भारत में 15 से 49 वर्ष की आयु की लगभग एक तिहाई महिलाएँ घरेलू हिंसा का सामना करती हैं। यह लेख जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम, बड़े पैमाने के एक स्कूल विस्तार कार्यक्रम, के कारण लड़कियों की शिक्षा में वृद्धि के उस प्रभाव की जाँच करता है जो वयस्क जीवन में घरेलू हिंसा पर पड़ता है। इसमें महिलाओं के प्रति लैंगिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव, साथी की गुणवत्ता में सुधार और सूचना तक पहुँच में वृद्धि के माध्यम से घरेलू हिंसा में उल्लेखनीय कमी पाई गई है।
वर्ष 2024 की शुरुआत में जारी वैश्विक आँकड़े दर्शाते हैं कि लगभग 27% महिलाओं को कम से कम एक बार अपने वर्तमान या पूर्व जीवन-साथी से शारीरिक या यौन हिंसा का सामना करना पड़ा है (विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ), 2021)। यह परेशान करने वाली प्रवृत्ति भारत में भी प्रतिबिंबित होती है, जहाँ 15 से 49 वर्ष की आयु के बीच की लगभग एक-तिहाई महिलाएं घरेलू हिंसा का अनुभव करती हैं (इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज़ (आईआईपीएस) और आईसीएफ, 2020)। घरेलू हिंसा का व्यक्तिगत प्रभाव हानिकारक होता है और यह निजी और सार्वजनिक, दोनों क्षेत्रों में महिलाओं की स्वतंत्रता में महत्वपूर्ण बाधाएँ पैदा करता है (राणा और अन्य 2023)। यह महिलाओं के स्वास्थ्य, शैक्षिक परिणामों और आर्थिक क्षमता को ख़राब करता है और अंततः समाज की मानव पूंजी के विकास को प्रतिबंधित करता है (एज़र 2011, कैंपबेल 2002, हुथ-बॉक्स एवं अन्य 2001, कोएनेन एवं अन्य 2003)।
संयुक्त राष्ट्र द्वारा निर्धारित सतत विकास लक्ष्यों के अनुरूप, मानव अधिकारों के व्यापक नुकसान और उल्लंघन को पहचानने और महिलाओं व लड़कियों के खिलाफ हिंसा को खत्म करने की तत्काल आवश्यकता है। इस सन्दर्भ में हम, अग्रवाल एवं अन्य में (2024), स्कूल जाने वाली उम्र की लड़कियों के लिए लक्षित शिक्षा सुधारों के बाद, उनके वयस्क जीवन में घरेलू हिंसा पर दीर्घकालिक प्रभाव की जाँच करते हैं।1
डेटा और कार्यप्रणाली
घरेलू हिंसा पर शिक्षा के प्रत्यक्ष प्रभाव को समझना कठिन है क्योंकि अन्य कारक, जैसे पारिवारिक धन या लिंग के बारे में मान्यताएं, महिला के शिक्षा स्तर और हिंसा का अनुभव करने के जोखिम, दोनों को प्रभावित कर सकते हैं। उदाहरण के लिए एक अमीर परिवार की महिला पर विचार करें जो आसानी से शिक्षा प्राप्त कर सकती है। उसकी शिक्षा के बजाय यह उसके परिवार की संपत्ति हो सकती है, जो उसे दुर्व्यवहार से सुरक्षा प्रदान करती है। यदि हम कुछ महिलाओं के शिक्षा स्तर को रैंडम तरीके से बढ़ा सकते तो हम पारिवारिक पृष्ठभूमि और मान्यताओं जैसे अन्य कारकों की परवाह किए बिना, घरेलू हिंसा पर इसके प्रभाव को सुलझा सकते या अलग कर सकते।
ऐसा करने के लिए हम भारत में एक बड़े पैमाने के अद्वितीय शिक्षा विस्तार कार्यक्रम का सहारा लेकर उसका अध्ययन करते हैं। वर्ष 1994 में शुरू किए गए, जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (डीपीईपी) ने कम महिला साक्षरता दर (1991 के राष्ट्रीय औसत 39.3% से नीचे) वाले क्षेत्रों में लगभग 1,60,000 नए स्कूल बनाए। यह कार्यक्रम एक प्राकृतिक प्रयोग की तरह है, जिसके ज़रिए हम उन महिलाओं के परिणामों की तुलना कर पाते हैं जो एक नए स्कूल में प्रवेश के लिए (थोड़ी अधिक साक्षरता वाले जिले में रहने के कारण) पात्र होने से चूक गईं और उन महिलाओं के लिए जो नए स्कूल में प्रवेश हेतु निर्धारित आयु सीमा पार कर गईं।
