गत कई वर्षों की ही भाँति शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) 2024 में भारत के लगभग सभी ग्रामीण जिलों से बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति, उनके पठन और अंकगणित के स्तर के बारे में रिपोर्ट प्रस्तुत की गई है। एएसईआर केन्द्र की निदेशक विलिमा वाधवा ने इस लेख में सरकारी और निजी स्कूलों में स्कूल नामांकन और शिक्षा के परिणामों में प्रमुख रुझानों पर चर्चा की है। अधिगम में हुए सुधार का श्रेय उन्होंने नई शिक्षा नीति में बुनियादी साक्षरता और अंक-ज्ञान पर दिए गए ध्यान को दिया है।
इस वर्ष की शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर 2024) में बच्चों की स्कूली शिक्षा की स्थिति, बुनियादी पठन और अंकगणित के स्तर के बारे में देश के लगभग सभी ग्रामीण जिलों से रिपोर्ट प्राप्त की गई है। एएसईआर ने वर्ष 2016 से एक नया चक्र शुरू किया, जिसके तहत प्रत्येक दो वर्षों के बाद राष्ट्रव्यापी 'बुनियादी’ एएसईआर रिपोर्ट बनाई जाने लगी। कोविड-19 महामारी के कारण वर्ष 2020 में यह चक्र बाधित हुआ जब कई स्थानों पर लगभग दो वर्षों तक स्कूल बंद रहे और 2020 व 2021 में आवाजाही गम्भीर रूप से प्रभावित हुई। वर्ष 2018 के चार साल बाद देश भर में किया गया एएसईआर 2022, शिक्षा क्षेत्र पर महामारी के प्रभाव पर उपलब्ध डेटा के बहुत कम स्रोतों में से एक था।
एएसईआर 2022 के दो प्रमुख निष्कर्ष थे। पहला यह कि स्कूलों में नामांकन के मोर्चे पर यह आशंका निराधार साबित हुई कि बच्चे, विशेष रूप से बड़े बच्चे, महामारी के कारण परिवारों पर आए वित्तीय कष्टों के कारण स्कूल छोड़ देंगे। वास्तव में, बड़े (15-16 वर्ष के) बच्चों की स्कूलों में नामांकन की दर लगातार बढ़ रही है और महामारी के दौरान भी ऐसा ही होता रहा। इसके अलावा, वर्तमान में नामांकित न होने वाले 6-14 वर्ष के बच्चों का अनुपात घट कर 1.6% रह गया है, जो वर्ष 2018 में पाए गए अनुपात का लगभग आधा है और निशुल्क एवं अनिवार्य बाल शिक्षा का अधिकार (आरटीई) अधिनियम 2009 लागू होने के बाद से एक दशक में सबसे कम है। हालांकि, वर्ष 2022 में नामांकन में हमने जो बड़ा बदलाव देखा, वह सरकारी स्कूलों में नामांकन में उछाल था जिसमें 2016 से लगातार गिरावट हो रही थी। सरकारी स्कूलों में नामांकित 6-14 वर्ष के बच्चों का अनुपात 2018 में 65.6% था, जो 2022 में बढ़कर 72.9% हो गया।
दूसरा, शिक्षा के मोर्चे पर एएसईआर 2022 में सरकारी और निजी दोनों स्कूलों में पढ़ने के मामले में बड़ी गिरावट नज़र आई। कक्षा-3 और 5 के बच्चों का पठन स्तर, जो 2014 और 2018 के बीच धीरे-धीरे बढ़ रहा था, वर्ष 2014 के स्तर से नीचे आ गया। हालांकि सीखने की क्षमता में कमी की उम्मीद थी, लेकिन फिर भी यह एक बड़ा झटका था। अंकगणित में अखिल भारतीय स्तर पर हानि हुई, लेकिन यह पढ़ने में हुई हानि की तुलना में बहुत कम थी।
