समूचे भारत में गरीबों के लिए मुफ्त स्वास्थ्य सेवा में विस्तार होने के बावजूद, कई अस्पतालों ने मरीज़ों की जेब से फीस लेना जारी रखा है। डुपास और जैन ने अपने अध्ययन में, इस बात की जांच की है कि क्या मरीज़ों को उनके लाभों के बारे में सूचित करने से अस्पतालों को जवाबदेह बनाने में मदद मिलती है। वे राजस्थान की एक सरकारी योजना के तहत, बीमा के हकदार डायलिसिस मरीज़ों का सर्वेक्षण करते हैं और पाते हैं कि निजी एवं सार्वजनिक अस्पतालों में जानकारी संबंधी हस्तक्षेप के प्रभाव अलग-अलग तरीके से उजागर होते हैं और केवल सार्वजनिक अस्पतालों में परीक्षण और दवाओं की कम कीमतों के कारण मरीज़ों के जेब से भुगतान में कमी आती है।
दुनिया भर में कम आय वाले परिवारों के लिए स्वास्थ्य देखभाल एक प्रमुख खर्च है और ये लागतें गरीबी की समस्या को और बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि स्वास्थ्य देखभाल लागत हर साल 10 करोड़ लोगों को अत्यधिक गरीबी में धकेलती है (डब्ल्यूएचओ, 2022)। भारत में स्वास्थ्य संबंधी खर्चों का बोझ असाधारण रूप से अधिक है, जहां लगभग 20% परिवार संबंधित वर्ष में स्वास्थ्य व्यय पर 'भयंकर' खर्च के अनुभव से गुज़रते हैं ।
इस समस्या के समाधान के लिए भारत और कई अन्य देशों के नीति निर्माताओं ने सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा के प्रावधान का विस्तार किया है। फिर भी, कई अस्पताल मरीज़ों से उनकी जेब से फीस लेना जारी रखते हैं और कार्यक्रमों के कई लाभार्थियों को उन लाभों के बारे में पता नहीं होता है, जिसके वे हकदार होते हैं। क्या ऐसी 'बॉटम-अप' जवाबदेही से, जिस में मरीज़ों को उनके अधिकारों के बारे में जानकारी दी जाती हो और वे फीस कम करने के लिए दबाव डाल सकते हों या स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को बदल सकते हों, अस्पतालों को जवाबदेह बनाने में मदद मिल सकती है?
इस अध्ययन (डुपास और जैन 2023) में हम राजस्थान में सरकारी स्वास्थ्य बीमा की प्रभावशीलता में अस्पताल के अनुपालन की भूमिका की जांच करते हैं। हमने निजी और सार्वजनिक अस्पतालों के मरीज़ों का, लाभों के बारे में उन की जागरूकता को मापने के लिए सर्वेक्षण किया और यह भी मूल्यांकन किया कि क्या मरीज़ों को जानकारी प्रदान करने से वे अस्पतालों को जवाबदेह ठहरा सकते हैं और उनका पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैं।
जेब से भुगतान का बने रहना
कम आय वाले देशों में स्वास्थ्य सेवा की पहुंच बढ़ाने और स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय जोखिमों को कम करने के लिए सरकार द्वारा वित्तपोषित स्वास्थ्य बीमा एक प्रमुख नीति का साधन रहा है (बुकमैन एवं अन्य 2020)। भारत में केंद्र और राज्य सरकारों ने गरीब परिवारों को मुफ्त अस्पताल देखभाल प्रदान करने वाले सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा का वर्ष 2008 से तेजी से विस्तार किया है और वर्ष 2021 तक, सरकारी स्वास्थ्य बीमा पर राष्ट्रीय बजट 6,400 करोड़ ($1 बिलियन) रुपये था (शुक्ला और कपूर 2022)।
