मुद्रा तथा वित्त

वज़ीरएक्स : घाटे का समाजीकरण और वित्तीय विनियमन की आवश्यकता

  • Blog Post Date 05 दिसंबर, 2024
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Nipuna Varman

National Institute of Public Finance and Policy

nipuna.varman@nipfp.org.in

क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज वज़ीरएक्स को हाल ही में एक सुरक्षा सेंध का सामना करना पड़ा, जिसके कारण इसके उपयोगकर्ताओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा। निपुणा वर्मन ने इस लेख में, ‘घाटे का समाजीकरण’ रिकवरी योजना का मूल्याँकन किया है। उन्होंने शुरूआती नई योजना रिकवरी योजना की तुलना सरकार द्वारा बैंकों को दी जाने वाली सहायता से की है और भारत में डिजिटल परिसंपत्तियों के विनियमन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।

भारत के प्रमुख क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंजों में से एक, वज़ीरएक्स को हाल ही में इसकी सुरक्षा में लगी एक बड़ी सेंध का सामना करना पड़ा, जिसके परिणामस्वरूप 23 लाख अमेरिकी डॉलर का नुकसान हुआ। यह भारत के किसी भी क्रिप्टोकरेंसी एक्सचेंज में लगी सबसे बड़ी सुरक्षा सेंध है। जवाब में, वज़ीरएक्स ने पुलिस में शिकायत दर्ज की और वित्त मंत्रालय के तहत वित्तीय खुफिया इकाई (एफआईयू) और इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत भारतीय कंप्यूटर आपातकालीन प्रतिक्रिया दल (सर्ट-इन) को घटना की सूचना दी।

इसके अतिरिक्त, फर्म ने उपयोगकर्ता व्यवधान को कम करने के लिए प्रारंभिक रूप से एक रिकवरी योजना का प्रस्ताव रखा था। इस योजना के अनुसार, सभी उपयोगकर्ता (चोरी से प्रभावित नहीं होने वाले सहित) अपनी होल्डिंग्स पर 45% ‘हेयरकट’ लेंगे। अर्थात प्रत्येक उपयोगकर्ता की होल्डिंग का 45% 'लॉक' हो जाएगा जिसे वे न निकाल पाएंगे और न ही उसका व्यापार कर पाएंगे। शेष 55% के लिए, उपयोगकर्ताओं को दो विकल्प दिए गए : पहला, वे अपनी क्रिप्टो संपत्तियों का व्यापार और होल्ड कर सकते हैं लेकिन, उन्हें निकाल नहीं सकते हैं- इससे उन्हें रिकवरी प्रक्रिया में प्राथमिकता मिलेगी। दूसरा, जहाँ उपयोगकर्ता अपनी संपत्ति का व्यापार और उसे निकाल सकते हैं, लेकिन वे पुनर्प्राप्ति प्रक्रिया में उन्हें कम प्राथमिकता मिलेगी। वज़ीरएक्स ने कहा कि इस दृष्टिकोण का उद्देश्य साइबर हमले के कारण हुए नुकसान से 'सामाजिक रूप से निपटना’ है। इस प्रक्रिया में फर्म और उसके शेयरधारकों को कोई नुकसान नहीं उठाना था, बल्कि उसे सभी उपयोगकर्ताओं के बीच समान रूप से वितरित किया जाना था।

इस निर्णय की उपभोक्ता कल्याण से पहले व्यावसायिक हितों को प्राथमिकता देने के लिए उद्योग जगत के लीडरों ने काफी आलोचना की। फर्म ने स्पष्ट किया था कि प्रस्तावित दृष्टिकोण प्रारंभिक है और उपयोगकर्ताओं से प्राप्त फीडबैक के अधीन है। इसलिए, उपयोगकर्ताओं के विरोध के चलते इस योजना को छोड़ दिया गया था। हाल ही में, फर्म ने पुनर्गठन का फैसला किया है और वह पूंजी निवेश के लिए एक संकटमोचक दोस्त (व्हाइट नाइट)1 की तलाश में है। इस रणनीति में उपयोगकर्ताओं के साथ लाभ साझा करना और निकासी की अनुमति देना शामिल होगा।