शोध का यह दृष्टिकोण, जिसे रिग्रेशन डिसकंट्युनिटी डिज़ाइन (आरडीडी) कहा जाता है, इससे हमें पारिवारिक आय या हिंसा के प्रति पहले से मौजूद दृष्टिकोण जैसे अन्य कारकों के प्रभाव को कम करके घरेलू हिंसा पर हस्तक्षेप (अधिक स्कूल) के प्रभाव को अलग करने में मदद मिलती है। चूँकि साक्षरता में मामूली अंतर घरेलू हिंसा को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करता है, इस दृष्टिकोण हम पात्रता मानदंड के निकट (अर्थात उसके ठीक ऊपर या नीचे) में हस्तक्षेप का 'मानो रैंडम' असाइनमेंट कर आते हैं।
परिणाम- घरेलू हिंसा की व्यापकता को जनसांख्यिकी और स्वास्थ्य सर्वेक्षण (2015-16) से महिलाओं द्वारा दुर्व्यवहार के विभिन्न रूपों के स्व-रिपोर्ट किए गए अनुभवों के आधार पर मापा जाता है।
निष्कर्ष
आकृति-1. घरेलू हिंसा पर डीपीईपी का प्रभाव
टिप्पणियाँ : (i) प्लाट डीपीईपी पात्रता मानदंड (जिला महिला साक्षरता 39.3% से नीचे) और घरेलू हिंसा की घटनाओं के बीच संबंधों के प्रतिगमन असंततता डिजाइन विश्लेषण को दर्शाता है। (ii) क्षैतिज अक्ष एक सीमा (लाल बिंदीदार रेखा द्वारा इंगित) के आसपास केन्द्रित महिला साक्षरता दर को दर्शाता है और यह +/-10 प्रतिशत अंक की सीमा के भीतर है। बिंदीदार रेखा के बाईं ओर की सीमा से नीचे वाले लोग डीपीईपी के लिए पात्र थे और दाईं ओर वाले नहीं थे। (iii) ऊर्ध्वाधर मापों से घरेलू हिंसा के मामलों की सूचना मिली। (iv) 95% विश्वास अंतराल (सीआई) अनुमानित प्रभावों के बारे में अनिश्चितता व्यक्त करने का एक तरीका है। विशेष रूप से, इसका मतलब यह है कि यदि आप नए नमूनों के साथ प्रयोग को बार-बार दोहराते हैं, तो गणना किए गए विश्वास अंतराल के 95% समय में सही प्रभाव होगा।
पात्रता सीमा (ऊर्ध्वाधर लाल बिंदीदार रेखा) पर रेखा में स्पष्ट रूप से नीचे की ओर बदलाव देखा गया है। प्रत्येक 'बिन' के भीतर नमूना औसत का प्रतिनिधित्व करने वाले डेटा बिंदु डीपीईपी के लिए पात्र महिला साक्षरता सीमा के बाईं ओर के जिलों के सन्दर्भ में प्रवृत्ति में एक विराम दर्शाते हैं- दाईं ओर की तुलना में घरेलू हिंसा की घटनाएं कम हो जाती हैं। विशेष रूप से, कार्यक्रम-योग्य जिलों में महिलाओं ने गैर-योग्य जिलों की तुलना में घरेलू हिंसा के मामलों में 10 प्रतिशत अंक की कमी का अनुभव किया।2 स्कूल विस्तार कार्यक्रम के लिए एक उपकरण के रूप में पात्रता संकेतक का उपयोग करते हुए, हम 'फ़ज़ी आरडीडी'3 के उपयोग से उन महिलाओं पर इसके प्रभाव का अनुमान लगाते हैं जिन्होंने वास्तव में 'स्थानीय औसत उपचार प्रभाव (लोकल एवरेज ट्रीटमेंट इफ़ेक्ट)' प्राप्त किया था। हमने पाया कि कार्यक्रम से किसी भी प्रकार की हिंसा में 32 प्रतिशत अंक की कमी आई है। इसमें भावनात्मक शोषण में 13 प्रतिशत अंक की कमी, कम गंभीर शारीरिक हिंसा में 26 प्रतिशत अंक की कमी, यौन हिंसा में 9 प्रतिशत अंक की कमी और हिंसा संबंधित चोटों में 10 प्रतिशत अंक की कमी शामिल है।
तंत्र
हमारे नतीजे दर्शाते हैं कि बड़े पैमाने पर स्कूल विस्तार कार्यक्रम से घरेलू हिंसा में उल्लेखनीय कमी आई है। आख़िर किस तरह से? अपने निष्कर्षों को नीति के लिए प्रासंगिक और उपयोगी बनाने के लिए हमें उन मार्गों का और विश्लेषण करने की आवश्यकता है जो इन परिणामों को स्पष्ट रुप से दर्शाते हैं।
