पर्यावरण

बदलती जलवायु के साथ अनुकूलन के लिए स्वैच्छिक गतिशीलता- सतत विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह

  • Blog Post Date 27 सितंबर, 2024
  • दृष्टिकोण
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हालांकि जलवायु परिवर्तन के प्रभाव दुनिया की पूरी आबादी को प्रभावित करते हैं, कुछ लोग अपनी भौगोलिक और सामाजिक-आर्थिक स्थिति के कारण, अन्य लोगों की तुलना में अधिक जोखिम में हैं। अन्य देशों के जलवायु परिवर्तन-प्रेरित गतिशीलता के उदाहरणों का हवाला देते हुए, सम्पूर्णा सरकार यह चर्चा करती हैं कि राष्ट्र जोखिम में रहने वाली आबादी की सुरक्षा व कल्याण कैसे सुनिश्चित कर सकते हैं। वह भारतीय सरकार के समक्ष आगे के रास्ते का सुझाव रखती हैं ताकि स्थिर, अस्थाई रूप से गतिशील और विस्थापित आबादियों को स्वैच्छिक गतिशीलता में सक्षम बनाया जा सके। साथ ही, उनके मूल निवास का पारिस्थितिक पुनरुद्धार भी किया जा सके।

मानव-प्रेरित जलवायु परिवर्तन आज के दौर की एक वास्तविकता है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन, तथा इसके परिणामस्वरूप वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन और वनों की कटाई वैश्विक तापमान वृद्धि व जलवायु परिवर्तन में योगदान देने वाले कुछ महत्वपूर्ण कारक हैं। जलवायु परिवर्तन के चलते, समुद्र के स्तर में वृद्धि, भयंकर तूफान और सूखे की घटनाओं में वृद्धि होती है। 

वर्ष 2020 में यूएन एफएओ (संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन) ने रिपोर्ट किया कि, वर्ष 1990 के बाद से, दुनिया भर में लगभग 42 करोड़ हेक्टेयर जंगल खत्म हो गए हैं। थोड़े आशावादी दृष्टिकोण से देखें तो 2015-2020 की अवधि के दौरान वनों की कटाई की वार्षिक दर घटकर 1 करोड़ हेक्टेयर रह गई है, जबकि 2010 और 2015 के बीच यह दर 1.2 करोड़ हेक्टेयर थी। इस छोटे लेकिन प्रासंगिक सुधार का श्रेय सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को प्राप्त करने के वैश्विक प्रयासों, विशेष रूप से एसडीजी 15 (स्थलीय पारिस्थितिक तंत्रों के सतत उपयोग को संरक्षित, पुनर्स्थापित और बढ़ावा देना, वनों का स्थाई प्रबंधन करना, मरुस्थलीकरण से निपटना, भूमि क्षरण को रोकना और उलटना तथा जैव विविधता की हानि को रोकना) को दिया जा सकता है। इसके बावजूद जलवायु परिवर्तन से होने वाला नुकसान पहले से ही दिखाई दे रहा है और भविष्य में इसके और बढ़ने की उम्मीद है। दुनिया ने वर्ष 2000-2019 (न्यूमैन और नोय 2023) के दौरान जलवायु परिवर्तन से जुड़े नुकसान और क्षति के रूप में 28 खरब अमेरिकी डॉलर की विशाल लागत दर्ज की है। फिर भी, ‘ग्लोबल वार्मिंग’ जारी है और औसत तापमान वर्ष 1982 से 0.2 डिग्री सेल्सियस प्रति दशक की दर से बढ़ता रहा जा है (लिंडसे और डाहलमैन 2024)। 

जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय पैनल (आईपीसीसी) का अनुमान है कि 1.5 डिग्री सेल्सियस वैश्विक तापमान वृद्धि के साथ, उच्च तीव्रता वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों में 10% की वृद्धि की सम्भावना होगी और अत्यधिक गर्मी का सामना करने वाली आबादी का जोखिम 1.6 गुना अधिक होगा। समुद्र के बढ़ते जल-स्तर की वजह से स्थाई जल भराव, खारे पानी का भराव, तटरेखा का क्षरण, कृषि योग्य भूमि में कमी, तटीय प्रणालियों के क्षरण और घरों, आजीविका व बुनियादी ढाँचे को नुकसान या विनाश हो सकता है, जिससे उस स्थान की रहने योग्यता प्रभावित होती है। 

