मानव विकास

सीखने के लिए सतत संघर्ष : आदिवासी क्षेत्रों की कहानी

  • Blog Post Date 21 दिसंबर, 2023
  • दृष्टिकोण
  • Print Page
Author Image

Rama Pal

Indian Institute of Technology Bombay

ramapal@iitb.ac.in

Author Image

Mallika Sinha

Indian Institute of Technology Bombay

mallikasinha@iitb.ac.in

हाल के राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण यानी नेशनल अचीवमेंट सर्वे से पता चलता है कि अधिगम परिणामों के सन्दर्भ में आदिवासी जिले पीछे चल रहे हैं। इसे महत्वपूर्ण मानते हुए, लेख में इस तथ्य पर चिन्ता जताई गई है, क्योंकि स्कूली शिक्षा के भौतिक ढाँचे के वितरण में ऐसा अन्तर नज़र नहीं आता है। लेख में जनजातीय आबादी की अधिक हिस्सेदारी वाले क्षेत्रों में, भाषा और गणित के औसत से कम परिणामों पर प्रकाश डाला गया है। लेख में, समावेशी शिक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए भौतिक ढाँचे में निवेश के अलावा, शिक्षकों की भागीदारी और शैक्षणिक सुधार (पेडागोजी और अध्यापन में सुधार) पर ध्यान केन्द्रित करने की ज़रूरत पर ज़ोर दिया गया है।

स्कूलों में भर्ती की सार्वभौमिक उपलब्धि के चलते भारत में अधिगम यानि लर्निंग में व्याप्त क्षेत्रीय असमानता छिप जाती है। नई शिक्षा नीति (2020) और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिए हाल ही में जी-20 में की गई घोषणा के ज़रिए, 'समावेशी और न्यायसंगत शिक्षा' के प्रति भारत की प्रतिबद्धता पर ज़ोर दिया गया है, जबकि शैक्षिक परिणामों का वर्तमान क्षेत्रीय वितरण न्यायसंगत नहीं है। कई दशकों से, आदिवासी जिलों को बड़े पैमाने पर उपेक्षित रहे हैं और उन्हें सीखने में कठिनाईयों का सामना करना पड़ रहा है। यह असमानता महत्वपूर्ण चिन्ता का विषय है क्योंकि स्कूली शिक्षा के ढाँचे के वितरण में इतना ज़्यादा अन्तर नज़र नहीं आता है। इस लेख में हम तर्क देते हैं कि शिक्षकों की भागीदारी और शैक्षणिक (पेडागोजी और अध्यापन सम्बन्धी) परिवर्तनों को नज़रअंदाज करते हुए सिर्फ भौतिक ढाँचे में निवेश पर ज़ोर देना समावेशी शिक्षा के लक्ष्य के लिए हानिकारक है।

आदिवासी क्षेत्रों में शिक्षा की स्थिति

हालिया राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) 2019-21 के अनुसार, कुल जनसंख्या में अनुसूचित जनजाति (एसटी) की हिस्सेदारी 16.74% है। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण (एनएएस) 2021 के आधार पर स्कूली बच्चों के शैक्षिक प्रदर्शन का विश्लेषण, शिक्षा के प्राथमिक और मध्य स्तर पर, आदिवासी बच्चों के औसत से नीचे के प्रदर्शन को रेखांकित करता है। उदाहरण के लिए, कक्षा 5 के एसटी छात्रों ने भाषा में 53% और गणित परीक्षण में 41% अंक प्राप्त किए, जबकि राष्ट्रीय औसत 55 और 44% है। सामाजिक समूहों की यह व्यापक तुलना आदिवासी जिलों में अधिगम परिणामों की व्यवस्थित उपेक्षा को सामने नहीं लाती है। बल्कि, जिला-स्तरीय रिपोर्ट कार्डों में इन परीक्षणों में दिए गए सही उत्तरों के प्रतिशत में व्यापक क्षेत्रीय भिन्नता सामने आती है।

आकृति-1 में भारत के जनजातीय जिलों में कक्षा 5 के छात्रों के कम सीखने के परिणामों के समूह को स्पष्ट रूप से दिखाया गया है (आकृति-2 में इसे गहरे हरे रंग में दर्शाया गया है)। मेघालय, छत्तीसगढ़, झारखंड, तेलंगाना, अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम, लद्दाख और हिमाचल प्रदेश के कई जिलों में, जहाँ एसटी आबादी का हिस्सा काफी ज़्यादा रहता है, भाषा और गणित के परीक्षणों में प्रदर्शन खराब है। उदाहरण के लिए, 50% से अधिक एसटी आबादी वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तर-पूर्वी राज्यों के जिलों में अधिगम परिणाम, विशेषकर गणित परीक्षाओं में प्रदर्शन खराब है। ऐसा ही पैटर्न हिमाचल प्रदेश और लद्दाख के उत्तरी हिस्सों में भी दिखाई देता है।

