पूर्व में हुए शोधों ने भारत के प्रमुख सुरक्षित मातृत्व कार्यक्रम की विफलता को दर्ज किया है- यह कार्यक्रम प्रसवकालीन मृत्यु दर को कम करने में विफल रहा है जबकि सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव कराने वाली माताओं की हिस्सेदारी में पर्याप्त वृद्धि हुई है। यह नीति-निर्माताओं के सामने एक उलझी हुई पहेली की तरह खड़ा है। मातृ-स्वास्थ्य सेवा बाज़ार के विभिन्न क्षेत्रों में कार्यक्रम के प्रति प्रतिक्रियाओं की जाँच करते हुए इस लेख में, सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच की अंतर्क्रियाओं में स्पष्टीकरण का पता लगाने प्रयत्न किया गया है।
सीमित सरकारी संसाधनों की मौजूदगी में बड़ी कल्याणकारी योजनाओं को प्रभावी ढंग से डिज़ाइन करना महत्वपूर्ण हो जाता है। अर्थशास्त्र में पिछले शोधों ने प्रदर्शित किया है कि लक्षित और अलक्षित हितधारकों द्वारा समायोजन सहित 'संतुलन' प्रतिक्रियाएं कल्याणकारी योजनाओं से लाभ को बढ़ा सकती हैं, कम कर सकती हैं या उसे पुनर्वितरित कर सकती हैं (बराहोना एवं अन्य 2023, अटल एवं अन्य 2022, खन्ना 2023)।
हम भारत की एक राष्ट्रव्यापी सरकारी नीति, जननी सुरक्षा योजना (जेएसवाई) का अध्ययन करते हैं, जिसके तहत भारत के सार्वजनिक अस्पतालों में मातृ-स्वास्थ्य सेवाओं को सब्सिडी दी जाती है। मातृ-स्वास्थ्य सेवा एक ऐसा बाज़ार है जिसमें सार्वजनिक और निजी आपूर्तिकर्ताओं में ‘स्पष्ट तौर पर विभिन्नता’ है और निजी आपूर्तिकर्ता औसतन अधिक कीमत पर अधिक गुणवत्ता वाली देखभाल प्रदान करते हैं।
सैद्धांतिक रूप से सार्वजनिक रूप से प्रदान की जाने वाली वस्तुओं और सेवाओं पर सब्सिडी देने से निजी आपूर्तिकर्ताओं की बाज़ार शक्ति सीमित हो सकती है, जिससे कीमतें कम हो सकती हैं (कुन्हा एवं अन्य 2019), गुणवत्ता बेहतर हो सकती है या दोनों हो सकते हैं। इसके परिणामस्वरूप उपभोक्ता कल्याण में सुधार होगा। दूसरी ओर यदि सब्सिडी वाला विकल्प, जो अधिक आकर्षक और निम्न गुणवत्ता का हो, तो ऐसी पहल से उपभोक्ताओं को मिलने वाली वस्तुओं व सेवाओं की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। स्वास्थ्य सेवा के सन्दर्भ में, जहाँ गुणवत्ता में भिन्नता स्वास्थ्य परिणामों में अंतर ला सकती है, मांग में बदलाव का अध्ययन विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है।
भारत में मातृ-स्वास्थ्य सेवा
ऐतिहासिक रूप से, भारत का प्रदर्शन नवजात और मातृ मृत्यु दर के मामले में खराब रहा है। वर्ष 2005 में, भारत में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर नवजात मृत्यु दर 38 थी, जो वैश्विक औसत 26 के साथ-साथ भूटान (27), नेपाल (33) और श्रीलंका (7) सहित पड़ोसी देशों की दरों से भी अधिक थी।1, इस समय के आसपास, 70% से अधिक भारतीय माताओं ने संभवतः बिना किसी चिकित्सकीय देखरेख के, घर पर ही बच्चों को जन्म दिया। इस सन्दर्भ में, भारत सरकार ने विशेष रूप से बच्चों और माताओं के स्वास्थ्य परिणामों में सुधार लाने के लिए वर्ष 2005 में इसे देशव्यापी रूप से लॉन्च किया।