उपरोक्त दोनो बड़े निष्कर्षों की कुछ अतिरिक्त विशेषताएं भी थीं, जैसा कि मैंने एएसईआर 2022 और 2020 की रिपोर्ट में लिखा था। दोनों मामलों में, एक डेटा, अर्थात् वर्ष 2022 का डेटा, एक प्रवृत्ति स्थापित करने के लिए अपर्याप्त था। महामारी के दौरान कई कम लागत वाले निजी स्कूल बंद हो गए, जिसके कारण सरकारी स्कूलों में नामांकन बढ़ गया होगा। इसके अलावा, महामारी से उत्पन्न वित्तीय तनाव के कारण माता-पिता अपने बच्चों को निःशुल्क सरकारी स्कूलों में भेजने पर मजबूर हुए होंगे, जो स्कूल बंद होने के दौरान सूखा राशन भी वितरित कर रहे थे। वर्ष 2022 में देश अभी भी महामारी के परिणामों से निपट रहा था और यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि एक अस्थाई या स्थाई बदलाव था।
इसी प्रकार से शिक्षा के मामले में वर्ष 2022 के अनुमानों की तुलना चार साल पहले के अनुमानों से की जा रही थी। वर्ष 2018 और 2022 के बीच, महामारी के कारण लगभग दो साल, 2020 और 2021 में स्कूल बंद रहे और लगभग एक साल के बाद बच्चे वर्ष 2021-22 में स्कूल लौटे। बीच में कोई डेटा न होने के कारण, एक बार फिर पूरे नुकसान का कारण महामारी को मानना मुश्किल था। सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 2020 में एक नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) लागू की गई, जिसमें पहली बार बुनियादी साक्षरता और अंक-ज्ञान (एफएलएन) पर ध्यान केन्द्रित किया गया। इस नीति में स्पष्ट रूप से एफएलएन कौशल के महत्व को मान्यता दी गई है तथा निपुण (समझ और अंकगणित के साथ पठन में दक्षता के लिए राष्ट्रीय पहल) भारत मिशन के अंतर्गत कक्षा 2/3 के अंत तक सार्वभौमिक एफएलएन प्राप्त करने के लिए लक्ष्य निर्धारित किए गए हैं। वर्ष 2021 की शुरुआत में ही, कई राज्यों ने प्राथमिक कक्षाओं में एफएलएन कौशल में सुधार के लिए विभिन्न कार्यक्रम शुरू किए। 2018 और 2022 के बीच कोई राष्ट्रव्यापी एएसईआर रिपोर्ट नहीं बनी थी ; एएसईआर के तहत क्षेत्र में वापस जाने के अवसरों की तलाश की गई और 2021 में तीन राज्यों- फरवरी 2021 में कर्नाटक, अक्टूबर 2021 में छत्तीसगढ़ और दिसंबर 2021 में पश्चिम बंगाल में प्रतिनिधि सर्वेक्षण किया जा सका। इन तीन राज्य-स्तरीय सर्वेक्षणों से सीखने के स्तरों का अनुमान मिल गया, जिसका उपयोग महामारी के दौरान सीखने के नुकसान की सीमा को समझने के लिए किया जा सकता है। इन सर्वेक्षणों ने दर्शाया कि तीनों राज्यों में सीखने के स्तर में 2018 और 2022 के बीच हुई हानि की तुलना में कहीं अधिक गिरावट आई थी। वास्तव में वर्ष 2021 और 2022 के बीच सुधार हुआ है, जो संभवतः एफएलएन कौशल को बढ़ावा देने के सरकार के प्रयासों से प्रेरित था।
