अनौपचारिक उद्यमों के विकास को सुविधाजनक बनाने की दिशा में बड़ी फर्मों के साथ उनके उप-अनुबंध लिंकेज को महत्वपूर्ण माना गया है। इस लेख में वर्ष 2001-2016 के दौरान भारतीय अनौपचारिक विनिर्माण से संबंधित राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के चार दौरों के आँकड़ों का उपयोग कर के अनौपचारिक, परिवार-आधारित घरेलू उद्यमों के लिए उप-अनुबंध सम्बन्धों के स्वरूप और पैटर्न की जाँच की गई। यह पाया गया कि उप-अनुबंध लिंकेज अनौपचारिक फर्मों के विकास, विस्तार व प्रसार को सुविधाजनक बनाने के लिए अपेक्षित गतिशील प्रकार से बिल्कुल भिन्न हैं।
भारत के अधिकांश कार्यबल के लिए अनौपचारिक अर्थव्यवस्था आजीविका का एक प्रमुख स्रोत बनी हुई है। यह आशा की जाती है कि तेज़ आर्थिक विकास के साथ, औपचारिक क्षेत्र इस जनसंख्या के लिए रोज़गार पैदा करेगा। साथ ही, अनौपचारिक उद्यमों के लिए बड़े, अधिक आधुनिक, औपचारिक उद्यमों में परिवर्तित होने के बेहतर अवसर भी उपलब्ध होंगे।
इस सन्दर्भ में, बड़े उद्यमों द्वारा अनौपचारिक उद्यमों के साथ उप-अनुबंध लिंकेज विकसित करना (जिसमें बड़े उद्यम मूल्य संवर्धन के लिए भागों में, घटकों या संयोजनों के उत्पादन का काम अनौपचारिक उद्यमों को देते हैं) अनौपचारिक उद्यमों के विकास को सुविधाजनक बनाने और इस प्रकार, परिवर्तन में सहायता की दिशा में एक महत्वपूर्ण चैनल माना गया है। आर्थिक विकास के साथ इन सम्बन्धों के मज़बूत होने तथा अनौपचारिक उद्यमों के लिए बाज़ार पहुँच, ऋण पहुँच, प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण और उद्यमशीलता क्षमताओं एवं मानव पूंजी के विकास को सक्षम बनाए जाने की आशा है।
भारत में अनौपचारिक क्षेत्र विविधतापूर्ण है जिसमें परिवार आधारित घरेलू उद्यम शामिल हैं, जो मज़दूरी पर काम करने वाले श्रमिकों को नियुक्त नहीं करते (स्वयं-खाते वाले उद्यम) और अपेक्षाकृत बड़े सूक्ष्म- उद्यम जो मज़दूरी पर काम करने वाले श्रमिकों को नियुक्त करते हैं (प्रतिष्ठान)। घरेलू उद्यमों की उत्पादकता अपेक्षाकृत कम होती है, वे अधिकतर निर्वाह-संचालित होते हैं, जो भारत के कुल अनौपचारिक क्षेत्र का 85% हैं। पूंजी-मज़दूरी श्रम सम्बन्ध के न होने के कारण इन्हें ग़ैर-पूंजीवादी उद्यम कहा जा सकता है। अनौपचारिक क्षेत्र के रूपांतरण में इन ग़ैर-पूंजीवादी उद्यमों का अनौपचारिक क्षेत्र में सूक्ष्म-पूंजीवादी प्रतिष्ठानों में या औपचारिक क्षेत्र में बड़ी फर्मों में विकसित होना शामिल होगा।
हाल ही में किए गए शोध (केसर 2024) में मैंने भारत के विनिर्माण क्षेत्र में अनौपचारिक घरेलू उद्यमों में उप-अनुबंध लिंकेज के पैटर्न और स्वरूप- अर्थात ये सम्बन्ध कैसे विकसित हुए हैं, और क्या वे गतिशील प्रकार के हैं जो इन उद्यमों के संचय, विकास और सम्भावित परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने में अपेक्षित भूमिका निभा सकते हैं, का अध्ययन किया है। ऐसा करने के लिए मैंने वर्ष 2000-01 से 2015-16 तक भारत के उच्च आर्थिक विकास की अवधि को कवर करते हुए, असंबद्ध उद्यमों के राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के पंचवर्षीय सर्वेक्षण के चार दौरों के दोहराए गए क्रॉस-सेक्शन से प्राप्त डेटा का विश्लेषण किया।1
उप-अनुबंध की घटना
वर्ष 2001-2016 के दौरान किसी भी समय 30% से कम अनौपचारिक उद्यम उप-अनुबंध लिंकेज में रहे हैं। कुल मिलाकर, इस अवधि के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में उप-अनुबंध की घटनाओं में थोड़ी वृद्धि हुई, लेकिन शहरी क्षेत्रों में लगभग 10 प्रतिशत अंकों की गिरावट आई (आकृति-1)।