‘घाटे का समाजीकरण’ योजना वापस लिए जाने के बावजूद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह योजना मुद्दे के दो पहलुओं पर ध्यान केन्द्रित करती है- पहला, उपयोगकर्ताओं पर घाटे का आरोपण और दूसरा, डिजिटल संपत्ति स्थिति का विनियमन।

हानि का समाजीकरण

‘लाभ का निजीकरण और हानि का समाजीकरण’ से तात्पर्य उस प्रथा से है जिसमें किसी व्यवसाय से होने वाले लाभ को शेयरधारकों में वितरित किया जाता है, जबकि होने वाले घाटे के लिए जनता को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है। हानि के समाजीकरण में आम तौर पर एक सरकारी कार्रवाई शामिल होती है, जिसमें करदाता किसी फर्म के नुकसान को अवशोषित करते हैं। ऐसा सरकारी आर्थिक सहायता कार्यक्रमों या नियामक कार्रवाइयों के माध्यम से हो सकता है। वज़ीरएक्स के मामले में, सरकारी हस्तक्षेप का पहलू नहीं है और घाटे को करदाताओं द्वारा नहीं, बल्कि उपयोगकर्ताओं द्वारा वहन किए जाने का प्रस्ताव किया गया है। इसलिए, वज़ीरएक्स का प्रस्ताव पूरी तरह से हानि के समाजीकरण की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता। इस शब्द का इस्तेमाल अतीत में बिटफ़ाइनेक्स जैसे अन्य क्रिप्टो एक्सचेंजों द्वारा की गई समान कार्रवाइयों का वर्णन करने के लिए किया गया है। वैचारिक रूप से, इस सन्दर्भ में हानि का समाजीकरण दो तरीकों से पारम्परिक परिभाषा से मेल खाता है। पहला, फर्म और शेयरधारक किसी भी नुकसान को वहन नहीं करते। दूसरा, नुकसान व्यापक समुदाय के बीच समान रूप से वितरित किया जाता है।

सैद्धांतिक रूप से अधिकांश क्रिप्टो एक्सचेंज एक विकेंद्रीकृत और स्व-विनियमित वातावरण में कार्य करते हैं। इसलिए, सरकारी हस्तक्षेप सीमित होता है और क्रिप्टो एक्सचेंज खुद ही उपयोगकर्ताओं के बीच नुकसान को सामाजिक बनाने की शक्ति रखता है। इस प्रकार, एक्सचेंज की भूमिका निजी ढाँचे के भीतर, शक्ति की गतिशीलता को दर्शाती है।

वज़ीरएक्स के प्रस्ताव और बैंक की आर्थिक 'बेलआउट' सहायता के बीच एक समरूपता है, जिसमें सरकार एक असफल वित्तीय संस्थान को वित्तीय सहायता प्रदान करती है और तर्क यह है कि ऐसी सहायता करदाताओं के पैसे के माध्यम से की जाती है। दोनों मामलों में, नुकसान फर्म या बैंक द्वारा नहीं, बल्कि उन संस्थाओं द्वारा वहन किया जाता है जो फर्म के निर्णय लेने की प्रक्रिया में भाग नहीं लेते हैं।

बेलआउट के लिए तर्क यह है कि इस तरह के हस्तक्षेप से वित्तीय अस्थिरता को रोका जा सकता है, जिसमें करदाताओं के लिए अस्थिरता की लागत अधिक हो सकती है। दिलचस्प बात यह है कि वज़ीरएक्स के सह-संस्थापक निश्चल शेट्टी ने भी बताया था कि अगर घाटे का समाजीकरण योजना न हो तो उल्लंघन का दूसरा संभावित जवाब कानूनी सहारा लेना होता। उन्होंने तर्क दिया था कि कानूनी तरीका बहुत समय लगने वाला हो सकता है और उसमें उपयोगकर्ताओं को बहुत कम या शायद कोई वसूली न मिल पाए।

