हर साल 22 अप्रैल को दुनिया भर में पृथ्वी दिवस मनाया जाता है जो पर्यावरण की रक्षा और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए समर्पित एक वैश्विक आंदोलन है। जलवायु संकट के और भी गंभीर होने के साथ ही, आज पृथ्वी के संरक्षण की हमारी साझा जिम्मेदारी पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। विकासशील देशों में युवा वर्ग जलवायु परिवर्तन के बारे में चिंतित हैं और इसके लिए उचित कदम उठाने के लिए तैयार हैं लेकिन व्यवहारिक जानकारी और ज्ञान की कमी के कारण वे विवश हैं। पृथ्वी दिवस पर प्रस्तुत इस लेख में मसूद और सबरवाल विश्वबैंक की हालिया रिपोर्ट से प्राप्त अंतर्दृष्टि पर चर्चा करते हैं, जिसमें बताया गया है कि शिक्षा किस प्रकार जलवायु से जुड़ी कार्रवाई को आगे बढ़ाने के लिए इस विसंगति को दूर कर सकती है। वे जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न होने वाले जोखिम से शैक्षिक प्रणालियों की सुरक्षा की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालते हैं।
"मैंने खबर सुनी है कि पृथ्वी नष्ट हो जाएगी...और इसका समाधान लोगों के अपना व्यवहार बदलने से हो सकता है...लेकिन हम बदलना नहीं चाहते...समाधान यहीं सामने है और सभी को दिख भी रहा है ; हमें बस बदलना है।”
- एक पर्यावरण इंजीनियरिंग छात्र, मोज़ाम्बिक (सबरवाल एवं अन्य 2024 में उद्धृत)
विश्व बैंक के एक हालिया सर्वेक्षण (सबरवाल एवं अन्य 2024) से पता चलता है कि आठ निम्न और मध्यम आय वाले देशों (भारत, बांग्लादेश, कज़ाखस्तान, अंगोला, तंज़ानिया, कोलंबिया, सेनेगल और चीन) के लगभग 79% युवा मानते हैं कि उनका देश जलवायु परिवर्तन संबंधी आपातकाल की स्थिति में है। इसमें लगभग 85% युवा (17-25 वर्ष के) शामिल हैं जिनका भारत में साक्षात्कार में किया गया। इनमें से लगभग 83% भारतीय युवा जलवायु परिवर्तन के कारण भविष्य को लेकर भयभीत महसूस कर रहे हैं।
यह भावना विकासशील दुनिया भर के फोकस समूह चर्चाओं में भी दिखाई देती है। एक विश्वविद्यालय के छात्र ने बताया कि जलवायु परिवर्तन से उन्हें “अत्यधिक चिंता” हो रही है, जबकि अन्य को डर लगता है कि पृथ्वी नष्ट होने के कगार पर है, जिसके चलते वे "मनोवैज्ञानिक रूप से प्रभावित" महसूस कर रहे हैं। कुछ लोग तो इतने अधिक परेशान हैं कि उन्हें कक्षाओं में जाने में भी कठिनाई होती है, या वे सामाजिक मेलजोल से भी पूरी तरह से दूर रह रहे हैं।
इसके बावजूद इस डर के साथ-साथ, क्रोध और हताशा की भावना भी है, साथ ही इस दिशा में कार्रवाई करने और बदलाव की मांग करने की तत्परता भी है। तो ऐसा करने से उन्हें कौन सी बात रोक रही है? कई मामलों में, उनके पास जानकारी और ज्ञान की कमी है। बांग्लादेश में कक्षा 8 के 88% छात्रों ने दावा किया कि वे जलवायु परिवर्तन के खिलाफ़ कार्रवाई करने के लिए तैयार और इच्छुक हैं। हालाँकि, केवल 32% लोग ही जलवायु से जुड़े बुनियादी प्रश्नों के सही उत्तर दे पाए।