एनआरएचएम की इस प्रमुख पहल, जेएसवाई, का लक्ष्य था सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधा में प्रसव के लिए माताओं को एकमुश्त नकद हस्तांतरण (600-1,400 रुपये तक) से मातृ और नवजात मृत्यु दर को कम करना। जेएसवाई के पिछले मूल्यांकनों से एक चिंताजनक समस्या सामने आई है- स्वास्थ्य सुविधाओं में प्रसव कराने वाली माताओं की संख्या में पर्याप्त वृद्धि के बावजूद यह योजना प्रसवकालीन मृत्यु दर को कम करने में विफल रही है (पॉवेल-जैक्सन, मजूमदार और मिल्स 2015, एंड्रयू और वेरा-हर्नांडेज़ 2022)। जेएसवाई के पैमाने को देखते हुए, इसकी प्रभावहीनता (स्थिर प्रभाव) ने नीति-निर्माताओं को उलझन में डाल दिया है। भविष्य की नीतियों को बेहतर डिज़ाइन करने की दिशा में जानकारी प्रदान करने के लिए हम भारत के मातृ-स्वास्थ्य देखभाल बाज़ार के विभिन्न क्षेत्रों में जेएसवाई के प्रति अंतर्क्रियाओं की जाँच करते हैं और दर्शाते हैं कि भारत के सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं के बीच आदान-प्रदान की भूमिका इस पहेली को सुलझाने में महत्वपूर्ण हो सकती है।
डेटा और कार्यप्रणाली
हमने अपना डेटा जिला स्तरीय पारिवारिक सर्वेक्षण (डीएलएचएस) के तीन दौरों से लिया है, जिनमें वर्ष 2000-2011 की अवधि को कवर किया गया है। राष्ट्रीय स्तर का यह प्रतिनिधि डेटासेट मुख्य रूप से एनआरएचएम की उपलब्धियों को ट्रैक करने के लिए बनाया गया था। हालांकि इसमें प्रत्येक महिला को ‘ट्रैक’ नहीं किया जा सकता परन्तु इसमें सर्वेक्षण की गई माताओं के बारे में सबसे हालिया प्रसव की व्यापक जानकारी शामिल की गई है। इसमें सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, प्रसव की तिथि, प्रसव का प्रकार (सामान्य या सिज़ेरियन), सुविधा का प्रकार (सार्वजनिक, निजी या घरेलू), जेब से किए गए (ओओपी) खर्च और सरकारी सहायता की प्राप्ति का विवरण शामिल है, जिसका उपयोग हम जेएसवाई की पहुँच के एक माप के रूप में करते हैं। इसके अलावा सर्वेक्षण में महिलाओं से उनके पिछले गर्भधारण के बारे में कई सवाल पूछे गए हैं, जिससे हम चिकित्सा साहित्य की मदद से पहचाने गए अन्य चरों यानी वेरियेबलज़ के साथ, हालिया प्रसव से पहले किसी माँ के पूर्व निर्धारित जोखिम (और इसके चलते आवश्यक चिकित्सा पर्यवेक्षण या देखभाल) का अनुमान लगा पाते हैं। स्वास्थ्य देखभाल की गुणवत्ता का हमारा मुख्य मापदंड प्रसवकालीन मृत्यु दर है।2, 3