कार्यक्रम ने उल्लेखनीय रूप से, महिलाओं की शैक्षिक उपलब्धि को लगभग एक वर्ष तक बढ़ा दिया, लेकिन इससे कार्यबल में महिलाओं की अधिक भागीदारी या आय में वृद्धि नहीं हुई। यह भारत में एक हैरान करने वाली प्रवृत्ति के अनुरूप है : पिछले 20 वर्षों में शैक्षिक लाभ महिलाओं के लिए बेहतर आर्थिक अवसरों में तब्दील नहीं हुआ है (उदाहरण के लिए, क्लासेन और पीटर (2015) और जयचंद्रन (2021) देखें)। इसके अलावा, हमें उनके परिवारों में महिलाओं की निर्णय लेने की शक्ति में कोई बदलाव नहीं मिला। इससे हमें पता चलता है कि पारंपरिक आर्थिक स्पष्टीकरण इस बात का पूरी तरह से वर्णन नहीं कर सकते हैं कि शिक्षा प्राप्त करने पर घरेलू हिंसा का मुकाबला कैसे किया जा सकता है।
इन निष्कर्षों को देखते हुए, हम लैंगिक दृष्टिकोण और मान्यताओं पर शिक्षा के प्रभाव की जाँच करते हैं। महिलाओं की लैंगिक समानता में आस्था और घरेलू हिंसा के प्रति उनकी कम सहनशीलता से प्रतिशोध की सम्भावना अधिक हो सकती है इसलिए, सामाजिक स्वीकृति और कानूनी परिणामों के सन्दर्भ में घरेलू हिंसा के परिणाम महत्वपूर्ण हो गए हैं। हमने पाया है कि अधिक शिक्षित महिलाओं के काम के लिए घर से बाहर जाने और बच्चों की उपेक्षा करने के सन्दर्भ में हिंसा को उचित ठहराने में 28 प्रतिशत अंक की कमी आई है। बेवफ़ाई और अनादरपूर्ण व्यवहार के लिए हिंसा को उचित ठहराने में क्रमशः 19 और 35 प्रतिशत अंक की गिरावट आई है। कुल मिलाकर, शिक्षित महिलाओं में हिंसा की कम स्वीकार्यता के साथ लैंगिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण सुधार नज़र आया है। इसके बाद, हम महिलाओं के साझेदारों की कुछ विशेषताओं को देखकर साझेदार की गुणवत्ता का पता लगाते हैं। हम शिक्षित और कम-शिक्षित महिलाओं के बीच उनके जीवन-साथियों के लैंगिक दृष्टिकोण में महत्वपूर्ण अंतर पाते हैं। शिक्षित महिलाओं के जीवन-साथियों द्वारा घरेलू हिंसा को उचित ठहराने की सम्भावना कम होती है, जो रिश्ते के भीतर कम हिंसा-प्रवण वातावरण में योगदान करता है। इसके अलावा, शिक्षित महिलाएं शादी के लिए अमीर जीवन-साथी चुनती हैं, जिससे वित्तीय तनाव कम होता है और घरेलू झगड़े भी कम हो सकते हैं (अन्य देश के सन्दर्भ में निष्कर्षों के लिए हौसहोफर एवं अन्य (2019) देखें)।
अंततः हम यह जाँच करते हैं कि शिक्षा महिलाओं की सूचना तक पहुँच को कैसे प्रभावित करती है। अपने कम-शिक्षित समकक्षों की तुलना में, अधिक शिक्षित महिलाओं में समाचार पत्रों से जुड़ने की सम्भावना 17 प्रतिशत अंक अधिक है और मोबाइल टेक्स्ट संदेशों का उपयोग करने में 13 प्रतिशत अंक अधिक रुचि नज़र आती है। इसके अतिरिक्त, इस बात के प्रमाण हैं कि उपचारित जिलों में महिलाएं औपचारिक संस्थानों से मदद लेने में अधिक सक्रिय हैं जो दर्शाता है कि शिक्षा उन्हें घरेलू हिंसा को चुनौती देने के लिए ज्ञान और संसाधनों के साथ सशक्त बनाती है।
नीतिगत निहितार्थ
हमारा शोध दर्शाता है कि महिलाओं के खिलाफ घरेलू हिंसा को कम करने के लिए शिक्षा एक उपयोगी नीतिगत साधन के रूप में काम आती है। यह मुख्य रूप से महिलाओं के लैंगिक दृष्टिकोण में सकारात्मक बदलाव, उनके जीवन-साथियों की गुणवत्ता और सूचना तक उनकी पहुँच में वृद्धि से जुड़ी है, जो महिलाओं को सक्रिय रूप से मदद लेने के लिए सशक्त बनाती है। हमने पाया है कि ये कारक अधिक प्रभावशाली हैं, क्योंकि शिक्षा को महिलाओं की आर्थिक स्थिति या पारिवारिक निर्णयों में उनके अधिकार में महत्वपूर्ण बदलाव के रूप में नहीं देखा जाता है।
