भारत में जब पेटेंट सम्बन्धी मज़बूत कानून पेश किए गए, तब यह आशंका जताई गई थी कि इससे नवाचार में पर्याप्त लाभ के बगैर कीमतें बढ़ जाएंगी। यह लेख इस बात का सबूत देता है कि पेटेंट संरक्षण सम्बन्धी मज़बूत कानून ने पेटेंट की संख्या और गुणवत्ता में वृद्धि की और विनिर्माण फर्मों द्वारा किए जा रहे अनुसंधान और विकास खर्च में वृद्धि हुई है। प्रक्रिया से जुड़े नवाचारों और आउटपुट वृद्धि ने उत्पादन लागत को कम किया, जबकि यह लागत बचत कम उपभोक्ता कीमतों के बजाय उच्च मूल्य-लागत मार्जिन में तब्दील हो गई।
शोधकर्ताओं की लम्बे समय से फर्मों और उपभोक्ताओं पर पेटेंट संरक्षण के प्रभावों में रुचि रही है (बोल्ड्रिन और लेविन 2013)। एक ओर जहाँ पेटेंट सम्बन्धी मज़बूत कानून के माध्यम से विशेष अधिकारों की सम्भावना फर्मों को अनुसंधान और विकास (आर एंड डी) में निवेश करने के लिए प्रोत्साहित करेगी (एरो 1962)। वहीँ दूसरी ओर, मज़बूत पेटेंट कानून से बाज़ार की शक्ति बढ़ सकती है (ब्लूम एवं अन्य 2019)। सैद्धांतिक रूप से, पेटेंट सम्बन्धी मज़बूत कानून से होने वाले शुद्ध लाभ अस्पष्ट है। अनुसंधान और विकास में निवेश पर पेटेंट संरक्षण के प्रभावों पर उपलब्ध साक्ष्य अनिर्णायक हैं और अक्सर बहुत विशिष्ट बाज़ारों तक सीमित हैं (ब्रायन और विलियम्स 2021)। इसके अलावा, हम बाज़ार की शक्ति और अंतर्निहित तंत्र पर पेटेंट संरक्षण के प्रभाव के बारे में अपेक्षाकृत कम जानते हैं।
हाल के शोध (गुप्ता और स्टीबेल 2024) में हम भारत में सभी विनिर्माण उद्योगों में घरेलू फर्मों की नवाचार गतिविधियों और बाज़ार की शक्ति दोनों पर पेटेंट संरक्षण सम्बन्धी मज़बूत कानून के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए पेटेंट के उपयोग के सन्दर्भ में क्रॉस-इंडस्ट्री अंतर पर भरोसा करते हैं।
भारत की पेटेंट नीति में सुधार
वर्ष 1991 में भुगतान संतुलन के संकट के मद्देनज़र, भारत ने खुद को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) का सदस्य देश बनने के लिए बाध्य पाया और परिणामस्वरूप व्यापार सम्बन्धी बौद्धिक संपदा अधिकार (टीआरआईपीएस) समझौते के अनुपालन में एक मज़बूत पेटेंट व्यवस्था की ओर बढ़ा।
इस सुधार को अपनाने का भारतीय संसद में कड़ा विरोध हुआ और नीति में परिवर्तन के समय और उसके स्वरूप के बारे में लम्बे समय तक अनिश्चितता बनी रही (रेड्डी और चंद्रशेखरन 2017)। वित्तीय वर्ष 1999-2000 में फार्मास्यूटिकल्स और रासायनिक उद्योगों और वित्तीय वर्ष 2002-03 में अन्य सभी उद्योगों के लिए सुधारों को अंततः अपनाया जाना अप्रत्याशित रूप से हुआ जिसे एक प्राकृतिक प्रयोग माना जा सकता है। इस सुधार ने फार्मास्यूटिकल और रासायनिक उद्योगों में उत्पाद और प्रक्रिया सम्बन्धी पेटेंट पर कई प्रतिबंधों को कम कर दिया। इससे सभी उद्योगों के पेटेंट धारकों के लिए विशेष अधिकारों की अवधि 14 से 20 वर्ष तक बढ़ गई और अन्य बातों के अलावा, विनिर्माण की विधियों और प्रक्रियाओं को पेटेंट कराने की अनुमति मिल गई।
