उत्पादकता तथा नव-प्रवर्तन

श्रमिकों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए उनकी वित्तीय चिंताओं को दूर करना

  • Blog Post Date 22 अक्टूबर, 2021
  • लेख
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Supreet Kaur

University of California, Berkeley

supreet@berkeley.edu

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Suanna Oh

Paris School of Economics

suanna.oh@psemail.eu

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Frank Schilbach

Massachusetts Institute of Technology

fschilb@mit.edu

वित्तीय बाधाओं का असर श्रमिकों की मानसिक स्थिति पर हो सकता है और इसके कारण कार्य के दौरान श्रमिक के अधिक विचलित रहने से उसकी उत्पादकता प्रभावित हो सकती है। ओडिशा में छोटे पैमाने के निर्माण-उद्योग के श्रमिकों पर किये गए एक प्रयोग के आधार पर यह लेख दर्शाता है कि अनुबंध की अवधि की समाप्ति से पहले श्रमिकों को यदि अंतरिम भुगतान किया जाता है तो उनकी उत्पादकता में 7.1% की वृद्धि होती है – और यही वृद्धि गरीब श्रमिकों के सन्दर्भ में 13.3 प्रतिशत होती है; साथ ही उनके फोकस और कार्य नियोजन में भी सुधार ध्यान चूक में कमी के द्वारा प्रतीत होता है।

गरीबों द्वारा सामना की जाने वाली सभी प्रकार की चुनौतियों में से एक, उनके द्वारा आर्थिक रूप से विवश महसूस करना है, जो शोधकर्ताओं का ध्यान आकर्षित कर रही है क्योंकि वह श्रमिकों की मानसिक स्थिति पर असर करती है जो उपभोग पर इसके प्रत्यक्ष प्रभावों से परे होती है। विशेष रूप से, खर्चों को पूरा करने में असमर्थता मानसिक बोझ जैसे घबराहट, चिंता, तनाव या उदासी पैदा कर सकती है। इसका विशेष रूप से महत्वपूर्ण परिणाम उनकी उत्पादकता पर हो सकता है। जिन श्रमिकों की मानसिक स्थिति को वित्तीय तनाव प्रभावित करते हैं, वे कम उत्पादक हो सकते हैं- उदाहरण के लिए, क्योंकि उनका दिमाग भटक सकता है, जिससे वे काम के दौरान अधिक विचलित हो सकते हैं या अधिक त्रुटियाँ कर सकते हैं। उनकी उत्पादकता में गिरावट उनके ऊपर आय में कमी जैसे अतिरिक्त आर्थिक असर डाल सकती है।

वित्तीय तनाव और श्रमिक की उत्पादकता

गरीबी और उत्पादकता के बीच के इस संबंध की जाँच करने के लिए, हमने 2017-2018 में भारत के ओडिशा राज्य के 408 छोटे पैमाने के निर्माण-उद्योग के श्रमिकों के साथ एक फील्ड प्रयोग किया (कौर एवं अन्य 2021)। वहां की सेटिंग में रोजगार का एक विशिष्ट रूप है, जिसके तहत श्रमिकों को दो-सप्ताह तक की अनुबंध नौकरी में पूर्णकालिक रूप से काम पर रखा जाता है। ये श्रमिक रेस्टोरेंट में उपयोग हेतु डिस्पोजेबल पत्तल बनाते हैं, जो शारीरिक रूप से कठिन और सूझबूझ की आवश्यकता वाला कार्य है। श्रमिकों को उजरती दर (प्रति पिस के हिसाब से) से भुगतान किया जाता है, इसलिए उनकी उत्पादकता सीधे उनकी कमाई को प्रभावित करती है।

यह प्रयोग कृषि के कमजोर मौसम के दौरान किया गया क्योंकि उस समय कृषि-कार्य बहुत कम उपलब्ध होता है। कमजोर मौसम में रोज़गार के अनिरंतर स्वरूप के चलते इस प्रयोग से होने वाली कमाई श्रमिकों की एक महीने की आय के एक बड़े हिस्से के रूप में होती है। इस अवधि के दौरान इन श्रमिकों को ख़ास कर नकद राशि लेने के लिए बाध्य किया गया। बेसलाइन पर, 86% श्रमिकों ने अपनी वित्तीय चिंता जाहिर की। चिंता के सबसे आम दो स्रोत श्रमिकों के दैनिक खर्च और ऋण हैं, जिसमें 71 प्रतिशत श्रमिकों पर कर्ज बकाया था।

