पहली मई को दुनिया भर में श्रम दिवस मनाया जाता है और आधुनिक विश्व की अर्थ व्यवस्था और प्रगति में श्रम, श्रम बाज़ार व श्रमिकों की महत्वपूर्ण भूमिका है। इसी सन्दर्भ में आज के इस लेख में, अध्वर्यु एवं अन्य भारत में घटती विनिर्माण उत्पादकता तथा राज्यों और उद्योगों में व्याप्त भिन्नता से सम्बंधित कुछ तथ्यों का संकलन प्रस्तुत करते हैं। वे श्रमिक उत्पादकता बढ़ाने की क्षमता वाले चार प्रमुख क्षेत्रों- सॉफ्ट स्किल्स, आवाज़ यानी उनका मत, भौतिक वातावरण और प्रबन्धकीय गुणवत्ता में निवेश के बारे में मौजूदा साहित्य की जाँच करते हैं, जिसमें भारतीय और वैश्विक दोनों सन्दर्भों में किए गए अध्ययनों पर प्रकाश डाला गया है। वे सम्भावित कारणों के साथ यह निष्कर्ष निकालते हैं कि क्यों कम्पनियाँ श्रमिकों में पर्याप्त निवेश नहीं कर रही हैं।
भारत के विनिर्माण क्षेत्र को व्यापक रूप से इसकी अर्थव्यवस्था के चल रहे संरचनात्मक परिवर्तन की कुंजी के रूप में माना जाता है, जो कम आय वाले लाखों भारतीयों के लिए गरीबी से बाहर निकलकर अपनी आय बढ़ाने का मार्ग है, और वैश्विक मंच पर भारत की समग्र आर्थिक प्रतिस्पर्धात्मकता (अग्रवाल और कुमार 2015) को दर्शाता है। आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर ले जाने की बढ़ती वैश्विक मांग को देखते हुए, भारतीय विनिर्माण विशेष रूप से महत्वपूर्ण है (घोष और मुखर्जी 2020)। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ के देश और अन्य बड़ी अर्थव्यवस्थाएं भारत को एक प्रमुख गंतव्य के रूप में देखती हैं जहाँ वैश्विक उत्पादन के प्रमुख पहलू आगे बढ़ सकते हैं। लेकिन इस सम्भावित मांग को पूरा करने के लिए भारत में विनिर्माण क्षमता का बड़े पैमाने पर विस्तार किए जाने की आवश्यकता होगी। आने वाले दशक में सकल घरेलू उत्पाद में विनिर्माण की हिस्सेदारी बढ़ाना भारत सरकार का एक प्रमुख घोषित लक्ष्य है। चीन और आयात के अन्य प्रमुख स्रोतों पर निर्भरता कम करने की दिशा में सरकार का 'मेक इन इंडिया' अभियान भी विनिर्माण विकास पर ज़ोर देने के अनुरूप है (आनन्द और अन्य 2015)। इन लक्ष्यों का परिणाम यह है कि विनिर्माण उत्पादकता अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत खुद को वैश्विक 'फ्रेंडशोरिंग' प्रवृत्ति में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में स्थापित करना चाहता है। साथ ही, उपभोक्ता वस्तुओं के उत्पादन में अधिक आत्मनिर्भर होने की भारत की इच्छा भी है।
भारत में विनिर्माण उत्पादकता के बारे में शैलीगत तथ्य
हम भारत की कुल उत्पादकता वृद्धि तथा राज्यों और उद्योगों में उत्पादकता में फैलाव से सम्बंधित कुछ बुनियादी शैलीगत तथ्यों को स्थापित करने के लक्ष्य के साथ, भारत की विनिर्माण उत्पादकता में रुझानों की जाँच करते हैं।
