येस बैंक: एक संकट का गहन विश्लेषण
- 25 मार्च, 2020
- दृष्टिकोण
भारतीय बैंकिंग क्षेत्र में हाल के वर्षों में सामने आई धोखाधड़ी और असफलताओं की पूरी श्रृंखला, बैंकिंग पर्यवेक्षण की कमजोरियों को दर्शाती है। इस पोस्ट में, पांडे और प्रियदर्शिनी यह तर्क देते हैं कि रिज़र्व बैंक को ऐसा मजबूत तंत्र लागू करने की ज़रूरत है जो खराब जोखिम वाले संस्कृति के साथ-साथ नियंत्रण एवं प्रशासन में विफलताओं का समाधान करे। अब शायद वह समय आ चुका है कि जब संकटग्रस्त वित्तीय फर्मों की समस्याओं के त्वरित समाधान हेतु एक समर्पित समाधान ढांचे को क्रियान्वित किया जाए ताकि वित्तीय तंत्र को आने वाली बाधाओं से बचाया जा सके।
भारतीय वित्तीय क्षेत्र के प्रमुख नियामक गलतियों को उजागर करने वाला सबसे हाल का मामला यस बैंक पर आया संकट है। यह एक बार फिर से बैंकों में प्रशासन, भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) की निगरानी, और असफल बैंकों के समाधान हेतु वर्तमान कार्यप्रणाली की मजबूती पर गंभीर प्रश्न उठा रहा है।
5 मार्च, 2020 को, आरबीआई के आवेदन पर, सरकार ने यस बैंक के अधिस्थ्गन को स्वीकृत दी, जिसे हालांकि शुरूआत में 30 दिनों के लिए नियोजित किया गया था लेकिन इसे 18 मार्च 2020 को हटा दिया गया था। जमाकर्ताओं और लेनदारों द्वारा निकासी को 50,000 रुपये (विशेष परिस्थितियों को छोड़कर जहां सीमा 5,00,000 रुपये तक बढ़ाई गई है) तक सीमित कर दिया गया था। आरबीआई ने बैंक को अधिक्रमित कर लिया और बैंक के लिए एक प्रभारी प्रशासक नियुक्त कर दिया।
आरबीआई ने एक पुनरुद्धार योजना प्रस्तावित की जिसमें इस बीमार बैंक की पुनर्निर्मित पूंजी में 49% (पूंजी उपलब्ध कराए जाने के बाद) की लघु हिस्सेदारी के माध्यम से पूंजी उपलब्ध कराया जाना शामिल था। निवेशक की 26% हिस्सेदारी तीन साल के लिए होनी चाहिए। पुनर्गठित बोर्ड का संचालन व्यावसायिक रूप से किए जाने की आशा है और इसमें निवेशक के नामिती शामिल होंगे। वर्तमान शेयरधारिता को काफी कम किया जाएगा। पुनर्गठन के बाद जमाओं, लेनदारों के अधिकारों, और बैंक की देनदारियों में किसी परिवर्तन की अपेक्षा नहीं है। तथापि, अतिरिक्त टियर-1 (अड़िश्नल टियर - एटी) बांड पूर्ण रूप से अवलेखित किए जाएंगे। सह-निवेशकों के रूप में भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) एचडीएफसी लिमिटेड, आईसीआईसीआई बैंक, एक्सिस बैंक और अन्य संस्थाओं के साथ प्रमुख निवेशक के रूप में उभरा है।
क्या इसे अलग तरह से संभाला जा सकता था?
