भारत में आम धारणा है कि अंग्रेजी-भाषा कौशल से ही बड़े पैमाने पर आर्थिक प्रतिफल प्राप्त होते हैं। इस कॉलम में भारत में अंग्रेजी कौशल से वेतन प्रतिफल का अनुमान लगाया गया है, जिसमे यह पाया गया कि अंग्रेजी में धाराप्रवाह होने से पुरुषों के प्रति घंटा वेतनमें 34% और महिलाओं के प्रति घंटा वेतन में 22% की बढ़ोतरी हो जाती है। लेकिन ये प्रभाव अलग-अलग होते हैं। अधिक आयु वाले और अधिक शिक्षित श्रमिकों के लिए प्रतिफल अधिक हैं और कम शिक्षित तथा कम आयु के श्रमिकों के लिए ये प्रतिफल कम हैं, जिससे यह संकेत मिलता है कि अंग्रेजी कौशल और शिक्षा के बीच संपूरकता समय के साथ मजबूत हुई है।
भारत एक बहुभाषी देश है जहां हजारों भाषाएं हैं। इनमें से 122 भाषाओं के मूल भाषी 10,000 से अधिक हैं (2001 की जनगणना के अनुसार) और बोलने वालों की संख्या के हिसाब से भारत में भाषाओं की सूची में अंग्रेजी 44वें स्थान पर है।
पांच में से एक भारतीय वयस्क अंग्रेजी बोल सकता है। चार प्रतिशत ने सूचित किया है कि वे अंग्रेजी में धाराप्रवाह बोल सकते हैं और अतिरिक्त 16% ने बताया है कि वे अंग्रेजी में थोड़ी-बहुत बातचीत कर सकते हैं (भारत मानव विकास सर्वेक्षण (आईएचडीएस) 2005)1। अंग्रेजी बोलने की क्षमता पुरुषों में अधिक होती है - 26% पुरुष थोड़ी-बहुत अंग्रेजी बोल सकते हैं जबकि महिलाओं में यह 14% है। तथाकथित उच्च जातियों, शहरी निवासियों, युवा और बेहतर शिक्षित आबादी से संबंधित लोगों के लिए भी यही सच है। ऐसे व्यक्ति जिनके पास कम से कम स्नातक की डिग्री है, उनमें से लगभग 89% लोग अंग्रेजी बोल सकते हैं जबकि जिन्होंने 5-9 साल की स्कूली शिक्षा पूरी की है, उनमें से केवल 11% लोग ही अंग्रेजी बोल सकते हैं। उन लोगों के लिए यह प्रतिशत लगभग शून्य है, जिनकी स्कूली शिक्षा चार साल से कम है। इसका कारण यह है कि भारत के कई सार्वजनिक विद्यालय केंद्र सरकार द्वारा सुझाए गए "त्रिभाषा सूत्र"2 का पालन करते हैं, जिसके अनुसार आम तौर पर अंग्रेजी भाषा का शिक्षण मिडिल स्कूल स्तर पर आरंभ होता है।
चूंकि देश पूर्व में एक ब्रिटिश उपनिवेश था, इसलिए अंग्रेजी संघ सरकार की एक राजभाषा और इसके द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों में शिक्षा का माध्यम बनी हुई है। इसलिए सरकारी अधिकारी या शिक्षक होने के लिए (निम्न स्तरों के अलावा), व्यक्ति को अंग्रेजी में प्रवीण होना चाहिए। भारत में ये नौकरियां आकर्षक मानी जाती हैं क्योंकि ये सफेदपोश नौकरियां हैं जो सुरक्षित रोजगार और अच्छे लाभ प्रदान करती हैं। इसके अलावा, उदारीकरण के बाद के युग में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और आउटसोर्सिंग के तेजी से विस्तार होने के कारण अंग्रेजी भाषा-कौशल का महत्त्वपूर्ण होना और भी अधिक आकर्षक हो गया है। इसके बावजूद आश्चर्यजनक रूप से भारत में अंग्रेजी कौशल के लिए वेतन प्रतिफल का कोई अनुमान नहीं है। ऐसा प्रतीत होता है कि आय और अंग्रेजी क्षमता दोनों के मापों में सूक्ष्म डेटा की कमी थी। हमारे अध्ययन (आज़म, चिन, और प्रकाश 2010) में, हम आईएचडीएस 2005 डेटा3 का उपयोग करके अंग्रेजी प्रीमियम की मात्रा निर्धारित करते हैं।
भारत में अंग्रेजी का प्रतिफल कितना बड़ा है?