इन आँकड़ों से हमारा तात्पर्य यह है कि विनिर्माण उत्पादकता में वृद्धि- जैसा कि प्रति श्रमिक बिक्री (सेल्ज़ पर वर्कर) द्वारा मापा जाता है- पिछले एक दशक में, विशेष रूप से वर्ष 2020 में कोविड-19 महामारी की शुरुआत तक के वर्षों में काफी धीमी हो गई है। इसका आगे विस्तार करते हुए, उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण (एएसआई) आँकड़ों से पता चलता है कि 1990 के दशक के बाद से विनिर्माण उत्पादकता वृद्धि में भारी गिरावट आई है। इस गिरावट में तेज़ी 2010 के मध्य में शुरू हुई (आकृति-1 देखें)। 1990 और 2000 के दशक में विकास दर, जो 10 से 15% के बीच झूलती थी, 2015 के बाद स्थिर होने लगी, जो भारतीय विनिर्माण फर्मों की उत्पादकता वृद्धि में खतरनाक मंदी की ओर इशारा करती है।
आकृति-1. 1990 से 2020 के बीच विनिर्माण क्षेत्र में कुल वार्षिक उत्पादकता वृद्धि का तीन साल का मूविंग औसत
व्यापक साहित्य के अनुरूप, भारतीय विनिर्माण उत्पादकता संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में काफी कम है। वर्ष 2020 में, भारतीय उत्पादकता ($ 94,249 प्रति श्रमिक) अमेरिकी स्तर ($ 484,862 प्रति श्रमिक) का लगभग पाँचवाँ हिस्सा थी, या क्रय शक्ति समानता में अन्तर के लिए समायोजन करने पर तीन-पाँचवाँ हिस्सा थी (एएसआई, 2019-20, यूएस ब्यूरो ऑफ लेबर स्टैटिस्टिक्स, 2021)। हम भारतीय राज्यों में उत्पादकता में काफी विविधता भी देखते हैं- पश्चिमी और मध्य भारत के राज्यों में औसत उत्पादकता सबसे अधिक है, जबकि पूर्व और दक्षिण के राज्यों में सबसे कम है। राज्य की औद्योगिक संरचना को नियंत्रित करते समय यह अन्तर-राज्य भिन्नता बनी रहती है।
डेटा विभिन्न भारतीय राज्यों में, बल्कि उद्योगों के भीतर भी विनिर्माण उत्पादकता में महत्वपूर्ण फैलाव या डिस्पर्शन की ओर इशारा करता है। उदाहरण के लिए, 10वें प्रतिशतक में प्रति श्रमिक औसत बिक्री लगभग $ 24,000 है, जबकि 90वें प्रतिशतक में $ 145,000 है। प्रत्येक राज्य के भीतर उद्योगों की संरचना को समायोजित करने के बाद भी ये भिन्नताएं बनी रहती हैं, जो यह दर्शाता है कि औद्योगिक संरचना से परे के कारक इन भिन्नताओं को बढ़ा रहे हैं। आम तौर पर, उत्पादकता फैलाव से सम्बंधित बड़े अर्थशास्त्र साहित्य के अनुरूप, राज्य और उद्योग के प्रभावों को नियंत्रित करने के बाद भी, भारत में सबसे अधिक और सबसे कम उत्पादक फर्मों में उत्पादकता का अन्तर बहुत बड़ा है।
प्रस्तुत शैलीगत तथ्य इस विचार पर प्रकाश डालते हैं कि कार्यबल में रणनीतिक निवेश करने से सम्भावित रूप से उत्पादकता में पर्याप्त सुधार हो सकता है। वे यह भी दर्शाते हैं कि विभिन्न राज्यों और उद्योगों में उत्पादकता में पर्याप्त असमानताओं को दूर किया जाना भारत के विनिर्माण क्षेत्र के सतत विकास के लिए जरूरी है।
श्रमिकों में निवेश के प्रभाव के बारे में साक्ष्य
श्रमिकों में निवेश किया जाना और उत्पादकता के बीच सकारात्मक सह-सम्बन्ध पर्याप्त है, तब भी यह पहचानना महत्वपूर्ण है कि यह सम्बन्ध कारणात्मक नहीं हो सकता है। ध्यान न दिए गए फर्म विकल्पों जैसे कारकों को कर्मचारियों के वेतन और लाभ के प्रावधान और उत्पादकता, दोनों के साथ जोड़ा जा सकता है। हम श्रमिकों में निवेश की कई श्रेणियों का गहराई से अध्ययन करते हैं और सम्भावित यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षणों (कन्ट्रोलड रैंडोमाइज़्ड ट्रायलज़- आरसीटी) को नियोजित करने या विश्वसनीय रूप से बहिर्जात भिन्नता या एक्सोजीनस वेरिएशन का उपयोग करके इन अध्ययनों की समीक्षा के माध्यम से उत्पादकता पर उनके प्रभावों के कारण साक्ष्य का आकलन करते हैं।
