समष्टि अर्थशास्त्र

कृषि और केंद्रीय बजट: नीतियां और संभावनाएं

  • Blog Post Date 24 जुलाई, 2019
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Shoumitro Chatterjee

Pennsylvania State University; CPR

sc20@psu.edu

इस पोस्ट में शौमित्रो चटर्जी और मेखला कृष्णमूर्ति ने कृषि बाजार में सुधार, किसानों के लिए व्यवसाय करने में आसानी, और कृषि अनुसंधान तथा विस्तार से संबंधित केंद्रीय बजट 2019 के मुख्य प्रस्तावों का विश्लेषण किया है। 

  

महीनों तक राजनीतिक चर्चा के केंद्र में रहने के बाद वित्तमंत्री द्वारा हाल में प्रस्तुत किए गए 2019 के केंद्रीय बजट में अपनी सापेक्ष अनुपस्थिति के जरिए कृषि सहज ही ध्यान आकर्षित कर रही थी। परिव्ययों की ओर ध्यान देने पर कम से कम पहली नजर में तो यह प्रभाव संशोधित होता दिखता है। वर्ष 2019-20 में 151.511 हजार करोड़ रु. का ऐतिहासिक आबंटन है जो पिछले साल के 86.6 हजार करोड़ रु. के संशोधित अनुमान से 65,000 करोड़ रु. अधिक है। हालांकि इसका आधा आबंटन अकेले एक योजना – किसानों को नकद अंतरण के लिए केंद्र सरकार की नई फ्लैगशिप योजना, प्रधान मंत्री किसान योजना – के लिए है, हालांकि आश्चर्य की बात है कि बजट भाषण में इस योजना का नाम भी नहीं लिया गया। प्रधान मंत्री किसान योजना के लिए आबंटन का लेखा-जोखा लेने पर हमें इस साल के बजट में कृषि के लिए 10,000 करोड़ रु. की नैट कमी दिखती है। 

लेकिन पहले हम अपना ध्यान कृषि के लिए नीतिगत प्राथमिकताओं पर केंद्रित करें जिसकी ओर वित्तमंत्री ने ध्यान दिलाया था। बिजली, रसोई गैस, सड़कों, मछली पालन, पारंपरिक उद्योगों, बांस एवं इमारती लकड़ी, विद्युत उत्पादन, डेयरी और पशु आहार, तथा दलहनों के मामले में आत्मनिर्भरता पर भूमिका प्रस्तुत करने के बाद कृषि बाजारों में सुधार और हस्तक्षेप के दो मुख्य क्षेत्रों का उल्लेख किया गया। पहला था बाजारों और वस्तु शृंखलाओं में छोटे और सीमांत किसानों के लिए अधिक समूहन (एग्रीगेशन) और भागीदारी को संभव बनाने के लिए अगले पांच वर्षों के दौरान 10,000 नए किसान उत्पादक समूहों का निर्माण। और दूसरा था इलक्ट्रॉनिक आधार पर समेकित राष्ट्रीय कृषि बाजार (इलेक्ट्रॉनिक नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट, ई-नैम) के निर्माण की सरकार की फ्लैगशिप योजना से लाभान्वित होने में किसानों को सक्षम बनाने के लिए केंद्र सरकार का राज्य सरकारों के साथ काम करने का इरादा। इस मामले में राज्य-स्तरीय कृषि उत्पादन बाजार अधिनियमों में सुधार के चिरस्थायी लक्ष्य का एक बार फिर उल्लेख किया गया। 

अगर सरकार को अगले पांच वर्षों में इरादे से प्रभावी क्रियान्वयन की दिशा में बढ़ना है, तो कृषि उत्पादन बाजार समिति मंडी व्यवस्था के रेगुलेटरी रिफॉर्म और राष्ट्रीय कृषि बाजार के विकास, दोनो के लिए गंभीर राजनीतिक प्रतिबद्धता, सार्वजनिक निवेश, तकनीकी संसाधन संबंधी सहायता, और संस्थागत क्षमता की जरूरत है। इस प्रक्रिया में गहरा और निरंतर विनियामक सुधार और तुल्यकालन (सिंक्रनाइज़ेशन) ही शामिल नहीं है। इसकी सफलता भौतिक कृषि बाजारों के सुदृढ़ीकरण के लिए संदर्भ आधारित निवेशों पर निर्भर करेगी – खास कर प्राथमिक स्तर पर जहां बाजार अधिकांश किसानों के लिए मायने रखते हैं। निस्संदेह, ई-नैम ने यह स्पष्ट अवसर उपलब्ध कराया है क्योंकि इलक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म भौतिक बाजार स्थल से जुड़ा हुआ है। अपने वर्तमान अवतार में मंडी ऐसी जगह है जहां गुणवत्ता का सत्यापन, श्रेणीकरण, इलेक्ट्रॉनिक-बिडिंग, और लेनदेन होते हैं और कृषि उत्पादों के ट्रांसफर और आने-जाने के लिए यह महत्वपूर्ण बैक-एंड बन जाती है। 