इसलिए, एएसईआर 2024 के अनुमान कई कारणों से बेहद उपयोगी हैं। वे वर्ष 2022 के बाद एक और डेटा प्रदान करते हैं ताकि यह सत्यापित किया जा सके कि महामारी के बाद देखे गए परिवर्तनों ने प्रवृत्ति को बदल दिया है या देश पहले की प्रवृत्ति रेखा पर वापस आ गया है। शिक्षा के मोर्चे पर, राज्यों ने प्राथमिक विद्यालयों में बुनियादी शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए विभिन्न उपायों को आगे बढ़ाना जारी रखा है। यह देखते हुए कि एएसईआर मूल्याँकन अनिवार्य रूप से एक न्यूनतम स्तर का बुनियादी शिक्षण मूल्याँकन है, एएसईआर 2024 के डेटा से देश भर में निपुण भारत की प्रगति पर नज़र रखने में भी मदद मिलेगी।
नामांकन
आइए सबसे पहले नामांकन पर नज़र डालते हैं। शिक्षा का अधिकार अधिनियम 2009 के तहत 6-14 आयु वर्ग के बच्चों के लिए सार्वभौमिक स्कूल नामांकन का लक्ष्य अखिल भारतीय स्तर पर कमोबेश हासिल कर लिया गया है। इस आयु वर्ग के बच्चों का अनुपात जो वर्तमान में स्कूल में नामांकित नहीं हैं, 1.9% है (जो 2022 के 1.6% के आँकड़े से थोड़ा ही ऊपर है)। वर्ष 2010 में जब शिक्षा का अधिकार अधिनियम लागू हुआ, तब भी 7-10 आयु वर्ग के बच्चों का नामांकन 98% के करीब था, फिर भी बड़ी संख्या में बड़े आयु वर्ग के बच्चे स्कूल से बाहर थे। महामारी के बावजूद, वर्तमान में नामांकित नहीं होने वाले 11-14 वर्ष के बच्चों के अनुपात में गिरावट जारी है और वर्तमान में लगभग 2% है (जो वर्ष 2022 के 1.8% के आँकड़े से थोड़ा ही ऊपर है)। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि वर्ष 2010 में 15-16 वर्ष आयु वर्ग के बच्चों का एक बहुत बड़ा अनुपात 16.1% था, जो स्कूल में नामांकित नहीं था। भले ही यह आयु वर्ग शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत नहीं आता, लेकिन यह अनुपात भी लगातार कम हो रहा है तथा अब 7.9% पर आ गया है, जो वर्ष 2022 के 7.5% के आँकड़े से थोड़ा अधिक है। बड़े आयु समूहों के लिए ये बढ़ते नामांकन लड़कियों और लड़कों, दोनों के सन्दर्भ में देखे गए हैं। तथ्य यह है कि वर्तमान में नामांकित न होने वाले बच्चों का अनुपात वर्ष 2022 की तुलना में हर आयु वर्ग के लिए थोड़ा बढ़ा है जिससे यह संकेत मिलता है कि वर्ष 2022 में अर्थव्यवस्था अभी महामारी से बाहर आ रही थी और सिस्टम में अभी भी कुछ प्रवाहिता थी। दूसरी ओर, वर्ष 2024 के अनुमान महामारी के बाद की वास्तविकता का प्रतिबिंब हैं।
हालांकि कोविड-19 के दौरान सरकारी स्कूलों में नामांकन में जो वृद्धि देखी गई थी, वह उलट गई है। ग्रामीण भारत में वर्ष 2006 से निजी स्कूलों में नामांकन लगातार बढ़ रहा है। निजी स्कूलों में नामांकित 6-14 वर्ष के बच्चों का अनुपात 2006 में 18.7% था, जो 2014 में बढ़ कर 30.8% हो गया और 2018 में भी उसी स्तर पर बना रहा। महामारी के वर्षों के दौरान, सरकारी स्कूलों में नामांकन में बड़ा उछाल आया और सरकारी स्कूलों में नामांकित 6-14 वर्ष आयु के बच्चों का अनुपात 2018 के 65.6% से बढ़ कर 2022 में 72.9% हो गया। यह संख्या 2024 में वापस 66.8% पर लौट आई। वर्ष 2018 के स्तर पर लगभग पूर्ण वापसी सभी कक्षाओं के साथ-साथ लिंग के आधार पर भी पाई गई है, और यह विशेष रूप से आश्चर्यजनक नहीं है, क्योंकि अर्थव्यवस्था अन्य क्षेत्रों में भी ठीक हो गई है।