आकृति-1 (2021 में) भाषा और गणित परीक्षाओं में कक्षा 5 के छात्रों के जिला-स्तरीय औसत प्रतिशत अंक 

<

स्रोत : एनएएस 2021 डेटा का उपयोग करके लेखकों द्वारा तैयार किए गए मानचित्र।

आकृति-2 एसटी जनसंख्या का जिला-स्तरीय अनुपात 

स्रोत : एनएफएचएस 2019-21 डेटा का उपयोग करके लेखकों द्वारा तैयार किए गए मानचित्र

वहीं, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बड़ी एसटी आबादी वाले जिलों में मिला-जुला पैटर्न दिखता है। मध्य प्रदेश की पश्चिमी सीमा पर अलीराजपुर और झाबुआ के आदिवासी जिलों में परीक्षणों का खराब प्रदर्शन दिखता है। इन दोनों जिलों में 80% से अधिक आबादी आदिवासियों की है। हालाँकि, 69.2% की एसटी आबादी वाले नंदुरबार (महाराष्ट्र) में भाषा और गणित दोनों परीक्षणों में औसत से ऊपर का प्रदर्शन दिखता है।

इस विश्लेषण से एक और परिणाम सामने आता है कि भाषा और गणित के सन्दर्भ में क्षेत्रीय असमानताओं में अन्तर है। जनजातीय क्षेत्र गणित के मामले में दूसरों से पीछे नज़र आते हैं, लेकिन भाषाओं के मामले में उतना नहीं। यदि हम कक्षा 5 में गणित की परीक्षाओं में सबसे खराब प्रदर्शन करने वालों पर विचार करें तो सबसे निचले प्रदर्शन वाले 10 में से 8 जिले मुख्य रूप से आदिवासी हैं, जहाँ 60% से अधिक एसटी आबादी है। इनमें से अधिकतर जिले छत्तीसगढ़ और मेघालय राज्यों में स्थित हैं। 60% से अधिक एसटी आबादी वाले केवल तीन जिले भाषाओं के मामले में सबसे निचले दस स्थानों पर आते हैं।

जनजातीय क्षेत्रों में स्कूली अवसंरचना (बुनियादी ढाँचे) की उपलब्धता

शिक्षण प्रक्रिया को सुविधाजनक बनाने के लिए स्कूलों में बुनियादी ढाँचे का होना बहुत आवश्यक है। इस का एक अर्थ यह है कि बिजली और वॉश (पानी, शौचालय और स्वच्छता) जैसी बुनियादी सुविधाओं में पिछड़े जिलों में शिक्षा सम्बन्धी प्रदर्शन खराब दिखाई देना चाहिए। आकृति-3 बिजली और वॉश सुविधाओं वाले स्कूलों के अनुपात को दिखाती है। उदाहरण के लिए, कंधमाल (ओड़िशा) में केवल 22.03%, धलाई (त्रिपुरा) में 23.03% और पश्चिम कार्बी आंगलोंग (असम) में 27.96% स्कूलों में बिजली की सुविधा है। 

आकृति-3 बिजली और वॉश सुविधाओं वाले प्राथमिक विद्यालयों की जिला-स्तरीय हिस्सेदारी (2020-21 में) 

स्रोत : शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई) 2020-21 डेटा का उपयोग करके लेखकों द्वारा तैयार किए गए मानचित्र। 

इसी तरह, मेघालय, अरुणाचल प्रदेश और नागालैंड के अधिकांश जिलों के 30% स्कूलों में भी वॉश सुविधाएं उपलब्ध नहीं हैं। भाषा और गणित परीक्षाओं में उत्तर-पूर्वी राज्यों का खराब प्रदर्शन बुनियादी ढाँचे की कमी के साथ-साथ जुड़ा हुआ नज़र आता है। हालांकि झारखंड, छत्तीसगढ़, तेलंगाना और ओड़िशा के कई आदिवासी जिलों में बिजली और वॉश सुविधाएं उपलब्ध हैं, लेकिन इनमें बुनियादी ढाँचे तक पहुँच अभी भी सीखने के बेहतर परिणामों में तब्दील नहीं हो पाई है।

