कैंसर जांच के लिए ‘मोबाइल कैंप’ पर पुनर्विचार करना
- 28 जुलाई, 2020
- दृष्टिकोण
मोबाइल शिविरों के माध्यम से कैंसर की निवारक जांचों की संख्या बढ़ाने के लिए सार्वजनिक-निजी प्रयासों के बावजूद, इस बीमारी के कारण मृत्यु दर अधिक बनी हुई है। इस लेख में घोष एवं सेकर ने बड़ी संख्या में लोगों को मुफ्त जांच की सुविधा प्रदान करने और लंबे समय तक देखभाल करने वाले व्यवहार को प्रोत्साहित करने हेतु फॉलो-अप प्रयासों के तालमेल पर चर्चा की है, जिसमें महिलाओं की जांच और इसमें आनेवाली विशेष बाधाओं पर ध्यान दिया गया है।
भारत में कैंसर की घटनाओं में वृद्धि देखी जा रही है। 1990 में इनकी अनुमानित संख्या 5,48,000 थी और 2016 में 10,69,000 (स्मिथ एवं अन्य 2019) है। महिलाओं के संबंध में कैंसर के कारण होने वाली मौतों में स्तन एवं सर्वाइकल कैंसर (ढिल्लों एवं अन्य 2018) के कारण होने वाली मौतें सर्वाधिक हैं। यह सामान्यत: रोग के खराब निदान के कारण है क्योंकि कैंसर के संबंध में जागरूकता अपेक्षाकृत कम है, प्रारंभिक पहचान तंत्र अपर्याप्त है और सस्ती उपचारात्मक देखभाल तक समान रूप से पहुंच की कमी है तथा इसे लैंगिक असमानता ने और बढ़ा दिया है। उदाहरण के लिए, भारत में स्तन कैंसर के संबंध में पांच साल तक जीवित रहने की दर लगभग 52% है, जबकि उच्च आय वाले देशों के लिए यही आंकड़ा लगभग 80-90% (रिवर-फ्रेंको एवं अन्य 2018) है। कम उत्तरजीविता दर यह दर्शाती है कि इस प्रकार के कैंसर का निदान ‘प्रतिक्रियात्मक’ रूप से किया जा रहा है, जिसका अर्थ है कि एक बड़े अनुपात में महिलाओं में इस रोग का निदान बाद के चरणों में हो रहा है जबकि उपचार उतना प्रभावी नहीं होता है (राजपाल एवं अन्य 2018)। इससे मुकाबला करने के लिए पहले बीमारी का पता लगाने और जीवित रहने की दर में सुधार करने हेतु एक लैंगिक दृष्टिकोण की आवश्यकता होती है।
मुफ्त कैंसर जांच और इसके अनपेक्षित परिणाम
भारत सरकार की एक पहल अर्थात कैंसर, मधुमेह, हृदय रोग एवं आघात (एनपीसीडीसीएस) की रोकथाम और नियंत्रण हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम ने जांच के संबंध में आवृत्ति और लक्ष्य जनसांख्यिकी को निर्दिष्ट करने हेतु व्यापक कैंसर जांच दिशा-निर्देशों को प्रस्तुत किया है। इन दिशा-निर्देशों का उपयोग करते हुए कई स्वास्थ्य केंद्र लगातार कैंसर जांच प्रदान करते हैं, लेकिन इसमें अक्सर पहुँच संबंधी समस्याएं आती हैं। पहुँच में आने वाली बाधाओं को कम करने के लिए सरकार द्वारा कुछ संख्या में ‘मोबाइल डिटेक्शन यूनिट’ बनाई गई हैं, लेकिन ऐसी यूनिटें ज्यादातर गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) द्वारा बनाई गईं हैं। ये पड़ोस-आधारित शिविर एवं नैदानिक वैन होती हैं जिनमें समय एवं वित्तीय संसाधन की कमी को दूर करते हुए मुफ्त जांच प्रदान कराई जाती है। इन मोबाइल इकाइयों में वेतनभोगी और स्वैच्छिक स्वास्थ्य पेशेवर कार्यरत होते हैं तथा ये इकाइयाँ एक्स-रे, मैमोग्राम, और पैप स्मीयर जैसे उपकरणों का उपयोग करते हुए आम तौर पर पेट, फेफड़े, मुंह, स्तन और सर्वाइकल कैंसर सहित विभिन्न प्रकार के कैंसरों के लिए जांच करती हैं।