यदि हम पुरुष और महिला श्रमिकों के बीच अंग्रेजी कौशल द्वारा औसत प्रति घंटा वेतन को देखें तो अंग्रेजी से प्राप्त होने वाले प्रतिफल बड़े दिखाई पड़ते हैं। धाराप्रवाह अंग्रेजी बोलने में समर्थ पुरुष 42 रु. प्रति घंटा वेतन प्राप्त करते हैं जबकि इसकी तुलना में अंग्रेजी बोलने में असमर्थ पुरुषों को 10 रु. प्रति घंटा वेतन प्राप्त होता है। महिलाओं के लिए यह वेतन दर क्रमश: 33 रु. और 6 रु. प्रति घंटा है। ये आंकड़े शायद प्रतिफल से आगे निकल गए हैं क्योंकि औसत की गणना करते समय शिक्षा के स्तर और स्थान जैसे कारकों को शामिल नहीं किया गया है जो वेतन दर को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करते हैं (अंग्रेजी कौशल के साथ या बिना)। इसलिए वेतन दरों पर अंग्रेजी-भाषा कौशल के कारण प्रभाव का एक विश्वसनीय अनुमान प्राप्त करने के लिए, हम उसी उम्र, लिंग, सामाजिक समूह, शैक्षिक प्राप्ति, माध्यमिक विद्यालय परीक्षामें प्रदर्शन, निवास के जिले और क्षेत्र के श्रमिकों पर ध्यान केंद्रित करते हैं। निवास (शहरी या ग्रामीण), और फिर, इस समूह के भीतर, अंग्रेजी बोलने वाले और नहीं बोलने वाले लोगों के वेतन की तुलना करते हैं।
आकृति1. अंग्रेजी के स्तर के अनुसार औसत (असमायोजित) प्रति घंटा वेतन
आकृति में आए अंग्रेजी शब्दों का हिंदी अर्थ
Male पुरुष
Female महिला
No English बिल्कुल अंग्रेजी नहीं
Little English थोड़ी-बहुत अंग्रेजी
Fluent English धारा प्रवाह अंग्रेजी
Hourly Wages प्रति घंटा वेतन
तालिका 1 के अनुमानों से पता चलता है कि पुरुषों के लिए, जो बिल्कुल अंग्रेजी नहीं बोलते हैं उनके सापेक्ष ऐसे श्रमिक जो धारा प्रवाह अंग्रेजी बोलते हैं उनका प्रति घंटा वेतन औसतन 34% अधिक है और जो थोड़ी-बहुत अंग्रेजी बोलते हैं उनका वेतन 13% अधिक है। धाराप्रवाह होने पर प्राप्त होने वाला प्रतिफल माध्यमिक स्तर की स्कूली शिक्षा पूरी करने के बराबर है, और स्नातक की डिग्री पूरी करने से प्राप्त होने वाले प्रतिफल से आधा है। महिलाओं के लिए, औसत प्रतिफल धाराप्रवाह अंग्रेजी के लिए 22% और थोड़ी-बहुत अंग्रेजी के लिए 10% है।
तालिका 1. वेतन दर पर अंग्रेजी-भाषा कौशल का प्रभाव
आयु और शिक्षा के हिसाब से अंग्रेजी का प्रतिफल
हम पाते हैं कि अंग्रेजी भाषा के कौशल से प्राप्त होने वाला प्रतिफल औसतन पुराने श्रमिकों और अधिक शिक्षित श्रमिकों के लिए ज्यादा है। अधिक कौतूहल पैदा करने वाला तथ्य है कि कामगार के अनुभव और शिक्षा दोनों के अनुसार प्रतिफल प्राप्त होते हैं। यह दिखाने के लिए, हम तालिका 1 की अंतिम चार पंक्तियों में श्रमिकों के चार समूहों के लिए स्कूली शिक्षा के लिए अनुमानित प्रतिफल दर्शाते हैं: कम शिक्षित (स्नातक की डिग्री से कम) अधिक आयु वाले (36-65 वर्ष आयु) श्रमिक, अधिक शिक्षित (कम से कम स्नातक की डिग्री) अधिक आयु वाले श्रमिक, कम शिक्षित युवा (18-35 वर्ष के) श्रमिक और अधिक शिक्षित युवा श्रमिक।