निष्कर्ष

इन परिणामों से पता चलता है कि स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं का बढ़ा हुआ प्रावधान ज़रूरी है, फिर भी आदिवासी क्षेत्रों में बच्चों के अधिगम परिणामों में सुधार के लिए केवल इतना ही पर्याप्त नहीं है। सीखने के स्तर को प्रभावित करने के लिए स्कूल इनपुट की प्रभावशीलता इन सुविधाओं के उपयोग और शिक्षण प्रक्रिया की नियोजनबद्धता पर निर्भर करती है (ग्लेवे और मुरलीधरन 2016)। इस प्रकार, ध्यान देने की आवश्यकता वाले सबसे महत्वपूर्ण पहलुओं में से एक है शिक्षा शास्त्र या पेडागोजी। उदाहरण के लिए, शिक्षकों द्वारा कक्षा में पढ़ाई को रोचक और 'इंटरैक्टिव' बनाकर छात्रों को आकर्षित किए जाने की आवश्यकता है, और ऐसा दृश्य-साधनों, खेल और वास्तविक दुनिया के अनुप्रयोगों के उपयोग के माध्यम से किया जा सकता है। साथ ही, शिक्षकों द्वारा छात्रों की विविध शिक्षण शैलियों और आवश्यकताओं को पूरा किए जाने की भी आवश्यकता है।

‘प्रथम’ द्वारा विकसित 'सही स्तर पर शिक्षण' या ‘टीचिंग एट द राइट लेवल’ दृष्टिकोण जैसे हस्तक्षेपों को राज्य लागू कर सकते हैं, जो कम समय में सीखने के स्तर में सुधार करने की एक प्रभावी और किफायती रणनीति है। इसके अतिरिक्त, शिक्षकों और स्कूल प्रणाली को केन्द्र में रखते हुए, डिजिटल और वैकल्पिक माध्यमों से बच्चे की शिक्षा में सामुदायिक भागीदारी भी सीखने की उपलब्धि को आसान बना सकती है (ओड़िशा सरकार और एएसईआर- असर केन्द्र, 2022)।

जैसा कि पहले बताया गया है, विशेष रूप से मध्य प्रदेश और राजस्थान के आदिवासी इलाकों में सीखने का स्तर दूसरों की तुलना में अपेक्षाकृत बेहतर है। इन दोनों राज्यों में हाशिए पर रहने वाले छात्रों, विशेष रूप से लड़कियों की शिक्षा और स्कूल में उपस्थिति में सुधार के लिए मध्य प्रदेश में शिक्षा गारंटी योजना (ईजीएस) 1997 और राजस्थान में शिक्षा कर्मी परियोजना 1987, जैसी समाज के हाशिए पर रहने वाले वर्गों के लिए लक्षित शैक्षिक नीतियाँ, इस बेहतर शैक्षिक प्रदर्शन के पीछे संभावित योगदान देने वाले कारक हैं (ड्रेज़ और सेन 2002, रामचन्द्रन और सेठी 2001)। इस प्रकार से, ऐसी नीतिगत सफलताओं से सीख लेकर और आदिवासी क्षेत्रों में स्थानीय नीतियाँ बनाने से मौजूदा क्षेत्रीय असंतुलन को कम करने में मदद मिलेगी।

इस लेख में व्यक्त विचार लेखकों के व्यक्तिगत हैं।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : रमा पाल भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के अर्थशास्त्र विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर हैं। उनका प्राथमिक अनुसंधान क्षेत्र समावेशी विकास के साथ-साथ विकास अर्थशास्त्र है। मल्लिका सिन्हा भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान बॉम्बे के अर्थशास्त्र विभाग में एक शोध छात्रा हैं। उनकी प्राथमिक शोध रुचि शिक्षा, श्रम व स्वास्थ्य और विकास अर्थशास्त्र में है।

क्या आपको हमारे पोस्ट पसंद आते हैं? नए पोस्टों की सूचना तुरंत प्राप्त करने के लिए हमारे टेलीग्राम (@I4I_Hindi) चैनल से जुड़ें। इसके अलावा हमारे मासिक न्यूज़ लेटर की सदस्यता प्राप्त करने के लिए दायीं ओर दिए गए फॉर्म को भरें।

No comments yet
Join the conversation
Captcha Captcha Reload

Comments will be held for moderation. Your contact information will not be made public.

संबंधित विषयवस्तु

समाचार पत्र के लिये पंजीकरण करें