वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के केंद्र सरकार के लक्ष्य की दिशा में कार्य करने के लिए झारखंड राज्य सरकार ने 2017 में जोहार परियोजना आरंभ की। इस लेख में खनूजा एवं अन्य ने इस परियोजना के तहत शामिल किए गए ग्रामीण उत्पादक परिवारों के एक वृहद आधार-रेखा सर्वेक्षण के परिणामों को प्रस्तुत किया है और उच्च मूल्य वाली कृषि की ओर बदलाव को सुविधाजनक बनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला है।
2016 में भारत सरकार ने 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने के अपने लक्ष्य की घोषणा की। इस संकल्प के परिणामस्वरूप किसान कल्याण चर्चाओं और राज्य स्तर पर कृषि नीतियों के निर्माण में किसानों की आय केंद्रीय विषय बनी। झारखंड राज्य सरकार ने विश्व बैंक के सहयोग से वर्ष 2017 में जोहार (Jharkhand Opportunities for Harnessing Rural Growth - झारखंड ग्रामीण विकास को बढ़ावा देने हेतु अवसर) परियोजना की शुरुआत की। इस परियोजना का लक्ष्य झारखंड के 17 जिलों में 68 चयनित प्रखंडों में 2017 से 2023 के बीच किसानों की वास्तविक आय में 50% की वृद्धि हासिल करना है। इसे ग्रामीण आजीविका में विभिन्न कार्यक्रमों जैसे उच्च मूल्य वाली कृषि (एचवीए), सिंचाई प्रणालियों, पशुधन, मत्स्य-पालन और गैर-लकड़ी वन उपज (एनटीएफपी) आदि का क्रियान्वयन करके प्राप्त किए जाने का लक्ष्य रखा गया है।
जोहार के लक्षित लाभार्थी स्वयं-सहायता समूहों (एसएचजी) के वे ग्रामीण उत्पादक परिवार हैं, जिनमें विपणन-योग्य अधिशेष उत्पन्न करने की वास्तविक या संभावित क्षमता है। किसानों को उत्पादक समूहों (पीजी) और किसान उत्पादक संगठनों (एफपीओ) के रूप में संगठित किया जाता है, ताकि उन्हें बीज, अंडजोत्पत्ति, मत्स्य-पालन, सामुदायिक स्वामित्व वाली सिंचाई प्रणाली, बाजारों, बाजारों की गुप्त जानकारियों, ऋण और तकनीकी ज्ञान जैसे इनपुट तक बेहतर पहुंच प्राप्त हो सके।
इस परियोजना के तहत हमने नवंबर 2018 से अगस्त तक 5.982 परिवारों का एक बड़े पैमाने पर सर्वेक्षण किया, जिसने परियोजना मूल्यांकन के लिए आधार-रेखा निर्धारित की है। इस आलेख में हमने आधार-रेखा सर्वेक्षण के निष्कर्षों पर चर्चा की है और 13 परियोजना कार्यान्वयन प्रखंडों में एचवीए (एक एकड़ या उससे अधिक भू-स्वामित्व वाली) के लिए भूमि आवंटित करने की क्षमता के साथ 302 एसएचजी और 1,568 परिवारों पर ध्यान केंद्रित किया। हमने उच्च मूल्य वाली कृषि (एचवीए) करने की क्षमता के साथ झारखंड में ग्रामीण उत्पादक परिवारों के सामने आने वाली बाधाओं और चुनौतियों को उजागर किया है। हमारे निष्कर्ष किसानों की आय में सुधार करने के लिए ग्रामीण उत्पादक समूहों में निवेश करने वाले हितधारकों के लिए बहुमूल्य सीख प्रदान कर सकते हैं।
उच्च मूल्य वाली कृषि को सीमित मात्रा में अपनाया जाना