i) सॉफ्ट स्किल्स : निवेश का एक प्रमुख क्षेत्र श्रमिकों के सॉफ्ट स्किल्स को बढ़ाना है। संचार, समय प्रबंधन, समस्या-समाधान और टीम वर्क जैसी सॉफ्ट स्किल्स का उत्पादकता और श्रमिकों की आय में महत्वपूर्ण योगदान दर्शाया गया है (हेकमैन एवं अन्य 2006, बोर्गहंस एवं अन्य 2008, ग्रोह एवं अन्य 2012, हेकमैन और कौट्ज़ 2012, गुएरा एवं अन्य 2014, डेमिंग 2017, मोंटालवाओ एवं अन्य 2017, बस्सी और नानसाम्बा 2022)। यह विनिर्माण क्षेत्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जहाँ परम्परागत रूप से तकनीकी कौशल पर ज़ोर दिया गया है। भारत में पर्सनल एडवांसमेंट एंड करियर एनहांसमेंट (पी.ए.सी.ई) जैसे कार्यक्रम, जिनमें महिला परिधान श्रमिकों को सॉफ्ट स्किल्स में प्रशिक्षित किया जाता है, ने प्रतिधारण दर में सुधार और उत्पादकता में सात प्रतिशत अंक तक वृद्धि का प्रदर्शन किया है (अध्वर्यु एवं अन्य 2022बी)।
अन्य देशों में प्रशिक्षण और उत्पादकता के बीच का सम्बन्ध आरसीटी के माध्यम से काफी ठोस रूप से स्थापित किया गया है। उदाहरण के लिए, कैम्पोस एवं अन्य द्वारा किए गए एक अध्ययन (2017) ने मूल्याँकन किया कि सक्रिय मानसिकता सिखाने वाले और उद्यमशीलता व्यवहार पर ध्यान केन्द्रित करने वाले मनोविज्ञान-आधारित व्यक्तिगत पहल प्रशिक्षण कार्यक्रम के माध्यम से किस तरह सूक्ष्म-उद्यमियों के सॉफ्ट स्किल्स में सुधार हुआ है- पारम्परिक व्यावसायिक प्रशिक्षण की तुलना में टोगो, पश्चिम अफ्रीका के ‘नियंत्रण’ समूह की तुलना में दो वर्षों में उनकी बिक्री में 17% और उनके मुनाफे में 30% की वृद्धि हुई है।
आकृति-2: सूक्ष्म उद्यमियों के मासिक लाभ पर सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण का मात्रात्मक उपचार प्रभाव
इसी तरह, नीदरलैंड में, डी ग्रिप और सॉरमैन (2012) ने नीदरलैंड में कॉल-सेंटर कर्मचारियों को सॉफ्ट स्किल्स प्रशिक्षण प्रदान करने के प्रभाव का परीक्षण किया। ‘उपचार’ समूह के कर्मचारी, जिन्हें समस्या-समाधान, दबाव में काम करना और ग्राहकों की शिकायतों से प्रभावी ढंग से निपटने सहित विभिन्न कौशल सिखाए गए थे, उन्हें ‘नियंत्रण’ समूह के कर्मचारियों की तुलना में ग्राहकों से 10% अधिक रेटिंग मिली।
ii) श्रमिक की आवाज़ (मत): एक अन्य पहलू जिस पर ध्यान दिया गया, वह है संगठन के भीतर कर्मचारियों की आवाज़ यानी उनका मत। कर्मचारियों को अपनी चिंताओं को व्यक्त करने के लिए प्रोत्साहित करने से उनके और उनके नियोक्ताओं के बीच सम्बन्ध मज़बूत हो सकते हैं, जिससे टर्नओवर कम करके, कर्मचारियों को प्रेरित करके और संचार में सुधार करके उत्पादकता में वृद्धि होती है।