आकृति-1. ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में उप-अनुबंध की स्थिति, 2001-2016 (%)
स्रोत : एनएसएसओ सर्वेक्षण डेटा के 56वें, 62वें, 67वें और 73वें दौर का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।
उप-अनुबंधित उद्यमों में परिवर्तन की सम्भावनाएँ
मैं अनौपचारिक घरेलू उद्यमों के विकास और परिवर्तन की क्षमता का आकलन करने के लिए, 'संचय निधि' के लिए मूल्यों का अनुमान लगाती हूँ, जिसका उपयोग कोई उद्यम सभी खर्चों, किराए, ब्याज का भुगतान करने और परिवार के श्रमिकों द्वारा उपभोग के लिए धनराशि अलग रखने के बाद निवेश के लिए कर सकता है।2
आश्चर्यजनक रूप से औसतन, उप-अनुबंधित उद्यमों के पास ग़ैर-उप-अनुबंधित उद्यमों की तुलना में बहुत कम संचय निधि होती है । यह अंतर 15 साल की अवधि में नाटकीय रूप से बढ़ गया है- ग़ैर-उप-अनुबंधित और उप-अनुबंधित उद्यमों के बीच औसत संचय निधि का अनुपात 1.2 से बढ़कर 2.9 हो गया है। वर्ष 2015-16 तक, जबकि ग़ैर-उप-अनुबंधित उद्यमों का औसत संचय निधि 2000-01 के स्तर से लगभग 2.7 गुना बढ़ गया था, यह उप-अनुबंधित उद्यमों के सन्दर्भ में काफी हद तक स्थिर था (आकृति-2)। उद्यम विशेषताओं और अन्य उद्योग और राज्य-स्तरीय विविधताओं में अंतर को ‘नियंत्रित’ करने पर भी यह अंतर बना रहता है।
आकृति-2. उप-अनुबंधित और ग़ैर-उप-अनुबंधित घरेलू उद्यमों की संचय निधि
स्रोत : एनएसएसओ सर्वेक्षण के 56वें, 62वें, 67वें और 73वें दौर के आँकड़ों का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।
नोट : दर्शाए गए मान, वर्ष 2015-16 के रुपये के वास्तविक मासिक मान हैंI
उप-अनुबंध सम्बन्धों का स्वरूप
मैंने उप-अनुबंधित उद्यमों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए पाया कि अधिकांश (87% से 97%) घरेलू उद्यम कच्चे माल और डिज़ाइन विनिर्देश (89% से 95%) ठेकेदार से प्राप्त करते हैं और अपने सम्पूर्ण उत्पादन (83% से 92%) की आपूर्ति मूल उद्यम को करते हैं (आकृति-3)। इसके विपरीत, उप-अनुबंधित घरेलू उद्यमों का केवल एक छोटा हिस्सा ठेकेदार से कोई उपकरण प्राप्त करता है और अक्सर परिवार-आधारित उपकरणों का उपयोग करता है, जो प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की कमी को दर्शाता है।
उप-अनुबंध लिंकेज, जिसमें मूल उद्यम उप-अनुबंधित उद्यम का औपचारिक स्वामित्व लिए बिना उत्पादन प्रक्रिया सम्बन्धी प्रमुख पहलुओं को नियंत्रित करता है, जो मूल उद्यम के निर्देश पर उत्पादन का कार्य करता है और एक पारंपरिक 'उत्पादक प्रणाली’ जैसा नज़र आता है। सभी तीन विशेषताओं- कच्चे माल प्राप्त करना, डिज़ाइन विनिर्देश और केवल मूल उद्यम को आपूर्ति करना को दर्शाने वाले उन उद्यमों को ‘उत्पादक (पुट-आउट) उद्यम’ के रूप में चिह्नित करने पर मैं पाती हूँ कि लगभग 75-81% उप-अनुबंधित घरेलू उद्यम ऐसे लिंकेज के अधीन काम करते हैं (आकृति-4)। उप-अनुबंधित उद्यम उत्पादन और बिक्री पर अपनी स्वायत्तता खो देता है, प्रभावी रूप से मूल फर्म का मात्र सहायक उद्यम बनकर रह जाता है। दूसरी ओर, जबकि इन उद्यमों को मूल फर्म द्वारा लगभग वेतन भोगी श्रमिकों की तरह अनुबंधित किया जाता है, वे भी इसके आंतरिक नहीं होते हैं। इस प्रकार ‘उत्पादक (पुट-आउट) फर्म’ एक श्रमिक और एक उद्यम के संकर के रूप में दिखाई देती है, जैसा कि सान्याल (2007) ने भी उल्लेख किया है।