हालांकि अभी तक फोकस इलक्ट्रॉनिक ‘बिडिंग’ के लिए सिस्टम बनाने पर रहा है, और जैसा कि हम पूरे देश में फील्ड साइट्स में देख रहे हैं, जब तक हम अंतिम लक्ष्य के बतौर बाजारों के इलक्ट्रॉनिक ‘इंटीग्रेशन’ तक पहुंचें उसके पहले क्षेत्रों और सामग्रियों के मामले में काफी कुछ करने की जरूरत है (कृष्णमूर्ति 2019)। इस संबंध में जमीनी स्तर पर कृषि बाजारों के सुदृढ़ीकरण के लिए बजटीय आबंटनों और व्ययों के रिकॉर्ड गंभीर चिंता खड़ी करते हैं। वर्ष 2017-18 में समेकित कृषि विपणन योजना के लिए बजट में व्यय 1,238.40 करोड़ रु. था जबकि वास्तविक व्यय मात्र 637.54 करोड़ रु. हुआ था जो बजट आबंटन का मात्र 51.5 प्रतिशत वास्तविक उपयोग दर्शाता है। किसानों की आय दोगुनी करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रणनीति के बतौर कृषि बाजारों में सुधार के प्रति सरकार द्वारा व्यक्त की गई वचनबद्धता को देखते हुए विपणन अधिसंरचना के विकास के मामले में अवशोषण क्षमता और विनियमन (रेगुलेशन) में मौजूद इस कमी को दूर करने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जानी चाहिए। 

वित्त मंत्री ने सरकार की दृष्टि स्पष्ट की कि ‘‘व्यवसाय करने की आसानी … किसानों के मामले में भी लागू होनी चाहिए’’। महत्वपूर्ण बात यह है कि रेगुलेटरी कैपेसिटी का विस्तार करके और उसमें गहराई लाकर तथा सभी स्तरों पर कृषि विपणन संबंधी मुख्य ढांचागत बाधाओं को दूर करके ही ऐसा किया जा सकता है। इसमें सार्वजनिक निवेश और संस्थागत चुनौती, दोनो बातें शामिल हैं। विभिन्न विपणन चैनलों और बाजारों के एकीकरण के जरिए अधिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देने में सहयोग के लिए वर्तमान कृषि उत्पादन बाजार समिति-मंडी प्रणाली को खोला जाना चाहिए। बहरहाल, इस बात को दर्शाने के लिए पर्याप्त प्रमाण मौजूद हैं कि वर्तमान अधिनियमों को निरस्त कर देने भर से बाजारों में किसानों के लिए विनिमय की शर्तों में सुधार नहीं हो जाने वाला है, और विनियमन (रेगुलेशन) के मामले में खालीपन बाजार के विकास और प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा नहीं देता है। इसके अलावा, सक्षमकारी पहुंच और भागीदारी घरेलू बाजारों तक ही सीमित नहीं है। भंडारण संबंधी सीमाएं और निर्यात पर स्वैच्छिक प्रतिबंधों से भी उक्त निरूपण को नुकसान पहुंचता है।  

प्राथमिक बाजारों में किसानों और स्थानीय खरीदारों (मुख्यतः व्यापारी और कमीशन ऐजेंट) के बीच विनिमय को सुगम बनाने में नकद रकम महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। हमारे लिए गौरतलब है कि भारतीय किसानों के भारी बहुमत के लिए ऐसे विनिमय की विशेषता प्राइवेट – और अक्सर गैर-नियंत्रित – लेनदेन होना है जो न्यूनतम समर्थन मूल्यों और सरकारी खरीद से अछूता रह जाता है (चटर्जी एवं कपूर 2017)। यहां बैंकों के जरिए प्रत्यक्ष अंतरण सरकारों के लिए तो किसानों तक पहुंचने के व्यापक रूप से प्रभावी माध्यम हो सकते हैं लेकिन कृषि बाजारों में किसानों और व्यापारियों के बीच होने वाली नियमित लेनदेन के मामले में यह वास्तविकता से बहुत दूर है। जैसा कि विमुद्रीकरण (डीमोनेटाईसेशन) के बाद व्यापक रूप से दर्शाया गया कि भारत की कृषि विपणन प्रणाली नकदी पर चलती है और नकदी की उपलब्धता में व्यवधान के गंभीर दुष्परिणाम होते हैं। इस मामले में शायद ही कुछ बदला है। अतः यह देखा जाना अभी बाकी है कि 1 करोड़ रु. से अधिक वार्षिक नकद निकासी पर नए कर का एग्रो-प्रोसेसर्स और क्षेत्रीय व्यापारियों के कामों पर क्या असर होगा जिनके लिए यह सुनिश्चित करने की जरूरत होगी कि प्राथमिक बाजारों में नकदी की बड़ी मात्रा प्रचलन में मौजूद रहे।   