सरकार और आरबीआई द्वारा अचानक उठाए गए इन कदमों ने बाजार को हिला दिया, शेयरधारकों को चौंका दिया, और जमाकर्ताओं तथा लेनदारों को असे परिस्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है जहां वे अपने खुद के पैसे तक भी नहीं पहुंच सकते। यस बैंक पर निर्भर उनके कई व्यावसायिक कार्य भी व्यापक रूप से प्रभावित हुए हैं और विशेष रूप से ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि डिजिटल भुगतान तंत्र बुरी तरह चरमरा गया था। एटी-1 बॉन्डधारक, जिनमें से अधिकांश म्यूचुअल फंड थे, पहले ही इस ड्राफ्ट स्कीम के विरुद्ध बॉम्बे हाई कोर्ट में याचिका दर्ज कर चुके हैं।
बैंक के अधिस्थगन की घोषणा करने और बैंक बोर्ड को अधिक्रमित करने के बाद से, आरबीआई और सरकार तेजी से आगे बढ़े हैं, परंतु इस पर लोगों की विपरीत राय हो सकती है। आरबीआई ने प्रशासन की बजाय बैंक की बिगड़ती वित्तीय स्थिति (पूंजी जुटाने में असमर्थता के कारण) और गंभीर चिंताओं को "बैंक और बाजार के नेतृत्व वाले पुनरुद्धार" पर "नियामक पुनर्गठन" को चुनने के कारणों के रूप में प्रस्तुत किया जो पहले ही सुविधा की उम्मीद कर रहा था। लेकिन आइए हम इसकी और जाँच करें।
बैंक की परेशानियाँ पिछले कई वर्षों से बढ़ रही थी। तत्कालीन मुख्य कार्यकारी अधिकारी (श्री कपूर) और सीएफओ ने वित्तीय वर्ष 2016 के लिए डूबत ऋणों को बड़े पैमाने पर कम दिखाया: बैंक ने शुरू में 749 करोड़ रुपये के डूबत ऋणों की सूचना दी जिसके अगले वर्ष में रुपये 4,926 करोड़ होने का खुलासा हुआ। फिर भी बोर्ड और आरबीआई ने उन्हें पद पर बने रहने की अनुमति दी। आरबीआई ने 2018 में श्री कपूर के सेवा विस्तार के लिए नामंज़ूरी दी। बोर्ड की नियुक्तियों में हितों के टकराव तथा आरबीआई के योग्यता संबंधी और उचित मानदंडों के उल्लंघन के कई उदाहरण सामने आए। बैंक ने वित्तीय वर्ष 2019 के लिए एक बार फिर से डूबत ऋणों को रु. 3,277 करोड़ और गैर निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) को रु. 978 करोड़ तक कम रिपोर्टिंग किया। इसने दीवान हाउसिंग फाइनेंस कॉरपोरेशन जैसी संकटग्रस्त फर्मों को ऋण दिया। बैंक सितंबर 2019 तक, 106% की दर पर ऋण जमा अनुपात के साथ अपने साधनों से परे ऋण दे रहा था। सितंबर 2018 में बैंक के एनपीए में अपने सकल अग्रिमों के 1.60% से सितंबर 2019 में 7.39% तक बढ़ गया था। पिछले एक साल में कई क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों द्वारा लगातार इसकी ग्रेड कम बताई जा रही है और यह पूंजी जुटाने में असमर्थ रहा है। पूंजी की पर्याप्तता से संबंधित नियामक मानदंडों को पूरा करने की बैंक की क्षमता गैर निष्पादित परिसंपत्तियों के साथ काफी प्रभावित हुई थी। बाजार मूल्य में भारी कमी आई थी। पिछले कुछ महीनों में ही जमाओं को भारी मात्रा में निकाल लिया गया और कई एफआईआई और म्यूचुअल फंड्स ने बैंक में अपनी हिस्सेदारी को आधा कर लिया। आरबीआई का नामिती भी 2019 की शुरुआत से बोर्ड में शामिल किया गया है।
अगर आरबीआई पहले कदम उठा लेता तो वर्तमान उपायों के कारण होने वाले व्यवधान से बचा जा सकता था। इसके बजाय, प्रशासन की इन महत्वपूर्ण विफलताओं और वर्षों से ज्ञात वित्तीय स्वास्थ्य के कुप्रबंधन के बावजूद बैंक को स्वयं इस गलती को सुधारने की स्वतंत्रता दी हुई थी।
केंद्रीय बैंक के पर्यवेक्षण में सुधार करना
एक नियामक के रूप में, आरबीआई बैंकों के पर्यवेक्षण का प्रभारी है। बैंकिंग विनियमन अधिनियम इस संबंध में आरबीआई को आवश्यक शक्तियां और विवेक प्रदान करता है। यह जनता और जमाकर्ताओं के हितों को सुरक्षित करने के लिए किसी बैंक के काम-काज में हस्तक्षेप कर सकता है और यह तय करता है कि वे हित कौन से हैं। उदाहरण के लिए, यह बोर्ड की कार्यवाही देखने के लिए पर्यवेक्षकों को नियुक्त कर सकता है, मुख्य कार्यकारी अधिकारियों सहित प्रबंधन के व्यक्तियों को हटा सकता है और उनके स्थानापन्न को नियुक्त कर सकता है। शेयरधारिता, मतदान अधिकार, बोर्ड नियुक्ति, प्रबंधन और समापन से संबंधित सभी मामले आरबीआई की नीतियों के अधीन हैं।