उदाहरण के लिए, वर्ष 2016 में निराशाजनक रूप से छोटी वैधानिक न्यूनतम वेतन-वृद्धि के बाद, अध्वर्यु एवं अन्य (2022सी) ने श्रमिकों की आवाज़ को आगे बढ़ाने के महत्व को समझने के लिए, विशेष रूप से कार्यस्थल के भीतर सामान्य असंतोष के समय में, एक रेडीमेड परिधान फर्म में एक आरसीटी का आयोजन किया। श्रमिकों को यादृच्छिक रूप से एक फीडबैक सर्वेक्षण प्रपत्र भरने के लिए कहा गया जिसमें उनसे उनके पर्यवेक्षकों, समग्र कर्मचारी संतुष्टि, फर्म के साथ संतुष्टि, उनके वेतन और उनकी नौकरियों के बारे में उनकी भावनाओं के बारे में पूछा गया था। ‘उपचार’ प्रभाव के अनुमान से पता चलता है कि श्रमिकों की आवाज़ को सक्षम करने से वेतन-वृद्धि के बाद के महीनों में नौकरी छोड़ने की सम्भावना 20 प्रतिशत अंक कम हो गई।
इसी प्रकार से जब चीन में ऑटो श्रमिकों ने अपने प्रबंधकों के मूल्याँकन में भाग लिया, तो इसके परिणामस्वरूप टर्नओवर में 50% की कमी आई, जिससे समग्र उत्पादकता और कर्मचारी खुशी में वृद्धि हुई (काई और वाँग 2022)। भारतीय परिधान कारखानों में एसएमएस-आधारित संचार उपकरण लागू करने से अनुपस्थिति और नौकरी छोड़ने में क्रमशः 5% और 10% की कमी आई, जिसके चलते उत्पादकता में 7.2% का सुधार हुआ (अध्वर्यु एवं अन्य 2021, 2023ए)।
iii) पर्यावरणीय परिस्थितियाँ : भौतिक पर्यावरण और कार्य की परिस्थितियाँ भी निवेश के प्रमुख क्षेत्र हैं। प्रदूषण और अत्यधिक गर्मी का श्रमिकों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ सकता है, जिससे उत्पादकता पर असर पड़ता है। उदाहरण के लिए, सोमनाथन एवं अन्य (2021) ने दिल्ली और गुजरात में श्रमिक उत्पादकता पर बढ़ते तापमान के प्रभावों का अध्ययन किया। इस बात पर ध्यान केन्द्रित किया कि मैन्युअल श्रमिकों और स्वचालित विनिर्माण सेटिंग्स में कार्यरत श्रमिकों के लिए ये प्रभाव कैसे भिन्न होते हैं। उन्होंने पाया कि तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि से उत्पादकता में 2% की कमी देखी गई।
इस बीच, अध्वर्यु एवं अन्य द्वारा किए गए एक अध्ययन (2020) में पाया गया कि कूलिंग तकनीकों और एलईडी लाइटिंग जैसी ऊर्जा-बचत विधियों को अपनाकर, भारतीय परिधान कम्पनियों ने एक अनुकूल कार्य वातावरण बनाया, जिससे उत्पादकता पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा और गर्म दिनों में तापमान के नकारात्मक प्रभाव को 85% तक कम कर दिया (आकृति-3 देखें)। इससे फर्म-वार उत्पादकता में वृद्धि हुई और फर्म के लिए समग्र ब्रेक-ईवन बिन्दु साढ़े तीन साल से आठ महीने से भी कम हो गया।
आकृति-3. तापमान के फलन के रूप में श्रमिक दक्षता
अध्वर्यु एवं अन्य (2022ए) ने अध्ययन किया कि दिल्ली में कपड़ा कारखानों में सूक्ष्म कण पदार्थ, एक प्रकार का वायु प्रदूषण, की उपस्थिति में श्रमिकों की उत्पादकता कैसे भिन्न होती है। परिणाम दर्शाते हैं कि काफी बड़े कण पदार्थ प्रदूषण के झटके आम हैं और इन झटकों के दौरान श्रमिक और लाइन-स्तरीय उत्पादकता प्रभावित होती है– प्रदूषण में एक-मानक-विचलन (वन स्टैण्डर्ड डीविएशन) वृद्धि से दक्षता में आधे अंक की कमी हो जाती है। आगे का घटना अध्ययन विश्लेषण इस बात की पुष्टि करता है कि बड़े प्रदूषण के झटके तुरंत श्रमिक उत्पादकता को प्रभावित करते हैं, जिसका प्रभाव श्रमिक द्वारा किए जाने वाले कार्यों और स्वयं श्रमिक पर अलग-अलग होता है- जटिल कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए ये प्रभाव 60% अधिक और पुराने श्रमिकों के लिए 35% अधिक होते हैं।