विश्व बैंक की रिपोर्ट, "अपना भविष्य चुनना : जलवायु कार्रवाई के लिए शिक्षा (चूज़िंग आवर फ्यूचर : एजुकेशन फॉर क्लाइमेट एक्शन)” में प्रस्तुत नया डेटा और विश्लेषण इस विसंगति को सामने लाता है और यह दर्शाता है कि जलवायु चिंता तथा जलवायु कार्रवाई के बीच की खाई को पाटने में शिक्षा क्या भूमिका निभा सकती है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षा किस तरह सूचना और कौशल के अंतर को पाटकर जलवायु संबंधी कार्रवाई को आगे बढ़ा सकती है। इसमें जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न खतरों से शैक्षिक प्रणालियों की सुरक्षा करने की आवश्यकता पर भी बल दिया गया है।
शिक्षा और कौशल जलवायु संबंधी कार्रवाई को आगे बढ़ाने में सहायक हो सकते हैं
रिपोर्ट के अनुसार, शिक्षा वैश्विक स्तर पर जलवायु परिवर्तन जागरूकता का सबसे मज़बूत भविष्यवक्ता है, जिससे प्रत्येक अतिरिक्त वर्ष जलवायु संबंधी जागरूकता में 8.6% की वृद्धि हो रही है। लेकिन शिक्षा के लाभ केवल जागरूकता तक ही सीमित नहीं हैं, वे कार्रवाई को भी प्रेरित करते हैं। यूरोप से मिले साक्ष्य दर्शाते हैं कि शिक्षा का एक अतिरिक्त वर्ष जलवायु समर्थक मान्यताओं में 4 प्रतिशत अंकों और जलवायु समर्थक व्यवहार में 5.8 प्रतिशत अंकों की उल्लेखनीय वृद्धि से जुड़ा है।
ये लाभ जलवायु झटकों के प्रति बेहतर लचीलेपन के रूप में भी प्रकट होते हैं। वैश्विक अध्ययनों से पता चलता है कि उच्च शिक्षा प्राप्त व्यक्ति आपदाओं के लिए बेहतर तरीके से तैयार होते हैं और अधिक प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया करते हैं, कम प्रतिकूल प्रभावों का सामना करते हैं और अधिक तेज़ी से उबर जाते हैं (मुत्तरक और पोथिसिरी 2013, वामस्लर एवं अन्य 2012)। शिक्षा भविष्य के लिए योजना बनाने की क्षमता को बढ़ाती है और संसाधन आवंटन को अनुकूलित करती है, जिससे व्यक्तियों और समुदायों को जलवायु-प्रेरित चुनौतियों के प्रभावों से निपटने में मदद मिलती है।
ये लाभ कक्षा से कहीं आगे बढ़कर घर-परिवार तक भी पहुँचते हैं। छात्रों को पढ़ाने का मतलब यह नहीं है कि हमें बदलाव देखने के लिए भविष्य की पीढ़ियों का इंतज़ार करना होगा- शिक्षा आज ही जलवायु के प्रति जागरूक व्यवहार को बढ़ावा दे सकती है। बच्चों को शिक्षित करने से न केवल उनके अपने कार्य प्रभावित होते हैं, बल्कि माता-पिता के जलवायु संबंधी दृष्टिकोण में भी बदलाव आता है। संयुक्त राज्य अमेरिका में, मिडिल स्कूल के बच्चों को जलवायु संबंधी शिक्षा प्रदान करने से माता-पिता में जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता का स्तर बढ़ गया (लॉसन एवं अन्य 2019)। इसका प्रभाव उन माता-पिता में सबसे अधिक था, जिन्होंने हस्तक्षेप से पहले जलवायु के प्रति सबसे कम चिंता ज़ाहिर की थी। माता-पिता जलवायु परिवर्तन से जुड़ी गतिविधियों के प्रति तब अधिक ग्रहणशील होते हैं, जब इसमें उनके बच्चे शामिल होते हैं या सीधे उन बच्चों के माध्यम से ऐसा होता है। वास्तव में, आठ देशों के 67% युवाओं का मानना है कि उन्होंने अपने माता-पिता को पर्यावरण के अनुकूल विकल्प चुनने के लिए प्रभावित किया है।