झारखंड में अधिकांश कृषक परिवार छोटे और सीमांत किसान हैं। यहां धान मुख्य भोजन है और अधिकांश किसान खरीफ1 मौसम (मानसून) में केवल एक ही फसल यानि धान की खेती करते हैं (नीति आयोग, 2015)। फल और सब्जियों जैसी उच्च मूल्य की फसलों में अनाज की तुलना में अधिक लाभ प्राप्त करने की क्षमता होती है। हालांकि हमारे आंकड़े बताते हैं कि सर्वे किए गए परिवारों में से 97% परिवारों ने धान की खेती की; एचवीए का अनुपात गिर कर 67% तक हो जाता है। इसमें आलू के लिए 37%, काले चने के लिए 18%, प्याज के लिए 14% और टमाटर के लिए 13% है। अन्य सभी एचवीए फसलों की खेती 10% से कम परिवारों द्वारा की जाती है। इसके अलावा आवंटन प्रति परिवार 0.08 एकड़ के खंडित और छोटे भूस्वामित्व तक सीमित है, जिससे उत्पादकता और संसाधन-उपयोग दक्षता दोनों प्रभावित होती हैं।
धान की खेती और एचवीए दोनों करने वाले परिवारों के लिए कृषि से औसत सकल राजस्व, केवल धान की खेती करने वाले परिवारों की तुलना में 85% अधिक है। इसलिए, एचवीए की ओर बदलाव से आय में सुधार हो सकता है, लेकिन इसमें आने वाली कुछ बाधाओं को दूर करने की आवश्यकता है।
रबी के मौसम (सर्दियों) (47% परिवारों) और गर्मियों के मौसम (14% परिवारों) में अनुपात में गिरावट के साथ खेती काफी हद तक खरीफ मौसम (99% परिवारों) तक सीमित है। इसके अलावा रबी और गर्मियों में औसत खेती वाले क्षेत्र कम रहते हैं, जिससे फसल तीव्रता कम होती है, जिसका अर्थ है कि एक कृषि वर्ष में सकल बुवाई क्षेत्र के कम अनुपात में एक से अधिक बार बुवाई की जाती है।
तालिका 1. विभिन्न मौसमों में औसत कृषि क्षेत्र
परिवारों में बड़े उत्पादकता अंतर
झारखंड में सब्जियों की खेती में सिंचाई की कमी एक बड़ी बाधा है। इसके बाद सूचना और ज्ञान की कमी का क्रम आता है (हक एवं अन्य 2010)। हमारे आंकड़ों से पता चलता है कि 41% कृषक परिवारों के पास सिंचाई का कोई न कोई साधन उपलब्ध है और कृषि भूमि में से 32% सिंचित है। इसके अलावा भीतरी और ऊपरी क्षेत्रों में खेती-योग्य क्षेत्र वाले परिवारों द्वारा एचवीए अपनाने की अधिक संभावना है, यदि उन्हें सिंचाई के साधन मिल जाएं। इससे वर्तमान औसत फसल की तीव्रता 110% से बढ़ कर 193% तक हो सकती है। इसलिए एक वर्ष में खेती की जाने वाली फसलों की संख्या भी बढ़ सकती है।
सिंचाई सुविधाओं की अधिक उपलब्धता बहु-मौसम फसलों और एचवीए फसलों के उत्पादन को बढ़ावा दे सकती है। हालांकि आधार-रेखा में एचवीए और गैर-एचवीए फसलों (आकृति1) दोनों के लिए परिवारों में बड़े उत्पादकता अंतर के कारण आय पर प्रभाव सीमित हो सकता है।
आकृति 1. शीर्ष 30 प्रतिशत और निचले 30 प्रतिशत के बीच उच्च उत्पादकता अंतर
आकृति में आए अंग्रेजी वाक्यों/शब्दों का हिंदी अर्थ
Productivity (by decile) - उत्पादकता (दशमक के अनुसार)
Paddy - धान
Potato - आलू
मिट्टी की अम्लीय प्रकृति, मिट्टी में पोषक तत्वों की कम उपलब्धता, पारंपरिक कृषि पद्धतियाँ, कम वर्षा, और लंबे समय तक सूखा मौसम बने रहना उत्पादकता अंतर के कुछ कारण हैं। उत्पादकता में अंतर भूमि स्थलाकृति और बीजों की पसंद (नीति आयोग, 2015) (आकृति 2) के कारण भी है, जो यह सुझाते हैं कि उत्पादन निर्णयों के विकास के द्वारा उत्पादकता बढ़ाने की गुंजाइश है।