इन उपायों के बावजूद, भारत में स्वास्थ्य पर जेब से किया जाने वाला खर्च बहुत अधिक बना हुआ है और कई देशों में बढ़ा भी है। दुनिया भर के सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने पर पाया गया कि उनका स्वास्थ्य सेवाओं की पहुंच पर सकारात्मक प्रभाव पड़ा है जबकि, जेब से भुगतान पर मिश्रित प्रभाव पड़ा है (गैड़ियों एवं अन्य 2013)। कई अध्ययनों से पता चलता है कि भारत में परिवार बीमा कवरेज के बावजूद स्वास्थ्य पर बड़ी रकम खर्च करना जारी रखते हैं (राव एवं अन्य 2012, करण एवं अन्य 2017, नंदी एवं अन्य 2017, श्रीराम और खान 2020, मलानी एवं अन्य 2021)। यह सुनिश्चित करने के लिए कि बीमा वित्तीय सुरक्षा बढ़ाने के अपने लक्ष्य को पूरा करे, हमें इन लागतों के कारणों को समझने और स्केलेबल समाधानों की पहचान करने की आवश्यकता है।
इन लागतों के बने रहने के पीछे एक स्पष्टीकरण बीमा लाभों के बारे में मरीज़ों की कम जागरूकता हो सकता है (बरिक एवं अन्य 2020)। इसके कारण अस्पतालों को कार्यक्रम के नियमों का उल्लंघन करने और मरीज़ों से उन सेवाओं के लिए शुल्क लेने का मौका मिलता है, जो निःशुल्क होनी चाहिए। सार्वजनिक कार्यक्रमों में लीकेज को कम करने के तरीके के रूप में और यह सुनिश्चित करने के लिए कि नागरिकों को उनके पूर्ण अधिकार प्राप्त हों, लक्षित लाभार्थियों को जानकारी देकर और सशक्त बनाकर 'बॉटम-अप' जवाबदेही बढ़ाने की अक्सर वकालत की जाती है (विश्व बैंक, 2003)। जवाबदेही का उपाय मरीज़ों को उनकी 'आवाज' उठाने में और प्रदाताओं से अपने लाभों का दावा करने में, या दूसरे प्रदाताओं के पास जाने का विकल्प चुनने में मदद कर सकते हैं जो उनकी आवश्यकताओं को बेहतर ढंग से पूरा करते हों (हर्शमैन 1972, देवराजन और रैनिका 2004)। हालांकि ऐसे प्रयास वास्तव में प्रभावी हैं या नहीं, यह कार्यक्रम के संदर्भ पर निर्भर करता है।
क्या जानकारी 'बॉटम-अप' जवाबदेही को बढ़ा सकती है और मरीज़ों के लिए लागत में कमी ला सकती है?
हमारा शोध, राजस्थान में 4.6 करोड़ लोगों को सार्वजनिक और कुछ निजी अस्पतालों में मुफ्त देखभाल का अधिकार देनेवाली भामाशाह स्वास्थ्य बीमा योजना (बीएसबीवाइ) जो राज्य द्वारा संचालित सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा का एक विशाल कार्यक्रम है, के संदर्भ में किया गया।
हमने सरकारी स्वास्थ्य बीमा की प्रभावशीलता के संदर्भ में अस्पताल के अनुपालन की भूमिका का अध्ययन किया। हमने सर्वेक्षण डेटा का उपयोग और एक सूचना हस्तक्षेप का यादृच्छिक मूल्यांकन, यह परीक्षण करने के लिए किया कि क्या कार्यक्रम के लाभों के बारे में फोन-आधारित जानकारी बीमा लाभार्थियों को अस्पतालों को जवाबदेह और मरीज़ों के लिए लागत को कम रखने में सक्षम बना सकती है।
यह अध्ययन गुर्दे की गंभीर बीमारी1 के लिए डायलिसिस उपचार की आवश्यकता वाले मरीज़ों पर किया गया था। हमने सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा योजना कार्यक्रम को स्वीकार करने वाले 91 अस्पतालों (70 निजी और 21 सार्वजनिक) के 1,113 डायलिसिस मरीज़ों का सर्वेक्षण किया। ये सर्वेक्षण फोन के जरिये किए गए और उनका उपयोग बीएसबीवाइ पात्रता, देखभाल की मांग और पिछले महीने के जेब से भुगतानों के बारे में उनकी जागरूकता पर डेटा एकत्र करने के लिए किया गया।