बैंकिंग क्षेत्र में हाल के वर्षों की असफलताएं पीएनबी (पंजाब नेशनल बैंक) घोटाले से शुरू होकर अब यस बैंक संकट के रूप में सामने आ रही हैं, हालांकि ये पर्यवेक्षण में कमजोरियों का संकेत देती हैं। एक प्रमुख मुद्दा यह है कि बैंकों को कई वर्षों तक अपनी डूबत परिसंपत्तियों को छिपाने की अनुमति दी गई थी। अमान्यता का निहितार्थ बैंकों द्वारा अपर्याप्त प्रावधान के रूप में है, जो बाद में उधार के मूल्य निर्धारण में गलत तरीके से परिलक्षित होता है। इसके कारण सूचना में असममितता आती है जो इस क्षेत्र की एक गलत तस्वीर प्रस्तुत करती है और निर्णय लेने में रुकावट डालती है। बैंकों में उत्पन्न होने वाली ये समस्याएं बैंकों के प्रकटीकरण मानदंडों के साथ-साथ आरबीआई की पर्यवेक्षी क्षमता में सुधार की आवश्यकता की ओर इशारा करती हैं। आरबीआई को ऐसा मजबूत तंत्र लागू करने की ज़रूरत है जो खराब जोखिम संस्कृति के साथ-साथ नियंत्रण एवं प्रशासन में विफलताओं का समाधान करे। इसके पर्यवेक्षण में किसी भी चूक के लिए जवाबदेही होना भी आवश्यक है।
यह मामला एक विशिष्ट समाधान तंत्र का है
वर्तमान वित्तीय विनियामक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण कमी यह है कि इसमें बैंकों के शीघ्र समाधान के लिए एक विशेष तंत्र का अभाव है। आरबीआई बैंकिंग नियामक के रूप में कार्य करता है और इसके पास बैंकों के समाधान के लिए सीमित शक्तियाँ भी हैं। हालांकि, सूक्ष्म-विवेकपूर्ण नियामक और एक समाधान प्राधिकरण की भूमिका में निहित विरोधाभास है। बैंकों के सूक्ष्म विवेकपूर्ण नियामक के रूप में, आरबीआई का संबंध बैंक विफलताओं की संभावना को कम करने से है। हालाँकि यह एक समाधान प्राधिकरण के उद्देश्य से विरोधाभासी है जिसे असफलता का शीघ्र निदान करना चाहिए और फर्म का समाधान करने के लिए तेज़ी से आगे बढ़ना चाहिए। इसमें होने वाली देरी के कारण संपत्ति के नाश, जमाकर्ताओं और अन्य हितधारकों के लिए कठिनाई, कारोबार रुकावट और यहां तक कि प्रणालीगत अस्थिरता के रूप में काफी लागत आ सकती है।
इस परिस्थिति में, एक समाधान प्राधिकरण यस बैंक की वित्तीय निगरानी कर सकती था, जल्दी कार्रवाई कर सकता था और निकासी पर रोक से बचा सकता था। यस बैंक के अधिस्थगन का वित्तीय प्रणाली के लिए व्यापक प्रभाव है। इससे सभी निजी बैंको पर स्थायी अविश्वास हो सकता है जिसके कारण सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों (पीएसबी) में जमाओं में भारी वृद्धि हो सकती है। एटी-1 बॉन्डों के अवलेखन से सामान्य रूप से बैंकों की धन जुटाने की क्षमता प्रभावित हो सकती है जो बदले में उधार लेने की लागतों में वृद्धि कर सकती है। इसके अलावा, दिवाला एवं शोधन अक्षमता कोड (आमतौर पर बड़े उधारदाताओं) के तहत लेनदार के नेतृत्व वाली प्रक्रिया ऐसी बैंकों के मामले में संभव नहीं है जिनके लेनदार इसी के कई जमाकर्ता हैं। इसलिए आरबीआई द्वारा विनियामक और समाधान कार्यों को अलग करना और बैंकों के लिए एक समर्पित समाधान प्राधिकरण स्थापित करना आवश्यक है।
