहतर संपर्क को प्रोत्साहित करनेवाले ऐसे हस्तक्षेपों का बच्चों की शिक्षा पर लाभकारी प्रभाव पड़ने की संभावना है, जो केवल समुदाय पर केन्द्रित हस्तक्षेपों की तुलना में अधिक बड़ा हो सकता है।
यह इस बात का उदाहरण है कि किस प्रकार स्कूल के अंदर और बाहर के हितधारकों को शामिल करके हितधारकों की बढ़ती हुई सहभागिता और सहयोग के माध्यम से बच्चों की सीखने की क्षमता को बढ़ाया जा सकता है।
टिप्पणी :
1 दुर्भाग्य से, कोविड-19 व्यवधानों के साथ-साथ कई अन्य अप्रत्याशित घटनाओं (जैसे कि खराब मौसम के कारण लंबे समय तक स्कूल की छुट्टियाँ) के कारण अंत में ‘पहल’ और ‘पहल+’ हस्तक्षेपों के केवल अल्पकालिक प्रभावों को ही मापा जा सका।
2 मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के माध्य (औसत) मान से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : रिकार्डो सबेट्स आयसा कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा और अंतर्राष्ट्रीय विकास के प्रोफेसर हैं। वे एक विकास अर्थशास्त्री हैं, जिन्हें शैक्षिक असमानताओं के क्षेत्रों में काम करने का 15 साल का अनुभव है, जिसमें से अधिकतर अंतरराष्ट्रीय विकास के सन्दर्भ में है। दीपक कुमार नई दिल्ली स्थित 'असर’ (एएसईआर) सेंटर में अनुसंधान और सांख्यिकी इकाई के प्रमुख हैं। वे एक अनुप्रयुक्त सूक्ष्म अर्थशास्त्री हैं, जो शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित नीतिगत प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इससे पूर्व वे कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा संकाय के 'रियल' सेंटर से जुड़े हुए थे। नवीन सुंदर जून 2020 से बेंटले विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के सहायक प्रोफेसर हैं। वे 2019 और 2020 के बीच हार्वर्ड टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ में पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता थे। उन्होंने 2019 में कॉर्नेल विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। विलिमा वाधवा 'असर' सेंटर की निदेशक हैं। वह 2005 में इसकी स्थापना के समय से ही एएसईआर से जुड़ी हुई हैं। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ स्नातक की डिग्री, दिल्ली विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए की डिग्री और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी की डिग्री हासिल की है।
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