मुद्रा तथा वित्त

भारत के विदेशी मुद्रा भंडार और वैश्विक जोखिम

  • Blog Post Date 23 जुलाई, 2024
  • लेख
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Chetan Ghate

Indian Statistical Institute

cghate@isid.ac.in

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Kenneth Kletzer

University of California, Santa Cruz

kkletzer@ucsc.edu

जीडीपी की तुलना में भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में वृद्धि हुई है। इस लेख में, केन्द्रीय बैंकों द्वारा भंडार जमा करने के पीछे के उद्देश्यों की जाँच की  गई है और यह भी देखा गया है कि क्या अत्यधिक पूंजी प्रवाह के खिलाफ एहतियात जैसे उद्देश्यों के लिए पर्याप्त भंडार रखे जाते हैं। इस लेख में भारतीय सन्दर्भ पर ध्यान केन्द्रित करते हुए, यह आकलन किया गया है कि क्या अधिक विदेशी मुद्रा भंडार का सीमांत लाभ उस भंडार को रखने की लागत से अधिक है।

यह आइडियाज़@आईपीएफ2024 श्रृंखला का दूसरा लेख है।

वर्ष 1991 से भारत ने विदेशी मुद्रा का एक बड़ा भंडार जमा कर लिया है (आकृति-1)। सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की तुलना में भंडार में यह वृद्धि कई बड़ी उभरती बाज़ार अर्थव्यवस्थाओं के भंडार संचय के पैटर्न का हिस्सा है (आकृति-2)। उभरते बाज़ारों द्वारा भंडार जमा करने से कई सवाल उठते हैं कि ये देश अपने भंडार का उपयोग कैसे करते हैं, क्या उनके पास उचित उद्देश्यों के लिए पर्याप्त भंडार है और क्या अधिक भंडार का सीमांत लाभ लागत से अधिक है।

आकृति-1. भारत के लिए विदेशी भंडार, मिलियन अमेरिकी डॉलर में


आकृति-2. भारत और अन्य एशियाई अर्थव्यवस्थाओं में रिज़र्व संचय, मिलियन अमेरिकी डॉलर में


अपने शोध में हम भारत के बारे में इनमें से प्रत्येक मुद्दे पर विचार करते हैं। हम तीसरे मुद्दे पर ध्यान केन्द्रित करते हैं तथा वैश्विक वित्तीय चक्र के दौरान अंतर्राष्ट्रीय पूंजी प्रवाह पर अतिरिक्त भंडार के प्रभाव तथा भारत के लिए भंडार रखने की अवसर लागत को मापने का प्रयास करते हैं।

भंडार क्यों जमा करें और कितना?

केन्द्रीय बैंकों के लिए भंडार जमा करने के तीन प्राथमिक उद्देश्य हैं। पहला- आरक्षित निधियों का स्टॉक, विदेशी और घरेलू परिसंपत्ति धारकों के दबाव के चलते घरेलू वित्तीय बाज़ारों और संस्थानों में आने वाली कमी की स्थिति में आत्म-बीमा प्रदान करता है। वैश्विक वित्तीय या घरेलू झटकों से संबंधित अचानक पूंजी बहिर्वाह के खिलाफ एहतियाती उपाय के रूप में भंडार रखा जा सकता है। दूसरा- अल्पकालिक विनिमय दर की अस्थिरता को कम करने के लिए विदेशी मुद्रा बाज़ार में हस्तक्षेप के लिए भंडार का उपयोग किया जाता है।

ये भंडार केन्द्रीय बैंकों को स्थिरता बनाए रखने के लिए वित्तीय अशांति के समय में तत्परता से हस्तक्षेप करने हेतु अंतरराष्ट्रीय तरलता प्रदान करते हैं। वित्तीय रूप से खुली अर्थव्यवस्थाओं को विदेशी पूंजी प्रवाह के अचानक उलट जाने या घरेलू निवासियों द्वारा पूंजी पलायन के जोखिम का सामना करना पड़ता है। जब घरेलू मुद्रा संपार्श्विक परिसंपत्तियों में विश्वास विफल हो जाता है तो विदेशी मुद्रा भंडार केन्द्रीय बैंक को विशुद्ध रूप से घरेलू कमी के खिलाफ भी तरलता प्रदान कर सकते हैं। वित्तीय रूप से बंद अर्थव्यवस्था में घाटे की स्थिति नहीं होती, लेकिन आयात के भुगतान के लिए व्यापार ऋण की कमी हो सकती है। जैसे कि भारत को वर्ष 1991 में इस स्थिति का सामना करना पड़ा था, जिसके बाद भारतीय रिज़र्व बैंक (आरबीआई) ने विदेशी मुद्रा भंडार स्थापित करने के लिए ठोस प्रयास किया था।