हरित परिवर्तन के लिए कौशल को बढ़ावा देने में शिक्षा की भी महत्वपूर्ण भूमिका है
जलवायु परिवर्तन के कारण न केवल व्यवहार में बदलाव की आवश्यकता है, बल्कि हमारी बदलती दुनिया के अनुकूल होने के लिए आवश्यक नए कौशल का विकास भी आवश्यक है। जैसे-जैसे देश अपनी हरित परिवर्तन प्रतिबद्धताओं को कायम रखना शुरू कर रहे हैं, इन परिवर्तनों को बढ़ावा देने के लिए कौशल की मांग अधिक हो रही है और बढ़ती जा रही है। रिपोर्ट में बताया गया है कि जनवरी 2022 और मार्च 2023 के बीच भारत में ऑनलाइन पोस्ट की गई 18 लाख नौकरियों में से लगभग 51,000 के लिए कम से कम एक हरित कौशल (उदाहरण के लिए परियोजना प्रबंधन या स्थिरता समाधान) की आवश्यकता थी। रिपोर्ट में इस बात पर प्रकाश डाला गया है कि हरित कौशल अवसर अधिकांश अर्थव्यवस्थाओं और श्रमिकों के लिए प्रासंगिक हैं तथा ऐसी शिक्षा सही कौशल को विकसित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है।
यह धारणा अक्सर गलत होती है कि यह मांग केवल उच्च शिक्षा प्राप्त लोगों पर ही लागू है। कई श्रमिक पहले से ही इन कौशलों का उपयोग कर रहे हैं और भारत में गैर-कृषि क्षेत्र से जुड़े 88% श्रमिक ऐसे व्यवसाय समूहों में आते हैं, जिनमें कुछ न कुछ हरित कौशल की मांग होती है। कई लोग यह भी मानते हैं कि हरित बदलावों के लिए केवल एसटीईएम (विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित) कौशल की आवश्यकता होती है, लेकिन इस रिपोर्ट के विश्लेषण से पता चलता है कि कौशल की मांग न केवल तकनीकी दक्षताओं से संबंधित है, बल्कि सामान्य और सामाजिक-भावनात्मक दक्षताओं से भी संबंधित है। भारत की ऑनलाइन ग्रीन जॉब पोस्टिंग में केवल 43% को एसटीईएम कौशल की आवश्यकता थी।
इसके अलावा, यह मांग कई अलग-अलग प्रकार के उद्योगों में भी दिखाई दे रही है। उदाहरण के लिए, 'कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी पर सलाह', नौकरी पोस्टिंग में सबसे आम हरित कौशलों में से एक है और इसकी मांग भारत के 20 उद्योगों में की जाती है।
जलवायु परिवर्तन को शिक्षा नीति की प्राथमिकता कैसे बनाया जाए
सबसे पहले नींव पर ध्यान दें…
जलवायु कार्रवाई के लिए, समग्र शिक्षा प्राप्ति और गुणवत्ता सबसे अधिक मायने रखती है। जलवायु पाठ्यक्रम की सभी चर्चाओं के बीच यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि इसकी प्रभावशीलता साक्षरता और संख्यात्मकता जैसे मज़बूत आधारभूत कौशल पर निर्भर करती है। दक्षिण एशियाई 10 वर्षीय बच्चों में से लगभग 78% आज एक साधारण पाठ भी नहीं पढ़ सकते हैं (विश्व बैंक, 2022)। जब तक इन कमियों को दूर नहीं किया जाता है, तब तक सार्थक जलवायु शिक्षा का निर्माण संभव नहीं है। बजाय इसके, जलवायु सामग्री को पढ़ाने के लिए बुनियादी कौशल का उपयोग किया जा सकता है। उदाहरण के लिए, पाठों में वनों को संरक्षित करने के लाभों के उदाहरण शामिल किए जा सकते हैं और गणित के पाठों में तापमान और समुद्र स्तर में परिवर्तन के पाठों को जोड़ा जा सकता है।