डेटा और अनुभवजन्य रणनीति
हम पेटेंट सम्बन्धी सुधार के प्रभावों का अध्ययन करने के लिए, सीएमआईई (सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी) प्रोवेस डेटाबेस से भारतीय विनिर्माण फर्मों के बारे में डेटा प्राप्त करते हैं, जो फर्म का पंजीकृत नाम, लेखा जानकारी और उसके द्वारा सालाना उत्पादित उत्पादों की कीमत और मात्रा के सम्बन्ध में जानकारी प्रदान करता है। हम फर्म के नामों के उपयोग से भारत की फर्मों द्वारा भारतीय पेटेंट कार्यालय में दायर पेटेंट आवेदनों की पहचान करते हैं और इस प्रकार एक माप प्राप्त करते हैं जिसके ज़रिए हम यह जाँच पाते हैं कि क्या सुधार का इच्छित प्रभाव पड़ा है। फर्मों की सीमांत लागत से ऊपर कीमतें निर्धारित करने की क्षमता के रूप में परिभाषित बाज़ार की शक्ति पर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए, हम डी लोकर एवं अन्य (2016) का अनुसरण करते हैं। हम किसी फर्म द्वारा सालाना उत्पादित, प्रत्येक उत्पाद के सन्दर्भ में, मार्कअप के अनुमान प्राप्त करते हैं जिसे कीमतों और सीमांत लागत के बीच अंतर के रूप में परिभाषित किया जाता है।
नवाचार और बाज़ार की शक्ति पर पेटेंट सम्बन्धी सुधार के प्रभाव का अनुभवजन्य अध्ययन करने के लिए, हम ‘डिफरेंस-इन-डिफरेंस’ डिज़ाइन1 का उपयोग करते हैं। हम इस अंतर्दृष्टि पर भरोसा करते हैं कि व्यापक क्षेत्रों के भीतर भी, उद्योग अपने आविष्कारों की रक्षा के लिए पेटेंट पर जिस हद तक भरोसा करते हैं, इसमें बड़ी भिन्नता पाई जाती है (यूरोपीय पेटेंट कार्यालय, 2013)। हम सुधार से पहले किसी फर्म द्वारा उत्पादित उत्पादों के मिश्रण को देखकर, यह गणना करते हैं कि वह फर्म पेटेंट सुधार के प्रति कितनी संवेदनशील थी। दूसरे शब्दों में, पेटेंट पर अत्यधिक निर्भर उत्पादों का उत्पादन करने वाली फर्में कम पेटेंट-गहन उत्पादों का उत्पादन करने वाली फर्मों की तुलना में, सुधार के प्रति अधिक संवेदनशील थीं। इस प्रकार हमारा अनुभवजन्य डिज़ाइन यह परीक्षण करता है कि उच्च पेटेंट तीव्रता वाली फर्में व उद्योग, कम पेटेंट तीव्रता वाले लोगों की तुलना में सुधार से अधिक प्रभावित थे या नहीं। हम पाते हैं कि पेटेंट सुधार के प्रति हमारे जोखिम के माप में सुधार-पूर्व फर्म विकास और अन्य सुधारों, जैसे भारत के व्यापार उदारीकरण के साथ बहुत कम सह-सम्बन्ध है।
पेटेंटिंग और अनुसंधान तथा विकास पर प्रभाव