अत्यधिक पूंजी बहिर्वाह के खिलाफ एहतियात के तौर पर रखने के लिए भंडार के उचित आकार का निर्धारण मौद्रिक नीति के सामने एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है। इनमें बाहरी ऋण परिशोधन की एक वर्ष की सीमा (यानी समय-समय पर ऋण के मूल्य को कम करना), आयात के तीन महीने की पारम्परिक सीमा और व्यापक मुद्रा हेतु भंडार का अनुपात शामिल है1। हालांकि, पर्याप्तता मीट्रिक राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के वैश्विक वित्तीय झटकों और अचानक रुकने के जोखिम के अस्थाई उपाय हैं।

रिज़र्व रखने के लाभों को, उन्हें रखने की अवसर लागत के साथ तौला जाना चाहिए। ये लागतें विदेशी सरकारी ऋण में रखी गई रिज़र्व परिसंपत्तियों पर आरबीआई की आय और वैकल्पिक परिसंपत्ति, घरेलू सरकारी ऋण पर प्रतिफल के बीच के अंतर से जुड़ी हैं। आरक्षित निधियों को रखने की ये अर्ध-राजकोषीय लागतें मुख्यतः घरेलू सरकारी ऋण और अमेरिकी ट्रेजरी ऋण के बीच ब्याज़ के अंतर से अनुमानित की जाती हैं, हालांकि पूरी तरह से नहीं।

भारत के रिज़र्व भंडार की जाँच

वर्तमान में भारत का भंडार आईएमएफ की पर्याप्तता सीमा से अधिक है। एक स्वाभाविक नीतिगत प्रश्न उठता है- आरबीआई के पास पर्याप्त भंडार कब होगा? इसका उत्तर देने के लिए यह समझना आवश्यक है कि अतिरिक्त भंडार संकट-स्तर की घटनाओं के जोखिम और भंडार की अवसर लागत को कैसे प्रभावित करते हैं। सम्भावित अचानक पूंजी बहिर्वाह और आयात आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए आवश्यकता से अधिक भंडार रखने से लेनदारों और अन्य बाज़ार सहभागियों को यह आश्वासन मिल सकता है कि केन्द्रीय बैंक जितना आवश्यक होगा उतना और जब तक आवश्यक होगा, हस्तक्षेप करने में संकोच नहीं करेगा। आरक्षित निधियाँ वैश्विक और घरेलू वित्तीय झटकों के कारण उत्पन्न होने वाले जोखिमों को कम कर सकती हैं, जिससे पूंजी प्रवाह में होने वाले उलटफेर की घटनाएं कम हो सकती हैं तथा सरकारी ऋण पर जोखिम प्रीमियम कम हो सकता है, चाहे वह घरेलू मुद्रा में हो या विदेशी मुद्रा में।

असाधारण पूंजी बहिर्वाह के विरुद्ध एहतियात के तौर पर रखे जाने वाले इष्टतम भंडार के लिए मानक सूत्र (जैसे कि जिऐन और रैनसीयर, 2011) अचानक बहिर्वाह से निपटने हेतु आवश्यक भंडार के स्तर को मापते हैं। ये जोखिम की 'अंतर्जातता' को ध्यान में नहीं रखते हैं। इस अनुमान से कि आने वाले वैश्विक वित्तीय झटकों के प्रभाव को कम करने तथा विदेशी पूंजी के अचानक बहिर्गमन को पूरा करने के लिए आरक्षित निधियाँ उपलब्ध होंगी, विदेशी पूंजी अंतर्वाह की मात्रा तथा प्रकृति प्रभावित होने की सम्भावना है। वित्तीय स्थिरता में सुधार करने वाली होल्डिंग्स को अधिक कुशल निवेश वित्त सक्षम करना चाहिए। वित्तीय नाज़ुकता को कम करके, उच्च भंडार पूंजी प्रवाह की परिपक्वता को बढ़ा सकते हैं जिससे अल्पकालिक पूंजी बहिर्वाह के जोखिम को कम किया जा सकता है। यदि रिज़र्व भंडार से प्रतिकूल वैश्विक या घरेलू घटनाओं में पूंजी बहिर्वाह के आकार को कम किया जा सकता है, तो रिज़र्व का सीमांत लाभ बड़ा होता है और रिज़र्व का इष्टतम स्तर अधिक हो सकता है।