iv) प्रबन्धकीय गुणवत्ता : प्रबन्धकीय गुणवत्ता निवेश का एक और महत्वपूर्ण क्षेत्र है। परिधान उत्पादन प्रबंधकों के नेतृत्व और संचार कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने वाले अनुकूलित प्रशिक्षण से उत्पादकता में 6% तक की वृद्धि देखी गई है और प्रशिक्षित प्रबंधकों के नौकरी छोड़ने की सम्भावना 15% कम पाई गई है (अध्वर्यु एवं अन्य 2023ए, 2023बी)।
उदाहरण के लिए, मैकशियावेलो एवं अन्य द्वारा बांग्लादेश के कपड़ा कारखानों में किए गए एक आरसीटी (2020) सर्वेक्षण में पाया गया कि जब 'सीमांत' पुरुष और महिला को पर्यवेक्षक पदों पर पदोन्नत किया गया था, तो महिला पर्यवेक्षकों को शुरू में अपने पुरुष समकक्षों की तुलना में अपने अधीनस्थ श्रमिकों से कम उत्पादकता और मूल्याँकन मिला था। यह शुरुआती ख़राब प्रदर्शन महिला पर्यवेक्षकों की क्षमताओं के बारे में नकारात्मक धारणाओं के कारण उत्पन्न हुआ था, लेकिन ये अन्तर 4-6 महीनों के बाद गायब हो गए।
प्रदर्शन की निगरानी, सूचना साझा करने और दीर्घकालिक प्रभावों पर ध्यान केन्द्रित करने जैसी प्रभावी प्रबन्धकीय प्रथाओं से बेहतर गुणवत्ता, दक्षता और संगठनात्मक शिक्षा के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि हो सकती है। हालाँकि यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि बदलती प्रथाओं का विरोध हो सकता है, अतः नए कार्यक्रमों को फर्म की विशिष्ट आवश्यकताओं और प्रबंधकों के कौशल स्तरों के अनुरूप सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किया जाना चाहिए।
कम्पनियों के लिए श्रमिकों में निवेश करने में बाधाएँ
कर्मचारियों में निवेश- जिसमें सॉफ्ट स्किल्स, कर्मचारी की आवाज़, पर्यावरण की स्थिति, स्वास्थ्य और प्रबन्धकीय गुणवत्ता शामिल है, सभी का उत्पादकता पर सम्भावित प्रभाव पड़ता है, जिसे फर्मों की विशिष्ट आवश्यकताओं और सन्दर्भों पर विचार करने वाले सावधानीपूर्वक डिज़ाइन किए गए हस्तक्षेपों में शामिल किया जा सकता है।
हालाँकि कई कारणों से, कम्पनियाँ अपने कर्मचारियों में कम निवेश कर सकती हैं। एक उल्लेखनीय बाधा सूचना का घर्षण है- कम्पनियों में या तो जागरूकता की कमी हो सकती है या कर्मचारियों में निवेश के सम्भावित लाभों को कम आंका जा सकता है। विशेष रूप से, संचार बाधाओं के कारण निवेश के लाभों के बारे में जानकारी फर्म के सम्बंधित निर्णयकर्ताओं तक नहीं पहुँच पाती है। सम्भावित रूप से एक और बाधा निर्णय लेने वालों का जोखिम-प्रतिकूल स्वभाव है, जो निवेश परिणामों में अनिश्चितता के कारण, विशेष रूप से संसाधन-बाधित सेटिंग्स में सम्भावित लाभदायक निवेश करने में संकोच कर सकते हैं।