हालांकि जलवायु परिवर्तन सभी को प्रभावित करता है, कुछ आबादी अन्य की तुलना में अधिक जोखिम में पड़ जाती है। उदाहरण के लिए, निचले कम ऊँचाई वाले तटीय क्षेत्रों (एलईसीजेड) और बाढ़ के मैदानों में रहने वाले लोग ऊँचाई वाले क्षेत्रों में रहने वालों की तुलना में चक्रवातों और तूफानों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। इसी प्रकार, प्राकृतिक संसाधन आधारित आजीविका तथा मौजूदा सामाजिक-आर्थिक स्तरीकरण में उनकी स्थिति, उस आबादी को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है। जलवायु परिवर्तन के वर्तमान और भविष्य के प्रभावों ने ऐसे जोखिम वाले क्षेत्रों में आबादी के बीच गतिशीलता के विभिन्न रूपों को जन्म दिया है। 

जलवायु परिवर्तन के कारण गतिशीलता

'गतिशीलता' शब्द का उपयोग मैं व्यक्तियों और समुदायों की एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने की क्षमता और वास्तविक आवागमन, दोनों को इंगित करने के लिए करती हूँ। अनैच्छिक गतिशीलता या विस्थापन से तात्पर्य ऐसी स्थिति से है जिसमें जनसंख्या को अपने मूल जोखिम वाले क्षेत्रों से जबरन दूर जाना पड़ता है। लोगों की अपने मूल स्थान पर रहने की आकांक्षाओं के बावजूद, आकांक्षाओं-क्षमताओं के ढाँचे के आधार पर इस तरह की गतिशीलता को आवागमन की वास्तविकता के रूप में समझा जा सकता है (डी हास 2021)। आकांक्षाओं और वास्तविकता के बीच इस तरह की असंगति को लोगों की सीमित पूंजी (सामाजिक, मानवीय और वित्तीय) के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जा सकता है। भारत में वर्ष 2008 और 2023 के बीच, धीमी और तेज़ मौसमी घटनाओं के चलते 5 करोड़ 65 लाख लोगों का आंतरिक विस्थापन दर्ज किया गया। आमतौर पर, आबादी के आवागमन से उसे सुरक्षित बनाने में मदद मिलती है, जबकि आकांक्षाओं के विरुद्ध आवागमन से उसकी भलाई के साथ समझौता होता है। यह स्थिति तब और भी गम्भीर हो जाती है जब गंतव्य स्थानों पर लोगों की सुरक्षा और सामाजिक-आर्थिक विकास सुनिश्चित नहीं होता है। 

आबादी की गतिशीलता या तो किसी सरकारी पहल के अभाव में होती है या फिर सुविधाजनक सरकारी कार्रवाइयों के कारण होती है। चूंकि जोखिम वाले स्थानों से दूर जाने से जोखिम वाली आबादी की शारीरिक सुरक्षा और उनकी सामाजिक-आर्थिक भलाई दोनों में योगदान करने का अवसर मिलता है, इसलिए मेरा मानना ​​है कि ऐसी पहलों को राष्ट्रों द्वारा सुगम बनाया जाना चाहिए। इस तरह के आवागमन को सुविधाजनक बनाने हेतु देशों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग मूल और गंतव्य दोनों देशों के लिए फायदेमंद होता है। उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलियाई मौसमी श्रमिक कार्यक्रम (एसडब्ल्यूपी), जिसका अब प्रशांत ऑस्ट्रेलिया श्रम गतिशीलता (पीएएलएम) योजना में विलय कर दिया गया है, ने नौ प्रशांत देशों और तिमोर-लेस्ते की इच्छुक आबादी की प्रबंधित चक्रीय, अस्थाई गतिशीलता को सुगम बनाया है।1 