यह अध्ययन लैंगिक मान्यताओं और घरेलू हिंसा के प्रति दृष्टिकोण के बारे में धारणाओं को बदलने में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका पर प्रकाश डालता है, जिससे सामाजिक स्वीकृति और कानूनी परिणामों के सन्दर्भ में हिंसा का कार्य महंगा हो जाता है। हमारे निष्कर्ष उन नीतियों का समर्थन करते हैं जो महिलाओं और पुरुषों, दोनों की लैंगिक मान्यताओं और दृष्टिकोण को बदलने पर ध्यान केन्द्रित करती हैं, क्योंकि ये लिंग आधारित हिंसा से निपटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
शिक्षा से सूचना चैनल के द्वार भी खुलते हैं और महिलाओं को हिंसा से निपटने के लिए साधन प्रदान कर सकती है। हालाँकि, घरेलू हिंसा की रिपोर्ट करने के निर्णय को शैक्षिक प्रगति कैसे निर्देशित करती है, इस बारे में हमारी समझ डेटा संबंधी सीमाओं के कारण अभी भी प्राथमिक स्तर पर है। भविष्य के शोध में यह पता लगाया जाना चाहिए कि शिक्षा औपचारिक अधिकारियों को घरेलू हिंसा की रिपोर्ट करने की प्रवृत्ति को कैसे प्रभावित करती है। घरेलू हिंसा की व्यापकता के खिलाफ लड़ाई में रिपोर्टिंग दरों को बढ़ाना एक महत्वपूर्ण रणनीति हो सकती है।
टिप्पणियाँ:
- यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि शादी के लिए महिलाओं का प्रवासन एक आम बात है। हालाँकि, महिलाओं का एक महत्वपूर्ण अनुपात, लगभग 73%, उम्र-भर अपने जन्म जिले के भीतर ही रहता है (ब्यूचैम्प एवं अन्य 2023)। इससे पता चलता है कि डीपीईपी से मिलने वाले शैक्षिक लाभ कम महिला साक्षरता दर वाले क्षेत्रों में रहने वाली अधिकांश महिलाओं के लिए प्रासंगिक बने रहने की सम्भावना है।
- ये कम-रूप के अनुमान या 'इंटेंशन टू ट्रीट’' (आईटीटी) प्रभाव हैं जहाँ हम कार्यक्रम के लिए प्रॉक्सी के रूप में महिला साक्षरता कट-ऑफ संकेतक का उपयोग करते हैं। यह 'उपचार' की पेशकश के प्रभाव को मापता है, जरूरी नहीं कि इसे लिया जाए।
- एक अस्पष्ट आरडीडी उन लोगों पर कार्यक्रम के प्रभाव को मापता है जो वास्तव में उपचार (अधिक स्कूली शिक्षा) लेते हैं क्योंकि वे पात्र हैं। इस मामले में, एलएटीई केवल जिले की उन महिलाओं को देखेगा जो पात्र थीं और जिन्होंने हस्तक्षेप प्राप्त किया था, उनकी तुलना ऐसे ही समूह से की जाएगी, जो कार्यक्रम के लिए पात्र नहीं थे।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
लेखक परिचय : माधुरी अग्रवाल अंतर्राष्ट्रीय विकास केन्द्र के एनएफईआर में अर्थशास्त्री हैं। उनकी विशेषज्ञता में मूल्यांकन परियोजनाओं का डिज़ाइन और विश्लेषण शामिल है जो क्वासि डिज़ाइनों सहित कई मात्रात्मक और गुणात्मक तरीकों का उपयोग करते हैं। विक्रम बहुरे अंतर्राष्ट्रीय विकास विभाग में पोस्टडॉक्टरल रिसर्च एसोसिएट हैं। वह वर्तमान में एलाइव परियोजना में आर्थिक हस्तक्षेप टीम का हिस्सा हैं, जो गरीबी के प्रभाव से निपटने में किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाने पर केंद्रित है। कत्जा बर्गोन्ज़ोली स्विट्जरलैंड के लॉज़ेन विश्वविद्यालय के एचईसी में अर्थशास्त्र के शोधार्थी हैं। उनका शोध राजनीतिक, संघर्ष और विकास अर्थशास्त्र पर केंद्रित है। सौपर्ण माजी जिनेवा विश्वविद्यालय में अर्थशास्त्र के शोधार्थी हैं और स्विस नेशनल साइंस फाउंडेशन द्वारा वित्त पोषित एक परियोजना में शोध सहायक हैं, जो वैश्विक व्यापार बाह्यताओं पर केंद्रित है।
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