शर्मिला कांता इस बात की चर्चा करती हैं कि भारत के तेल और गैस उत्पादन में गिरावट की प्रवृत्ति और वैश्विक माँग में उतार-चढ़ाव को देखते हुए, विशेष रूप से भारत के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों की उच्च हिस्सेदारी चिंता का विषय क्यों है। वह भारत के तेल निर्यात और आयात की मात्रा और मूल्य के कुछ रुझान साझा करती हैं, साथ ही उन प्रमुख देशों के आँकड़े भी दर्शाती हैं जिनके साथ भारत व्यापार करता है। वह उत्पादन बढ़ाने और भारत के तेल निर्यात की स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु कुछ नीतिगत सुझावों के साथ निष्कर्ष प्रस्तुत करती हैं।
पिछले दशक के अधिकांश समय में भारत के निर्यात प्रोफ़ाइल में खनिज ईंधन और उत्पादों का काफ़ी योगदान रहा है और वर्ष 2012-13 और 2022-23 के बीच की अवधि के दौरान कई वर्षों तक इसके निर्यात में 20% से अधिक की हिस्सेदारी रही है।
लगभग एक दशक तक मध्यम निर्यात वृद्धि के बाद, भारत के निर्यात ने वित्त वर्ष 2021-22 और 2022-23 के दौरान नए शिखर हासिल किए। हालाँकि, वर्ष 2023-24 की पहली छमाही में पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में लगभग 9% की गिरावट प्रवृत्ति देखी गई है। अप्रैल-सितंबर 2023 के दौरान (वर्ष 2022 में इसी अवधि की तुलना में) निर्यात गिरावट में प्रमुख योगदानकर्ता पेट्रोलियम निर्यात रहा है, जबकि गैर-तेल निर्यात में 6.3% की गिरावट आई और पेट्रोलियम निर्यात में 17.6% की गिरावट आई (तालिका-1) है।
तालिका-1. अप्रैल-सितंबर 2022 और 2023 के दौरान भारत का निर्यात (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)
|
अप्रैल-सितम्बर 2022 |
अप्रैल-सितम्बर 2023 |
% वृद्धि |
कुल निर्यात |
231.73 |
211.40 |
-8.8% |
गैर-पेट्रोलियम निर्यात |
180.88 |
169.51 |
-6.3% |
पेट्रोलियम निर्यात |
50.85 |
41.89 |
-17.6% |
कुल निर्यात में पेट्रोलियम निर्यात का हिस्सा, % |
21.9% |
19.8% |
आकृति-1 में पेट्रोलियम और कच्चे तेलों के प्रदर्शन को दर्शाया गया है- भारत के आयात के लिए एचएस 2709 और निर्यात के लिए एचएस 2710; तेल निर्यात का प्रदर्शन मौजूदा कच्चे तेल की कीमतों से निकटता से जुड़ा हुआ है और रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक कीमतों में वृद्धि के साथ पिछले दो वर्षों में इसमें उछाल देखा गया है।
आकृति-1. भारत का समग्र तेल व्यापार, वर्ष 2012-13 से 2022-23 (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)
आकृति-2. भारत का कुल गैर-तेल निर्यात, वर्ष 2012-13 से 2022-23 (बिलियन अमेरिकी डॉलर में)
हालाँकि, पेट्रोलियम उत्पादों की मात्रा के मामले में कोई वृद्धि नहीं दिखी है, और मूल्य में परिवर्तन मुख्य रूप से तेल की बदलती कीमतों के कारण दिखाई देता है। वर्ष 2021-22 से, केवल एविएशन टर्बाइन फ्यूल (एटीएफ) ने निश्चित रूप से ऊपर की ओर रुझान दर्शाया है, जबकि हाई-स्पीड डीजल (एचएसडी), मोटर स्पिरिट्स (एमएस) और नेफ्था में गिरावट आई है।
आकृति-3. वर्ष 2012-13 से 2022-23 तक भारत के प्रमुख पेट्रोलियम निर्यात (1000 मीट्रिक टन में)
तेल निर्यात पर भारत की निर्भरता के बारे में चिंताएँ