एक चौंकाने वाला परिणाम है कि अधिक आयु वाले श्रमिकों को अंग्रेजी से अर्जित होने वाले प्रतिफल पर इस बात का कोई प्रभाव नहीं पड़ता कि उन्होंने कितनी शिक्षा प्राप्त की है, जबकि युवा श्रमिक उच्च प्रतिफल केवल तभी कमाते हैं जब वे उच्च शिक्षित होते हैं। उदाहरण के लिए, अधिक आयु वाले ऐसे पुरुष जिनके पास स्नातक की डिग्री नहीं है, उन्हें अंग्रेजी में धाराप्रवाह होने के लिए 53% वेतन प्रीमियम प्राप्त होता है, जबकि स्नातक की डिग्री वाले अधिक आयु के पुरुषों के लिए 28% है। इसके विपरीत, ऐसे युवा पुरुष जिनके पास डिग्री नहीं है उन्हें अंग्रेजी में धाराप्रवाह होने के लिए 13% वेतन प्रीमियम प्राप्त होता है, जबकि डिग्री वाले युवा पुरुषों के लिए यह 40% है। यह ध्यान देने योग्य है कि युवा पुरुषों में जैसे-जैसे शैक्षिक योग्यता बढ़ती जाती है, अंग्रेजी का प्रतिफल भी बढ़ता जाता है। इसके अलावा, हम पाते हैं कि अंग्रेजी कौशल उन युवा पुरुषों का वेतन बिल्कुल भी नहीं बढ़ाता है जिन्होंने अपनी माध्यमिक शिक्षा पूरी नहीं की है।
ये परिणाम इस विचार के अनुरूप हैं कि शिक्षा और अंग्रेजी कौशल समय के साथ अधिक संपूरक बन गए हैं। उदाहरण के लिए, प्रवेश स्तर पर कुछ दशक पहले अंग्रेजी कौशल वाले श्रमिक एक अच्छी नौकरी खोजने में सक्षम हो सकते थे, जबकि अब केवल अधिक शिक्षा वाले लोग ही अच्छी नौकरी पा सकते हैं। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि शिक्षित श्रमिकों की आपूर्ति में बहुत बढ़ोतरी होने के कारण अच्छी नौकरियों के लिए अब और अधिक प्रतिस्पर्धा हो गई है, या चूंकि नई नौकरियां ऐसी हैं जिनमें प्रदर्शन करने के लिए उच्च शिक्षा के साथ-साथ अंग्रेजी कौशल की भी आवश्यकता होती है (जैसे सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की नौकरियां)।
भूगोल के अनुसार अंग्रेजी के प्रतिफल
अन्य सभी बातों को समान रखने के बाद, अंग्रेजी के आधार पर प्राप्त होने वाली नौकरियां शहरों में (जहां उच्च स्तरीय सरकारी, बहुराष्ट्रीय कंपनियां, या आईटी फर्म स्थित होती हैं) जिस हद तक उपलब्ध होती हैं, उससे हम शहरी क्षेत्रों में अंग्रेजी में उच्च प्रतिफल की उम्मीद कर सकते हैं। हालांकि, ग्रामीण स्कूलों की तुलना में शहरी स्कूलों में पढ़ने वाले लोग अधिक अंग्रेजी बोलने वाले होते हैं, और शहर अन्य स्थानों से भी अंग्रेजी बोलने वालों को आकर्षित कर सकते हैं, दोनों कारणों से शहरी क्षेत्रों में अंग्रेजी-कुशल श्रमिकों की आपूर्ति भी बड़ी होती है। हमें पुरुषों के लिए शहरी/ग्रामीण निवास के अनुसार अंग्रेजी प्रतिफल में अंतर का कोई साक्ष्य नहीं मिला है।