संक्षेप में कहें तो, एएसईआर 2024 स्कूलों में नामांकन के मोर्चे पर अच्छी खबर लेकर आया है। अधिक आयु वर्ग के स्कूल न जाने वाले बच्चों की संख्या में लगातार गिरावट आ रही थी, जो 2018 के स्तर से काफी नीचे है, हालांकि वर्ष 2022 के अनुमानों से थोड़ी अधिक है, और सरकारी व निजी स्कूलों में नामांकन 2018 के स्तर पर वापस आ गया है। इससे इस बात को बल मिलता है कि कोविड के वर्षों के दौरान सरकारी स्कूलों में नामांकन में वृद्धि पसंद के बजाय आवश्यकता से अधिक प्रेरित थी।
शिक्षा
अब शिक्षा की बात करें तो इससे भी अच्छी खबर है। हम न केवल महामारी से प्रेरित शिक्षा की हानि से पूरी तरह उबरते हुए देख रहे हैं, बल्कि कुछ मामलों में प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई का स्तर पहले के स्तर से बेहतर है। अखिल भारतीय स्तर पर, कक्षा-3 में पढ़ने वाले ऐसे बच्चों का अनुपात, जो कक्षा-2 के स्तर पर पढ़ने में सक्षम हैं, वर्ष 2014 में 23.6% था जो धीरे-धीरे बढ़ कर 2018 में 27.3% हो गया और फिर 2022 में भारी गिरावट के साथ 20.5% हो गया। दो साल बाद, कक्षा-3 के बच्चों का अनुपात 27.1% पर धाराप्रवाह पढ़ने के साथ गिरावट से पूरी तरह से उबर चुका है। हम कक्षा-5 में भी ऐसी ही स्थिति देखते हैं, जहाँ कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ सकने वाले बच्चों का अनुपात 2014 के 48% से बढ़ कर 2018 में 50.5% हो गया, फिर 2022 में गिरकर 42.8% हो गया, और अंततः वर्ष 2024 में 48.8% पर पहुंच गया।
अंकगणित में, वर्ष 2022 में महामारी के बाद की हानि, पढ़ने की तुलना में कम थी। कक्षा-3 में कम से कम घटाव1 करने में सक्षम बच्चों का अनुपात वर्ष 2014 के 25.4% से बढ़ कर 2018 में 28.2% हो गया और 2022 में गिर कर 25.9% हो गया– यह 3 प्रतिशत अंकों से भी कम की गिरावट है, जो कक्षा-3 के बच्चों की पठन क्षमता में देखी गई 7 प्रतिशत अंकों की हानि से बहुत कम है। वर्ष 2024 में यह अनुपात 33.7% है, जो कि रिकवरी से कहीं अधिक है और पिछले दशक में हमने जो देखा है उससे भी अधिक है। इसी प्रकार, कक्षा-5 में कम से कम भाग2 करने में सक्षम बच्चों का अनुपात वर्ष 2014 के 26.1% से बढ़ कर 2018 में 27.9% हो गया और फिर 2022 में घट कर 25.6% रह गया। वर्ष 2024 के लिए यह आँकड़ा 30.7% है, जो कि पिछले कई वर्षों के स्तर से काफी अधिक है।