जांच शिविरों में भाग लेने वाले लोगों को कई विधियों से एकत्रित किया जाता है जिनकी सफलता दरें अलग-अलग होती हैं। ये शिविर महिलाओं को बेढंगे तौर पर निम्न स्तर पर आकर्षित करते हैं। यही वजह है कि कुछ मोबाइल इकाइयाँ अधिक महिलाओं की जांच करने के लिए अपने जांच-स्थल का प्रबंधन करने में कई सप्ताह लगाती हैं जबकि कुछ उसी दिन भर्ती करने में सफल होती हैं। कुछ इकाइयाँ महिलाओं को शिविर में भाग लेने के लिए अपने ही स्वयंसेवकों के जरिए प्रोत्साहित करती हैं जबकि कुछ इकाइयाँ यह कार्य समुदाय के सदस्यों या अगली पंक्ति के स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं (आशा), सहायक नर्स दाइयों (एएनएम) या आंगनवाड़ी (बाल देखभाल केंद्र) की कार्यकर्ताओं जैसे कर्मचारियों पर छोड़ देते हैं। सामान्य तौर पर यह देखा जाता है कि महिलाओं को सफलतापूर्वक जुटाने के लिए समुदाय के भीतर मौजूदा संबंधों, कार्य-स्थलों और गुरुद्वारों, मंदिरों और मस्जिदों जैसे धार्मिक संस्थानों का लाभ उठाया जाता है।
पहुँच बढ़ने के साथ-साथ असंगतता भी बढती है जो फॉलो-अप के संबंध में अनिश्चितता पैदा करती है। बाहरी अनुदान और धन स्रोतों से संचालित शिविर उन भौगोलिक क्षेत्रों तक सीमित होते हैं जहां वे कार्यरत होते हैं और इनमें एक दिन में 100-150 लोगों की बड़े पैमाने पर जांच की जाती है। शिविर के कुछ दिनों बाद इनमें आए हुए लोग अपने परिणाम प्राप्त करते हैं। यदि कुछ भी संदिग्ध पाया जाता है, तो उन्हें आगे के नैदानिक परीक्षण के लिए संबद्ध केंद्रों में आने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। शिविर संयोजक उपस्थित लोगों के साथ लगातार संपर्क बनाए रखते हैं, लेकिन अधिकतर ये लोग आगे की कार्रवाई जारी रखने के लिए परीक्षण केंद्रों तक पहुंचने में असमर्थ रहते हैं। जबकि मोबाइल शिविरों में बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों की जांच सफलतापूर्वक कम समय में की जा सकती है। इस दृष्टिकोण के अनपेक्षित परिणाम तभी सामने आते हैं जब असामान्यताओं के पॉजिटिव होने का पता चलता है। पॉजिटिव पहचान किए जाने के मामले में महिलाओं को इसके बाद की देखभाल प्राप्त करने हेतु आश्वस्त करना विशेष रूप से कठिन है। महिलाओं को निदान में पॉजिटिव परिणाम प्राप्त होने के बाद उनमें से लगभग एक चौथाई महिलाएं देखभाल प्रक्रिया से बाहर हो जाती हैं (कुलकर्णी एवं अन्य 2019)। गैर-संचारी रोग (एनसीडी) देखभाल एक चक्रीय प्रक्रिया है जिसका अर्थ है सफल होने के लिए रोगियों को जांच, पता लगाने, निदान, उपचार, और मुक्ति फॉलो-अप के कई चक्रों में लगातार लगे रहना पड़ता है। जांच एक बार की बाधा का उपाय तो प्रदान करती है परंतु उपचार के बाद के चरणों में आने वाली बाधाओं को पूरी तरह से हल नहीं करती है। उन रोगों के साथ सहवर्ती होने में कठिनाई होती है जिनके लिए लंबे समय तक देखभाल की आवश्यकता होती है।