सर्वेक्षण के अंत में, मरीज़ों (या उनकी देखभाल के प्रभारी रिश्तेदार) को फोन पर सूचना प्राप्त हुई। उन्हें जानकारी दी गई कि वे बीमा के तहत मुफ्त देखभाल के हकदार हैं, मुफ्त में डायलिसिस प्रदान करने के लिए सरकार अस्पतालों को कितना भुगतान करती है और उनके अस्पताल के 10 किलोमीटर दूरी के भीतर तीन अन्य भाग लेने वाले अस्पतालों के नाम भी बताए गए। यह सूचना-सामग्री पहले बताए गए उत्तरदायित्व के दो चैनलों को मजबूत करने के लिए डिज़ाइन की गई थी : 'आवाज़ उठाना' (भुगतान को कम करने के लिए अस्पताल के साथ बातचीत करना) और 'अस्पताल बदलना' (एक अलग सार्वजनिक या गैर-बीएसबीवाइ अस्पताल को चुनना)।
हमने सर्वेक्षण से प्राप्त जानकारी और सूचना को अलग-अलग किया, जिससे हमें ‘उपचारित’ व्यक्तियों और जिनका ‘उपचार’ बाकी है, के बीच परिणामों की तुलना करने में मदद मिली। साथ ही साथ, हस्तक्षेप से पहले और बाद में उनके व्यवहार की भी तुलना करने में मदद मिली। सूचना मिलने के 7-8 सप्ताह बाद, हम ने एक अनुवर्ती सर्वेक्षण के जरिए प्रभावों को मापा। हम ने औसत प्रभावों के साथ-साथ, बीएसबीवाइ को स्वीकार करने वाले सार्वजनिक अस्पतालों और निजी अस्पतालों पर प्रभावों को भी देखा।
परिणाम के मुख्य बिन्दु
हम ने पाया कि लोगों में उनको मिलने वाले लाभों के बारे में जागरूकता कम है और यह भी कि मुफ्त देखभाल प्राप्त करने के पात्र गरीब मरीज़ों से, योजना में शामिल अस्पताल अक्सर अनाधिकृत शुल्क लेते हैं। गुर्दे की गंभीर बीमारी वाले मरीज़ों द्वारा औसत जेब से भुगतान, जैसा कि आकृति-1 में दिखाया गया है, लगभग रु. 3,000 प्रति माह ($ 43 के बराबर, या भारत की वार्षिक जीडीपी प्रति व्यक्ति का 25%) है। सार्वजनिक (2,300 रुपये) और निजी (3,300 रुपये) दोनों अस्पतालों में लागत अधिक है और जांच और दवाएं जो मरीज़ों को अस्पताल के बाहर से प्राप्त करनी पड़ती हैं, इनके लिए औसत खर्च कुल खर्च का 45% (और सार्वजनिक अस्पतालों में 60%) है। मरीज़ों द्वारा कई महीनों तक बीमा का उपयोग किए जाने के बावजूद, उन में कार्यक्रम के लाभों के बारे में जागरूकता कम है।
आकृति-1. बेसलाइन पर जेब से भुगतान
टिप्पणियाँ : i) यह आंकड़ा हमारे प्रयोग से पहले, सर्वेक्षण से पहले के महीने में (बेसलाइन पर), मरीज़ों द्वारा अपने डायलिसिस उपचार के लिए सार्वजनिक और निजी अस्पतालों में किए गए औसत जेब से खर्च को प्रस्तुत करता है। ii) कुल भुगतानों को बीएसबीवाई अस्पताल को सीधे भुगतान की गई राशि और परीक्षणों व दवाओं के लिए भुगतान की गई अतिरिक्त राशि के रूप में विभाजित किया गया है, जो मरीज़ों को उसी दौरे के लिए अस्पताल के बाहर से प्राप्त करने पड़ते थे।