हमने पाया कि पेटेंट संरक्षण सम्बन्धी मज़बूत कानून किसी फर्म द्वारा दायर पेटेंट की संख्या, पेटेंट कराने वाली फर्मों की संख्या और उनके अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि के साथ जुड़ा हुआ था। यह दर्शाता है कि सुधार ने नवाचार में निवेश से निजी रिटर्न में वृद्धि की। आकृति-1 सुधार से पाँच साल पहले और सुधार के आठ साल बाद तक के सुधार के प्रभाव को दर्शाता है। परिणाम दर्शाते हैं कि फर्मों ने सुधार की उम्मीद नहीं की थी और सुधार के बाद, पेटेंटिंग और अनुसंधान एवं विकास निवेश की वृद्धि धीरे-धीरे बढ़ी और यह कई वर्षों तक बनी रही। इसके अलावा, पेटेंट गुणवत्ता के तीन संकेतक- किसी फर्म द्वारा नवीनीकृत पेटेंट की संख्या, प्रति पेटेंट आविष्कारकों की संख्या और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर दायर पेटेंट की संख्या, यह दर्शाते हैं कि पेटेंट की संख्या में वृद्धि के साथ-साथ उच्च गुणवत्ता वाले पेटेंट में भी वृद्धि हुई।
आकृति-1. पेटेंट और अनुसंधान तथा विकास : गतिशील प्रभाव
टिप्पणियाँ : (i) परिणाम चर 'पेटेंट आवेदन' और 'अनुसंधान एवं विकास व्यय' क्रमशः घटना समय-1 के सापेक्ष, किसी विशिष्ट वर्ष में किसी फर्म के पेटेंट आवेदनों और 'अनुसंधान एवं विकास पर व्यय की संख्या में सापेक्ष अंतर को मापते हैं। (ii) 'पेटेंट तीव्रता' फर्मों के पूर्व-सुधार उत्पाद मिश्रण का उपयोग करके परिभाषित सुधार के लिए फर्म-स्तरीय जोखिम है। (iii) क्षैतिज अक्ष सुधार के वर्ष के सापेक्ष समय दर्शाता है (डैश लाइन द्वारा इंगित)। (iv) गुणांक के चारों ओर की पट्टियाँ 95% विश्वास अंतराल को दर्शाती हैं। 95% विश्वास अंतराल का मतलब है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो गणना किए गए विश्वास अंतराल के 95% समय में सही प्रभाव होगा।
मार्कअप, कीमतों और सीमांत लागतों पर प्रभाव
मज़बूत पेटेंट सुरक्षा की एक बड़ी चिंता यह है कि इससे आविष्कारक उच्च मार्कअप चार्ज करने या उच्च बाज़ार शक्ति का प्रयोग कर पाते हैं। हम पाते हैं कि सुधार के प्रति अधिक संवेदनशील फर्मों-उत्पादों में औसत मार्कअप में वृद्धि हुई। हालाँकि यह वृद्धि मुख्य रूप से सीमांत लागतों में गिरावट के कारण हुई, जबकि सुधार के बाद किसी भी अवधि में औसत कीमतों में कोई खास बदलाव नहीं आया। आकृति-2 सुधार की शुरुआत के कुछ वर्षों बाद मार्कअप में क्रमिक और लगातार वृद्धि को दर्शाता है।
आकृति-2. मार्कअप, कीमतों और सीमांत लागतों पर गतिशील प्रभाव
टिप्पणियाँ : (i) परिणाम चर 'मार्कअप' फर्म-उत्पाद मार्कअप का लॉग है, 'कीमतें' एक फर्म द्वारा बेचे गए प्रत्येक उत्पाद के लिए सीएमआईई प्रोवेस में रिपोर्ट की गई इकाई मूल्य है और 'सीमांत लागत' कीमतों के लॉग और मार्कअप के लॉग का अंतर है। (ii) 'पेटेंट तीव्रता' ईपीओ (2013) द्वारा रिपोर्ट किए गए प्रत्येक चार अंकों के राष्ट्रीय औद्योगिक वर्गीकरण कोड के लिए प्रति 1,000 कर्मचारियों पर दायर पेटेंट की संख्या है।
सीमांत लागत में गिरावट और मार्कअप में वृद्धि के पीछे का तंत्र