हम अनुभवजन्य रणनीति, अंतर-में-अंतर4 (डिफरेंस-इन-डिफरेंस) का उपयोग करते हैं, जो जिलों में जेएसवाई के क्रमिक परिणामों से प्रेरित है। यद्यपि नीति की घोषणा 2005 में की गई थी, अगले कुछ वर्षों में विभिन्न जिलों में इसका कवरेज भिन्न-भिन्न रहा, क्योंकि इसके लिए आवश्यक कार्मिक और रूपरेखाओं को स्थापित किया जा रहा था। यदि किसी जिले में (i) किसी निश्चित तिमाही में सार्वजनिक अस्पतालों में प्रसव कराने वाली कम से कम 25% पात्र महिलाओं को सरकार से प्रसव के लिए वित्तीय सहायता प्राप्त होती है और (ii) यह हिस्सा अगले वर्ष में कम नहीं होता है तो हम उस जिले को जेएसवाई के तहत 'उपचारित' (हस्तक्षेप के अधीन) मानते हैं। हम ‘उपचारित’ जिलों से प्राप्त परिणामों की तुलना जेएसवाई द्वारा अभी तक ‘उपचारित न हुए’ जिलों के साथ करने के लिए बोरस्याक एवं अन्य (2023) की आरोपण या इम्प्यूटेशन विधि का उपयोग करते हैं। यह दृष्टिकोण इस धारणा पर निर्भर करता है कि जेएसवाई की अनुपस्थिति में ‘उपचारित’ और अभी तक ‘उपचारित न हुए’ जिलों के परिणाम चरों में समान रुझान होंगे। हम अलग-अलग पूर्व-प्रवृत्तियों की जाँच करके इस धारणा के लिए समर्थन प्रदान करते हैं।
हमारे विश्लेषण में पहला चरण जेएसवाई पर हुए पहले के शोध से प्राप्त निष्कर्षों को पूरे उपलब्ध नमूने तक लागू करना है, जो ग्रामीण क्षेत्रों या विशिष्ट रूप से कम प्रदर्शन वाले राज्यों में माताओं पर केन्द्रित था। यह पूरे बाज़ार में जेएसवाई के प्रभाव की एक व्यापक तस्वीर देता है। मौजूदा अध्ययनों के परिणामों के अनुरूप, जेएसवाई के अंतर्गत जिले में ‘उपचार’ शुरू होने के बाद दो वर्षों में संस्थागत जन्मों में 27% की वृद्धि के बावजूद, प्रसवकालीन मृत्यु दर में कोई कमी नहीं आई है। हमारा शेष विश्लेषण गर्भवती महिलाओं के लिए उपलब्ध विकल्पों और उन प्रतिक्रियाओं पर केन्द्रित है जो इस निराशाजनक परिणाम की व्याख्या करते हैं।
भारत में सार्वजनिक और निजी प्रदाता सीधे तौर पर भिन्न-भिन्न हैं
सबसे पहले हम भारत में मातृ-स्वास्थ्य सेवा के बाज़ार में व्याप्त विभिन्नता को स्पष्ट तौर पर उजागर करने वाले कई तथ्यों को दर्ज करते हैं। पहला, माता की संपत्ति और जोखिम के पूर्वनिर्धारित स्तर को नियंत्रित करने पर, प्रसवकालीन मृत्यु की सम्भावना निजी या प्राइवेट सुविधाओं में सबसे कम और घर पर सबसे अधिक होती है। दूसरा, अमीर और अधिक शिक्षित माताओं के निजी सुविधाओं में प्रसव होने की सम्भावना अधिक होती है और घर पर प्रसव होने की सम्भावना सबसे कम होती है। यह आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि निजी सुविधाओं में प्रसव के लिए औसत खर्च (लागत) सार्वजनिक सुविधाओं की तुलना में चार गुना अधिक है। तीसरा, निजी सुविधाओं में प्रसव कराने वाली महिलाओं ने प्रसवपूर्व देखभाल की अधिक मात्रा और गुणवत्ता प्राप्ति रिपोर्ट की है (जैसा कि प्रसवपूर्व जाँच की संख्या और कवरेज द्वारा मापा गया है)। ये वर्णनात्मक तथ्य सार्वजनिक और निजी सुविधाओं में वास्तविक और कथित गुणवत्ता संबंधी भिन्नता को दर्शाते हैं।
विश्लेषण में निजी मातृ-स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं और ‘स्पष्ट तौर पर विभिन्नता’ को शामिल करने से जेएसवाई के स्थिर प्रभाव के बारे में हमारी समझ कैसे बढ़ती है?