इस सुधार के बारे में उल्लेखनीय बात यह है कि यह पूरी तरह से सरकारी स्कूलों के कारण हुआ है। ग्रामीण भारत में, सरकारी स्कूल हमेशा शिक्षा के स्तर के मामले में निजी स्कूलों से पीछे रहे हैं। सरकारी और निजी स्कूलों के बीच शिक्षा के अंतर से संबंधित एक बड़ा शोध साहित्य है, जो इस तथ्य को उजागर करता है कि दोनों में शिक्षा के स्तर की तुलना करना 'स्व-चयन' प्रभाव के कारण भ्रामक है। निजी स्कूलों में जाने वाले बच्चे अधिक संपन्न घरों से आते हैं और उनके माता-पिता अधिक शिक्षित होते हैं– पारिवारिक विशेषताएँ जो शिक्षा से सकारात्मक रूप से संबंधित हैं। इसलिए, शिक्षा के स्तर में पूरे अंतर का कारण स्कूल के प्रभाव को मानना सही नहीं है। फिर भी, इन पारिवारिक विशेषताओं को ‘नियंत्रित’ करने के बाद भी, निजी स्कूलों को सरकारी स्कूलों की तुलना में शिक्षा में बढ़त हासिल है। एएसईआर 2024 के आँकड़ों में हम देखते हैं कि सुधार वास्तव में सरकारी स्कूलों में हुआ है, निजी स्कूलों में शिक्षा का स्तर अभी भी उनके महामारी-पूर्व स्तरों से नीचे ही है। उदाहरण के लिए, वर्ष 2018 में सरकारी स्कूलों में कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ सकने वाले कक्षा-3 के बच्चों का अनुपात 20.9% था, जबकि निजी स्कूलों में यह अनुपात 40.6% था (तालिका-1)। वर्ष 2022 में, सभी स्कूलों में शिक्षा के स्तर में गिरावट आई, जबकि निजी स्कूलों में गिरावट सरकारी स्कूलों की तुलना में कहीं अधिक थी, हालांकि निजी स्कूलों का लाभ वही रहा, यानी सरकारी स्कूलों के स्तर से दोगुना। वर्ष 2024 में सरकारी स्कूलों में कक्षा-2 के स्तर पर पढ़ने में सक्षम कक्षा-3 में बच्चों का अनुपात वर्ष 2022 के 16.3% से बढ़ कर 23.4% हो गया, जो 2018 के स्तर को पार कर गया, जबकि निजी स्कूलों में सुधार अधिक धीमा था– यह 33.1% से 35.5% तक रहा, जो वर्ष 2018 में महामारी-पूर्व स्तर से कम था। परिणामस्वरूप, शिक्षा का अंतर वर्ष 2018 में 20 प्रतिशत अंक से घटकर 12 प्रतिशत अंक हो गया। कक्षा-5 में शिक्षा के स्तर में कुछ इसी तरह की स्थिति है।
अंकगणित में सरकारी व निजी, दोनों स्कूलों में शिक्षा के स्तर में बड़ा उछाल देखा गया है और वर्ष 2024 का स्तर 10 साल पहले के स्तर को पार कर गया है (तालिका-2)। हालांकि, यहाँ भी सरकारी स्कूलों में प्रगति निजी स्कूलों की तुलना में कहीं अधिक रही है। उदाहरण के लिए, 2022 और 2024 के बीच, कक्षा-3 में घटाव करने में सक्षम बच्चों का अनुपात 36.6% बढ़ा, जो सरकारी स्कूलों में 20.2% से 27.6% तक हुआ, जबकि निजी स्कूलों में यह अनुपात 10.2% था।
तालिका-1. स्कूल के प्रकार के अनुसार पठन स्तर : अखिल भारतीय (ग्रामीण) 2014-2024
तालिका-2. स्कूल प्रकार के अनुसार अंकगणित का स्तर : अखिल भारतीय (ग्रामीण) 2014-2024
बुनियादी कौशल पर ध्यान केन्द्रित करना