आकृति 2. उच्च उत्पादकता बीजों की उच्च औसत लागत के साथ जुड़ी हुई है
आकृति में आए अंग्रेजी वाक्यों/शब्दों का हिंदी अर्थ
Average cost of seed per acre (for HVA) by decile - दशमक के अनुसार प्रति एकड़ बीज की औसत लागत
Households ranked by HVA productivity – एचवीए उत्पादकता के अनुसार परिवारों की रैंक
ऐसा उन प्रथाओं के बेहतर पैकेज को अपनाकर किया जा सकता है, जो उपयुक्त उच्च उपज देने वाली किस्मों और प्रत्येक फसल के लिए पोषण और रोग प्रबंधन की सिफारिश करते हैं।
सामूहिकता कैसे मदद कर सकती है
आधार-रेखा निष्कर्षों से संकेत मिलता है कि अधिकांश किसान बीज, उर्वरक आदि जैसी उत्पादक सामग्री को सीधे डीलरों से खरीदते हैं। इसमें उनकी सकल आय का 45% खर्च हो जाता है। एफपीओ व्यक्तिगत खरीद की तुलना में कम दर पर इनपुट की सामूहिक खरीद से इन लागतों को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। हालांकि, एफपीओ के लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीज की खरीद सुनिश्चित करना और किसानों के बीच विश्वास विकसित करना महत्वपूर्ण है।
यदि उत्पादन को सही समय और सर्वश्रेष्ठ कीमतों पर बाजार में नहीं लाया जाएगा तो बेहतर उत्पादन और कम लागत के लाभ कम हो जाएंगे। झारखंड में किसानों को उत्पाद के खराब होने, बिचौलियों की शोषणकारी प्रथाओं, उच्च परिवहन और विपणन लागत और सब्जियों को बेचने के लिए बाजार तक खराब पहुंच (शंकर एवं अन्य 2017) संबंधी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। आधार रेखा निष्कर्ष बताते हैं कि किसानों को गाँव के बाजारों की तुलना में प्रखंड बाजारों में टमाटर और हरी मटर की बेहतर कीमतें प्राप्त हो रही हैं। उच्च विपणन लागत और पहुंच की कमी के कारण प्रखंड बाजारों में बेचने वाले परिवारों का अनुपात कम हो जाता है। भविष्य में उच्च उत्पादन से गाँव के बाजारों में उत्पाद की प्रचुरता हो सकती है और किसानों को मजबूरन बिक्री करनी पड़ सकती है, जिससे आगे बिक्री मूल्य और कम हो जाएगा।
तालिका 2. एचवीए फसलों के लिए विभिन्न बाजारों में बाजार पहुंच और कीमतें
फसल |
बाजार |
बाजारों में फसल बेचने वाले परिवार (%) |
फसल के लिए प्राप्त औसत कीमत (रु./किग्रा) |
टमाटर |
फार्मगेट |
15.28 |
15.91 |
गांव |
55.14 |
12.76 |
|
प्रखंड |
32.22 |
21.56 |
|
बैंगन |
फार्मगेट |
9.2 |
16.44 |
गांव |
69.5 |
13.45 |
|
प्रखंड |
16.37 |
12.31 |
|
मटर |
गांव |
71.98 |
16.03 |
प्रखंड |
28.02 |
18.33 |
एफपीओ के माध्यम से उत्पादन की सामूहिक बिक्री विपणन और परिवहन लागत को कम कर सकती है और बाजार की मांग के आधार पर बेहतर कीमतों के साथ एक सुनिश्चित बाजार प्रदान कर सकती है। एफपीओ को प्रभावी विपणन के लिए एक न्यूनतम अधिशेष की आवश्यकता होती है, जिसके लिए किसानों को एक सीमित फसल बास्केट पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए और बुवाई और कटाई में तालमेल स्थापित करना चाहिए। निष्कर्षतः हम कह सकते हैं कि बेहतर उत्पादन निर्णयों और सामूहिकता को अपनाने से बेहतर उत्पादकता और उच्च शुद्ध आय प्राप्त हो सकती है।