भारत के निर्यात में पेट्रोलियम उत्पादों की उच्च हिस्सेदारी कई कारणों से चिंता का विषय है।
पहला, भारत एक प्रमुख तेल उत्पादक नहीं है- वर्ष 2022 में वैश्विक तेल उत्पादन में 0.8% की हिस्सेदारी के साथ वैश्विक तेल उत्पादन में केवल 22वें स्थान पर था। हालाँकि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है, जिसका आयात वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में ईंधन की कुल खपत का 88.3% रहा, जो वित्त वर्ष 2022-23 के 87.4% से अधिक है। यद्यपि भारत विश्व में चौथा सबसे बड़ा तेल रिफाइनर देश है और एशिया में रिफाइंड तेल का सबसे बड़ा निर्यातक भी है, लेकिन वर्ष 2030 तक इसकी तेल माँग में लगभग 50% की वृद्धि होने की सम्भावना है, जिससे भविष्य में तेल निर्यात पर दबाव पड़ने की सम्भावना है।
दूसरा, भू-राजनीतिक और उत्पादन निर्णयों के कारण तेल की कीमतें अस्थिर और अप्रत्याशित होती हैं। ऐसी अनिश्चितता भारत के समग्र निर्यात प्रयासों को बहुत प्रभावित करती है, जो अक्सर तेल निर्यात से प्रेरित होते हैं।
तीसरा, जबकि पेट्रोलियम उत्पाद निर्यात मूल्य वित्त वर्ष 2022-23 में नए शिखर पर पहुँच गया, मात्रा के सन्दर्भ में, पेट्रोलियम उत्पादों की अधिकांश श्रेणियों में पिछले दशक की तुलना में गिरावट दिखाई देती रही है। इसका मतलब है कि निर्यात को बढ़ावा देने के लिए क्षमता का पर्याप्त विस्तार नहीं हुआ है।
चौथा, हाल के वर्षों में, तेल व्यापार पर प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं द्वारा प्रतिबंध लगाए गए हैं। इसने भारत के समग्र तेल आयात और निर्यात स्थिरता को प्रभावित किया है। उदाहरण के लिए, ईरान वर्ष 2018 में भारत का तीसरा सबसे बड़ा खनिज तेल आपूर्तिकर्ता था, और 13.3 बिलियन अमेरिकी डॉलर का आयात हुआ था। लेकिन प्रतिबंधों के कारण, भारत को वर्ष 2021 में आयात में लगभग 42 मिलियन अमेरिकी डॉलर की कटौती करनी पड़ी। यूक्रेन संघर्ष के कारण रूसी तेल के निर्यात पर प्रतिबंधों के बाद रूसी कच्चे तेल की उपलब्धता से होने वाले अप्रत्याशित लाभ भी अप्रत्याशित हैं और इसलिए इसे अस्थाई ही माना जा सकता है।
पाँचवां, तेल की ऊँची कीमतों से उत्पन्न तेल का उच्च निर्यात मूल्य, नीति-निर्माताओं का ध्यान अन्य उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने के प्रयासों से भटका देता है। उदाहरण के लिए, वित्त वर्ष 2022-23 में, भारत का कुल निर्यात 447.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर के उच्चतम मूल्य पर अनुमानित था, जिसमें पिछले वर्ष की तुलना में लगभग 14% की वृद्धि हुई। हालाँकि, गैर-तेल निर्यात 2021-22 के स्तर से थोड़ा नीचे रहा।
अंत में, चूंकि तेल निर्यात एक उच्च मूल्य वाला उत्पाद है, इसलिए विनिर्माण और रोज़गार के विकास पर इसका प्रभाव कम होता है। अत्यधिक पूंजी-गहन क्षेत्र होने और दूसरे देशों में कच्चे तेल के उत्पादन पर निर्भर होने के कारण, रोज़गार पर इसका प्रभाव कम होता है। उदाहरण के लिए, भारत में तेल और गैस सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों में रोज़गार वर्ष 2017 में 1.10 लाख था, जो उच्च उत्पादन के बावजूद वर्ष 2022 में घटकर 0.95 लाख हो गया (पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय, 2022)।