सार्वजनिक विकल्प को सब्सिडी देने से विभिन्न सुविधाओं में चिकित्सा जोखिम का आवंटन बदतर हो गया
प्रसवकालीन मृत्यु दर को कम करने के लिए आदर्श रोगी-सुविधा मिलान में उच्च जोखिम वाली माताओं को उच्च गुणवत्ता वाली सुविधाओं (इस सन्दर्भ में निजी अस्पताल) में देखभाल प्राप्त होगी। हालांकि जेएसवाई के परिणामस्वरूप घर पर कम प्रसव हुए, वित्तीय प्रोत्साहनों ने माताओं को निजी सुविधाओं से दूर किया और सार्वजनिक सुविधाओं की ओर भी मोड़ दिया। जैसा कि आकृति-1 (बाएं पैनल) में दिखाया गया है, उच्च जोखिम वाली माताओं द्वारा निजी सुविधाओं में प्रसव की सम्भावना 6.42% कम हो गई। यह प्रतिकूल भेद (वर्गीकरण) मुख्य रूप से गरीब घरों की उच्च जोखिम वाली माताओं के कारण है जो जेएसवाई के प्राथमिक लक्ष्य हैं, जिनके निजी अस्पतालों में प्रसव की सम्भावना 19% कम हो गई। निजी अस्पतालों से बाहर निकलने से उन्हें पैसे की बचत तो हुई, लेकिन इससे प्रतिकूल स्वास्थ्य परिणामों का जोखिम बढ़ गया।
आकृति-1. उच्च जोखिम वाली (बाएं) और कम जोखिम वाली माताओं (दाएं) की निजी सुविधा में प्रसव की सम्भावना
इसके अलावा साक्ष्य दर्शाते हैं कि उच्च जोखिम वाली माताओं को सार्वजनिक अस्पतालों में भर्ती तो कराया गया, लेकिन इन अस्पतालों की गुणवत्ता खराब हो गई। जेएसवाई ने सार्वजनिक स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की मांग को बढ़ावा दिया, पर सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता (प्रसूति एवं स्त्री रोग विशेषज्ञ, बिस्तर और नर्स की संख्या) को बढ़ाने के लिए अपेक्षाकृत कम काम किया गया। एंड्रयू और वेरा-हर्नांडेज़ (2022) ने दर्ज किया है कि सार्वजनिक सुविधाओं में सीमित क्षमता का मतलब है कि जेएसवाई ने भीड़भाड़ बढ़ाई और स्वास्थ्य सेवा की गुणवत्ता में गिरावट आई। हम उनके निष्कर्षों के पूरक के रूप में, दर्शाते हैं कि सीमित क्षमता वाले जिलों में उच्च सामाजिक-आर्थिक समूहों की माताएं सार्वजनिक सुविधाओं से हटकर अधिक महंगी निजी सुविधाओं की ओर रुख करके, सार्वजनिक क्षेत्र की इस बिगड़ती गुणवत्ता को आंशिक रूप से अनुकूलित करने में कामयाब रहीं।7
निजी क्षेत्र की प्रतिक्रिया उच्चतम-गुणवत्ता वाली देखभाल तक पहुँच को और सीमित करती है
यदि सब्सिडी वाले सार्वजनिक विकल्प से बढ़ती प्रतिस्पर्धा के कारण निजी मातृ स्वास्थ्य देखभाल की दरें कम हो जातीं, तो जेएसवाई के तहत सब्सिडी से उच्च गुणवत्ता वाली निजी सुविधाओं तक पहुँच में सुधार हो सकता था। आकृति-2 (बाएं पैनल) से पता चलता है कि जेएसवाई के चलते सार्वजनिक सुविधाओं में प्रसव के लिए जेब खर्च लागत में 18% की कमी आई। हालांकि, इस प्रतिस्पर्धी दबाव के बावजूद, निजी सुविधाओं ने अपनी कीमतें औसतन बढ़ा दीं, जिससे गरीब माताओं के लिए पहुँच और भी सीमित हो गई। यह वृद्धि उन राज्यों में हुई है जहाँ उच्च सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि की माताएँ जेएसवाई सब्सिडी के लिए अपात्र थीं, जिससे निजी सुविधाओं को अपने रोगियों की 'अस्थिर' माँग का फायदा उठाकर कम बाज़ार हिस्सेदारी के प्रभावों का मुकाबला करने का मौका मिला।8