घाटे का समाजीकरण की सबसे महत्वपूर्ण आलोचनाओं में से एक यह है कि यह एक 'नैतिक जोखिम' पैदा करता है। जब ज़िम्मेदार पक्ष नुकसान की लागत वहन नहीं करता है तो यह एक विकृत प्रोत्साहन की संरचना करता है। संस्था को अधिक जोखिम उठाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है, जिससे जनता पर संभावित बोझ और बढ़ जाता है। वर्ष 2008 के वैश्विक वित्तीय संकट के बाद, उन संस्थाओं के बारे में चर्चा बढ़ गई जो 'विफल होने की दृष्टि से बहुत बड़ी हैं' और ऐसे संकटों को रोकने के लिए देशों द्वारा अपनाई जाने वाली प्रथाओं या बेस्ट प्रक्टिसेज़ के बारे में भी चर्चा हुई। प्रतिक्रिया स्वरूप, 'बेल-इन' की अवधारणा शुरू की गई, जिसके तहत किसी फर्म द्वारा उठाए गए हानि की भरपाई का भार उसके शेयरधारकों और लेनदारों पर डाला गया। इस प्रकार, इसका उद्देश्य नैतिक जोखिम के मुद्दे को समाप्त करना था।

पिछले कुछ वर्षों में 'बेल-इन' की अवधारणा ने लोकप्रियता हासिल की है। वर्ष 2011 में, वित्तीय स्थिरता बोर्ड (एफएसबी) ने 'वित्तीय संस्थानों के लिए प्रभावी समाधान व्यवस्थाओं की प्रमुख विशेषताएं' प्रकाशित की, जिसमें वित्तीय संस्थानों से संबंधित मामलों के व्यवस्थित समाधान के लिए एक फ्रेमवर्क स्थापित करने के लिए सर्वोत्तम प्रथाओं को निर्धारित किया गया। बेल-इन एफएसबी द्वारा मान्यता प्राप्त ‘प्रमुख विशेषताओं’ में से एक है।

बेल-आउट (सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता) से बेल-इन (शेयरधारकों और लेनदारों द्वारा उठाया जाने वाला नुकसान) की बातचीत में बदलाव यह दर्शाता है कि उपभोक्ता निधियों से संबंधित कंपनियों को वित्तीय स्थिरता और उपभोक्ता संरक्षण सुनिश्चित करने के लिए कैसे प्रोत्साहित किया जा सकता है।

वज़ीरएक्स के मामले में, सह-संस्थापक ने कहा कि फ़र्म द्वारा उपयोगकर्ता निधियों का बीमा नहीं किया गया था। क्रिप्टो एक्सचेंजों के लिए उपयोगकर्ताओं के फंड का बीमा करना अक्सर मुश्किल होता है क्योंकि बीमाकर्ता इन परिसंपत्तियों से जुड़े जोखिम का आकलन करने में असमर्थ होते हैं। क्रिप्टो एक्सचेंजों के लिए बीमा निधि बनाए रखने की कोई कानूनी आवश्यकता भी नहीं है। दिलचस्प बात यह है कि एक अन्य भारतीय क्रिप्टो एक्सचेंज, कॉइनस्विच ने कहा है कि फ़र्म द्वारा रखी गई क्रिप्टो संपत्तियाँ कस्टोडियल वॉलेट में रखी गई हैं जिनका बीमा 'प्रतिष्ठित प्रदाताओं' द्वारा किया जाता है।

फर्म द्वारा ज़िम्मेदारी न लेने से यह संकेत मिलता है कि हानि को सामाजिक बनाने की रणनीति फर्म को न केवल सावधानी बरतने से हतोत्साहित करती है, बल्कि वसूली के प्रयास करने से भी रोकती है, क्योंकि वसूली गई धनराशि फर्म या उसके शेयरधारकों की नहीं होगी। इसलिए, साइबर हमले का बोझ उपयोगकर्ताओं पर ही पड़ता है। यह घटना दर्शाती है कि विकेंद्रीकरण और इक्विटी के महत्व पर ज़ोर देकर खुद को पारम्परिक फ्रेमवर्क से अलग रखने वाली वित्तीय प्रणाली, अभी भी उपभोक्ताओं पर उनकी खुद की गलती के बिना नुकसान और दंड लगा सकती है। ऐसी प्रणाली को नियंत्रित करने वाले किसी भी नियामक फ्रेमवर्क की कमी उपभोक्ताओं के लिए खतरनाक है और इससे अकुशल परिणाम हो सकते हैं।