हम पाते हैं कि श्रमिक अपने मानसिक बोझ के तले काम करते हुए दिखाई देते हैं। एक सामान्य कार्य-दिवस पर, लगभग दो में से एक कर्मचारी काम के दौरान अपने वित्त के बारे में चिंतित होने की बात करता है। हाल में किये गए शोध का तर्क है कि वित्तीय तनाव सूझबूझ और निर्णय लेने की क्षमता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकता है (हौशोफर और फेहर 2014, मुलैयानाथन और शफीर 2013)। अतः ऐसी स्थितियां श्रमिक की उत्पादकता को संभावित रूप से प्रभावित करने के लिए वित्तीय तनाव की गुंजाईश निर्माण करती हैं।

मजदूरी भुगतान का समय और श्रमिक की उत्पादकता 

इस विचार की जाँच करने के लिए, हम श्रमिकों की आय प्राप्ति के समय को यादृच्छिक रूप से बदलते हैं और श्रमिक उत्पादकता के विस्तृत उपाय एकत्र करते हैं। कार्यस्थल के पर्यवेक्षक यह रिकॉर्ड करते हैं कि उनके अनुबंध की अवधि के दौरान श्रमिक ने हर घंटे में कितने पत्तल का उत्पादन किया। उजरती दर (प्रति पिस के हिसाब से) से भुगतान प्राप्त करने के लिए, ठेकेदारों द्वारा निर्धारित किये गए गुणवत्ता मानकों के अनुसार पत्तल तैयार की गई होनी चाहिए, उदाहरण के लिए- निर्धारित न्यूनतम आकार की। इसलिए, आउटपुट का हमारा मुख्य माप स्वीकृत किये गए पत्तल की संख्या है, जिसे घंटे के स्तर पर मापा जाता है।

'नियंत्रण समूह' में काम करने वाले (जो किसी हस्तक्षेप के अधीन नहीं हैं) श्रमिक दो सप्ताह की अनुबंध अवधि के समाप्त होने के बाद अपनी कमाई प्राप्त करते हैं। इसके विपरीत, 'उपचार समूह' के श्रमिक (जो हस्तक्षेप प्राप्त करते हैं) अपनी कमाई दो किश्तों में प्राप्त करते हैं: अनुबंध की अवधि के समाप्त होने के चार दिन पहले अपनी कमाई के एक अंतरिम भुगतान के रूप में तथा, शेष राशि का भुगतान अनुबंध की समाप्ति के दिन किया जाता है। परिणामस्वरूप, 'उपचार समूह' के श्रमिकों को चार दिन पहले ही अपनी कमाई का एक बड़ा हिस्सा नकदी के रूप में प्राप्त करने का मौका मिला, जबकि ‘नियंत्रण समूह' के’ श्रमिकों को नहीं मिला। केवल भुगतान का समय बदलता है; उजरती दर (प्रति पिस के हिसाब से) और नौकरी के अन्य सभी पहलू अपरिवर्तित रहते हैं, जिसका अर्थ है कि काम करने हेतु समग्र धन या वित्तीय प्रोत्साहन को लागू किए बिना ही, अल्पकालिक वित्तीय चिंताओं को कम किया गया है।

हम पाते हैं कि बड़े पैमाने पर नकदी देकर प्रेरित करने से वित्तीय बाधाओं को तुरंत कम किया जा सकता है। अपना अंतरिम नकद भुगतान प्राप्त करने के बाद, 'उपचार समूह' के श्रमिक अपने ऋण का भुगतान करते हैं और अपने घरेलू खर्च में इजाफा करते हैं– यही वित्तीय तनाव के दो सबसे अधिक आम कारक हैं। अंतरिम भुगतान के तीन दिनों के भीतर, 'उपचार समूह' के श्रमिकों की अपने ऋण चुकाने की संभावना 40 प्रतिशत अंक (222%) अधिक होती है, इस प्रकार से, ऋण भुगतान राशि में 287% की वृद्धि होती है। वे भोजन, कपड़े, साबुन और ईंधन जैसे घरेलू सामानों पर खर्च में 42% की वृद्धि करते हैं। इन भुगतानों में से अधिकांश के बारे में जानकारी मिली कि ये भुगतान नकद राशि के वितरित होने के दिन ही हुए थे, जिससे हम उत्पादकता पर नकदी के तत्काल प्रभाव को मापने में सक्षम हो गए।