हम भारत के लिए अस्थिर पूंजी प्रवाह पर भंडार के प्रभाव का अनुमान केवल माध्य (औसत) के बजाय विदेशी पूंजी प्रवाह के सम्पूर्ण सम्भाव्यता वितरण पर लगाते हैं। हमारी विधि में अंतरराष्ट्रीय पूंजी प्रवाह पर पूंजी-जोखिम विश्लेषण लागू करने वाले हालिया शोध का अनुसरण किया गया है।2  भारत के सन्दर्भ में क्वांटाइल प्रतिगमन3 यानी रिग्रेशन का उपयोग वैश्विक वित्तीय, विकास और मौद्रिक नीति जोखिमों को देखते हुए बाहरी और आंतरिक झटकों के वितरण पर सकल पूंजी प्रवाह पर भंडार के सीमांत प्रभाव का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है। हमारा विश्लेषण विदेशी सकल पूंजी प्रवाह पर केन्द्रित है क्योंकि ये भारत के लिए वित्तीय स्थिरता संबंधी चिंताओं के लिए सबसे अधिक महत्वपूर्ण हैं। अधिकांश उभरते बाज़ारों के विपरीत, घरेलू सकल पूंजी बहिर्वाह पूंजी नियंत्रण के अधीन हैं और बहुत छोटे हैं।

लाभ और अवसर लागत का मूल्याँकन करना

वैश्विक वित्तीय उथल-पुथल और विदेशी मौद्रिक नीति के झटके भारत से विदेशी पूंजी के बहिर्वाह के महत्वपूर्ण चालक हैं। वैश्विक वित्तीय झटकों को वीआईएक्स सूचकांक4 द्वारा दर्शाया जाता है तथा भारत और अमेरिका की सापेक्ष मौद्रिक नीति दरें मौद्रिक झटकों को दर्शाती हैं। हम पाते हैं कि अतिरिक्त भंडार 5% सम्भावना के साथ होने वाले बड़े बहिर्वाह को महत्वपूर्ण रूप से कम कर सकते हैं। रिज़र्व होल्डिंग्स के साथ जोखिमों की परस्पर क्रिया से पता चलता है कि कैसे अतिरिक्त रिज़र्व वैश्विक अनिश्चितता या मौद्रिक नीति संबंधी झटकों के कारण पूंजी के बहिर्वाह को कम करता है। विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी प्रवाह के लिए सम्भाव्यता वितरण का अनुमान लगाने के लिए क्वांटाइल प्रतिगमन का उपयोग करने से यह पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि भंडार में वृद्धि वैश्विक अनिश्चितता के झटके या मौद्रिक नीति के झटके को किस प्रकार कम करती है।

मौद्रिक झटके विदेशी पोर्टफोलियो ऋण और इक्विटी प्रवाह को अलग-अलग तरीके से प्रभावित करते हैं। भंडार में वृद्धि से पोर्टफोलियो ऋण प्रवाह की अस्थिरता काफी कम हो जाती है। रिज़र्व फेडरल फंड्स रेट में वृद्धि और अमेरिकी मौद्रिक सहजता के साथ कम पूंजी प्रवाह के बाद पूंजी बहिर्वाह को कम करता है। यद्यपि विदेशी मुद्रा भंडार का विदेशी ऋण प्रवाह पर स्थिरकारी प्रभाव पड़ता है, लेकिन अपेक्षा के अनुरूप यह इक्विटी प्रवाह को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित नहीं करता है।

अब हम भंडार रखने की लागत को देखते हैं। इन लागतों में भारत सरकार की प्रतिभूतियों और अमेरिकी ट्रेजरी के बीच ब्याज़ का अंतर, विदेशी भंडार की वहन लागत और अन्य मूल्याँकन प्रभाव शामिल हैं। विदेशी भंडार रखने की वहन लागत आरबीआई द्वारा रखे गए रिवर्स वहन ट्रेड पर लाभ या हानि है। ये अन्य मूल्याँकन लागतों के साथ-साथ पूर्व-पश्चात हानि या लाभ हैं। दोनों भारत के लिए सकारात्मक हो सकते हैं। हम भारत के लिए रुपये में जारी 10 वर्षीय सरकारी प्रतिभूतियों और 10 वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी के बीच ब्याज़ दर प्रसार के एक मॉडल का अनुमान लगाते हैं। प्रसार को मुद्रा जोखिम प्रीमियम और शुद्ध जोखिम प्रीमियम5 के बीच विभाजित किया जाता है। भारत-अमेरिका 10-वर्षीय अंतर, मुद्रा जोखिम प्रीमियम और शुद्ध ऋण जोखिम पर अतिरिक्त भंडार के प्रभाव का अनुमान लगाया गया है। परिणाम दर्शाते हैं कि भंडार का प्रसार पर नकारात्मक और महत्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। इसका मतलब है कि भंडार में वृद्धि की सीमांत अवसर लागत आरबीआई आरक्षित परिसंपत्तियों और स्वयं के सरकारी ऋण पर ब्याज़ दर के अंतर से कम है।