हम सीमांत लागत में गिरावट से जुड़े दो सम्भावित स्पष्टीकरणों के साक्ष्य प्रस्तुत करते हैं। पहला, पेटेंट को प्रक्रिया और उत्पाद पेटेंट में अलग-अलग करके हम सुधार के बाद प्रक्रिया पेटेंट में असंगत वृद्धि का अनुमान लगाते हैं। यह देखते हुए कि प्रक्रिया पेटेंट अक्सर लागत-बचत प्रक्रियाओं को विकसित करने की दिशा में तैयार किए जाते हैं, ऐसे पेटेंट में वृद्धि दर्शाती है कि सुधार के बाद सीमांत लागत में गिरावट क्यों आएगी। दूसरा, हम पाते हैं कि पैमाने की अर्थव्यवस्थाओं वाले उद्योगों में, मज़बूत पेटेंट संरक्षण, उत्पादन में वृद्धि और अपेक्षाकृत बड़ी लागत में कमी के साथ जुड़ा हुआ था। हमारे परिणाम संकेत देते हैं कि लागत बचत का अधूरा ‘पास-थ्रू’ बढ़ते मार्कअप का एक बड़ा हिस्सा है।
निष्कर्ष
भारत कई उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में अनुसंधान एवं विकास पर बहुत कम खर्च करता है, इसलिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि नीति किस प्रकार बाज़ारों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किए बिना नवाचार में निवेश को बढ़ावा दे सकती है। हमारा शोध एक ऐसे नीतिगत उपकरण के रूप में पेटेंट संरक्षण सम्बन्धी मज़बूत कानून के प्रभाव पर केन्द्रित है और इस बात के पुख्ता सबूत प्रदान करता है कि पेटेंट सुधार ने भारत में औसत उद्योग में सीमित मूल्य प्रभावों के साथ नवाचार को बढ़ावा मिला है।
हालाँकि बढ़ते मार्कअप के कारण, पेटेंट संरक्षण का लाभ मुख्य रूप से उपभोक्ताओं के बजाय उत्पादकों को प्राप्त हुआ है। हमारे निष्कर्ष इस बात पर प्रकाश डालते हैं कि लागत-बचत नवाचार मार्कअप में प्रौद्योगिकी-संचालित वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे नीति- निर्माताओं के लिए महत्वपूर्ण निहितार्थ प्रस्तुत होते हैं जो तकनीकी विकास से लाभ को पुनर्वितरित करना चाहते हैं।
टिप्पणी :
- ‘डिफरेंस-इन-डिफरेंस’ एक ऐसी तकनीक है जिसका उपयोग किसी हस्तक्षेप से प्रभावित होने वाले समूह और हस्तक्षेप से प्रभावित न होने वाले समूह के बीच, समय के साथ परिणामों में होने वाले परिवर्तनों की तुलना, करने के लिए किया जाता है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : अपूर्व गुप्ता जर्मनी के हेनरिक हेन विश्वविद्यालय के डसेलडोर्फ इंस्टीट्यूट फॉर कॉम्पिटिशन इकोनॉमिक्स (डीआईसीई) में एक पोस्टडॉक्टरल शोधकर्ता हैं। उनकी शोध रुचि नवाचार अर्थशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और औद्योगिक संगठन के प्रतिच्छेदन पर हैं। जोएल स्टीबेल इसी संस्थान में अनुभवजन्य औद्योगिक अर्थशास्त्र के प्रोफेसर हैं। उनके शोध के मुख्य क्षेत्र औद्योगिक संगठन, नवाचार का अर्थशास्त्र, अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र और विकासशील देशों की फर्में हैं।
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