समाधान प्राधिकरण को समाधान करने के लिए अधिक से अधिक विकल्पों के साथ सशक्त होना चाहिए। बैंकिंग विनियमन अधिनियम की धारा 45 अपर्याप्त है क्योंकि आरबीआई या तो मजबूत बैंकों पर कमजोर बैंकों को अपने अधिकार में लेने या उनके परिसमापन हेतु दबाव डाल सकता है। यस बैंक के लिए पुनर्निर्माण योजना भी तात्विक रूप से सार्वजनिक धन का उपयोग कर एक निजी बैंक को उबारने की है। यह उप-इष्टतम समाधान हैं। जब सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों को अशोध्य परिसंपत्तियों के साथ पुन: पूंजीकृत करने के लिए कहा जाता है तो नैतिक जोखिम और सार्वजनिक निधियों के साथ बचाव की एक निकट गारंटी के अतार्किक प्रोत्साहनों के अलावा (जिसमें नियामक पर्यवेक्षण में कमी के लिए भी प्रोत्साहन शामिल है क्योंकि बैंकों को किसी भी तरह से असफल होने की अनुमति नहीं दी जाएगी) सरकार के लिए राजकोषीय प्रभाव भी हैं। टॉक्सिक परिसंपत्तियों का निर्माण बैंकों की अपनी उधार उठाने की क्षमता को संभावित रूप से अर्थव्यवस्था-व्यापी, परिणामों के साथ प्रभावित करता है। दबाव में किया गया विलय/अधिग्रहण मजबूत व्यापार बुनियादी अवधारणाओं तथा तर्क को ऐसे विलय/अधिग्रहण का आधार बनाने की अनुमति नहीं देता है। परिसमापन अक्सर लंबा और महंगा होता है, और बाद के चरणों में लागू किया जाता है।
सरकार ने वित्तीय समाधान और जमा बीमा (एफआरडीआई) विधेयक को पेश करके इन दोषों को दूर करने का प्रयास किया। हालाँकि कुछ प्रावधानों (विशेषकर जमानत-खंड) के बारे में चिंताओं के कारण विधेयक को बाद में वापस ले लिया गया था। अब समय आ गया है कि सभी आशंकाओं को दूर कर इन सुधारों को फिर से लागू करें।
बैंकों की जिम्मेदारी
केंद्रीय बैंक भले पर्यवेक्षण के लिए जिम्मेदार है, बैंकों को अपने स्वयं के प्रशासन के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए। विश्वसनीयता, जवाबदेही स्थापित करने और पूंजी को आकर्षित करने के लिए मजबूत प्रशासन महत्वपूर्ण है। आरबीआई ने मई 2014 की अपनी रिपोर्ट में, डॉ.पी.जे.नायक की अध्यक्षता में एक समिति नियुक्ति की। इस समिति ने सार्वजनिक और निजी क्षेत्रों के बैंकों के प्रशासन को मजबूत करने के लिए कई सिफारिशें कीं। समिति द्वारा निजी बैंकों पर किए गए दो प्रेक्षण - स्वामित्व में बाधाएं और प्रबंधन क्षतिपूर्ति - वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक हैं। छोटे शेयरधारक फर्म के मामलों में कम रुचि लेते हैं और तदनुसार वे प्रबंधन को जांचने और जवाबदेह रखने के लिए कम अवसर प्रदान करते हैं। वरिष्ठ प्रबंधन के लिए प्रोत्साहन संरचनाएं मुआवजे के साथ लाभप्रदता को जोड़ती हैं, ऋण स्थायीकरण को प्रोत्साहित करती हैं, और बदले में, परिसंपत्तियों की गुणवत्ता और बैंकों में रिपोर्टिंग को प्रभावित करती हैं। समिति ने स्वतंत्रता और निष्पादन को बढ़ाने हेतु स्थायित्व, कठोर दंडों और बोर्डों के विविधीकरण का पता लगाने के लिए परिसंपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा की सिफारिश की।
कुछ सिफारिशों जैसे परिसंपत्ति गुणवत्ता की समीक्षा पर विचार किया गया। यद्यपि आरबीआई ने बाद में स्वामित्व की ऊपरी सीमा को शिथिल कर दिया है, फिर भी सुधार की गुंजाइश हो सकती है क्योंकि मानदंड अत्यधिक आदेशात्मक (5% से ऊपर के लिए आरबीआई के पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता है जो पूंजी तक पहुंच को प्रभावित कर सकता है) हैं। लेकिन अभी बहुत कुछ किया जाना बाकी है जिसमें बैंकों के भीतर प्रोत्साहन संरचनाओं की समीक्षा और आरबीआई में जवाबदेही ढांचे की समीक्षा शामिल है, जो कमजोर आंतरिक नियंत्रण, कमजोर पर्यवेक्षण और खराब परिणामों का कारण बनता है।
यस बैंक संकट ने पिछले काफी समय से लंबित इन सभी सुधारों को आरंभ करने का अवसर प्रदान किया है।
नोट्स:
- अतिरिक्त टीयर-1 एक प्रकार का असुरक्षित, स्थायी बांड है जिसे बैंक बेसल- III मानदंडों को पूरा करने हेतु अपने मुख्य पूंजी आधार मजबूत करने के लिए जारी करते हैं।
लेखक परिचय: राधिका पांडे नई दिल्ली स्थित नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी (एनआईपीएफ़पी) के मैक्रो-फाइनेंस ग्रुप में कंसल्टेंट हैं। डी प्रियदर्शनी एनआईपीएफ़पी के आर्थिक कार्य विभाग (वित्त मंत्रालय) के अनुसंधान कार्यक्रम में एक फेलो हैं।
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