किसान प्रशिक्षण और ऋण तक पहुँच की आवश्यकता
किसानों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के माध्यम से उत्पादन निर्णयों में बदलाव की शुरुआत की जा सकती है। हमारे आंकड़े बताते हैं कि सर्वेक्षण में शामिल 4% से कम परिवारों ने पिछले तीन वर्षों में कोई न कोई कौशल प्रशिक्षण प्राप्त किया है। बेहतर पद्धतियों के साथ-साथ सामूहिकता को प्रभावी रूप से अपनाने के लिए प्रदर्शनों, किसान क्षेत्र स्कूलों के माध्यम से अनुभव-जन्य प्रशिक्षण प्रदान करने और नियमित रूप से उनका साथ देने की आवश्यकता होती है। इसके अतिरिक्त पिछले पांच वर्षों में आधे परिवारों ने प्रतिकूल जलवायु परिस्थितियों का सामना किया है जिनमें सूखा (49%), कम वर्षा (42%), भारी वर्षा (23%), और पौधों की बीमारियां (15%) शामिल हैं। जलवायु संबंधी तनावों का प्रबंधन करने के लिए 1% से भी कम परिवारों ने प्रशिक्षण प्राप्त किया या खेत-स्तर की पद्धतियों को अपनाया, जो आय और निवेश के लिए संभावित जोखिम पैदा करते हैं। इसलिए सूखे को सहन करने योग्य फसलों एवं किस्मों, और पानी एवं रोग प्रबंधन जैसी नई पद्धतियों पर प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए ताकि उत्पादकता और जलवायु संबंधी जोखिमों से निपटने की क्षमता में सुधार हो सके।
बढ़ती जलवायु अनिश्चितताओं के बीच केवल एक आजीविका गतिविधि में निवेश करने में बहुत अधिक जोखिम है। पशुपालन और एनएफटीपी जैसी संबद्ध कृषि गतिविधियों में विविधता से जोखिम कम हो सकता है। अधिकांश परिवारों के पास पशुपालन के माध्यम से आय में सुधार की बड़ी गुंजाइश है, लेकिन उनमें से केवल आधे लोग ही इससे कमाई करते हैं या इसका उपयोग अपने उपभोग के लिए करते हैं। हालांकि विशेष रूप से महिलाओं में औपचारिक प्रशिक्षण की कमी एवं वैज्ञानिक प्रबंधन पद्धतियों का अपर्याप्त ज्ञान, पशुपालन को एक लाभदायक आर्थिक गतिविधि (रक्षा 2016) बनने में बाधा डालते हैं। 10% से कम परिवार गैर-लकड़ी वन उपज के संग्रह या खेती और प्रसंस्करण में लगे हुए हैं, जो आय बढ़ाने का पर्याप्त अवसर प्रदान करता है (सिंह और क्युली 2011)।
संक्षेप में - समय पर ऋण उपलब्ध होना किसानों के लिए उच्च लागतवाली एचवीए अपनाने की पूर्व शर्त है। सर्वेक्षण में शामिल परिवारों में छह में से एक परिवार पर ऋण बकाया था या उसने सर्वेक्षण से पहले 12 महीने की अवधि के दौरान ऋण का भुगतान किया था। इनमें से केवल एक तिहाई ऋण का उपयोग कृषि परिसंपत्तियों के लिए किया जा रहा है। आधे परिवार एसएचजी से ऋण लेते हैं, जो सामुदायिक संस्था प्लेटफार्मों की परिपक्वता को उजागर करता है। हालांकि प्रति सदस्य बचत की औसत निर्धारित राशि मामूली है और केवल एक तिहाई उदाहरणों में, बचत को तुरंत ऋण के रूप में दिया जाता है।
आकृति 3. आमतौर पर एकत्रित बचत का क्या किया जाता है?