तेल निर्यात देश के विदेशी मुद्रा संतुलन और व्यापार स्थिरता में भारी वृद्धि लाता है और भारत की विकास आवश्यकताओं का यह एक आवश्यक घटक है। हालाँकि, तेल निर्यात में अस्थिरता और अनिश्चितता का देश की व्यापक आर्थिक स्थिरता और विकास की सम्भावनाओं पर महत्वपूर्ण असर पड़ता है। विश्लेषकों का अनुमान है कि यदि कच्चे तेल की कीमत 10% बढ़ जाती है, तो घरेलू मुद्रास्फीति (उपभोक्ता मूल्य सूचकांक- सीपीआई द्वारा मापी गई) 15 आधार अंकों तक अधिक हो सकती है (नाहटा 2023)। लगातार बढ़ती मुद्रास्फीति के कारण भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा ब्याज़ दर बढ़ाने के निर्णय लिए जाने की सम्भावना है, जिससे विकास प्रभावित हो सकता है।
हाल में तेल व्यापार की अनिश्चितताओं से कूटनीतिक रूप से निपटने से भारत की आर्थिक बुनियाद सुरक्षित हुई है। रूस से तेल आयात में वृद्धि इसका एक उदाहरण है, जहाँ भारत पश्चिमी प्रतिबंधों के बावजूद उस देश से कच्चा तेल प्राप्त करने, मूल्य संवर्धन करने और फिर परिष्कृत उत्पाद को यूरोप को निर्यात करने में कामयाब रहा, जो यूक्रेन संघर्ष के कारण ऊर्जा की कमी का दंश झेल रहा था। रूस और पश्चिमी देशों दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखते हुए, भारत संकट को अपने लाभ में बदलने में सक्षम रहा। हालाँकि, हमेशा ऐसा नहीं हो सकता और तेल तथा गैर-तेल निर्यात के बीच बेहतर संतुलन, जिसमें कुल निर्यात में गैर-तेल निर्यात का हिस्सा कम हो, से भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने में मदद मिलेगी।
भारत के तेल व्यापार की दिशा
भारत के तेल आयात और निर्यात के स्रोतों और गंतव्यों पर नज़र डालें तो पिछले कुछ वर्षों में एक उल्लेखनीय बदलाव देखा जा सकता है (तालिका-2)। यूक्रेन संघर्ष का असर वर्ष 2022-23 में स्पष्ट रूप से दिखाई दिया, क्योंकि भारत का रूस से आयात अपने पारम्परिक व्यापार साझेदारों के बाहर खरीदार खोजने के प्रयास में उपलब्ध कराए गए रियायती कच्चे तेल के कारण बढ़ गया, जिन्होंने प्रतिबंध लगाए थे। इसलिए रूस से भारत का आयात साल भर में 11.5 गुना से ज़्यादा बढ़ गया।
तालिका-2. भारत के शीर्ष 10 तेल आयात स्रोत (एचएस 2709), 2021-22 और 2022-23 (मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
देश |
2021-22 |
2022-23 |
% वृद्धि |
इराक |
30,342.10 |
33,599.57 |
10.74 |
रूस |
2,470.91 |
31,024.66 |
1,155.59 |
सऊदी अरब |
22,869.27 |
29,077.41 |
27.15 |
संयुक्त अरब अमीरात |
12,304.83 |
16,840.67 |
36.86 |
अमेरिका |
11,319.84 |
10,181.72 |
-10.05 |
कुवैत |
7,943.04 |
8,024.61 |
1.03 |
नाइजीरिया |
8,591.21 |
6,059.58 |
-29.47 |
अंगोला |
1,979.47 |
3,175.05 |
60.4 |
मेक्सिको |
3,419.57 |
2,844.70 |
-16.81 |
ओमान |
3,600.00 |
2,657.57 |
-26.18 |
शीर्ष 10 देशों से कुल आयात |
104,840.24 |
143,485.54 |
37% |
कुल HS 2709 आयात में शीर्ष 10 देशों का हिस्सा |
65% |
88% |
स्रोत : निर्यात आयात डेटा बैंक, वाणिज्य विभाग