आकृति-3. उप-अनुबंधित घरेलू उद्यमों की विशेषताएं
स्रोत : एनएसएसओ सर्वेक्षण डेटा के 56वें, 62वें, 67वें और 73वें दौर का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।
आकृति-4. उप-अनुबंधित घरेलू उद्यमों के पुट-आउट और नॉन-पुट-आउट का अनुपात
स्रोत : एनएसएसओ सर्वेक्षण डेटा के 56वें, 62वें, 67वें और 73वें दौर का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।
मूल कंपनी के आर्थिक संयोजन के साथ सबसे अधिक निकटता से जुड़े होने और उसके अंतर्गत समाहित होने के बावजूद, औसतन, विभिन्न प्रकार के घरेलू उद्यमों (ग़ैर-उप-अनुबंधित और ग़ैर-पुट-आउट उप-अनुबंधित सहित) के बीच उत्पादक (पुट-आउट) उद्यमों के बढ़ने की सबसे कम सम्भावना होती है, जैसा कि इनके संचय निधि के द्वारा दर्शाया गया है (आकृति-5)। राज्य, उद्योग समूहों और ग्रामीण/शहरी स्थान भिन्नताओं को ‘नियंत्रित’ करने के बाद भी यह अंतर बना रहता है।
हालांकि ध्यान देने लायक है कि अवधि की शुरुआत में पुट-आउट और नॉन-पुट-आउट उप-अनुबंधित उद्यमों के बीच एक बड़ा अंतर होने के बावजूद, बाद के शुद्ध संचय निधि (एनएएफ) में स्थिरता के कारण समय के साथ यह अंतर कुछ हद तक कम होता गया है। इसलिए, 'पुट-आउट' सम्बन्ध में रहना न केवल अनौपचारिक क्षेत्र में उप-अनुबंध का एक प्रमुख रूप प्रतीत होता है, बल्कि ऐसा लगता है कि वैकल्पिक, अधिक स्वायत्त उप-अनुबंध सम्बन्धों से भी विकास सम्भावनाओं के सन्दर्भ में कोई बेहतर विकल्प मिलना बंद हो चुका है।
आकृति-5. पुट आउट, नॉट-पुट आउट, सब-कॉन्ट्रैक्टेड और नॉन-सब-कॉन्ट्रैक्टेड उद्यमों का मासिक औसत एनएवी
स्रोत : एनएसएसओ सर्वेक्षण डेटा के 56वें, 62वें, 67वें और 73वें दौर का उपयोग करके लेखक द्वारा की गई गणना।
नोट : दर्शाए गए मान, वर्ष 2015-16 के रुपये के वास्तविक मासिक मान हैंI
उप-अनुबंध लिंकेज कौन बनाता है?
अंत में, मैं जाँच करती हूँ कि किस तरह के उद्यम उप-अनुबंध लिंकेज में प्रवेश करते हैं। उद्यम के मालिक की लैंगिक स्थिति (स्त्री/पुरुष), ग्रामीण/शहरी स्थान, संचालन की अवधि और उद्योग समूह ऐसे महत्वपूर्ण कारक हैं जो किसी उद्यम के उप-अनुबंध लिंकेज में प्रवेश करने की सम्भावना को प्रभावित करते हैं। उदाहरण के लिए, औसतन, विश्लेषण की अवधि में, अन्य उद्यम विशेषताओं, ग्रामीण/शहरी स्थान, राज्यों और उद्योग समूहों को ‘नियंत्रित’ करते हुए, यह पाया गया कि महिला-प्रधान उद्यमों के ग़ैर-महिला-प्रधान उद्यमों की तुलना में उप-अनुबंध लिंकेज में प्रवेश करने की सम्भावना 1.8 गुना अधिक है। इसके अलावा, अन्य उद्योगों की तुलना में तंबाकू उत्पादों और वस्त्रों में उप-अनुबंध की सम्भावना विशेष रूप से अधिक है।
उप-अनुबंधित घरेलू उद्यमों पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, उद्यम के मालिक की लैंगिक स्थिति (स्त्री/पुरुष) और उद्यम का स्थान (परिवार के अंदर या बाहर) पुट-आउट लिंकेज में होने वाले सबसे मज़बूत कारक हैं। अन्य विशेषताओं और समय के प्रभावों को नियंत्रित करते हुए, औसतन, महिला-स्वामित्व वाले उद्यमों में पुट-आउट लिंकेज में प्रवेश करने की सम्भावना लगभग 1.7 गुना अधिक है और परिवार के भीतर स्थित उद्यमों में लगभग दोगुनी सम्भावना है। उद्यम के मालिक की लैंगिक स्थिति (स्त्री/पुरुष) भी लगभग 79% सम्भावना दर्शाती है, तथा स्थान, पुट-आउट और नॉन-पुट-आउट उप-अनुबंधित उद्यमों के बीच संचय निधि में 24% का अंतर दर्शाता है। इससे उप-अनुबंध प्रक्रियाओं में स्त्री-प्रधान कार्यबल और घरेलू स्थानों तक पहुँच के महत्व तथा इसकी कम संचयन क्षमता उजागर होती है।