आकृति में आए अंग्रेजी वाक्यों/शब्दों का हिंदी अर्थ
Held with leader/bookkeeper - लीडर/बुककीपर के पास रखे रहना
Remitted to bank in 1-2 days - 1-2 दिन में बैंक में जमा कराना
Interlent immediately - तुरंत ऋण देना
Others - अन्य
किसानों की वित्तीय सहायता सुनिश्चित करने के लिए समय पर ऋण की उपलब्धता के लिए मौजूदा संस्थानों को मजबूत करना, स्वयं सहायता समूहों की ऋण क्षमता में सुधार करना और कृषि व्यवसाय को बढ़ावा देना आवश्यक है। सरलीकृत प्रक्रियाओं के माध्यम से वाणिज्यिक बैंकों जैसे अन्य औपचारिक संस्थानों को भी इसमें जोड़ने के अवसरों पर भी विचार किया जाना चाहिए (शिवस्वामी एवं अन्य 2020)।
समापन टिप्पणी
आधारभूत सर्वेक्षण की प्रमुख अंतर्दृष्टि झारखंड में किसानों की आय में सुधार के लिए एचवीए की ओर ध्यान केंद्रित करते हुए एक बड़ी गुंजाइश को उजागर करती है। हालांकि इसे सिंचाई सुविधाओं, बेहतर उत्पादन निर्णयों को बढ़ावा देने और सामूहिकता द्वारा पूरक किए जाने की आवश्यकता है।
हाल ही में भारत की केंद्र सरकार ने किसानों की उपज के बाधा मुक्त और राज्य के अंदर एवं बाहर व्यापार की अनुमति देते हुए दो कृषि अधिनियमों को पारित किया है और किसानों को उनकी पसंद के प्रायोजकों के साथ जुड़ने की अनुमति दी है। इससे एफपीओ की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। बड़े पैमाने पर खरीददारों के साथ जुड़ने के लिए सामूहिक उत्पादन को प्रतिस्पर्धी स्थानों पर ले जाने के साथ-साथ बेहतर सौदेबाजी की शक्ति का उपयोग करके, एफपीओ किसानों के हितों को सुविधाजनक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
हालांकि किसानों के प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण के साथ-साथ प्रभावी शिक्षण विधियों के माध्यम से उन्हें जलवायु संबंधी जोखिमों से निपटने के लिए सक्षम बनाते हुए सामूहिकता को और बढ़ावा दिया जाना चाहिए। व्यवहार परिवर्तन को मजबूत करने के लिए उच्च लागत वाली एचवीए के लिए ऋण की समय पर उपलब्धता भी आवश्यक है।
अंत में, पशुधन और गैर-इमारती लकड़ी के उत्पादन जैसी अन्य संबद्ध गतिविधियों की दिशा में विविधता लाकर कमजोरियों को कम किया जाना चाहिए।
टिप्पणियाँ:
- खरीफ की फसलें मानसून के मौसम में उगाई और काटी जाने वाली फसलें हैं जबकि रबी की फसलें सूखे महीनों (सर्दियों और गर्मियों) में उगाई व काटी जाती है।
लेखक परिचय: विनोद के. हरिहरन ऑक्सफ़ोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट लिमिटेड में एक असिस्टेंट कंसल्टेंट हैं और वर्तमान में वे विश्व बैंक और झारखंड सरकार द्वारा वित्त पोषित परियोजना के लिए एक अंतःस्थापित निगरानी और मूल्यांकन यूनिट के लिए काम कर रहे हैं। जसमीत खानूजा ऑक्सफोर्ड पॉलिसी मैनेजमेंट लिमिटेड में एक असिस्टेंट कंसल्टेंट हैं और वर्तमान में वे राजस्थान में स्वास्थ्य एवं पोषण कार्यक्रमों के मूल्यांकन पर काम कर रही हैं। साथ हीं झारखंड में बड़े पैमाने पर ग्रामीण आजीविका कार्यक्रम के मूल्यांकन में सहायता भी दे रही हैं। गुरप्रीत सिंह विश्व बैंक द्वारा वित्त पोषित तथा झारखंड सरकार द्वारा समर्थित एक राज्य परियोजना प्रबंधन यूनिट - झारखंड स्टेट लाइवलीहुड प्रमोशन सोसाइटी के एक प्रोग्राम कोऑर्डिनेटर (मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन) है।
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