निर्यात पक्ष पर भी, भारत ने अपने शीर्ष गंतव्यों में फेरबदल देखा क्योंकि यह यूरोप के लिए तेल का सबसे बड़ा स्रोत बनकर उभरा, जिसने रूस से प्रत्यक्ष आयात को कम कर दिया (तालिका-3)। कई निर्यात गंतव्यों के लिए, तेल निर्यात में वृद्धि ने उस देश के कुल निर्यात के मूल्य में सबसे अधिक वृद्धि में योगदान दिया। उदाहरण के लिए, वर्ष के दौरान ब्राजील को कुल निर्यात में 52% की वृद्धि हुई, जिसका बड़ा हिस्सा खनिज तेल से आया।
तालिका-3. भारत के शीर्ष 10 तेल निर्यात गंतव्य (एचएस 2710), 2021-22 और 2022-23 (मिलियन अमेरिकी डॉलर में)
देश |
2021-22 |
2022-23 |
% वृद्धि |
नीदरलैंड |
5,272.13 |
12,524.61 |
137.56 |
संयुक्त अरब अमीरात |
5,702.57 |
8,047.83 |
41.13 |
अमेरिका |
5,061.08 |
6,026.55 |
19.08 |
इज़राइल |
1,626.27 |
5,501.73 |
238.3 |
टोगो |
2,432.92 |
5,431.92 |
123.27 |
सिंगापुर |
6,099.06 |
4,720.00 |
-22.61 |
ब्राजील |
1,267.02 |
4,474.52 |
253.15 |
इंडोनेशिया |
2,315.85 |
3,875.24 |
67.34 |
दक्षिण अफ्रीका |
1,420.16 |
3,739.02 |
163.28 |
तुर्की |
2,175.26 |
3,221.61 |
48.1 |
कुल निर्यात |
33,372.32 |
57,563.03 |
72% |
एचएस 2709 के कुल निर्यात में हिस्सा |
50% |
60% |
स्रोत : निर्यात आयात डेटा बैंक, वाणिज्य विभाग
भारत के व्यापार संतुलन के बारे में अवलोकन और नीतिगत सुझाव
वैश्विक तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव और उनके प्रदर्शन पर भू-राजनीतिक घटनाक्रमों का प्रभाव भारत की तेल निर्यात पर निर्भरता के लचीलेपन पर सवाल उठाता है। पश्चिम एशिया में हो रहा वर्तमान संघर्ष भारत के तेल स्रोतों और गंतव्यों को और अधिक खतरे में डाल रहा है। यह ध्यान देने योग्य है कि पिछले दस वर्षों में भारत के तेल और गैस उत्पादन में कमी आई है- सरकारी कम्पनी ओएनजीसी विदेश, जिसकी 15 देशों में 32 तेल और गैस परियोजनाएं हैं, ने अपने क्षेत्रों से उत्पादन में गिरावट देखी है (ओएनजीसी विदेश, 2023)। हालाँकि, खपत बढ़ रही है। इसलिए, आगे चलकर, खनिज ईंधन निर्यात को घरेलू खपत आवश्यकताओं से दबाव का सामना करना पड़ सकता है, भले ही तेल आयात के लिए विदेशी मुद्रा की आवश्यकता के कारण निर्यात अनिवार्यता बढ़ जाएगी।
अपने निर्यात की स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए, भारत निम्नलिखित नीतिगत कार्रवाइयों पर विचार कर सकता है।
पहला, इसे सरकार द्वारा उल्लिखित ऊर्जा सुरक्षा से संबंधित चार-आयामी रणनीति को तीव्र और तेज किया जाना चाहिए- (i) आयात स्रोतों का विविधीकरण (ii) घरेलू स्तर पर तेल और गैस की खोज करना तथा उत्पादन में तेज़ी लाना (iii) ऊर्जा के गैर-जीवाश्म ईंधन स्रोतों की क्षमता का विस्तार करना और (iv) गैस और हरित हाइड्रोजन में परिवर्तन में तेज़ी लाना।
व्यापार करने में आसानी, नवाचार को बढ़ावा देना, व्यापार विनियमनों पर ध्यान देना, तथा सरकार-से-सरकार समझौते करना, जिससे उत्पादन प्रयासों में और सहायता मिलेगी।