…फिर जलवायु के बारे में शिक्षा पर
जलवायु संबंधी शिक्षा को शामिल करने के लिए सरकारों को मौजूदा संसाधनों से शुरुआत करनी होगी, प्रत्येक कक्षा के लिए आयु-उपयुक्त जलवायु अवधारणाओं की पहचान करनी होगी, तथा स्थानीय ज्ञान और सामुदायिक पहलों को निम्नलिखित तरीकों से बढ़ाना होगा :
- मौजूदा स्कूली गतिविधियों में जलवायु संबंधी शिक्षा को शामिल करने के अवसर खोजना किफायती है, इसमें व्यवधान कम हैं और हितधारकों की सहमति का लाभ उठाया जा सकता है। उदाहरण के लिए, भारत में यूनिसेफ ने जलवायु परिवर्तन और आपदा जोखिम न्यूनीकरण विषयों को शिक्षा मंत्रालय की स्कूल सुरक्षा कार्यक्रमों और युवा मंचों जैसी मौजूदा पहलों में शामिल किया है।
- साथ ही, यह सुनिश्चित करते हुए कि सामग्री छात्रों के समझने योग्य, कार्रवाई योग्य और सार्थक हो, उसे प्रत्येक शिक्षा स्तर के लिए सीखने को अनुकूलित किया जाना चाहिए। स्तरबद्ध दृष्टिकोण इस बात की गारंटी देता है कि प्रत्येक छात्र को व्यापक शैक्षिक उद्देश्यों पर ध्यान केंद्रित रखते हुए ऐसी प्रासंगिक जानकारी मिले जिसे वह समझ सके।
- सामुदायिक परिवेश में सीखने को प्रासंगिक बनाने से यह सुनिश्चित होता है कि छात्र न केवल कक्षा में जलवायु विज्ञान और नीति के बारे में सीखते हैं, बल्कि अपने शैक्षिक वातावरण में इन सिद्धांतों को क्रियान्वित होते भी देखते हैं। हाल के वर्षों में, भारत में मिडिल स्कूल के छात्रों के लिए पृथ्वी विज्ञान पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण बदलाव किया गया है ताकि छात्रों को अपने आस-पास के वातावरण की अधिक आलोचनात्मक ढंग से जांच करने तथा चीजों के काम करने के पीछे के कारणों को समझने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
तृतीयक शिक्षा में लचीलापन और फुर्ती लाना
तृतीयक शिक्षा का हरित कौशल के लिए कम उपयोग किया जाता है। इसका एक कारण हरित कौशल के स्वरूप के बारे में प्रचलित गलत धारणाएँ हैं। सामान्य और व्यावसायिक शिक्षा के बीच अधिक लचीलापन बनाने, अल्पकालिक पाठ्यक्रमों तक पहुँच बढ़ाने, एक साथ कई योग्यताएं (स्टैकेबल क्रिडेंशियल्स) प्रदान करने तथा पुनः कौशल (री-स्किलिंग) प्रदान करने और कौशल उन्नयन (अप-स्किलिंग) के अवसरों को बढ़ाने के लिए तृतीयक शिक्षा प्रणालियों में फेरबदल करने से काफी मदद मिल सकती है।
उद्योग और तृतीयक शिक्षा के बीच घनिष्ठ सहयोग भी होना चाहिए। इन्हें सक्रिय इंटर्नशिप कार्यक्रमों, सक्रिय कैरियर केंद्रों और मज़बूत पूर्व छात्र नेटवर्क के माध्यम से बढ़ावा दिया जा सकता है। इसका एक उदाहरण मोबिलाइज़ परियोजना है, जो जलवायु-स्मार्ट कृषि को मज़बूत करने के लिए नेदरलैंड और ट्यूनीशिया, मिस्र और इथियोपिया के बीच एक सहयोगात्मक प्रयास है। इस परियोजना का उद्देश्य स्थानीय उच्च शिक्षण संस्थानों के साथ सहयोग विकसित करते हुए सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के भागीदारों को शामिल करके भाग लेने वाले देशों में श्रम बाजार की माँगों को पूरा करना है।