मधुमेह या अन्य एनसीडी के विपरीत कैंसर के उपचार में जीवित रहने की दर कम होने के कारण यह एक ऐसी बीमारी है जो इलाज में निवेश की तुलना में बहुत कम ठीक होने वाली बीमारी के रूप में कलंकित है। महिलाओं को समय और धन का निवेश करने के लिए मनाना और महंगी देखभाल के लिए सामाजिक मानदंडों को बदलना चुनौतीपूर्ण है। एक पोषणकर्ता की भूमिका में महिलाओं के समावेशन के कारण अक्सर एक ऐसी पारिवारिक संरचना बनी रहती है जहां उनके पास मोलभाव करने की शक्ति बहुत कम होती है। इसके कारण निवारक देखभाल में बाधाएं और अधिक बढ़ जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप देखभाल में देरी होती है। देखभाल-प्रतिकूलता को उन धारणाओं द्वारा मजबूत किया जाता है जिनमें देखभाल को ‘जब आवश्यक न हो’ के रूप में माना जाता है जो विशेष रूप से समाज के अपेक्षित आदर्शों के संबंध में स्वार्थी और विरोधी है। इसके अलावा तंत्र को मार्गदर्शन हेतु समर्थन दिए बिना महिलाओं का कैंसर-निदान नुकसानदायक है। उपचार तक पहुँच के बिना, वे न केवल मानसिक तनाव से जूझने के लिए छोड़ दी जाती हैं, बल्कि निदान के साथ आने वाले कलंक और बहिष्कार का बोझ भी उठाती हैं।
शुरुआती पता लगाने के कार्यक्रमों का सैद्धांतिक लक्ष्य ऐसे लोगों का पता लगाना है जिनका निदान पॉजिटिव है, और यह सुनिश्चित करना है कि वे अपने जीवित रहने की संभावनाओं को बेहतर बनाने के लिए जल्दी देखभाल प्राप्त करें। हालाँकि वर्तमान मॉडल उस लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे प्रभावी तरीका नहीं हो सकता है। जब समय, धन, और कर्मचारी जैसे संसाधन सीमित हैं, तो उपस्थित लोगों की संभावित सबसे बड़ी संख्या में उनकी जांच और उपचार कैसे किया जाए? - यह सवाल महत्त्वपूर्ण हो जाता है। कैंसर के बोझ को कम करने के लिए, हमें बड़ी संख्या में उपस्थित लोगों की जांच और दीर्घकालिक देखभाल की मांग करने वाले व्यवहार को बढ़ावा देने के बीच संतुलन पर विचार करना चाहिए।
महिलाओं की कैंसर जांच तक पहुँचने की क्षमता में बाधाओं को हल करना
जीवन-शैली और पर्यावरणीय परिवर्तनों के कारण भारत में विकास के साथ-साथ कैंसर का बोझ भी बढ़ने का अनुमान है (मैथ्यू एवं अन्य 2019)। कैंसर की देखभाल चाहने वाले व्यवहार को निवारक स्वास्थ्य दृष्टिकोण में बदलने के लिए देखभाल के प्राप्तकर्ताओं को उनकी स्थिति का पता लगाने और उपचार में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है। जब बीमारी के बाहरी लक्षणों की कोई विधि मान्यता नहीं है तो कम-संसाधनों वाली व्यवस्था में महिलाओं को अपने स्वयं के स्वास्थ्य के लिए दुर्लभ पारिवारिक संसाधनों का उपयोग करने में कठिनाई होती है। देखभाल करने में असमर्थता सामाजिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक दबावों से जुड़ी है, इसलिए समाधानों को इन बाधाओं की मान्यता को भी प्रतिबिंबित करना चाहिए। इस असंगतता को दूर करने के लिए संभावित समाधानों का अन्वेषण निम्नलिखित है:
जांच के लिए लक्षित आबादी की पहचान करना और उपयुक्त जनसंख्या-आधारित जांच प्रोटोकॉल विकसित करना
शिविर की स्थापना में प्रत्येक मरीज के संबंध में गोपनीयता की कमी और उस पर लगाए गए अपर्याप्त समय के कारण उसके सटीक व्यक्तिगत और पारिवारिक स्वास्थ्य इतिहास प्राप्त करने में बाधाएँ आती हैं। आमतौर पर जोखिम कारक और संभावित वंशानुगत घटक कैंसर जांच दिशानिर्देशों में प्रमुख समावेशी मापदंड हैं। हालाँकि देश के स्तर पर बनाए गए दिशा-निर्देशों में विषम जनसंख्या और भूगोल का घटक भी शामिल है जो विभिन्नताओं की व्यवस्थाओं में उनकी उपयोगिता को सीमित करता है। उदाहरण के लिए मैमोग्राफी मोबाइल जांच का एक महंगा घटक है, इसलिए मैमोग्राम किसे करवाना चाहिए - यह सवाल सर्वोपरि है (गुटनिक एवं अन्य 2015)। लक्षित आबादी को कम करने में भारतीय संदर्भ में कैंसर के प्रसार को समझने की भी आवश्यकता होगी। भारतीय महिलाओं में स्तन कैंसर का एक विशिष्ट उपप्रकार अधिक होता है। इसलिए, उपप्रकार के जोखिम कारक और आयु सीमा को समझना, बेहतर लक्षित जांच (ठाकुर एवं अन्य 2018) में मदद कर सकता है। चूंकि मैमोग्राम लागत लाभ से संबंधित हैं, इसलिए लागत-प्रभावशीलता में सुधार करने के लिए एक और संभावित रणनीति यह है कि प्रत्येक शिविर के दौरान जांच से पहले महिलाओं को भर्ती करने और मैमोग्राम किए जाने की न्यूनतम संख्या सुनिश्चित करने में अधिक संसाधन खर्च किए जाएं (श्वित्जर एवं अन्य 1998)। मोबाइल जांचव्यवस्था में कैंसर जांच के लिए सबसे अधिक लागत-प्रभावी तरीके का मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। इससे रोग का पता लगाने की उच्च संभावना वाले कार्यक्रमों के लिए संसाधनों का आवंटन सुनिश्चित हो सकेगा।
कैंसर के प्रकार के आधार पर प्रमुख जनसंख्या समूहों को लक्षित करने के अलावा यह शिविर के सामाजिक-जनसांख्यिकीय संदर्भ का आकलन करने हेतु उपयोगी हो सकता है। उदाहरण के लिए - कम-संसाधन वाले परिवेश में पर्याप्त फॉलो-अप के बिना कैंसर जांच शिविर आयोजित करने के बजाय सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की जानकारी और भागीदारी तक पहुंच बढ़ाना बेहतर हो सकता है। उच्च-संसाधन वाली व्यवस्था में यह प्रशंसनीय है कि महिलाओं को व्यक्तिगत स्वास्थ्य देखभाल के लिए समय की कथित कमी - जैसे सामाजिक रूप से स्थायी और तार्किक बाधाओं के दबाव से जांच से रोक दिया जाता है, लेकिन प्रारंभिक जांच के बाद देखभाल के साथ फॉलो-अप करने के लिए अधिक संसाधन होंगे। इन मामलों में मोबाइल शिविर एक लागत प्रभावी जनसंख्या-आधारित जांच टूल और बाद में कैंसर की देखभाल का मार्ग उपलब्ध करा सकता है।
जांच में सामुदायिक कार्यकर्ताओं को जोड़ें
आशा, एएनएम, आंगनवाड़ी कार्यकर्ता और ग्रामीण समुदायों में महिलाओं के स्वयं सहायता समूह मातृ और बाल स्वास्थ्य को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जनसांख्यिकीय और महामारी संक्रमण के साथ भारत की जनसंख्या-वृद्धि में एक चीज और जुड गई है, और वह है - बीमारी प्रोफाइल का संचारी रोगों से एनसीडी की ओर जाना। महिलाओं में कैंसर की इन बढ़ती दरों को रोकने के लिए एक कदम सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की कार्यसूची में एनसीडी को जोड़ना है। कुछ गैर सरकारी संगठन तथा सरकारी संगठन अनौपचारिक रूप से पहले से ही ऐसा कर रहे हैं और उन्हें सफलता भी मिल रही है। इन प्रयासों को समर्थन के लिए औपचारिक रूप से सामुदायिक स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं की क्षमता निर्माण करने से अस्थायी जांच शिविरों और जहां वे कार्यरत हैं - वहां के समुदाय के बीच मजबूत संबंध स्थापित किया जा सकता है। बेहतर जवाबदेही तंत्र स्थापित करने से फॉलो-अप की कमी की समस्या को कम किया जा सकता है। हालांकि इस सुझाव पर सावधानी बरतने की आवश्यकता है क्योंकि ये कार्यकर्ता पहले से ही कम वेतन पर अधिक कार्य कर रहे हैं जिसके परिणामस्वरूप उनकी प्रभावोत्पादकता अक्सर अस्थिर रहती है।