निष्कर्ष

विश्लेषण से यह पता चला कि विदेशी पोर्टफोलियो पूंजी प्रवाह पर भंडार के प्रभाव से दिखाई देता है कि भंडार संचय भारत को एहतियाती भंडार लाभ प्रदान करता रहेगा। परिणामों से पता चलता है कि अतिरिक्त भंडार प्रतिकूल वैश्विक वित्तीय झटकों और ब्याज़ दर झटकों के विरुद्ध सकल बहिर्वाह को कम करने में सहायक होते हैं तथा यह सुझाव देते हैं कि वित्तीय स्थिरता कार्यों के लिए भंडार संचित करने के सकारात्मक सीमांत लाभ हैं। यह मौद्रिक नीति झटकों के मामले में भंडार के स्थिरीकरण प्रभाव की ओर इशारा करता है। सम्प्रभु ब्याज़ प्रसार यानी सॉवरेन इंटरेस्ट स्प्रेड में अनुमानित कमी का तात्पर्य है कि आरबीआई के लिए भंडार की अवसर लागत, मूल्याँकन लागतों के शुद्ध प्रसार से काफी कम हो सकती है।

टिप्पणी:

  1. व्यापक मुद्रा में अत्यधिक तरल 'संकीर्ण मुद्रा' (नोट और सिक्के) शामिल हैं, साथ ही कम तरल मुद्रा जैसे बैंक बैलेंस और अन्य संपत्तियाँ हैं, जिन्हें आसानी से मुद्रा में परिवर्तित किया जा सकता है।
  2. हम गेलोस एवं अन्य (2022) और मुदुली, बेहरा और पात्रा (2022) द्वारा उपयोग किए गए दृष्टिकोण का अनुसरण करते हैं।
  3. क्वांटाइल रिग्रेशन व्याख्यात्मक चर के एक सेट और परिणाम चर के विशिष्ट प्रतिशत (या 'क्वांटाइल') के बीच सम्बन्ध को मॉडल करता है। क्वांटाइल रिग्रेशन का उपयोग परिणाम चर के सशर्त माध्य का अनुमान लगाने के लिए किया जाता है।
  4. शिकागो बोर्ड ऑप्शंस एक्सचेंज (सीबीओई) का अस्थिरता सूचकांक (वीआईएक्स) वैश्विक वित्तीय अस्थिरता का एक प्रमुख माप है।
  5. क्रॉस-करेंसी स्वैप द्वारा मापा गया मुद्रा जोखिम प्रीमियम, फ़ॉरवर्ड प्रीमियम (वर्तमान स्पॉट दर और फ़ॉरवर्ड दर, या किसी मुद्रा के लिए अपेक्षित भविष्य की कीमत के बीच अंतर के रूप में मापा जाता है) के बराबर है। शुद्ध जोखिम प्रीमियम एक काल्पनिक 10-वर्षीय भारत सरकार के डॉलर बांड और 10-वर्षीय अमेरिकी ट्रेजरी बांड के बीच बराबर ब्याज़ प्रसार है।

अंग्रेज़ी के मूल लेख और संदर्भों की सूची के लिए कृपया यहां देखें।

लेखक परिचय : चेतन घाटे भारतीय सांख्यिकी संस्थान, दिल्ली की अर्थशास्त्र और योजना इकाई में प्रोफेसर हैं। उनके शोध के मुख्य क्षेत्र मैक्रोइकॉनॉमिक्स, मौद्रिक अर्थशास्त्र और वृद्धि और विकास हैं। केनेथ क्लेट्ज़र कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय, सांता क्रूज़ में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और विभागाध्यक्ष हैं। उनके प्राथमिक शोध क्षेत्र अंतर्राष्ट्रीय अर्थशास्त्र और मैक्रोइकॉनॉमिक्स हैं। महिमा यादव सिटीबैंक में एक वित्तीय विश्लेषक हैं।

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