शिक्षा के स्तर में अचानक सुधार किस वजह से हुआ है? अखिल भारतीय अनुमानों में परिवर्तन आमतौर पर धीमी गति से होता है और शिक्षा का स्तर जो वर्ष 2010 तक स्थिर था, उसके बाद थोड़ा कम हुआ, केवल वर्ष 2014 और 2018 के बीच उसमें धीरे-धीरे सुधार हुआ है (तालिका-1 और 2)। जब से एएसईआर बुनियादी पठन और अंकगणित पर डेटा प्रस्तुत कर रहा है, हमने पिछले 20 वर्षों में इस परिमाण में सुधार नहीं देखा है। ऐसा लगता है कि सब कुछ एनईपी 2020 और इसके बुनियादी कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने की ओर इशारा करता है। हालांकि यह पहली बार नहीं है कि शिक्षा में सुधार के लिए कार्यक्रम शुरू किए गए हैं, लेकिन इसमें अंतर यह है कि पहली बार बुनियादी शिक्षा के परिणामों को सुधारने के लिए एक व्यवस्थित राष्ट्रीय प्रयास किया गया है। आम तौर पर पिछले वर्षों में, स्कूल के शिक्षक "पाठ्यक्रम को पूरा करने" के लिए काम करते रहे। परिणामस्वरूप, वे एक ऐसी कक्षा में “कक्षा के शीर्ष” छात्रों को पढ़ाने लगे जो कक्षा शिक्षा के स्तर और जनसांख्यिकीय विशेषताओं के सन्दर्भ में विविधतापूर्ण थी। पहली बार निपुण भारत के तहत, देश भर के शिक्षकों को बुनियादी कौशल पर ध्यान केन्द्रित करने के लिए एक अलग दिशा दी गई है।
एफएलएन की ओर यह कदम एएसईआर 2024 के आँकड़ों में भी परिलक्षित होता है। सर्वेक्षण के एक भाग के रूप में, एएसईआर के क्षेत्रीय अन्वेषक नामांकन, उपस्थिति और स्कूल सुविधाओं संबंधी जानकारी रिकॉर्ड करने के लिए चयनित गांव के एक सरकारी स्कूल का दौरा करते हैं। इस वर्ष हमने यह भी पूछा कि क्या स्कूलों को एफएलएन गतिविधियों को लागू करने के लिए सरकार से कोई निर्देश मिला है और क्या शिक्षकों को एफएलएन प्रशिक्षण प्राप्त हुआ है। अखिल भारतीय स्तर पर, 83% स्कूलों ने जवाब दिया कि उन्हें ऐसा निर्देश मिला है और 78% स्कूलों ने कहा कि स्कूल में कम से कम एक शिक्षक को एफएलएन पर प्रशिक्षित किया गया है। इसके अलावा, 75% को एफएलएन गतिविधियों के लिए शिक्षण सामग्री भी मिली थी।
हालांकि, अखिल भारतीय स्तर के ये अनुमान राज्यों के स्तर के भारी अंतरों को छिपा देते हैं। जब अखिल भारतीय स्तर पर बहुत अधिक बदलाव नहीं होता है, तब भी राज्य स्तर पर दोनों दिशाओं में उल्लेखनीय परिवर्तन देखे जाते हैं। इस वर्ष भी, कुछ राज्यों ने बहुत अच्छा प्रदर्शन किया है और महामारी से पहले के अपने शिक्षा के स्तर को पार कर लिया है, जबकि अन्य अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाए हैं। फिर भी, लगभग सभी राज्यों ने वर्ष 2022 की तुलना में सुधार दर्शाया है। वास्तव में, उत्तर प्रदेश (यूपी), बिहार, मध्य प्रदेश और तमिलनाडु जैसे कम प्रदर्शन करने वाले राज्यों ने उल्लेखनीय सुधार किया है। उदाहरण के लिए, उत्तर प्रदेश के मामले पर विचार करें तो 2014 में सरकारी स्कूल के कक्षा-3 के केवल 6% बच्चे कक्षा-2 के स्तर का पाठ पढ़ सकते थे और यह अनुपात 2018 में धीरे-धीरे बढ़ कर 12.3% हो गया। उत्तर प्रदेश उन कुछ राज्यों में से एक है, जहाँ वर्ष 2022 में कक्षा-3 के सन्दर्भ में पढ़ाई में कोई कमी नहीं आई है और यह अनुपात बढ़ कर 16.4% हो गया है। 