इन संबंधों को मंत्रालयों के बीच सहयोग के लिए भी बढ़ाया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, भारत की स्किल काउंसिल फॉर ग्रीन जॉब्स (एससीजीजे) देश की जलवायु प्रतिबद्धताओं के लिए कुशल जनशक्ति की जरूरतों को पूरा करती है और स्वच्छ ऊर्जा पहलों के संबंध में विभिन्न मंत्रालयों के साथ समन्वय करती है। इसने 44 राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकृत योग्यताएं विकसित की हैं, 5,00,000 से अधिक उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया है- जिसमें 1,00,000 से अधिक नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में हैं, और एक ई-लर्निंग सिस्टम बनाया है जिसने 4,000 से अधिक व्यक्तियों को वर्चुअल (आभासी) प्रशिक्षण प्रदान किया है।
शिक्षा को जलवायु परिवर्तन से सुरक्षित रखना
जलवायु कार्रवाई के लिए शिक्षा का उपयोग तभी कारगर हो सकता है जब हम जलवायु परिवर्तन से शिक्षा की रक्षा भी करें। मौसम की चरम घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति और तीव्रता शिक्षा को बाधित कर रही है, जिससे सीखने की क्षमता में भारी कमी आ रही है और स्कूल छोड़ने की दर बढ़ रही है। रिपोर्ट में पाया गया है कि अकेले जनवरी 2022 और जून 2024 के बीच, अनुमानित 40.4 करोड़ छात्रों को मौसम की चरम घटनाओं के कारण स्कूल बंद होने की स्थिति का सामना करना पड़ा।
अप्रैल के अंत और मई 2024 की शुरुआत में, कई वैश्विक और स्थानीय समाचार एजेंसियों ने बढ़ते तापमान के कारण एशिया में बड़े पैमाने पर स्कूल बंद होने की सूचना दी। जून में भी बुरी खबरें आती रहीं। ओडिशा ने तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ऊपर जाने के कारण गर्मियों की छुट्टियों को सात दिनों के लिए बढ़ा दिया ; 2024 की शुरुआत में भी, राज्य ने तापमान 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर बढ़ने के कारण तीन दिनों के लिए सभी स्कूलों को बंद करने का आदेश दिया था। उत्तर प्रदेश में गर्मी के कारण गर्मियों की छुट्टियों को 10 दिन बढ़ा दिया गया था। कई राज्यों ने बढ़ते तापमान के बीच छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्कूल के समय को कम कर दिया था।
विश्व बैंक की रिपोर्ट के अनुमान दर्शाते हैं कि जनवरी 2022 और जून 2024 के बीच कम आय वाले देशों में औसतन 45 दिन, यानी हर साल औसतन 18 दिन की शिक्षा का नुकसान हुआ है। स्कूल बंद होने से शिक्षण के दिन कम हो जाते हैं, जिससे प्रत्यक्ष रूप से सीखने की क्षमता में भारी हानि होती है। इसे परिप्रेक्ष्य में रखें तो स्कूल के 18 दिन का नुकसान लगभग दो अंकों के जोड़ और हासिल करना जैसी बुनियादी अवधारणाओं को पढ़ाने के लिए आवश्यक समय के बराबर है।