एसडब्लूपी की तरह, पीएएलएम योजना भी सोलोमन द्वीप समूह जैसी जोखिमग्रस्त आबादी को स्वैच्छिक गतिशीलता अपनाने और आय-अर्जन के अवसरों में विविधता लाने में सक्षम बनाती है (डन एवं अन्य 2020)। जोखिमग्रस्त आबादी की मूल स्थानों पर कृषि और मछली पकड़ने जैसी आजीविका उन्हें अत्यधिक वर्षा और चक्रवातों के प्रति असुरक्षित बनाती है। गंतव्य क्षेत्रों में आय-अर्जन के अवसर उन्हें आपदा से उबरने, गरीबी उन्मूलन के ज़रिए शिक्षा तक बेहतर पहुँच प्राप्त करने और जलवायु परिवर्तन अनुकूलन उपायों को अपनाने में सक्षम बनाते हैं, जैसे कि मूल स्थानों में अपने घरों को जलवायु-प्रूफ़ बनाना। मेज़बान देश, ऑस्ट्रेलिया भी कृषि में मौसमी श्रम की कमी को दूर करके इस योजना के माध्यम से लाभान्वित हो रहा है। 

जोखिमग्रस्त आबादी की भलाई के लिए सबक

इस तरह का अस्थाई आवागमन सोलोमन द्वीप की आबादी को उनकी तत्काल ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम बनाता है, जबकि इससे पीढ़ियों तक शारीरिक सुरक्षा और कल्याण की सुविधा नहीं मिलती है। इसके अतिरिक्त, अस्थाई प्रवासियों को ऑस्ट्रेलिया में खराब कामकाजी परिस्थितियों का और कम भुगतान का सामना करना पड़ता है (अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन, 2022)। उदाहरण के लिए, वर्ष 2016 के एक सर्वेक्षण से पता चला है कि 4,000 से अधिक अस्थाई श्रम प्रवासियों में से एक तिहाई को केवल उस न्यूनतम वेतन का लगभग आधा ही मिला, जिसके वे हकदार थे (कोट्स एवं अन्य 2023)। इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसी अस्थाई प्रबंधित गतिशीलता के तहत, सतत विकास के लक्ष्य पूरे नहीं हो सकेंगे। प्रवासियों की खराब कार्य परिस्थितियाँ सतत विकास लक्ष्य 8 की पूर्ति में सहायक नहीं हैं- जिसका उद्देश्य सभी के लिए सतत, समावेशी और टिकाऊ आर्थिक विकास, पूर्ण और उत्पादक रोजगार तथा सभ्य कार्य को बढ़ावा देना है। 

प्रवासियों को मेज़बान देशों में भेदभाव और शोषण का भी सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, मौजूदा वीज़ा नियम और वीज़ा से जुड़ी सुविधाएँ अस्थाई प्रवासियों के सामने और भी मुश्किलें खड़ी करती हैं। ज़्यादातर अस्थाई कार्य वीज़ा धारक स्वास्थ्य बीमा या आय सहायता भुगतान (जो कि कम आय वाले ऑस्ट्रेलियाई लोगों को प्रदान किया जाता है) के लिए पात्र नहीं हैं (कोट्स एवं अन्य 2023)। मेज़बान देश के समुदायों में जातीय एकरूपता बनाए रखने की प्रबल प्राथमिकताएँ भी मौजूद हैं, जिसके परिणामस्वरूप प्रवासियों के प्रति द्वेष तथा असभ्य एवं अपमानजनक व्यवहार होता है (यूएनएसडब्ल्यू मानवाधिकार क्लिनिक, 2015)। इस तरह का भेदभाव इसके खिलाफ़ कानूनों के प्रचलन के बावजूद जारी है। 

दूसरी ओर सोलोमन द्वीप में, जलवायु परिवर्तन के मौजूदा प्रभावों और भविष्य के जलवायु जोखिमों के मद्देनजर आबादी के स्थाई आवागमन को सुविधाजनक बनाने के लिए सरकार की पहल की कमी, निम्नलिखित लक्ष्यों की उपलब्धि में बाधा डाल सकती है : (i) एसडीजी 1- हर जगह सभी रूपों में गरीबी को समाप्त करना (ii) एसडीजी 2- भुखमरी को समाप्त करना, खाद्य सुरक्षा व बेहतर पोषण और टिकाऊ कृषि को बढ़ावा देना (iii) एसडीजी 8- सभी के लिए निरंतर, समावेशी और टिकाऊ आर्थिक विकास, पूर्ण व उत्पादक रोज़गार और सभ्य काम को बढ़ावा देना (iv) एसडीजी 3- सभी उम्र के लोगों के लिए स्वस्थ जीवन और कल्याण को बढ़ावा देना और (v) एसडीजी 4- समावेशी व समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना। 