इसके अलावा, हम पाते हैं कि वित्तीय बाधाओं को दूर करने से श्रमिकों की उत्पादकता में वृद्धि होती है। नकद राशि का बड़ा हिस्सा प्राप्त करने के एक दिन बाद, 'उपचार समूह' के श्रमिकों ने अपना उत्पादन नियंत्रण समूह की तुलना में 0.115 मानक विचलन1 (एसडी), या 7.1% तक बढ़ाया। ये लाभ पूरे कार्य-दिवस और अनुबंध अवधि के शेष दिनों के लिए बने रहते हैं। इसके अलावा, वे उन श्रमिकों के सन्दर्भ में अधिक ठोस हैं, जो बेसलाइन पर गरीब हैं, इसे कम संपत्ति और कम तरलता (लिक्विडिटी) दोनों के जरिये मापा गया। अंतरिम भुगतान किये जाने से इन गरीब कामगारों की उत्पादकता में 13.3% की वृद्धि होती है।

श्रमिकों के ध्यान पर प्रभाव

ये निष्कर्ष हमें बताते हैं कि 'उपचार समूह' के श्रमिक अधिक उत्पादक बनते हैं, लेकिन हम हमारा डेटा हमें और आगे जाने देता है: हम उनके काम करने के तरीके में बदलावों को भी माप सकते हैं। एक पत्तल तैयार करने के लिए विभिन्न आकार की पत्तियों को गोलाकार रूप में इकट्ठा करना होता है। चूंकि प्रत्येक अतिरिक्त पत्ती को सिलने में समय लगता है, श्रमिक यथासंभव कम से कम पत्तियों का उपयोग करने का प्रयास करते हैं। इसलिए पत्तल तैयार करने लिए एक योजना बनाने और उसका पालन करने की आवश्यकता होती है। ऐसा न करने के परिणाम, पत्तल बनते देखकर ही स्पष्ट समझ में आते हैं। जो श्रमिक पत्तल बनाने के सही तरीके के बारे में नहीं सोचता है, वह पत्तल तैयार करते समय देखता है कि पत्तल का आकार गोलाकार से अब आयताकार होने लगा है, और तब उसे प्लेट में जोड़े गए सबसे बाद के पत्तों को निकाल कर टांके को पूर्ववत करने की आवश्यकता महसूस होती है, और उन्हें फिर से अलग स्थिति में संलग्न करना पड़ता है; अथवा पत्तियों की एक श्रृंखला को एक साथ जोड़ने के बाद श्रमिक को पता चलता है कि प्लेट में पत्ते का तना दिखाई दे रहा है या पत्तियों के बीच एक छोटा सा छेद दिखाई दे रहा है, जिसके चलते उसे प्लेट के ऊपर एक और पत्ती जोड़नी पड़ती है।

अतः हम प्रत्येक प्लेट पर ध्यान के तीन प्रोत्साहन-रहित मार्करों को मापते हैं: (क) 'दो छेद' की संख्या- यह बताने वाला संकेत कि श्रमिक ने अपनी गलती को ठीक करने हेतु पत्ती को अलग करते हुए प्लेट से उस जगह की सिलाई हटा दी थी; (ख) उपयोग में लाई गई पत्तियों की संख्या; और (ग) लगाए गए टांकों की संख्या। जिस श्रमिक को अपनी कम गलतियों को ठीक करना पड़ता है, या जो खराब योजना या गलतियों को ठीक करने लिए अतिरिक्त पत्तियों या टांकों का उपयोग किए बगैर एक पूरी प्लेट तैयार करता है, उसे प्रत्येक प्लेट को तैयार करने में कम समय लगने से उससे तेजी से काम करने की उम्मीद की जा सकती है। श्रमिकों को पता चले बिना, हम उनकी उत्पादकता के इन तीन आयामों को एक एकल 'उच्च सावधानी'2 माप में संयोजित करने के लिए मापते हैं।