हम ने पाया कि मरीज़ों को फोन-आधारित जानकारी प्रदान करने से उनकी बीएसबीवाइ पात्रता के बारे में जागरूकता में बड़ी और महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है (आकृति-2 देखें)। हम जागरूकता सूचकांक पर 0.17 मानक विचलन2 की बढ़ोतरी पाते हैं, जिसमें छह प्रश्न शामिल हैं, और ये प्रभाव गरीब, कम शिक्षित और महिला मरीज़ों के लिए बड़े (कुछ मामलों में काफी बड़े) हैं। प्राप्त जानकारी के साथ, मरीज़ों ने 'आवाज़ उठाना' और ‘अस्पताल बदलना' दोनों तरीकों का प्रयोग किया– उन्होंने अधिक रक़म के लिए मोलभाव किया और ‘नियंत्रण’ समूह की तुलना में अन्य अस्पतालों में स्विच करने की उनकी संभावना भी अधिक थी।
आकृति-2. जागरूकता और खर्च पर फोन-आधारित जानकारी का प्रभाव
टिप्पणियाँ : i) यह आंकड़ा बीएसबीवाइ बीमा कार्यक्रम के तहत मरीज़ों को उनके लाभों के बारे में उनकी जागरूकता के संबंध में और पिछले महीने में देखभाल के लिए उनके द्वारा किये गए जेब से खर्च पर फोन-आधारित सूचना हस्तक्षेप के प्रभाव को प्रस्तुत करता है। ii) मरीज़ों को बेसलाइन पर सार्वजनिक या निजी अस्पताल में जाने के आधार पर विभाजित किया गया है।
इन कार्रवाइयों से औसतन जेब से भुगतान में कमी नहीं आई, जबकि अस्पताल क्षेत्र में पर्याप्त विषमता पाई गई। मरीज़ों को जानकारी होने के बावजूद उनके द्वारा निजी अस्पतालों में जेब से भुगतान करने में कोई बदलाव नजर नहीं आया। भले ही मरीज़ों के मोलभाव करने की संभावना अधिक थी और कुछ (हालांकि बड़ी संख्या में नहीं- हमने 5.4 प्रतिशत बिंदु परिवर्तन देखा है) अन्य अस्पतालों में चले भी गए, अस्पतालों ने मोलभाव को अपेक्षाकृत कम स्वीकार किया। जिन लोगों ने अस्पताल बदला, उनके ऐसे अस्पताल में जाने की अधिक संभावना रही जो सार्वजनिक बीमा स्वीकार नहीं करते थे।
सार्वजनिक अस्पतालों में इस जानकारी के कारण जेब से भुगतान में 35% (लगभग रु. 800) की कमी आई। यह प्रभाव अस्पताल से मुफ्त दवाओं और जांच का अनुरोध करने वाले मरीज़ों में वृद्धि से प्रेरित था ('अस्पताल बदलना' के बजाय 'आवाज़ उठाना' का उपयोग)। दरअसल, सार्वजनिक अस्पताल के मरीज़ों द्वारा किए गए भुगतान में कमी, अस्पताल में किए गए खर्चों में कमी के बजाय अस्पताल में जांच और खरीदी गई दवाओं के भुगतान की संभावना और राशि में कमी से आई है। ‘नियंत्रण’ समूह में, सार्वजनिक अस्पताल के 53% मरीज़ों ने अस्पताल के बाहर इन वस्तुओं को प्राप्त करने और भुगतान करने की सूचना दी (अधिकतर इसलिए कि अस्पताल कर्मचारियों का कहना था कि वे स्टॉक में नहीं थी या अस्पताल परिसर में अनुपलब्ध थी); ‘उपचार समूह’ में इसमें 13.2 प्रतिशत की कमी आई।
हमारे परिणामों से पता चलता है कि जटिल स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों सहित सार्वजनिक लाभों के बारे में जागरूकता को मजबूत करने के लिए सरल फोन-आधारित जानकारी का प्रावधान एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
निष्कर्ष
स्वास्थ्य संबंधी पहुंच और स्वास्थ्य संबंधी वित्तीय जोखिमों से सुरक्षा का विस्तार करना वैश्विक प्राथमिकताएं हैं और सरकारी स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों को इन लक्ष्यों को प्राप्त करने के एक साधन के रूप में दुनिया भर में तेजी से विस्तारित किया जा रहा है। हमारा शोध इन प्रणालियों के अंतर्गत जवाबदेही बढ़ाने की आवश्यकता पर साक्ष्य उपलब्ध कराता है और दर्शाता है कि उस लक्ष्य तक पहुंचने में सहायता हेतु सूचना हस्तक्षेप एक साधन है।