अस्थाई प्रबंधित गतिशीलता के विपरीत, कुछ राष्ट्रों ने जोखिम वाली आबादी- जैसे कि वियतनाम के मेकांग डेल्टा में स्थित लोगों के लिए स्थाई प्रबंधित वापसी की सुविधा प्रदान की है। जोखिम वाले स्थानों से स्थाई वापसी आबादी की शारीरिक सुरक्षा के अवसर प्रदान करती है। आईपीसीसी द्वारा जलवायु-संबंधी कमजोरियों के लिए सम्भावित हॉटस्पॉट घोषित किए गए डेल्टा में वर्ष 2009 और 2013 के बीच 90,000 से अधिक परिवारों को स्थानांतरित किया गया (एंटजिंगर और स्कोल्टेन 2015)। स्थानीय निवासियों को उनके मूल क्षेत्रों से कुछ दूरी पर, बांधों के किनारे निर्मित क्षेत्रों में क्लस्टर बस्तियों में बसाया गया था। सरकार ने स्थानीय निवासियों के जीवन में होने वाले व्यवधानों से निपटने के लिए पीछे हटने वाली आबादी को कम ब्याज वाले ऋण और छोटे एकमुश्त भुगतान प्रदान किए। 

इस तरह के प्रयासों के बावजूद, इस पहल को वापसी (रिट्रीट) की तकनीकी-प्रबंधकीय श्रेणी के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है (अजीबडे एवं अन्य 2022)। वापसी (रिट्रीट) को लागू करने के लिए ऊपर से नीचे तक निर्णय लेने का दृष्टिकोण अपनाया गया (मिलर 2019)। इसके अलावा, अंतरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (आईओएम) के शोध से यह भी पता चला है कि पुनर्वास के बाद सरकार ने जीवन की बढ़ती लागत, आय-उत्पादक अवसरों की कमी और अधिक कर्ज की समस्याओं का समाधान नहीं किया। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) की वर्ष 2023 की रिपोर्ट में आगे यह खुलासा हुआ है कि पुनर्वास के बाद वियतनाम के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में मेकांग डेल्टा का योगदान घटकर 12% हो गया है, जो वर्ष 2003 में 16% था। मेकांग डेल्टा में वापसी (रिट्रीट) के वर्तमान कार्यान्वयन से सतत विकास लक्ष्य (एसडीजी)1 और 8 की पूर्ति में सहायता नहीं मिलती है। इस प्रकार, मेकांग डेल्टा में आबादी की वापसी इस बात का साक्ष्य प्रस्तुत करती है कि प्रबंधित वापसी द्वारा भौतिक सुरक्षा प्रदान करने के बावजूद, कार्यान्वयन के शीर्ष-स्तरीय स्वरूप और जनसंख्या के सामाजिक-आर्थिक विकास पर अपर्याप्त ध्यान दिए जाने से उनकी भलाई में बाधा उत्पन्न हो सकती है। 

सोलोमन द्वीप और मेकांग डेल्टा से वापसी के मामले कुछ प्रमुख सबक रेखांकित करते हैं :

  • जोखिम वाले क्षेत्रों से आबादी का स्थाई रूप से हट जाना उनकी और उनकी भावी पीढ़ियों की सुरक्षा और कल्याण के लिए, तथा सतत विकास लक्ष्यों की पूर्ति के लिए भी अभिन्न है।
  • जब तक राज्य द्वारा सहभागी नियोजन दृष्टिकोण नहीं अपनाया जाता है, प्रबंधित वापसी हस्तक्षेप नागरिकों की आकांक्षाओं को पूरा करने और उनकी भलाई और सतत विकास लक्ष्य की उपलब्धि में योगदान करने में सक्षम नहीं होंगे।
  • अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार प्रबंधित वापसी (रिट्रीट) हस्तक्षेपों के मामले में, आदर्श रूप से जोखिम वाले देशों और जनसंख्या में गिरावट का अनुभव करने वाले या इसकी उम्मीद करने वाले देशों के बीच अधिक भागीदारी विकसित करने की आवश्यकता है। सहकारी भागीदारी जोखिम वाली आबादी की सुरक्षा और कल्याण तथा गंतव्य देशों में निरंतर आर्थिक विकास सुनिश्चित कर सकती है। जनसंख्या की आवश्यकता की पूर्ति से मेज़बान देशों में आप्रवासन विरोधी नीतियों और रुख का मुकाबला करने में मदद मिल सकती है।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए वार्षिक मूल्याँकन किया जाना चाहिए कि मेज़बान राज्य वापस लौटने वाली आबादी की सामाजिक-आर्थिक भलाई को सुविधाजनक बना रहा है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठनों द्वारा गतिशीलता-केंद्रित, क्षेत्रीय विकास क्षेत्र संगठनों की सहायता से मूल्याँकन तंत्र को डिज़ाइन और कार्यान्वित किया जा सकता है। 