दूसरा, तेल निर्यात को लगातार बढ़ाने की आवश्यकता है क्योंकि इससे तेल आयात आवश्यकताओं को आंशिक रूप से संतुलित करने और तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव को प्रबंधित करने में मदद मिलती है। यद्यपि तेल उत्पाद व्यापार अक्सर भू-राजनीतिक विचारों से निर्धारित होता है, भारत सिंगापुर, मैक्सिको, मलेशिया, तथा ब्रिटेन, फ्रांस और बेल्जियम जैसे यूरोपीय देशों सहित पेट्रोलियम के कुछ शीर्ष आयातक देशों में अपने बाज़ार का विस्तार करने पर विचार कर सकता है।
तीसरा, भारत को अन्य उत्पादों के विनिर्माण और निर्यात को बढ़ाने की आवश्यकता है, जो कि भविष्य में तेल आयात की खरीद के वित्तपोषण सहित कई आर्थिक और रणनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है। विनिर्माण के विस्तार और निर्यात के लिए प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने पर निरंतर ध्यान देना सामान्य रूप से समय की माँग है।
चौथा, भारत के तेल निर्यात में मौजूदा उछाल रूसी कच्चे तेल तक इसकी पहुँच के कारण है, जिसे अन्य देश वर्तमान में प्रतिबंधों के कारण टाल रहे हैं। किसी समय, इसे रूसी तेल आपूर्ति के लिए फिर से अन्य देशों के साथ प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता होगी, क्योंकि प्रतिबंधों के माध्यम से लागू मूल्य सीमा, परिवहन और बीमा पर प्रतिबंध हटा दिए जा सकते हैं। इसलिए, इसे विदेशों में तेल अन्वेषण और उत्पादन के लिए अपनी साझेदारी1 का विस्तार करना जारी रखना चाहिए।
पाँचवां, भारत एटीएफ और वैक्यूम गैस तेल जैसी नई श्रेणियों में निर्यात को बढ़ावा देने में सक्षम रहा है, जहाँ पहले वैश्विक बाज़ार में इसकी उपस्थिति कम थी। उच्च मूल्यवर्धित पेट्रोलियम उत्पादों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। अंत में, आयात पक्ष पर, भारत को ग्रेड एचवी, मोटर गैसोलीन, लाइट नेफ्था आदि जैसे मूल्यवर्धित पेट्रोलियम उत्पादों की खरीद में कटौती करने का प्रयास करना चाहिए, जिनका उत्पादन देश के भीतर किया जा सकता है।
निष्कर्ष
भारत के कुल निर्यात में तेल निर्यात का वर्तमान उच्च हिस्सा एक विचलन हो सकता है। हालाँकि, अतीत में भी, तेल भारत के निर्यात में एक बड़ा योगदानकर्ता रहा है, जबकि गैर-तेल निर्यात कोविड के बाद माँग में वृद्धि होने तक स्थिर रहा है।
हालाँकि, मौजूदा वैश्विक माँग और दीर्घकालिक हरित परिवर्तन को देखते हुए गैर-तेल निर्यात का लचीलापन कमज़ोर है। इसलिए, एक ओर पेट्रोलियम उत्पादों के निर्यात को बढ़ाने तथा दूसरी ओर निर्यात वस्तु के रूप में तेल से आगे जाने की दोहरी रणनीति उचित होगी।
इस लेख में व्यक्त किए गए विचार व्यक्तिगत हैं।
टिप्पणी:
- सरकारी कम्पनी ओएनजीसी विदेश ने, जिसके पास 15 देशों में 32 तेल और गैस परियोजनाएँ हैं, वर्ष 2022-23 में अपने क्षेत्रों से उत्पादन में गिरावट देखी है।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : शर्मिला कांता भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) की औद्योगिक नीति विशेषज्ञ हैं और ‘अर्थव्यवस्था एवं उद्योग’ सलाहकार बोर्ड की सदस्य हैं। भारतीय उद्योग से दस साल से अधिक समय से जुड़ी रहने के कारण उन्होंने आर्थिक नीति के मुद्दों पर व्यापक रूप से काम किया है।
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