हम ऐतिहासिक रूप से अंग्रेजी प्रचलन के अनुसार अंग्रेजी के प्रतिफल में अंतर को भी देखते हैं (1961 की जनगणना के अनुसार व्यक्ति के निवास के जिले में अंग्रेजी को मातृ भाषा या द्वितीय भाषा के रूप में बताने वाली आबादी का हिस्सा), और पाते हैं कि उच्च अंग्रेजी प्रचलन वाले जिलों में अंग्रेजी का प्रतिफल कम है। यह आश्चर्य की बात नहीं है क्योंकि यह उन जगहों पर कम अंग्रेजी प्रतिफल के अनुरूप है जहां अंग्रेजी-कुशल श्रमिकों की आपूर्ति अधिक है।
आईटी की उपस्थिति के अनुसार अंग्रेजी प्रतिफल
हम आईटी फर्म की उपस्थिति से अंग्रेजी के प्रतिफल को भी देखते हैं। हम पाते हैं कि आईटी फर्म वाले जिलों में अंग्रेजी का अधिक प्रचलन है, लेकिन उनके पास धाराप्रवाह अंग्रेजी के लिए अनुमानित प्रतिफल काफी कम है। शास्त्री (2011) के निष्कर्ष यह सुझाव देते हैं कि आईटी कंपनियां उन जिलों में स्थापित होने का विकल्प चुनती हैं जहां अंग्रेजी-कुशल और शिक्षित श्रमिक अधिक आपूर्ति में हैं।
हमें क्यों परवाह करनी चाहिए?
भारत में अंग्रेजी-भाषा के कौशल से प्रतिफल को निर्धारित करना कई कारणों से दिलचस्प है। सबसे पहले और सबसे महत्वपूर्ण, अंग्रेजी सीखने से प्राप्त होने वाले प्रतिफल की गहरी समझ से भारत में व्यक्तियों और नीति निर्माताओं को अंग्रेजी कौशल में निवेश करने के बारे में निर्णय लेने में मदद मिलेगी।
लेकिन निवेश करने के लिए राशि, सक्रिय बहस का विषय है। भारत में, तथा कई अन्य विकासशील देशों में, कुछ लोग ऐसे हैं जो प्राथमिक स्कूली शिक्षा को अधिक सुलभ बनाने, और राष्ट्रीय पहचान को मजबूत करने के लिए स्थानीय भाषा को बढ़ावा देने के पक्षधर हैं। वहीं दूसरी ओर ऐसे लोग भी हैं जो यह तर्क देते हैं कि वैश्विक अर्थव्यवस्था में अंग्रेजी की भूमिका को देखते हुए अंग्रेजी सीखने से आर्थिक समृद्धि आती है। इसलिए कई भारतीय अंग्रेजी में दक्षता हासिल करने के लिए स्कूलों और शिक्षकों पर अतिरिक्त पैसा खर्च करने को तैयार हैं। यह देखते हुए कि अंग्रेजी कौशल अर्जित करना महंगा है - अंग्रेजी सीखने के लिए समय, प्रयास और अक्सर पैसा लगता है - अंग्रेजी भाषा कौशल में निवेश करने के लिए इष्टतम राशि का चयन करने में अपेक्षित लाभों के साथ अपेक्षित लागतों की तुलना करना शामिल है। यह अध्ययन इन अपेक्षित लाभों का पहला अनुमान प्रदान करता है।
यह अध्ययन अंग्रेजी के मूल्य के अधिक सामान्य प्रश्न पर इस संदर्भ में भी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है जबकि अंग्रेजी एक प्रचलित भाषा नहीं है। अंग्रेजी का उपयोग अक्सर एक कामकाजी भाषा के रूप में किया जाता है और कई देशों में, यहां तक कि जो पूर्व ब्रिटिश या अमेरिकी उपनिवेश नहीं हैं, अंग्रेजी कौशल में निवेश करते हैं।
नीति के लिए इसका क्या अर्थ है?