सामाजिक मानदंडों और पितृसत्तात्मक संरचनाओं के चलते ऋण और बाज़ारों तक पहुँच प्राप्त करने में बाधाओं का सामना करने वाली महिलाओं की अपेक्षाकृत वंचित स्थिति को देखते हुए, साथ ही परिवारों के भीतर रहने वाली महिलाओं के लिए, उत्पादक (पुट-आउट) सम्बन्ध में होने से उत्पादों की मांग सुनिश्चित होती है। हालांकि, ऐसे सम्बन्धों में शामिल होने से सभी घरेलू उद्यमों में सबसे कम स्वायत्तता और विकसित होकर और बड़े उद्यमों में परिवर्तित होने की सबसे कम सम्भावना है। मूल फर्म इस तरह के सम्बन्धों में, जिनकी सौदेबाजी करने की शक्ति कम होती ऐसी घर पर काम करने वाली महिला श्रमिकों के साथ अनुबंध करके, अपनी उत्पादन लागत को प्रभावी रूप से कम करा लेते हैं, तथा ग़ैर-वस्तुगत घरेलू संसाधनों, जैसे कि औज़ारों और स्थान तक उनकी पहुँच बना देते हैं।
विकसित होने के सीमित अवसरों के बावजूद, विशेष रूप से पुट-आउट वाले उप-अनुबंधित उद्यम, अपने मालिक परिवार की उपभोग आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए उप-अनुबंध सम्बन्धों में प्रवेश कर सकते हैं, जिन्हें अन्यथा प्राप्त करना मुश्किल हो सकता है। हालांकि, भारतीय अनौपचारिक क्षेत्र में प्रचलित उप-अनुबंध लिंकेज का, यहां तक कि आर्थिक विकास के अपने चरम काल के दौरान भी, गतिशील उप-अनुबंध सम्बन्धों के साथ घोर विरोधाभास है। इसका उल्लेख शोध साहित्य में अनौपचारिक उद्यमों और इसलिए अनौपचारिक क्षेत्र के परिवर्तन को सुविधाजनक बनाने के लिए एक चैनल के रूप में किया गया है।
टिप्पणियाँ :
- इस सर्वेक्षण का अंतिम उपलब्ध दौर 2015-16 का सर्वेक्षण है। सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने हाल ही में 2021-22 और 2022-23 वार्षिक दौर के लिए अनिगमित उद्यमों के सर्वेक्षण के कुछ प्रमुख परिणाम जारी किए हैं, उम्मीद है कि ये पंचवर्षीय सर्वेक्षण दौरों का स्थान लेंगे। इन सर्वेक्षण दौरों के डेटा अभी जारी होने बाकी हैं।
- मैं, केसर और भट्टाचार्य (2020) का अनुसरण करते हुए, उद्यम में कार्यरत पारिवारिक श्रम और मालिकों के लिए एक आभासी मज़दूरी लगाती हूँ, जो कि एक समान अनौपचारिक उद्यम द्वारा मज़दूरी पर रखे गए श्रमिकों को औसत मज़दूरी के रूप में दी जाने वाली राशि पर आधारित है। मुझे उम्मीद है कि यह आभासी मज़दूरी इन उद्यमों द्वारा अपने उपभोग के लिए अलग से रखे जाने वाले धन का कम आंकलन होगा (और इसलिए संचय निधि का अधिक आंकलन होगा), क्योंकि भारत के लिए राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिनिधि डेटा पर आधारित अन्य अध्ययनों के अनुमानों से पता चलता है कि, औसतन, अनौपचारिक स्व-रोज़गार वाले घरेलू उद्यमों से अपनी प्राथमिक आय प्राप्त करने वाले परिवारों का उपभोग अनौपचारिक वेतन श्रमिकों से प्राथमिक आय प्राप्त करने वालों की तुलना में अधिक है। यह हमारे परिणामों को और मज़बूत बनाता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : सुरभि केसर लंदन के एसओएएस विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में व्याख्याता हैं। उनका हालिया और वर्तमान काम श्रम व अनौपचारिक अर्थव्यवस्था और उच्च आर्थिक विकास के साथ भारत में आर्थिक द्वैतवाद की संरचना के पुनरुत्पादन पर केन्द्रित है।
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