आकृति-2. सार्वजनिक (बाएँ) और निजी सुविधाओं (दाएँ) की दरों में परिवर्तन
इन राज्यों में निजी सुविधाओं ने जेएसवाई के जवाब में अपनी दरों में 4.5% की वृद्धि की, और कम जोखिम वाली माताओं की देखभाल करने के बावजूद प्रसवपूर्व मृत्यु-दर में कोई सुधार नहीं हुआ (आकृति-1 में परिणाम का नतीजा)। इसके बजाय, कीमतों में वृद्धि का कारण निजी सुविधाओं में सिज़ेरियन डिलीवरी की बढ़ी हुई दर को बताया जा रहा है।9
निष्कर्ष विचार और नीतिगत निहितार्थ
हमारे निष्कर्ष महत्वपूर्ण लक्ष्यों के साथ बड़े पैमाने पर नीतियों को प्रभावी ढंग से निर्धारित (डिज़ाइन) करने के महत्व को पुष्ट करते हैं। स्वास्थ्य परिणामों में सुधार के लिए महंगी पहल होने के बावजूद, जेएसवाई ने भारत में प्रसवकालीन मृत्यु दर को कम करने में कोई खास योगदान नहीं दिया। यद्यपि इस पहेली को पूर्व के शोध साहित्य में दर्ज किया गया है, हम दर्शाते हैं कि सार्वजनिक और निजी प्रदाताओं के बीच अंतर्क्रियाओं ने जेएसवाई की प्रभावहीनता में अपना योगदान दिया।
हमारे परिणाम पूरक नीति हस्तक्षेप के दो सम्भावित रास्तों को सुझाते हैं- (i) सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता में निवेश, ताकि आने वाली भीड़भाड़ और देखभाल की गुणवत्ता में गिरावट को कम किया जा सके और (ii) भारत के गरीबों के लिए संभवतः लक्षित वाउचर या व्यापक स्वास्थ्य बीमा योजनाओं के माध्यम से निजी क्षेत्र की स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच में सुधार। चिरंजीवी योजना और पीएम-जेएवाई10 जैसे बाद के आयाम के विकास आशाजनक हैं, हालाँकि उनकी प्रभावशीलता का कड़ाई से विश्लेषण किया जाना चाहिए।
टिप्पणियाँ:
- नवजात मृत्यु दर, किसी विशिष्ट वर्ष में प्रति 1,000 जीवित जन्मों पर 28 दिन की आयु तक पहुँचने से पहले मरने वाले बच्चों की संख्या है। क्रॉस-कंट्री अनुमान संयुक्त राष्ट्र अंतर-एजेंसी समूह द्वारा बाल मृत्यु दर अनुमान के लिए विकसित किए गए हैं और यहाँ उपलब्ध हैं।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन प्रसवकालीन मृत्यु दर को "प्रति 1,000 कुल जन्मों पर मृत जन्मों और जीवन के पहले सप्ताह में मृत्यु की संख्या" के रूप में परिभाषित करता है, जो प्रसव के दौरान प्राप्त देखभाल की गुणवत्ता से निकटता से जुड़ा हुआ है।
- आदर्श रूप से, हम मातृ मृत्यु दर को भी मापने में सक्षम होंगे। तथापि, हम डीएलएचएस डेटा में दर्ज प्रसव के दौरान मृत्यु का सामना करने वाली लगभग 0.3% माताओं के बारे में अवलोकन नहीं करते हैं।