प्रबन्धकीय ध्यान भी एक महत्वपूर्ण सीमित कारक हो सकता है। प्रबंधकों के पास ढेर सारी जिम्मेदारियाँ होती हैं और निरीक्षण का अर्थ अक्सर यह होता है कि श्रमिकों में निवेश के लिए रणनीतियों के मूल्याँकन और कार्यान्वयन पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता। एक अन्य सम्भावित बाधा फर्म के भीतर विभिन्न स्तरों पर प्रोत्साहनों का गलत संरेखण है। संगठन के भीतर विभिन्न हितों के कारण विरोध हो सकता है या लाभदायक प्रथाओं को अपनाने में देरी हो सकती है यदि वे कुछ व्यक्तियों या विभागों के हितों के साथ संरेखित नहीं किए जाते हैं।
इसके अलावा, उच्च कर्मचारी टर्नओवर दरें कम्पनियों को कर्मचारी प्रशिक्षण विशेष रूप से सामान्य कौशल में निवेश करने, जो हस्तांतरणीय हैं, के लिए अनिच्छुक बना सकती हैं क्योंकि उन्हें इन निवेशों से तत्काल लाभ नहीं दिखता है। बाज़ार की गतिशीलता भी यहाँ एक भूमिका निभाती है क्योंकि अत्यधिक प्रतिस्पर्धी श्रम बाज़ारों में, फर्मों को प्रशिक्षण में निवेश करने से हतोत्साहित किया जा सकता है क्योंकि कर्मचारी इन स्किल्स का उपयोग अन्य कम्पनियों में जाने के लिए कर सकते हैं।
कम्पनियों को अपने कार्यबल में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करने हेतु इन बाधाओं और बाज़ार कारकों को समझना और उनका समाधान करना आवश्यक है। फर्मों और कर्मचारियों दोनों के लिए बेहतर उत्पादकता और पारस्परिक लाभ को हासिल करने के लिए, कठोर कारण अध्ययनों के माध्यम से उत्पादकता-सुधार निवेश का एक बड़ा ‘मेनू’ विकसित करने के लिए कर्मचारी निवेश के सम्बन्ध में फर्म के व्यवहार को पूरी तरह से समझना और बाधाओं का अध्ययन करना और यह समझना कि कैसी नीतियाँ कम्पनियों के लिए अधिक कर्मचारी निवेश को अपनाना आसान बना सकती है, इस पर अधिक गहन शोध की अनिवार्य आवश्यकता है।
यह एनसीएईआर इंडिया पॉलिसी फोरम 2023 के लिए तैयार प्रारम्भिक पेपर ड्राफ्ट का सारांश है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : अच्युत अध्वर्यु यूसी सैन डिएगो स्कूल ऑफ ग्लोबल पॉलिसी एंड स्ट्रैटेजी में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और विश्वविद्यालय के 21वीं सदी के भारत केन्द्र के निदेशक हैं। स्मित गाडे गुड बिजनेस लैब (जीबीएल) में डेटा और रिसर्च मैनेजर हैं, जहाँ वे रिसर्च डिज़ाइन और फील्ड कार्यान्वयन की देखभाल करते हैं। जीन-फ़्रांस्वा बोस्टन कॉलेज में अर्थशास्त्र के शोधार्थी हैं। उनका वर्तमान शोध कम्पनियों के निर्णय लेने में न्यूनतम वेतन की भूमिका और भारत में कपड़ा कारखानों में प्रबंधकों व श्रमिकों के बीच की गतिशीलता पर केन्द्रित है। अनन्त निषादम मिशिगन विश्वविद्यालय में सहायक प्रोफेसर हैं। उनका काम विशेष रूप से विकासशील देशों में उद्यम, दृढ़ निर्णय लेने और परिणामी प्रदर्शन गतिशीलता पर केन्द्रित है। संध्या श्रीनिवास स्टीफन एम. रॉस स्कूल ऑफ बिज़नेस, मिशिगन विश्वविद्यालय में प्री-डॉक्टोरल रिसर्च फेलो और गुड बिज़नेस लैब में शोध सहायक हैं।
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