जलवायु परिवर्तन से होने वाली गतिहीनता और जोखिम वाली आबादी की खराब सेहत

गतिशीलता की तरह, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के सामने गतिहीनता भी एक वास्तविकता है। गतिहीनता को भी स्वैच्छिक और अनैच्छिक श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। 

अनैच्छिक गतिहीनता को व्यक्तियों की वास्तविकता के रूप में समझा जा सकता है, जो अपनी गतिशीलता की आकांक्षा के बावजूद जोखिम भरे स्थानों पर बने रहते हैं। वे अपनी खराब सामाजिक-आर्थिक स्थितियों तथा मौजूदा असमानताओं के चलते जोखिम वाले क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर हैं। उदाहरण के लिए, अफ्रीकी-अमेरिकी समुदाय से संबंधित व्यक्तियों के पास पर्याप्त पूंजी नहीं थी और इस प्रकार, उन्हें वर्ष 2005 में आए भयानक तूफान कैटरीना के बाद भी उसी स्थान पर रहने के लिए मजबूर होना पड़ा (ज़िकग्राफ 2021)। उपयुक्त प्रशासनिक अवसंरचना तक पहुँच या साधनों की कमी, आवागमन के सम्बन्ध में राज्य के नियम और प्रतिबंध, गैरकानूनी स्थितियाँ तथा नीतियों एवं कानूनों का अभाव, जिनसे निवासियों को जोखिम वाले क्षेत्रों से दूर जाने में सहायता मिलती है, भी अनैच्छिक गतिहीनता की स्थिति में योगदान देते हैं। 

दूसरी ओर स्वैच्छिक गतिहीनता, जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के सामने, पूंजी के स्वामित्व के बावजूद, अपनी पसंद से आबादी की गतिहीनता है। अनैच्छिक गतिहीनता (और अनैच्छिक गतिशीलता) की भांति, व्यक्तियों के भीतर कोई आंतरिक संघर्ष नहीं होता है। इस तरह की गतिहीनता पूर्वजों से सम्बन्ध बनाए रखने की इच्छा, स्थान-आधारित ज्ञान और भूमि से लगाव, तथा वर्तमान एवं भविष्य की पीढ़ियों के लिए स्वदेशी रीति-रिवाजों, सांस्कृतिक तथा पैतृक मूल्यों और स्थानीय प्रथाओं को बनाए रखने के विशेषाधिकार जैसे कारणों से उत्पन्न होती है। उदाहरण के लिए, सोलोमन द्वीप के मौसमी श्रमिक (एसडब्ल्यूपी) जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का अनुभव करने के बावजूद अपने घरों से स्थाई रूप से दूर नहीं जाना चाह रहे थे। 

गतिहीनता के दोनों तरीकों से जोखिमग्रस्त आबादी की शारीरिक सुरक्षा और उनके सामाजिक-आर्थिक विकास और कल्याण में योगदान नहीं होता है। जोखिम वाले क्षेत्रों में आबादी का निरंतर आवास करना और उनकी गतिहीनता की स्थिति को बदलने हेतु सरकार के अपर्याप्त प्रयास सतत विकास लक्ष्यों-1, 2, 3, 4 और 8 की उपलब्धि में बाधा डाल सकते हैं। 

जोखिम वाली आबादी की स्वैच्छिक गतिशीलता की राह

जोखिमग्रस्त स्थानों में वर्तमान और भविष्य में रहने योग्य स्थानों की हानि को देखते हुए, जनसंख्या की स्थाई, स्वैच्छिक गतिशीलता आवश्यक है। भारत के मामले में, अन्य देशों की तरह, सभी नागरिकों की भलाई सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी मुख्य रूप से सरकार की है। 