भारत में, सूचना हस्तक्षेप ने सार्वजनिक स्वास्थ्य बीमा के लाभार्थियों को सार्वजनिक अस्पतालों में अपना हक़ जताने और स्वास्थ्य बीमा के उचित लाभ प्राप्त करने में मदद की। हस्तक्षेप का निजी अस्पतालों पर समान प्रभाव नहीं था, हालांकि यह दर्शाता है कि लाभ-अधिकतम की प्रवृत्ति वाली निजी कंपनियों के मूल्य-निर्धारण व्यवहार को बदलने हेतु टॉप-डाउन निगरानी और अस्पताल के वित्तीय प्रोत्साहनों में परिवर्तन की आवश्यकता हो सकती है।
इस शोध से पता चलता है कि निचले स्तर के कार्यक्रम सार्वजनिक अस्पतालों को जवाबदेह बनाने और कम आय वाले परिवारों की स्वास्थ्य देखभाल की लागत को कम करने में मदद कर सकते हैं। क्योंकि सार्वजनिक अस्पताल निजी अस्पतालों की तुलना में गरीब और सामाजिक रूप से अधिक वंचित व्यक्तियों की सेवा करते हैं, इसलिए सूचना हस्तक्षेप से गरीब परिवारों को बहुत लाभ होने की संभावना है, जिन्हें अन्यथा अपनी जेब से भुगतान करना पड़ता है।
हालांकि राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा कार्यक्रमों को, अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने और लक्षित आबादी को लाभ पहुँचाने के लिए पर्याप्त निगरानी और जवाबदेही प्रणालियों सहित, उचित रूप से डिज़ाइन किए गए प्रोत्साहनों की आवश्यकता बनी रहेगी।
फुटनोट :
- इन मरीज़ों का चयन इसलिए किया गया क्योंकि i) डायलिसिस एक बार-बार की जानेवाली, दीर्घकालिक और महंगी सेवा है, इसलिए जानकारी से संभावित लाभ पर्याप्त हैं, और ii) यह एक मानकीकृत सेवा है, जिसमें मरीज़ों और अस्पताल के उपचार की प्रक्रिया में अपेक्षाकृत कम भिन्नता है और iii) प्राथमिक देखभाल पर केंद्रित अधिकांश शोधों के विपरीत, इससे हम विशेष, जीवन रक्षक अस्पताल देखभाल के संदर्भ में रोगी-संचालित जवाबदेही के प्रभावों का अध्ययन कर पाते हैं।
- मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग किसी सेट के माध्य मान से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा निर्धारित करने के लिए किया जाता है।
आगे पढ़ने के लिए : संदर्भों की पूरी सूची के लिए कृपया यहां दिए गए 'फर्दर रीड़िंग' अनुभाग को देखें ।
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लेखक परिचय:
पास्कलिन डुपास स्टैनफोर्ड इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक पॉलिसी रिसर्च (एसआईईपीआर) में अर्थशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और फ्रीमैन स्पोगली इंस्टीट्यूट (एफएसआई) में सीनियर फेलो हैं।
राधिका जैन यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन के ग्लोबल बिजनेस स्कूल फॉर हेल्थ में स्वास्थ्य अर्थशास्त्र की असिस्टेंट प्रोफेसर और जेपीएएल दक्षिण एशिया में आमंत्रित शोधकर्ता हैं।
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