हम पाते हैं कि भारत में अंग्रेजी-भाषा कौशल के बड़े एवं महत्वपूर्ण प्रतिफल हैं। लेकिन युवा श्रमिकों के लिए प्रतिफल काफी कम है - जो श्रम बाजार में हाल ही में प्रवेश कर रहे हैं। हाल में प्रवेश करने वालों के लिए अंग्रेजी कौशल केवल अधिक शिक्षा के साथ जुड़े होने पर ही वेतन बढ़ाने में मदद करते हैं - जिन्होंने अपनी माध्यमिक स्कूली शिक्षा पूरी नहीं की है, अंग्रेजी भाषा के कौशल अर्जित करने के बावजूद भी उनके वेतन में वृद्धि नहीं होगी। अंग्रेजी भाषा कौशल उपयोगी हैं, परंतुलाभ तब हीं प्राप्त होता है जब ये कौशल उच्च शिक्षा के साथ होते हैं। परिणाम स्वरूप, वयस्कों को केवल अंग्रेजी कौशल प्रदान कर देने से यह ज़रूरी नहीं कि उनका वेतन बढ़े। इसलिए नीति निर्माताओं को नीतियों को बनाते समय भाषा-कौशल की पूरक प्रकृति के बारे में पता होना चाहिए।
भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि के कारण सेवा क्षेत्र में अविश्वसनीय प्रगति और बढ़ते मध्यम वर्ग के साथनए कौशल तथा नौकरी प्रोफाइल की मांग पैदा हुई है। हालांकि, एक डिप्लोमा या डिग्री रोजगार तो प्रदान कर सकता है, किन्तु यह कामगार का कौशल ही है जिसके कारण वह अपनी उत्पादकता में वृद्धि और नए आर्थिक अवसरों के लाभों को प्राप्त करने की क्षमता विकसित करती है। इस संदर्भ में अंग्रेजी भाषा कौशल प्राप्त करने पर ध्यान केंद्रित करने वाली शिक्षा नीति को बढ़ावा देना अनिवार्य हो जाता है। इस अध्ययन में हमने अंग्रेजी कौशल में प्रतिफल के कुछ पैटर्न को उजागर किया जो पहले भारत के लिए गैर-दस्तावेजी थे और जिन पर आगे शोध किया जा सकता है, वह है - भाषा कौशल-शिक्षा संपूरकता, निचली जातियों के लिए कम प्रतिफल, और ऐतिहासिक रूप से अधिक अंग्रेजी-प्रचलन वाले स्थानों पर कम प्रतिफल।
टिप्पणियाँ:
- आईएचडीएस पूरे भारत में स्थित 40,000 परिवारों को शामिल कर के किया जाने वाला एक राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि सर्वेक्षण है।
- "त्रिभाषा सूत्र" में प्राथमिक स्कूल के दौरान मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा में पढ़ाने की बात कही गई है; दूसरी भाषा को प्राथमिक स्कूल के बाद शुरू करना (यह उन राज्यों में हिंदी हो सकती है जहां यह प्रमुख भाषा नहीं है, या अंग्रेजी या अन्य कोई आधुनिक भारतीय भाषा); और तीसरी भाषा मिडिल स्कूल के बाद शुरू करना।
- हमारे अध्ययन से रोसेनज़िग (2006) और चक्रवर्ती और कपूर (2008) निकटता से जुड़े हैं, जो अंग्रेजी माध्यम वाले स्कूल में जाने पर प्रतिफल का अनुमान लगाते हैं - लेकिन अंग्रेजी-माध्यम के स्कूल में जाने पर प्राप्त होने वाले प्रतिफल सामान्य रूप से अंग्रेजी भाषा कौशल के लिए प्रतिफल के समान नहीं होते हैं। क्लिंगिंगस्मिथ (2007) और शास्त्री (2008) ने भी अंग्रेजी और भारतीय आर्थिक विकास के विषय पर योगदान दिया है।
लेखक परिचय: मेहताबुल आज़म ओक्लाहोमा स्टेट यूनिवरसिटि में अर्थशास्त्र के असोसिएट प्रोफेसर हैं। निशीथ प्रकाश यूनिवर्सिटी ऑफ़ कनेक्टिकट में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं और वहाँ के अर्थशास्त्र विभाग तथा श्रम-अर्थशास्त्र संस्थान में संयुक्त पद संभालते हैं। ऐमी चिन यूनिवरसिटि ऑफ ह्यूस्टन में अर्थशास्त्र की प्रोफेसर हैं।
Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.