जोखिम वाली आबादी की स्वैच्छिक गतिशीलता को सुविधाजनक बनाने के लिए, सरकार को उनकी गतिहीनता की वर्तमान स्थिति का पता लगाना चाहिए। इस तरह की जानकारी से सरकार को उन कारकों का पता लगाने तथा उनकी पहचान करने में मदद मिलेगी जो स्थिर, अस्थाई रूप से गतिशील और विस्थापित आबादी को स्वैच्छिक गतिशीलता की स्थिति में लाने में सक्षम बनाते हैं।

पहले कदम के रूप में, सरकार को जोखिम वाले स्थानों की पहचान करने के लिए एक विस्तृत, वैज्ञानिक अभ्यास में संलग्न होने की आवश्यकता है, जैसा कि वर्ष 2023 में भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के मामले में किया गया था। फिर सरकार को एक समूह नमूने2 (क्लस्टरड़ सैंपल) का एक सर्वेक्षण करने की आवश्यकता होगी, ताकि उनकी गतिहीनता की वर्तमान स्थिति, उनकी गतिहीनता स्थिति के कारणों और उन कारकों के बारे में पता चल सके जो जोखिम वाली आबादी की स्वैच्छिक गतिशीलता को सुविधाजनक बना सकते हैं। सरकार इस तरह के अभ्यास के आधार पर, प्रबंधित वापसी योजनाएँ तैयार कर सकती है। 

आबादी की स्थाई स्वैच्छिक गतिशीलता उन क्षेत्रों की पारिस्थितिकी बहाली में भी मदद कर सकती है और इस प्रकार, जलवायु परिवर्तन शमन में योगदान कर सकती है। उदाहरण के लिए, भारतीय सुंदरवन, जो बंगाल की खाड़ी के मुहाने पर स्थित निचले द्वीपों का समूह है, के निवासियों के लिए तटबंधों के टूटने, खारे पानी के प्रवेश तथा उच्च तीव्रता वाली मौसमी घटनाओं से परिचित होना कोई नई बात नहीं है। जलवायु परिवर्तन की भावी अनुमानों को देखते हुए उनकी कठिनाइयाँ और बढ़ने की आशंका है। इस प्रकार, सुंदरबन से आबादी को दूर ले जाने हेतु सरकार की ठोस पहल से उन्हें मैंग्रोव की वापसी तथा आवास को बहाल करने में भी मदद मिल सकती है। 

यह एक सहभागी, सामाजिक-आर्थिक विकासोन्मुख और प्रबंधित वापसी (रिट्रीट) का कार्यान्वयन है, और ऐसे स्थानों की पर्यावरणीय पुनर्स्थापना, जहाँ प्रासंगिक हो, भारत को सतत विकास लक्ष्य प्राप्त करने के एक कदम और करीब पहुँचने में मदद कर सकती है। 

(लेख का एक संस्करण आईजीसी ब्लॉग के सहयोग से प्रकाशित किया गया है। लेख में व्यक्त विचार पूरी तरह से लेखक के हैं और जरूरी नहीं कि वे आई4आई संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करते हों।) 

टिप्पणियाँ :

  1. आबादी की प्रबंधित चक्रीय, अस्थाई गतिशीलता को मूल और गंतव्य क्षेत्रों के बीच आबादी के उद्देश्यपूर्ण और समन्वित अस्थाई, चक्रीय आवागमन के रूप में समझा जा सकता है। इस तरह की वापसी आमतौर पर राष्ट्रों/राज्यों के भीतर शासी निकायों द्वारा या राष्ट्रों/राज्यों के बीच साझेदारी के माध्यम से आयोजित, कार्यान्वित और विनियमित की जाती है।
  2. क्लस्टर सैंपलिंग, एक नमूना तकनीक है, जिसमें आबादी को छोटे समूहों में विभाजित करना और फिर इनमें से कुछ क्लस्टरों को नमूने के रूप में यादृच्छिक रूप से चुनना शामिल है। यादृच्छिक चयन आबादी के सटीक प्रतिनिधित्व की सुविधा हेतु किया जाता है। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : सम्पूर्णा सरकार डब्ल्यूडब्ल्यूएफ-इंडिया की परियोजना अधिकारी हैं। 

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