2024 में, कक्षा-2 के स्तर पर पढ़ने में सक्षम सरकारी स्कूल के कक्षा-3 के बच्चों का अनुपात 27.9% है। इस तरह के सुधार को सिर्फ़ सुधार नहीं कहा जा सकता, यह एफएलएन क्षमताओं को बेहतर बनाने की दिशा में गम्भीर ध्यान और किए जा रहे प्रयास को दर्शाता है। इस प्रयास का परिणाम अंकगणित में तथा कक्षा-5 में शिक्षा के स्तर में भी देखने को मिला है। उत्तर प्रदेश के सरकारी स्कूलों में सीखने का स्तर पिछले 20 वर्षों में कभी इतना अधिक नहीं रहा। दिलचस्प बात यह है कि उत्तर प्रदेश जो हमेशा से स्कूलों में कम उपस्थिति वाला राज्य रहा है– वर्ष 2010 से इसके प्राथमिक विद्यालयों में उपस्थिति 60% से कम रही है और इस साल उपस्थिति में 71.4% की वृद्धि देखी गई। स्पष्ट रूप से, उत्तर प्रदेश के स्कूलों में कुछ ऐसा हो रहा है जिससे बच्चे स्कूल आना और सीखना चाह रहे हैं।
उत्तर प्रदेश का मामला उल्लेखनीय है, लेकिन सफलता की कई अन्य कहानियाँ भी हैं। हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र जैसे उच्च प्रदर्शन करने वाले राज्य, जहाँ सरकारी स्कूलों में कक्षा-3 के लगभग आधे बच्चे वर्ष 2018 में कक्षा-2 के स्तर पर पढ़ सकते थे, वर्ष 2022 में इस अनुपात में आधी कमी देखी गई। इन राज्यों ने महामारी के कारण हुई शिक्षा की हानि की भरपाई करते हुए बड़ी शिक्षा की क्षमता भी हासिल की। यह स्पष्ट है कि पहली बार पूरा देश प्राथमिक स्कूल के बच्चों में बुनियादी साक्षरता और अंक-ज्ञान में सुधार लाने के एक मिशन के पीछे एकजुट हो रहा है।
भारत एक अत्यंत विविधतापूर्ण देश है जहाँ राज्यों में बहुत भिन्नता व्याप्त है। पहली बार, एनईपी ने पूरे देश के लिए स्पष्ट एफएलएन लक्ष्य निर्धारित किए हैं और राज्य इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अलग-अलग रास्ते खोज रहे हैं। एएसईआर 2024 के अनुमान इन प्रयासों की कहानी को सामने लाते हैं, यह महज़ सुधार की कहानी नहीं है!
इस लेख का एक संस्करण सबसे पहले एएसईआर 2024 रिपोर्ट में छपा था।
टिप्पणियाँ :
- उधार के साथ 2-अंकीय संख्यात्मक घटाव समस्या
- 3-अंकीय बटे 1-अंकीय संख्यात्मक विभाजन समस्या
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : डॉ. विलिमा वाधवा एएसईआर सेंटर की निदेशिका हैं। वे 2005 में एएसईआर की स्थापना के समय से ही इससे जुड़ी हुई हैं। डॉ. वाधवा ने दिल्ली विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में ऑनर्स के साथ स्नातक, दिल्ली विश्वविद्यालय और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए और कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में पीएचडी किया है। डॉ. वाधवा के कई लेख प्रकाशित हुए और वे कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय (इरविन) और भारतीय सांख्यिकी संस्थान (नई दिल्ली) में सांख्यिकी और अर्थमिति पढ़ाती हैं।
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