जांचशिविर के लिए उपस्थित लोगों को भर्ती करने की अधिक कठोर प्रक्रिया की स्थापना
जैसा कि पिछली सिफारिश में कहा गया है - शिविरों को भीड़ जुटाने पर अधिक ध्यान केंद्रित करना चाहिए और आरंभ में दो तरफा प्रतिबद्धता स्थापित करनी चाहिए। अक्सर लोगों को शिविरों के बारे में तभी पता चलता है जब वे स्थापित हो रहे होते हैं। जबकि इसके कारण अधिक अनियोजित उपस्थिति हो जाती है। यह हमेशा उसी अनुपात में फॉलो-अप में नहीं बदलता है। शिविरों के प्रभारी संगठनों को पहले से ही समुदाय को अच्छी तरह से इकट्ठा करना शुरू करना चाहिए। समुदाय में अच्छे प्रभाव वाले लोगों को साथ लेने से अधिक उपस्थिति की संभावना बढ़ सकती है लेकिन इसके परिणामस्वरूप पड़ोस में नेटवर्क प्रभाव के कारण अनुपातहीन पहुँच हो सकती है। इसके अतिरिक्त उपस्थित लोगों को जांच प्रक्रियाओं के बारे में पहले से ही सूचित कर दिया जाना चाहिए - विशेष रूप से संवेदनशील परीक्षणों के लिए। पूर्व ज्ञान के बिना एक कड़ी जांच कराए जाने से अविश्वास हो सकता है और यह महिलाओं को फॉलो-अप देखभाल में संलग्न होने से रोक सकता है। ऐसे लोग जिनकी पहले जांच की गई थी और जिनका सफलतापूर्वक उपचार किया जा चुका है, उन लोगों को सकारात्मक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत करके लोगों को इकट्ठा करने के दौरान इन बाधाओं को कम किया जा सकता है।
कैंसर जांच के लिए एक व्यापक नेटवर्क का निर्माण
भले मुफ्त जांच आयोजित करने वाले संगठन एक दूसरे के अस्तित्व के बारे में आधारभूत जानकारी रखते है पर वे अक्सर अपने अतिव्यापी लक्ष्यों को नहीं पहचानते हैं। एक औपचारिक नेटवर्क और पूलिंग संसाधन बनाकर वे उपस्थित लोगों की पहुँच बढ़ा कर फॉलो-अप देखभाल प्राप्त करने के लिए प्रोत्साहित कर सकते हैं। उपस्थित लोगों को अधिक विकल्प और पहुंच प्रदान करने से देखभाल में वृद्धि हो सकती है। इस नेटवर्क का विस्तार अन्य हितधारकों, जैसे कि धार्मिक नेताओं और प्राथमिक देखभाल करने वाले डॉक्टरों को शामिल करने के लिए भी किया जा सकता है जो लोगों को जुटाने और उपचार करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ऐसा नेटवर्क अंतर-संगठनात्मक संचार की सुविधा भी प्रदान कर सकता है जिससे कैंसर जांच शिविरों की मेजबानी करने वाले समुदायों की विविधता बढ़ सकती है।
महिलाओं के बीच देर से कैंसर निदान में वृद्धि पर देश का ध्यान आकर्षित होना चाहिए। ये महिलाएं भारतीय नागरिकों के रूप में प्राकृतिक रूप से मूल्यवान होने के अलावा कार्यस्थल और घर पर महत्वपूर्ण भूमिका भी निभाती हैं। सरकारी और गैर-सरकारी एजेंसियों को अपने दीर्घकालिक स्वास्थ्य में निवेश करने की आवश्यकता है और उन्हें यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि उनके पास कैंसर देखभाल की पूर्ण निरंतरता है। भारत की बढ़ती कैंसर दर की समस्या को हल करने की रणनीति को अपने स्वरूप में अपनी सहज विविधताओं को प्रतिबिंबित करना चाहिए।
लेखक परिचय: प्रीतिया सेकर यूनिवरसिटि ऑफ मिनेसोटा में मेडिकल की छात्रा हैं। समयिता घोष पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया (पीएचएफ़आई) के सेंटर फॉर एनवायरनमेंटल हेल्थ में एक वरिष्ठ शोध सहयोगी हैं।
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