नकद राशि का भुगतान न केवल उत्पादित प्लेटों की संख्या बढ़ाता है, बल्कि योजना और ध्यान में भी सुधार लाता है। 'उपचार समूह' के श्रमिकों द्वारा अंतरिम भुगतान प्राप्त करने  के बाद, उनके ‘उच्च सावधानी’ सूचक में नियंत्रण समूह की तुलना में 9.7 प्रतिशत अंक की  वृद्धी हो जाती है। उत्पादकता परिणामों के साथ, ये प्रभाव गरीब श्रमिकों के सन्दर्भ में अधिक ठोस होते हैं, जिनके ‘उच्च सावधानी’ सूचक में 18.6 प्रतिशत अंक की वृद्धी हो जाती है।

निष्कर्ष 

हमारा कार्य, श्रमिक उत्पादकता और इसके परिणामस्वरूप उनकी कमाई पर, वास्तविक नौकरी के संदर्भ में वित्तीय तनाव के प्रभावों का प्रत्यक्ष प्रमाण उपलब्ध कराता है। हम पाते हैं कि वित्तीय तनाव में अपेक्षाकृत मामूली और अपेक्षित कमी से श्रमिकों की उत्पादकता में सार्थक वृद्धि होती है। यदि गरीबी उत्पादकता को कम करती है, तो यह माध्यम आय या धन पर पडने वाले नकारात्मक झटकों के प्रभाव को बढ़ा सकता है। किसी आपदा से जूझने वाले लोगों की उत्पादकता भी कम होगी क्योंकि इससे उबरने के लिए उन्हें सबसे बड़ी आवश्यकता नकदी की होगी। अधिकांश गरीब देशों में ये समस्याएं विशेष रूप से गंभीर हैं, क्योंकि, व्यक्ति अपने स्व-वित्तपोषित उद्यमों में उपभोग और उत्पादक निवेश को सुचारू बनाने के लिए अपनी मजदूरी की कमाई पर अत्यधिक निर्भर होते हैं। हमारा यह शोध-कार्य, नीति-निर्माताओं को सुझाव देता है कि वित्तीय अस्थिरता को कम करने (उदाहरण के लिए, स्थिर रोजगार या सार्वजनिक कार्यक्रमों के माध्यम से) या भेद्यता को कम करने के लिए (उदाहरण, क्रेडिट पहुंच या बेरोजगारी बीमा के माध्यम से) किये जा सकने वाले ऐसे उपाय श्रमिकों के कल्याण में सुधार के साथ-साथ उनमें उच्च उत्पादकता भी ला सकते हैं।

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टिप्पणियाँ:

  1. मानक विचलन एक ऐसा माप है जिसका उपयोग उस सेट के औसत से मूल्यों के एक सेट की भिन्नता या फैलाव की मात्रा को मापने के लिए किया जाता है।
  2. विशेष रूप से, हम प्रत्येक श्रमिक-घंटे के स्लॉट के दौरान प्रति प्लेट पत्तियों, टांके और दो छेद की औसत संख्या की गणना करते हैं। तीन उपायों को पोस्ट-पे अवधि में ‘नियंत्रण समूह’ के उत्पादन (औसत और मानक विचलन) का उपयोग करके सामान्यीकृत किया जाता है, और फिर उसके औसत से ‘सावधानी सूचकांक’ बनाया जाता है। ‘उच्च सावधानी’ सूचक दर्शाता है कि सूचकांक मान नमूना माध्यिका से अधिक है।

लेखक परिचय: सुप्रीत यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया, बर्केले में अर्थशास्त्र विभाग में सहायक प्रोफेसर हैं। सेंथिल मुलैनाथन शिकागो यूनिवर्सिटी बूथ में संगणना और व्यवहार विज्ञान के रोमन  फ़ैमिली  प्रोफेसर हैं। सुआना फॉल 2020 से पेरिस स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में असिस्टेंट प्रोफेसर होंगी। फ्रैंक शिलबैक मैसाचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में अर्थशास्त्र के एसोसिएट प्रोफेसर हैं।

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