जलवायु परिवर्तन संबंधी खतरे स्कूल बंद होने से कहीं आगे तक फैले हुए हैं। यहाँ तक कि जब स्कूल खुले होते हैं, तब भी छात्रों को बढ़ते तापमान के कारण सीखने में नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। रिपोर्ट के निष्कर्षों के अनुसार, ब्राज़ील के सबसे गरीब 50% नगर पालिकाओं में रहने वाला एक औसत छात्र बढ़ते तापमान के कारण कुल मिलाकर 0.5 साल तक की शिक्षा खो सकता है।
सरकारों को जलवायु परिवर्तन के प्रति स्कूलों को किफायती तरीकों से अनुकूल बनाने के लिए अभी से कार्य करने की आवश्यकता है। विश्व बैंक की रिपोर्ट में सुझाए गए अनुकूलन निवेशों में कक्षा के तापमान को कम करने, बुनियादी ढांचे के लचीलेपन को बढ़ाने और स्कूल बंद होने के दौरान दूरस्थ शिक्षा के साथ-साथ इसे सुविधाजनक बनाने के लिए शिक्षक प्रशिक्षण के समाधान शामिल हैं। रिपोर्ट का अनुमान है कि किफायती अनुकूलन प्रति छात्र 18.51 अमेरिकी डॉलर के एकमुश्त निवेश जितना कम हो सकता है।
अब कार्रवाई करने का समय आ गया है
युवा जलवायु कार्रवाई के लिए बेताब हैं। शिक्षा जलवायु ज्ञान, कौशल और व्यवहार को बढ़ाकर इस कार्रवाई के लिए एक शक्तिशाली उत्प्रेरक हो सकती है- फिर भी जलवायु संबंधी एजेंडा में इसका कम उपयोग किया जाता है। अगर हम अभी शिक्षा को आगे बढ़ाने में विफल रहते हैं तो हम वर्तमान और भावी पीढ़ियों को खतरे में डाल देंगे। लेकिन, अगर हम इस अवसर का लाभ उठाते हैं तो हम एक परिवर्तनकारी पीढ़ी का निर्माण कर सकते हैं जो जलवायु परिवर्तन को बेहतर करने की दिशा में कार्य करेगी।
अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।
खक परिचय : सुरैया मसूद विश्व बैंक समूह के एजुकेशन ग्लोबल प्रैक्टिस में सलाहकार हैं, जहाँ वे दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में परियोजनाओं को तकनीकी और परिचालन सहायता प्रदान करती हैं। विश्व बैंक से पहले, उन्होंने तंज़ानिया और पाकिस्तान में सीखने के संकट से निपटने के लिए सिस्टम-थिंकिंग दृष्टिकोण का उपयोग करते हुए ‘रिसर्च फॉर इम्प्रूविंग सिस्टम्स ऑफ एजुकेशन’ कार्यक्रम में काम किया है। श्वेतलेना सबरवाल विश्व बैंक में प्रमुख अर्थशास्त्री हैं। वे शिक्षा और जलवायु परिवर्तन पर विश्व बैंक के वैश्विक समाधान समूह का नेतृत्व करती हैं और उन्होंने बांग्लादेश, नेपाल, सऊदी अरब, तंज़ानिया और युगांडा में विश्व बैंक की शिक्षा भागीदारी का नेतृत्व किया है। वे विश्व बैंक की प्रमुख रिपोर्ट, चॉइसिंग अवर फ्यूचर : एजुकेशन फॉर क्लाइमेट एक्शन की प्रमुख लेखिका हैं और विश्व विकास रिपोर्ट 2018 : लर्निंग टू रियलाइज एजुकेशन्स प्रॉमिस की सह-लेखिका हैं। उन्होंने विश्व बैंक की कई अन्य प्रमुख रिपोर्टों इत्यादि का सह-लेखन किया है। उनका शोध जर्नल ऑफ डेवलपमेंट इकोनॉमिक्स, जर्नल ऑफ ह्यूमन रिसोर्सेज, इकोनॉमिक्स ऑफ एजुकेशन रिव्यू आदि प्रमुख पत्रिकाओं में प्रकाशित हुआ है।
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