नियामक फ्रेमवर्क की आवश्यकता

ध्यान देने योग्य है कि भारत में डिजिटल परिसंपत्तियों का विनियमन अभी शुरुआती चरण में है। हालाँकि देश में इस सम्बन्ध में कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन डिजिटल परिसंपत्तियों को शामिल करने के लिए अन्य कानूनों का दायरा बढ़ाया गया है। उदाहरण के लिए, धन शोधन निवारण अधिनियम 2002 (पीएमएलए) में डिजिटल परिसंपत्तियों से संबंधित लेन-देन शामिल हैं और आयकर अधिनियम 1961 डिजिटल परिसंपत्तियों पर 30% कर लगाता है तथा ऐसी परिसंपत्तियों की बिक्री पर, स्रोत पर, 1% कर कटौती (टीडीएस) लगाता है। वर्ष 2023 में भारत ने अपनी जी20 अध्यक्षता के तहत, डिजिटल परिसंपत्तियों के लिए वैश्विक रूप से संरेखित नियामक ढाँचे के पक्ष में अपने विचार प्रस्तुत किए। परिणामस्वरूप, भारत ने अपनी अध्यक्षीय टिप्पणी के तहत 'क्रिप्टो परिसंपत्तियों के लिए वैश्विक फ्रेमवर्क स्थापित करने के रोडमैप' के लिए एक इनपुट के रूप में वित्तीय कार्रवाई कार्य बल, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) और एफएसबी द्वारा दिए गए दिशानिर्देशों के साथ अपनी सहमति व्यक्त की।

हाल ही में, यह बताया गया कि भारतीय प्रतिभूति विनिमय बोर्ड (सेबी) ने कई नियामकों को क्रिप्टोकरेंसी के व्यापार की निगरानी करने की सिफारिश की है। दूसरी ओर, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) क्रिप्टो लेनदेन के सम्बन्ध में बैंकों और अन्य संस्थाओं पर सख्त नियंत्रण लगाता है, जो यह दर्शाता है कि वे इस क्षेत्र की वैधता के पक्ष में नहीं हैं। इससे भारत की नीति और नियामक रुख अस्पष्ट हो जाता है।

वज़ीरएक्स का मामला यह स्पष्ट करता है कि डिजिटल संपत्ति क्षेत्र में एक स्पष्ट नीति और नियामक रुख की आवश्यकता है। विनियमन की कमी ने उपभोक्ताओं को इस क्षेत्र में अपना पैसा निवेश करने से नहीं रोका है। वैश्विक स्तर पर साइबर हमलों और क्रिप्टोकरेंसी की चोरी के मामले बढ़ रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप उपभोक्ताओं को प्रभावी समाधान के बिना नुकसान उठाना पड़ रहा है। इसलिए, उपभोक्ताओं को कई जोखिमों का सामना करना पड़ता है। विनियामक अनिश्चितता और डिजिटल परिसंपत्ति क्षेत्र की बढ़ती प्रासंगिकता के मद्देनजर, उपभोक्ता संरक्षण को प्राथमिकता देना महत्वपूर्ण है।

इस लेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के अपने हैं और रूरी नहीं कि वे आई4आई संपादकीय बोर्ड के विचारों को प्रतिबिंबित करें।

टिप्पणी :

  1. व्हाइट-नाइट निवेशक एक ऐसा व्यक्ति या निगम है जो एक दोस्ताना निवेशक है और लक्षित कम्पनी के साथ सहयोग करने का लक्ष्य रखता है। आम तौर पर, कंपनियां किसी भी शत्रुतापूर्ण अधिग्रहण को रोकने के लिए ऐसे निवेशकों की तलाश करती हैं। 

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : निपुणा वर्मन नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक फाइनेंस एंड पॉलिसी, नई दिल्ली में रिसर्च फेलो हैं। रिसर्च फेलो के तौर पर निपुणा वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग को शोध सहायता प्रदान करती हैं। उनका काम मुख्य रूप से वित्तीय क्षेत्र के सुधारों पर केन्द्रित है, जिसमें विनियामक ढाँचे और उपभोक्ता संरक्षण पर मुख्य हैं। 

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