ई-नैम की तरह ही किसान उत्पादक संगठनों के बारे में भी घोषणा की गई उस रणनीति पर निर्मित की गयी है जिसपर पिछले कुछ वर्षों में काफी नीतिगत जोर दिया गया है। हालांकि राष्ट्रीय कृषि बाजार के निर्माण की ही तरह तेजी से स्पष्ट होता जा रहा है कि किसान उत्पादक संगठनों को सहयोग देना मूलतः पारितंत्र संबंधी चुनौती है और उसके लिए संसाधन संबंधी काफी सहायता और संस्थागत क्षमता निर्माण की जरूरत है। इसके लिए दीर्घकालिक सार्वजनिक निवेश की जरूरत है और इसे प्राइवेट पूंजी और मुनाफा कमाने के जरिए नहीं पूरा किया जा सकता – अल्पावधि में तो निश्चित ही नहीं। पहले से मौजूद किसान उत्पादक संगठन डायनामिक और अस्थिर कृषि बाजारों में इनपुट और आउटपुट के एग्रीगेशन की गतिविधियों के जरिए खुद को टिकाए रखने में गंभीर चुनौतियों का सामना कर रहे हैं।   

निष्कर्ष रूप में, अगर सरकार फसल पैटर्न में अधिक विविधीकरण की दिशा में कथित शिफ्ट और बजट में रेखांकित जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैसे दृष्टिकोणों को अपनाने के बारे में गंभीर है, तो संसाधन संबंधी सहायता का विस्तार और अधिक महत्वपूर्ण हो जाएगा। कृषि अनुसंधान और प्रसार को नए सिरे से सार्वजनिक निवेश की और पुर्नर्जीवित करने की जरूरत होगी। दुर्भाग्यवश ऐसा उपलब्ध नहीं होता दिखता है। क्रॉप साइंस के लिए आबंटन 100 करोड़ रु. घटकर 800 करोड़ रु. से 702 करोड़ रु. रह गया है जबकि कृषि विश्वविद्यालयों के लिए आबंटन में 119 करोड़ रु. की कटौती की गई है जो 2018-19 के 685 करोड़ रु. से घटकर इस वर्ष 566 करोड़ रु. रह गया है। भारतीय कृषि के रूपांतरण के किसी राष्ट्रीय एजेंडा में सार्वजनिक अनुसंधान और सार्वजनिक प्रसार के महत्व को कम करके आंका नहीं जा सकता है, खास कर तब जब जलवायु परिवर्तन की वास्तविकताएं और जोखिम गहरा रहे हैं। 

लेखक परिचय: शौमित्रो चटर्जी पेनसिलवेनिया स्टेट यूनिवर्सिटी में अर्थशास्त्र के असिस्टेंट प्रॉफेसर हैं। मेखला कृष्णमूर्ति अशोका यूनिवर्सिटी में समाजशास्त्र और सामाजिक नृविज्ञान की एसोसिएट प्रॉफेसर हैं।

नोट्स:

  1. इसमें इनके खर्च जुड़ जाते हैं – (1) कृषि, सहयोग और कृषक कल्याण जिनके जरिए फसल उत्पादन से संबंधित कार्यक्रमों और योजनाओं का क्रियान्वयन, तथा कृषि लागत सामग्रियों का प्रबंधन होता है, (2) कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा जिसके जरिए कृषि विश्वविद्यालयों का प्रबंधन किया जाता है, और इस क्षेत्र में अनुसंधान को बढ़ावा दिया जाता है, और (3) पशुपालन, डेयरी एवं मत्स्यपालन, जिनके जरिए पशुधन, डेयरी, और मछली पालन के उत्पादन और विकास का प्रबंधन किया जाता है। इस आलेख में कृषि क्षेत्र, व्यय संबंधी रुझानों और इन विभागों के बजट प्रस्तावों से संबंधित मुद्दों का विश्लेषण किया गया है: https://www.indiabudget.gov.in/doc/Budget_at_Glance/bag6.pdf
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