- अंतर-में-अंतर (डीआईडी) एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग समान समूहों में समय के साथ परिणामों के विकास की तुलना करने के लिए किया जाता है, जहाँ एक ने एक घटना का अनुभव किया- इस मामले में, जेएसवाई तक प्रारंभिक पहुँच- जबकि दूसरे ने अनुभव नहीं किया।
- हम इस परिभाषा को एंड्रयू और वेरा-हर्नांडेज़ (2022) से उधार लेते हैं। हमारे परिणाम उपचार के निर्माण के लिए वैकल्पिक कटऑफ की एक श्रृंखला का उपयोग करने के लिए ठोस हैं, जिसमें 25% के बजाय 15%, 20% और 30% शामिल हैं। हम ‘उपचार चर’ के रूप में वित्तीय सहायता प्राप्त करने वाली पात्र महिलाओं की संख्यात्मक हिस्सेदारी का उपयोग करके प्रतिगमन (रिग्रेशन) के ज़रिए अपने परिणामों की मजबूती का भी परीक्षण करते हैं।
- हमने माताओं के अपने नमूने को उनके जोखिम स्तर (मध्यम से नीचे या ऊपर) और आर्थिक पृष्ठभूमि (गरीबी रेखा से नीचे या ऊपर) के आधार पर चार समूहों में विभाजित किया है।
- हम माताओं की सामाजिक-आर्थिक स्थिति और पूर्व निर्धारित जोखिम स्तर को ‘नियंत्रित’ करते हुए, जेएसवाई के कारण निजी सुविधाओं में रोगी संरचना में परिवर्तन के सन्दर्भ में अपनी अनुभवजन्य रणनीति को संशोधित करते हैं।
- निजी सुविधाओं की मांग मूल्य में अस्थिर होने की सम्भावना है अर्थात, कीमत में बदलाव के बावजूद रोगियों की मांग समान रहेगी।
- इस प्रकार की डिलीवरी की लागत वर्ष 2016 में भारतीय परिवारों की औसत मासिक आय से अधिक थी। इसके अलावा, जेएसवाई से पहले ही निजी सुविधाओं में सिज़ेरियन सेक्शन की दरें बहुत अधिक (20% से अधिक) थीं और उच्च जोखिम वाली माताओं के इन सुविधाओं से दूर जाने की सम्भावना अधिक थी। इससे पता चलता है कि सिज़ेरियन सेक्शन में वृद्धि पूरी तरह से चिकित्सकीय रूप से आवश्यक या रोगी की मांग का परिणाम होने की सम्भावना नहीं है।
- राजस्थान सरकार द्वारा राज्य में रहने वाले सभी पात्र परिवारों को कैशलेस स्वास्थ्य बीमा प्रदान करने के लिए चिरंजीवी योजना शुरू की गई थी। पीएम-जेएवाई (प्रधान मंत्री जन आरोग्य योजना) पूरे भारत में गरीब और कमजोर परिवारों को माध्यमिक और तृतीयक देखभाल अस्पताल में भर्ती होने के लिए स्वास्थ्य बीमा कवर प्रदान करती है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
उत्कर्ष कुमार कोलंबिया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी स्नातक हैं। उनका शोध निम्न आय वाले देशों में विकास के मुद्दों पर केन्द्रित है, जिसमें लिंग, स्वास्थ्य और औद्योगिक संगठन पर विशेष ध्यान दिया गया है। पारिजात लाल कोलंबिया विश्वविद्यालय में जोसेफ स्टिग्लिट्ज़ के साथ एक पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं। वह सार्वजनिक और श्रम अर्थशास्त्र के लेंस के माध्यम से विकास व असमानता का अध्ययन करने में रुचि रखते हैं।
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